Book Title: Maharashtri prakrit me Mul va varna ka Abhav
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 4
________________ २२ sto सुदर्शन लाल जैन (घ) तालव्यादेश -त्य थ्य द्य ध्य को क्रमशः च छ ज झ आदेश होते हैं" पश्चात् द्वित्त्वादि कार्य । जैसे - अत्यन्तम् > अच्चन्तं । प्रत्यक्षम् > पच्चक्खं, मिथ्या > मिच्छा, रथ्या> रच्छा, उद्यानम् > उज्जाणं, विद्या > विज्जा, उपाध्यायः > उवज्झाओ । (ङ) आदि वर्ण के संयुक्त होने पर कमजोर वर्ण का लोपमात्र होता है, द्वित्त्व नहीं यदि कमजोर वर्ण का लोप नहीं होता है तो स्वरभक्ति कर दी जाती है । जैसे- न्यायः > णायो, स्वभावः>सहावो, व्यतिकरः > बइयरो, ज्योत्स्ना > जोण्हा, त्यजति > चयइ, श्यामा > सामा, स्नेहः > सणेहो, स्यात् > सिया, ज्या > जीआ । ७. विशेष परिवर्तन: (जहाँ 'य' भिन्न-भिन्न रूपों में परिवर्तित हुआ है) (क) य > ज्ज - उत्तरीय शब्द में, अनीय, नीय तथा कृदन्त के 'य' प्रत्यय को विकल्प से ज्ज होता है । जैसे - उत्तरीयम् > उत्तरिज्जं उत्तरीअं, करणीयम् > करणिज्जं करणीअं, यापनीयम् > जवणिज्जं जवणीअं, द्वितीयः > बिइज्जो, बीओ । तृतीयः > तइज्जो तइओ, प्रेया >> पेज्जा पेआ । (ख) य> ह - परछाईं अर्थ में छाया शब्द के 'य' को विकल्प से 'ह' होता है । जैसे— वृक्षस्य छाया > वच्छस्स छाही वच्छस्स छाया । कान्ति अर्थ में नहीं हुआ । जैसे - मुखच्छाया > मुहच्छाया । (ग) य> व, आह ( डाह ) – 'कतिपय' शब्द के 'य' को पर्यायक्रम से 'आह' और 'व' आदेश होते हैं । जैसे - कतिपयम् > कइवाहं, कइअवं । (घ) य> ल' - यष्टि' के 'य' को 'ल' होता है । " जैसे > यष्टिः > लट्ठी (ङ) य>त - 'तुम' अर्थ में 'युष्मद्' शब्द के 'य' को 'त' होता है । जैसे - युष्मादृशः, तुम्हारिसो, युष्मदीयः - तुम्हकेरो । 'तुम' अर्थ न होने पर 'त' नहीं होगा । जैसे - युष्मदस्मत्प्रकरणम् (अमुक-तमुक से सम्बन्धित) > जुम्ह - दम्ह - पयरणं । (च) य > स्वरसहित लोप - 'कालायस' के 'य' का विकल्प से अकारसहित लोप होता है । जैसे कालायसम् > कालासं, कालाअसं, किसलयम् > किसलं किसलअं । (छ) स्त्य > ठ - 'स्त्यान' के 'स्त्य' को 'ठ' विकल्प से होता है ।" जैसे - स्त्यानम् > ठीणं, थीणं । (ज) न्य > ज, ञ्ज - अभिमन्यु के 'न्य' को 'ज' 'ज' आदेश विकल्प से होते हैं । " जैसे -अहिमज्जू, अहिम अहिमन्नु । १. अ-त्यथ्यद्यां च छ ज । २. वोत्तरीयानीय-तीयकृद्ये ज्यः । हेम० ८ १ २४८ । ३. छायायां हो कान्तौ वा । हेम० ८. १. २४९ । ४. डाह वौ कतिपये । हेम ८ १.२५० । ५. यष्ट्यां लः । वर० २.३२ तथा वृत्ति भामहकृत । हेम० ८-१-२४७ । ६. युष्मद्यर्थपरे तः । हेम ० ८. १. २४६ । ७. वर ४.३ तथा वृत्ति । ८. स्त्यान-चतुर्थार्थे वा । हेम० ८.२.३३ । ९. अभिमन्यौ जञ्जी वा । हेम० ८.२.२५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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