Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु एक्कासीतिमो संधि 'पणविवि गुरुपयई भव्यहं तमोहतिमिरंधह। कहमि मिचरिउं भंडणु मुरारिजरसंघह ॥ ध्रुवकं ॥ धीर' अविहियसामयं दूसियसोत्तियसामयं रक्खियसयत्तरसामयं चंडतिदंडुवसामयं जणियदुक्खवीसामयं गासियतिव्यतिसामयं बलविद्दविविवाहयं 'दूरुम्मुक्कविवाहयं 'कयणिवपुत्तिविसूरणं सीहं हयसरसामयं। विद्धंसियहिंसामयं। अक्खियधम्मरसामयं । अलिणीलंजणसामयं। अदविणजीवासामर्य। वेरीणं पि सुसामयं। पसमिबसेलविवाहयं। णिच्चं चेय विवाहयं। पयणयसुरणरसूरयः। 10 इक्यासीवीं सन्धि गुरुचरणों में प्रणाम कर उन भव्यजनों के लिए, जो अज्ञानसमूह के अन्धकार में हैं, मैं नेमिचरित तथा श्रीकृष्ण और जरासन्ध के युद्ध का वर्णन करता हूँ। जो धीर हैं, जिन्होंने लक्ष्मी का मद नहीं किया है, जिन्होंने कामरूपी हाथी को नष्ट कर दिया है, जिन्होंने ब्राह्मणों के सामवेद को दूषित (दोषपूर्ण) कहा है, जिन्होंने हिंसामतों को ध्वस्त किया है, जिन्होंने समूची पृथ्वीरूपी मृग की रक्षा की है; धर्मरूपी रसामृत का आख्यान किया है, जो प्रचण्ड त्रिदण्ड (मन-वचन-काय) का उपशम करनेवाले हैं, जो नीले अंजन के समान श्याम हैं, जो दुःखों को विश्राम दे चुके हैं, जो धनहीनों को जीवन की आशा देनेवाले हैं (अथवा द्रव्य की आशा रखनेवाले नहीं हैं), जिन्होंने तीव्र तृष्णा रोग को नष्ट कर दिया है, जो शत्रुओं से भी प्रियवचन कहनेवाले हैं, जिन्होंने अपनी शक्ति से, विष्णु (कृष्ण) के द्वारा रचाया गया विवाह अस्वीकार कर दिया है, जिन्होंने पर्वतों के पक्षियों और व्याधों को शान्त कर दिया है, नित्य विशेष बाधा देनेवाले विवाह को दूर से त्याग दिया है, जिन्होंने राजकन्या (राजुल) को विरहपीड़ा जीवासा । 6.5 दुरुविमुक्क। 7. AS "नृय | H. AS "विसूरयः । (1) 1. 5 पणमवि। 2. S"पइयं । १. ABP "जरसिंघहं। 4. ARP वीर। 5. विसरणं । 9. APS "सुरयण': T सुरणर ।

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