Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 5
________________ उठो नी प्रभाती स्तवन मोरा प्रातम रामा, जिन मुख जोवा जइयो रे । टेर ।। जिरणजीको दर्शन छे प्रति दोहिलो वार-वार ते किम सोहिलो जागो रे । मानव भव मिलनो, मिलनो मुश्किल ठाणो रे ।। १ ।। चार दिनां नो चटको-मटको, देखोने मत राचो रे । वार लागे नहीं, विरासता काया घट छे काचो रे ।। २ ।। अनन्त गुणे करि भरियो जिनवर ते 1 पूरव पुण्ये पायो रे । देखिने मनमां हर्ष, Jain Education International घरणो घरणो चित्त समायो रे ।। ३ ।। हीरो हाथ " अमोलक आयो मूढपणे मत खोवो रे । सहज सपूरणा पार्श्व जिरगंदसु 7 राजी थई चित रमज्यो रे ॥ ४ ॥ मन गमता मोरा प्रतम रामा, कीजे सुकृत कमाई रे । लाभ उदय जिन चन्द लहोने 1 वर्त्ते सिद्ध बधाई रे ।। ५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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