Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ( ५ ) 'प्रचार किया था । पर पार्श्वनाथ की मृत्यु के कुछ काल बाद उनके साधु संघ में शिथिलता आ गई । साधु लोग बिना प्रयत्न किए जुट गए भोगने वाले पदार्थों के भोग में किसी प्रकार का संकोच नहीं करते थे । - महावीर के साथ श्राजीवक साम्प्रदाय का जिन बातों पर मतभेद हुत्रा, उनमें से मुख्य ये थीं - १, शीतल जल का उपयोग करना, २, अपने लिए तैयार किए गये अन्न और भोजन का ग्रहण करना, और ३, बिना विवाह किए मिल गई स्त्रियों का भोग करना । इनमें से तीसरी बात पार्श्वनाथ के शिष्यों में भी आ गई थी, जिसका महावीर ने विरोध -करके साधु संघ को पंच महाव्रतों से बांध दिया। महावीर के पंच महाव्रतों में चार तो पार्श्वनाथ के चातुर्याम ही थे । पांचवें ब्रह्मचर्य को -महावीर ने बढ़ाया । इस ब्रह्मचर्य महाव्रत के कारण जैन साधुत्रों को -यों ही - बिना प्रयत्न के-मिल गई स्त्रियोंके भोग से भी विरत होने के लिये बाध्य हो जाना पड़ा । साधना और तपस्या का यह प्रयोग विशेष रूप से मगध में हुआ । इन्हीं ऐतिहासिक कारणों से जैनों ने मगध को पुण्यभूमि माना और व्रात्यों की पुण्य भूमि होने के कारण मगध ब्राह्मणों के लिये पाप भूमि हो गया । मगध का प्रथम राज्य पुराणों के अनुसार जन्हु की चौथी, सम्भवतः पांचवीं पीढ़ी में कुश और उसका भाई मूर्तरया हुआ । इसी मूर्तरया ने अथवा उसके पुत्र गय ने गया नाम का एक नया राज्य स्थापित किया, जो आगे चलकर मगध कहलाया । इसके बहुत दिनों बाद, कुरु की पांचवीं पीढ़ी में वसु नाम का एक बड़ा प्रतापी राजा हुया । उसने यादवों के चेदि राज्य को जीतकर अपने अधीन किया । उसे चैद्योपरिचर भी कहते हैं । उसने मत्स्यदेश से लेकर मगध तक को अपने अधीन किया । उसने सम्राट चक्रवर्ती विरुद भी धारण किया । उसका राज्य उसके पांच पुत्रों में बंट -गया । उसका एक पुत्र वृहद्रथ मगध का राजा हुया । इसी वृहद्रथ ने

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70