Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 31
________________ ( २४ ) ही देख लिया था। इसी कारण वह मनीषी ब्राह्मण-क्षत्रिय समझौते द्वारा उंस हीनकर्मा हीन वर्ग के अपकर्ष में लगा - प्रवृत्त हुआ । यह स्वयं कुछ अकारण नहीं कि नन्द के ब्राह्मणकर्मा ब्राह्मण मन्त्री को ब्राह्मण परम्परा ने 'राक्षस' कहा हो क्योंकि उसके द्वारा हीन व्यवस्था की स्थापना हो रही थी, और राक्षसकर्मा चाणक्य को ब्राह्मण । जो भी हो भट्टिकाव्यम् को 'क्षात्रं द्विजत्वं च परस्परार्थम्', की पिछली परम्परा बहुत पूर्व चाणक्य-चन्द्रगुप्त के ही समय चरितार्थ हुई और उन्होंने हीनवर्गीय नन्दों को उखाड़ फेंका । चाणक्य पाशविक दैत्य परम्परा का ब्राह्मण रूप था और इस परम्परा की शक्ति उत्तरोत्तर बल-संगठन पर ही संचित होती है । चाणक्य ने उस बल संचय पर पूरा जोर देकर भारत का पहला प्रबल पराक्रमी साम्राज्य स्थापित किया । ऐसा बल संगठन राजा को केन्द्र मानकर चलता है— मन्त्रिमण्डल की शक्ति-नश्वरता और सम्राट की निरंकुशता उसका प्राण होती है । परन्तु वहीं केन्द्र जब कमजोर पड़ जाता है, तब साम्राज्य के प्रान्त बिखर जाते हैं । चन्द्रगुप्त और विन्दुसार की चाणक्यानुकूल वृत्ति ने उस शक्ति को कुछ काल सम्हाल रखा, परन्तु चन्द्रगुप्त के ही अन्त्यकाल और अशोक - परवर्ती शासन में जो शास्त्रचर्या क्षीण हुई और ब्राह्मण-क्षत्रिय परस्पर विरोध अपने स्वाभाविक रू में फिर स्पष्ट हुआ, तब पिछला संघर्ष ( द्वन्द्व ) अपनी श्रृंखला को कड़ियाँ एक बार और गढ़ चला। उसी द्वन्द्व की परिणति शुंगों की सफल क्रान्ति में हुई । उसका केन्द्र मौर्यो का पुरोहित और सेनापति, भारद्वाज गोत्री ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग और मेधाप्रसिद्ध वैय्याकरण पतंजलि था । 'महाभाष्य' में स्थान-स्थान पर जो राजनीतिक सूक्ष्म सूत्रों के संकेत मिलते हैं, वे अन्यथा नहीं, और न यही कि वह प्रकाण्ड दार्शनिक और सूत्रकार सम्राट पुष्यमित्र शुंग के अश्वमेध का ऋत्विज था । क्रान्ति नितान्त सफल निश्चय हुई और राज्यसत्ता मौर्य- जैन-बौद्ध

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