Book Title: Lokadharmi Pradarshankari Kalao ki Shaishik Upayogita
Author(s): Mahendra Bhanavat
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ लोकधर्मी प्रदर्शनकारी कलाओं को शैक्षणिक उपयोगिता १६ . बांसों के सहारे पड़ को जमीन से फैला देता है और उसमें चित्रित प्रत्येक चित्र का गाथा के साथ वाचन करता है। यह पड़ दो-ढाई मीटर चौड़ी से लेकर सात-आठ मीटर तक की लम्बाई लिए होती है। पाबूजी का भोपा इस पड़ को लेकर गांवों में अपने भक्त-श्रद्धालुओं के समक्ष रात-रात भर गाथा-गीतमय वाचन करता रहता है। सारा का सारा गाँव उसे सुनने के लिए उमड़ पड़ता है। भोपा अपनी प्रभावशाली गायकी में नृत्य कदम भरता हुआ इस पड़ के प्रत्येक चित्र को वाचित करता जाता है। भोपे के साथ उसकी पत्नी भोपिन रहती है जो उसे गायकी में सहायता करती है। इसके हाथ में एक दीवट रहती है जिसके माध्यम से वह रात्रि में सम्बन्धित पड़-चित्रों को उजास देती रहती है। यह पड़ दो तरह से उपयोगी है। एक तो उसका बड़ा रूप जिस पर किसी महापुरुष अथवा महाख्यान या किसी विशिष्ट चरित्र का समग्र चरित्र चित्रित कराया जा सकता है या फिर इसके छोटे-छोटे टुकड़ों में छोटे-छोटे कथानक, कहानी-किस्से, घटना-प्रसंग विषयक चित्र बनवाकर उन्हें शिक्षोपयोगी रूप दिया जा सकता है। भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण प्रसंग पर भीलवाड़ा के संगीत कलाकेन्द्र ने भगवान महावीर से सम्बन्धित एक पड़ का सुन्दर चित्रण-प्रदर्शन महावीर की शिक्षा-दीक्षा तथा उनके जीवनोपयोगी प्रेरक प्रसंगों से हजारों लोगों को परिचित, प्रेरित और शिक्षित कर बोधगम्य बनाया। कठपुतलियों द्वारा जनशिक्षण कठपुतलियाँ तो सर्वाधिक रूप में जनशिक्षण का सशक्त माध्यम रही हैं। यहाँ की कठपुतलियों के शैक्षणिक पक्ष को तब तक हमने नहीं पहचाना जब तक कि हमारे कुछ कठपुतली-विशेषज्ञ यूरोप के विविध देशों में होने वाले कठपुतली प्रयोगों को न देख आये। यूरोप और अमेरिका में कठपुतली अब केवल मनोरंजन की ही साधन नहीं रही, उसका उपयोग विविध शैक्षणिक स्तरों पर भी होने लगा है। हमारे देश में भी यद्यपि कठपुतलियाँ अब तक बच्चों के शिक्षण में सीधी प्रयुक्त नहीं हुई फिर भी समाजशिक्षण में और पुरातन संस्कृति के विशिष्ट तत्त्वों को जनता जनार्दन को हृदयंगम कराने में उपयोगी बनती रही हैं। विदेशों में पुतली-शिक्षण यूरोप में आज से पच्चीस वर्ष पूर्व बच्चों के शिक्षण में पुतलियों का प्रवेश सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में हुआ। इसके नेता थे लंदन के श्री फिलपोट, जार्ज स्पिएट तथा इटली की श्रीमती मेरिया सिम्नोरली। इधर अमेरिका में डा० मार्जरी मेकफेलरल ने बच्चों की शिक्षा में पुतलियों का अच्छा प्रयोग किया । यूरोप के पूर्वी देशों में जिनमें, रूमानिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, ग्रीक तथा रूस सम्मिलित हैं, पुतलियों का शैक्षणिक उपयोग इतना महत्त्व प्राप्त नहीं कर सका । इन देशों में अन्य कलाओं के साथ-साथ पुतलियों को एक स्वतन्त्र कला के रूप में माना गया। कला की अन्य रंगमंचीय विधाओं के अनुरूप ही पुतलियों की एक समृद्ध रंगमंचीय विधा विकसित हुई और उसमें अच्छे नाट्यों की रचना की गयी । कठपुतलियों का एक शास्त्र विकसित हुआ और उनके विशिष्ट नाट्यतत्त्वों पर खोज की गयी। इन देशों में कठपुतलियों के माध्यम से विज्ञापन आदि का भी काम लिया गया। सर्वप्रथम पूर्वी जर्मनी में और उसके पश्चात् रूस के कुछ स्कूलों में कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने बालशिक्षण में हस्तकौशल के रूप में पुतलियों का प्रयोग किया गया। कुछ बालपुतली विशेषज्ञों ने बच्चों के योग्य पशु-पक्षियों और परियों की कहानियों के आधार पर पुतलीनाट्य तैयार कर उनको मनोरजन का माध्यम प्रदान किया । तदुपरान्त कुछ स्कूलों में बच्चों द्वारा कठपुतलियाँ बनाने का काम भी प्रारम्भ हुआ। स्वयं बच्चों द्वारा कहानी कथन आदि करवाया गया। धीरे-धीरे पुतलियों का यह प्रयोग और जोर पकड़ता गया । फलत: पूर्व के सभी देशों में कठपुतली बालशिक्षण का प्रबल माध्यम बन गया। इंग्लैण्ड में फिलपोट ने शैक्षणिक पुतलियों के अनेक प्रयोग किये। बच्चों के विकास के साथ-साथ उनकी दबी हुई मानसिक उलझनों को खोजने में भी पुतलियों ने बड़े मार्के का काम किया । इटली में तो कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जिनमें पुतलियों के माध्यम से सभी विषयों की शिक्षा देने की योजना है । फ्रान्स, जर्मनी, रूस, इंग्लैण्ड, चेकोस्लावाकिया आदि देशों में पुतलियों का प्रयोग मानसिक रोगियों के उपचार में भी किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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