Book Title: Leshya Ek Vishleshan Author(s): Devendramuni Shastri Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 8
________________ ४६८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ३ आकाश सदृश नील कापोतलेश्या ४ पीला तेजोलेश्या ५ लाल पद्मलेश्या ६ अवरक्त तथा आगे की विकिरणें शुक्ललेश्या डा. महावीरराज गेलडा ने "लेश्याः एक विवेचन' शीर्षक लेख में जो चार्ट दिया है उसमें उन्होंने सप्त वर्ण के स्थान पर पांच ही वर्ण लिये हैं और हरा व नारंगी ये दो वर्ण छोड़ दिये हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में तेजोलेश्या का रंग हिंगुल की तरह रक्त लिखा है और पद्मलेश्या का रंग हरिताल की तरह पीत लिखा है। किन्तु डा. गेलडा ने तेजोलेश्या की पीले वर्ण वाली और पप लेश्या को लाल वर्ण वाली मानी है वह आगम की दृष्टि से उचित नहीं है । लाल के बाद आगमकार ने पीत का उल्लेख क्यों किया है इस सम्बन्ध में हम आगे की पंक्तियों में विचार करेंगे। तीन जो प्रारम्भिक विकिरणें हैं, वे लघुतरंग वाली और पुनः-पुनः आवृत्ति वाली होती हैं । इसी तरह कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएँ तीव्र कर्म बन्धन में सहयोगी व प्राणी को भौतिक पदार्थों में लिप्त रखती हैं। ये लेश्याएँ आत्मा के प्रतिकूल हैं, अतः इन्हें आगम साहित्य में अशुभ व अधर्म लेश्याएं कहा गया है और इनसे तीव्र कर्म बन्धन होता है। उसके पश्चात् की विकिरणों की तरंगें अधिक लम्बी होती हैं और उनमें आवृत्ति कम होती है । इसी तरह तेजो, पद्म व शुक्ल लेश्याएँ तीव्र कर्म बन्धन नहीं करतीं। इनमें विचार, शुभ और शुभतर होते चले जाते हैं । इन तीन लेश्या वाले जीवों में क्रमश: अधिक निर्मलता आती है। इसलिए ये तीन लेश्याएँ शुभ हैं और इन्हें धर्म लेश्याएँ कहा है। उपर्युक्त पंक्तियों में हमने जो विकिरणों के साथ तुलना की है वह स्थूल रूप से ही है । तथापि इतना स्पष्ट है कि लेश्या के लक्षणों में वर्ण की प्रधानता है । विकिरणों में आवृत्ति और तरंग को लम्बाई होती है । विचारों में जितना अधिक संकल्प-विकल्प के द्वारा आवर्त होंगे वे उतने ही अधिक आत्मा के लिए अहितकर होंगे। एतदर्थ ध्यान और जपयोग व साधना के द्वारा विचारों को स्थिर करने का प्रयास किया जाता है। हम पूर्व ही बता चुके हैं कि लेश्याओं का विभाजन रंग के आधार पर किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे के आसपास एक प्रभामण्डल विनिर्मित होता है जिसे 'ओरा' कहते हैं । वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के कैमरे निर्माण किये हैं जिसमें प्रभामण्डल के चित्र भी लिये जा सकते हैं। प्रभामंडल के चित्र से उस व्यक्ति के अन्तर्मानस में चल रहे विचारों का सहज पता लग सकता है। यदि किसी व्यक्ति के आस-पास कृष्ण आभा है फिर भले ही वह व्यक्ति लच्छेदार भाषा में धार्मिक दार्शनिक चर्चा करे तथापि काले रंग की वह प्रभा उसके चित्त की कालिमा की स्पष्ट सूचना देती है। भगवान महावीर, तथागत बुद्ध, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कर्मयोगी श्रीकृष्ण, प्रेम मूर्ति क्राइस्ट आदि विश्व के जितने भी विशिष्ट महापुरुष हैं उनके चेहरों के आस-पास चित्रों में प्रभामण्डल बनाये हुए दिखायी देते हैं जो उनकी शुभ्र आभा को प्रकट करते है। उनके हृदय की निर्मलता और अगाध स्नेह को प्रकट करते हैं। जिन व्यक्तियों के आस-पास काला प्रभामंडल है उनके अन्तर्मानस में भयंकर दुर्गुणों का साम्राज्य होता है। क्रोध की आंधी से उनका मानस सदा विक्षुब्ध रहता है, मान के सर्प फूत्कारे मारते रहते हैं, माया और लोभ के बवण्डर उठते रहते हैं।" वह स्वयं कष्ट सहन करके भी दूसरे व्यक्तियों को दुःखी बनाना चाहता है । वैदिक साहित्य में मृत्यु के साक्षात् देवता यम का रंग काला है । क्योंकि यम सदा यही चिन्तन करता रहता है कब कोई मरे और मैं उसे ले जाऊँ । कृष्ण वर्ण पर अन्य किसी भी रंग का प्रभाव नहीं होता। वैसे ही कृष्णलेश्या वाले जीवों पर भी किसी भी महापुरुष के वचनों का प्रभाव नहीं पड़ता। सूर्य की चमचमाती किरणें जब काले वस्त्र पर गिरती हैं तो कोई भी किरण पुनः नहीं लौटती । काले वस्त्र में सभी किरणें डूब जाती हैं। जो व्यक्ति जितना अधिक दुर्गुणों का भण्डार होगा उसका प्रभामंडल उतना ही अधिक काला होगा। यह काला प्रभामंडल कृष्णलेश्या का स्पष्ट प्रतीक है। . द्वितीय लेश्या का नाम नीललेश्या है। वह कृष्णलेश्या से श्रेष्ठ है। उसमें कालापन कुछ हलका हो जाता है। नीललेश्या वाला व्यक्ति स्वार्थी होता है । उसमें ईर्ष्या, कदाग्रह, अविद्या, निर्लज्जता, प्रदोष, प्रमाद, रसलोलुपता, प्रकृति की क्षुद्रता और बिना विचारे कार्य करने की प्रवृत्ति होती है ।" आधुनिक भाषा में हम उसे सेल्फिश कह सकते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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