________________ लेश्या: एक विश्लेषण 473 + + + + + + + + +++ + + + + - - - - - - - +++++ -- - - + + ++ ++++ + + + + + 46 52 42 देखिए-"अणु और आभा" ले० प्रो० जे० सी० ट्रस्ट 43 देखिए-पूज्य प्रवर्तक श्री अंबालाल जी म० अभिनन्दन ग्रन्थ, पु० 252 44 उत्तराध्ययन 34 / 21-22 / 45 वही 34 / 22-24 उत्तराध्ययन सूत्र 34 / 25-26 47 वही 34 / 27-28 48 वही 34 // 26-30 // 46 वही 34 // 31-32 50 आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, पृ०, 245 51 लोक प्रकाश, सर्ग 3, श्लोक 363-380 जाणग भवियसरीरा तव्वइरित्ता य सापुणो दुविहा / कम्मा नो कम्मे या नो कम्मे हुन्ति दुविहा उ // 3 // जीवाणमजीवाणय दुविहा जीवाण होइ नायव्वा / भवमभवसिद्धियाणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा // 36 // अजीव कम्मनो दम्बलेसा सा दसविहा उ नायव्वा / चंदाण य सूराण य गहगण णक्खत्तताराणं // 37 // आभरण छायणा दंशगाण मणि कांगिणी ण जा लेसा / अजीव दव्वलेसा नायव्व दसविहा एसा ॥३८॥-उत्तराध्ययन 34, पृ०, 650 53 जयसिंह सूरि-षट् सप्तमी संयोगजा इयं च शरीरच्छायात्मका परिगृह्यते अन्यत्वौदारिकौदारिकमिश्रमित्यादि भेदतः सप्तविधत्वेन जीवशरीरस्य तच्छायामेव कृष्णादिवर्णरूपां नोकर्माणि सप्तविधां जीव द्रव्य लेश्यां मन्यते तथा / --उत्तरा० 34, टीका०पृ०, 350 54 ताराओ पञ्च वण्णओ ठिपले साचारिणो -प्रज्ञा० पद 2 --0-0-पुष्क र वाणी-o-------------------------------------2 1 दर्जी वस्त्र को काटता है, फिर भी वह दोषी नहीं है। डाक्टर मनुष्य के हाथ-पैर आदि अंगों का छेदन करता है, फिर भी वह दंडनीय नहीं है। राज या मिस्त्री मकान को तोड़ता है, फोड़ता है फिर भी वह अपराधी नहीं है। इसी प्रकार गुरु या अधिकारी भलाई और सुधार के लिए किसी को ताड़ना, तर्जना तथा दंड आदि देते हैं तो वे आक्रोश के पात्र नहीं, अपितु हित- 1 कारी ही कहलाते हैं। thro------------------------------------------------ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org