Book Title: Lalitvistar Author(s): Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान - १६•220 अच्छाई वाला) है, ऐसा वचन निकलता था । जब एकार का उच्चारण करते थे तब सभी दोष एषणा (कामना) से उत्पन्न होते हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब ऐकार का उच्चारण करते थे तब ऐर्यापथ (क्लेश रहित क्रियामार्ग) श्रेष्ठ है, ऐसा वचन निकलता था । जब ओकार का उच्चारण करते थे तब ओघोत्तर (संसार प्रवाह से उपर उठो, उस को पार करो ), ऐसा वचन निकलता था । जब औकार का उच्चारण करते थे तब औपपादुक सत्त्व है (जिसकी उत्पत्ति रज और वीर्य से नहीं होती ऐसे जीव है), ऐसा वचन निकलता था । जब अंकार का उच्चारण करते थे तब अमोघ शक्ति (जो कभी विफल नहीं होती, निकम्मी नहीं होती) की उत्पत्ति हो, ऐसा वचन निकलता था । जब अःकार का उच्चारण करते थे तब सर्व अन्त को पाता है, ऐसा वचन निकलता था । जब ककार का उच्चारण करते थे तब कर्म के फल सत्त्व (जीव) को प्राप्त होता है, ऐसा वचन निकलता था । जब खकार का उच्चारण करते थे तब सर्व धर्म आकाश की तरह शून्य है, ऐसा वचन निकलता था । जब गकार का उच्चारण करते थे तब धर्मों का प्रतीत्य समुत्पाद (धर्मों का कार्यकारणभाव) समझना कठिन है, गंभीर है, ऐसा वचन निकलता था । जब घकार का उच्चारण करते थे तब मोहान्धकार के घनपटल को हटाओं, ऐसा वचन निकलता था । जब ङकार का उच्चारण करते थे तब अंगविशुद्धि करो, ऐसा वचन निकलता था । जब चकार का उच्चारण करते थे तब चार आर्य सत्य है, ऐसा वचन निकलता था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7