Book Title: Lala Lajpatray Ane Jain Dharma
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 114
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानते । कुछ आगे वे दिखते हैं, " इस ( अहिंसा के ) सिद्धांत को जैनों ने चरम सीमा तक पहुंचा दिया है, यहां तक कि कुछ लोगो की दृष्टि में जैन होना पहले दरजे की कायरता है । " मालूम नहीं यह विचार लालाजी का भी है या नहीं । यदि उनका भी है तो एक और प्रश्न के उत्तर पाने का कौतूहल होता है कि "क्याअहिंसा के संबंध लालाजी का यह मत पुराना अर्थात पुस्तक के प्रथम संस्करणका समय का है, अथवा अहिंसात्मक असहयोग में भाग लेकर कारागार प्रवासी होने पर उनका यह मत है ?" कुछ भी हो. कुछ और आगे लालाजी ने साफ साफ अपना मत प्रकाशित भी कर दिया है । " मेरी सम्मति में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का सामान्य प्रभाव भारत के राजनैतिक अधःपात का एक कारण हुआ है । पृष्ठ १३२ । यह बात विवाद ग्रस्त है। परन्तु जैनियों के साहित्य, कला, चिकित्सा और मनुष्यता के प्रति जो प्रशंस्य उद्योग किये हैं उनका वर्णन करना भी. परमावश्यक था जो विज्ञ लेखक ने नहीं किया ।" प्रकाशक-बुद्धिसागरसूरि. समाप्त. HARMAProg For Private And Personal Use Only

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