Book Title: Labdhimuniji Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 1
________________ । १५३ । चूडा पधारे। सं० २००८ जेठ बदि ७ को दादा जिन- चरणों की प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से हुई। दत्तसूरि मूर्ति, मणिधारी जिन'द्रसूरि व जिनकुशलसूरि एवं सं० २०१० का चातुर्मास सूरिजी ने मांडवी किया। पं, केशरमुनिजी की पादुकाएं प्रतिष्ठित की। वहां से मि० व० २ को धर्मनाथ जिनालय पर ध्वजदड चढ़ाया आहोर, जालोर होते हुए गढ़सिवाणा आकर चातुर्मास गया, उत्सव हुए। मोटा आसंबिया में मंदिर का शताकिया। फिर नाकोडाजी पधार कर मार्गशिर सुदि १ ब्दी महोत्सव हुआ। भुज को दादाबाड़ी में हेमचंद को दादासाहब जिनदत्तसूरि मूर्ति व श्रीकीतिरत्नसूरिजी भाई की ओर से नवीन जिनालय निर्माण हेतु सं० २०११ की जीर्णोद्धारित देहरी में प्रतिष्ठा करवाई। नाकोड़ाजी वै० श० १२ को सूरिजी के कर-कमलों से खात महत से विहार कर सूरिजी डीसा कैंप भील डियाजी होते हुए हुआ। तदनंतर सूरिजी ने अंजार चातुर्मास किया। राधनपुर, कटारिया, अंजार होते हुए भद्रेश्वर तीर्थ पहुँचे । · भद्रेश्वरजी की यात्रा कर मांडवी होते हुए भुज चातुर्मास के पश्चात् भद्रेश्वर यात्रा कर मांडवी पधारे, संघ का चिरमनोरथ पूर्ण हआ। यहाँ दादाबाडी पधारे। वहां की विशाल रमणीय दादावाड़ी में दादा निर्माण का लम्बा इतिहास है पर इसकी चेष्टा करने वाले जिनदत्तसूरि प्रतिमा विराजमान करने का उपदेश दिया. हेमचन्द भाई जिस दिन स्वर्गवासी हुए उसी दिन आपने स्वप्न पटेल वीकमसी राघवजी ने इस कार्य को सम्पन्न करने की में पुरानी और नई दादावाड़ी आदि सहित उत्सव को व अपनी भावना व्यक्त की । सूरिजी का शरीर स्वस्थ था, आंख हेमचंद भाई आदि को देखा वही दृश्य मजकी दादावाडी का मोतियबिद उतरता था जिसका इलाज कराना था पर प्रतिष्ठा के समय साक्षात् हो गया । सं० २००६ माघ सुदि माघ वदी ८ को अर्धाङ्ग व्याधि हो गयी ओर माघ सुदि १ ११ को बड़े समारोह पूर्वक प्रतिष्ठा हई । सूरत से सेठ के दिन समाधिपूर्वक स्वर्गवासी हुए । आपने अपने जीवन बालूभाई विधि-विधान के लिये आये। जिनदत्तसूरि की में शुद्ध चरित्र पालन करते हुए, शासन और गच्छ की खूब प्रतिमा व मणिधारी जिनचन्द्रसरि व श्रीजिनकशलसरि के प्रभावना की थी। विद्वदर्थ उपाध्याय श्रीलब्धिमुनिजी [भंवरलाल नाहटा ] बीसवीं शताब्दी के महापुरुषों में खरतरगच्छ विभूषण वाला है। उ० श्रीलब्धिमुनिजी महाराज ने आपके वचनाश्री मोहनलालजी महाराज का स्थान सर्वोपरि है। वे मृत से संसार से विरक्त होकर संयम स्वीकार किया था। बड़े प्रतापी, क्रियापात्र, त्यागी-तपस्वी और वचनसिद्ध श्रीलब्धिमुनिजी का जन्म कच्छ के मोटी खाखर गाँव योगी पुरुष थे। उनमें गच्छ कदाग्रह न होकर संयम साधन में हुआ था। आपके पिता दनाभाई देढिया वीसा ओसऔर समभावी श्रमणत्व सुविशेष था। उनका शिष्य समु- वाल थे। सं० १९३५ में जन्म लेकर धार्मिक संस्कार युक्त द्वाय भी खरतर और तपा दोनों गच्छों की शोभा बढ़ाने माता-पिता की छत्र-छाया में बड़े हुए। आपका नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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