Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 206
________________ [194] कुवलयमाला-कथा है, इस वणिक् का उपकार किया जाए।" तब राजपुत्र ने किसी नारी का शव मँगवा कर उसके पास छोड़ दिया। वह उससे नहीं बोला और न वह उससे बोली। जो कुछ वह शव का करती है उसे यह भी करता है। दूसरी बार उसने कहा-"यह क्या वृत्तान्त है?" उसने कहा- "यह मेरी सुरूपा सुभगा प्रियतमा कुछ अस्वस्थ शरीर वाली हो गयी।" तब लोग कहते हैं-" यह मर गयी है और संस्कार करने योग्य है।" मैंने चिन्तन किया- 'ये लोग असत्यभाषी हैं, तब मैंने वहाँ से इस श्मशान में लाकर इसे छोड़ दिया।' उसने कहा "सुन्दर किया, समान स्वभाव वाली हम दोनों में मैत्री हो गयी, क्योंकि समान शील और व्यसनों वाले में ही मित्रता होती है।" उसने कहा-"तू मेरी बहिन है, यह मेरा भावुक है। इसका नाम क्या है?" उसने कहा-"मेरे पति प्रियङ्कर नामक हैं।" उसने कहा-"तुम्हारी प्रिया का क्या नाम है?" उसने निवेदन किया-"मेरी प्रिया मायादेवी नाम की है।" इस प्रकार परस्पर उत्पन्न सम्बन्ध वाले वे दोनों हैं। जब वह आवश्यक कृत्य के लिए जाती है तब उसके सम्मुख कहती है "इन मेरे दयित को देखना।" जब वह कहीं भी जाती है तब उसके उस शव को सौंपकर जाती है। दूसरी बार उसने कहा-“बहिन! तुम्हारे पति ने मेरी प्रिया को कुछ कहा था, वह मुझे ठीक समझ में नहीं आया।" उसने कहा “हे जीवेश! तुम्हारे लिये मैंने कुल, घर, पिता, माता इत्यादि को तृणवत् त्याग दिया और फिर तुम फिर ऐसे हो कि अन्य अङ्गना को चाहते हो! यह कह कर कुछ कुपित हो गयी। फिर अन्य दिवस में वह शव को उसे सौंप कर नित्यकर्म के लिए चली गयी। तो फिर उसने दोनों ही शवों को कूवे में फेंक दिया। फिर उसके गमन मार्ग का अनुगमन करते हुए उसको वह बोली-"तुमने उन दोनों मनुष्यों को किसे सौंप दिया?" उसने भी कहा-"मायादेवी को रक्षा के निमित्त प्रियङ्कर को और प्रियङ्कर को माया देवी को। तो हम दोनों भी वहीं चलते हैं", यह कहकर वे दोनों आये परन्तु उन दोनों ने प्रियङ्कर और मायादेवी को नहीं देखा। तब वह दुःख को प्राप्त हो गयी, वह भी छद्म से मूर्च्छित हो गया। फिर चेतना को प्राप्त हुए उसने कहा- "बहिन! क्या किया जाय? तेरा प्रिय मेरी महिला को लेकर कहीं चला गया, तो उसने उसका सुन्दर नहीं किया, यह मेरा किया।" तब मुग्ध स्वभाव वाली सुन्दरी ने विचार किया "उस मेरे स्वामी चतुर्थ प्रस्ताव

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