Book Title: Kundaliniyoga Ek Chintan Author(s): Rudradev Tripathi Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 5
________________ सामान/ddiमन जान्थ समय HEREERISPREE फिर क्रिया आरम्भ के भैरव-नमस्कार करके नाम स्मरण सहित गुरु, परमगुरु एवं परमेष्ठी गुरु को तथा गणेश एवं इष्टदेवता को प्रणाम करे । तब गुरु द्वारा प्राप्त दीक्षा-मन्त्र का यथाशक्ति जप करके श्रीगुरु को विहित जप अर्पित करे । इसके पश्चात् पूरक, कुम्भक, रेचक के क्रम से प्राणायाम द्वारा अन्तरङ्ग दोषों को जलाकर निम्न क्रियाओं को प्रारम्भ करे (१) पहले ५ पाँच भस्त्रिका करे। (इसमें ५ बांये से, ५ दाहिने से और ५ दोनों से प्रयोग होगा।) (२) यथाशक्ति कुम्भक करके बाँये से शनैः शनैः रेचक करे । (ऐसा ५ बार करना चाहिये ।) (३) बाद में निम्नलिखित ५ आसन करे(१) हलासन, (२) सर्वांगासन, (३) अर्धमत्स्यासन, (४) पश्चिमोत्तानासन तथा (५) सासिन । (४) उपर्युक्त ५ आसन करने के पश्चात् भस्त्रिका करके कुम्भक में निम्नलिखित तेरह क्रियाए करे PRA Artistry T AMASONINECTRENERSITERVERBERNET (१) शक्ति चालन, (२) शक्तिताड़न, (३) शक्तिघर्षण, (४) कन्दवालन, (५) कन्दताड़न, (६) कन्दघर्षण, (७) टंकमुद्रा, (८) प्रधानपरिचालन, (९) बन्धमुद्रा, (१०) महामुद्रा, (११) महाबन्ध, (१२) महावेध, और (१३) शवमुद्रा। उपर्युक्त प्रयोग और क्रियाएँ मलशुद्धि के साथ नित्य प्रातः काल करने से कुण्डलिनी जो प्रसुप्त है, वह जागृत होने लगती है । क्रिया करते समय शरीर से प्रथम प्रस्वेद निकलता है, उसे हाथों से शरीर पर ही रगड़ देना चाहिये, कपड़े से पोंछना नहीं। इन क्रियाओं को करते रहने से प्रायः ३ मास में कुण्डलिनी प्रबोधन अवश्य होता है । अभ्यास । काल में घृत, दूध, फलादि और सात्विक भोजन करना चाहिये। कम बोलना, कम चलना, तथा ब्रह्मचर्यपालन के साथ-साथ इष्टमन्त्र का जप श्वास-प्रश्वास में करते रहना चहिये । 'शिवसंहिता' में कहा गया है कि - सुप्ता गुरु-प्रसादेन सदा जागति कुण्डली। सदा सर्वाणि पद्मानि भिद्यन्ते ग्रन्थयोऽपि च ।। तस्मात् सर्वप्रयत्नेन प्रबोधयितुमीश्वरीम्। ब्रह्मरन्ध्रमुखे सुप्तां मुद्राभ्यासं समाचरेत् ॥ TAKENARTERE ३२६ | सातवां खण्ड : भारतीय संस्कृति में योग -- - - trenints Hocomsumpternational Saran Parek "Urvawrjaimeliterary E HPage Navigation
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