Book Title: Koratji Tirth Prachin Itihas
Author(s): Yatindrasuri
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - इतिहासजो आज तक प्रतिवर्ष भरते चले आ रहे हैं। यात्रियों के वाले यात्रियों को इस प्राचीनतम तीर्थ की यात्रा का भी लाभ आराम के लिए एक विशाल धर्मशाला और एक प्राचीन उपासरा अवश्य लेना चाहिए। भी है। सन्दर्भ जैनियों के लिए संक्षिप्त सूचना एकदा कोरण्टस्थाने वृद्धश्रीदेवसूरयो विक्रमात् सं. 1252 यहाँ तीन प्राचीन और एक नवीन एवं चार सौधशिखरी वर्षे चतुर्मासीं स्थिता; तत्र मंत्रि नाहड़ो लघुभ्राता सालिगस्तयोः जिनमंदिर हैं। सबसे प्राचीनतम श्रीमहावीर प्रभु का मंदिर है। यह 500 कुटुम्बानां च प्रतिबोधस्तत.मुद्रित उपदेशतरंगिणी' पृ.१०२ तीर्थ एरनपुरारोड स्टेशन से 12 मील पश्चिम में है। एरनपुरारोड मंत्रिणा ढधर्मरङ्गेण / 72 जैनविहारा नाहड़वसहि प्रमुखाः से कोरटाजी तक मोटर, बैलगाड़ी, ताँगा, ऊँट आदि सवारियां कारिता: कोरंटादिषु प्रतिष्ठिताः / उपदेशतरंगिणी 5. 103 मिलती हैं। आबूराज और गोडवाड़ की पंचतीर्थी की यात्रा करने awardworivaridrodrowdrivardwonitororanowardiniorid[138/6brdwidwoboroubrobridorodusarowarBrootbrowomar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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