Book Title: Khartargaccha ki Krantikari aur Adhyatmika Parampara
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 8
________________ [ १२४ । वह भी हाथ में अल्प आहार करते थे । नये कर्मबन्ध न हों और उदयधीन कर्मों को खपाने का अद्भुत प्रयोग आपने मौन रहते हुए किया। फिर हृषीकेश, उत्तर काशी और पंजाब के स्थानों में निर्विकल्प भाव से विचरते हुए सं० २०५० में महातीर्थ समेतशिखरजी पधारे । मधुवन व पहाड़ पर श्रीचिदानन्दजी महाराज की गुफा में रह कर तपश्चर्या की। वहां से विहार कर वीरप्रभु की निर्वाणभूमि पावापुरी में पधार कर छः सात मास रहे । दहाणु की लोहाणा वकोल पुरषोत्तम प्रेमजी पौंडा की पुत्री सरला के लिये समाधि-शतक रचकर मौन साधना में भी एक घण्टा प्रवचन करके उसे समाधिमरण कराया । आत्मभावना की अखण्ड धून प्रचारित कर राजगृहादि यात्रा कर गया होते हुए गोकाक पधारे । वहां तीन वर्ष अखंड मौन साधना में गुफावास किया । इस समय ठाम चौविहार में केवल दूध और केला के सिवा अन्नादि का त्याग था । फिर मध्य प्रदेश में पधार कर तारणपंथ के तीर्थ धाम निसिईजी में कुछ दिन रह कर आत्मसिद्धि का हिन्दी पद्यानुवाद करके प्रवचन किया। मथुरा, बीकानेर आदि पधार कर सं० २०१४ का चातुर्मास प्राचीन तीर्थ खण्डगिरि ( भुवनेश्वर ) में बिताया । तीर्थयात्रा करते हुए क्षत्रियकुण्ड पहाड़ पर तपस्वी साधक श्री मनमोहनराजजी भणशाली के आग्रह से दो मास रहे । फिर हृषीकेश आदि स्थानों में होकर मध्यप्रदेश पधारे ओर चातुर्मास ऊन में बिताया। फिर बीकानेर पधारे, जैसलमेर की यात्रा को । शिववाड़ी और उदरामसर धोरों में रहकर बोरड़ी पधारे । सं० २०१८ के ज्येष्ट शुक्ला १५ की रात्रि में सातसी नर-नारियों की उपस्थिति में दिव्य वस्तुओं के साथ युगप्रधान पद का श्लोक प्रकट हुआ जिसके साक्षी स्वरूप अनेक विशिष्ट व्यक्ति विद्यमान थे । तत्पश्चात् क्रमशः पूर्व जन्मों की साधना भूमि हम्पी पधारे जो रामायणकालीन किष्किन्ध्या और मध्यकाल के विजयनगर का ध्वंशावशेष है । वहां १४० जैन मन्दिर वाले Jain Education International हेमकूट पर कुछ दिन रहकर सामने को पहाड़ी रत्नकूट को गुफा में अधिवास किया । श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम की स्थापना हुई। मैसूर सरकार और हेमकूट के महन्त जागीरदार ने समूचा पहाड़ जैन संघ को निशुल्क भेंट किया । जहाँ के भयानक वातावरण में दिन में भी लोग जाने में हिचकिचाते थे, आपके विराजने से दिव्यतीर्थ हो गया । बहुत से मकान और गुफाओं का निर्माण हुआ । विद्युत् और जल की सुविधा तो है ही । श्रीमद्राजचन्द्र जन्मशताब्दी के अवसर पर पक्की सड़क का निर्माण हो गया है जिससे मोटरें भी ऊपर जाती हैं । विशाल व्याख्यान हाल, फ्री भोजनालय आदि तो हो ही गये, विशाल मन्दिर और दादावाड़ी के निर्माण की भी योजनाएँ हैं । प्रतिवर्ष लाखों रुपयों का आमद खर्च है । पर्यूषण में तो उस निर्जन स्थल में चार पाँच सौ व्यक्ति पर्वाराधन करते रहे हैं । प्रतिदिन प्रातःकाल और मध्यान्ह के प्रवचन में भी बहुत से भावुक लाभ उठाते रहे । आपने तीन वर्ष पूर्व समस्त तीर्थ यात्रा और पचासों स्थानों में भ्रमण करके जो व्यक्ति हम्पो नहीं पहुँच सकते थे उन्हें भी अपनी अमृत वाणी से लाभान्वित किया। आप ध्यान और योग के पारगामी थे । चंचल मन को वश करने, देहाव्यास मिटा कर आत्मदर्शन प्राप्त करने की शास्त्रीय कुंजियाँ आपके हस्तगत थीं । आप की प्रवचन शैली अद्वितीय थी । तत्त्वज्ञान और अध्यात्मवाद जैसे शुष्क विषय की निरूपणशैली आपकी अजोड़ थी। हजारों श्रोताओं के मनोगत प्रश्नों को बिना प्रश्न किये प्रवचन में समाधान कर देने को अद्भुत प्रतिभा थी । अनेक सद्गत महापुरुषों से आपका संपर्क था, और दिव्य सुंगधी दिव्य वृष्टि आदि होते रहते । अनेक लवि सिद्धियाँ जो युगप्रधान पुरुष में स्वाभाविक प्रगट होतो हैं, विद्यमान रहते हुए भी कभी उस तरफ लक्ष्य नहीं करते । ज्वर, सर्दी आदि व्याधि की कृपा बनी रहती पर कर्म खपाने के लिये वे उसका स्वागत करते और औष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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