Book Title: Khartar Gaccha aur Tapagaccha me Pratikraman Sutra ki Parampara
Author(s): Manmal Kudal
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf
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15, 17 नवम्बर 2006
जिनवाणी करके बढ़ते हुए अक्षर और स्वरवाली तीन स्तुतियाँ" बोलता है। फिर मृदुस्वर से 'शक्रस्तवसूत्र' बोलकर फिर खड़े होकर 'अरिहंत चेइयाणं' इत्यादि सूत्र बोलकर चार स्तुति पूर्वक चैत्यवन्दन (देववन्दन) करता है। यहाँ चैत्यवंदन के समय 'जावतिचेइयाइंसूत्र' 'जावंत केविसाहूसूत्र' और 'प्रणिधान सूत्र' को नहीं बोलते हैं। तदनन्तर खमासमणसूत्र पूर्वक आचार्यादि को वन्दन करता है। फिर समय होने पर वस्त्र, वसति आदि की प्रतिलेखना करता है।
संदर्भ ( पाद टिप्पण)
१. जयवीय सूत्र
२. यहाँ चैत्यादि का अर्थ चैत्यवन्दन के साथ चार स्तुतिपूर्वक देववन्दना करना है।
३. प्रतिक्रमण स्थापना सूत्र
करेमि भंते सूत्र
४.
५.
इस सूत्र का दूसरा नाम 'अतिचार बीजक सूत्र' है ।
६. यहाँ खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में साधु-साध्वी 'सयणासणन्नपाणे' की गाथा एवं गृहस्थ आठ नवकार का चिन्तन करते हैं जबकि तपागच्छ परम्परा में साधु-साध्वी 'सयणासणन्नपाणे' की गाथा एवं गृहस्थ अतिचार की आठ गाथाएँ अथवा आठ
नवकार का चिन्तन करते हैं।
लोगस्स सूत्र
शरीर के संधिस्थल संबंधी १७ स्थान ।
७.
८.
९. इच्छामि ठामि सूत्र
१०. वंदित्तुसूत्र
११. इच्छामि ठामि सूत्र
१२. श्रुतस्तव सूत्र
१३. सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र
१४. यहाँ खरतरगच्छ परम्परा में 'सुवर्णशालिनी' तपागच्छ परम्परा में पुरुषवर्ग 'सुयदेवयाभगवई' एवं श्राविकावर्ग 'कमलदलविपुलः' की स्तुति बोलते हैं।
१५. यहाँ वर्तमान की खरतरगच्छ परम्परा में 'यासां क्षेत्रगताः' तपागच्छ परम्परा में पुरुषवर्ग 'जिसे खित्ते' एवं श्राविका वर्ग 'यस्या क्षेत्र' की स्तुति बोलते हैं।
१६. यहाँ वर्तमान में पुरुष वर्ग 'नमोस्तुवर्द्धमानाय' की ३ गाथा एवं श्राविका वर्ग 'संसार दावा' की तीन गाथा रूप स्तुति बोलता
है ।
१७. 'पन्नरसहं राइयाणं, पन्नरसण्हं दिवसाणं, एकपक्खाणं' बोलकर 'अब्भुट्ठिओमिसूत्र' बोलना 'संबुद्धा खामणा' है ।
१८. 'इच्छामि ठामि सूत्र'
१९. यहाँ ज्येष्ठादि क्रम से, परम्परानुसार पाँच आदि साधुओं को 'अब्भुडिओमिसूत्र' पूर्वक तथा शेष साधु को हाथ जोड़कर
क्षमायाचना करना प्रत्येक क्षमायाचना' है।
२०. चतुर्दशी के दिन यथाशक्ति तप किया हुआ ।
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