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समस्त असत् वृत्तियों की जनक है। आचार्य महाप्रज्ञ सामाजिक जीवन पर होने वाले कषायों के परिणामों की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि "हमारे मतानुसार (सामाजिक) सम्बन्ध- -शुद्धि की कसौटी है- ऋजुता, मृदुता, शान्ति और त्याग से समन्वित मनोवृत्ति । हर व्यक्ति में चार प्रकार की वृत्तियाँ ( कषाय) होती हैं:- १. संग्रह, २ . आवेश, ३. गर्व ( बड़ा मानना) और ४. माया (छिपाना ) । चार वृत्तियाँ और होती हैं। वे उक्त चार प्रवृत्तियों की प्रतिपक्षी हैं:- १. त्याग या विसर्जन, २. शान्ति, ३. समानता या मृदुता, ४. ऋजुता या स्पष्टता । दोनों प्रकार की प्रवृत्तियाँ वैयक्तिक हैं, इसलिए इन्हें अनैतिक और नैतिक नहीं कहा जा सकता इन्हें आध्यात्मिक (वैयक्तिक) दोष और गुण कहा जा सकता है। इन वृत्तियों के जो परिणाम समाज में संक्रान्त होते हैं, उन्हें अनैतिक और नैतिक कहा जा सकता है। "
कषाय की वृत्तियों के परिणाम
१. संग्रह (लोभ) की मनोवृत्ति के परिणाम - शोषण, अप्रामाणिकता, निरपेक्ष व्यवहार, क्रूर व्यवहार, विश्वासघात ।
आवेश (क्रोध) की मनोवृत्ति के परिणाम गाली-गलौज, युद्ध, आक्रमण, प्रहार,
हत्या |
गर्व (अपने को बड़ा मानने) की मनोवृत्ति के परिणाम-घृणा, अमैत्रीपूर्ण व्यवहार, क्रूर व्यवहार |
४. माया (छिपाने) की मनोवृत्ति के परिणाम अविश्वास, अमैत्रीपूर्ण व्यवहार । कषाय जय के परिणाम
१. त्याग (विसर्जन) की मनोवृत्ति के परिणाम - प्रामाणिकता, सापेक्ष व्यवहार, अशोषण |
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शान्ति की मनोवृत्ति के परिणाम - वाक्-संयम, अनाक्रमण, समझौता, समन्वय । समानता की मनोवृत्ति के परिणाम - सापेक्ष व्यवहार, प्रेम, मृदु व्यवहार । ऋजुता की मनोवृत्ति के परिणाम - मैत्रीपूर्ण व्यवहार, विश्वास । १८
अतः आवश्यक है कि सामाजिक जीवन की शुद्धि के लिए प्रथम प्रकार की वृत्तियों का त्याग कर जीवन में दूसरे प्रकार की प्रतिपक्षी वृत्तियों को स्थान दिया जाये। इस प्रकार वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही जीवन की दृष्टियों से कषाय-जय आवश्यक है । उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है, क्रोध से आत्मा अधोगति को जाता है और मान से, माया से अच्छी गति (नैतिक विकास) का प्रतिरोध हो जाता है, लोभ से इस जन्म और अगले जन्म दोनों में ही भय प्राप्त होता है । १९ जो व्यक्ति यश, पूजा या प्रतिष्ठा की
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