Book Title: Karm aur Purusharth ki Jain Kathaye
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 14
________________ ३४६ ] [ कर्म सिद्धान्त और उसने उसको मृत्यु से बचाकर अपने घर में गुप्त रूप से रख लिया । दोनों भाई चित्त और संभूति नमूची से संगीत विद्या सीखने लगे और पारंगत हो गये। जिसकी बुरी आदत पड़ जाती है वह कहीं नहीं चूकता । नमूची ने चाण्डाल के घर में भी व्यभिचार का सेवन किया और उसको प्राण लेकर चुपचाप भागना पड़ा । चित्त और संभूति की संगीत विद्या की ख्याति देश देशान्तर में फैलने लगी । काशी के संगीत शास्त्रियों को चाण्डाल कुलोत्पन्न भाइयों की ख्याति सहन नहीं हो सकी और उन्होंने येन-केन प्रकारेण दोनों भाइयों को देश निकाला दिलवा दिया। इस घोर अपमान को दोनों भाई सहन नहीं कर सके और अपमानित जीवन के बजाय मृत्यु को वरण करना उन्होंने श्रेयस्कर समझा और पर्वत शिखर से छलांग मारकर मृत्यु का आलिंगन करने का संकल्प उन्होंने कर लिया । अपने विचारों को वे कार्य रूप में परिणत कर ही रहे थे कि अकस्मात एक निर्ग्रन्थ मुनि उधर आ निकले। मुनि ने ऐसा दुष्कृत्य करने से उनको रोका और आत्म-हत्या एक भयंकर पाप है, यह समझाते हुये मानवजीवन को सार्थक बनाने का उपदेश दिया । मुनि के उपदेश ने उनमें से हीन भावना को निकाल दिया और उन दोनों ने मुनिराज का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया । मुनि के पास ज्ञान-ध्यान में निपुण होने के बाद गुरु आज्ञा से वे स्वतंत्र विचरण करने लगे । विचरण करते हुये साधना के बल से उनको अनेक ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं । उधर नमूची प्रधान चाण्डाल घर से भागकर लुकते - छिपते हस्तिनापुर नगर पहुँच गया और अपने बुद्धि-कौशल से चक्रवर्ती सनतकुमार का प्रधान मंत्री बन गया। मुनि चित्त संभूति भी विचरण करते हुये हस्तिनापुर नगर के बाहर उद्यान में बिराजे । मुनि वेष में चित्त और संभूति को देखकर नमूची प्रधान ने भयभीत होकर समझा कि कहीं मेरा सारा भेद खुल न जावे, इस लिये षडयंत्र करके उसने उनका ( मुनियों का ) अपमान करत हुये शहर निकाला देने की आज्ञा दिलवादी | I चित्त मुनि ने तो इस अपमान को शान्तिपूर्वक सहन कर लिया किन्तु संभूति मुनि को यह अपमान और तिरस्कार सहन नहीं हो सका और वे इसका प्रतिशोध लेने के लिये तपश्चर्या के प्रभाव से प्राप्त सिद्धि का प्रयोग करने के लिये तत्पर हो गये । चित्त मुनि ने संभूति मुनि को त्यागी जीवन की मर्यादा को समझाते हुये शान्ति धारण करने के लिये कहा किन्तु संभूति मुनि का क्रोध शान्त नहीं हुआ और कुपित होकर वे अपने मुंह से धुआँ के गोले निकालने लगे । नगरवासी यह देखकर घबरा गये और अपने महाराज चक्रवर्ती सनतकुमार से इस भयंकर संकट को निवारण करने की प्रार्थना करने लगे । चक्रवर्ती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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