Book Title: Karm Siddhant aur Samaj Samrachna
Author(s): Ranjitsingh Kumat
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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________________ ४४ कर्म सिद्धांत और समाज-संरचना 0 श्री रणजीतसिंह कूमट । वर्तमान समाज-संरचना के लिये जिम्मेदार कौन ? किसने यह व्यवस्था की, परिवर्तन कैसे आता है व कौन लाता है ? . इस प्रश्नावली का उत्तर देने का प्रयत्न दार्शनिक, समाजशास्त्री, इतिहासज्ञ और धार्मिकों ने किया परन्तु जितना इनका अध्ययन करते हैं, उलझते जाते हैं । उत्तर आसान नहीं है । प्रत्येक ने अपने-अपने दृष्टिकोण से तो देखा ही परन्तु कई स्थानों पर ऐसा आभास भी होता है कि इन दार्शनिक सिद्धांतों और वादों के पीछे निहित स्वार्थ भी कार्य करते रहे हैं। ऐसे सिद्धांत भी प्रतिपादित होते रहे हैं जिनसे व्यवस्था स्थायी बनी रहे और उसमें उथलपुथल कम-से-कम हो। कभी यह भी हुआ कि पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्धांत को कालान्तर में ऐसा मरोड़ दे दिया कि उसका अर्थ उल्टा हो गया और वह निहित हितों की रक्षा में काम आया। _अब इसी प्रश्न को ले लें व्यक्ति गरीब क्यों है ? गरीब घर में जन्म क्यों लिया? कोई उच्च कुल कहलाता, कोई अछूत या नीच कुल । किसी को खाने से अजीर्ण हो रहा है, तो किसी को दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं। ___ भारत में प्रचलित कर्म सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति गरीब है क्योंकि यह उसके पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। उसके कर्मों की वजह से ही वह नीच कुल में पैदा होता है और दुःख पाता है। इन्हीं कर्मों से समाज में वर्ण-व्यवस्था, जाति-प्रथा, गरीबी-अमीरी, छुआछूत आदि की व्यवस्था निर्धारित है। ___व्यक्ति के जीवन में सुख-दुःख, यश-अपयश, धन-प्रतिष्ठा, पांडित्य-मूर्खता, जन्म-मरण आदि कर्म-आधारित हैं । व्यक्ति पर लागू होने वाले इस सिद्धान्त को पूरे समाज पर लागू कर समाज की पूरी संरचना व व्यवस्था की भी व्याख्या की जाती है और इसको वैज्ञानिक भी बताया जाता है। इसके विपरीत पश्चिम के प्रसिद्ध दार्शनिक मार्क्स का कहना है कि यह गरीबी, अमीरी समाज की संरचना का फल है । यदि समाज में व्यक्तिगत पूंजी को एकत्र करने की छूट है तो अधिक चालाक व्यक्ति उपलब्ध जमीन, धन व उत्पादन के साधनों पर आधिपत्य कर लेंगे और फिर अन्य निर्धन व्यक्तियों का शोषण कर अपनी सत्ता व साधनों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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