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(८) मर कर हाथी हुआ। और सेठानी मर कर पुनः स्त्री हुई, उसने पतिवियोग का दुःख भोगा, किन्तु अपनी एक पुत्री के प्रयत्न से अन्त में धर्मध्यान से मरकर वह कौशाम्बी के वसुपाल राजा की पुत्री हुई, अशुभ जन्म के कारण जमना में यहाई गई,पूर्वकर्मानुबंध से धाडीवाहनद्वारा व्याही गई, उस हाथी द्वारा हरण की गई और अन्ततः करकण्डु की जननी हुई।
तीसरे प्रश्न का उत्तर मुनिराज ने इस प्रकार दिया कि पूर्व जन्म में करकण्डु के पास एक सुआ था जिसे वे एक पिंजड़े में बड़े प्यार से रखते थे। एक दिन उस सुए पर एक सर्प ने धावा किया जिससे करकण्डु ने उसकी रक्षा की और उसे नवकार मंत्र दिया। उस सर्प को भी मरते समय नवकार मंत्र का सुयोग मिल गया जिसके प्रभाव से वह एक विद्याधर हुआ और पूर्व वैरानुबन्ध के कारण उसने मदनावली का हरण किया।
यह वृत्तान्त सुनकर करकण्डु का वैराग्य और भी बढ़ गया और वे अपने पुत्र वसुपाल को राज्य देकर मुनि होगये । उनकी माता पद्मावती भी अर्जिका हो गई और उनकी रानियों ने भी उन्ही का अनुकरण किया। करकण्डु ने घोर तपस्या करके केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया।
अवान्तर कथाएँ
करकंडवरित की मूल कथा ऊपर कही जा चुकी है। इस कथा के अन्तर्गत नौ और छोटी बड़ी कथाएँ हैं जो करकंड को नीति सिखाने तथा मूल कथा की किसी बात को समझाने के लिये कही गई है। प्रथम चार कथाएँ दूसरी सन्धि में आई हैं और वे उस मातङ्ग-विद्याधर द्वारा करकण्डु की शिक्षा के लिये कही गई है। प्रथम कथा ( २, १०-१२) में मंत्र-शक्ति का प्रभाव बताया गया है। एक राजा की पुत्री को एक राक्षस हर ले गया था। बहुत समय तक उसे बचाने का कोई उपाय नहीं निकला। निदान कन्नौज के एक ब्राह्मण और एक वैश्य, दो पथिकों ने मंत्र शक्ति से उस राक्षस को वश में किया, राजपुत्री की रक्षा की और राजा से भारी सन्मान पाया। दूसरी कथा ( २, १३ ) में अज्ञान से विपनि का उदाहरण है। दो मित्र धन कमाने घर से बाहर गये थे। मार्ग में एक राक्षस ने उन्हे धर पकड़ा। उनकी बहुत दुर्गति हुई होती किन्तु उसी मार्ग से एक ज्ञानी पुरुष आ निकला जिसने दया कर के उन्हे उस राक्षस के हाथ से बचाया। तीसरी कथा (२, १४-१५) में नीच संगति का कुपरिणाम समझाया गया है। एक होशयार सेठ था। राजा ने उससे कहा कि यदि तुम एक गाथा ऐसी पढ दो जिसमें ओंठ न मिले तो मैं तुम्हें एक जागीर दे डालूं। सेठ ने एक ऐसी गाथा पढ दी। राजा को बडे संताप केसाथ अपना बचन पूरा करना पड़ा। उस सेठ की एक चेटी से प्रीति होगई। चेटी ने एक वार राजा के मोर का मांस खाने की लालसा प्रकट की। सेठ ने राजा का मोर पकड़कर तो छिपा दिया और किसी दूसरे प्राणी का मांस लाकर उस चेटी को खिला दिया ! फिर राजा के प्यारे मोर की तलाश हुई । उस पर इनाम बोला गया । तब उस चेटी ने सेठ का सब हाल राजा को कह सुनाया। राजा ने
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