Book Title: Kamma Battisi Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ कम्मबत्तीसी ___ सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय बत्रीस गाथाबद्ध प्राकृतभाषामय आ प्रकरणमां ज्ञानावरणीय आदि कर्मोनी आठ मूळ प्रकृतिओ तथा १५८ उत्तरप्रकृतिओ, अने ते ते प्रकृतिनी उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिनुं स्वरूप दर्शाव्यु छ । आचार्यश्रीदेवेन्द्रसूरिविरचित नव्य पंचम कर्मग्रंथमां आपेल प्रकृति-स्थितिबंधना स्वरूप साथे आ प्रकरणमां आपेल स्वरूप प्रायः समान छ । परन्तु कोई स्थाने तफावत छ । जेमप्रकृति पंचमकर्मग्रन्थ प्रमाणे कम्पबत्तीसी प्रमाणे स्थितिबंध स्थितिबंध १. सातावेदनीय १५ कोडाकोडी सागरोपम ३० कोडाकोडी सागरोपम २. नीलवर्ण नाम १७ कोडाकोडी सागरोपम १७ कोडाकोडी सागरोपम ३. कटुकरस नाम १७३ कोडाकोडी सागरोपम १७ कोडाकोडी सागरोपम ४. उच्चगोत्र १० कोडाकोडी सागरोपम २० कोडाकोडी सागरोपम आ प्रकरणना रचयिता उपाध्याय श्रीपूर्णलब्धिना शिष्य श्रीभानुलब्धिमुनि छ । आ प्रकरणनो रचना संवत् जणायो नथी । कम्मबत्तीसी (अष्टकर्मणां प्रकृति-स्थितिस्वरूपम् ) सिद्धाण नमुक्कारं अट्ठकम्माण पयडि-ठिय(ई) वुच्छं । जीवाण बोहणत्थं सब्बे(व्व)दुक्खाण उद्धरणं ॥१॥ नाणावरणी तीसं कोडाकोडी य अयरमाणाणं ! मइ-सुय ओहीण तहा मण-केवल तीस ए संखा ॥२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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