Book Title: Kaljaya Bhanvarlal Nahta
Author(s): 
Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Granth_012030.pdf

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Page 6
________________ 32. विचार-रत्न-सार- प्रस्तुत ग्रन्थ उपाध्याय देवचन्द्र की 38. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति लेखनी की देन है। गणिदेवधि आचार्य हरिभद्र अपने युग के मूर्धन्य ग्रन्थ- श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित, मणिधारी श्री जैन साहित्यकार हुए। उनके परवर्तीकाल में हुए जैन साहित्यकारों जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी समारोह समिति 53, रामनगर, नई की त्रिमूर्ति जैन/जैनेतर साहित्य एवम् समाज में भी सुप्रतिष्ठित हैं- दिल्ली-५५ द्वारा प्रकाशित (सन् 1971 वीर सं० 2497) ग्रन्थ आनन्दघन, यशोविजय के साथ उपाध्याय देवचन्द्र। उनका साहित्य की सारगर्भित प्रस्तावना "नाहटा बन्धु'" ने ही लिखी है। दो खण्डों आध्यात्मिक, आस्थाप्लावित, व्यवस्थामूलक और नैतिक पृष्ठभूमि में विभक्त ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में 43 लेख हैं, द्वितीय खण्ड में से प्रतिष्ठित है। गद्य एवम् पद्य- दोनों ही रूपों में निबद्ध कृतियाँ खरतर साहित्य सूची इन्हीं की संकलित व महोपाध्याय विनयसागर गृह्यतम सत्यों को उद्घाटित करने का उद्देश्य लिए लक्षित होती हैं। द्वारा सम्पादित है। इसको राष्ट्र भाषा हिन्दी में सर्वसाधारण के लिए लाभदायक 39. महातीर्थ अहिच्छत्रा- भगवान पार्श्वनाथ पर कमठ के बनाने के उद्देश्य से श्री भंवरलाल नाहटा ने अनुदित किया है। जीव मेघमाली द्वारा किये गये उपसर्ग तथा धरणेन्द्र पद्मावती द्वारा 33. श्री सहजानन्दघन पत्रावलि- योगीन्द्र युगप्रधान गुरुदेव सहस्रफण धारण कर भगवान की भक्ति कर उपसर्ग से बचाया वही श्री सहजानन्दधनजी म.सा० द्वारा पूज्य साधु साध्वीजी तथा भक्तों स्थान अहि अर्थात् सर्प तथा च्छत्र अर्थात् फण फैलाकर छत्र करना को दिये गये हजारों पत्रों में से कुल पृष्ठ 500 में 706 महत्वपूर्ण अर्थात् अहिच्छत्रा। उस स्थान का इतिहास श्री भंवरलालजी नाहटा पत्र संकलित कर श्री भंवरलालजी नाहटा ने सम्पादित की है। श्रीमद् ने लिखा तथा प्रकाशन पांचाल शोध संस्थान 52/16, शक्कर राजचन्द्र आश्रम, रत्नकुट, हम्पी (कर्नाटक) द्वारा प्रकाशित है। . पट्टी, कानपुर से हुआ। इसका प्रकाशन सन् 1985 में हुआ था। 40. खरतरगच्छ के प्रतिबोधित गोत्र और जातियाँ३४. क्षणिकाएँ-१५० गद्य क्षणिकाओं की आकृति में छोटी खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिबोध देकर समय-समय पर अनेक पुस्तक 1984 ई० की हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कृति से पुरस्कृत, भारतवर्ष जातियों को सम्यक् मार्ग पर आरुढ़ किया इसी का सम्पादन श्री की सबसे बड़ी संख्या में उपलब्ध गद्य गीत जिनमें मात्र कल्पना की अगरचन्दजी नाहटा व श्री भंवरलालजी नाहटा ने किया। इसका उड़ान नहीं, शाश्वत सत्य और तथ्य का समायोजन है। श्री भंवरलाल प्रकाशन श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ, 4 मीर बोहार घाट स्ट्रीट, नाहटा की एकमात्र क्षणिका कृति अनुज पुत्र अशोक नाहटा के अल्पायु कोलकाता-७ से हुआ, सं० 2030 की कृति है। में स्वर्गस्थ होने पर उसे समर्पित श्री छगनलाल शास्त्री द्वारा समीक्षित, नाहटा ग्रुप ऑफ ट्रेडर्स लिमिटेड द्वारा प्रकाशित है। 35. बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि : स्तवन पद संग्रह- खरतरगच्छीय वाचक श्री अमरसिन्धुरजी द्वारा रचित 12 पाठों में संकलित भजनों की मंजुषा श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित सं० 2014 में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 162 पृष्ठों में समाहित है। प्रस्तावना में जैन/जैनेतर दर्शनों में मोक्षमार्ग के साधनों पर प्रकाश डाला गया है। 36. श्रीमद् देवचन्द्र स्तवनावली- अध्यात्मतत्त्ववेता श्रीमद् देवचन्द्रजी रचित स्तवनों का संकलन श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित श्रीमद् देवचन्द्र ग्रन्थमाला, 4 जगमोहन मल्लिक लेन, कोलकाता द्वारा सं० 2012 में प्रकाशित है। 37. श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर कलकत्ता सार्द्ध शताब्दी महोत्सव स्मृति ग्रन्थ (सं० 1871 से 2021 वि०) इस ग्रन्थ में बड़े जैन श्वेताम्बर मन्दिर व दादाबाड़ी के साथ कलकत्ते के अन्य मन्दिरों का भी सचित्र इतिहास है और 12 ऐतिहासिक लेख भी हैं। इसका सम्पादन श्री भंवरलाल नाहटा ने किया। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/१३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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