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प्रेरक व्यक्तित्व
आपके व श्री अगरचंदजी नाहटा के जीवनभर के श्रम से ६०००० हस्तलिखित ग्रन्थों, लाखों मुद्रित पुस्तकों व अद्वितीय प्राचीन कलाकृतियों आदि से सुसज्जित व सुशोभित है।
८५ वर्ष तक की उम्र तक आपने निरन्तर भ्रमण किया। भ्रमण का मुख्य उद्देश्य शोध ही रहा, चाहे वो पुरातत्व शिलालेखों का हो, साहित्य का हो, मूर्तियों का हो, खुदाई में प्राप्त पुरावशेषों का हो, तीर्थों का हो या इतिहास का हो।
श्री नाहटा द्वारा लिखित, संपादित एवं अनूदित कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं का परिचय निम्नलिखित है। जो समय की शिला पर लिखे गये अमिट लेख हैं एवं उनके कालजयी व्यक्तित्व का प्रामाणिक दस्तावेज भी।
१. द्रव्यपरीक्षा और धातूत्पति-इसके मूल लेखक ठक्कुर फेरु धांधिया हैं (रत्नपरीक्षादि ग्रन्थ संग्रह का दूसरा व तीसरा भाग)
श्री भंवरलाल नाहटा ने लगभग ५५वर्ष पूर्व अपनी शोधपिपाषा की तृप्ति हेतु कलकत्ता के एक ज्ञानभण्डार को खंगालते हुए छ:
सौ वर्ष पुरानी पाण्डुलिपि खोज निकाली और उसकी प्रेसकापियाँ कालजयी श्री भंवरलाल नाहटा
कर पुरातत्वाचार्य मुनि जिनविजयजी के पास प्रकाशनार्थ भेजी। वे
मूल ग्रंथ सन् १९६१ में रत्नपरीक्षादि सप्रग्रन्थ संग्रह नाम से जैन संघ के वयोवृद्ध अग्रणी, लब्धि प्रतिष्ठित इतिहासकार, जैन ।
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, द्वारा प्रकाशित हुए। धर्म दर्शन एवं साहित्य के मर्मज्ञ, साहित्य तपस्वी, साधक, निष्काम
२. मातृकापद शृंगार रसकलित गाथा कोश-यशोभद्र के कर्मयोगी, पुरातत्ववेत्ता, बहुभाषाविद, आशुकवि, साहित्यवाचस्पति
शिष्य वीरभद्र कृत यह कृति विशुद्ध रूप से एक शृंगारपरक रचना श्रावक श्रेष्ठ श्री भंवरलालजी नाहटा का दिव्य शान्तिपूर्ण देहावसान।
है। इस गाथाकोश की विशेषता यह है कि इसमें मातृका पदों अर्थात् सोमवार, माघ कृष्णा चतुर्दशी सं० २०५८ दिनांक ११ फरवरी
स्वर और व्यंजनों में से क्रमश: एक-एक को गाथा का आद्यअक्षर २००२ को कोलकाता में हो गया।
बनाकर श्रृंगारपरक गाथाओं की रचना की गयी है। इसमें कुल ४० __आपने अपने जीवनकाल में हजारों शोधपूर्ण लेखों, सैकड़ों
गाथाएँ हैं। गाथाएँ शृंगारिक हैं, फिर भी वे मर्यादाओं का अतिक्रमण ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन व प्रकाशन किया। आपने अनेक
नहीं करती। जहाँ मर्यादा से बाहर कोई संकेत करना होता है कवि शोधार्थियों को मार्गदर्शन देकर विभिन्न विषयों पर शोध करवाकर ।
उसे अपने मौन से ही इंगित कर देता है जैसे इस गाथाकोश के अन्त पी-एच.डी आदि उपाधियों से गौरवान्वित करवाया।
में कवि कहता हैब्राह्मी, खरोष्टी, देवनागरी आदि प्राचीन लिपियाँ, संस्कृत,
पच्छा जं तं उ वित्तं अकहकहा कहिज्जन्ति अर्थात् उसके प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्टी, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली आदि
पश्चात् जो कुछ घटित हुआ वह अकथनीय है कैसे कहा जाय? भाषाओं में लेखन व उपरोक्त भाषाओं के साथ मराठी आदि भाषा
इस प्रकार मूक भाव से भी कथ्य को अभिव्यक्ति दे देना. यह कवि का आपने अनुवाद किया। पूर्ण सतर्कता हेतु लेखन, सम्पादन आदि
की सम्प्रेषणशीलता का स्पष्ट प्रमाण है। के कार्यों की प्रूफरीडिंग भी स्वयं ही करते थे। आप द्वारा लिखित
३. सिरी सहजाणंदघन चरियं-कलकत्ता विश्व विद्यालय के शोधपूर्ण लेख व ग्रन्थ अनेक न्यायालयों में साक्षी के रूप में स्वीकार भाषा विभाग के प्रोफेसर एस.एन. बनर्जी ने इस ग्रन्थ की भूमिका किये गये। भारत के अलावा विश्व के कई विश्वविद्यालयों के में पाठ्यक्रम में आपके शोधपूर्ण लेखों को सम्मिलित किया व संदर्भ
श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा रचित श्री सहजाणंदघनं चरियं के रूप में उल्लेखित किया। आपके चाचा श्री अभयराजजी नाहटा ।
वर्तमानकाल में रचित एक अपभ्रंश काव्य है। मूलत: यह काव्य की स्मृति में संस्थापित बीकानेर का विश्वप्रसिद्ध अभय जैन ग्रन्थालय ।
अपभ्रंश की अंतिम स्तर की भाषा अवहट्ट (अपभ्रंश) में रचित है।
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विद्यापति की कीर्तिलता व पिंगलाचार्य की प्राकृत पिंगल इसी भाषा ७. आनन्दघन चौबीसी-परम अवधूत योगिराज में रचित है। श्री नाहटाजी इस काल के विद्यापति या पिंगलाचार्य थे। आनन्दघनजी रचित चौबीस तीर्थंकरों के स्तवन एवं पदों का न यह महाकाव्य २४४ श्लोकों में हिन्दी अनुवाद सहित रचित है। केवल जैन अपितु भारतीय समाज में आज तक एक विशिष्ट स्थान
पूर्वकालीन कवियों की रचनाओं की तुलना में श्री नाहटाजी का रहा है। ये स्तवन मुमुक्षु एवं साधकों के हृदय को झंकृत करनेवाले सहजाणंदघन चरियं काव्य का मान किसी अंश में कम नहीं है। और आत्मानुभूति को और बढ़ाने वाले होने से मानस को भक्ति रस कवित्व की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अतुलनीय है।
से आप्लावित कर देते हैं। काव्य ग्रन्थ के शब्द अत्यन्त सहज व सरल हैं। जिससे भाषा आनन्दघनजी के स्तवनों और पदों की भाषा को देखते हुए यह का सामान्य ज्ञान रखने वाले भी इसका रसास्वादन कर सकेंगे। उपमादि स्पष्टत: सिद्ध है कि ये राजस्थान प्रदेश के ही थे। अलंकारों का भी कोई अभाव नहीं है। छन्द सरल व त्रुटिहीन है। ८. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ श्री
४. अलंकार दप्पन-यह प्राकृत भाषा में रचित एक अभय जैन ग्रन्थालय के सप्तम पुष्प के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। अलंकार ग्रन्थ है। जिसका हिन्दी अनुवाद संस्कृतच्छाया सहित श्री । इसका प्रकाशन वर्ष सं० १९९२ है। यह ग्रन्थ श्री भंवरलालजी नाहटाजी ने किया है।
नाहटा ने अपने काका श्री अगरचन्दजी नाहटा के साथ लिखा है। इस ग्रन्थ में अलंकार सम्बन्धी जो विवरण दिया गया है इससे । लेखकद्वय ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में बहुमूल्य शोधसामग्री इसका निर्माणकाल ८वी, ११वीं शताब्दी का माना जा सकता है। प्रस्तुत की है। उन्होंने प्रश्न उठाये हैं और उनका विद्वतापूर्ण रचना से कर्ता का पता नहीं चलता। प्राकृत भाषा की अलंकार । समाधान-उत्तर भी दिया है। इसकी प्रस्तावना श्री मोहनलाल दलीचंद संबंधी यह एक ही रचना जैसलमेर के बड़े ज्ञान भण्डार में ताड़पत्रीय देसाई ने लिखी है, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ संस्कृत, प्रति में प्राप्त हुई है।
प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी, प्राचीन भाषाओं और ५. विविध तीर्थ कल्प-प्राकृत व संस्कृत भाषा में जिन- सैकड़ों हस्तलिखित प्राचीन पाण्डुलिपियों, प्रशस्तियों, पट्टावलियों, प्रभसूरि विरचित कल्प प्रदीप के इस ग्रन्थ का अनुवाद श्री नाहटाजी । विकीर्ण पत्रों, रिपोर्टों आदि के गहन अध्ययन, चिन्तन और मनन के ने सन् १९७८ में कर श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ आधार पर लिखा गया है। अत: इसकी प्रामाणिकता निस्सन्देह है। मेवानगर राजस्थान से प्रकाशित करवाया।
९. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह- श्री भंवरलालजी नाहटा कल्पप्रदीप अथवा विशेषतया प्रसिद्ध विविध तीर्थ कल्प नामक एवं श्री अगरचन्दजी नाहटा के सहसम्पादन में सं० १९९४ में श्री यह ग्रन्थ जैन साहित्य की एक विशिष्ट वस्तु है। ऐतिहासिक और अभय जैन ग्रन्थालय के अष्टमपुष्प के रूप में इस ग्रन्थ रत्न का भौगोलिक दोनों प्रकार का कोई दूसरा ग्रन्थ अभी तक ज्ञात नहीं प्रगटन हुआ है। पुस्तक का समर्पण श्री दानमलजी नाहटा की हुआ। यह ग्रन्थ विक्रम १४वीं शताब्दी में जैन धर्म के जितने स्वर्गस्थ आत्मा को उनके अनुज और उक्त ग्रन्थ के प्रकाशक श्री पुरातन और विद्यमान प्रसिद्ध-२ तीर्थस्थान थे उनके सम्बन्ध की शंकरदानजी नाहटा ने किया है। प्राय: एक प्रकार की गाईड बुक है।
यह ग्रन्थ तीन दृष्टियों से अत्यन्त उपयोगी है। पहला दृष्टिकोण ६. बानगी-नाहटाजी की बानगी-राजस्थानी भाषा में रचित ऐतिहासिकता का है, द्वितीय भाषिकता का और तृतीय साहित्यिकता संस्मरणों, रेखाचित्रों एवं लघुकथाओं का सरलतम संकलन है का। इसके कतिपय साधारण कार्यों के अतिरिक्त प्राय: सभी काव्य जिसमें इन्होंने अपनी मातृभाषा की विविध विधाओं में कलात्मकता ऐतिहासिक दृष्टि से संग्रह किये गये हैं। अद्यावधि प्रकाशित संग्रहों को उकेरा है। राजस्थान साहित्य के श्रेष्ठ साहित्य प्रकाशन भण्डार से भाषा साहित्य की दृष्टि से यह संग्रह सर्वाधिक उपयोगी है। श्री में यह एक महत्वपूर्ण अभिवृद्धि है।
हीरालाल जैन ने इसकी विद्वतापूर्ण प्रस्तावना लिखी है। ग्रन्थ में उन यह संकलन वस्तुतः लोक जीवन एवं लोक साहित्य से पाण्डुलिपियों का परिचय दिया गया है जिनका उपयोग इस ग्रंथ में सशक्त अनेक जीवन्त, सरस और सहज चित्रों की बानगी प्रस्तुत किया गया है। प्रकाशक, पाण्डुलिपि, ताड़पत्र, हस्तलिपि आदि से करती है और इस प्रकार मरुधरा की धरती के स्वर को अधिक सम्बद्ध एकादश चित्रों से यह ग्रन्थ सुसज्जित है। प्राणवान बनाती है।
१०. समय सुन्दर कृत कुसुमांजलि-श्री भंवरलालजी प्रस्तुत कृति शांतिलाल भारद्वाज राकेश द्वारा (राजस्थान साहित्य नाहटा एवं श्री अगरचन्दजी नाहटा के संग्रहत्व एवं सम्पादकत्व में अकादमी संगम) उदयपुर से १९६५ में प्रकाशित करवाई गई। श्री अभय जैन ग्रन्थालय के पंचदशम पुष्प के रूप में प्रस्फुटित यह
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कृति अपना विशेष महत्व रखती है। इसमें कविवर समयसुन्दरजी चित्रफलक पर उनका कठिन श्रम झलकता है और उनकी अगाध की ५६३ लघु रचनाओं का संग्रह है। डॉ० हजारीप्रसादजी द्विवेदी विद्वता ग्रंथ के आद्यान्त भाग में । इस उत्कृष्ट कोटि के ग्रन्थ प्रणयन ने इसकी भूमिका लिखकर इस ग्रन्थ के महत्व का प्रतिपादन किया के लिए नाहटा द्वय की जितनी भी प्रशंसा की जाय, वह थोड़ी है। है। इसमें सन् १६८७ के अकाल का बड़ा ही जीवन्त वर्णन है। उसमें करीब १०० चित्र भी दिये गये हैं। वह बड़ा हृदयद्रावक और प्रभावक है। वस्तुत: नाहटाजी ने इस ग्रन्थ १४. सीताराम चौपाई-इस ग्रन्थ का सम्पादन भंवरलालजी का सम्पादन-प्रकाशन करके हिन्दी साहित्य के अध्येताओं के सामने नाहटा एवं अगरचंदजी नाहटा ने किया है। इसका प्रकाशन सादूल बहुत अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है।
राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट से संवत् २०१९ में हुआ है। ११. युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि-श्री भंवरलालजी नाहटा महोपाध्याय कविवर समयसुन्दरजी १७वीं सदी के महान् एवं श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वय ने यह ग्रन्थ लिखा है। इसका विद्वान् संत थे। आपका साहित्य बहुत विशाल है। आपने गद्य और प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रन्थमाला के बारहवें पुष्प के रूप में हुआ पद्य दोनों ही विधाओं में साहित्य सर्जना की थी। आपकी पद्य है। इसे लेखकों ने अपने स्व० पिता एवं पितामह श्री शंकरदानजी रचनाओं में सीताराम चौपाई सबसे बड़ी रचना है। इसका परिमाण नाहटा को समर्पित किया है। इसका प्रकाशन संवत् २००३ में ३७०० श्लोक परिमित है। जैन परम्परा की राम कथा को इस हुआ है।
महाकाव्य में गुंफित किया गया है। इस ग्रन्थ को लिखने के लिए लेखकद्वय को पर्याप्त श्रम करना १५. रत्न परीक्षा-यह ग्रन्थ ठक्कुरफेरु विरचित लगभग पड़ा, तदर्थ जैसलमेर की यात्रा कर प्राचीन ज्ञान भण्डारों से चरित्र आठ सौ वर्ष प्राचीन है। मूल प्राकृत भाषा में रचित है। इसका हिन्दी नायक से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। इस पुस्तक की अनुवाद श्री अगरचन्द भँवरलाल नाहटा ने किया है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सूरिजी से सम्बन्धित पूर्ण प्रमाणित रत्नपरीक्षा सम्बन्धी इने गिने ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का महत्वपूर्ण यह प्रथम शोधपूर्ण ग्रन्थ है।
स्थान है। पुस्तक की भूमिका में विद्वान् सम्पादकों ने रत्न परीक्षा १२. क्यामखां रासो-इस ग्रन्थ के मूल रचयिता मुस्लिम कवि सम्बन्धी हिन्दी साहित्य के ग्रन्थों का सविवरण उल्लेख किया है। जान हैं। इसका सम्पादन श्री भँवरलालजी नाहटा ने श्री अगरचन्दजी इसमें चोटी के विद्वानों के लेख भी संग्रहित हैं। परिशिष्ट में नाहटा तथा श्री दशरथ शर्मा के साथ किया है। इसका प्रकाशन नवरत्नपरीक्षा, मोहरांरी परीक्षा इत्यादि देकर पुस्तक को और भी राजस्थान पुरातत्व मंदिर जयपुर की राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला से उपयोगी बनाया गया है। प्रसिद्ध जौहरी श्री राजरूपजी टाँक ने रत्नों संवत् २०१० में हुआ। यह रासो अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आदि पर प्रकाश डालते हुए इस ग्रन्थ को विश्व साहित्य में अजोड़ इसकी साहित्यिक महत्ता उच्चकोटि की है। इसकी शैली में प्रवाह है। ग्रन्थ बतलाया है। कवि से यथाशक्ति मितभाषिता और सत्य का आश्रय लिया। इसकी १६. मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि-द्वितीय दादा साहब पर एकमात्र प्रति झुंझनू के जैन भण्डार से प्राप्त हुई।
शोधपूर्ण प्रस्तुत पुस्तक ६२ वर्ष पूर्व सम्वत् १९९६ में प्रकाशित १३. बीकानेर जैन लेख संग्रह-श्री नाहटाद्वय की कल । अगरचन्द भंवरलाल नाहटा की एक अनुपम कृति है। इसकी कीर्ति को चतुर्दिक् प्रसारित करने वाले ग्रंथरत्नों में से उक्त ग्रन्थ प्रस्तावना दशरथ शर्मा ने लिखी है। श्री अभय जैन ग्रन्थमाला द्वारा भी एक है। ग्रन्थ के प्राक्कथन लेखक श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ने प्रकाशित ७६ पृष्ठ की पुस्तक न्यू राजस्थान प्रेस ७३-ए, श्री नाहटाजी के प्रकाण्ड पाण्डित्य, श्रमनिष्ठा और शोधरुचि की चासाधोबापाड़ा स्ट्रीट, कलकत्ता द्वारा मुद्रित है।। भूरि-२ प्रशंसा की है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री अभय जैन १७. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चरितम्-चतुर्थ दादासाहब ग्रन्थालय के पंचदश पुष्प के रूप में सन् १९५६ में हुआ। इसमें पर प्रस्तुत पुस्तक उपाध्याय श्री लब्धिमुनि विरचित भंवरलाल नाहटा बीकानेर राज्य के २६१७ तथा जैसलमेर के १७१ अप्रकाशित द्वारा सम्पादित संवत् २०२७ में अभयचंद सेठ द्वारा प्रकाशित ६ लेखों का संग्रह है। प्रारम्भ में शोधपूर्ण-विद्वतापरिपूर्ण विस्तृत भूमिका सर्गों में विभक्त कुल १२१२ पद्य और कुछ गद्य भी हैं। १३८ पृष्ठ। दी गई है। परिशिष्ट में वृहद् ज्ञान भण्डार की वसीयत, श्री १८. दादा श्री जिनकुशलसूरि-तृतीय दादासाहब पर प्रस्तुत जिनकृपाचन्द्रसूरि उपाश्रय का व्यवस्थापक और पर्युषणों में पुस्तक अगरचन्द भँवरलाल नाहटा द्वारा लिखित नाहटा ब्रदर्स द्वारा कसाईवाड़ा बन्दी के मुचलके की नकल है। श्री नाहटाजी ने लेख प्रकाशित श्री अभय जैन ग्रन्थमाला का २०वाँ ग्रंथाक सेठ ब्रदर्स संग्रह के क्षेत्र में यह बहुत बड़ा काम किया है। ग्रन्थ के प्रत्येक द्वारा मुद्रित १३२ पृष्ठ की कृति है। प्रस्तावना श्री जिनविजयजी ने
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लिखी है जिसमें उक्त कृति का सारांश सहित अन्य प्रकाशित/ वैजनाथ (सरावगी) से प्रकाशित व मिश्रा एण्ड कम्पनी कलकत्ता से अप्रकाशित ज्ञान भण्डार की जानकारी दी है।
मुद्रित करायी। पृष्ठ-६ इसका प्रकाशन १९५७ में हुआ। १९. हम्मीरायण-प्रस्तुत पुस्तक जयतिगदे चौहान के पुत्र २५. नगरकोट-कांगड़ा महातीर्थ- हिमाचल प्रदेश के जैन रणथंभोर के राजा हम्मीरदे की कथा भाण्डाजी व्यास द्वारा रचित, तीर्थ जिसे उत्तरी भारत का शत्रुजय तीर्थ कहा जाता है पर श्री सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर द्वारा प्रकाशित भँवरलाल नाहटा की शोध पुस्तक के १३८ पृष्ठ पूज्य बंसीलालजी (राजस्थान भारती प्रकाशन) रेफिल आर्ट प्रेस, कलकत्ता द्वारा मुद्रित कोचर शतवार्षिकी अभिनन्दन समिति द्वारा प्रकाशित व राज प्रोसेस संवत् २०१७ में श्री भंवरलालजी नाहटा द्वारा सम्पादित है। प्रिन्टर्स द्वारा मुद्रित है। प्रकाशकीय श्री लालचन्द कोठारी, दो शब्द भंवरलाल नाहटा व २६. श्री स्वर्ण गिरि-जालोर-राजस्थान के प्राचीन जैन भूमिका डॉ० दशरथ शर्मा ने लिखी है।
तीर्थ श्री स्वर्ण गिरि जालोर, यह कृति १०८ पृष्ठों में लिखकर श्री . २०. समयसुन्दर रास पंचक-युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से भंवरलाल नाहटा ने, प्राकृत भारती अकादमी जयपुर और बी.जे. नाहटा दीक्षित, सकलचंदगणि के शिष्य महोपाध्याय समयसुन्दरजी (महान फाउण्डेशन, कलकत्ता से प्रकाशित व राज प्रोसेस प्रिन्टर्स/अन्टार्टिका कवि, संत, साहित्यकार) की जीवनी के साथ उनकी रचनाओं को ग्राफिक्स कलकत्ता से मुद्रित करायी ३० अगस्त १९९५ ई० को। श्री भंवरलाल नाहटा ने सम्पादित किया है। सादुल राजस्थानी रिसर्च २७. भगवान महावीर का जन्म स्थान "क्षत्रियकुण्ड''इन्स्टीच्यूट बीकानेर द्वारा प्रकाशित रेफिल आर्ट प्रेस कलकत्ता द्वारा तीर्थ की प्रमाणिकता पर शोधपरक पुस्तक श्री अगरचन्द के साथ श्री मुद्रित १५१ पृष्ठीय, २०१७ संवत् की २५वीं कृति। इसकी भँवरलाल नाहटा ने लिखी व महेन्द्र सिंघी द्वारा प्रकाशित १८ पृष्ठ/ महत्ता पर दो शब्द श्री कन्हैयालाल सहल प्रिंसिपल बिडला आर्ट्स सचित्र, वीर निर्वाण सम्वत् २५००। कॉलेज, पिलानी (३०-४-६१) ने लिखे हैं।
२८. श्री गौतम स्वामी का जन्म स्थान कुण्डलपुर २१. पद्मिनी चरित्र चौपाई-प्रस्तुत शोधपूर्ण ग्रन्थ सौन्दर्य, (नालन्दा)- जैन पुरातत्व/साहित्य व प्रमाण पुरस्सर तीर्थ भूमि बुद्धियुक्त धैर्य, अदम्य साहसी, पातिव्रत्य व सतीत्व की प्रतीक रानी नालन्दा सचित्र पुस्तक के १८ पृष्ठ का लेखन श्री भंवरलाल नाहटा पद्मावती पर रचित, संग्रहित व शोधसिद्ध रचना है। श्री भंवरलाल ने किया व प्रकाशन महेन्द्र सिंघी ने वीर निर्वाण संवत् २५०१ में। नाहटा द्वारा सम्पादित, सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर २९. वाराणसी : जैन तीर्थ- उत्तर प्रदेश की धर्मभूमि (राजस्थान भारती प्रकाशन) से प्रकाशित (२०१८ सं०, २१५ वाराणसी पर प्रस्तुत पुस्तक श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा लिखित व पृष्ठीय) कृति दशरथ शर्मा के विवेचन सहित कवि लब्धोदय की महेन्द्र सिंघी द्वारा प्रकाशित २५०२ वीर निर्वाण संवत् की १७ प्रथम रचना है।
पृष्ठीय कृति है। २२. सती मृगावती- कविवर समयसुन्दर कृत सार का सार ३०. काम्पिल्यपुर तीर्थ- १३वें तीर्थंकर विमल नाथ श्री भंवरलाल नाहटा की प्रथम कृति १७ वर्ष की आयु में (सन् भगवान की कल्याणक भूमि कम्पिला पांचाल देश की राजधानी पर १९२८) लिखी पुस्तक के अप्राप्य होने से पुनः श्री जिनदत्तसूरि सेवा जैन शोधार्थी की एक नजर की प्रतिबिम्ब रूपी यह पुस्तक उस संघ द्वारा प्रकाशित, सुराना प्रिंटींग वर्क्स द्वारा मुद्रित (वीर निर्वाण संवत् भारतवर्ष के प्राचीनतम नगर में धर्म/पुरातत्व, जैन विभूतियों की २५०४ आश्विन कृष्ण २) १७ पृष्ठों की पुस्तक है।
तपोभूमि व विचरण भूमि पर विस्तृत प्रकाश लेखक भँवरलाल २३. तरंगवती- आचार्य श्री पादालिप्तसूरि की प्राकृत कृति नाहटा ने डाला है। १४ पृष्ठ की कृति श्री जैन श्वेताम्बर महासभा का संक्षिप्त रूप 'तरंगवती' शतावधानी पं० धीरजलाल शाह की (हस्तिनापुर) उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकासित व सुराणा प्रिन्टिंग वर्क्स गुजराती में प्रकाशित (श्रेणी ५ भाग १-२) 'बाल ग्रन्थावली' का कलकत्ता द्वारा मुद्रित है। हिन्दी अनुवाद है। यह कृति श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ द्वारा प्रकाशित ३१. महातीर्थ श्रावस्ती- तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की व सुराणा श्री नवरतनमल एवम् माता झणकार देवी की पुण्य स्मृति चार कल्याणक भूमि और गौतम बुद्ध की तपस्या स्थली सावत्थी में उनके पुत्रों (श्री प्रेमचंद, भागचन्द, धनकुमार) द्वारा मुद्रित है। (बहराईच-बलरामपुर से १५ किलोमीटर दूर) जैन तीर्थ पर ४०
२४. कलकत्ते की जैन कार्तिक रथयात्रा महोत्सव- विश्व पृष्ठों में श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा लिखित व पंचाल शोध संस्थान की अतुलनीय जैन रथयात्रा का उद्देश्य, महत्ता, ऐतिहासिक-तथ्य द्वारा प्रकाशित है। सुराना प्रिन्टिंग वर्क्स द्वारा मुद्रित है। १९८७ सप्रमाण लिखकर श्री भंवरलाल नाहटा ने नाहटा ब्रदर्स व जोगीराम ई०, विक्रम संवत् २०४४ में।
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________________ 32. विचार-रत्न-सार- प्रस्तुत ग्रन्थ उपाध्याय देवचन्द्र की 38. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति लेखनी की देन है। गणिदेवधि आचार्य हरिभद्र अपने युग के मूर्धन्य ग्रन्थ- श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित, मणिधारी श्री जैन साहित्यकार हुए। उनके परवर्तीकाल में हुए जैन साहित्यकारों जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी समारोह समिति 53, रामनगर, नई की त्रिमूर्ति जैन/जैनेतर साहित्य एवम् समाज में भी सुप्रतिष्ठित हैं- दिल्ली-५५ द्वारा प्रकाशित (सन् 1971 वीर सं० 2497) ग्रन्थ आनन्दघन, यशोविजय के साथ उपाध्याय देवचन्द्र। उनका साहित्य की सारगर्भित प्रस्तावना "नाहटा बन्धु'" ने ही लिखी है। दो खण्डों आध्यात्मिक, आस्थाप्लावित, व्यवस्थामूलक और नैतिक पृष्ठभूमि में विभक्त ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में 43 लेख हैं, द्वितीय खण्ड में से प्रतिष्ठित है। गद्य एवम् पद्य- दोनों ही रूपों में निबद्ध कृतियाँ खरतर साहित्य सूची इन्हीं की संकलित व महोपाध्याय विनयसागर गृह्यतम सत्यों को उद्घाटित करने का उद्देश्य लिए लक्षित होती हैं। द्वारा सम्पादित है। इसको राष्ट्र भाषा हिन्दी में सर्वसाधारण के लिए लाभदायक 39. महातीर्थ अहिच्छत्रा- भगवान पार्श्वनाथ पर कमठ के बनाने के उद्देश्य से श्री भंवरलाल नाहटा ने अनुदित किया है। जीव मेघमाली द्वारा किये गये उपसर्ग तथा धरणेन्द्र पद्मावती द्वारा 33. श्री सहजानन्दघन पत्रावलि- योगीन्द्र युगप्रधान गुरुदेव सहस्रफण धारण कर भगवान की भक्ति कर उपसर्ग से बचाया वही श्री सहजानन्दधनजी म.सा० द्वारा पूज्य साधु साध्वीजी तथा भक्तों स्थान अहि अर्थात् सर्प तथा च्छत्र अर्थात् फण फैलाकर छत्र करना को दिये गये हजारों पत्रों में से कुल पृष्ठ 500 में 706 महत्वपूर्ण अर्थात् अहिच्छत्रा। उस स्थान का इतिहास श्री भंवरलालजी नाहटा पत्र संकलित कर श्री भंवरलालजी नाहटा ने सम्पादित की है। श्रीमद् ने लिखा तथा प्रकाशन पांचाल शोध संस्थान 52/16, शक्कर राजचन्द्र आश्रम, रत्नकुट, हम्पी (कर्नाटक) द्वारा प्रकाशित है। . पट्टी, कानपुर से हुआ। इसका प्रकाशन सन् 1985 में हुआ था। 40. खरतरगच्छ के प्रतिबोधित गोत्र और जातियाँ३४. क्षणिकाएँ-१५० गद्य क्षणिकाओं की आकृति में छोटी खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिबोध देकर समय-समय पर अनेक पुस्तक 1984 ई० की हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कृति से पुरस्कृत, भारतवर्ष जातियों को सम्यक् मार्ग पर आरुढ़ किया इसी का सम्पादन श्री की सबसे बड़ी संख्या में उपलब्ध गद्य गीत जिनमें मात्र कल्पना की अगरचन्दजी नाहटा व श्री भंवरलालजी नाहटा ने किया। इसका उड़ान नहीं, शाश्वत सत्य और तथ्य का समायोजन है। श्री भंवरलाल प्रकाशन श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ, 4 मीर बोहार घाट स्ट्रीट, नाहटा की एकमात्र क्षणिका कृति अनुज पुत्र अशोक नाहटा के अल्पायु कोलकाता-७ से हुआ, सं० 2030 की कृति है। में स्वर्गस्थ होने पर उसे समर्पित श्री छगनलाल शास्त्री द्वारा समीक्षित, नाहटा ग्रुप ऑफ ट्रेडर्स लिमिटेड द्वारा प्रकाशित है। 35. बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि : स्तवन पद संग्रह- खरतरगच्छीय वाचक श्री अमरसिन्धुरजी द्वारा रचित 12 पाठों में संकलित भजनों की मंजुषा श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित सं० 2014 में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 162 पृष्ठों में समाहित है। प्रस्तावना में जैन/जैनेतर दर्शनों में मोक्षमार्ग के साधनों पर प्रकाश डाला गया है। 36. श्रीमद् देवचन्द्र स्तवनावली- अध्यात्मतत्त्ववेता श्रीमद् देवचन्द्रजी रचित स्तवनों का संकलन श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित श्रीमद् देवचन्द्र ग्रन्थमाला, 4 जगमोहन मल्लिक लेन, कोलकाता द्वारा सं० 2012 में प्रकाशित है। 37. श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर कलकत्ता सार्द्ध शताब्दी महोत्सव स्मृति ग्रन्थ (सं० 1871 से 2021 वि०) इस ग्रन्थ में बड़े जैन श्वेताम्बर मन्दिर व दादाबाड़ी के साथ कलकत्ते के अन्य मन्दिरों का भी सचित्र इतिहास है और 12 ऐतिहासिक लेख भी हैं। इसका सम्पादन श्री भंवरलाल नाहटा ने किया। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/१३९