Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 461
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 449 नए पत्तों की ललाई के सामने सूर्य की ललाई चारों ओर फैल रही थी, उधर नंदिनी गाय भी आश्रम की ओर लौट पड़ी। कौशल्य इत्युत्तरकोशलानां पत्युः पतङ्गान्वय भूषणस्य। 18/27 उत्तर कोशल के स्वामी और सूर्य कुल के भूषण उन हिरण्यनाभ को कौशल्य नाम का पुत्र हुआ। 14. प्रभाकर :-[प्र + भा + अङ् + टाप् + करः] सूर्य। कृशानुरपधूमत्वात्प्रसन्नत्वात्प्रभाकरः। 10/74 अग्नि का धुआँ निकल गया और सूर्य भी निर्मल हो गए। 15. भानु :-[भा + नु] सूर्य। प्रतापस्तस्य भानोश्चयुगपद्व्यानशे दिशः। 4/15 खुले आकाश में चमकते हुए प्रचंड सूर्य का प्रकाश चारों ओर फैल गया था, वैसे ही रघु का प्रचंड प्रताप भी चारों ओर फैल गया। यावत्प्रतापनिधिराक्रमते न भानुरहाय तावदरुणेन तमो निरस्तम। 5/71 सूर्य के उदय होने के पहले ही उनका चतुर सारथी अरुण संसार से अंधेरे को भगा देता है, यह ठीक भी है, क्योंकि जब सेवक चतुर रहता है, तब स्वामी को स्वयं कार्य नहीं करना पड़ता। 16. भास्कर :-[भास् + क्विप् + करः] सूर्य। रेजतुर्गतिवशात्प्रवर्तिनौ भासकरस्य मधुमाधवाविव। 11/7 मानो सूर्य के पीछे-पीछे चैत्र और वैशाख मास चले जा रहे हों। ज्योतिरिन्धननिपाति भास्करात्सूर्यकान्त इव ताडकान्तकः। 11/21 जैसे सूर्य, लकड़ी जलाने का तेज सूर्यकांत मणि को दे देता है, वैसे ही ताड़का के मरने से महर्षि विश्वामित्र। भास्करश्च दिश मध्युवास यां तां श्रिताः प्रतिभयं ववासिरे। 11/61 जिधर सूर्य था, उधर की सियारिनियाँ भयानक रूप से रोने लगीं। दक्षिणां दिशमृक्षेषु वार्षिकेष्विव भास्करः। 12/25 जैसे वर्षा के दस नक्षत्रों में ठहरता हुआ सूर्य, दक्षिण को घूम जाता है। 17. भास्वन :-[भास् + मतुप, मस्य वः] सूर्य। ततः प्रतस्थे कौवेरी भास्वानिव रघुर्दिशम्। 4/66 जैसे सूर्य उत्तर की ओर घूम जाता है, वैसे ही रघु भी उत्तर की ओर घूम पड़े। For Private And Personal Use Only

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