Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 20
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास- सुबोध - मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१२६६. धर्म स्वाध्याय व बीजतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२.५, १५-१८X२७-३०). १. पे. नाम. धर्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्म, आदि धर्म करो रे प्राणीया अति ते पामै सिवलीला रे, गाथा - ११. २. पे नाम वीजतिथि स्तवन, पू. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सरसति माता नमी करी, अंति (-), (पू. वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ८१२६७. (*) अज्ञात कृति, नेमिजिन ककाबत्रीसी व गुरुगीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) - २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२५x११.५, १८x२७-३०). १. पे नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, पू. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, पे. वि. हुंडी: चोइस, अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक मा.गु., पद्य, आदि (-); अति सदा भगती दो कंठ मेरी, गाथा-३१. (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन ककाबत्रीसी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: कका. नेमिजिन कक्काबत्रीसी, मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मुझे छोड़ चल गया; अंति (वि. संपूर्ण लिखे जाने के बाद फिर से एक गाथा जैसा कुछ लिखा गया है जो प्रायः इस कृति का ही अंश संभव है, विशेष संशोधन अपेक्षित.) ३. पे. नाम. रामकवरजी गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामकवरजी साध्वी गीत, सा. नंदकवरजी, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि नगर वीकानेर दपतो जी अति: नंदकवर ० कलपतो ठाये, गाथा- ११. ८१२६८. वीशस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२४४१२, १०२४). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि पय पणमी जिनवर देवना; अंतिः सिद्ध० सुख पामे तेह, गाथा - ६. ८१२६९ (+) वासुपूज्यजिन स्तवन व शृंगारिक दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख कृष्ण १२, रविवार, मध्यम, पू. २. कुल पे. २, ले. स्थल. विजापुर, पठ श्रावि. कपूरबाई प्रले. आ. भाग्यरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १६x२५-२८). و १. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: वासुपूज्य जिनराजजी; अंति: रे पोहती मनडानी आस, गाथा-७. २. पे. नाम. शृंगारिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: पांच सात नव तेरमें; अंतिः दीप० दिल में एक रेहा, गाथा-१. ८१२७०. (f) पद व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ७, ले. स्थल. आंतरी, प्रले. मु. देवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५X११, २१४४२-५०), १. पे नाम. जिनपूजनमहिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पूजो रे जिव अतिः कीर्तिसूरि० जिन वंदडा, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरी सूरत की अंति: भवजल पार उतारी, गाथा - ५. ३. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. १अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only

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