Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 20
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर गाथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२०) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol 1.1.20). त | बुदाणावादयाहामा सबदारी सिवमा वादमबागरात पानामाझिया यश्रीपाचव्हावार पसरसागरसूरि जाजमींदिर पर For Private and Personal Use Only मसालको वरता यानागारमताav नया सिमानामाष्टी नमानMISH Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२०) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची के आशीर्वाद व प्रेरणा | आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी हावीर भी बाबा एतत विद्या ले प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४२० वि.सं. २०७२ ० ई. २०१६ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २० Āacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smộti Granthasūcī - Ratna 20 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२० Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.20 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. गजेन्द्र पढियार पं. अरुण कुमार झा पं. भाविन पंड्या पं. अश्विन भट्ट पं. रामप्रकाश झा पं. नवीनभाई वी. जैन डॉ. उत्तमसिंह पं. राहुल त्रिवेदी * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी.शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २० श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १: जैन साहित्य खंड -२० से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I: Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 20 * Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2016 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 20 Kailasa Śrutasagara Granthasūcī: 1.1.20 ©: Publisher O Vir Samvat 2542, Vikram Samvat 2072, A.D. 2016 O ISBN: Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.20 Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir Edition: First • प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad O Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Publisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, Whatsapp: 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org Price: Rs. 1500/ 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-93-5 (Vol.20) • Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८२वें जन्मोत्सव पुनीत प्रसंग पर वि. सं. 2072, भाद्रपद शुक्लपक्ष, (द्वि.) नवमी, रविवार दि. 11-09-2016, For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना - तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है, श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार भाष्यकार चूर्णिकार टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता है. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री नवीनभाई जैन, श्री अरुण कुमार झा, डॉ. उत्तमसिंह, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री अश्विन भट्ट आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २०वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २०वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. I - For Private and Personal Use Only पद्मसागर सूरि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २०वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २० वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २०वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर II For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org MorroworrolorOOTKOOTKOOTroor.orooroor कत्थ अम्हारिसा पाणी, दुसमा दोसदूसिआ । हा अणाहा कहं हुंता, न हुंतो जइ जिणागमो || (संबोधसित्तरी) CHC स्व. नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - ७-९-१८९६ स्वर्गारोहण - १३-१२-१९७५ स्व. सुलोचनाबेन नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - १३-२-१९०२ स्वर्गारोहण - २४-४-१९७९ . For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २०वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें यशोविजयजी रचित अष्टापदतीर्थ स्तवन, भोजसागर रचित पंचमेरुजिन जयमाला स्तवन, रूपसिंह रचित प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, देवचंद्र रचित पार्श्वजिन स्तवन-पंचकल्याणकसूचनागर्भित आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व परासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पस्तक, कति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत परासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ji ................... iii अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... प्राक्कथन.............................. अनुक्रमणिका ......................................................................................................................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ..... .......... v-vi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण...................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची......................... ...........................................................१-४७२ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.... ..................४७३-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. .४७३-४९९ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. .....४९९-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २० में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ८१२६६ से ८५६२५ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में ___ ३४३४ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ४२५२ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४५२४ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६२९२ बार आई हैं. IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेपवसंकेत* ... कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-)........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - दर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)..... .. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. ......... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#). प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. (s).......... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............ आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. प. विद्वान) उपा.......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं....... मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकति विशेष में. कुल पे....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत.......... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को............ कोष्टक (कृति स्वरूप) ग.............गणि (विद्वान स्वरूप) गडी.......... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गाथा (कृति परिमाण) गु........... गुजराती (कृति भाषा) गुटका........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गृही.......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला | प्रे. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं........... . ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै.............. जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. . जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............ जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते. . जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) .... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान) दत्त.. दि.............. जैन दिगंबर कृति. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) .... देवनागरी (प्रत लिपि) देना.. पं.............. पंजाबी (कृति भाषा ) पं. ............ पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ....... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्यबद्ध (कृति प्रकार) . पाठक (विद्वान स्वरूप) ...--------- महा. मा. मा.गु. मु.. मु.. मूपू.. ये. ........... ......... यंत्र (कृति स्वरूप) रा.............. राजा (विद्वान स्वरूप) पद्य.. पा. पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) पू. वि.......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व विक्र वी.. पूर्व. ......... रा.. . राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख .प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) | ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा. . वाचक (विद्वान स्वरूप) वि..............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. ........... कृतिमाहिती स्तर) . कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृ.............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम. . प्रतगत पेटाकृति नाम पे. वि ......... प्रतगत पेटाकृति विशेष पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा ) प्र. वि......... प्रत विशेष. प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु... पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर .) प्र. ले. पु.... प्रतिलेखन पुष्पिका की (प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखि प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्र. सं......... प्रति संशोधक प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा ) . महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) .मागधी प्राकृत (कृति भाषा) . मारुगुर्जर (कृति भाषा ) . मुनि (विद्वान स्वरूप) . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) ............. सं.. सम. VI सा. स्था. वै.......... . वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ व्या.प. ....... व्याख्याने पठित - विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श.. ....... . शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष ) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) . . श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान ) श्वे............. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) रचना वर्ष) विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) ....... वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) पु., कृति . संस्कृत (कृति भाषा) . समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) .... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) . जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं.............. हिंदी (कृति भाषा ) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत केसहभागी *) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * 000000000000000000000OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद पालडी अहमदाबाद | १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ । अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई वालकेश्वर मुंबई |२१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ ||२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ | २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया || २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई ९.जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका |२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई | २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई |२८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ |१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ मेवानगर (राज.) __ अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका | २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन ___ मुंबई |३१. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ___ मुंबई |३२. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ ३३. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर २. श्री रांदेर रोड जैन संघ ३.बी. एम. एफ. के. सदन - हस्ते श्री भरतकुमार एम. शाह ४. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी गांधीरोड, पझल, चेन्नई सुरत अहमदाबाद महेसाणा VII For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra : १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार सन्स नोवी, हाल शिवगंज www.kobatirth.org * सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २० भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ (राज.) मेवानगर २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुधा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर मेवानगर मेवानगर चेन्नई मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन- प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. अहमदाबाद VIII १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार * सादर समर्पण * कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. O सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद For Private and Personal Use Only मुंबई मेवानगर अहमदाबाद Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास- सुबोध - मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१२६६. धर्म स्वाध्याय व बीजतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२.५, १५-१८X२७-३०). १. पे. नाम. धर्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्म, आदि धर्म करो रे प्राणीया अति ते पामै सिवलीला रे, गाथा - ११. २. पे नाम वीजतिथि स्तवन, पू. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सरसति माता नमी करी, अंति (-), (पू. वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ८१२६७. (*) अज्ञात कृति, नेमिजिन ककाबत्रीसी व गुरुगीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) - २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२५x११.५, १८x२७-३०). १. पे नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, पू. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, पे. वि. हुंडी: चोइस, अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक मा.गु., पद्य, आदि (-); अति सदा भगती दो कंठ मेरी, गाथा-३१. (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन ककाबत्रीसी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: कका. नेमिजिन कक्काबत्रीसी, मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मुझे छोड़ चल गया; अंति (वि. संपूर्ण लिखे जाने के बाद फिर से एक गाथा जैसा कुछ लिखा गया है जो प्रायः इस कृति का ही अंश संभव है, विशेष संशोधन अपेक्षित.) ३. पे. नाम. रामकवरजी गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामकवरजी साध्वी गीत, सा. नंदकवरजी, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि नगर वीकानेर दपतो जी अति: नंदकवर ० कलपतो ठाये, गाथा- ११. ८१२६८. वीशस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२४४१२, १०२४). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि पय पणमी जिनवर देवना; अंतिः सिद्ध० सुख पामे तेह, गाथा - ६. ८१२६९ (+) वासुपूज्यजिन स्तवन व शृंगारिक दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख कृष्ण १२, रविवार, मध्यम, पू. २. कुल पे. २, ले. स्थल. विजापुर, पठ श्रावि. कपूरबाई प्रले. आ. भाग्यरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १६x२५-२८). و १. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: वासुपूज्य जिनराजजी; अंति: रे पोहती मनडानी आस, गाथा-७. २. पे. नाम. शृंगारिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: पांच सात नव तेरमें; अंतिः दीप० दिल में एक रेहा, गाथा-१. ८१२७०. (f) पद व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ७, ले. स्थल. आंतरी, प्रले. मु. देवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५X११, २१४४२-५०), १. पे नाम. जिनपूजनमहिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पूजो रे जिव अतिः कीर्तिसूरि० जिन वंदडा, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरी सूरत की अंति: भवजल पार उतारी, गाथा - ५. ३. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. १अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. कीर्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: अरज सुणो मेरी नेम; अंति: कीर्तिसू०सब दुख खीना, गाथा-४. ४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. आ. कीर्तिसरि, पहिं., पद्य, आदि: अब मइ स्वामि निकी; अंति: कीर्तिमइ पति वाण्यो, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मन भजि श्रीजिनपास; अंति: कीर्ति० जिनके वृंद, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: रे जीव समझै कुन; अंति: कीर्तिसूरि०होय वखाणा, गाथा-७. ७.पे. नाम, औपदेशिक स्वाध्याय, प. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामणि विनवई; अंति: कीर्ति० धरम सदीव रे, गाथा-११. ८१२७१ (#) श्रीपाल प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४९-४८(१ से ४८)=१, प्रले. मु. भगवानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३२-३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-४, ढाल-४०, गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. ढाल ४१) ८१२७२. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२-१५४३७-४०). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहनिं नमे मुंनी माल, गाथा-३१. ८१२७३. (#) सोलसती सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३२-३५). १.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: ते भणी समरो नंसदीस, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय प्रण; अंति: विसाला सुखीया करो, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ८१२७४. औपदेशिक श्लोक, आदिजिन चैत्यवंदन व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४३२). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: ब्राह्म मुहर्ते; अंति: गर्जति शंकरस्य, श्लोक-३. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख कृष्ण, ४, ले.स्थल. आउआनगर, प्रले. मु. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य), प्र.ले.प. सामान्य. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; ___ अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८.. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ८१२७५ (2) सुपात्रदानमहिमा व परनारीपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २०७३२-३६). १. पे. नाम. सुपात्रदानमहिमा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० औपदेशिक सज्झाय-सुपात्रदानमहिमा, मा.गु., पद्य, आदि: दयो दयो जीवा दान; अंति: दान थकी हुव खेयो पार, गाथा-८. २. पे. नाम, परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. परनारी परिहार सज्झाय, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: रावण मोटो राय कहावै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-१२. ८१२७६. गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, ३२-३५४१५-१८). १. पे. नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु श्रीजिनकुशल; अंति: जिनचंद्र० सुरतरुदसु, गाथा-६. २.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-११. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: दादो सम देव न दूजो; अंति: मृगमद माहे मेली रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मात्र चतुर्गुण अष्यर; अंति: गिनै तो आवै नौम. ८१२७७. मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४७, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३७-४०). मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसति माता दीये; अंति: परमसुख इम मांगीइ, __ ढाल-५, गाथा-१०. ८१२७८. (#) पार्श्वजिन दशभववर्णन स्तवन, संपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्रले. म. मोहनविमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १०x२३-२६). पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारद हो पाय; अंति: विसाला सुखीया करो, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ८१२७९ (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १४४२६-२९). नेमिजिन स्तवन, मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: मुगत पंथ की पावडी; अंति: जिनदास० अजाणमत थारी, ढाल-९, गाथा-२०. ८१२८०. शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४११, ११४४०-४३). शांतिजिन स्तवन, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अनंत सुख ते अनुभवइ, गाथा-२९, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ८१२८१. (+) महावीरजिन गँहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १२४३२-३५). महावीरजिन गहंली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी अपापानयरी; अंति: विसुद्धजय भणे रे लो, गाथा-५. ८१२८२ (+#) संख्यातासंख्यातअनंतप्रदेश गाथा व पुद्गलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५७-६२). १.पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-चरमपद संख्यातासंख्यातअनंतप्रदेश गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त्त विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउद राजलोकने विषे; अंति: पुद्गल परावर्त जाणवो. ८१२८४. मधुबिंद व मुनिगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४४२) १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसति माता दीये; अंति: परमसुख इम मांगीइ, ढाल-५, गाथा-१०. २.पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तप करता मुनि राजीया; अंति: उदय० प्रतपो नीसदीस, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१२८५. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, २२४४८-५२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चतुर्थ पद तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चतर्थ पद का विवेचन अपर्ण तक है.) ८१२८६ (#) मुनिमालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१८४४७-५०). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: मिलै सदा सदा कल्याण, गाथा-३६. ८१२८७. () शत्रुजयतीर्थ संघयात्रावर्णन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३६). शत्रुजयतीर्थ संघयात्रावर्णन चौपाई, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ से ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१२८८. जीवभेद नियम उपयोग भजना कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, २८x२०). जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: १ जीव समुंचइ ५ नियमा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., क्रमांक १६८ तक ८१२८९ (+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. “हुंडी कटा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १८४४२-४८). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ८१२९०. रीषभनाथजी को तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १२४३२-३५). १. पे. नाम. रीषभनाथजी को तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदि जिणंद आज; अंति: दीपसौभाग्य कहा री, गाथा-१५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: गया दया तणै परमाण, गाथा-२. ८१२९१ (4) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४२७-३०). शQजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचलमंडन सामी रे; अंति: इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-१५. ८१२९२. (+) मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४२७-३२). मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे माता; अंति: परमसुख इम मांगीइ, ढाल-५, गाथा-१०. ८१२९३ (+#) धंटाकर्णसाधना कल्प, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १८४३७-४०). घंटाकर्णमहावीरदेव साधनाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: दीवालीरी रात्र नवरात; अंति: सरव दोष मिटै सत्य छे. ८१२९४.(-) चंद्रप्रभ व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साहेपुरी, प्रले.सा. कंवरीजी; अन्य. सा. श्रीचंदूजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चंद्राप्रभजीकी श्रीमंदर विनती., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १८४३२-३६). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. साधुजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: चंद्रपुरी नगरी भलीजी; अंति: सायपुर सेर चोमास, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदरजी सुणज्यो; अंति: गया वरता जय जयकार जी, गाथा-९. ८१२९५. झांझरीयामुनि सज्झाय व आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-६८(१ से ५९,६१ से ६९)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३५). १. पे. नाम, झांझरीयामुनि सज्झाय, पृ. ६०अ-६०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) । २. पे. नाम. आषाढाभूतिमनि सज्झाय, पृ.७०अ-७०आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-३ तक है) ८१२९६. (#) जंबुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३५-३८). जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हाजी राजगर नगरी बसी; अंति: भोजल पार उतारीयासी, गाथा-१४. ८१२९७. (2) कर्मविपाकफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७८५, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. जितसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०-३५). कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: माहाराजा रे प्राणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ८१२९८. अष्टकर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, दे., (२५४११, १०४३२-३६). ८ कर्म सज्झाय, सा. भामाजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३३ अपूर्ण से है व ४१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१२९९ (#) चंद्रप्रभजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने कोई अज्ञात कृति प्रारंभ करके छोड़ दिया है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रपुरीनगरी जाणी; अंति: भत मोहेइ लीखो माहरो, गाथा-७. २. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: हा रे चंदाप्रभु चीत; अंति: दे जस करे वारो, गाथा-१२. ८१३०० (-) पर्युषणनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१२, ११४२०-२५). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुनवंत पोसालु आवो; अंति: सद्धाइमा दुख हरणी, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ८१३०२ (+) धर्मोपदेश व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३३). __ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं दया दमोंद्रीणां; अंति: विषै मंगलमाला संपजइ. ८१३०३. चंदराजारी चौपी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:चंदराजारीचौपी., जैदे., (२५४११.५, १५४३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१, ढाल-१ की गाथा-४ तक है.) ८१३०५ (+#) द्वादशव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१ लिखा है परंतु पूजा अपूर्ण दर्शाने के लिए पत्रांक ११ काल्पनिक दिया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, १८४४१). For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रतपूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदि (-); अति (-) (पू.वि. ढाल ९ की अंतिम गाथा से कलश की गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ८१३०६. (*) सीमंधरस्वामी विनती व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) १, कुल पे. २, अन्य आ जिनकुशलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४११.५, ११x२६). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामिजीरी स्तुति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भक्तिलाभ०मन तणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. गोडीपार्श्वनाथजी लघुस्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., पद्य, आदि जगगुरु श्रीगोडीपुरम अंतिः कल्याण सवाई थायै हो, गाथा- ७. ८१३०७ (f) मोतिकपासिया संवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११, २३x६०). १३x४२). १. पे. नाम आदिजिन पद. पू. १अ संपूर्ण, मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रूप सोहामणउ आद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६८ अपूर्ण तक है.) ८१३०८. (d) पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: तज के अजोध्या कुं; अंति: मोछकुं सीधार्यो हे, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूप, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीजिनके पइया लागरे; अति रूप० कर्म गए भाग रे, गावा-३. " ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. पुहिं, पद्म, आदि जीव रे चल्यो जात जहा अति तेरो समझ जिनराजान, गाथा-३. " ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि मारे गुर दीनी मांने अंति भूधर० सहजे व्याधि टरी, गाथा -४. ८१३०९ त्रैलोक्यसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२४४११.५, १५४४५). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ जिन पंचमराय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २८ अपूर्ण तक है.) ८१३१०. चारप्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४४१०.५, १४X३८). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा नयरी अतिभली हूं; अंतिः चोथो प्रत्येकबुध हे, ढाल-४. ८१३११. दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, ३१x२२). दीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम संध्या चारित्र; अंति: व्रतरो उच्चार कराईजै. ८१३१२. ४ शरणा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., ( २४४१२, १९३४). ४ शरणा विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मनो पडीवज्जु छु, (पू.वि. तृतीय शरण अपूर्ण से है.) ८१३१३. (+#) साधारणजिन स्तवन, दुहा संग्रह व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्राव. लालचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १३x२९). १. पे. नाम औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: सजन इसा कीजीई जिसा; अंति: जीम हीयला घणा भमंत, गाथा-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि जिणंदा तारी बाणीह अंति: गावे इम करी कंत रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: ल व श ष स ह ल्लं क्ष. ८१३१४. (+) हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १७४३८). हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'दूहा पिसुण पड्यो' पाठ से 'तुझ विण जगमें को' तक है., वि. प्रतिलेखक ने ढाल संख्या नहीं लिखी है.) ८१३१५. स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. १०, प्र.वि. हुंडी:तीर्थावली., जैदे., (२४.५४११, १७४३२). १.पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. १२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर कहे एम की, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु.रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मे परदेसी दूर का; अंति: रूपचंद० गुण गाया, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: जे बैठा सो तीरीया है, गाथा-३. ४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, पहि., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण पासजी; अंति: सेवता समकित सवायौ, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. जिनसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: देखो मूरख प्रांणीयो; अंति: फलसो लहै तारहै अछूतौ, गाथा-३. ६.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ते मूरख जिन वाउ रे; अंति: दिन प्रति गुण गावै, गाथा-४. ७. पे. नाम. घडियाली गीत, पृ. १२अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सुणौ चित लायकै; अंति: समयसुंदर० एहज आधारा, गाथा-३. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडो हेजालुओ; अंति: कहै मत मुको वीसार, गाथा-७. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. चिमनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधरजी प्यारा; अंति: चीमन० दाय न आवैजी, गाथा-५. १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभजिनेसर अतिअलवेसर; अंति: अनुभव रस पइयै रे, गाथा-३. ८१३१६. (4) आरती, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १६४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्राव. दर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: जे पारसनाथा० मंगल; अंति: चरणसुं चित्त लाता, गाथा-६. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीयो अरज हमारी मै; अंति: कहे० आवागमण निवारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: नरत करत ताथेइ निरंजण; अंति: रूप० पावत हे केइ केइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. ऋषभविजय, पुहि., पद्य, आदि: वारी जाउं रे चिंतामण; अंति: प्रभुजीसं लागी आसकी, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नर भूलहु न कर रे; अंति: की तुं हिरद मे धर रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मेरो मन लाग रह्यो; अंति: चंदकीरत गुण गाय, गाथा-२. ७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिनंदा हो सुरत; अंति: गावे चरणकमल प्रणमंता, गाथा-३. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीयां मै आज; अंति: श्रीआदेसर तुठा रे, गाथा-७. ८१३१७. (-) मनवशीकरण सज्झाय, महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक रेखता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. मनवशीकरण सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐ मनाजी असे परभुचरने; अंति: भजलो सीरी महावीरजी, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: महावीर थारी वानी; अंति: भाखी दीनम वीरलानी जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसल, पुहिं., पद्य, आदि: समज ले जीववे थारे भर; अंति: जनम तो वीतता जाइ, गाथा-६. ८१३१८.(#) शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अंत में उर्द में कुछ लिखा है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, ११-१६x४०). शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, रा., पद्य, आदि: सोलमा जीणजी संतनाथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है. ८१३१९ (+#) खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:खंडाजो०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, १३४३२). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोजनरो लांबो; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२ जंबुदीपना जोजन तक है.) ८१३२०. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,१०४३२). शांतिजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, वि. १७९२, आदि: साहिब शांति जिनेसरु; अंति: भुवन० तस सीस खुस्याल, गाथा-९. ८१३२१. (+) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, १३४३५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: सहसफणा प्रभु पासजी; अंति: जिनलाभ० सुख दीजै, गाथा-९. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनादि स्तुति, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंति: शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा-३. ३. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, म. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आदि सदा अरिहंत; अंति: लालविनोद० फल पाइयै, गाथा-५. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रिखजी, मा.ग., पद्य, आदि: वंद श्रीआदिनाथ अजित; अंति: रिखजी० सुखारी खाण हे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१३२२. आगम योगोद्वहन विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५४११, ११४४३). आगम योगोद्वहन विधि, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. दशवकालिक विधि अपूर्ण से विवाहपन्नत्ती विधि अपूर्ण तक है.) ८१३२३. (-) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०, १३४३१). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १० साधुलक्षण सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: मुकता मझार मुनी, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रवीजय सेबादेवी; अंति: जीव जावणे मुकत मझार, गाथा-१९. ३. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, प. ४आ, संपूर्ण... मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि: वीडी बनाई नागर पान; अंति: मीरा० राधाश्याम की, पद-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., पद्य, आदि: गढ सुरत ते चरखा आया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१३२४. (+) पदमावतीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२३.५४१२.५, १४४३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६. ८१३२६. (+) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४२९-३१). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: परमेश्वर जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. पल्योपम व्याख्या अपूर्ण तक ८१३२७. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, १२४३८). आनंदश्रावक संधि, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ के दहा-६ अपूर्ण तक है.) ८१३२८. राईप्रतिक्रमण विधि व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ११४२५). १.पे. नाम. राइपडिकमणा वीधी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राइपडिकमणा विधी. राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम खमासमण देई; अंति: चेत्यवंदन करीइ. २.पे. नाम. देववांदवा वीधी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावही पछे; अंति: नमुथुणं जयवियराय. ८१३२९ (+) आदिजिन बृहत्स्त वन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५,१३४४२). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ; अंति: जंपइ वेग सिवरमणी वरउ, गाथा-२७. ८१३३०. अष्टमी स्तवन व पार्श्वजिन लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३६). १. पे. नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल, पालिताणा, प्रले. मु. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:अष्टमीतप. रिषभप्रसादात. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हार म्हारे ठाम; अंति: पुनि सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पहिं., पद्य, आदि: जगत भविकजिन महर अनंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक हैं.) ८१३३१. (#) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १०x२३). मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणो; अंति: गोखे रतन जडाव हो, गाथा-१३. ८१३३२. (+) स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. धोलेरा, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. कस्तुरविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. मोहनविजय, तपागच्छ); लिख. श्राव. वीरचंद शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्. वडोदडानगरे का भी उल्लेख है., संशोधित., दे., (२३४१२, १८x२८). १.पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशरस्वतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. २. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवन रे; अंति: लब्धिविजय ० विनोद रे, गाथा-८. ३. पे. नाम, पांचमनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुनरपी पांचमी इम वदो; अंति: जिहां सुख अनंतसु लबद, गाथा-८. ४. पे. नाम. एकम स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात्व असंजम; अंति: नयविमल होवे लीलाजी, गाथा-४. ८१३३३. बुध रास, पर्युषण स्तुति व महावीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४४-४६). १.पे. नाम. बुद्धि राशो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमविदेवि अंबाई पंचा; अंति: सालिभ० टले कलेसितो, गाथा-६४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: मन मान्यो फल लेशे जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीर छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन छंद, म. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसमा महावीर शुरवी; अंति: धर्यो उपजै आनंद है, गाथा-१. ८१३३४. (#) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १,२ लिखा है परंतु कृति का प्रारंभिक भाग अपूर्ण होने से काल्पनिक पत्रांक २,३ दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४३३). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-५ अपूर्ण से है व ढाल-२, दोहा-५ तक लिखा है.) ८१३३५. नवीनप्रासादस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६४). नवीनप्रासादस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: छत्तत्तयउत्तारं भालक; अंति: दानं श्रीसंघभक्तिश्च. ८१३३७ (+) आखेट वर्णन-आत्माकर्मसंबंधे, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:आखेटवर्णनं., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १९४४०). आखेट वर्णन-आत्माकर्मसंबंधे, सं., गद्य, आदि: वनं १ दह दिशि; अंति: (-), (पू.वि. "अज्ञानशूलेन आखडित्वा पतति" पाठांश तक है.) ८१३३८. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १५४३१). १.पे. नाम. उर्ध्वलोकना सास्वताप्रसाद सास्वतिप्रतिमानी संख्या, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सौधर्मदेवलोके; अंति: तेहने हुं वांदू छु. २. पे. नाम. १४ स्थान सम्मूर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वडिनिती में १ लघुनित; अंति: समुर्छिम जिव उपजइं. ३. पे. नाम. चोसठइंद्रना नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनपतिरी दसनिकाय१०; अंति: मीली ६४ इंद्र जाणवा. ८१३३९. पट्टावली विजयदेवसरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १८४५४). महावीरजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर पछै एकसो; अंति: वर्तमान चिरं जियात्, (वि. ६६वीं पाट तक है.) ८१३४०. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १३४४६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीजिनं देव, (२)पहेलो जीवा क० जीव; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८१३४१. नेमराजिमती स्तवन व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३२). १.पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक वरणि चूनडी आजो; अंति: उदय० गीरनारनो वास, गाथा-१३. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी माता; अंति: रूपविजय गुण गाया रे, गाथा-७. ८१३४२. (+#) गोडीपार्श्वनाथजी छंद, संपूर्ण, वि. १७९१, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. मु. अमृतविजय (गुरु मु. रंगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १२४४२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे वसी; अंति: कांतिवजे० गोडी धवल, गाथा-३७. ८१३४३. (+) राजिमतीरहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७५, आश्विन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३१). नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजुल इण परि वीनवै; अंति: हो सुद पांचम मंगलवार, गाथा-२१. ८१३४४. बंभणवाडि महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१९, वैशाख कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, प. २, पठ. श्राव. नानजी; प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्ष-१८१९ लिखा है व सुधारा हुआ १९०० लिखा है., जैदे., (२४४११.५, १२४४८). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२२. ८१३४५ (+) वर्तमानतीर्थंकर व ऋषभजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११४३२). १. पे. नाम. वर्तमानतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन-वर्तमानतीर्थंकर, म. ज्ञानविलास, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमगुरुने नमी; अंति: तारो ग्यानविलास, गाथा-२३. २. पे. नाम. ऋषभजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुगुण, पुहिं., पद्य, आदि: जुगकी आदै थे हुवा; अंति: सुगण० पहुता शिव ठाणी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१३४६. चेतन सज्झाय व नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x११.५, १७x४४). १. पे. नाम. चेतन सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-चेतन, मा.गु., पद्य, आदि चेतन तु छे अनंतगुणनो; अंति: भगवंत भाव प्रकाशीया, गाथा-२९. २. पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण वीनवु गुण; अति: (-) (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ८१३४७. (+) गतागत बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. श्रावि. समरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै.., (२४.५X११.५, १६x४४). २४ दंडक ५६३ भेद विवरण- गतागति, मा.गु., गद्य, आदि: सात नरकनां ७ अपर्या; अंति: ७ नरक गत जाइ ५६३. ८१३४८. (७) साधुआचारबावनी, संपूर्ण, वि. १९७९, पीष शुक्ल १२, रविवार, मध्यम, पू. २, ले. स्थल, नागोर, लिख. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी साधु आचारबाउनी, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२३.५x१२, १८४४३). साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि : वर्द्धमान शासणधणी, अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा - ५३. ८१३४९. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, वे. (२५४१२, ७४१८). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिणेसर; अंति: जिणचंद करम अरि जीतो गाथा-५ ८१३५०. कर्मपच्चीशी व औपदेशिक होली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) २, कुल पे. २, वे. (२५.५४१२, १५X३९) १. पे नाम. कर्मपच्चीशी, पू. ३अ ४आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. . तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९३८, आदि: (-); अंति: तीलोक०सदाइ सुखदाइ रे, गाथा - २५, (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा का प्रारंभिक भाग नहीं है.) २. पे नाम औपदेशिक होली, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: सीयल संजमनी केसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१३५१. (*) प्रतिक्रमणसूत्र व अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ४-२ (१ से २) = २ कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी पडि० अतीचार.. " , अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५, १४४३८). " १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र. पू. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह घे. पू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं (पू.वि. अंत के पाठांश हैं.) " २. पे नाम. अतिचार, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचारीतर भीख पृथवी; अंति: परकार समरी पाटीकणी. ८१३५२. (*) चौडालिया, अनंतचीवीसी वंदना व सज्झाव संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५ (१ से ४, ६-२, कुल पे ४, प्र.वि. हुंडी:माहवीरजीरी ढा., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, २२X५०). १. पे नाम. कामदेव श्रावक सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि (-) अंति: कुसालचंद० जोर प्रकास, गाथा-१७, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only २. पे. नाम महावीरजिन चौढालियो पू. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: महावीरजीरी ढाल. महावीरजिन जन्ममहोत्सव चौडालिया, आव, चमनकुमार, मा.गु., पद्य, आदि जनम हुवा महावीरनो; अंति: गाया है चमनकुमार, गाथा - ३३. ३. पे. नाम नेमिजिन सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० नेमिजिन स्तवन, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दरो थयोजी साहेब; अंति: रतनचंद० भाइजीनी दरो, गाथा-७. ४. पे. नाम. अनंतचौवीसी वंदना, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:अनंत चो. साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदिः (-); अंति: जेमल० पार उतारो, गाथा-५३, ___(पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) ८१३५३. (+) बोलविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४४४५). १.पे. नाम. सबला दोष बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करे १ मैथुन; अंति: अशनादिक लीइं जिमे. २.पे. नाम. पचीस भावना, पृ. १अ, संपूर्ण. २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: पणवीसा ए भावना हिंति; अंति: बीजा महाव्रतनी भावना. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र के ३६ अध्ययन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: विनय १ परिसह; अंति: जीवाजीवविभत्ती ३६. ८१३५४. भैरुस्तुत्यादि पद व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम, भैरुजी स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. भैरवदेव स्तुति, मु. सदाराम, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सदाराम० तोरा नामरी, (पू.वि. अंत के पाठ हैं., वि. श्लोकक्रम का उल्लेख नहीं है.) २. पे. नाम. भेरुजी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. भैरवदेव स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: सिंदूर की खोल कीये; अंति: राजा जागता मरद है, गाथा-३. ३. पे. नाम, बावनवीर छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पोकर्ण, प्रले. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: गुघरा घमकपाय बावन; अंति: जसराज०बांदरा बुरज का, गाथा-१. ४. पे. नाम, ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ५. पे. नाम. पानसोपारीकथैचनौ के झगडे, प. २आ, संपूर्ण. ___ पानसुपारचुनाकत्थाकलह पद, पुहि., पद्य, आदि: पान कहै मैं नाजुक; अंति: बकरी चावै घास है, गाथा-४. ६. पे. नाम. प्रियविरह छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मान मान दिलजान होवा; अंति: सुपने में जगाया रे, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक छंद-स्वार्थगर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण. क. चंद, पुहि., पद्य, आदि: कोई नहीं किसका प्रार; अंति: चंद० खातर करता चाकरी, गाथा-३. ८१३५५. वांदणा उपकरण विचार, शीलचुंदडी व सुधर्मदेवलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१०.५, १४४४५). १. पे. नाम. वांदणा उपकरण विचार, प. १अ, संपूर्ण. __ मा.गु., गद्य, आदि: हवे वांदणा देतां ओघो; अंति: ते पण उपचारिक वचन छे, (वि. अंचलगच्छमत निराशन भी है.) २. पे. नाम. शीलचुंदडी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय-चंदडी, मा.गु., पद्य, आदि: उपशम उदयथी उपनी रोपी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सुधर्मदेवलोक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मा देवलोकमा रे; अंति: उदयरतन० सुख उपाय रे, गाथा-११. ८१३५६. उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अंबादत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १४४३४). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समयसुंदर० सुहकरो, ढाल-३, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१३५७. (#) धन्नाजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ३६४१८). धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीयालामे सी घणो; अंति: सिवसुख पामे न कोय, गाथा-२३. ८१३५८.(+) ११४ बोल थोकड़ा, संपूर्ण, वि. १९७१, आश्विन शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बडी सादडी, प्रले. मु. घीसालाल (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, १९४४२). ११४ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: १ नरकगति नीकलीया एक; अंति: सिधा संख्यात गुणा. ८१३५९ (+) ५२ अनाचार वर्णन व ८ कर्म ८५ कर्मबंधप्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, २२४३९). १. पे. नाम. बावन अनाचार वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: १ साधुने निमित्ते उद; अंति: ५२ विभूषा न करवो. २. पे. नाम. आठ कर्म पचासी कर्मप्रकृति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. ८ कर्म ८५ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी ६; अंति: ८ कर्म की ८५ प्रकृति. ८१३६० (+) स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १८३०, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३६). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: तूं जीवजीवन आधारो रे, (पू.वि. नेमिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से है.) ८१३६१. (+) औपदेशिक सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६). । औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सवैया-४ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक है., वि. सवैया एकतीसा लिखा हुआ है व बीच में एक दोहरा भी है. विशेष संशोधन अपेक्षित.) ८१३६२. सातनरक विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ३., (२४.५४११.५, २७४२७). ७ नरकस्थिति विचार, मा.ग., गद्य, आदि: पहली नरगे जगन; अंति: २२ सागर उ० सागर ३३, (वि. यंत्रात्मक.) ८१३६४. (+) कल्पसूत्र की कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. किसी अन्य प्रत के शेष भागवाले इस पत्र को पत्रांक-१ दिया हुआ है. क्योंकि पत्रांक १ होते हुए भी अधूरी कथा से प्रारंभ है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६). कल्पसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्श्वनाथसंतानीय साथु व गोशालक संवाद अपूर्ण से है तथा महावीरजिन के श्रावस्ति आगमन तक लिखा है.) ८१३६६. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १०४३२). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयौ; अंति: पोहुता छै मुगति मझार, गाथा-१६. ८१३६७.(+) स्तवन, स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२). १. पे. नाम, ज्ञान स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. ज्ञान पद, पा. शिवचंद, मा.ग., पद्य, आदि: ज्ञान निरंतर वंदीये; अंति: ज्ञान निरंतर वंदीयै, गाथा-७. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: वणा ते सुवंदे जिणंदे, गाथा-१. ३. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यत्र श्रीभरतेश्वरः; अंति: समीहे स्वयम्, श्लोक-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण.. __प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणसु पहु पास, गाथा-३. ५. पे. नाम. दीपमालिका गुणणो, पृ. २आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व गणना, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐहींश्री महावीर; अंति: एहवो जीव देवता हुवे. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१३६८. साडापचीसआर्यदेशादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. सोझत, प्रले. पं. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ४१x१३). १.पे. नाम, पाँच इंद्रिय के विषय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय के विषय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रुत इंद्री जीवशब्द; अंति: चोपड्यो उनो थाढो. २. पे. नाम. आयु प्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण. विविध जीव आयष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यरो आयु वर्ष; अंति: जंबकनो २५ डेडकानो ५०. ३.पे. नाम. साढेपचीस आर्यदेश नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस राजग्रहीनगर; अंति: पचीस सह० आठ सै गाम. ४. पे. नाम. महावीरचातुर्मास विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिनचातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १ चौमासो अस्तिग्रामे; अंति: ४२ चोमासा जाणवा. ५. पे. नाम. महावीरजिन तपप्रमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: ७२ पक्षोपवास; अंति: इण तरेसु१३ पक्ष हुवा. ८१३६९ (+) वीरद्वात्रिंशिका व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५६). १. पे. नाम. महावीर द्वात्रिंशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसाम्यात्; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दसदिस उनह्या; अंति: प्रतपो जग भांण रे, गाथा-८. ८१३७० (#) शांतिजिन स्तवन, अजितजिन स्तवन व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. कुंभजी ऋषि (गुरु मु. भगवानजी ऋषि); पठ. मु. मलुकचंद ऋषि (गुरु पं. कुंभजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४७). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी में पामीयो रे; अंति: कवियण शांतिजिणंद, गाथा-७. २.पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अजित ही तीरथ साचवो; अंति: हो राज झाझे हे जें, गाथा-७. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज उमाहो अति घणो हो; अंति: हो लाल पुरो मननी आश, गाथा-७. ८१३७१ (+) पार्श्वजिन स्तुति व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मदमदन गंजन भीडिभंजनप; अंति: रत्न वाचक करइ गुणगान, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जो तु छे देवी अंबाई, गाथा-४. ८१३७२. (+#) दीवालीपर्वनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पठ. सा. गुणश्री (गुरु सा. विनयश्री); गुपि. सा. विनयश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४४३). दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी वीर जिनेश्वर; अंति: तिम चढतु संवर करइ, गाथा-२३. ८१३७३. चेलणाराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ९४३३). चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: भव तणो पार, गाथा-६. ८१३७४. क्षमाविजय गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ८x२३). For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षमाविजयगुरुगुण भास, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि गुरु गुणवंता वांदीये अति अमीकुंयर कहे ए वाण, गाथा-८, (वि. अंतिम दो गाथांक में व्यतिक्रम है.) ८१३७५. साधु गहुली, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष शुक्ल ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२४.५४११.५, १०x४३). गुरुविहार गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज रहो मन मोहना तुम; अंतिः शुभवीर० नार रे, गाथा - १७. ८१३७६. पर्युषण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२४.५४१२, १२४३३). पर्युषणपर्व सज्झाय व्याख्यान-१, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले दिन बहु आदर, अंति: कहे बुधमाणेक जाणो रे, गाथा - १२. ८१३७७, (४) महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे. (२४.५४१०.५, १६४४५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि श्रीश्रुतदेवी तणे अति (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) ८१३७८. ऋषभजिन चरित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११, १०X३४). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. डाल-१ की गाथा ९ तक लिखा है.) ८१३७९. आलोयणा व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x११, १२X३०). १. पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि : आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम औपदेशिक गाथा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ८१३८१. (४) औपदेशिक सवैया, सुभाषित व आध्यात्मिकप्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुलपे, ६, ले. स्थल. कुरणा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१२, १४x२७). १. पे नाम औपदेशिक सवैया, पू. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-मृत्यु क. ईश्वरदास, पुहि., पद्य, आदि घर मे के बार मे अंतिः ईश्वर० मारेगो, गाथा- १. २. पे. नाम औपदेशिक सर्वेया, पृ. १अ, संपूर्ण. क. सुभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कोड ३८स लघमण; अंति: अर्थ कहै हो मोटा जती, गाथा - १. ३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-दयाधर्म, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नहि जोग तप जाप नहीं; अंति: जिनहर्ष० माहै सहु, गाथा - १. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक प्रश्न, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: तुम्हीं ने वनाई; अंति: जिन थस्यै इम कह्यो. ५. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) श्लोक-२. " ६. पे. नाम. आध्यात्मिक प्रश्नसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यकम्यान किसे कहते अति व लोकबिंदुसार पूर्व. ८१३८२. सातव्यसन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२४४११, १२४३८) " " ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि काया कामण जीवसुं इम अति णी ध्यान चितमां धरो, गाथा-८. ८१३८३. गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४४१०.५, १५X४०-५६). "" गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वाम प्रीछ्या; अंति: नस्वामी पहुते निरवाण, गाथा- ३८. ८१३८४. सम्मेतशिखरतीर्थ, पार्श्वनाथ स्तवन व नेमिजिन पद, अपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५X११.५, ११३१). For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १.पे. नाम. समेतशिखरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर गिरिराज; अंति: रिकरणभाव अनुपसुं रे. २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रामचंद वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: नेम देख मुझ पेम जगतप; अंति: एही राखो सुनि जर एम, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन साहिबा रे; अंति: कहे रे टालो भवनो भोग, गाथा-७. ८१३८५. पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, गृही. मु. सुखमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, ७४२०). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजलै प्रभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक ही लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मोतीडे मेह वुठारे; अंति: यो श्रीजिनचंद्र सवाई, गाथा-५. ८१३८६. (4) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वरड्या, प्रले. मु. सकलसागर, प्र.ले.प. सामान्य,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ८१३८७. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कंथजिन स्तवन तक लिखा है.) ८१३८८. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ६, ले.स्थल. मजल, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, १५. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगत भाव प्रसंसयो, __ ढाल-३, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: सुंदर कहे कीहा दाहमी, गाथा-१३. ३. पे. नाम, सीतलनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपरमंडन, उपा. समयसंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिव हो; अंति: समय० सणउ जनमन मोह ए, गाथा-१५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१९. ५. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ६. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: नाम जपौ श्रीनाकोडो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१३८९. (+*) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ५-२ (२ से ३ )= ३, कुल पे १३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x११, ११x४२). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि शीतलजिन सहजानंदी थयो अति जिनविजयानंद सुहावे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि आप अरूपी होय नय प्रभ, अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन. पू. १ आ. संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि मल्लि जिनेसर बंदीये; अंति: रे ज्ञानविमल कहे तेह, गाथा-५, ४. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नेह करो नमिनाथस्यूं अति विमल सुख आवे ए उपमान, गाथा ५. ५. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंतिः याय निपुण सोभागी रे, गाथा-६ (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. वासूपूज्य स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मनमंदिर नाथ वसावओन, अंति: अंतरंग गुण सवि हसिया, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 गाथा ६. ७. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि प्यारे विमलगुंसाई अति थय थुई कामित पामरे, गाथा-६, ८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि जिनजी प्यारो हो सीधु; अति: बांहि ग्रहिने तारिहौ, गाथा १०. ९. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४आ ५अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि धर्मजिणंद तेरे धर्मक; अंतिः न्यायसागर० पदवी मागई, गाथा - १०. १०. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब कब मिलई ससनेही; अंति: न्यायसागर सुखकारा हो, गाथा-९. ११. पे. नाम. कुंथुनाथजी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि तुमे रहो रे प्रीतम अंतिः महानंद पद अनुसरियां, गाथा- ७. १२. पे. नाम. अरनाथ स्तवन, पृ. ५आ, , संपूर्ण. अरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु, पद्य, आदि: अरनाथ कुं सदा मोरी अति मांगइ परमानंदना रे, गाथा ५. १३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन रमे चित कौन रमे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १ अपूर्ण तक है. ) ८१३९० (+) औपदेशिक सवैया, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४११.५, १४४३३). 3 प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गद्द, गंग, सारंग, बलवीर आदि विद्वानों की कृतिओं का संकलन है.) ८१३९१. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १८०७ कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल नागोर, पठ. श्रावि. मनोहर कवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४४१२, १५४३७) " For Private and Personal Use Only व्याख्यान पीठिका, मा.गु., सं., प+ग., आदि: श्री अर्हंतो भगवंत; अंति: सिद्धि श्रीभूयात्. ८१३९२. (+#) पार्श्वजिन छंद व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. उपा. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१०.५, १२X३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पू. १अ ३आ, संपूर्ण, वि. १९३० भाद्रपद शुक्ल, १५. ले. स्थल वलभीनगर, प्रले. उपा. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: ते जे जिनवचन सद्दहै, गाथा-५५. २. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. ३आ.., संपूर्ण. ज्योतिष , पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८१३९३. स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, ले.स्थल. सादडी नगर, प्रले. पं. गुलाबविजय; पठ. मु. फतेचंद (गुरु पं. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १३४३१). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. पुण्यविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवा प्रण; अंति: वीरजी लागी मन दहाड, गाथा-५. २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं प्रथम; अंति: लहै पामै सुख अमित्त, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पठ. मु. गेमा, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: हरष भणै० मनह जगीश, गाथा-८. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख शुक्ल, ११, ले.स्थल. सादडी नगर, प्रले. पं. गुलाबविजय; पठ. मु. फतेचंद (गुरु पं. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण, अन्य. मु. फतेचंद (गुरु पं. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करु प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभने वासपज्य; अंति: तणो नय वंदे निसदीस, गाथा-३. ७. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमनाभ पहिला जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१३९४. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रामगढ, प्रले. पं. प्रमोदकुशल; पठ. श्राव. अमेदराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,१३४३२-३५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: जिको अतिचार पक्ष०. ८१३९५ (4) महावीरजिन चोढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:महावीर०चौ०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १०४२९). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१३९६. (+) आषाढभूतिमुनि पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. गुलाब (गुरु सा. वखताजी महासती); गुपि. सा. वखताजी महासती, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १६४३३). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्शण परिसो बावीसमो; अंति: ते जुग माहे दिन हो, ढाल-७. ८१३९७. (+) सीमंधरजिन विनती व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सफलसंसार उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८. २.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:मंगलकमला For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; ___ अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८१३९८. शील सज्झाय व नेमिनाथ सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १२-१५४४०). १. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. झालरा पाटण. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: गौतमस्वामी समरूं; अंति: जनम जनम का पातीग हर, गाथा-१०. २.पे. नाम. नेमिजिन सलोको, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. __क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुदबुदै दातान भरमारी; अंति: जलैने मे न कोणी तोलै, गाथा-५७. ८१३९९ (#) आदिजिन स्तवन व माया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ११-१४४३७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिनेस्वर त्रिभुवन; अंति: हुं चरणै शिरनामी रे, गाथा-११. २.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: उदय०मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ८१४०० पगाम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पगम सज्झाय., जैदे., (२४४११, १३४३१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ८१४०१ (+) चारमंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४२६-२९). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहिय; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-२०. ८१४०२. (+) नेमराजल सज्झाय, विमलजिन व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३२-३६). १.पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: जान लेईने आयाजी नेम; अंति: गाया मे राजुल नेमजी, गाथा-८. २.पे. नाम, विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवु थाव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली हे तोरण आयो फर; अंति: यशोदेवसूरि कहे सीख, गाथा-९. ८१४०३. नंदीषणमुनि सज्झाय व भैरवजी छंद, संपूर्ण, वि. १८२४, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३६). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय० न तोले हो, ढाल-३, गाथा-१६. २.पे. नाम. भैरवजी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण.. __ भैरवदेव छंद, मा.गु., पद्य, आदि: गाजै गागडिदां गगन; अंति: पद्मणी वींझणा ढोलंत, गाथा-४. ८१४०४. (#) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १५४३२-३६). १. पे. नाम. महावीरजिन वृद्धस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७८०, ले.स्थल. फलवृद्धि, प्रले. मु. कुसलाजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: पढह कयं अभयसूरीहिं, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: नाहं काको महाराज, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण क ८१४०५ कार्तिकसेठ पंचडालिया, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. २-२ (१) -१, प्र. वि. हुंडी कातिकनी, दे. (२५४१२, २१४४८). कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जैमल० उपीउग दिल राखी, ढाल-५, (पू.वि. ढाल ४ गाथा १ अपूर्ण से हैं.) ८१४०६. च्यारप्रकार जीववर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५X११, १२X३२-३५). 1 ४ प्रकार जीव वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि उत्तम पुरुष की दसा; अंति करे दुष्ट देख संत को. ८१४०७. (#) जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९२०, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. सकलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे. (२४.५४१२, ९४२२) जिनकुशलसूरि पद, रा., पद्य, आदि हुं तो मोह रह्यो जी; अति जी रंग घेणे राजिंद, गाथा- ४. ८१४०८, (#) धन्ना सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पंडित रघु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५ १२४३६-३९). "" धन्ना अणगार सज्झाच, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे घना; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा २२. ८१४१०. सुरीआभदेव वर्णन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी सुरी आभनाथसेन., जीवे. (२४.५x११.५, १५X३७-४०). १. पे. नाम. सुरीआभदेव वर्णन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरीआभ बोले वे करजोड; अति: मधुर मधुर सोर वंसरी, गाथा १६. - २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सिंह और बंदर कपटगर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: एक दिवस हरी संग कुं; अंति: मिले तिसका कुण हवाल, गाथा - ११. ८१४११. (+४) स्तवन व हरियाली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४. प्र. वि. हुंडी स्तवन., पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १४४४२-४६). १. पे. नाम. काव्य संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण २१ टिप्पण युक्त For Private and Personal Use Only युक्त विशेष प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: वासं खंडमिदं प्रयच्छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नेमिनाथनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर हे जिनवर तुं; अंति: नामथी पूरो मननी आश, गाथा - ५. ३. पे. नाम प्रहेलिका हरियाली, पृ. १अ संपूर्ण, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: पांना भोजन से करे फल; अंतिः तामे कामति होय, गाथा-२. ४. पे. नाम नेमिनाथ स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण, नेमिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीसागर, म., पद्य, आदि आईका आईका उघली अमची अंतिः ध्यान तुही शिवसाथा, गाथा - १०. ८१४१२. श्राद्धालोचना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५x१०.५, १०x२८-३२). श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टविधिविज्ञान आशात; अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार की आलोयणा अपूर्ण तक है.) ८१४१३. (*) पौषध सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१२, १२४३३). पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु समरण आणीयइं; अंति: इणि परिपालीयइं, गाथा - १४. ८१४१४. (+) दुहा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. उत्तमविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X११.५, १२X३२-३६). Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जिसी तिसीके पास हृदय; अंति: संसार कि जोवन नेहलो, गाथा-१४. २. पे. नाम. साधुदर्शनफल श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: साधूनां दर्शनं पुण्य; अंतिः सद्यः साधु समागमः, श्लोक-१. ८१४१५ () प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, २५४६२-६५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पाछली राति निसंचल; अंति: (अपठनीय), (संपूर्ण, वि. पडिलेहण, सामायिकादि विधि सहित.) ८१४१६. (+) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ३५-३८x२२-२५). नेमिजिन बारमासा, म. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शारद पदपंकज नमी आणी; अंति: जिननइं प्रणमो निसदीस, गाथा-१७. ८१४१८. नवतत्त्व चौपाई, अपूर्ण, वि. १७९७, माघ कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, जैदे., (२५४११, ११४५२-५६). नवतत्त्व चौपाई, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९, (पू.वि. ढाल-९ की गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ८१४१९ शांतिजिन रास ढाल-३८, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, ११४३२-३६). शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८१४२१. वीशस्थानकतप स्तुति व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, ९४२७-३०). १.पे. नाम. वीशस्थानकतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: सान्निध करै तस संग, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमंदिर जयकार; अंति: वंदै वधते परमाणंद, गाथा-५. ८१४२२. दीपमालिका कल्प व अईवंतारी सीझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४३६-४०). १.पे. नाम. दीपमालिका कल्प, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८१७-१८४४, पौष कृष्ण, १४, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. दीपावली कल्प, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: गुणनी धरनार हस्यइं, (पू.वि. मात्र अंतिम किंचित् अंश है.) २. पे. नाम, अईमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. रत्नाकर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर वांदीने; अंति: पइ धन धन ते मतिवंता, गाथा-१८. ८१४२३. (#) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३७-४०). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: (-); अंति: गुण पभणो रे कल्याण, ढाल-२, गाथा-१८, (पू.वि. ढाल २ की गाथा ८ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम, आदि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर सांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि; अंति: अहनिस करै प्रणांम, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ६. पे. नाम, वीर स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जगदाधारसार; अंति: कल्याण० करी सुपसाय, गाथा-३. ७. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर ते सिद्ध थया संघ; अंति: देवचंद्र पद लीधोरे, गाथा-८. ८१४२४. सिद्धचक्र स्तवन, अष्टमी स्तवन व सिद्धाचल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४३२-३६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __मु. अमृतसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: र कहै तरो नवकारथी जी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम, अष्टमी लघुस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धमल विरा; अंति: सफली सहु आस, गाथा-९. ३. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करीए वि; अंति: पद्म कहै भव तरीय, गाथा-१०. ८१४२५. (+) महावीरजी स्तवन, राजुल रहनेमि सज्झाय व दिवाली स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १४४४०-४३). १.पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: (-); अंति: शांतिरत्न रस पीधा रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम, राजुलरहनेमि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में प्रतिलेखक ने "आमां छेल्ली गाथामां कर्तानु नाम नथी अधूरी जणाय छे. ऐसा उल्लेख किया है. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेई ध्यांने; अंति: सर्व सतीमा सिरदार रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १९७५, आदि: श्रीसिद्धारथ नंदन; अंति: मोक्षवर्या शुभ दिवसे, गाथा-१२. ८१४२६. माणभद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४४११, १०४३५-३८). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-९. ८१४२७. (#) चौदगुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३५). १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अणुव्रत को पुष्ट करै, (पू.वि. गुणस्थानक ५ अपूर्ण से हैं.) For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१४२८. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. श्रीपालनगर, प्रले. पंन्या. वीरविजय गणी (गुरु पं. रूपविजय); गुपि.पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपलविहरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १५४४०-४३). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हवे इंद्र आदेसे धनदत; अंति: ज्ञानविमले० एह वखाण, गाथा-३३. ८१४२९ (+) गौतमस्वामी छंद व गौतमस्वामी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १२४२३-२६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुटै संपति कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो गोअमस्स सिद्धस; अंति: ह्रीं फुट फुट स्वाहा, (वि. विधि सहित.) ८१४३० (#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२-३६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-२ गाथा-३ अपूर्ण तक हैं.) ८१४३१. (+#) लघशांति, कंडलीलेखन प्रक्रिया व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १७४३७-४०). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक १४ से हैं.) २.पे. नाम, कुंडलीलेखनप्रक्रिया, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. ___सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीऋद्धि; अंति: दृग्गणितैक्यवृध्याः. ३. पे. नाम. संखेसरपारसनाथ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर; अंति: मुजनै भवसायरथी तारौ, गाथा-५. ८१४३२. पौषधादि विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११,१६-१९४४२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहीलोगस्सश्नो; अंति: (-), (पू.वि. पडिलेहणविधि अपूर्ण तक हैं., वि. पौषधविधि, राइप्रतिक्रमणविधि व पडिलेहणविधि सहित.) ८१४३३. (+#) एकादशीतिथि सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. बीलपुर, प्रले. पं. जुगता; पठ. पं. अभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). १.पे. नाम, अंतरिक्षपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. समतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदिः (-); अंति: भणै नित हित काज ए, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण से हैं.) २.पे. नाम, एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लेसी, गाथा-७. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. श्रीधर, पुहि., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद; अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-३. ८१४३४. अजितनाथ व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०४२७-३०). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडलो नीहालु रे; अंति: आनंदघन मति अंब, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-१०. ८१४३५. (+) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १३४३३-४५). ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरणसरण; अंति: ध्यावता मंगलीक करो. ८१४३६. (+#) पार्श्वनाथ व शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४२२-२५). १. पे. नाम. लोढणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी; अंति: विमल राम नमे करजोड, गाथा-५. २.पे. नाम. सेव॒जारो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ठंडो रे डुंगर; अंति: पामे परम कल्याणोजी, गाथा-८. ८१४३७. सोलसती सज्झाय व दीक्षाविधि लंकागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १८४३२-३६). १. पे. नाम. सोलसती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. लुंकागच्छे दीक्षाविधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीक्षा विधि लंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. अन्नंगिन्हंतंपि न समणं पाठ तक ८१४३८. (+) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४४११, १३४३७-४०). आदिजिन स्तवन, ऋ. राम, मा.गु., पद्य, वि. १८२८, आदि: गुण संपूरणधारी हो; अंति: राम० सुध धरम परकास, गाथा-१२. ८१४३९ (2) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४३५-३८). औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: जगत सूपनो जाणि रे; अंति: ज्यां भज्या भलो होय, गाथा-४. ८१४४० (#) अष्टमी व एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३०-३३). १.पे. नाम, अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१४४१ (#) कमलश्रेष्टीनी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. घोघाबंदर-भावनगर, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कमलश्रेष्ठनी कथा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, २०४४७-५०). कमलश्रेष्टी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)धम्मोय तारणं सरणं, (२)विजयपुर नगरने विषइ; अंति: ते धर्म ते त्राण छे. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१४४२. (*) दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १७८३ माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल. लोहीयांणागढ, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, १५X३७-४०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समयसुंद० सुप्रसादो रे, ढाल ४, गाथा १०१. ८१४४४. (#) छकायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ११x४०-४४). ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि पृथ्वीकायनो आउखो अंति एवं ३०३ जाणवा सही. ८१४४५. कुमति एकवीस बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ५-१ (३)=४, दे. (२४४११.५, १५२९-३२). प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समकित तो सरदहण रूप; अंति: समकीती होसी सो जाणसी, (पू.वि. प्रश्न- १३वा अपूर्ण है.) , ८१४४६. (*) पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५-१ ( ४ ) = ४, प्र. वि. भीडभंजनप्रसावे. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे., (२४.५X११, १२४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि (अपठनीय); अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-५ गाथा - १ अपूर्ण से ढाल - ६ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है., वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ८१४४७. (#) नवपद व सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५- १ (१) =४, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक १ से ४ लिखा है, परंतु प्रथम कृति अपूर्ण होने से काल्पनिक पत्रांक दिया है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १५४४२-४५). १. पे. नाम. नवपदनी पुजा, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: बुध ग्रंथे प्रसीद्धा, पूजा-९, (पू.वि. पूजा-९ के उलाला की गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत मुखपंकजवासिनी, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १७ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१४४८. सम्यक्त्वना ६७ बोलनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २५X१२, १२X३२-३६). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कदंबिनी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ से ३९ अपूर्ण तक व गाथा ६१ अपूर्ण से नहीं है.) ८१४४९. सम्यक्त्व विचार व समस्या दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे. (२४४१२, १२x२८-३२)१. पे नाम. सम्यक्त्व विचार, पू. १अ ४अ, संपूर्ण. ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि एहवं सांभलीने शिष्य अंति: स्वरूप विचारवो. २. पे. नाम समस्या दुहा, पू. ४अ, संपूर्ण प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: अंबू श्रुत श्रुतवाहन, अंति: राम पिता कर देंगे, गाथा-२. ८१४५०. (#) कल्याणमंदिर की भाषा, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. मलारगढ, पठ. श्राव. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भाषा कल्याणमंदिरजी की. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १०४३०-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि परम जोति परमातमा परम; अंति वणारसी० समकित सुद्धि, गाथा- ४४. 5 ८१४५१. (४) पौषकृष्णदशमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५X१२, १५X४२-४५). पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि अभिनवमंगलमालाकरण: अंतिः स्मरणादानंदमाला भवतु. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१४५२. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे. (२५x११, १५X३२-३८). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजिन साहिबा अति: मुनिकुशलो० गावे हो, गाथा- ७. २. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन देह जीवडे; अंति: कहत जिनंदादास रे, गाथा - १३. ३. पे नाम. आवककरणी सज्झाय, पू. १आ-२अ संपूर्ण मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रावक तुं ऊठी परभात अंति करनी छे दुखहरनी एह, गाधा-१५. ४. पे नाम बीशविहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा. पद्य वि. १८२४, आदि सीमंधर जूगमंधर बाहू, अंति: जेमल० अठारसे चौबीसो गाथा ९. , . ५. पे नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पू. २आ-३-अ, संपूर्ण, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि सांभल जीवा रे दानज, अंतिः दूरगदास० केवलमी पायो, गाथा-४. .पे. नाम गौतमस्वामी सज्झाय, पू. ३अ- ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत वाणी वागरी जिण; अंति: निरभेय ठाम बैठाय, गाथा -१८. ८१४५३. (-) नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, माणभद्रजीरो छंद व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१)= ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (२६४१२, १०x२७-३०). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति लब्दविजे० मनोरथ माय (पू.वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं "विज पदव लहे" पाठ से हैं.) २. पे नाम. माणभद्रजीरो छंद, पू. ३अ ४अ, संपूर्ण, वि. १९वी आश्विन कृष्ण, ९, अन्य परतावचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा समरो; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २७ ३. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज अति: कहे पुरो मनोरथ माय, गावा-४. ८१४५४. सुभद्रासतीनो चोढालीया, अपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. छगनचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सुभद्रा० चो०., प्र.ले. लो. (१२८४) ना कछु गज से नापीये, वे. (२४४१२, १७X३२-३६). " सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुल मर्म धर्मनो ए, ढाल -५, (पू. वि. ढाल २ गाथा ६ अपूर्ण से हैं.) ८१४५५. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. जैदे. (२४४११.५, " १२x२८-३२). साधुपाक्षिक अतिचार-श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. ८१४५६. (*) छोटी साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२४.५x११.५, १६x४५-४८). For Private and Personal Use Only साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: रिष जेमलजी इम कहे, गाथा - ५८. ८१४५७. (+-*) वणजारानी सज्झाव व ऋषभजिन पद, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११x२१-२६). १. पे. नाम. वसंत रास वणजारा, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय वणजारा, मा.गु, पद्य, आदि: विणजारा रे पहिलु गण; अति अंग र विणजारा रे (वि. प्रतिलेखक गाथांक नहीं लिखे हैं व अंतिम गाथा के अंत में ६६ लिखा है.) २. पे नाम ऋषभजिन पद. पू. ३४-३आ, संपूर्ण आदिजिन पद, सकनचंद, मा.गु., पद्य, आदि वचरत वचरत आविउरे गज, अंतिः सेदुदकेक कभभामा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८१४५८. तीर्थंकरवरसीदान स्तवन व सुधर्मास्वामी प्रभाति, संपूर्ण वि. १८९९ माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पालनपुर, पठ. श्रावि. नंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२, ११४३६). १. पे. नाम. तिर्थंकरवरसीदाननो स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पालणपुर. जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवरदाईना चरण नमी; अति लब्धी० वंछित पाया रे, गाथा - २८. २. पे नाम. सुधर्मास्वामीनु प्रभातिगीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गीत- प्रभाति, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुधर्मा वंदीय; अंति होवे नीत जयकारी, गाथा-५. ८१४५९. () बाहुबलभरथरो छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी भरथबाहुबल. अक्षरों की Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १२X४५). भरतबाहुबलि सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि संपति करण सदा सरसति अंति (-), (पू. वि. गाथा-७२ अपूर्ण तक हैं.) ८१४६० (+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५ १३४३२-३६) " " पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु. पच, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू, अति: (-), (पू.वि. गाथा ६३ अपूर्ण तक है.) ८१४६१. मृगालोढा चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : मृगालोढा., दे., (२४४१२.५, १७x४२-४५). मृगापुत्र चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वंदु वीतरागने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८१४६२. (+#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२२, वैशाख शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. गढवाली, प्रले. मु. खीमराज (गुरु मु. निहालचंद ऋषि); गुपि. मु. निहालचंद ऋषि (गुरु मु. दिपचंद ); मु. दिपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x११.५, ११४३२-३६). " रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: दीप० गुण गावीया, ढाल -६, गाथा- ३१. ८१४६३. समवसरण बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. हुंडी समोसरण, जैदे. (२५.५५११, , १३x३२-३६) समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति द्वारनि परे जाणवा, (पू.वि. "नाणवादी २" पाठ से हैं.) ८९४६४. अरिहंतगुण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७ भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले स्थल, रतलामनगर, प्रले. श्राव. भाईचंद; अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतीनाथ प्रसादात् दे. (२५x११.५ १०२७-३०). अरिहंतगुण स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि पहेले पद अरिहंतने रे; अंति: उत्तम नमे नीतवीस, गाथा-८. ८१४६५. प्रतिक्रमणसूत्र, सज्झाय व पद्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे ६, जैवे. (२५x११, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. अपूर्ण से हैं., वि. २. पे. नाम जिनेसर पद पू. ५अ संपूर्ण 1 १४X३२-३६). १. पे. नाम. शांति वृद्धिशांति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पठ. सा. लाला (गुरु सा. वाल्हा); गुपि. सा. वाल्हा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी, शांति. संबद्ध, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति सा देवी हरउ दुरीबाई, (पू.वि. सुअदेवया अदेवया तथा खित्तदेवया की २ स्तुति हैं.) For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मोहिलीयो है; अंति: संपति निरखत मूरत जैन, गाथा-३. ३.पे. नाम. कृष्ण पद, पृ.५अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: अने हरिजि मोरी बहिया; अंति: सूरदास० मेरी बहिया, गाथा-४. ४. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अस्थिवत् बगवत्वैव; अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. ५. पे. नाम. वसंतसमये नेमराजीमति पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. दीप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: समुद्रवजय शिवादेवी; अंति: दीपो० संघ हरख अपार, गाथा-१०. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे हो लाल प्रभु; अंति: रहु सदाइ निहाल, गाथा-३. ८१४६६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १६४५३). १. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय-आचारांग, सुयगडांग, अंतगडदशासूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग पहेलुं का; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवं र; अंति: देवनां सर्यां काज रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचौ रे दान तण; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. ८१४६७. बाहुबली व धन्नेरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४४०). १.पे. नाम, बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: विमलकीरति गुणगाय, गाथा-१२. २. पे. नाम, धन्नेरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: विद्या० निस्तार रे, गाथा-७. ८१४६८. (+) अढारहजारशीलांगरथधारीना भेद व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, १४४२८-३८). १. पे. नाम. अढारहजारशीलांगरथधारीना भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, आदि: चेतन १ अचेतन २ एवं; अंति: चेतन अचेतन का जाणिवा. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिननी मूरति मुजन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१४६९ (+#) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.३६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २१-२५४३२). १.पे. नाम, जिन प्रार्थना स्तति, प. ६अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनदर्शन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: फलं श्रीवीतरागो जिन, श्लोक-२, (पू.वि. सकलार्हत् स्तोत्र के दो अंतिम श्लोक अपूर्ण से हैं.) २.पे. नाम. नेमिनाथजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदीय पाय; अंति: मंगल करो अंबिकादेवीआ, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिनाथजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: विक्षेपोर्जितराजकं; अंति: रूढोलसद्विश्वासेविता, श्लोक-४. ४. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी रथ फेरी; अंति: ए दंपति दोइ सिद्ध, गाथा-६. ५. पे. नाम. गिरनारतीर्थ स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखि है. मा.ग., पद्य, आदि: गिरनार गिरीश्वर; अंति: सवि दरै टालै आपदा, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथजी का चैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: पार्श्व जिनेश्वरम्, श्लोक-२. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं शिवदम्, श्लोक-७. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन थुइ, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: मालामालानबाहर्दधददध; अंति: वलयवलयश्यामदेहापदेहा, श्लोक-४. ९. पे. नाम. चिंतामणी स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणिपासजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी गई है. ___ सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्रं; अंति: सुधर्मो कृति शर्मदः, श्लोक-१३. ८१४७० पार्श्वजिन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. मनसुख; पठ. श्रावि. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १०४३२-३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जय जयकार रे सनेही, गाथा-१३, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: जिनचंद्र० चित आणी रे, गाथा-९. ८१४७१. सुमतिजिन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी खंडित है., जैदे., (२४४११, २१४३७-४०). १.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर सामी अरज सुणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८१४७२. पाँच सौ साठ अजीव भेद विचार व रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १५-१८४३९-५२). १.पे. नाम. पाँच सौ साठ अजीव भेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)संठाण वण्णरसया गंधे, (२)१०० संठाण परिमंडल१; अंति: भेद अजीवना कह्या छे. २. पे. नाम. रूपीअरूपी भेदअभेद गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ मात्र लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरूपी अजीवना भेद ३०; अंति: अनित्य ५३० ___ अनित्य, संपूर्ण. ८१४७३. तारंगातीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ९४२२-२६). अजितजिन स्तवन-तारंगामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: दरसन कीयो आज तारणगढ; अंति: जीननी साणदीयो डंको, गाथा-१०. ८१४७४. (+#) चौदराजलोक विचार, साधारणजिन सतवन व १२ देवलोक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४२२-३३). १. पे. नाम. चौदराजलोक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सात राजलोकनै सात; अंति: ए चोवदै राजलोक विचार. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन मांहरो; अंति: सिवचंद०तूहीज दीनदयाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. देवलोक कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ देवलोक कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८१४७५ (+#) रोहिणी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:रोहिणीनुतव०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१२, १४४३०-३३). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ तक है.) ८१४७६. चौदनियम गाथा सह बालावबोध व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १४४४०-४५). १.पे. नाम. चौदनियम गाथा सह बालावबोध, प. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. १४ श्रावकनियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त कहिता सचित्त; अंति: नियम संभाले चीतारै. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. ८१४७७. सौभाग्यपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११.५, १५४३५-३८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८१४७८. कालभेद विचार व गुणस्थानके भाव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ४३५८-२६). १. पे. नाम. कालभेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कालमान विचार, सं., गद्य, आदि: १ समयोत्यंत सक्ष्मः; अंति: (-). २.पे. नाम, गुणस्थानेषु भावाः, पृ. १आ, संपूर्ण. गुणस्थानके भाव विचार, सं., गद्य, आदि: चत्वारो भावाः; अंति: मित्येवंरूपास्रय. ८१४७९ (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, ले.स्थल. कोटारामपुर, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३५-४०). १.पे. नाम. दस यति धर्म भेद, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: खंतीक० खिमारी शनै; अंति: नीकलै इसी तरसै एक सौ. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: क्षमा० अविचलराज, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कोटारामपुर, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमूं नेम; अंति: क्षमा० करै प्रणाम, गाथा-३. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर विहरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निशदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीयै कोडि कल्याण, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पास० नील; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ८१४८०. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खीमेलनगर, प्रले. इंद्रराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३५). नेमराजिमती बारमासा, म. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: काति कंत विना किम; अंति: जोडि कहे कवि कानो रे, गाथा-१५. ८१४८१ (4) मृगापत्रनी सज्झाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १८४४२-४५). १.पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सहामणो; अंति: सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२४. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१४८२. छप्पनकुमारिका व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. आंबाराम पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४२६-२९). १. पे. नाम. छप्पनकुमारिका स्तवन, पृ. ३०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५६ दिक्कुमारिका स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नाभी तणो परिवार, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तु तो महाविदेह खेत्र; अंति: गुण गाउ नीत ताहराजी, गाथा-९. ८१४८३. वज्रस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११.५, १३४२५-२८). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१४८४. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४४११.५, ११४२५-२८). नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमीए नेमजीणंद गढ; अंति: सील भव दुख टलसे रे, गाथा-९. ८१४८५. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८३१, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३५-३८). ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: बनारसी० कर्म के हैत, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१४८६. केशीगौतम व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., गु., (२५४११,१४४३२-३५). १.पे. नाम. केशीगौतम सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खोडीदास० बलिहारी रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: घडी एकतणो वीसवास सास; अंति: जोड रही चोमासे रे, गाथा-२४. ८१४८७. माणिभद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४३१). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: इम सुजस कहे, गाथा-९. ८१४८८. (#) नेमिजिन होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२८-३२). नेमिजिन होरी, मा.गु., पद्य, आदि: खेलइ नेमि कन्हझ्या; अंति: धोहइ मुगतिस्यु प्यार, गाथा-१५. ८१४८९. नेमराजुल बारमासा व थावच्चामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४.५४१२,१६४२६). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वर हं; अंति: तुम नामे संपति थाया, गाथा-१६. २.पे. नाम, थावच्चामुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्र मझार रे; अंति: मेघविजय इम विनवे ए, गाथा-१४. ८१४९०. संसारसमुद्र उपमा, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. जीवीबाई शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संसाररूपसमुद्र., दे., (२४४११, १५४३२-३६). संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: जेम समुंद्रनी बाहेरन; अंति: भये करी गुजी रयो छे. ८१४९१. चैत्यपरिपाटी, आदिजिन स्तवन व नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, ३२४१४-१८). १. पे. नाम. चैत्यपरिपाटी चौवीसी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, म. धर्मसी, मा.ग., पद्य, आदि: चैत्यप्रवाडै चौवीसटै; अंतिः ध्रमसी कहे सांज सवेर, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कुशलकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत प्रभुजीसु लग; अंति: कुशल सदा कल्याण हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण... शीयल नववाड विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वसहि कह निसिज्जेंदिय; अंति: तेल आलेपन न करे. ८१४९२. स्तुति स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:स्तोत्रावलि., जैदे., (२५४११, १४४३५-३८). १. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: लक्ष्मी निवासम, श्लोक-८. २. पे. नाम. सोलसती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आदौ सती सुभद्रा च; अंति: शं सततं मनुष्यः, श्लोक-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम, ज्वालामालिनी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: ज्वाला० तुभ्यं नमः. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमो नमः, श्लोक-४. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मसिंघ, सं., पद्य, आदि: वंछित आस पुरण प्रभू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८१४९३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:छुटकबोल., दे., (२४४११.५, १४४३२-३५). ___ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१४९४. (+#) जिनदत्तसूरि छंद व दादासाहेब गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३७-४०). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि छंद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. रुघपति, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सूं रचीयो छंद मनोहरु, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. दादासाहेब गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अधिक आणंद धरी आसता; अंति: अमर भयो पुण्य अंकुर, गाथा-९. ८१४९५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, ९४२२-२६). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१४९६. वैकुंठपंथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजकोट, पठ. मु. सांवलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४४१२, १७-३२४५७-६०). वैकठपंथ सज्झाय, म. भीम, मा.ग., पद्य, वि. १६९९, आदि: वैकुंठ पंथ बीहामणो: अंति: ह्यो ते तमे करजो माफ. गाथा-५८. ८१४९७. सुधर्मस्वामी गुंहली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४.५४१२, १०x२७-३०). सुधर्मास्वामी गुंहली, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. धीरज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धीरजथी होइ जगीस, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सोहमस्वामी समोसर्या; अंति: हंसथी मोहन मंगलमाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गुंहली, पृ. २आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: चउनाणी चोखें चित्तें; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१४९८. पंचपरमेष्ठि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, २२-२६४१५-१८). पंचपरमेष्ठि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ८१४९९. सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पंडित. वासणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४२८). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगतिलाभै० मन तणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ८१५०० (+) स्तुति सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४४११, २५-३१४६२). १. पे. नाम. कृष्ण लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीनेम जिनेसर कृष्ण; अंति: नमोन्मो वंदन महारी, गाथा-९. २.पे. नाम. अरिहंत स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: उठे प्रभात्य समरीय; अंति: णी प्रभुजी दरसण देवा, गाथा-१५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रभुजी थारा दरसण; अंति: लालचंद० एक त्यारी, गाथा-७. ४. पे. नाम. नवकार महिमा, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. कोटा रामपुरा, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र महिमा, म. लालचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपीजे रे; अंति: लालचदरे प्राणी. गाथा-७. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जासु गुसाहें जमराय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: कामी नरकी अकने कामणी; अंति: कर्या मनुष भो गुमाईय, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. ___ मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: साधे कहै सुणो जीवडा; अंति: देवगुरा रे प्रसाद, गाथा-१३. ८. पे. नाम. सिद्धत्व प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्ध निरंजन; अंति: जे मन अधिक उमाया है, गाथा-१५. ८१५०१ (4) नेमगोपीसंवाद चोवीसचोक, नेमिजिन चोमासुं व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. गणपतसागर; पठ, देविचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे.. (२४.५४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, १२, रविवार. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्या देवी सारदा; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. २. पे. नाम. नेमिजिन चोमासुं स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारा सम जावो रे वाला; अंति: मजीने मलवानो मन साचु, गाथा-६. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, २, रविवार. आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहि., पद्य, आदि: सफल घडी रे मोरी सफल; अंति: शिवचंद०जोरी वंदन करी, गाथा-४. ८१५०२. साधुवंदना बडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १४४२९). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोइसी ऋषभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०७ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८१५०३. (+) अवंतिसकमाल चतष्पदी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:अंवति., संशोधित., जैदे., (२४४११, १६x४२). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०३. ८१५०४. सरप्रियऋषि सज्झाय, संपर्ण, वि. १६९८, आषाढ़ कष्ण, ४, मध्यम, प. ४, ले.स्थल. आगरा, प्रले. म. पण्यसागर; पठ. ग. हीरसागर (गुरु ग. वृद्धिसागर पंडित); गुपि. ग. वृद्धिसागर पंडित (गुरु ग. रंगसागर पंडित); ग. रंगसागर पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, १४४३४). सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवसदा मनि धरू; अंति: उदयरतनसूरिसीस० उतरइ, गाथा-६९. ८१५०५ (+) सीयलनववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,११४३५). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसर नम; अंति: धर्महंस० मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५६. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१५०६. चंदनबाला चौपाई, गुरुमहिमा व अध्यात्म पद, संपूर्ण, वि. १८८८-१८८९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १९४५१-५५). १.पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८८८, फाल्गुन कृष्ण, ४, ले.स्थल. पाली शहेर, प्रले. ऋ. भूमीपाल; पठ. छोटाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:चंदनबाला. चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु मंडत नीलत्तन; अंति: अटल उगाणा राखी रे लो, ढाल-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गुरुमहिमा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आवण जावण बहु दिन; अंति: हुवा तो जोगी अवधुता, गाथा-११. ३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख, १५, प्रले. मु. शिवदास; पठ. छोटाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कुशल, पुहि., पद्य, आदि: चेतानंद मान कह्या मे; अंति: भवीण करो आतमनी वेरा, गाथा-१०. ८१५०७. अनुयोगद्वार बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १३-१५४३५-४२). अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सामाईकरो पार पावणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूसरे बोल निक्षेपा तक लिखा है.) ८१५०८. (+) नववाडी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:नववाडी गीत शील., संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३२). नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन नंदनवन; अंति: जे पालइ हो सील अखंड, गाथा-२८. ८१५०९ (+) नववाडिनो रास, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अईपुर, प्रले. श्राव. हंसराज मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, २०४६२). नववाड रास, मु. सरूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमुं पंच परमेष्ठी; अंति: सरूपचंद आणंद सुख करौ, गाथा-१४८. ८१५१० (#) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४३१). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८१५११. नवपदगण वर्णन, भरतचक्रवर्ती व प्रसन्नचंद्रराजर्षि कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १७४६०). १. पे. नाम. नवपदगुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १२ गुण श्रीअरिहंतजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आचार्य के २७ वे गुण तक लिखा हैं.) २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)हवे धरम अपरलोकने, (२)अष्टापदपर्वतने विषे; अंति: पाली मोक्ष पोहता. ३. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजऋषि द्रष्टांत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रसनचंद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पोतनपूर नगर तिहां; अंति: (-), (पू.वि. "में दुर्ध्यान ध्यायु केहनो पुत्र केहनो" प्रसंग तक हैं.) ८१५१२. ज्ञानपंचमी सज्झायद्वय व एकादशीतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, ९x४०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसरि, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुना प्रणमु; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: उदयरतन० लीला लहसे, गाथा-७. ८१५१३. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५४, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लाखेणो सोहोवे जनजी; अंति: तो भांगे दुख जंजीर, गाथा-८. ८१५१४. पुण्योपरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, २२४२२). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फल आस रे, गाथा-१६, (वि. अंत में एक दोहा दिया गया है.) ८१५१५ (+) जिनगुण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३५). जिनगण स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: करण दोय इकवालधी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८१५१६. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रीषभ., जैदे., (२२.५४१२.५, १६४३०-३३). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: दीख्यारा दिनथी न; अंति: गुणतालीसमी ढाल रसाल, गाथा-१३. ८१५१७. (#) मेघकुमार सज्झाय व पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १७४५२-५७). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. नयसिंह शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नयसिंह सीस० जिवजिवरा, गाथा-५८, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पढमारंभ परम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८१५१८. (+) २४ दंडकगर्भित स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४३-४५). २४ दंडकगर्भितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ८१५१९ (+) विजयकुमर रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:विजेकुमर., संशोधित., दे., (२६४१२, १३४३६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ८१५२०. जीवविचार प्रकरण व पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, कुल पे. २, पठ. श्राव. दयालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४२८). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९१३, फाल्गुन शुक्ल, १२, शनिवार. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से २. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन शुक्ल, १४, सोमवार. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ८१५२१. नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८११, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे.२, ले.स्थल. खीमेल, जैदे., (२५४११, १४४३३-३६). १. पे. नाम. नेमिजिनस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. पं. मनरूपसागर (गुरु मु. मोहनसागर); करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगर सोहामणो; अंति: मनरु प्रणमे पाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहेन; अंति: पभणै जिनमूरति लटकाली, गाथा-६. ८१५२२. स्याद्वाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १६४३२). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमति श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ८१५२३. बीजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४११.५, ११४३२). बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: देवनां सर्यां काजरे, गाथा-९. ८१५२४. (+) जिनदत्तसूरि स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चरण की चरण की चरण; अंति: आसा पूरो सुख करन की, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरिजी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनदत्तसुरिंद पर; अंति: श्री जिनहर्षसुरिंदा, गाथा-३. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनदत्तसूरीसरुरे; अंति: श्रीजिनहर्षसूरीस, गाथा-६. ८१५२५. नंदिषेणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, २३४२०). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जईए पर घर; अंति: एकलो पर घर गमण निवार, गाथा-१०. ८१५२६ (4) सरस्वती मंत्र व स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. गंगादास आत्माराम साधु; पठ. सा. भावश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, ९४२३). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति की प्रतिलेखन पुष्पिका मात्र है. ___सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत; अंति: १०८ जपजीभ्यासमी चीनं. २. पे. नाम, स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: ऋषभ कहे० वंदना जो, गाथा-१७. ८१५२७. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१२, १०४३६). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंतिः सा अमह सया पसत्था, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बिज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः श्रावण सदि दिन पंचम; अंति: सफल थयो अवतार तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१५२८. १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १४४४८). For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८१ अपूर्ण से ११३ अपूर्ण तक है.) ८१५२९. नंदीषणमुनि व सोलह सती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १०x२६). १.पे. नाम, नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरुने कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१६, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा- ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८१५३०. चारगति चौवीस लक्षण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, १०४३०). ४ गति २४ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदिः कषाय घणी हुइ अमेलता; अंति: जीव मुगत गामी जाणवो. ८१५३१ (+) चोवीसतीर्थकरना जन्म दीक्षादि वर्णन व बारह कुल गोचरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४५). १.पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर माता-पिता, दीक्षा, च्यवन, नक्षत्रादि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १२कुलभिख्या नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, आदि: सेजाई पुण कुलाइं; अंति: पिंडैषणाध्ययने. ८१५३२. औपदेशिक सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. भाणपुर, प्रले.ऋ. गंभीरचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४४११, १२४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तुं तो धरम म मुकीस; अंति: चिर कालें नंदोरे, गाथा-८. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. दहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: हरहराट नहिं हंसत; अंति: गद० संग किम करे, गाथा-१. ८१५३३. (+) नेमिजिन पद व पांचमंगल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रारंभ में कुछ कृतियों के नाम लिखे हैं., संशोधित., दे., (२५४११, १३४३१). १.पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हा एक तेज लडीया ए मो; अंति: लाणा जाय चडे गीरनारो, गाथा-४. २. पे. नाम. पाँच मंगल स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ मंगल स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: उस पहलो मंगल अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१५३४. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. केवलराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १३४४२). नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: पीरथम मनाउ पद सीरी; अंति: सजावो गे मेरे मारु, गाथा-२२. ८१५३५. चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:चंदराजाकी ढाल., जैदे., (२४.५४१२, १९४४८). ___ चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१५३६. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १८४३८). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूलिभद्र कथा अपूर्ण से कुरुदत्तपुत्र कथा अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" ८१५३७ (#) कपिलमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५x१२, २६x४७). " कपिलमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवरधमानजिणवर नमूं अंति (-) (पू.वि. ढाल ४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८१५३८. (+) श्रावक के गुण दोषादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४४११.५, १७x४०). १. पे नाम श्रावकना २१ गुण, पृ. १अ. संपूर्ण. आवक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि १ श्रावकजी ९ पदार्थ अति खामणा करइ संथारो करे, अंक- २१. २. पे. नाम. श्रावकना ८ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ आवक गुण, मा.गु., गद्य, आदि १ श्रावक केहवा होय; अतिः परिमाणा आणी बोले. ३. पे. नाम. सामायिकना ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ वेला कुबेला जाणे; अंति: दोष कायाना जांणवा. ४. पे नाम. अठारह पौषध दोष, पू. १आ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि १ पोसा निमित्ते खापी, अंति सुख साता पुछवी नहीं. ८१५३९. जीवोपदेश सज्झाय व जिनवाणी पद, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. इंदौर, प्रले. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४११.५, १६४४५). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय जीवोपदेश, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: घन समज मन मेरा मतवाल अति धा रोगे तुमही काजेजी, गाथा - १०. २. पे नाम. जिनवाणी पद, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि प्रभु धारी बानी छै; अंति जगत में जिनदास डोर, गाथा- ६. ८१५४०. औपदेशिक लावणी व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४X११, १०x४०). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि खबर नही आ जगमे पल, अंति (-), गाथा-११, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा- ८ तक लिखा है) २. पे नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगा का सुख पाइया जी, गाथा - ३८, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ अपूर्ण से लिखा है.) ८१५४१. सिद्धाचल स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२४४११, १२४३६). " १. पे. नाम सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीरे सिद्धाचळ, अंतिः सिद्धाचल गुण गावा, गाधा-५. २. पे नाम. सिद्धाचल स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि नरनारी नरनारी, अंतिः श्रीसिद्धाचल नरनारि, गाधा-५८१५४२. पांचपदारी बनणा व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२४.५४१२, १६x४४). १. पे नाम. पांचपदारी वनणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " पंचपद वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले पद श्रीसीमंदिर; अंति: र १ क्रोड ८ वार वनणा, पद-५. २. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, बि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद, अंति: (-), गाथा-१२, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४ तक लिखा है.) ८१५४३. (+) मेघकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२४४१२, २०३५). For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: निवार हो स्वामी, गाथा-२२. ८१५४४. अरणीकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. हरखचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३७). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-१८. ८१५४५. शिखामण छत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. वीरक्षेत्र, प्रले. ग. खेमविजय; पठ. श्राव. पितांबर शेठ गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंतामणजि प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७९६) भग्नपृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२६). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विर० वांणि मोहन वेलि, गाथा-३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२८ अपूर्ण से है.) ८१५४६. (+) १२ पूर्णिमाफल चौपाई, ज्योतिष श्लोक व संक्रांतिफल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४९). १.पे. नाम. बार पूर्णिमा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ पूर्णिमाफल चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पय प्रणमी बोलि; अंति: सवि जनमन आणुं निसदीस, गाथा-११. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: जंबू चासनयूरे भारद्द; अंति: घोडां आदित्यवार, (वि. ओघनिर्युक्त्यादि गाथा युक्त.) ३. पे. नाम. संक्रांति का वार फलाफलम्, पृ. १आ, संपूर्ण. संक्रांति वार फल, सं., पद्य, आदि: संक्रांतिमादित्यदिने; अंति: मुंडै क्षपये धरत्री, श्लोक-७. ८१५४७. (+) ढाईद्वीप विचार व लब्धि थोकडो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १२-८(१ से ८)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७-१९४२८-३९). १. पे. नाम, अढाई धीपरो विवरण, पृ. ९अ, संपूर्ण. ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अढीदीपमाहे ८०००५५०; अंति: पचास नदी अढीदीपनी. २. पे. नाम. लघी को थोकडो, पृ. ९अ-१२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-१७ अवधिज्ञानभेद तक है.) ८१५४८. (+) पडिलेहणविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १२४३८). मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. भानुमेरुगणि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय पणमेवि; अंति: भानुमेरु० देयो जगदीस, गाथा-२१. ८१५४९ (+#) औपदेशिक व मेतार्यमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, २०४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मा.ग., पद्य, वि. १९१९, आदि: श्रीजुगगुरु पद वंदना; अंति: हाजी काइ उदीनहसी जगस, गाथा-२१. २. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋ. मनरुपजी, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: मेतारज वंदु पाप; अंति: मनरूपजी गुण गाया, गाथा-९. ८१५५०. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:गतागति., दे., (२४.५४११.५, १६४५४). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलि नरकनी आगती २५; अंति: ३२ गति ५६३नी. ८१५५१ (+) चोवीसीढालबंध स्तुति व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, १९४६०-६५). For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. स्तवनचौबीसी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार. स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महासुति पूर्ण करी, स्तवन-२४. २.पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनीतां भली वीर; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१३. ८१५५२ (+#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-३१(१ से ३०,३४)=४, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४३४). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३१अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, म. विजयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: ऋषभ जिणेसर साहिबा; अंति: रे विजयचंद गुणगाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. मु. विजयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति० लागुराव गुरुप; अंति: हां शंतिसर गुण गायजी, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: वीनवै राजलराणी हो; अंति: विलसो मोख्य मैहलमैजी, गाथा-९. ४. पे. नाम. कायाजीव सज्झाय, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, म. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायाजी वाडी कारमी; अंति: सेवक० जिम खोड नलाई, गाथा-१०. ५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभुसु प्रीति; अंति: मुननी० माहि अवसर आणी, गाथा-५. ६. पे. नाम. धरमनाथजिन स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, म. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेशर ध्यावो; अंति: महानंदमुनी सिर नामै, गाथा-५. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. अंतिम वाक्य खंडित होने के कारण कर्त्तानाम अज्ञात लिया गया मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर सेवीइ; अंति: वीनवै भाखै मुनी०, गाथा-५. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण. म. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब श्रीसीमंधर; अंति: नंद० आपो मन उलट धरी. गाथा-८. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. नेमनाथराजेमती लेख, पृ. ३५अ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती सज्झाय, क. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वार आवौ मिंदर माह रै, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सोभागी रे जिनव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१५५३. मेघकुमार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४११, १०४३७). मेघकुमार सज्झाय, म. जिनसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद स्वामिनी; अंति: प्रेमे प्रणमे हो पाय, ढाल-६, गाथा-५२. ८१५५४. श्रावककरणी सज्झाय व नेमराजल लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४३ श्रावककरणी सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दख हरणी छै एह, गाथा-२२. २.पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अर्ज; अंति: फेरा नहीं फिरनेकी, गाथा-१०. ८१५५५ (-) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१२, ११४३३-३७). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ८१५५६. (4) आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार व औपदेशिकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४४५). १. पे. नाम, आठ कर्म एक सौ अठावन प्रकृति विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: विषै उद्यम करवौ. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ८१५५७. (+) कायस्थिति बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२, २१४५१). कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंति: नथी आंतरो नथी पडे. ८१५५८ (+) झांझरियामुनि सज्झाय व दहासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:झांझ०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४६४) भग्निटुगीता सघर, (८१०) वासी वीकानेररा, दे., (२४४१२, १४४३९). १.पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: इम सांभलता आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. २.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. दहा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ८१५५९ सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, प्रले. सा. मेताबजी (गुरु सा. मीराजी महासती); गुपि.सा. मीराजी महासती (परंपरा सा. सत्याजी); सा. सत्याजी (गुरु सा. कलुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तवनछुटक., दे., (२४४१२, १८४४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, ऋ. हीरमनि, मा.गु., पद्य, आदि: ममता मारी मनतणीजी; अंति: हीरमुनि० करजो मीत, गाथा-१३. २.पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. जंबूकुमार सज्झाय, मु. हीरा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबसम वैरागीयो जी; अंति: नाजी नाम थकी निस्तार, गाथा-१२. ३. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राम रीषीसवर वंदीय जी; अंति: भवबंधनथी छोड, गाथा-१६. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: काया वादली कारमी रे; अंति: हीराचंद० चेतो नरनार, गाथा-१५. ५.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: एक कनक अरु कांमणी; अंति: इस भव अधिकको तोल, गाथा-११. ६.पे. नाम, कलियुग सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग मत जाणो; अंति: राम कहे० धरम करो भाई. गाथा-१०. ७. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: धोनवडि अवधारो; अंति: कहे जिनहरख विचार, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पाखंड परिहार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. मेताब (गुरु सा. मीराजी माहासती); गुपि.सा. मीराजी माहासती, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-पाखंड परिहार, मु. राम, पुहि., पद्य, आदि: सारी लोका गंधी देही; अंति: राम०करो धरम ध्यान हो, गाथा-१०. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: न हुं परणी न हुं; अंति: पीण अंगसु अंग नमावू, गाथा-८. ८१५६० (+) अवंतिसुकुमाल रास, मौनएकादशी स्तवन व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. पोसिणा, प्रले. पं. थिरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १८४४०-४५). १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०५. २. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. ३. पे. नाम, चेलणासती सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. ८१५६१. पोसहकुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पोसहकुलकं., जैदे., (२४.५४११, १५४३२-३९). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९तक हैं.) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: छत्रीस सहिसहिस दिहाड; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक के बालावबोध है.) ८१५६२ (4) बोल यंत्र-कुलकोडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २५४२२). बोल यंत्र-कुलकोडी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का पाठांश है.) ८१५६३ (#) ज्ञानपंचमी ढाल व पंचमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १२४२९). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी ढाल, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तेहने तस उपकार तपशुं, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस दंडक वारवा हुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१५६५ (2) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४१). १. पे. नाम. बारह भावना नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनित भावना १ असरण; अंति: १० लोक ११ बोधि १२. २. पे. नाम, बारह उपयोग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान१ सुतज्ञान; अंति: १२ केवलदर्शन. ३. पे. नाम. चौदह गुणठाणा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ सास्वादन२; अंति: सयोगी १३ अयोगी १४. ४. पे. नाम, पंचवीस प्रकारे पुद्गल, पृ. १अ, संपूर्ण. २५ पुद्गल प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: रातु कालु नीलु पीलु; अंति: उह्नउ चोपडउ लूखउ. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ५. पे. नाम, बोलसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८१५६६. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १९४४२). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१५६७. (+) वीसस्थानक सज्झाय, विहरमान स्तवन व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक २९ को सुधारकर १ लिखा हुआ प्रतीत होता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १४४४०). १. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, क. पद्मविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय श्रीजिनवर चउवी; अंति: मविजय कवि अण इम कहिइ, गाथा-८. २.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन स्तवन, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सीमंधर करूं; अंति: दयाकुशल वंदइ वली वली, गाथा-७. ३. पे. नाम. जलसचित्ताचित्त विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१५६८. (+) पार्श्वजिन स्तवन व शीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. सोनबाई श्राविका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक शुक्ल, ८, पठ. श्रावि. सोनबाई श्राविका, प्र.ले.पु. सामान्य. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-श्रावकशिक्षा, मा.गु., पद्य, आदि: बेहेनी नरभव पामी; अंति: सीवसुख लहो रे वीसाल, गाथा-४. ८१५६९. आलोयणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४.५४११, १४४४५). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (१)मायामोसं पि तुतुणं, (२)मायामोसं पि मोत्तुणं, (पू.वि. जीवपरितापना आलोयणा अपूर्ण से है.) ८१५७०. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). श्रीपाल चरित्र, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-७ तक है.) ८१५७१. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडीःश्री०चो., जैदे., (२४.५४११.५, ८४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-२ गाथा-१ से गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ८१५७२ (4) जीवविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ७ तक है) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीने भुवन; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८१५७३. शनीशरदेवनो छंद, कामदेवसार व चौदपूर्वनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १८४४४). १. पे. नाम, शनिश्चर छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वलि सनिसरदेव वखाणीइं, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अस्त्रीरे कामदेव जागे तेणो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. स्त्री कामदेव जागत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अंगुठा हेठे जमे वासो; अंति: तालुये रहेवासो गडी ४. ३. पे. नाम. चौदपूर्वनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद पूर्व १ अग्र; अंति: सासप्रवाद पूर्व १४. ८१५७५. मल्लिजिन स्तवन द्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १०४३१). १. पे. नाम, मल्लिनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मिथिला नयरी मझारी; अंति: दान मंगल माला लहे रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: मेरु तणी परिंधीर वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१५७६. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १४४४०). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ अंतिम गाथा अपूर्ण से ढाल-१८ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८१५७७. (+) आनंदश्रावकसंधि पद व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-६५(१ से ६५)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. आनंदश्रावक संधि, पृ. ६६अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, प्रले. पं. जीतविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य. म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, वि. १६८४, आदिः (-); अंति: कहै पभणै मुनीश्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२, (पू.वि. ढाल-१५, गाथा-८ से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. ६६अ, संपूर्ण. म. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: छोरि षड खंड भारिचौसठ; अंति: धर्मसी० बोले संत संत, सवैया-१. ३. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ६६अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: सोवन्न पलाण के काण; अंति: खेम० वाजत है झिणण, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. ६६आ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: ताल कंसाल मृदंग; अंति: ध्रम० जिणंद की पुजा, सवैया-१. ५. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ६६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.ग.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), सवैया-४ ८१५७८. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४७). ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: वनारसी० करन के हेत, गाथा-२५. ८१५७९ (+) जंबूद्वीप परिधिमान विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १६x६०). जंबूद्वीप परिधि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमाहि सूर्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अढीद्वीप की परिधि वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८१५८० पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४.५४१०.५, ८४३०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१५८१ (+) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. घाणोराव, पठ. श्रावि. रूपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १०४२६-२८). For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पू. २अ अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हुओ मुज मन काम्यो, गाथा - ७, (पू. वि. गाथा - ७ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. सुपार्श्वनाथजिन स्तवन रुपस्थध्यान गर्भित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निरखी निरखी तुझ बिंब: अंतिः मान० जिनप्रतिमा जयकार, गाथा- ७. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि दर्शनाद्दुरितध्वंसी, अंतिः साक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक १. ४. पे. नाम श्लोक संग्रह. पू. २आ, संपूर्ण प्रा.सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-), श्लोक-२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१५८२. साधारणजिन नमस्कार व चैत्यवंदन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १७३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. हीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x११, १३४३७). १. पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख सवे; अंति: करि ऋषभ कहि ते धन्य, गाथा- ७. २. पे नाम. चैत्यवंदनचीवीसी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. सुपार्श्वजिन चैत्यवंदन तक ही लिखा गया है.) ८१५८३. आषाढभूतिमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे., (२५X११, १५X४१). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु, पच, वि. १७२४, आदि (-) अति (-) (पू.वि. ढाल ४ दुहा-१ से ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१५८४. (#) नेमराजिमती सज्झाय व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे (२४.५x११, १४४३३-३७). " १. पे. नाम नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सांमलिओ रे सांमलीओ र; अंति: माधव० प्रसिद्धि रे, गाथा - १२. २. पे नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ४७ औपदेशिक गाथा संग्रह, पुठि, मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). " ८१५८५. तपकाउसग्ग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, वे (२४४११, ११x२५-३२). तपकाउसरण विधि, मा.गु., गद्य, आदि अणसण मणोअरीआ; अंति: पाले आराधे ते धन छे. ८१५८६. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X११.५, १५X४७). महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२१ तक है.) ८१५८७. जांबवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६१२, ११x४८). जांबवती चौपाई, मु. सुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि पहीली ढाल सूहावणी; अंति (-), (पू. वि. ढाल - २ गाधा-५ अपूर्ण तक है.) ८१५८८. ८ कर्मभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१२.५, १२x२९-३१). For Private and Personal Use Only ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि नरकगतिने विषये ७९ अति: (-) (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उदयविचार अपूर्ण " मात्र है.) ८१५८९. वैदर्भि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २४.५X१३.५, १७x४९). Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि जिणधर्म मांहि दीपता: अंति (-). (पू.वि. ढाल २ गावा- ११ अपूर्ण तक है.) " ८१५९०. वृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२५४१२, १०२७), बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति (-) (पू.वि. "मानवी वैराग्या अतृप्ता मानसि" पाठांश तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१५९१. (*) औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५x११, २०५६०). औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि जो दस बीस पचा भया अति आवै तौ बात करामात है, (वि. सवैया अंक भिन्न भिन्न लिखा है.) ८१५९२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. भरूदाग्राम, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३४११.५, १२३४). औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि सतगुरु ज्ञानी दीपता, अति जो मील जीभ हजार, गाथा - १२. ८१५९३. (*) नवकार छंद व नवकार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १२वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०.५, १३४३४-५१). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष शुक्ल १२, रविवार. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि अष्ट लब्धि नवनिधि; अंति: हे मंत्र नवकार को, गाथा-७. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि वांछित श्रीजिनशासन अंति (-), (पू.वि. गाधा-८ अपूर्ण तक है.) ८१५९४. तमाकूगीत, औषधसंग्रह व यंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. आगरा, पठ. सा. मानसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१०.५, ११×३९). १. पे. नाम औषध संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति: (-). २. पे. नाम. शतरंज की चाल ६४ कोठा यंत्र, पृ. १अ, , संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,गु. सं., हिं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंकयुक्त कोष्ठक है.) ३. पे. नाम. तमाकु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत- तमाकू, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि समकित लक्ष्मी पामी; अंतिः श्रीसार० शिव सुखदाई, गाथा - १५. , ८१५९५ (+) जैनधार्मिक श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४,५५१०.५, १३x४०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा., सं., पद्य, आदि: देवपूजागुरुपास्तिः; अंति: देवउ इक्कु अरहंतो, श्लोक-३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकना दिवस-दिवस; अंति: आदर जिम करता लाभ छइ. ८१५९६ (+) पक्खी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४१०.५, १०X३६). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनदेवयाए करेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतदेवता स्तुति अपूर्ण तक लिखा है.) ८१५९७. (#) साधु के सत्ताइस गुण व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४x११, १३X३३). १. पे. नाम. साधु के सत्ताईस गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: १ सर्व प्राणीनइ हणि; अंति: पंचइंद्रीनु संवर. २. पे. नाम बोल संग्रह. पू. १अ आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). ८१५९८. (#) जयंतिश्राविकानी गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पुंजा अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१०.५, १३X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयंती श्राविका गहुंली, मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि चित्तहर चोवीशमां, अंति: तेहने देसो मुझ कवा, गाथा- ९. ८१५९९ (+) २५ बोल थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. " वे. (२५x१२, १४४३९). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू. वि. बोल- १० अपूर्ण से बोल १४ अपूर्ण तक है.) ८१६०० (+) चोमासीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x१२.५, ९३०). संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., पद्य, आदिः सकला० स्नातस्या०; अंतिः सांतिकर स्तवन. ८१६०९. भक्तामर स्तोत्र काव्य का फल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. हुंडी गुण भक्तामरको जैदे. (२५X१२.५, ७२२). " " भक्तामर स्तोत्र-काव्य फल, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व संपदा लक्षमी; अंति: बांछाकारी० पासी हर४८, गाथा- ४८, (वि. पत्र २आ के बाद का व ३अ से पहले का पाठ पत्र १अ पर लिखा है.) ८१६०२. जिनबिंबप्रवेश प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १८८०, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१-१८(१ से १८) = ३, जैदे., (२४X११.५, १५X४१). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंतिः आव्या एटले पूषण करवा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मुहूर्त्त के दिन पाटला पर अष्टमंगल बनाने का वर्णन अपूर्ण से है.) ८१६०३. जीवना ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. १९४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल, राजकोट, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गतागत्य. दे. (२४.५४११, १६४५८). " ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना; अंति: त्रेसठे भेद जाणवी. ८१६०४. (#) अमरकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : सिझायपत्र, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४X११, १०- १३X३०-३५ ). अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: सीझे वंछित कामो रे, गाथा-५२. ८१६०५. संसारस्वरुप व नाथविरह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (२४४११, १०-१८४३०-४३). १. पे. नाम संसारस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ ३अ संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवीन बीनवइ गौतम अति: लवले समाउइ तेह, יי ४९ गाथा - ३५. २. पे नाम. नाथविरह सज्झाय, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- नाथविरह. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि नाह सुणो घणि विनती, अंतिः सीसनी फली माणिक आस, गाथा २७. ८१६०७ (*) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५५११, १५४३२). , बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only ८१६०६. पंचपरमेष्ठि विवरण व व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से ११) ३. कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी उठावणो, जैदे. (२४.५४१०.५, १४४३०-३५ ). १. पे नाम. पंचपरमेष्ठि विवरण, पृ. १२अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचपरमेष्ठि स्तुति-वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति ऋद्धि वृद्धि सिद्धि:, (पू.वि. राजकुमार के समान २५ गुण सेरीखा चतुर्थ परमेष्ठि श्रीउपाध्याय का वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे नाम तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, पू. १२आ- १४आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि तित्थरा गणहारि सुख अति (-). अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१६०८. (+#) रास, सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १९४५०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो; अंति: जैमलजी० दीवाली न मान, गाथा-४५. ३. पे. नाम. पद्मनाभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: जंबुदीपना भरतक्षेत्र; अंति: ठाणायंगमे विचौडीकै, गाथा-१४. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. चोथमल, रा., पद्य, आदि: संतनाथ प्रभू सोलमाजी; अंति: मुज अचलादेजीरा नंद, गाथा-९. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजे सुत लाडलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८१६०९ (+) व्यवहार सम्यक्त्वउच्चारण विधि व चारशरणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१५४५०). १. पे. नाम. व्यवहारसम्यक्ति उच्चारण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. व्यवहार सम्यक्त्वउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो देव श्रीअरि; अंति: निश्चे समकित कहीयै. २.पे. नाम. च्यार सरणा, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. ४ शरणा विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारिसरणा पढिवज्झा; अंति: मरणांत हज्यो सलेखणा. ८१६१० जीवदया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०, १२४२७-३१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीवदया गुण आदर; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३८ तक है.) ८१६११ (+) प्रदेसीराजा प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४०). प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ प्रश्न माहारा आज्ज; अंति: अयभारवाहायपडिवयणा २, प्रश्न-११. ८१६१२. पंद्रह तिथि व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:पनरतिथी., दे., (२५४१०.५, १३४४७). १. पे. नाम. पनरतिथीनुं स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १५तिथि सज्झाय, ऋ. करमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: प्रथम जिनेसर जगगुरु; अंति: धवारे। रूडो सावणमास, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुगाम वासो कुल हिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ तक हैं.) ८१६१३. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.सा. प्रेमबाई आर्या (गुरु सा. मोतीबाई आर्या); गुपि.सा. मोतीबाई आर्या (गुरु सा. कडवीबाई आर्या); सा. कडवीबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:नवकारनोछे., जैदे., (२४.५४११, १३४३२). नमस्कार महामंत्र छंद, मा.ग., पद्य, आदि: पेला लीजे श्रीअरिहंत; अंति: पामसे मोक्षद्वार तो, गाथा-१०. ८१६१४. (4) आदिजिन, सुपार्श्वजिन व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. ललितरूचि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४२७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अरपणा आणंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साव For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सुपास जिन बंदीये, अति आनंदघन अवतार ललना, गाथा-८, ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अभीनंदनजिन तरसीवइ दस अंति थकी आनंदघन महाराज, गाथा ६. ८१६१५. पुन्यप्रकाश स्तवन व वैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. २, दे. (२४.५४१२, १०x२६). १. पे. नाम. पून्यप्रकाश स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, ले. स्थल. वडगाम, पठ. श्रावि. नवलचाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्री चिंतामणीपार्श्व प्रशादात्. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि (-); अंति नामे पुन्य प्रकाश ए, डाल-८, गाथा १०२, (पू.वि. कलश की गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम बैराग सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सज्या भली रे संतोसनी अति विनयवि० कमला लीजै रे, गाथा-५. ८१६१६. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे. (२४४१०. " १२X३२). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, वि. १७५५, आदि (-); अति: (-). (पू.वि. सुबाहुजिन स्तवन गाथा - १ अपूर्ण से सुजातजिन स्तवन तक है.) ८१६१७. सिद्धाचलतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., ( २४.५X११, १३×३४). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य वि. १८४०, आदि विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८१६१८. (*) पांडव सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, १७३९). ८१६२०. आत्मोपदेश सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, वे. (२४४९.५, १७४३३). १. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो अंति: कवीयण कहे० मन मोहे रे, गाथा २०. ८१६१९. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है. जैवे. (२४.५x११.५, १८४५५). पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पुरसादाणी परगडउ जेसल अंति समझसुंदर० धन्यासरी, गाथा - ५१. ५१ औपदेशिक सज्झाय, मु. वखता, पुहिं., पद्य, आदि: समजमन उमर जावे जिम र अंति: कोइ मत कीजो फयल रे, For Private and Personal Use Only गाथा - ९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक शुक्ल, १४, प्रले. जयराम, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय- नश्वर काया, मु. अमीचंद, मा.गु., पद्य, आदि जिस गाड़ी में जाण; अंति मोह मत कीजो फयल रे, गाथा - १०. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि हमारी दिल कटे सनम, अंतिः कांकी क्या करारी, गाथा- ७. ८१६२१. (*) मल्लिजिन पद व नेमिराजिमती स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४११, १५४३७). , १. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि करले श्रीमल्लिजी का अति मांही जो वखाण जी, गाथा- ७. २. पे. नाम. नेमिराजिमती स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. अक्षर अवाच्य हैं.) ८१६२२. (#) मुक्त छत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १३-१५४४०). मुक्तछत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मनुष जनम उत्तम पायो; अंति: छत्तीसी सांबल पराणी, गाथा-२५, (वि. परिमाण-२५ गाथा है परन्तु कृतिनाम एवं पाठ में छत्तीसी लिखा है.) ८१६२३. (+) वीरउपसर्ग व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:वीरसझाय., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४४७). १. पे. नाम. वीरउपसर्ग सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ कुल उपना; अंति: तणा पावै सुख अनंत, गाथा-२६. २. पे. नाम. साधुनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: सुगण सनेही सांभलो; अंति: समैजै ए चुतर सुजाण, गाथा-१३. ८१६२४. सदेवछसालंगारी वार्ता, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३३). सदयवत्स सावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., आदि: आणंदपुरनगर सालवाहण; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "मुंहडो घाली देख्यौ" पाठ तक हैं.) ८१६२५ (#) राईप्रतिक्रमणसूत्र व पार्श्वजिन पद द्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०४४०). १.पे. नाम. राईप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमोत्थुणं से दो वांदणा तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: होरी के खिलईया हारे; अंति: अनोपम भव निसतिर रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारो हो; अंति: जिनह० काज सुधारो, गाथा-५. ८१६२६. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. हंडी:नेमिनाथस्तवनपत्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९x४५). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन-सांमेला, म.ज्ञानकशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी राजीमती रमणी; अंति: भरी सासुडी वधायो हे, गाथा-२९. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीयइ; अंति: लबधिविजै गुण गाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलु; अंति: सहजसुंदर उपदेस रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति की अंतिम गाथा १अ पर है. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८१६२७. चोत्रीस अतिशय व श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, ११४३२-३५). १.पे. नाम. ३४ अतिशय, पृ. ८अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वरष १ लगइ समस्तनइ, (पू.वि. अतिशय-१७ अपूर्ण से है) २.पे. नाम. मोरतनो मान, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. महर्तमान विचार, रा., गद्य, आदि: आंखमे सली फेरवीजे; अंति: सरद रूत ६ रूत जाण. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ३. पे. नाम. नीद्रा अधिकार, पृ. ८आ, संपूर्ण. ५ प्रकार निद्रा, रा. गद्य, आदि प्रथम एक सबदसु जागे; अंति अधीक जोर हुवे हे. ८१६२९. सज्झाय व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२४.५४११, ९४२६) ४. पे नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक लोक संग्रह", पुहि. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि नीचदेवरतोजीवोः मुड, अंतिः (-), (पू.वि. श्लोक २ अपूर्ण तक हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कुंथुजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु प्रणमु कुंथु; अंति: पुजिइ केसर चंदन लेइ, गाथा- ३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- ज्ञान, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि ज्ञान खजानो निरखता; अंतिः वसे कोए अवरन गमे कोए, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पंचतीर्थनु चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल गिरनार गिरि; अंति: महोदय०नभुतो न भविसती, ८१६३२. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४११.५, १०x२९). गाथा-५. ८१६३०. विजयप्रभसूरि गहुंली द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०, ७-९X३५). १. पे. नाम. विजयप्रभसूरि गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लील, मा.गु., पद्य, आदि आवो सुहासणि गुहली; अंति: लील भणइ कुलनो दीवो, गाथा-८. २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि गहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लील, मा.गु., पद्य, आदि श्रीविजयप्रभसूरि अंति: सुणि अति चतुरा रो, गाथा-६, (वि. अंत में यंत्र दिये है.) ८१६३१. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२५X१०.५, १६X५०-६२). कालिकाचार्य कथा, मा.गु., सं., प+ग., आदि: श्रीकालिकाचार्य धर्म; अंति: इम कही शिष्य समझावो. साधारणजिन स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहा प्रभुजी त्रिगड, अंति: अमीयकुंवर नित ध्यावै, ५३ गाथा - १०. 1 ८१६३३. (+) सिचियायदेवी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १ ले स्थल, खीवसर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १८x४४). सिचियायदेवी स्तुति, मु. जयरतन, रा. पद्य वि. १७६४, आदि मन सुध जपतां महिर कर, अति जैरतन० साचलमात कही, गाथा- ३३. . ८१६३४. सिद्धचक्र व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २१(१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. दे., (२४.५x१२, ११४३६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति लाल सवि संपद श्रीकार, गाथा १५ (पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि भवि तुमे बंदोरे; अंति: मी अमृत पदथी निहाले, गाथा-७. ८१६३५. (*) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१) ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. वे. (२६४१२, १२-१३X२२-३१). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (संपूर्ण, वि. सारिणीयुक्त पाठ.) ८१६३६. आठमनी धोय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., " (२४.५X११.५, ११X३५). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अठम जिन चंद्रप्रभु अति राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ', ८१६३७. स्नात्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२५x११.५ १२४३५). स्नात्रपूजा विधिसहित, गु., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारवीकारसार अंतिः ए कुसुमंजलि तिहां, संपूर्ण. ८१६३८. शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९८२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अणहिलपुरपाटण, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५४११.५, १०३८). शांतिजिन छंद, मु. दीपसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: शांतिनाथ को कीजे; अंति: मारा मननी चिंता काट, गाथा - १६. ८१६३९. पर्युषणपर्वनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११.५, १०X३१). पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति अति विबुध० भविक मन भावोरे, गाथा-९, ८१६४०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी श्रमद. वे. (३४४११.५, १४४३२). " " 1 "" सीमंधरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: सीमंधर सहव दीपता; अंति: वसु जाउतरो भवपारोजी, गाथा- १९. ८१६४१ (#) २९ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. लछमाजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे. (२४.५x११.५, १३४३४). २९ बोल- मूर्खलक्षण, मा.गु.. गद्य, आदिः १ बोले विना भूख अंतिः विरोध राखे तो मूर्ख, ८१६४२. स्थूलभद्रमुनि सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४४११.५, १८x४०). . . स्थूलभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि एक समें चारो शिष्य अंति: भद्र सुप्रसन्न जी, गाथा- ९. ८१६४३ (F) साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५४११.५, १६४३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दुखहरण जिणेंद्र कर्म; अंति: तुम ग्यान पाया, गाथा-१०. ८१६४४ (+) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १(१ ) = १, कुल पे ५, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., ., (२४X१२, ११X३५-३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. , रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति इम रामवीजेय गुण गाय, गाथा-५, (पू.वि. गावा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. २अ संपूर्ण. मु. 3 मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि आय रहो दिल बाग में अंतिः यो केव करत सिव फागमे, गाथा ४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितराजा सुण चुपसुं; अंति: रे सुवध सदा सुख थाय, गाथा-६. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनधर्म पायो दोयलो; अंति: नवल कहे० भजीये भगवांन, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि : देव निरंजन भवदुःख, अंति: (-), गाथा-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ८१६४५ (४) विविध गतीजीव सिद्ध संख्या बोल व भाषाभेद बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११.५, २०X३८). १. पे. नाम बोल संग्रह-विवधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, पू. १अ संपूर्ण. बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पली नारकीसु ३लागा ३; अंतिः सेवं भंते सेवं भंते. २. पे. नाम. भाषाभेद बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि भाषाधार भाषारी आद; अति सेवं भंते सेवं भंते, For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१६४६. (2) दादाजी स्तवन, साधारणजिन पद व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,९-१४४३८). १.पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हांजी कांइ अरज करूं; अंति: निजर जोइज्यो साहिबा, गाथा-६. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम देखो विराजत है; अंति: उनकै फीक पडै ततकाला, गाथा-३. ३. पे. नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८१६४७. (+) ऋषभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८२४, फाल्गुन शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ले.स्थल. मेवाड-भीलाडा, प्रले. पं. गंभीरसुंदर; पठ. श्राव. माणिकशौभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १३४२८). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि न ध्यावै शिवपद; अंति: जिनजी दरसण दीजोजी, गाथा-२७, संपूर्ण. ८१६४९ (4) मुंहपत्ति के पचास बोल व सामायिक के बत्तीस दोष, अपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु ग. रत्नविजय); गुपि. ग. रत्नविजय (गुरु ग. अमृतविजय); ग. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १९४३८). १.पे. नाम. मुहपतिरा बोल, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: २ तेउ ३ रख्या करूं, (पू.वि. "आदानभंड ४ उचारखासवण ५ मनोगुप्त ६" पाठांश से है.) २. पे. नाम. सामायिकना बत्रीस दोष, पृ. ६आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: पलहथ १ अथीराशन २; अंति: दस दोष टालो १०. ८१६५०. नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, ९४२८). नेमराजिमती स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सजनी रे मारी ह; अंति: अमीकंवर० गृहीनै राखै, गाथा-६. ८१६५१ (+) आषाढाभूति पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १६४३७). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८१६५२. मार्गणाने विषे जीव, गुणस्थान, योग, उपयोग व लेश्या यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १५४१२). ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८१६५३. (+) पद्मावती री ढाल, संपूर्ण, वि. १९४७, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:पदमावती., संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४३९). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-८२. ८१६५४. अढारपापस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(२ से ७)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अढारपाप., जैदे., (२४४१०.५, ११४३१). १८ पापस्थानक सज्झाय, म. धर्मदास, मा.ग., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाए; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण तक व ढाल-१३ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-१७ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१६५५. (+#) पांचसमवाय- षटढालियु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १२४२८-३२). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत प्रणमीइ; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ८१६५६. (4) वैराग्यबावनी, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वडागुढा, प्रले. सा. कसुंबा आर्या; पठ. सा. चंपा (गुरु सा. कसुंबा आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३०-३५). वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समज समज रे भोला; अंति: लालचंदजी०सुख अपार जी, गाथा-५२. ८१६५७. आलोयण विधि व वीसस्थानकतप आलापक, संपूर्ण, वि. १७०९, वैशाख अधिकमास, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सिहावानगर, प्रले. मु. जेसिंघ ऋषि (गुरु मु. वेणाजी ऋषि); गुपि. मु. वेणाजी ऋषि (गुरु आ. धनराजजी ऋषि); आ. धनराजजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४४०). १. पे. नाम. आलोयण विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एगेंदियाणं जं कं हवि; अंति: उपवास १०० करवा. २. पे. नाम. वीसस्थानकतप आलापक, पृ. ३आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहण्हं भंते तुम्हाणं; अंति: अप्पसक्खियं. ८१६५८. शेव्रुजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १७६१ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु ग. वीरमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३-१६४५०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर०दरसण जय करूं, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. ८१६५९ (+#) प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३३). दि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नोत्तर संख्या-६ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.) ८१६६१. गांगेय भंगसंख्या आनयन विधि, संपूर्ण, वि. १८७३, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १८४५२). गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: किणही पूछ्यो दोय; अंति: जीवांरा भांगा जाणवा. ८१६६२. धन्नाअणगार सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३७). १.पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, प. १अ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: वस्यो रतन कहे करजोड, गाथा-१५, (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन खेत्र विदेह हो; अंति: सफली चाकरी रे लाल, गाथा-१३. ८१६६३. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपदकज; अंति: पसाइ उदय अधिक होइ आज, गाथा-१७. ८१६६४. (+) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अविचल अक्षय पद राजि, गाथा-७. २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे चंदो रे; अंति: निज रूपे चिरणंदे, गाथा-७. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन भजीये रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ८१६६५. शीयल नववाडनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २-१(१)-१, प्रले. मु. खुबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४.५४१२, १२४४४). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ८१६६६. (#) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. ग. अमरसौभाग्य; पं. सौभाग्य मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गोतमस्वामीजीको., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४२७). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. ८१६६७. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १६४३४). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयदेवेंद्रसुरी. ८१६६८. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१८, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माणेकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ में प्रेमविजय कृत शत्रुजयतीर्थ स्तवन लिखना प्रारम्भ करके छोड़ दिया है., जैदे., (२४४११, ९४२२). अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा; अंति: मल० सूरनाएक गुण गावै, गाथा-९. ८१६६९. देवदर्शन फलवर्णन स्तवन व चंद्रफल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम. देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. मान, मा.ग., पद्य, आदि: सति देव नमुं मनरंग; अंति: इम कहै मान कवि करजोड. गाथा-१३. २.पे. नाम. चंद्रफल, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८१६७०. वैराग्यपचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १९४३६). औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदि: सासणनायक श्रीवधमान; अंति: मन रे तुज वने समजाय, गाथा-२८. ८१६७१ (१) युगमंधरजिन स्तवन व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १८४५२). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: हा रे कांइ जुगमंधरजी; अंति: तुम्हची भगत सुरे लोय. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बहुत निहाल कीया हो; अंति: रायचद० रिजायला हो, गाथा-७. ८१६७२. (#) औपदेशिक सज्झाय द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रणीसी, प्र.वि. लेखन वर्ष हेतु मात्र "अठोरे" का उल्लेख है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३९). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: पुन्य जोगे ग्यानी; अंति: त अढारे सीतंतरो वागे, गाथा-१७. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सतगुरु ज्ञानी दीपता; अंति: गुण कीधा मे लवलेस रे, गाथा-१३. ८१६७३. (+) बंधादि स्वरूप, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ४१४२६). For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुणस्थानक; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उदय स्वरूप के अन्तर्गत सास्वादन गुणस्थानक का वर्णन अपूर्ण तक है.) ८१६७५. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मध्यफुल्लिका स्वस्तिकमय है., जैदे., (२५.५४१२, १३४३४). __ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करण; अंति: ज्ञानविमल० नारी गावे, गाथा-८. ८१६७६. (#) गौतमगणधर स्तवन व साधारणजिन स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सातीण, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: अंस जिनराया सुंदर; अंति: अढारे इकोतरे रे लोल, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतम गणधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमगणधर स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विचरत पावापुरी में; अंति: सै दीवाली रे वखाणी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... म. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: त्रिभुवन सांमी अंतर; अंति: कुसालचंद० मनहुलासो, गाथा-९. ८१६७७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५५). १. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: हरखचंद० की नीवहियै, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. सेवक, बं., पद्य, आदि: तोमी देखी जिनराज देख; अंति: सेवक दर्शन पाईलो, पद-६. ३. पे. नाम, महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: चालौ राजा श्रेणिक; अंति: नवल०प्रभुजी से नेहरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: इक काया अरु कामनी; अंति: स्वारथ को संसार, गाथा-५. ५. पे. नाम, नेमराजिमती रेकता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: रभु मै तो चरण पै खरी, गाथा-४. ८१६७८. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, रा., पद्य, आदि: यो भव रतनचिंतामण; अंति: नंता भव जीव तरीया रे, गाथा-१३. ८१६७९ दशार्णभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १६४३९). दशार्णभद्र सज्झाय, मु. रायसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: देश दसारणपुर तिहा; अंति: निधइ कहइ सेवक उल्हास, गाथा-१८. ८१६८० (+) जीवदया सज्झाय व हितशिक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीव धरम म मुकिस विनय; अंति: थिरकाले नंदो रे भोला, गाथा-९. २. पे. नाम. हितशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडा म्है तोने; अंति: कीरत० जपो श्रीनवकार, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१६८१ (4) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२. बीच मे पाठ कैन्सल किया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ५३४१५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांति जिनेसर; अंति: सह संघनी पूरज्यो आस, गाथा-२१. ८१६८२. जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. सा. रुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबू०., दे., (२४४१०.५, १५४३०). जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मगध देश राजगृही नगरी; अंति: सील तणी महिमा आणी, गाथा-१५. ८१६८४. अंजनासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:अजीण., जैदे., (२४४१०.५, ८x२६). अंजनासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण से गाथा-८३ अपूर्ण तक है.) ८१६८५. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०.५, १०४३४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: आगलि रही लेई परिजन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, दुहा-२ अपूर्ण तक है.) ८१६८६. (#) अष्टप्रकारी पूजाद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३३). १.पे. नाम.८ प्रकारी पूजा, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: दीज्ये अरघ अभंग, ढाल-९, गाथा-७७, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरें सदा; अंति: (-), (पू.वि. जलपूजा का वर्णन अपूर्ण तक है.) ८१६८७. (#) गुरुगुण भास व पार्श्व, शांति, धर्म, विमल नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २९४१८). १. पे. नाम. विजयराजसूरि गुरुगुणभास, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयराज गुरुगुण भास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमना पाय नमीनइ; अंति: सेवक कन श्रीशिरनामी, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठीनइं प्रणमीइं; अंति: लक्ष्मी तस बहुमान, गाथा-२. ३. पे. नाम. शांतिजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर सोलमा; अंति: लक्ष्मी नमइ निशदीस, गाथा-३. ४. पे. नाम. धर्मजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मनाथ नु धरो० भवि; अंति: लक्ष्मीसुख दातार, गाथा-२. ५. पे. नाम. विमलजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. लक्ष्मीविजय, मा.ग., पद्य, आदि: विमलजिणेसर वंदीइ मनआ; अंति: लक्ष्मी दिन दिन नर, गाथा-२. ८१६८८. जंबूद्वीप, मान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४.५४११, ३७४११). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: २९२१ जोअणवन मुख; अंति: (१)६ ऐरावत क्षेत्र १३, (२)कला २२९ कलाइ योजन. ८१६८९ सिद्धचक्र गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, २१४२७). सिद्धचक्र गणj, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नो०; अंति: २० नमो तवस्स नो० २०, (वि. सारिणीयुक्त.) ८१६९०. प्रसन्नचंद्रराजर्षि, आत्महितशिक्षा सज्झाय व नेमिराजुल विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. महेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३५). For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमें मूझने मिल्यो; अंति: समयसुंदर मनवाल, गाथा-६. २.पे. नाम, आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे जो प्रीत; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिराजल विवाहलो, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती विवाहलो, पंडित. सरुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मातनै विनवूली; अंति: (१)वसी सुख अनंत रंगीला, (२)दरसण देज्यो राज, गाथा-८. ८१६९१. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राजपुर, जैदे., (२६४१२, १३४२६). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभइ; अंति: जस पढउ तीहुणे सयले, गाथा-१३. ८१६९२ (+) पार्श्वनाथ छंद व प्रहेलिका दहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: स्तव्यो गोडीजी वरु, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, प्रहेलिका दुहा-नारी वर्णन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: बार सरोवर नव कमल; अंति: गात में ए चालीसे चोर, गाथा-५. ८१६९३. अकर्मीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४५, पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालावाड, प्रले. आंबामाडण खत्री; पठ. श्रावि. मानुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अकरमीनी विसी., दे., (२५४१०.५, ११४३८). __ अकर्मी उपदेश सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: शिखामण एक कहुं छु; अंति: नार ते सुख पामे अपार, गाथा-२१. ८१६९४. (+) नेमिनाथ बारमासा व पद्मावती गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४४०). १.पे. नाम. नेमिजिन बारमासा, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ठडा रे आद बारई मास, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पद्मावती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. म. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मावती परतो पूरवे; अंति: सुंदरविजय जयकार रे, गाथा-७. ८१६९५. भगवतीसूत्र की सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदी प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८१६९६. वर्धमानतप विधि व विविधजीवों के प्राणसंबंधी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५४१२, १५४३४). १. पे. नाम, आंबीलवर्द्धमान तप, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्धमानतप ओली विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आंबल१ उपवासर आंबल१; अंति: एक आंबल एक उपवास. २. पे. नाम. विविधजीवों के प्राणसंबंधी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: सिधने द्रव्यप्राण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वीभंगज्ञानी तिरछु केतलाखेत्र देखे पासे" पाठ तक लिखा है.) ८१६९७. (+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. दयाहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १३४३२). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना; अंति: मेरु नमे वारोवार रे, गाथा-११. ८१६९८ (4) तीर्थमाला स्तवन, मधुबिंद व ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, ११-१७४४०-५०). १.पे. नाम, तीर्थमाला स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. जयसागर मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जय० गुण अभ्यास जी, गाधा-५५, (पू.वि. गाथा ५१ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मु. • चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती रे मुझ रे माता; अंतिः परम सुख मांयगीइं, गाथा-१०. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पू. ६आ, संपूर्ण पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सहगुरु चरण पसाउले रे; अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ८१६९९ बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे. (२५४११.५, १६x४०). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८१७००. (+#) पदार्थ संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २६११, १९६०). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि प्यान‍ दर्शन २ चारित अंति (-), (पू.वि. 'तथा अरूपी' पाठ तक हैं.) ८१७०१. जीवकाया बहुत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२३.५X१२.५, १५X३२-३६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपत जोय जीव आपणी; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा - ७२. ८१७०२. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४-१ (३) = ३, कुल पे ८, प्र. वि. हुंडी बुईयांपत्र, जैवे., (२५४११.५, ६१ १०x२२-२६). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवि लब्धीरूचि जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम दशमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दशपुरमंडन सोहे नवफण; अंति: तास प्रगट करी माया, गाथा-४. ३. पे. नाम. एकादशी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस, अंति: नित तेहनें मंगल करु, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद, अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ५. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धिः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शांतिजिन स्तुति, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति गुणसूरिंद जय जयवंती, गाथा-४, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण मात्र है.) ७. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि बलि हुं घ्यावं; अंतिः कहे श्रीगुण सुरंद, गाथा-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणकेलि कमला अंति: (-), गाथा-५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१७०३. (४) विमलमंत्री सलोको, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, जैदे. (२५x११.५, १३X२८-३२). विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरू वे करजोड अति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१७०४. आदीश्वरनी विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हंडी:आदेसरनीवीनती., जैदे., (२४.५४११, १३४३२). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय जय पढम जिणेसर; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. गाथा-४४ तक है.) ८१७०५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, २३-२६५५०-५३). बोल संग्रह, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त.) ८१७०६. (+) चोवीसतीर्थंकर कल्याणकादि विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४२३-२७). २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहिं., गद्य, आदि: ऋषभदेवजीका कल्याणक; अंति: समवसरण पावापुरी. ८१७०७. स्तवन चोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ११४३५-३८). - स्तवनचौवीसी, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: (-), (पू.वि. वासुपूज्यजिन स्तवन तक है.) ८१७०८. पार्श्वजिनछंद- अष्टभयनिवारण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२४४११, ११४२५-२८). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ८१७०९ चतुर्विंशति तीर्थंकर माता पिता नाम ठांम वर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोरनगर, पठ. श्राव. मनोरकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १२४३३-३६). २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. ८१७१० (+) नेमिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शीलअं०., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १९४४५-४८). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलो प्रणाम करौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ तक है.) ८१७११ (#) पद्मावतीराणी आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. फलोधी, प्रले.पं. कुनणमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १५४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाळ, ढाल-३, गाथा-३६. ८१७१२. सीखामण सज्झाय व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२४४१२, १२४२७). १. पे. नाम, सीखामण सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- श्रमणाचार, मा.गु., पद्य, आदि: चेला सहु चित्त धरीइं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ अपूर्ण तक लिखा है.) । २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति पत्र २आ पर बचे हुए रिक्त स्थान में उलटी दिशा से लिखी गई है जो प्रारंभ व अंत दोनों ओर से अपूर्ण है. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८१७१३. पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, १७४५०-६०). १.पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org मु. भेरूलाल, रा., पद्य, आदि भूल मत जाजो जी गरु; अंति: भेरुलाल०धन हे संताने, गाथा-४. २. पे. नाम नेमनाथ स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण, नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अपराजित वेमाणथी; अंति: ननणा जाउ बलीहारी, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, पु,ि पद्य, आदि हम तुम से कथन मांगू ; अति राम० मुगतीनो वाश, गाथा- ३. ४. पे. नाम. शांतिजिन पालणुं, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रतन जड़त पालणीयो; अंति: सुभ करणी का फल भोगे, गाथा-८. ५. पे. नाम. ८४ लाख नरकावास गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति हांसीया में लिखी हुई है. प्रा. पद्य, आदि: तीसाण पणवीसा पनरस; अंतिः सर्वचउरासी लखावासा, गाथा- १. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हांसीया में लिखी हुई है. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुइ तुइ आद आवे रे; अंति: रूपचंद० पावै दरद मे, गाथा-४. ८१७१४ (४) पार्श्वजिन पारणुं, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४१२, १२४३०). पार्श्वजिन पार. ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि माता वामा देवी झुलाब; अंति: विचल उत्तमविजय विलास, 1 " गाथा - १५. ८१७१५. (+) विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी. विजेकुमर०, संशोधित. दे. (२४.५x१२, १७४५-४८). ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. दोहा-५ अपूर्ण से गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) ८१७१६ (+) देवजशा सज्झाय, साधुदोषनिवारण सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२) =१, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११, १८x४३). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, पृ. १३अ संपूर्ण. - मा.गु., पद्य, आदि बैठी साधसाधवीयां रे; अंति संका नही छे काय के, गाथा १७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जोगारंभ को मारग वाको; अंति: वश समता रसने चाखो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-साधुदोषनिवारण, पू. १३अ १३आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि साधरी मारग रे कठण, अति घोडां लेसी मोख, गाथा - १३. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-श्रावकदोषनिवारण, पृ. १३आ, संपूर्ण. ६३ रा., पद्य, आदि ऐंडा मारैने घडीयां; अंतिः खोटा बोलै मुख मझारो, गाथा-५. ५. पे. नाम. जीवयशा सज्झाय, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्म, आदि जीवजसा देवर भणी रे; अति (-) (पू.वि. गाथा ६ तक है.) ८१७१७ (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११) = १, कुल पे. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, २०x४७-५०). १. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति समय ० वंदेरे से करजोडि, गाथा-९, ( पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: समकितधारिनै उपगारि; अंति: भुवन तिलक समानो यारे, गाथा-९. ३. पे. नाम. धुंदडी सज्झाय, पू. १२अ १२आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: तीन गुप्ति तांणो; अंतिः जे पामे भवपारो जी, गाथा- ९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि धर्म म मुकीस विनय म; अंति: लावण्यसमय० नंदो रे, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. राजसमद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बेहेनी पीयुडो; अंति: नारी विण सोभागी रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.ग., पद्य, आदि: सारिंगी सरसी सदा; अंति: (-), (प.वि. गाथा-४ अपर्ण तक है.) ८१७१८. थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४३७-४०). १. पे. नाम, जोनीनो थोकडो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: १नरकथी ते त्रीजी नरक; अंति: तेथी संभुडा अनंतगुणा. २. पे. नाम, मोक्ष जवाना चौद सुपना, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न बोल-मोक्ष गमन, पुहि., गद्य, आदि: १ स्वप्ने हाथीने; अंति: तेज भवमां मोक्षे जाय. ८१७१९. शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४३५-३८). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुवाल्यो तणे; अंति: सेवक संधा नीरवाण रे, गाथा-२५. ८१७२० (+#) अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २१४५२-५६). अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: सिरिमेरुनंदण उवझाय ए, गाथा-३२. ८१७२१. (-) पार्श्वजिन स्तति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. सिगोली, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२.५, १०४२५-२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सागर सोपीये सीवगामनी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति- भीलडीपुर, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुर, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेलडी मुख मंडण सोहे; अंति: नजीसु प्रीत सुखदातार, गाथा-४. ८१७२२. वैराग्य पद व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, ११४३०-३३). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. दीपचंद; पठ. सा. कुसला, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानसरो भव पामीयो; अंति: मानसागर० लहै निरवाण, गाथा-११. २. पे. नाम, वैराग्य पद, पृ.१आ, संपूर्ण. __कबीर, मा.गु., पद्य, आदि: माण लै माण लै तुं; अंति: साधो रामरसायन पीजै, गाथा-५. ८१७२३. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७७५२). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१७२४. (E) ज्ञानपंचमी स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ९४२२-२५). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समयसुं०पांचमो भेदरे, गाथा-५. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८१७२५. ढुंढियामत प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:ढेढिया., दे., (२४४११, १५४२६). For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ६५ ढुंढकमत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-) (पू.वि. प्रश्नोत्तर संख्या १४ अपूर्ण से २१ अपूर्व तक है.) ८१७२६ (क) प्रदेशीराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १० ९ (१ से ९=१, प्र. वि. पत्रांक नही है. कृति अपूर्ण दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक १० दिया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५४११, २०४५००५३). 1 " ! י प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल १८ दोहा-१ से है व ढाल १९ गाथा १४ तक लिखा हैं.) ८१७२७. होलिका चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : होलीरोचोढा., जैदे., (२५X११.५, २३५२-५५). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम पुरुष राजा; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, डाल-४. ८१७२८. भरतबाहुबली व इलाचीपुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४x११, ९X३२-३५). १. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अति समयसुंदर० पावा रे गाथा-७. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामे ईलापुत्र जाणीये; अंति (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८१७२९. विक्रमराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:विक्रमादीत., जैदे., (२५X११, १७x४२-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ११ अपूर्ण से ढाल ६ गाथा २४ अपूर्ण तक है.) ८१७३०. श्वासोश्वास परिमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५४१२, १२४२७-३०). , ', श्वासोश्वासपरिमाण विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: दोय घडी का सास उसास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एके सास की फारेगेती होसी" पाठांश तक लिखा है.) ८१७३१. सन्मतितर्क प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., ( २४.५X१२, _८x४२-४५). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ८५ एवं ८६ है.) " सन्मतितर्क प्रकरण- तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), कांड-३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८१७३२. (४) चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., , (२५४१२, २०५४२-४६). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि पाडलीपुर नामे नगर; अंतिः दीयोहिं छकाया दीनोरे, गाथा- ४०. ८१७३३. मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २७-२६ (१ से २६) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे., (२५x११.५, ३२x१६). " मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यंत्र, मा.गु., पं., आदि (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८१७३४. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैवे. (२५x११.५, १७X३७-४०). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- २ गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ३ दहा-३ अपूर्ण तक है.) ८१७३५. (#) चोवीसदंडकादि बोल, संपूर्ण, वि. १८११, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. द्राफा, प्रले. मु. जगसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चोवीसदंडकनोप., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १५X३७). २४ दंडक बोल संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त.) For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१७३६ (+#) मनुष्यजन्मप्राप्तिना आठबोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल ___ गयी है, जैदे., (२४४१२, २१४३३-३६). ___ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ८१७३७. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, दे., (२५.५४१२, १६४३३). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवमुनि ते संथुण्या, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१३ गाथा-९ अपूर्ण से है.) ८१७३८. स्तुति, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३६-४०). १.पे. नाम, सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: कांतिवि०विमलाचल गायो, गाथा-५. २.पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि: समेतसिखर पर वंदिये; अंति: कहे नगजी नित वंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम.५ परमेष्टि आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: द्यानत० फल पावे, गाथा-८. ४. पे. नाम. चौविसजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तति, पुहिं., पद्य, आदि: प्रणमं जिनदेव सदा; अंति: यादराय० चरन के चेरे, गाथा-४. ५.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखो माई आज रिषभ घरि; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ६. पे. नाम. घडियाली गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सुणौ चित लायकै; अंति: समयसुंदर० एहज आधारा, गाथा-३. ८१७३९ () धन्नाअणगार सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३७-४०). १. पे. नाम. धन्नाअणगारऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: गावै कल्याण सुरंग रे, ढाल-२, गाथा-१५. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१७४०. वर्द्धमान बासठियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २५४४५-४८). वर्धमान बासठीयो, प्रा.,मा.गु., को., आदि: गर्भ विना जीव में; अंति: च्यार कर्म उदय. ८१७४१. शीयलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंडित. त्रिभुवनलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ८४३०-३३). शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: शीयल सोरंगि चुंदडी; अंति: हुवो ते जे जेकारजी, गाथा-१०. ८१७४२. शीखामणना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३५-३८). १९ बोल-श्रावकाचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले भणवा गुणवा; अंति: पडे सुत्रनी साखे. ८१७४३. (+#) जिनकुशलसूरि गीत द्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७-६६(१ से ६६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३२-३६). १. पे. नाम, जिनकुशलसूरि गुरुगुण गीत, पृ. ६७अ, संपूर्ण. वा. अमरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गिरवो नित गाजै; अंति: अमरसिंधुर० सरण आधार, गाथा-६. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गुरुगुण गीत, पृ. ६७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० वा. अमरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु श्रीजिनकुशलस; अंति: अमर० साचा गुरुराज रे, गाथा-९. ८१७४४. (#) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३६-३९). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ग. कपूरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९वी, आदिः (-); अंति: सातम सुख पाया रे लो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुद्धो धरम मुंकीस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) । ८१७४५. (+) औपदेशिक पद व सजझायादि सग्रह, अपूर्ण, वि. १९६८, पौष शुक्ल, बुधवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. १७, ले.स्थल. सिगोली, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२४.५४१२, १६x४३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, पृ. २अ, संपूर्ण. तारामतीराणी सज्झाय-शीलगण, म. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: अहो मारि तारा रानी; अंति: हीरालाल लो या वात, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. हीरालाल, रा., पद्य, आदिः (१)लिखतं मारा लीखीया, (२)लीखा लेख को कोन मिटा; अंति: दिनो संसारसु तारी, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: कार्या जरा लाज तो; अंति: हीरालाल०पावे अमृतपान, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: सवल्या मारवाड को; अंति: जीन० गायो हीरालाल, गाथा-६. ५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मुनी के नमियो; अंति: हीरालाल०प्रथवी हमारे, गाथा-५. ६. पे. नाम. साधारणजिन गहुंली, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: बाइजी मारा प्रभुजी; अंति: हीरालाल० जीनवर चरणा, गाथा-६. ७. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय-भाविभाव, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: वीधाता नाथ एसी क्यो; अंति: न मिटे कोड वीचारी हो, गाथा-८. ८. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: दियावंत गुणा का साघर; अंति: हीरा० सर्ण हे तीयारो, गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: कठन घन मुगत मारग की; अंति: हीरालाल० जवाहिरलाल, गाथा-६. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: अब मेरी नइया लगा दो; अंति: हीरा० मर्ण दिया टार, गाथा-६. ११. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: जबसे जनम्यो घटत आउको; अंति: हीरा० पार लगाती हे, गाथा-९. १२. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. कृष्ण पद, हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: मान मान रे लाल नंदका; अंति: दाण चुकाकर जाती रे, गाथा-९. १३. पे. नाम. हरिचंद्रतारामतीराणी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. तारामतीसती सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: वीपतामे कोण आधारा; अंति: सतसे भरेगा भंडारा रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: मातासु अरजी करे उभा; अंति: हीरालाल० भवनो पार, गाथा-९. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: मुसाफर चलनेकि होसि; अंति: हीरालाल कहे सुवीचारी, गाथा-९. १६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ.५आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: मद्रापानके पिने वाले; अंति: हीरालाल कहे या टाले, गाथा-९. १७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: अजब रंग लागोजी लागो; अंति: हीरालाल करमा को दागो, गाथा-७. ८१७४६. (+#) खरतरगच्छ सामाचारी पत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २३-२६४८०-८३). १. पे. नाम. सामाचारी-खरतरगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसरि, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए इच्छाइ; अंति: जिणस्स छ कल्लाणयाई, गाथा-६०. २. पे. नाम. सामाचारी खरतरगच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधु सामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र मासनै बीजै; अंति: आमनाय लगी जाणवी. ८१७४७. सोलस्वप्न लावणी व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १९x४५-४८). १. पे. नाम. सोल स्वप्न लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न लावणी-चंद्रगुप्त राजा, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: शासन नायक सुरतरू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ८१७४८. (+) ऋषभजिन अष्टभयछंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. य. कस्तुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १२४३०). आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगत; अंति: ज्ञान० कही कीसत सुणी, गाथा-१८. ८१७४९ (#) २४ जिन परिवार स्तवन व दीपावलीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३७, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रधानसागर; पठ. मु. लालजी (गुरु मु. प्रधानसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९-१२४२८-४०). १. पे. नाम. २४ जिन परिवार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. प्रधानसागर; पठ. मु. लालजी (गुरु मु. प्रधानसागर), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.ग., पद्य, आदि: चउवीस तिथंकरनौ; अंति: कर जोडी करुं प्रणाम, गाथा-७. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: सरस्ती द्यो मुझ वाणी, गाथा-४. ८१७५०. सिद्धचक्र स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व अजितजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १४४४०-४४). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीधचक्र वर सेवा कीजे; अंति: इम पद्ममे मंगलमाल, गाथा-१३. २.पे. नाम. संखेश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे; अंति: निज रूपे चिरणंदे, गाथा-७. ३. पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: सकलसुखसमृद्धिर्यस्य; अंति: मां पुण्यमूर्तिः, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१७५१. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४९, वैशाख शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बुसि, प्रले. पं. उमेदराज, पठ. मु. रुएराज (गुरु पं. उमेदराज ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. महावीरजी प्रसादात्., दे., ( २४.५X१२, ९४२१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारण जिन स्तुति-विभिन्न तीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि अष्टापद जिम आदि जिन अंति करे अंबिका देवीऐ जी, गाथा ५. ८१७५२. (+) नेमजिन आठ भव वर्णन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४.५४११.५, १७४३२-३६). २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-२, संपूर्ण. , ८९७५४ आनंदघन चोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, जैदे. (२४.५X१२, १८९५२-५५). नेमिजिन सज्झाय-८ भव वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: एक भील हतो विकराल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २८ अपूर्ण तक है.) ८१७५३. सिद्धार्थराजा कृत महोत्सव व सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे २ प्रले. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १६x४५-४८). १. पे नाम. सिद्धार्थराजा कृत महोत्सव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि (-); अति भाट चारण संतोख्या, (पू. वि. महोत्सव में खान-पान के वर्णन से है.) יי स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंद्रप्रभस्तवन गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ८१७५५. (+) वर्षाकाले गोचरी आचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X११, ११x४२-४५). साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सामचारी . संख्या- ३ से है व २० तक लिखा है.) ८१७५६. धन्नाजी सज्झाय व औपदेशिक दोहे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., ६९ (२४.५५११, १३४३२-३५ ). १. पे नाम, धन्ना सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. " धन्नाकाबंदी सज्झाय, मु. दुर्गदास ऋषि, मा.गु. पद्य वि. १८३५, आदि: नगर काकंदी से वासियो; अंति: गुण गाया मनरे उल्लास, गाथा - ९. २. पे नाम औपदेशिक दोहे- नश्वर काया, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नश्वर काया, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: कायनगर के दस दरवाजा; अंति: कबीर० उध मुख जलायो, गाथा - ११. ८१७५७. (#) तामलीतापस चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, १५X३१). तामलीतापस चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: (-); अंति: पुरो थयो सुखकारो रे, ढाल - ९, (पू.वि. ढाल-७ से है.) ८१७५८ (+३) पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २-२ (१) = १, कुल पे. ४. प्र. वि. हुंडी तवनाको पानो, पदच्छेद , सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X१२, १३×३५-३८). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहरख० दुखहरणी छे एह, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा - १९ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुर्हि, पद्म, आदि तु मेरे मन में अति साहिब तीन भुवन में, गाथा- ३. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, संसार अनित्यता सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: मन रे तू छोड माया; अंति: स्वामि नाम संभाल, गाथा-३. ४. पे. नाम, नवकार सिझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-७. ८१७५९ (4) खेमऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४४०-४५). खेमऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने लागु; अंति: पामे मोक्षद्वार, गाथा-१८. ८१७६०. समाधिमरण मोटाभाषा, अपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्रले. नंदराम ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समाधि., दे., (२५.५४११.५, १०x४१). अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: महिमा वचन अगोचर है, (पू.वि. आत्मिक सुखवर्णन अपूर्ण से है.) ८१७६१. चोविसजिन स्तवन-द्वय व सुबाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १९४३५-३८). १.पे. नाम. चोविसजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ मुझ अंतरजामी; अंति: मुझ जनम मरण दुख दाप, गाथा-९. २.पे. नाम. चोविसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभनाथ रक्षा; अंति: आरा मुकने पधार्या, गाथा-२५. ३. पे. नाम, सुबाहुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: सुबाहु जिनवर वांदीयै; अंति: कीयो चोमासो बुसी रे, गाथा-७. ८१७६२ (+#) नवतत्त्व भेद व आलोचना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५-१८४४५-४८). १. पे. नाम. नवतत्त्व भेद बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना चउदें भेद; अंति: चारित्र ३ तप ४. २. पे. नाम. तीर्थंकरादि आशातना आलोचना, पृ. १आ, संपूर्ण. तीर्थंकरादि आशातना आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: पंचमहाविदेह खेत्तरे; अंति: (१)पगे लागीने खमार्बु छु, (२)खुतो आयाहीणं पयाहीणे. ८१७६३. मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, जिनप्रतिमा स्तवन व जिनबिंबपूजा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, पृ.वि. मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन जिनप्रतिमा स्तवन-सहस्रकूट जिनबिंबपूजा स्तवन, जैदे., (२५४११, १४४४३). १. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. महपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लब्धिवल्लभ गणि कही, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सहस्त्रकूटजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन-सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल हो तीरथराइ; अंति: राम० जिन यात्रा लहै, गाथा-१७. ३. पे. नाम. जिनबिंबपूजा स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनचंद्रसरि, मा.ग., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८१७६४.(#) शनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. आणंदपुरनगर, प्रले.ऋ. पेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शनीस्चरजीरोछंदपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७X४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-११. ८१७६५ (+#) जंबुकुमार चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:उपदेश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १८४४२-४५). जंबकुमार चोढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: आद अनाद रो जीवरो रे; अंति: तली चोडे तिणरै अंग, ढाल-४. ८१७६६. () गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४३२). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: लावण्यस० संपति कोडि, गाथा-९. ८१७६७. (*) औपदेशिक सज्झाय, दिसाणुवाई विचार व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १९-२४४५३-५६) १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथवी पाणी अग्निमे; अंति: (अपठनीय), गाथा-४६, (पू.वि. अंतिम वाक्य अवाच्य है.) २. पे. नाम, दिसाणुवाई विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. २७ द्वार अल्पबहत्व विचार-दिशा आदि, मा.गु., गद्य, आदि: समुचै जीव पांच थावर; अंति: संख्या० वीए० संख्या०. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीतरागीजुरे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६ तक है.) ८१७६८. नेमराजुल लावणी व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दोनों सवैया की गाथाएँ क्रमशः हैं., जैदे., (२५४१२, १२४३२-३६). १. पे. नाम, नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अरज; अंति: फर फेरा नहि फरनु की, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-स्वाभिमान, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मु. खोडीदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तज रे गाम गेमारन को; अंति: मुख पर जूतीउमागता हे, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. गंगधर, पुहिं., पद्य, आदि: रावण सरखे रट गहे; अंति: गंगधर० घुडघुड घुडकी, गाथा-२. ८१७६९ (+#) उठामणानो उपदेश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३७-४०). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: तेहथी मंगलमाला संपजै. ८१७७०. चक्रेश्वरीमाता गरबी, संपूर्ण, वि. १९५०, मध्यम, पृ. १, प्रले. इच्छाराम भाइचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १०४२८-३२). चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली रे चक्केसरी; अंति: जो छे बहु सोभा ताहरी, गाथा-९. ८१७७१. (4) पार्श्वनाथ निसाणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४४५-४८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गावंदा है, गाथा-३२. ८१७७२. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४११, १३४३२-३६). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: नंदन कुं तीसला; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) ८१७७३. (+) पुंडरीककुंडरीक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जावेदसर, प्रले. मु. कपुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, १७-२०४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुंडरीककंडरीक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कंडरिक ऋद्धि तजी; अति आगम वचन प्रमाण रे, ढाल ४, गाथा १००. ८१७७४. नेमिजिन वारमासा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२५x११.५, ९-११५२५). " " नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि श्रावणमासे स्वामि; अंतिः कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा - १३. ८१७७५. सीख सवासी, संपूर्ण वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पू. २, ले. स्थल, अजिमगंज, जैदे. (२४४१२.५, १४X३२-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरु उपदेश संभारौ; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा - ३६. ८१७७६. पद्मावतीनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५४११, ८x२८-३२) पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिवे राणी पदमावती अंति समयसुंदर ० भव तत्काल, ढाल -३, गाथा-३६. ८१७७७. (*) भगवतीसूत्र-पंचमशतक-षष्टोद्देशकादिमसूत्राणि सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे.. (२४४११, १३९५२-५५ ). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., 'माणस्स किंकज्जइ गोबहु' पाठ तक है.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८१७७८. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२५x१२, ९४२४) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण आवीया रे; अंति: पूजूसण आवीया रे लाल, गाथा - ११. 3 ८१७७९. (४) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण वि. १८१९ भाद्रपद शुक्ल, १३ मंगलवार, मध्यम, पू. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १५X४७-५०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६९, आदि द्वारिकानवरी समोसर्व अतिः कांति० मंगल अति घणो, ढाल -३, गाथा - २७. " ८१७८० () शीयलनी नववाडनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२, १३x२५-२८) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंति: (-), (पू.वि. वाड-८ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८१७८१. (+) राजुलइकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मांगीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे., (२५X११.५, १३x३२). राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सुण सुण साधुजी ए; अंति: सुदि पांचम मंगलवार, गाथा - २१. ८१७८२. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. ले. स्थल, बीकानेर, जैदे., (२४.५X११, १४X३५-३८). १. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, ले. स्थल. बीकानेर. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हुं; अंतिः समय० पाण परसिद्ध, ढाल ५. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभु निति; अंति: गतिना सुख प्रभु लीया, गाधा- १२. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१७८३. अरिहंतपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. स्यामकोरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, ११४२३-२६). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: जसतणी० न अधूरी रे, गाथा-१४. ८१७८४. (+) निन्हव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, २२-२५४६८-७६). निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनइ केवलज्ञ; अंति: धर्म राखवो दुष्कर छइ. ८१७८५ (4) कुपात्रदानपरिहार कथा, स्तुति, स्तवन व जैन आचारविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, ११-१६x२८-३२). १. पे. नाम, कुपात्रदानपरिहार कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: दान कुपात्रना; अंति: कुपात्रनां दीयते. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविशमे आवी उपजे; अंति: बोले संकट दूरे टलसे, गाथा-१५. ३.पे. नाम, जंबुस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ____ जंबूस्वामी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मयणा सीरमोडी कामनी; अंति: ते नमो जंबुस्वामी, गाथा-१. ४. पे. नाम. जैन आचार-विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१७८६. मेघकुमार सज्झाय व चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. अक्षयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३५-३८). १. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पुन्या० हो स्वामी, गाथा-२२. २.पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, प. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: आज हमारे आंगनडै कांइ; अंति: मुझ तुठा वीरदयाल रे, गाथा-५. ८१७८७. (#) जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित गोत्रसूची, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पुनरासर, प्रले. पं. गुणविलास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४३३). जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित गोत्रसूची, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: १ वाजेंड गोत्र; अंति: गोत्र बृद्धखरतर. ८१७८८. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२८-३२). शजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृतवचने रे प्यारी; अंति: स्तवीयो गिरि सोहंकर, गाथा-२७. ८१७८९ (4) महावीरजिनविनती, चंद्रप्रभजिन व भुजंगजिनस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४२८-३२). १.पे. नाम, महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम, चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: आणंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. भुजंगदेव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. भुजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भुजंगदे भावे भजु रा; अंति: वसे मुझका नलाल रे, गाथा-६. ८१७९० चोविसजिन एकसौ वीस कल्याणक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१२, १३४२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कातिवदि संभवजिनज्ञान; अंति: (१)सुदी १५ च्यवन नेमनाथ, (२)पारं० नमः १००० गुणवो. ८१७९१. (4) असज्झाय विचार, सात नरकनो जाडापणो, चौद गुणठाणा नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४५२-५६). १.पे. नाम. सात नरकनो जाडापणो, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ नरक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मा १ पहिली नारकी; अंति: सातमो बोल मे छइ. २. पे. नाम. छः जीवकाय विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकायनो आउखो; अंति: तीन पल्योपमनो छ. ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंति: अजोगी गुणठाणुं १४. ४. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूक्ष्म रज आकाश थकी; अंति: पनिमइ सझाइ न सुझइ. ८१७९२. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. खेमत, प्रले. मु. खेमसोम; पठ. मु. खंतीसोम (गुरु मु. खेमसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४३२-३६). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: (-); अंति: दीप० गुण गावीया, ढाल-६, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ८१७९३. (#) शनीश्चर छंद व नेमिजिन धमाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४२२). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. पं. रतनविमल; पठ. मु. गणेश, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वली एम वखाणीए, गाथा-१६. २. पे. नाम. नेमिजिन धमाल, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शुभरथ फेरी पाछा वलीय; अंति: हो रतनविमल रंगमाल, गाथा-५. ८१७९४. (+) साधुवंदना बड़ी, अपूर्ण, वि. १९०९, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, ले.स्थल. इंदोर, प्रले. मु. काशीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११.५, १७४३६-४०). साधवंदना बहद, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नम अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: रिषि जेमलजी ईम कहे, गाथा-११०, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से गाथा-८९ तक नहीं है.) ८१७९५. आत्मनिंदा भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १८४५२-५५). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगड प्रवीन. ८१७९६. (+) तपफलनो विचार सरवालो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. माधव गोवर्द्धन पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १३४३२-३५). उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक उपवासे एकनो फल; अंति: पुन्यनो भोग हुवै. ८१७९७. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११.५, १३४२८-३२). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: मंगलमाला विस्तरे. ८१७९८. पद्मावती आराधना, २० विहरमानजिन नाम व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. सरूपसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३५-३८). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छुटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-४१. २. पे. नाम. वहिरमाण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.. चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पढमल लुरण; अंति: पास पयछय वंच्छयो, गाथा-२. ८१७९९ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. श्राव. त्रिभोवनदास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'सागरगछे' ऐसा उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ९४२७-३०). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-२०. ८१८००. दंडक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ.५-३(१ से ३)=२, प्रले. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२.५, १६४३२-३५). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: इम गावे धरमसी सुजगीस, ढाल-४, गाथा-३५, संपूर्ण. ८१८०१ (+) सदर्शनसेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२६४१२. १२४४५). सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: शीलरतन जतने धरो रे; अंति: सीस क्षमाकल्याण रे, गाथा-११. ८१८०२. (4) प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४२८). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐकार वंद संयुक्तं; अंति: कटपे कथमांश्रीयंति, गाथा-११. ८१८०३. वैद्यवल्लभ-वातज्वरनिदान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हंडी:वैद्यवल्लभ., जैदे., (२६४१२, ६४३४). वैद्यवल्लभ-हिस्सा वातज्वरनिदान श्लोक, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वती हृदि; अंति: कृष्णायुक्तः कषायकः, श्लोक-५, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ-हिस्सा वातज्वरनिदान श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पीपलयुक्त काढौदैणौ, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र श्लोक-५ का टबार्थ लिखा है.) ८१८०९ (+) मोटी साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:साधवंदना., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २६४५१). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ तक है.) ८१८१० (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२,१६४३८). १.पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि पद, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारे वहनी जाति; अंति: लक्ष्मीसूरि० दाये रे, गाथा-३. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-८. ३. पे. नाम, बाहुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हांसीया में लिखी हुई है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिव हो साहिव वाहु; अंति: जस कहै सुख अनंत हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधरने कहेजो; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. ५.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधरस्वामी सुणज्यो; अंति: प्रेमविजय० अरदासजी, गाथा- ७. ८१८११. (+) चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१२.५, १५x२६). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंअर कहै करजोडी रे, गाथा - १३. ८१८१२. चौद गुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२६४१२, १५४४५). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., आदि (-) अंति: (-). ८१८१४. (+) पद्मावती छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५४१२, १३४३५). " पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु. सं., पद्य, आदि: श्रीमत्कलिकुंडदंडं, अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा ११. ८१८१५. आदिजिन स्तवन व सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११, १६- २०X३८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि जोग न मांड्यो मै घर अति वेज्यो श्रीजिनराज, गाथा २६. २. पे. नाम. सुकनावली, पृ. १आ, संपूर्ण पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम ११२ मध्यम, अंति: ४४३ जघन्य ४४४ उत्तम. ८१८१६. चौमासीदेवबंदन विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२६११.५ १२४४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौमासीदेववंदन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि ४; अंति : पांच स्तवन कहेवा. ८१८१७ (क) अमुत्तामुनि व निंदा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X१२, १९३३). १. पे नाम. अमुत्तामुनि सज्झाव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि वीरजिणंद वांदीने अतिः वंदे अइमतो अणगार, गाथा २०. - २. पे. नाम. निंदा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा तुं म कर रे; अंति: म भणीस उछो रे बोल, गाथा- ६. ८१८१८. (*) नेमनाथ स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. हेतवर्द्धन प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, ७-११X३०). १. पे. नाम. नेमीश्वर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दरशन दीठे दिलडां अंति: गावे उलसीत भावे रे, गाथा - ९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह*, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञानसमो कोध नही; अंति: नही लोभसमो नही दुख, दोहा - १. ८१८२० (#) नेमजिन गीत व रागमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., है. जैवे. (२५.५x११.५, १०x४९). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पू. १अ संपूर्ण, मु. (२६X११.५, १७५८). १. पे. नाम. नेमिनाथराजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत. ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: राणीराजल बोली काहे; अंति: दवाकुशल० सुख जोडी, गाथा-६, (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य अधूरा व अस्पष्ट है.) २. पे. नाम. रागमाला स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नेराजिमती रागमाला स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए मियलोयणी पियाकु; अंति: रागमाला नेमिसुं मली, गाथा-१०. ८१८२९. मेघकुमार सज्झाय व सामायिक लाभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धरणी मनावे रे मेघ, अंतिः छुटे भव तणो पास, गाधा-५. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सामायिकलाभ सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि कर पडिकमणुं भावशुं अंति: पामे निदान लाल रे, गाथा - ६. ८१८२२. व्याकरणग्रंथ व आदिजिन पद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे (२५.५४११.५, १६x५६). १. पे. नाम. व्याकरणग्रंथ, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र बीच का किंचित् अंश लिखा है., वि. किसी ग्रन्थ की टीका का भाग प्रतीत होता है . ) २. पे नाम. आदिजिन पद सह बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: परम परम गुन सदन मदन; अंति: जय जय असरन सरन, गाथा-१, संपूर्ण. आदिजिन पद-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: परम कहीयै सर्वोत्कृष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. 'जौ कोऊ यौ पूछै तासौं यो पाठ तक है.) ८१८२३. औपदेशिक श्लोक संग्रह व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११.५. ७७ ११X३३). १९. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: जुवा आमिष मदिरा दारी; अंति: गोहीया एक लडै सीयाल, लोक- ९. २. पे. नाम. सीमंधरजिननुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१८२४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-८७(१ से ८७) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी ज्ञातासूत्र., जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १६ अपूर्ण मात्र है.) ८१८२५. () बंदी थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी बंदीथोकडा, अशुद्ध पाठ., ..... (२६.५x१२, १८४५१). बंदी थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. 'मनवजोगी मीसर वीटी' पाठांश तक है.) ८१८२६. गौतम गणधर पद, औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२५.५X१०.५, १४४४५). १. पे. नाम गौतमगणधर पद, पृ. १अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि गोयम गणहर करुं, अंतिः भवसागर से लीला घरे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन आणी जिनवाणी जिनवा; अंतिः (-). (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक लिखा है.) " ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु. रा., पद्य, आदि गयंद की चोरी चालि; अंतिः छानि रहे छीनार कीनना, गाथा- ७. ८१८२७. रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. खीमचंद पोपटलाल गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६११.५, १४४३२). " रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि विचरता गामो गाम; अंतिः राजविजय रंगे भणे जी, गाथा - १५. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१८२९ (#) आहारना बीयालीसदोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३३). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: आधाकरमी जे जतीने काज; अंति: आहार विखोटे मोखि जाइ. ८१८३०. देवकीचिंता सज्झाय व धर्मदलाली छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १८४३६). १. पे. नाम. देवकीचिंता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवकी सज्झाय, म. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: इम झरे देवकी राणी; अंति: ताजी मुझे फरमावो रे, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- धर्मदलाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मदलाली छंद, पुहिं., पद्य, आदि: खरी दलाली लालन की रे; अंति: बरस्या हे जयजयकार, गाथा-१७. ८१८३१. कथलानी सज्झाय व औपदेशिक कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. कथलानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विकथा परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: पुने पाखिने दिवसे; अंति: न करा केहनि तात जी, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, प. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ज एह विधान सभा; अंति: के तुलि तुमारे संग, गाथा-३. ८१८३२. जैनधार्मिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२६.५४११.५, २२४७१). दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद आणंदमई; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-३९ तक लिखा है.) ८१८३३. (+) आध्यात्मिक श्लोक संग्रह व पंचजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४३९). १.पे. नाम, आध्यात्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चित्रं चेतसि वर्तते; अंति: देवाधिदेवो जीवः, गाथा-४. २.पे. नाम. पंचजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयति कनकावदातः कृष्ण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१८ तक लिखा है.) ८१८३४. प्राणातिपातादि ५ महाव्रत वर्ण विवरण भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२५.५४१२.५, ४१x१९). जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८१८३६. नेमिजिन स्तुति व श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४१२, ९४३२). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करो अंबिका देविय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवपूजादयादानं तीर्थ; अंति: मुनिवर वेसानसारिसा, श्लोक-९. ८१८३८. औपदेशिक श्लोक व बोलविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४६). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दधिक्षीरेषु तक्रेषु; अंति: लोका अदत्तफलमिदृशं, श्लोक-१८. २. पे. नाम. ३६३ पाखंडीभेद गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: मूर्खकस्य स्वभावोयं; अंति: विनयवाईण बत्तीसं, गाथा-९. ३. पे. नाम. सात अभव्य अधिकार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: कविला १ कालगसूरि २; अंति: उदाई ६ इगालस ७. ४. पे. नाम. बोलसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१८४०. प्रतिक्रमण व पौषधादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १३४४३). १. पे. नाम, राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ईरियावहि; अंति: पछै कम्मभूमि कहै. २. पे. नाम. पाखी विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडि; अंति: देवसी पडिकमणो करवो. ३. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सामाइक लेवी; अंति: दसण्णभद्दो कहीयै. ४. पे. नाम, देववंदन विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सक्रस्तव कहिवो; अंति: पछै नमोत्थुणं कहीयैइ.. ८१८४१ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १२४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ८१८४२. २१ स्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४.५४१२, ९४३३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-५७ अपूर्ण तक ८१८४३. (+) चैत्यवंदनभाष्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ४,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४२९). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. ८१८४४. (+) अंगुलसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ७४४६). अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभसमगमणमु उसभं जिण; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४३ तक लिखा है.) अंगुलसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उ० ऋषभदेव स्वामी ते; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ___ गाथा-६४ अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ८१८४५. (+) पार्श्वनाथजीरी गग्घर नीसाणी, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. थोभ, प्रले. पं. अखैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४४१०.५, ११४२७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिणहरष कहंदा है, गाथा-२७. ८१८४६. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. श्रावि. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२३.५४१२, ९x४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक का बालावबोध लिखा है.) ८१८४७. (4) पच्चक्खाण संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ३४३९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र- टबार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि सूर्य उग्या पछी अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पारइ तो पच्चक्खाण भंग न थाइ" पाठांश तक लिखा है.) ८१८५१. (*) षोडशस्वप्न विचार सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९३६, मार्गशीर्ष कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४१२, ७९४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहारसूत्र चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः धम्मझाणेण दिवगच्छंति. व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आरा; अंति: करी स्वर्ग जाइ. ८१८५२. (+#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५- २ (१ से २ ) = ३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११, १३४३७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सुविधिजिन स्तुति से पार्श्वजिन स्तुति गाथा-३ अपूर्ण तक है.) " ८१८५३. दोहा सवैयादि संग्रह व विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४ (१ से ४) ३, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक व पूर्णता संदिग्ध है, विशेष संशोधन अपेक्षित विविध विषयों के शीर्षक हांसियों में दिया गया हैं. वे. (२४४११.५, २३६१). १. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: को कढि न मिल्यो चोलो, (पू. वि. प्रारंभ के पाठ नहीं हैं.) २. पे नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण विविध विचार संग्रह*, गु., प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पूर्णता संदिग्ध. अंत में पेंसिल से जीवों के आयुष्यविषयक कुछ अस्पष्ट लिखा है.) ८१८५४. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सुरत, जैदे., ( २६११.५, १३X५४). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल - ११, गाथा - ९७. ८१८५५. गोचरी के ४२ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६५, आषाढ़ कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. चंदरी (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४X११, ४X४०). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि आहाकम्मं १ उद्देसिय अति: १०५ पारासीए १०६ रुपे, गाथा ५. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आदाकर्मी आहार छ, अंति: गर्ग पाम सौद होवे छे. ८१८५६ (+) जीवविचार प्रकरण व पार्श्वजिन स्तव, संपूर्ण वि. १८५४ श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. ऋ. रुपचंद (स्थानकवासी) पठ श्रावि, खेतुचाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, ११X३०). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. गाधा ४० पाद-२ तक अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखा गया है. आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीर नमिऊण अति शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा-५१. , " 3 २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि श्रीसेढीतटिनीतटे, अति नाथो नृणां श्रिये श्लोक-२. ८१८५७ (#) जीवविचार प्रकरण, महावीरजिन स्तव व दुरिअरयसनीर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)= ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११.५, १४४४४). १. पे नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि (-); अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा ५१ (पू. बि. गाथा ३५ से है., वि. गाथांक ३५ के स्थान पर ३८ लिखा है.) २. पे. नाम महावीरजिन स्तव, पृ. ४आ- ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ३. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१८५८. भक्तामर स्तोत्र व सिद्धाचल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १४४३२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८२०, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, प्रले. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम, सिद्धाचल पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. ८१८५९ (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, ९४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ८१८६० (+) वीरत्थुई नामज्झयण, नमिपवज्जा अज्झयण व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:वीरथूइ०नमी०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६x४४). १.पे. नाम. वीरत्थुई नामज्झयणं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महवय सुहमूलं समण; अंति: जुबु स्वामी जाणिये, गाथा-८. ३. पे. नाम. नमिपवज्जा अज्झयण, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२. ८१८६१. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १५४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतिमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८१८६२. (+) प्रश्न संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८४४४). प्रश्न संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सेनप्रश्नोत्तर प्रश्न-३८ अपूर्ण से भगवती वृत्ति जयंती प्रश्नाधिकार अपूर्ण तक है.) ८१८६३. नेमिनाथजी रो सिलोको, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४११, ९-१२४२६-२८). नेमिजिन सिलोको, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सारद सुण माता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) ८१८६४. (#) दंडक प्रकरण व पंचेंद्रिय विषय विचार, संपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. पंन्या. भीमविजय; पठ. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिपार्श्वप्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५,१२४३४). १. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४८. २. पे. नाम. पंचइंद्रिनो विषय, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्यतो अंगुलनो; अंति: इंद्रियनो विषय जाणवो. For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org ८९८६५. बुद्ध रास व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण, वि. १८१७, पौष शुक्ल २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. य. डामर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, १५X३०). १. पे. नाम बुद्धि रास, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पणमवि देवी अंबाई पंच अति सवि टले कलेस तो, गाथा-६७. २. पे नाम औपदेशिक दहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ८१८७०. दशवैकालिकसूत्र का बालावबोध अध्ययन-१, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५x११.५, २४४४७). יי दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि त्रिलोकनाथ तीर्थंकर अति (-) (पू.वि. मात्र प्रथम अध्ययन (दुम्मपुफ्फिया) का बालावबोध है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१८७१. (*) अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, अपूर्ण वि. १९०४ आश्विन शुक्ल ५ रविवार, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३)=२, प्र. वि. हुंडी: अणुतरो०., अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६११, २०X३६-३९). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-) अति कहाणं तहा णेयव्वं (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वर्ग-३ अपूर्ण से है.) " ८१८७२. सिद्धाचलजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५. ५X११.५, १०X३२). गाथा - १६. ८१८७३ वीतराग वाणी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५४११.५, २१४५० ). "" יי शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि करजोडी कहे कामनी अंति सेवक जन घरे ध्यान, वीतराग वाणी विचार, मा.गु., गद्य, आदि (१) ॐकार बिंदु संयुक्त, (२) अर्हत भगवंत अति दशांगवाणी प्रकास करी. ८१८७५ (+) सिद्धांतरत्निका व्याकरण अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जै. (२४.५x१०, ११४५० ). " सिद्धांतनिका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अनिट् स्वरांतो भवति, अंति विद्ध्यनिट्स्वरान् श्लोक-११. सिद्धांतनिका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि स्वरांतो धातुरनिट् अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र का अंतिम वाक्य वाला भाग खंडित है.) ८१८७७. नवतत्त्व गुण व अरिहंत बार गुण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१२, २०x४३). १. पे. नाम. नवतत्त्व के गुण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नवतत्त्वगुण बोल-रूपी अरूपी विचार, मा.गु., गद्य, आदि नवतत्वमांही रूपी अति: विक्रय शरीर होय. २. पे. नाम. अरिहंत के बार गुण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. १२ गुण अरिहंत, मा.गु., गद्य, आदि: १ सौवर्णमय सिंघासण, अंति: (-), (पू.वि. गुण - १० अपूर्ण तक है . ) ८१८८२. वर्धमानविद्या व पंचपरमेष्ठि वर्णमान श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, ९x४३). १. पे नाम वर्द्धमानविद्या, पृ. १अ संपूर्ण, For Private and Personal Use Only वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: महाणसे महाबले स्वाहा. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि वर्णमान श्लोक, पृ. १अ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदि परमेष्ठि पदी पंचभि; अति स्युर्द्विवर्णोनाः, श्लोक-४. ८१८८३. (*) प्रदेशीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे., (२५.५x१०.५, १७x४३). प्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि प्रेवीसमो तित्थेसर अंतिः ण हयो मुज श्रीजिनराज ८१८८४. लब्धिद्वार विचार यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम. पू. १, जैदे. (२४.५४१२, २२४४०-४३). " लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, आदि जीव गइ इंदिय काए सुह; अंति: देसउणो पुरवकोड, Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८१८८५ (+) पार्श्वनाथ स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५३). पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कल्याणमालां कमला; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३२ तक है.) ८१९०१. साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हुंडी:देवाःप्रभोइपत्र., जैदे., (२५४१२, १८४४७-५०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण से हैं व श्लोक ४ तक लिखा है.) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८१९१२. विवाहपडल का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ८x२२-२५). विवाहपडल-बालावबोध, म. अमरसंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुरष घात चंद्र तक लिखा है.) ८१९१६ (#) तीन मनोरथ व चारसरणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-३९(१ से ३९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चारसरणा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४५). १.पे. नाम. श्रावक के तीन मनोरथ, पृ. ४०अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करै संसारनो अंत करै, (पू.वि. प्रथम मनोरथ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चार सरणा, पृ. ४०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शरणा-१ के मनोरथ-१ अपूर्ण से मनोरथ-४ तक है.) ८१९१७.(-) औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. इमरता (गुरु सा. सुव्रता); गुपि. सा. सुव्रता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १८४३४). औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ममता तजे सुगता धरे; अंति: वस कसाया न दरा विगता, गाथा-३४. ८१९१९ गुणठाणाने विषे उत्तरभेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४३६-४०). १४ गणस्थानके ३८० भाव विचार, मा.ग., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ सास्वादन; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १४वें भाव तक लिखा है.) ८१९२१ मनवचनकाया भांगा व प्रतिलेखनायंत्र गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, २१-४७४४५). १. पे. नाम. परिलेहण के ४९ भांगा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: त्रिविध त्रिविध नियम; अंति: बुद्धिमद विलोक्याः. २.पे. नाम. प्रतिलेखनायंत्र गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिलेखना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कत्तिय पय चउ पउणो; अंति: छाया पयहिं गणियव्वो, गाथा-१३. ८१९२२. श्रोता के चौदह भेद चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४११, २१४५५). १४ श्रोता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: चोथमल० कर्मारी कोरी, ढाल-२४, (पू.वि. ढाल-२३ है.) ८१९२३. जीभलडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १६४३१). औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापलडी रे जीभलडी तुं; अंति: __ सती करि सुमति पढरीणी, गाथा-८. ८१९२५ (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २२४५५-५८). १. पे. नाम. दस दृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० दृष्टांत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दस दृष्टांते दोहिलो; अंति: ढील न कीजीय जाय रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. भरतबाहबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: विमलकीरति सुखदाय, गाथा-१२. ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी; अंति: घरि नवनिध संपजइ जी, गाथा-१७. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी जनमे रे; अंति: मनोहर० मानजो लाला, गाथा-११. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नारी रूपे दिवडीजी का; अंति: दसमिकालीक माहि हो, गाथा-८. ८१९२६. (#) नेमराजिमती सज्झाय व होरी पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६४१२, १७४३७-४०). १.पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर स्याम सनेसो पढ; अंति: पहला मुक्ति गई ललना, गाथा-१०. २. पे. नाम. होली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. होलिकापर्व सज्झाय, मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: नेमीसर वनखंडरो वसीयो; अंति: दुखीयाकु दरस दइयो, गाथा-४. ३. पे. नाम, नेमराजिमती होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धनिदास, पुहिं., पद्य, वि. १९१३, आदि: सब रुत को सिणगार; अंति: धनिदास० सुणु चितलाई, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पिया रथ ले पाछा फिर; अंति: जिनदास कर गया री, गाथा-८. ८१९२९ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-संवच्छरमान यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, २५४४७-५०). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-यंत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८१९३० (4) नवपदतप आराधना विधि व मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-३६). १.पे. नाम. सिद्धचक्र नवपद आराधना विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपदतप आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)आसौ अजूयाली आठमि थकउ, (२)अरिहा सिद्धायरिआ; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, (वि. प्रारंभ में विधि लिखी है.) २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. मंगल श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं; अंति: सर्वतः प्रणिदध्महे, श्लोक-१. ८१९३१ (+) विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. लीला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १३४४०-४३). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रवचन विदे कामना; अंति: अवसर रहिण किं तिण. ८१९३२. (+) अल्पबहत्व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १२४४०). अल्पबहत्व यंत्र, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-), (वि. भगवतीसूत्र २५ शतक प्रथमोद्देशक से उद्धत.) ८१९३३. अनुयोगद्वारसूत्र के बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-३८). अनयोगद्वारसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अनित्यतामशरणं भव, (२)श्रीगौतमस्वामि; अंति: जाणी साचउ सद्दहिवउ. ८१९३४. (4) चौवीस तीर्थंकर माता, पिता, च्यवन, जन्म आदि विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४५२-५५). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वासुपूज्य स्वामी तक है.) ८१९३९ औपदेशिक कवित व दुर्गादास आचार्य गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५. १५X३८-४२). १. पे नाम औपदेशिक कवित, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मु. गोपाल पंडित, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि पल पल जाता वली हां अति: गोपाल० जासी अवसरो, गाथा ४. २. पे नाम दुर्गादास आचार्य गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण . गोपाल पंडित, पुहिं., पद्य, आदि: कुल निरमल रुषीराजउ; अंति: गोपाल० जीवउ थिरु होइ, गाथा-४. ८१९४१. (f) आनंदआवक संधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X१०.५, मु. १५४४२-४५), आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि : वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -२ गाथा-४ तक लिखा है.) ८१९४४ पंचमहाव्रत की ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५४११.५, १७४३९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: सरसत किवरु ए सारदा; अंति: मानरा मनोरथ पुरण. २. पे. नाम. ११ गणधर पद, पू. १आ, संपूर्ण. " ५ महाव्रत ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुना गुण सुणजो सहु अति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१९४५ (-) राधाकृष्ण बारमासा व ११ गणधर पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२५.५X१२, १९३८). १. पे. नाम. राधाकृष्ण बारमासा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, आदि गुणवर इगार है वीरा अंतिः फतमल० खेवो पारोजी, गाथा- ७. ८१९४६. द्रौपदीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११.५, १०X३२-३५). " द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीने तुंबडुं अंति: जस० मुक्ति मोजारे, गाथा - १०. ८१९४७ (f) विविध वोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे १६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२, २२-२६X५४-५८). १. पे. नाम. धर्मरा १० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० बोल- धर्म, मा.गु., गद्य, आदि: दया पाले सो दानेसरी; अंति: नेह करे सो अखी, अंक-८. २. पे नाम. ८ बोल धर्मपरिवार, पृ. १अ संपूर्ण. ८ बोल- धर्मपरिवार, रा. गद्य, आदि धरमरो बाप जाण पणो अंतिः धर्मनो मुल खम्बा ३. पे. नाम. ८ बोल पाप परिवार, पृ. १अ संपूर्ण. ८ बोल- पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, आदि: पापनो बाप तो लोभ; अंति: पापनो वधारण० आश्रव. ४. पे. नाम. १० बोल जाणपणुं, पृ. १अ संपूर्ण. धर्म संबंध बोल, मा.गु., गद्य, आदि धर्मनो जाणपणो हुवै अति उपजावे तो साता पामे. ५. पे. नाम. १० बोल पावणा दुर्लभ, पृ. १अ, संपूर्ण. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., गद्य, आदि मिनखरी भव पावणो अति: काया करनै धर्म कर्णो, अंक १०. ६. पे नाम. अतीतकालचोवीसी नाम, पृ. १अ संपूर्ण. २४ जिननाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलन्यांनी १; अंति: श्रीसंप्रतिजी. ७. पे. नाम. अनागति चोवीसी नाम, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ८५ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६ www.kobatirth.org २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ१ सुरदेव २: अंति: अनंतवीर्य २४. ८. पे. नाम. ८ संपदा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचारसंपदा १ सुत्रसंपद; अंति: संग्रह संपदा ८, अंक-८. ९. पे. नाम. चक्रवर्ती १२ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरतचक्रवर्ति१ सागर२; अंति: श्रेण११ ब्रह्मदत्त १२. १०. पे नाम. नववासुदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ वासुदेव नाम, मा.गु. गद्य, आदि: त्रिपिष्ठ १ दुपृष्ठ२ अंति: लक्ष्मण८ क्रस्न‍ ११. पे. नाम. नवप्रतिवासुदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ प्रतिवासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि अवग्रीव १ तारक२; अंतिः रावण८ जरासिंधुर१२. पे. नाम. नवबलदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: विजय१ अचल२ सुधर्म ३; अंति: रामचंद्र८ बलभद्र ९. १३. पे. नाम. देवलोक विचार- देवदेवी संबंधी, पू. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ देवलोकरासीकंदर; अंति: १००२४ को० १५ करे तो. १४. पे. नाम. अल्पबहुत्व विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. " प्रज्ञापनासूत्र - अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु. गद्य, आदि: सर्वसु थोडा अप्रज्या अति अर्धपुदगलनी जाणवी. १५. पे नाम, साधु-साध्वी योग्य वस्ती, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी योग्य वस्ती, मा.गु., गद्य, आदि: कादव थोडो प्राणी; अति वेद जिहां हुवे १३. १६. पे. नाम. संसारमाहि जीवना बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४० बोल-संसारी जीवों के, मा.गु., गद्य, आदि: जनम मरण१ संजोग विजोग; अंति: पांच मिलीने सर्व २४०. ८१९४८. चौद श्रोता चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. हुंडी चौदेश्रुता, हुंडी अंशतः खंडित है. जैदे. (२४.५x११.५, " २१४४९), ९-१४x२४-३२). १. पे. नाम. गजसुकुमाल अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण " १४ ओता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा. पद्य वि. १८५२ आदि श्रीश्रीमंदर साहिबा अति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-७ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८१९४९. स्तवनचौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१२, १४४४२). २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि ऋषभ जिणंदा ऋषभ, अंति (-), (पू.वि. अनंतजिन स्तवन गाथा- ६ तक है.) ८१९५०. गजसुकुमाल-अइमुत्तामुनि सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६x१२, ० मु. चोमल ऋषि, मा.गु., पद्म, आदि: सासणनायक सुद्धकीनी अति चोथमल थकी मंगलमाला, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि छप्पनकुवरी आवती कर अति: समदबीजैजी के लाल से, गाथा-५. ८१९५२. पक्खिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५X१२, ९४२२-२५). (२५.५X१२, १४X३२-३५). १. पे. नाम बीजो मंगल स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम वंदेतू अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 'संवत्सरीने स्थानक देवसिक भणज्यौ' पाठ तक लिखा है.) ८१९५३. कर्मग्रंथ उदय उदीरणा सत्ता यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६X११.५, २८-३२x१२). कर्मग्रंथ-२ कर्मबंध- उदय उदीरणा-सत्तायंत्र, मा.गु., को. आदि: (-); अति: (-). " ८१९५९. (*) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., ', For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मंगल स्तवन-द्वितीय मंगल, ऋ. जयमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: दुजो मंगल शुद्धमन; अंति: जयमल्ल० वारंवारजी, गाथा-१६. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गद्य, वि. १९८३, आदि: सामल हो गौतम बीस बोल; अंति: चोथमल० है साल रसाल. ३. पे. नाम. शीलव्रत सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ७ सती सज्झाय- चेटकराजपत्री, म. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: चेडा राजा रे बेटिया; अंति: चोथमल० जोड़ जुगत आणी, गाथा-२१. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: वे गुरु मेरे उर वसो; अंति: चढो भूधर मांगे एह, गाथा-१५. ८१९६१ (+) होडाचक्र भाषा व वारनक्षत्र कष्टावली, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. शिवलाल (गुरु मु. ख्यालिराम); गुपि. मु. ख्यालिराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १५-१८४४८-५२). १.पे. नाम. होडाचक्रनी भाषा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. होडाचक्रविलास-भाषा, म. संदर ऋषि, मा.गु., प+ग., आदि: माता सरस्वति प्रणमीए; अंति: सुंदर०होडाचक्र विलास. २. पे. नाम, वारनक्षत्र कष्टावली, पृ. ३आ, संपूर्ण. - वार नक्षत्र कष्टावली, सं., गद्य, आदि: अद्य १ वृष२ मृगांग; अंति: पीडा उपरंत सूखी २७. ८१९६२. (+) सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सामुद्रकशास्त्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५-२१४५०-५३). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्त्री लक्षण में श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) ८१९६६. २० सखी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. सा. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २४४३२). २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तम साध पधारीया; अंति: गोरधन० वीगोवै रे, गाथा-२३. ८१९६७. (#) शीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४७-५२). शीलपचवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पासना रे; अंति: कांतिविजय० सज्झाय रे, गाथा-२७. ८१९६८ (+#) पच्चक्खाणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४३६-३९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. "भोगेणं सहसागारेणं" पाठांश तक है.) ८१९६९. औपदेशिक हरियालीद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३०-३३). १. पे. नाम, औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो मोरी सजनी एक; अंति: नेमविजि० बलीहारी रे, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हरियाली-३ गाथा-१ अपूर्ण लिखकर छोड़ दिया है. मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वण परणावी बालकुयारी; अंति: नेमवजे० तिनी मत सारी, गाथा-७. ८१९७० (#) पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४२). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: कहै जिनहर्ष कहंदा है, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१९७१ (4) अभिधानचिंतामणी कोश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. १अ पर प्रतिलेखक ने वायुविचार फल आरंभ कर छोड़ दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-१ श्लोक-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ८१९७३. (4) आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३३-३६). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे छइ कांबल; अंति: मूरख कवि देपाल वखाणइ, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: कवि इम वखाणइं कहे. ८१९७५. (+) अनुभवज्ञान विचार, श्लोक संग्रह व पत्रलेखन पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७-२०४५५-५८). १.पे. नाम, अनुभवज्ञान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., प+ग., आदि: जे संसारी प्राणी नव; अंति: अनुभव या को नाम. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वर्णावर्णश्च वेदेभ्य; अंति: तो माणस केहो माजनो. ३. पे. नाम, विजयक्षमासूरि प्रशस्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि तपागच्छाधिपति विनती पत्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रसिध श्रीअमुकनगर; अंति: वंदणा १०८ अवधारसीजी. ८१९७६ (+#) जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४३७-४०). श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, वि. १९वी, आदि: एगग्गचित्ता जिणसासणं; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य आंशिक रूप से खंडित है.) ८१९७७. (+#) जन्मपत्रीपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २०४४३-४६). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सारदां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संक्रांतिसंज्ञा तक लिखा है.) ८१९८१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४४०). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहिइ समस्त कुशल; अंति: करता सुखशाता संपजै. ८१९८२. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ की गाथा-१२ अपूर्ण से ३७ __ अपूर्ण तक है.) ८१९८३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९-३८(१ से ३८)=१, ले.स्थल. गुडल, प्रले. मु. रुपचंद ऋषि (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि); गुपि. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. जीवण ऋषि); अन्य. सा. वालुबाई; सा. जीवीबाई माहासती; सा. मीठीबाई स्वामी; सा. संतोकबाई (स्थानकवासी),प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. पत्रांक-३९आ पर महासती संतोकबाई द्वारा संवत् १९६१ कार्तिक शुक्ल १५ मंगलवार को अमरेली मोहन भंडार में यह प्रत देने का उल्लेख है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है., जैदे., (२५४१२, ५४२३). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: आणाए अणुपालियं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मात्र अंतिमवाक्य है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आज्ञाइ पाल्यउ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं ८१९८४. पार्श्वजिन स्तोत्र व लेखनोपकरणादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुंकागच्छ); मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १४४३६-४०). १. पे. नाम, पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरती जग जाण; अंति: मेधराज० त्रीभुवनतीलो, गाथा-५. २. पे. नाम. कागल लखवा माटे ३० चीजो सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ३० लेखन साधन विचार, सं., गद्य, आदि: कीकी १ कर्ण २ कोटि; अंति: ३० कडुलं लिख्यते कैः. ३० लेखन साधन विचार-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: आंखिनी कान ग्रीवा; अंति: का मिलेतो कागल लिखाइ. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दस हाथ यूथ 3 विकल; अंति: लंडभंड लंपटी लबार थे, गाथा-१. ४. पे. नाम. दस भुवनपति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १० भुवनपतिदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: असुरनिकाय १ नागनिकाय; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दसवें भुवनपति का नाम अपूर्ण लिखा है.) ८१९८५ (#) गीरनारतीर्थ कल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १४४४५-४८). गिरनारतीर्थ कल्प, म. ब्रौद्र; सरस्वती, सं., पद्य, आदि: श्रीविमलगिरेस्तीर्था; अंति: संस्तवं तुष्टय, श्लोक-२३. ८१९८६. वासुदेव बलदेव च्यवन आयुमान देहमानादि विवरण व पच्चक्खाण फल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७X१२, ३८-४२४२५-२८). १.पे. नाम. वासुदेव बलदेव च्यवन आयुमान देहमानादि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: त्रिपृष्ठ वासुदेव; अंति: वीच हुया नरग गया १२. २. पे. नाम. पच्चक्खाण फल, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रह उठीने दस पचखाण; अंति: करता कोडाकोड वर्ष. ८१९८७. औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३२-३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: स्वार्थ का संसार, गाथा-५. २.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीरजिणंद; अंति: दीज्यो मक्तनो वास, गाथा-१४. ८१९८८. (4) पद्मप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १२४४५-४८). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रह उठी प्रभाते; अंति: हुवा हरख हुल्लास, गाथा-११. ८१९९० चत्तारिअट्ठदसगाथा की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, २२४७०-७५). शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: दाहिण दवारे ४ पच्छि; अंति: माश्रित्येत्यर्थः. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " ८१९९९ कर्मभूमिअकर्मभूमि आदि विचार, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७८-७७(१ से ७७)=१, जैदे. (२६११, २०५०-५३). कर्मभूमि अकर्मभूमि आदि विचार, सं., गद्य, आदि: कृषिवाणिज्यतपः संयम, अंति (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कर्ण द्वीप के बाद का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८१९९२. निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: निसीथसूत्र, जैवे. (२६४१०.५, १३४४५) निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अष्टम उद्देश के पाठांश "जाणगिहं सिवा जुग्गिहंसिवा" से नवम उद्देश के पाठांश "इमाई च्छदोसावणाई" तक है.) ८१९९३ (१) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६११.५, १७४०-४३). "" स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभिनंदनजिन स्तुति गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, सं., गद्य, आदि अद्वितीय भास्वन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११ अपूर्ण तक का टिप्पण लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१९९५ (+) सुभाषित श्लोक, श्रावक १२ कर्तव्य व औपदेशिक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७११, १४X३०-३३). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह सं., पद्य, आदि भूयामिष्टान भोजी सुख; अंतिः न हि किंचिदस्ति श्लोक ८. २. पे. नाम. श्रावक के १२ कर्तव्य, पृ. १अ संपूर्ण. आवक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि जीव न मारे १ जूठ न अंति: ११ अतिधिसंभोग १२. ३. पे नाम औपदेशिक विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि बेटा बेटी बईयर भाई, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'ते समकित जिण पाठ तक लिखा है.) ८१९९६. आलोयणा आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६११.५, १६३०). आलोचणा आराधना, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि अजाणत करतांनइ ए अति मायामोसंपि मरणं, ८१९९८. (*) नवतत्वादि जैनपारिभाषिकशब्द लोक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११.५, २४३०). "" तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वविचार लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. आदि - अंतिमवाक्यवाला भाग खंडित है.) ८१९९९ (*) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण वि. १७५६, माघ कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पू. १ ले स्थल, खीमेल, प्रले. मु. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १०x४०-४३). "" संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निस्सही नमो खमासमणाण; अति: इअ समत्तं महिय, गाथा- १४. ८२००० (#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, ४x२८-३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ७२ अपूर्ण से गाथा- ७६ तक है.) बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२००१. दस अच्छेरा वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) =२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २४.५X११, १५X३७-४१). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. हरिवंश उत्पत्ति अच्छे से तीर्थंकर-मल्लिजिन अच्छेरा तक है.) ८२००२. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से ३) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे., ( २४.५X११, १६-१९X३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० सुरसुंदरी रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-५ दुहा-५ अपूर्ण तक है.) ८२००४. (+#) शनिश्चर छंद व शनि जाप, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३२). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा-१२. २. पे. नाम, शनि जाप, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धामिनी १ धंखन्नी चैव; अंति: पठति दिने दिने, ग्रं. ८. ८२०१० (#) चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अंत में ऋषिभाषित कुलक व चूर्णि का प्रारंभिक अंश लिखकर छोड़ दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१०,१५४३२). चंदनबाला रास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी निरमली; अंति: सती सिरोमणी गाईयइ, गाथा-३५. ८२०१४. (+#) भवानीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बिदासर, प्रले. ऋ. संभु यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३३). भैरवीमाता छंद, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि माता संकरी; अंति: सुमतिरंग करुणा करे, गाथा-२४. ८२०१७. (+) मधुबिंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १२४३७). मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ; अंति: चरणपरमोद० इम मांगीये, गाथा-१०. ८२०१८. (+#) आवश्यकनियुक्तिभाष्य की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४६२). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नियुक्ति गाथा-१०१६गत भाष्यगाथा-१६३ अपूर्ण से १६८ अपूर्ण तक की टीका है.) ८२०१९ षड्दर्शनसमच्चय की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२४.५४११, १२४४७). षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, ई. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ की टीका किंचित् अपूर्ण से है व 'समासेन निगद्यते अभिधीयते' तक लिखा है.) ८२०२०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १३४३७-४०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: माहरी विनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद० तार गरिबनवाज, गाथा-२१. ८२०२२. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ९४३७). सिद्धचक्र नमस्कार पद, म. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: समरु नवपद ध्यानथी पर; अंति: क्रन मोहन महिमावंत, गाथा-३. ८२०२४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:कल्याणमंदिर., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १०४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ८२०२५. (+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६८, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१,३)=३, दत्त. सा. जीवश्री; गृही. सा. नवलश्री, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २१५, जैदे., (२५४१२, १५४४१). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ए निज मतिने अनुसार, ढाल-१७, (पू.वि. गुणस्थानक-१ गाथा-२ अपूर्ण से गुणस्थानक-४ गाथा-३ अपूर्ण तक व गुणस्थानक-८ गाथा-५ अपूर्ण से है.) सिटर For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ www.kobatirth.org "" ८२०२६. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x११, ८४३७). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि परमेष्ठि नमस्कारं अति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. ८२०२९. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४४११.५, १०x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मोने धरमजिणंद अंतिः मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-६. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२०३४. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण वि. १८३८, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, समउ, प्रले. पं. रूपविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११.५. १६३५). "" वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. 1 ८२०३५. एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्रावि. केसर; सा. चनणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२, जैवे. (४९x१०.५, २३५१३). " एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज एकादसी ऐ नणदल अंतिः उदवरतन० लीला लहेसे, गाथा-७. ८२०३८. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. अनंतराम महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४११.५, २२४४२) " महावीरजिन स्तवन, मु. नंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: बेदर्बदेस महिमंडल अति: नंदलाल होएत गीर गाथा- १४. ८२०३९ (#) तावनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: ताक्रो, अंत में ज्वर निवारण विधि का उल्लेख है.. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०.५, ११४३७). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर नगर; अंति: सारमंत्र जपिये सदा, , गाथा- १६. ८२०४३. (+०) शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-३(१ से ३) = ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१२, १४X३६). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल-४ गाथा- ११ अपूर्ण से "पुंडरिकादिक नाम एकवीसली रे" पाठ तक है व बीच का पाठ नहीं है.) ८२०४९ (+) पंचांगविधि दोहा व वर्षाज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १९९०, पीष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२४x१०.५, १२X३५). १. पे नाम. पंचांगविधि दोहा, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि जिये वरस दिनरा जितरा; अंतिः समो समा ते मध्यम काल. ८२०५३. उदयपुरनगर गजल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२४.५x११.५, १३४३१). मु. . मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५३. २. पे नाम. वर्षाज्ञान विचार, पु. ४आ, संपूर्ण. उदयपुरनगर गजल, य. खेताक, रा., पद्य, वि. १७५७, आदि जपूं आदि इकलिंगजी अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-८१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ८२०५५. पासाकेवली व सारस्वत घृतनिर्माण विधि, संपूर्ण, वि. १८७४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. सालोडीग्राम, प्रले. पं. सुगुणचंद्र (भट्टारकगच्छ) पठ पं. रत्नचंद्र (गुरु पं. सुगुणचंद्र भट्टारकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पासाके, जैदे (२४.५X११, १२-१४X४०). १. पे. नाम. पासाकेवली. पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रथमवार नवकार गुणी, (२) १११ उत्तम थानक लाभ; अंतिः पूजा करे महालाभ होसी. २. पे. नाम. सारस्वत घृतनिर्माण विधि, पू. ४अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पाठ१ वच२ मीरच३ पीपली; अंति तेजी होइ किरी राखीजै, Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८२०५६. (#) विवाहपडल व ज्योतिष काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४२६). १. पे. नाम. विवाहपडल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विवाहपडल भाषा, म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसदगुरु वाणी सरसत; अंति: रूपचंद०जोतस तणो मर्म, गाथा-३७. २. पे. नाम. मासदशादि ज्योतिषकाव्य संग्रह, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सूर्यदशा दिन बीस चंद; अंति: शेष अछै पल इण परा, गाथा-२५. ८२०६० (+) चोवीसतीर्थंकर कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, २४x७२). २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८२०६१. भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४२५). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: आदिपुरुष आदिसज्जन आद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८२०६३. (#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १६४३८). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंद नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८ तक हैं., वि. आदिवाक्य अंशतः खंडित है.) ८२०६७. मयणासुंदरीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, ११४४०). मयणासुंदरीसती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता मया करो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८२०६८. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ११४३१). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८२०७० (#) गोडीपार्श्वजिन स्तवन व सातव्यसन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. कंडल, प्रले. मु. नेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.७अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: संपद सयल मंगल करो, ढाल-५, गाथा-५२, (प.वि. ढाल-५ गाथा-४७ से है.) २. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: गुरु सीस जयरंग कहे, गाथा-९. ८२०७१. केशीगौतम गणधर गहुंली व गुरुगुण भाष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३५). १. पे. नाम. केशी गौतमगणधर घुयली, पृ. २अ, संपूर्ण... केशीगौतमगणधर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमा रे; अंति: घूयली रंग रसाल रे, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु हे सदगुरु; अंति: मानथी सहीरो गावे भास, गाथा-५. ८२०७२. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १९४३४). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्री जीणराइ तणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ तक लिखा है.) । ८२०७३. (2) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२०७४. (+) पच्चक्खाणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पठ. श्रावि. वलमबाई; श्रावि. धनकुअरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गारेणं वोसिरामि, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., तिविहार उपवास अपूर्ण से ८२०७५. कागवचनफल कवित्तादि, श्लोक संग्रह व नेमिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०.५, १४४४८). १. पे. नाम, कागवचनफल कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. गोष, पुहिं., पद्य, आदि: कागवचन सुण कलह छाया; अंति: गोष० जाण करके न जाइई, गाथा-२. २. पे. नाम. कागवचन विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आदित्यवारनइ दिन: अंति: वाडे तो दोष नास. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: लोकानंदन चंदन प्रिय; अंति: वाक्यंगवतान्वरेणे, श्लोक-२. ४. पे. नाम, नेमिजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: बलीहारी हुं नेमरायरी; अंति: आनंद० सुखपद दायरी, गाथा-७. ८२०७६ (+) ५६३ जीवना भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३८-५०). ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय; अंति: (-), (पू.वि. अजीवरूपी के भेद ३० अपूर्ण तक है) ८२०७७. शकुनबोल चउपई व शकुनसोलही चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४६). १. पे. नाम. शकुनबोल चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमुं सुख; अंति: पंडित हर्षकुल इम कहइ, गाथा-१७. २. पे. नाम. शकुनसोलही चौपाई, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वाग वाणि प्रणमुं मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है., वि. शकुनसोलही यंत्र सहित.) ८२०८० (-) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ११४२९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाअर्थप्रतिष्टांनं; अंति: श्रीयसे श्रीसांतीनाथ, श्लोक-३२. ८२०८२ (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १३४३४). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. 'सव्वं सावज्जजोयं पच्चक्खामि' से 'मंथारे जीव कोइ' तक का पाठ है.) ८२०८३.११ गणधरसंशय सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ११४२८-३२). १.पे. नाम.११ गणधर संशय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते उठिने भविका; अंति: नमंता लहीइं शिवमेवा, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुधे पुतरने धने जोबन; अंति: लाखे चोराशी माई, गाथा-६. ८२०८४. जयंतीरो चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:जयंतीढा., जैदे., (२५४१२, २०४४२). जयंतीश्राविका चौढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमपुरुष गुरु परम; अंति: विनयचंद नमो वारोवार, गाथा-५८. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८२०८५. साधु समाचारी व चौसठ इंद्र नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. समाचारी अधिक मासादिक नी विधि, प. १अ-१आ, संपूर्ण.. साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: आठ मास ताइ साधु मन; अंति: ए रीति प्ररूपी छई. २.पे. नाम. ६४ इंद्र नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में कोई अज्ञात कृति "अथ भगवतो माता ऋषभनाथस्य माता" का मात्र प्रारंभिक अंश है. मा.गु., गद्य, आदि: १० कल्पवासी इंद्र; अंति: ६४ इंद्र ज्ञात्वा. ८२०८६. भास व गहुंली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ७, दे., (२५.५४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अतिशय च्यार निधान रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन भास, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर म्हारी अरिहंत; अंति: सोहावो केवल श्रीफले, गाथा-५. ३. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आगम रसना रे दरिया; अंति: रूप ते पावै, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन गहंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी वीरजिणंद आमल कलप; अंति: चित्त सुहावे छे, गाथा-९. ५. पे. नाम. महावीरजिन गहुँली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव कनक कमल पगला धरता; अंति: त रूपविजय संपति पावै, गाथा-९. ६. पे. नाम. मुनिगुण गहुंली, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसर समतारस संगी; अंति: वीधी ए रुपविजय वरणी, गाथा-९. ७. पे. नाम, गौतम गणधर गुंहली, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गौतमगणधर गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउनाणी गुणखाणी गोयम; अंति: रूपविजय०मली गुण गावै, गाथा-८. ८२०८७. (+) कृष्ण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १७४१७-५०). कृष्ण सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: बंधव बेहुं निसर्या; अंति: पुन्य तणी छे लार रे, गाथा-२८. ८२०९०. एकादशीतिथि, इलाचीकुमार व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १२४२७). १.पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. __ उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: अविचल लीला लहस्ये, गाथा-७. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुर जाणीई; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. ३. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ८२०९१. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४.५४११, १३४३८). कथा संग्रह **, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., राजा सूरसेन की कथा अपूर्ण से राजा सित्रंजित की कथा अपूर्ण तक है.) ८२०९३, मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१४४११, १२४३६). मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२०९५. पद्मिणी बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १९४३९). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मिणी बारमासा, मु. दलपत, मा.गु., पद्य, आदि: तात चरण प्रणमी करी; अंति: तीसरी दलपति० विसेस, ढाल -३, गाथा - २८. " ८२०९६ (+) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८-७(१ से ७) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी: सूक्तावली., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४.५x१२, १४४३६). " सूक्तावली संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-), संपूर्ण, ८२०९८. सुकोशलमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे. (२५.५४११.५, १६५३३). " " सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि सो गुरबाणी सांभलीजी अंति (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६ गाथा-६ तक लिखा है.) 1 ८२०९९ (४) दशार्णभद्र चौडालिया, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२६X१२.५, १४x२४). दशार्णभद्र चौडालिया, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि (-); अंति संवत सतरे वीयारी, डाल-४, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल -२ गाथा -५ अपूर्ण से है.) ८२१०७ पच्चक्खाण संग्रह व आगम संख्या, अपूर्ण, वि. १८७२ आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७-४ (१ से ४)= ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. पं. धरमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पचक्खाणसू०., जैदे., ( २४४११, ९-११X३५). १. पे नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वा असित्थेण वा वोसरइ, (पू.वि. "व्विहंपि आहार असणं" पाठांश से है.) २. पे. नाम. ४५ आगम संख्या, पृ. ७आ, संपूर्ण. ४५ आगम नाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारे अंग सर्व मिल; अति सर्वसंख्या जाणवी. ८२१०९. जीवना १४ भेदनी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. करसनजी वेलजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चउदभेदनीचरचा., दे., ( २४.५X११.५, १२×३८). १४ भेद-जीव के, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना १४ भेद तेमा; अंति: विषे नगरना दा सरीखो. ८२१११. (*) शुकनावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी दोषावलीसुकनावलीपत्र. अंत में साखी लिखी है, संशोधित., " जैदे. (२४.५x१०, १५४५८-६१). पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति, अंतिः ब्राह्मणने आमान देजे, (वि. सारिणीयुक्त.) ८२११२. (+) स्तवन, स्तोत्र व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२३.५x१०.५, १३४४०). १. पे नाम शाश्वताशाच्चतजिन स्तवन. पू. १अ १आ, संपूर्ण शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधि; अंति: स्तुता धर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. २. पे. नाम गौतमस्वामी स्तोत्र. पू. १आ-२अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि इंद्रभूति वसुभूति अंति: वांछितार्थमहामुने, श्लोक - ९. ३. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण ले स्थल, टोडा, प्रले. पं. चंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. 2 माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित सुभ; अंति: राजरत्न० जय जयकरण, गाथा - २१. ४. पे. नाम क्षेत्रपाल छंद, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण, माधो, मा.गु., गद्य, आदि धूवै मादलां मृदंग, अंति: हवाह देव खेतला खडग गाथा-५. ८२९१४ औपदेशिक सज्झाय व उपदेशपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३१-२९(१ से २९) =२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १८४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०-३१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि : उतपति सुणज्यो आपणी; अंति: एम कहे श्रीसार ए, गाथा - ७१. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २.पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. ३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जेमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मनख जनम दुलहो लह्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ८२११६. ५ कारण छ ढालिया, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २२४६८). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत प्रणमीइ; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ८२११७. सचित्तअचित्त कालमान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, १४४३३). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहई, गाथा-१८. ८२११८. दिनमान पद्धति व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १६४५३). १.पे. नाम. दिनमान पद्धति चतुपदी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति सामिणि समरी मा; अंति: पभणे सोमविमल तस सीस, गाथा-१९. २. पे. नाम. लग्न दोषावली विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मेषे लग्ने क्षेत्र; अंति: उदरपीडा सांस चढ़, (वि. सारिणीयुक्त.) ८२११९. भावपचीसी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६x४०). १.पे. नाम. भावपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भावपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: भावपचीसी जोडु भारी; अंति: बिधसु ढाल विचारो राज, गाथा-२६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: थारी फुलसी देह पलकमे; अंति: तण सुखरी अभलाषा रे, गाथा-५. ८२१२० (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६४५०). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ८२१२१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, प्र.वि. हुंडी:चोवीसी., जैदे., (२४.५४१२, १४४३५). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४, (पू.वि. अनंतजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण से है.) ८२१२२ (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:रामविनोदशा., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १९x४९). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ८२१२३. विषापार, आदिजिन स्तवन व तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १८४४०). १. पे. नाम. विषापार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: अचलकी० जिनेश्वर नाम, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंदगन जोगेसर आया; अंति: जसराज० गाये हे माय, गाथा-८. ३. पे. नाम. तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजी का गुणग्रीम; अंति: तो तीथंकर गोत बंधे. AN For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२१२५ (+) स्तंभनकपार्श्वनाथस्यांत्ययमक स्तुति व जीवना ५६३ भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १२-१७४४५-६१). १. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथस्यांत्ययमक स्तुति सह अवचूरि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यद्धानकस्य प्रियम्, श्लोक-५, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन-अवचूरि, मु. जयसागर, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तत्प्रियमेव भवतीति. २.पे. नाम. जीवना ५६३ भेद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गयी है. ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय; अंति: १९८ देव भेद थया. ८२१२६. कर्मबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १२४३४). कर्मबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति अलख; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २० तक है.) ८२१२८. (+) शाश्वतजिनबिंबसंख्या स्तवन व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. आ. धनवर्धनसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). १. पे. नाम. शाश्वतजिनबिंबसंख्या स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. शाश्वतजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि सत्तकोडी लक्ख; अंति: विहु नमुसामि, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: मनश्चिंतितं यो ददाती; अंति: जयतिलक० सिद्धिवध्वाः, श्लोक-१६. ८२१३२. (#) संवतवार जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ३६५३०). प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संवत् ४७० वर्षे; अंति: (-), (प.वि. "कल्कीनामइ प्रवर्त्तस्यइं उगणीस वर्षे" पाठांश तक है.) ८२१३४. रावण ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:रावणरीढालां., दे., (२४.५४१२, २०४२८). रावण ढाल, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८२१३६. (+) चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तवन व शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. देवकृष्ण जोशी; राज्यकालरा. माधवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २०४६७). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ११अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रभु पारसनाथ कियें, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमो सिरनामी; अंति: वंछित फल निहचै पावै, गाथा-२१. ८२१३७. (#) धन्नाकाकंदी व मुक्तिगमण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, १३४३५). १.पे. नाम, धन्नाऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, म. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २. पे. नाम. मुक्तिगमण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीर; अंति: (-), (पू.वि. दहा-३ तक है.) ८२१३८. तेरकाठीया स्वाध्याय, ऋतुमतिदोष गाथा व सूतक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, अन्य. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). १.पे. नाम. तेरकाठीया स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२५, वैशाख कृष्ण, १४, शुक्रवार, ले.स्थल. देताग्राम, अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. २. पे. नाम. ऋतुमतिदोष गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विहि जिणभवणे गमणं घर; अंति: सिद्धंतविराहगो सउ, गाथा-३. ३. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: सूतकं न स्पृशंति, श्लोक-७. ४. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, अन्य. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., गद्य, आदि: जातकमृतकसूतयोः केचिद; अंति: अग्नि० यत्श्रुतिः. ८२१३९ (+) भैरवपद्मावती कल्प, अपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३२(१ से ३२)=१, ले.स्थल. सेवाडी, प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरजिनश्रीशांतिजिनयोः प्रसादात्. यथादृष्टं तथैवातिशीघ्रगत्या विद्वद्भिर्विशोध्यम्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १५४४२). भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भैरवपद्मावतीकल्पः, परिच्छेद-१०, श्लोक-४००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., परिच्छेद-९ गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ८२१४० (+) अजितशांति स्तवन व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३२). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ५अ-७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरिअंकुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८२१४१ (4) जीरावलापार्श्वजिन स्तवन व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवनपत्र., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १४४३४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंदकल्याणवल्ली; अंति: जीरावलो रंग गायो, गाथा-११. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण.. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार किरतार संसार; अंति: जे रहे नित्य पासे, गाथा-४. ८२१४४. अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२४४११, ९-१४४३०). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. प्रारंभ __ के पत्र नहीं हैं., गाथा २७ अपूर्ण से हैं.) ८२१४५ (#) सूरजदेव सलोको, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मांडोली, प्रले. मु. वल्लभसौभाग्य (गुरु पं. सुजाणसोभाग), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६४३७). सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमे सारदा गुणपति; अंति: रिखभसुंदर० दोलतदाई, गाथा-२८. ८२१४६. अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ८x२२). For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवुरे; अंति: समविषमे जिनराज रे, गाथा-५. ८२१४८. (#) पद्मावती आलोयणा व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालंद्री, प्र.वि. प्रतिलेखक नाम वाला भाग खंडित है. विजयआणंदसूरि गच्छे., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १६x४१). १.पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४, (वि. आदिवाक्य अंशतः खंडित है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ८२१४९. कर्मनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३३). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: करज्यो सहु सुखदाई रे, गाथा-१८. ८२१५१ लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४१२, ११४३२-३५). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-३ अपूर्ण तक हैं.) ८२१५२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रारंभ में देवसिप्रतिक्रमणविधि आरंभ कर छोड़ दिया गया है., दे., (२५४११.५, ८४३५). आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: केसरीयाने जिहाज को ल; अंति: पर रामचंद गुण गायो, गाथा-५. ८२१५५. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५४११.५, १३४२९). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रंग लागो दिल गालो; अंति: स्तवीओ ए जीनराजने, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: साई तुही भलाबे संखेस; अंति: कहे शुधरे जनहारा साई, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी गई है. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनती सुण; अंति: कहु कहाबहु तेरा, गाथा-५. ४. पे. नाम, अभिनंदनजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति चोथा आगलि नाच; अंति: न्यानसागर० अविचल वास, गाथा-५. ५.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.ग., पद्य, आदि: मुरत मोहन वेलडीजी; अंति: ऋषभदास गुण गेलडीजी, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब कछु चेतीए; अंति: नयवीजय निर्धारी, गाथा-५. ८२१५६. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४४१). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२१५७. (+#) सरस्वती साध्वी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५,१३४३४). For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १०१ सरस्वतीसाध्वी सज्झाय, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत करुं पसाव एक; अंति: श्रीपाल० ग्यान तुठजो, __गाथा-२१, (वि. गाथांक अंकित नहीं हैं.) ८२१५८. (2) अमृतवेलीनी नानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४३). अमृतवेल सज्झाय- लघु, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलजे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८२१५९. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १६४३९). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलू कहि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पापस्थानक-४ तक है.) ८२१६०. ४ मंगल पद, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२.५, १३४३४). ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेलु ए मंगल जिनतणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८२१६१. (#) जीवरास सज्झाय व चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १०x२३-२९). १.पे. नाम. जीवरास सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: मनमाली घणी खप करै मा; अंति: रखज्यो यातो खेडि गाइ, गाथा-८. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण सुरतरु जेह; अंति: शिवगतिना सुख नीडा रे, गाथा-५. ८२१६४. ५ तीर्थजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, ११४३४). ५ तीर्थजिन स्तवन, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे ए आदे ए जिणेसरु; अंति: लावण्यसमै इम भणै ए, गाथा-१६. ८२१६५ (#) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ से १९ तक है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२१६६ (+#) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४२७). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति*, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१० अपूर्ण तक है., वि. कल्पसूत्र या महावीरजिन विषयक कृति होना संभव है. कल्प. व्याख्यान-३ का विषय कृति में नज़र आता है.) ८२१६७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४१). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-२१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२२ गाथा-१३ तक है.) ८२१६८. (4) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण तक व ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२१६९ (#) सर्वार्थसिद्धविमान वर्णन सज्झाय, नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४३६). १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुण निलो त्; अंति: थकी पोहोचे श्रीसो रे, गाथा-१४. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारै नेम; अंति: चैनविजय० चरन पखरी, गाथा-४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८२१७२ (+) प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४७). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १ पंचविध आचारनी; अंति: मन वचन कायाइं करी. ८२१७४. द्वारका कृष्णमहाराजा वर्णनादि विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-६१(१ से ५५,५७ से ६२)=२, कुल पे. १३, दे., (२३.५४१२, १७-१८४४१-५३). १.पे. नाम. द्वारका वर्णन कृष्णमहाराजा, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. द्वारिका व कृष्णमहाराजा वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीद्वारका नगरी; अंति: अर्धभर्तनो माहाराजा. २. पे. नाम. १००० पुरुष साथै नेमनाथजी दिक्ष्या लीधी, पृ. ५६आ, संपूर्ण. नेमिजिनदीक्षा वर्णन-१००० पुरुषों के साथ, मा.गु., गद्य, आदि: १०८ श्रीकृष्णजीरा; अंति: ८ ओर मोटा राजा. ३. पे. नाम. कृष्णजीरो परिवार, पृ. ५६आ, संपूर्ण.. कृष्णमहाराजा परिवार, मा.गु., गद्य, आदि: बेटा कृष्णजीरा ६००००; अंति: जादु ५६०००००००परिवार. ४. पे. नाम. कृष्णमहाराज के परिवार से दीक्षाग्रहण संख्या, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णजीनी बेट्या३०००; अंति: अंगदसार का बेटा २४५. ५. पे. नाम. ४ बोल तीर्थंकर अकरणीय, पृ. ५६आ, संपूर्ण. ४ बोल-तीर्थंकर अकरणीय, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवनी आदि काढवा; अंति: ४ आउखो वधारवा. ६. पे. नाम. ९ मल्ली ९ लछीदेसना १८ मोटा राजा, पृ. ६३अ, संपूर्ण. १८ गण राजा नाम देशादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बाणारसीनगरीनो हस्त; अंति: वारानगरी जयसेनराजा. ७. पे. नाम. जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रमे १० राजध्यानी, पृ. ६३अ, संपूर्ण. १० राजधानी-जंबूद्वीप भरतक्षेत्रे, मा.गु., गद्य, आदि: चंपानगरी अंगदेशमै१; अंति: राजग्रही मगधदेशमे१०. ८. पे. नाम. गंगासिद्धू २ मोटी नदी, पृ. ६३अ, संपूर्ण. गंगासिंधू २ मोटी नदी, मा.गु., गद्य, आदि: जमुना १ सरजु २ आइ ३; अंति: ९ एरावइ १० चंदभागा. ९. पे. नाम. १० सुख नाम, पृ. ६३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आरोगपणु ते देहि; अंति: जन्ममर्णथी नीवृत्यौ. १०. पे. नाम. १० नारकीबिना दुख, पृ. ६३अ, संपूर्ण. १० बोल-नारकीबिना दुख, मा.गु., गद्य, आदि: सीतनो चउत्थी नारकी; अंति: व्याधि ज्वर कष्टादि. ११. पे. नाम. १० प्रकार के धर्म, पृ. ६३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गामधर्म ते लोकानी; अंति: धर्म कह्यो सरीरनु१०. १२. पे. नाम. १० प्रकार के स्थविर, पृ. ६३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ग्राम १ नगर २ राष्ट्; अंति: चारत्रीयो हुवै. १३. पे. नाम. १० प्रकार के पत्र, पृ. ६३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पिताने पवित्र करै; अंति: (१)पुत्र तुल्य कहीजै, (२)ज्ञानादिकपणाथी. ८२१७७. दोषाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १६x४२). For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदना छे; अंति: चूकी छै तेहनी मानया. ८२१७८. होरीपद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. १६, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२५.५४११, ३८x२०). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयौ आज सीखरगीर; अंति: रसतो पायो शिवपुर को, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, रा., पद्य, आदि: बीसरै मति नाम जिनेश्; अंति: लहै रंग पतंग फीको, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादवपत मेरो मन हर; अंति: नवभव नेह अलग कियो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: एक सुणलै नाथ अरज मेर; अंति: मेटो भव भव दुख फेरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पार्श्वनाथ; अंति: आवागमन सुजाय बसिया, गाथा-३. ६. पे. नाम. आदिजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: एक कर ले भजन; अंति: (अपठनीय), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथा-१ अपूर्ण से पत्र खंडित है.) ७. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिल खान, पुहिं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: आदिलखान० जाने की बात, गाथा-३, (वि. आदिवाक्य खंडित ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर , पुहिं., पद्य, आदि: मेरो पीया पर संग रमत; अंति: हिलमिल सोरठ गावैरी, गाथा-३. ९.पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ.१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, म. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: रंगभर खेलै होरी रे; अंति: अबिचल रहज्यो जोडी रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. नेमराजुल होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, सा. विद्याश्री, पुहिं., पद्य, आदि: नेम के संग खेलूंगी; अंति: विद्या०मुक्ति सजोड़ी, गाथा-३. ११. पे. नाम, आदिजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीनो नंदन बालो; अंति: मिटै भव ताप जंजालो, गाथा-५. १२. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काला दरसण बाल्हा; अंति: समता रस सूंडरियो रे, गाथा-७. १३. पे. नाम, महावीरजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीररी सखि; अंति: आये बोले जयजय वीररी, गाथा-३. १४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहुं ऐसो अवसर पाऊं; अंति: निळ्या वल दर्शन पाऊं, गाथा-३. १५. पे. नाम. नेमराजिमती होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, पुहि., पद्य, आदि: मे तो होरी खेलूँगी; अंति: लागे होवत भवजल पार, गाथा-३. १६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो जिनमुख मटको; अंति: सुरनर करता लटको रे, गाथा-५. ८२१७९ (#) औपदेशिक गाथाश्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५२). १. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गजराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काणा कोचा परणीइं जेह; अंति: गजराज०लवारन को पहिरो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न दुर्जनः सज्जनता; अंति: वृक्षो मधुरत्वमेति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: तालब विन तलब तलब; अंति: मुनिहेमराज०मरि जायगो, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दृष्टांतपद संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: कंता पीहर जाउंगी कइ; अंति: ते मई विरला दिट्ठ, पद-१५. ५. पे. नाम. मधुरस्वरकुस्वरदृष्टांत श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नीलकंठ शुकश्चैव वाय; अंति: षडभिः किं न रिष्यते, श्लोक-४. ६. पे. नाम. भोजराजदृष्टांत कथा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: मालवदेशे धारानगर्या; अंति: नैव कीदृशासु. ७. पे. नाम. व्यवहारोपयोगी गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तरुआरिनी ताकी छिनाली; अंति: सात सहित दुख यतिपणुं, गाथा-२४. ८२१८५. पंच संवत्सर आम्नाय, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११, ३२४२७). पंचसंवत्सर आम्नाय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पंचसंवछर अनुकर्मे, (२)कल्पसूत्रनी शाखे; अंति: पंच नौ वेगा ल्यावे. ८२१९५ (+#) उपदेशमाला चयनित गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४६३). उपदेशमाला-चयन, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: विसयविस विसूईया होई, गाथा-६२, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ८२१९९. शुकनावली व चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४२७). १.पे. नाम. शुकनावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कमलसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ श्रीं कीरतभवानी; अंति: तील होइं ए सही नाणे. २.पे. नाम, चैत्यवंदनचौवीसी, प. २आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन चैत्यवंदन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८२२०२ (+) चौवीसजिन विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. सारणीयुक्त पाठ है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४५२). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८२२०९ (4) शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६x४२-४६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम अहो; अंति: भलो होसी उत्तम छइ, संपूर्ण. ८२२११. (#) वीतराग वाणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १०x२२-२५). व्याख्यान संग्रह ", प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: (-), (पृ.वि. "ते मांहे पोटली घातणी उपसु" पाठांश तक है.) ८२२१३. (#) औपदेशिक पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४२८-३२). औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बुद्धेः फलं तत्त्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १०५ ८२२१८ (2) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रतनगढ, प्रले. श्राव. खेताजी (पिता श्राव. दीपचंदजी); पठ. मु. तेजा ऋषि (हंसराजगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२-३५). नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयजीरा पुत; अंति: मुगत सीधायाजी, गाथा-१९. ८२२१९ (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:दसवि०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४०-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८२२२०. थेरावली, अपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. महेसाणानगर, प्रले. पं. सुंदरहंसगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४२८-३२). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२५ से है.) ८२२२१. (+) यवराजर्षि संबंध व शत्रंजयमाहात्म्य दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-१२६(१ से १२५,१२७)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १७७५२). १. पे. नाम. यवराजर्षि संबंध, पृ. १२६अ-१२६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:यवराजर्षि संबंध. यवराजर्षि कथानक, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (१)जीवियं परिरक्खियं, (२)र्जीवितं परिरक्षितम, गाथा-४, (पूर्ण, पृ.वि. प्रारंभिक प्रसंग कुछ अंश नहीं है व गाथा-१ से है.) २.पे. नाम. शत्रुजयमाहात्म्यगत दृष्टांतकथा संग्रह-सर्ग ३ से ५, पृ. १२६आ-१३०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:कथापत्र. शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. जितशत्रुनृपकथा श्लोक-१५ से सर्ग-३ श्लोक-३६ तक व श्लोक-५५५ अपूर्ण से नहीं है.) ८२२२५. रात्रिसंबंधी गमणागमण अतिचार व पच्चक्खाणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १०४२८-३२). १. पे. नाम. रात्रिसंबंधी गमणागमण अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. पोरसी पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ८२२२६. (+-#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन व निंदास्वाध्यायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:शांतिपत्र., अशुद्ध पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४२-४५). १. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: (१)स्तूयमाने जिनेस्वरा, (२)सर्वमांगल्येति, श्लोक-१७, (वि. श्लोक संख्या का उल्लेख नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५, (वि. श्लोकसंख्या व्यतिक्रम में है.) ३. पे. नाम, निदा स्वाध्याय, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. विवाह अतिचार दृष्टांत श्लोक, पृ. १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: जीवेस्ते गौतमस्त्रीं; अंति: चातिचारो विवाहात, श्लोक-२. ८२२२८. (#) सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५-३८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-७. ८२२३३ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सूत्र व स्थापनापरीक्षा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ६अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८९६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, पठ. श्राव. सिवजीराम, प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) NO.) २. पे. नाम. स्थापनापरीक्षा विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामी; अंति: लाई हाथी बंधाई. ८२२३४. योगचिंतामणि-पूर्वार्द्ध, अपूर्ण, वि. १८००, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६२-१६१(१ से १६१)=१, प्रले. ग. गंभीरसौभाग्य (गुरु ग. तिलकसौभाग्य); गुपि.ग. तिलकसौभाग्य (गुरु मु. दानसौभाग्य); मु. दानसौभाग्य (गुरु ग. गजेंद्र); ग. गजेंद्र (गुरु मु. दीप्तसौभाग्य); मु. दीप्तसौभाग्य; राज्यकाल रा. मेघराज चूंडावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (११५) अज्ञानभावात्मतिविभ्रमा, (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६८३) करकृतमपराधः, जैदे., (२४.५४११, १२४३६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है.) ८२२३५ (2) अणोझा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३२-३६). असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तउ रात्रि अनंइ आगली; अंति: आसातना लागे नहीं. ८२२३९ नंदीसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२६४११,१५४५३). नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भगवान् जयति भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ का बालावबोध अपूर्ण तक है., वि. प्रतीकात्मक मूल पाठ है.) ८२२४०. नमस्कार महामंत्र आनुपूर्वी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४११, १३४२८). नवकार महामंत्र आनुपूर्वी, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. अंक पाठ.) ८२२४३. (#) १४ गुणस्थानक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. जय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४७-५०). १४ गुणस्थानक चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: पंचपरमिट्ठिमिट्ठ नमि; अंति: कनकसोम० संघ सुखकार, गाथा-७६. ८२२५०. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३७-४०). औपदेशिक सज्झाय-उद्यम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक है.) ८२२५३. (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३७-४०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ८२२५७. (2) औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३२-३६). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वडशफरी वाहण तणी; अंति: छीन लीओ तनु को कपरो. ८२२५८ (+#) प्रशस्ति पद्धति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २३४७२-७५). For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १०७ प्रशस्ति पद्धति, सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीसकलं कलं; अंति: (-), (प.वि. "परमदेवत दैवताधिप रंगमिरंग" पाठांश तक ८२२५९ (+#) सारस्वत व्याकरण की टीका सह बालावबोध, पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६x४२-४५). १.पे. नाम. सारस्वत व्याकरण की टीका सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-टीका*, सं., गद्य, आदि: सूत्रसप्तशति यस्मै; अंति. (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण., मात्र प्रारंभिक सूत्र लिख कर छोड दिया है.) सारस्वत व्याकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअनुभूतिस्वरूपाचा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: अजब योति है जिनकी; अंति: वीरविजय० मेरे मन की, गाथा-२. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: तुम प्रभु कहियै दीन; अंति: जगथे हमकु ल्यो निकाल, गाथा-३. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: कांतिविजय० गायो, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. भेमो, पुहिं., पद्य, आदि: हं सरणागत तोरे; अंति: भेमो० ऊंच गतिगामी, गाथा-२. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपास बडे धम चकवै; अंति: ज्ञान नीसाण वजाउ लाल, गाथा-६. ८२२६० (4) थिवरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३२-३६). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणउ; अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१. ८२२६३. पंचांग विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४२७-४२). पंचांगविधि दोहा, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२५ अपूर्ण तक है., वि. यंत्र सहित.) ८२२६४. (+#) जंबुद्वीप संघयणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३२-३६). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ८२२७१ (2) चंडीपाठ, आत्मशिक्षा सज्झाय व शेजयगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४-१७४२३-५२). १. पे. नाम. दुर्गासप्तशती-चंडीपाठ, पृ. १अ, संपूर्ण. दर्गासप्तशती, हिस्सा, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-६ का कुछेक पाठ लिख कर छोड दिया है.) । २.पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सांडेरानगर. औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर इम उपदिसै; अंति: इम भणै रूपचंद रे, गाथा-१९. ३. पे. नाम. शेजयगिरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शर्बुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सवालाख टकानो द्याडो; अंति: उदयरतन० आदीस तूठा रे, गाथा-८. ८२२८२. वीशस्थानकतप स्तवन व २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३३-३६). १.पे. नाम. वीशस्थानक- स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. चतुरा (गुरु मु. मनोहर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमुं; अंति: देव० इम भणे रे लोल, गाथा-८. २. पे. नाम. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति आपो सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. ८२२८३. प्रज्ञापनासूत्र-भाषापद सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ६४३४). प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद ११, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: पज्जत्तियाणं भंते; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मृषाभाषापर्याय १० अन्तर्गत द्वेषपर्याय भाषा अपूर्ण तक है.) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अ० प्रयापति हे भगवान; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८२२८७. (+) रघुवंश सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रघुस०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ., अ., (२५४११.५, ३४२२-२५). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-१५ अपूर्ण तक है.) रघुवंश-टिप्पण, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, आदि: अहं कविकालिदास; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१, श्लोक-१२ तक की टिप्पणी है.) ८२२९०. एकनेत्रनालिकेर कल्प, द्वादशाक्षर मंत्रविधि व स्वर विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक १४२, जैदे., (२५४११, ३३४१५-१८). १.पे. नाम. एकनेत्रनालिकेरकल्प, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. नारिकेलकल्प-विधिसहित, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री क्लीं; अंति: धन्यतमस्य चित्ते. २. पे. नाम. द्वादशाक्षरमंत्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते महासत्ता; अंति: अतीसारेण विनश्यति. ३. पे. नाम. स्वर विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. निषादादि स्वर विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नासाकंठस्वरस्तालु; अंति: दीठ ७ मूर्च्छना होवै. ८२२९७. (2) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४४०-४५). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य प्रत; अंति: च भोगं करोति. ८२३००. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सूक्तावलीपत्र., जैदे., (२५४१२.५, १५४३५-३८). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६७ तक है.) ८२३१० (#) अजितजिन कलश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:कलसपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४८-५०). अजितजिन कलश, पंन्या. रूपविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रवृंदैः; अंति: जिन अजीतनाथ गुणधाम, ढाल-६. ८२३११ (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., ___ जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). स्तवनचौवीसी , उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिन जगआधार; अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वनाथ स्तवन, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८२३१२ (+) आदिजिन स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व गोडीजी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५x१०.५, १०x२३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. 3 आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जग जाग भवीआ, अति आज हर्ष वधांमणां, गाथा-९ २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. १आ-२अ संपूर्ण श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामण चितमां वस्यो, अंति लाघो० प्रमाणंद पद श्राय, गाथा-६. ३. पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भिजननाम सोहामनुं; अंति: लाधो० पाअ वंदना लीजे, गाथा-५. ८२३१३. (+) शाश्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त पाठ-संशोधित. दे. (२२४१०.५, ११५१९). "" "" शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८२३१५. (#) विषापहार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, १०x३१). १२x२८-५०). १. पे नाम. पंचदशक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. ईश्वरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. हेमचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि भंज जिनराज भज जिनराज अतिः न लग्नः भज जिनराज, गाथा १५. २. पे. नाम. गोविंदअष्टक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: भज गोविंदं भज गोविंद; अंति: स्वप्नविचारम्, श्लोक-१४. ३. पे नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. "" विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि (-); अंति: सदा श्रीजिनवर को नाव, गाथा - ४१, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ८२३२३. पंचदशक, गोविंदअष्टक व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे. (२४.५x१२.५. (२३.५X११.५, १३X३१). १. पे नाम. शनीवर मंत्र, पू. १अ, संपूर्ण शनीश्वर मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि ॐ नमो भगवते श्रीशनि; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रसह्यमुणिमुद्धरेत्; अंति: (-), श्लोक-३. ८२३२९ (७) मंत्र, कवित्त व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., २. पे. नाम. नवग्रह जाप, पृ. १अ, संपूर्ण. नवग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं मुक्ता अतिः केतवे नमः स्वाहा, श्लोक ९. ३. पे नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि : आई जरा अथ्याह सेठ; अंति: जरा योवन देसवटो दीयो,' गाथा - १. ४. पे. नाम. नागोरनगर वर्णन सवैया, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: मांडलगढे आयकर मालपरै; अंति: नागोरकुं जाना है, सवैया-१. ५. पे नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण १०९ सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक ५. ८२३३५. एकीभाव व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ७-५ (१ से ५)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११. १५४४१-५३). १. पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. वादिराजसरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदिः (-); अंति: वादिराजमनभव्य सहाय, श्लोक-२६, (प.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२३३७. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १२४३३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (१)सकलकुशलवल्ली, (२)सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ८२३४४. (+#) चमत्कारचिंतामणि का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, २५४५३). चमत्कारचिंतामणि-पद्यानवाद, श्रीसार कवि, पुहिं., गद्य, आदि: युं विचार ज्योतिष को; अंति: (-), (पू.वि. शननभावफल तक हैं.) ८२३४६. किशनजीरौ बारमासियो व पखवाडो, संपूर्ण, वि. १८६६, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. वीघ्नराज प्रसादात्, जैदे., (२४४१२, ९-१६x२४-३५). १. पे. नाम, किशनजी बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कृष्णराधा बारमासा, चंदसखी, पुहिं., पद्य, आदि: पहिलो महीनो आसाढ; अंति: चदसखी० सुधबुध दीजे, गाथा-१२. २. पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीया पखवाडो वितो; अंति: चेत पछ पीछतावैलो रे, गाथा-१७. ८२३४७. बोल संग्रह व वाहनफल गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले.पं. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. हाशिये में ७ स्वरों के नाम लिखे हैं., जैदे., (२४.५४११.५,१४४३७). १.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १८अ-१९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ८४ लाख जीवयोनी बोल अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ९ वाहनफल ज्योतिष गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. १९आ, संपूर्ण. ९ वाहनफल ज्योतिष गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. ९ वाहनफल ज्योतिष गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुर्ज नक्षत्रुसुं; अंति: वाहने सघलो सुख करे. ८२३४८. (#) अष्टद्रव्य पूजा व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३९). १. पे. नाम. अष्टद्रव्य पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अष्टद्रव्य पूजा-रागबंध, मु. हरचंद ऋषि, मा.गु., प+ग., वि. १८३२, आदि: अरिहंत पद पंकज नमी; अंति: हरचंद०भवि मन पुगी आस. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आदिजिणंद वाजत; अंति: वीनोदि० ऐसे नाभनंदन, गाथा-५. ८२३४९. शांतिनाथजी वृद्धस्तवन व मणिभद्रजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, १५४४५). १.पे. नाम. शांतिनाथजी वृद्धस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावै, गाथा-२१. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लक्षरी झाल हे, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १११ ८२३५२.(+) पत्रपद्धति-संस्कृत पत्राचार पत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४४७-५०). पत्रपद्धति-संस्कृत पत्राचार पत्र संग्रह, सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीमद; अंति: प्रीतिपत्रं देयम, पत्र-१०. ८२३५४. (+#) गोडीजी पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४०-४४). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन दे मुझ शारद; अंति: कांतिविजय जय जय करण, गाथा-५१. ८२३५७. जैनधर्मसम्मत पुराणश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४११.५, १४४४५). पुराणहंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अहिंसासत्यमस्तेयं; अंति: तस्माज्जातिरकारणम्, (वि. विषय अनुसार स्वतंत्र क्रम में श्लोकानुक्रम है.) ८२३६८. पाखंडमतनिरास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४५२). पाखंडमतनिरास चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: संगत कीजे साधनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ८२३७४. (+) घनमूल कवित्त सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. अंत में लिखा है 'हवै वर्गमूलनीपरिपाटी लि०.' संभव है कि अनुपलब्ध अन्य पत्रों पर यह हो., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४४११, १४४४५). घनमूल कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: धुर ही ते घन दोई अघन; अंति: निज शिष्य कै सिखाईये, का.-१, संपूर्ण. घनमूल कवित्त-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम आंक मांडिइ; अंति: २५६ छे ए घनमूल कहीइ, संपूर्ण. ८२३८१. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४३२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. ८२३८५ (+) रोगीपृच्छा श्लोक, ज्वरादि रोगभेद विचार व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. मु. दया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १४४३३). १. पे. नाम, रोगीपृच्छा श्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. रोगीपृच्छा श्लोक, सं., पद्य, आदि: पाणीपादौ भवेद्दष्णं; अंति: कालभेदो विलोकितं, श्लोक-५. रोगीपृच्छा श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे रोगीना हा० दाघ; अंति: काल लेवाने ताके छे. २. पे. नाम. ज्वरादि रोगलक्षण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: घणु पीवाथी१ रात्रे; अंति: (-). ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.ग., पद्य, आदि: ते दिननो वीसवास छै; अंति: रुपचंद रस माण्या, गाथा-७. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मन में तुं; अंति: में देव सकल में हो, गाथा-३. ८२३८७. (+) मंगल स्तोत्र व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). १. पे. नाम. मंगलदायि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधिवा; अंति: स्तुता धर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. २. पे. नाम. मांगलिकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वैताढ्येष च शतं; अंति: श्रीधर्मलाभः श्रिये, श्लोक-३. ८२३८८. (+) वीतराग स्तुति, संपूर्ण, वि. १६०९, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२-४६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२३८९. (+) ज्ञाताधर्मसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. १९१-१९० ( १ से १९०) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र.वि. हुडी:ज्ञातासू०. पत्रांक अर्धखंडित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४×११, ५x२३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन १३ सूत्र- १४५ मणियारसेठ द्वारा पुष्करिणी, पाकगृहादि निर्माण प्रसंग अपूर्ण तक है.) "" ८२४२१. चक्रेसरीजीरी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. मोरवाड, जैदे., ( २४.५X११.५, ९३४). चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मां चकेसरी सानिधनी; अंति: बचने बोले सामी छै, गाथा- ७. ८२४२३. क्रोधमानमायालोभ छंद व अन्नपूर्णा अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. जैवे. (२४.५४११.५, १४४५२). २, १. पे. नाम क्रोधमानमावालोभ छंद, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. वि. १९वी श्रावण शुक्ल, १. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: कंतिविजय० गुणगाय, गाथा- ३२, (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अन्नपूर्णा अष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. " अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि नित्यानंदकरी पराभयकर; अति देहि च पार्वति श्लोक-११. ८२४३१. (+) जिनचंद्रसूरि स्तुति संग्रह व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४.५x१०.५, १४४५७). १. पे नाम. जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि: कलारश्म्यासक्त्या तज; अंति: वंदंति नंदंति ते, श्लोक - ९. २. पे. नाम जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि; एनोनाक्तः कदाचिद्, अंति जैनचंद्र त्वदीयः श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि संस्कृतसवैया स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनचंद्रसूरि स्तुति-सवैयाबद्ध, सं., पद्य, आदि सुंदररूपमिदं तव अंतिः किल सौम्य सुधैव हि श्लोक-१. " ४. पे नाम. जिनचंद्रसूरि सवैया, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: घटत नहीं जाके वचन; अंति: राजै राज आज छिततल मै, सवैया-२. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२४३२. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ८४३४). सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: बिधबाद सरस्वती, श्लोक - १०. ८२४३५. (+) नेमराजुल, महावीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, दे... (२१.५x१०.५, १०x१८). १. पे. नाम. नेमराजुल तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि फुल सी बागण लाव्य रे; अंतिः पुज्य प्रभुना पाअ, गाथा-३. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १२-१आ, संपूर्ण मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि अमे वेंवारीआ वीर नाम, अंति कोइ वीरश्वामीने तोले, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. " . विद्याविलास, पुहिं., पद्य, आदि: मोरी प्रीत लगीय वामा; अंति: रंजे शीव वालाशे, गाथा-५. ८२४३९. १७० जिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दानविमल (गुरु पं. वीरविमल गणि); गुपि. पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि) आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, ३६४१८-२१ ). १७० जिन नाम, मा.गु, गद्य, आदि श्रीमेघवाहन१ श्रीजीव; अंति: ३२ श्री अशोकनाथ. ८२४४०. (#) मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणणुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x११, १४४२०-३६). For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ११३ मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणणुं, सं., को., आदि: श्रीमहाजश सर्वज्ञाय; अंतिः श्रीआरण्यकनाथाय नमः. ८२४४२. शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्रले. मु. अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे द.. (२६४११, ७-११x२७-२९). शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरुं; अंति: अनंत सोख ते अनुभवइ, गाथा - ३१. ८२४६१. (+) ज्ञानसार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-३(१ से ३)=४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२, १५X४२). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य वि. १८वी, आदि (-) अति स्वीयं कृतं मंगलम्, अष्टक ३२, श्लोक-२७२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अष्टक - १६ से है.) ८२४६२. (#) स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. बजाणा, प्रले. मु. सुयश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७X१२, १०-१४X३९-४१). पूजाविधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोति से अतिसय जुओ वचन; अति: देवचंद० सूत्र 7 मझार, ढाल ८, गाथा - ६०. ८२४६३. (*) नवतत्त्वसूत्र, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. रीणी, प्रले. मु. सिवसागर (गुरु पं. नरेंद्रसागर); गुपि. पं. नरेंद्रसागर (गुरु मु. अनोपसागर); मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्त्वसूत्र. श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् संशोधित, जैदे. (२४१०.५, ११-१३४३१-३२). " " नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-७०. ८२४६४ (+) आषाढाभूतिमुनि रास व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे. (२६४१०.५, ९-१२४३६-४२). १. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि रास, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. मु. धर्मरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि शांति जिणेसर; अंति: धर्मरुचि० मंगल माल ए, गाथा-५८. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपुज्यजिणराया; अंति इम पदमराज गुण गावड, गाथा - ७. ८२४६६. () शैलेशीविचार गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लक्ष्मीसागरसूरि शिष्य (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X११.५, २-७x४६). शैलेशीविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाऊण वेअणिज्जं अइ; अंति: होई सेलेसी होअ लोवाउ, गाथा- १०. शैलेशीविचार गाथा व्याख्या, सं., गद्य, आदि: नाऊ० ज्ञात्वा केवलेन अति अह सागारोव उत्तोसो. ८२४६७ (+#) वंदितुसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, ६x४१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा -४३ अपूर्ण तक है.) वंदित्सूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बांदीन सर्व कहीइ अति: (-). ८२४६८. मासकल्प विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) =१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे. (२६५११, १५X४६). मासकल्प विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कल्प ८ अपूर्ण से "समीपीत्येवं विदेहेपी" पाठ तक हैं.) ८२४६९. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X११.५, ६x४८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अति (-) (पू.वि. गाथा ५७ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्व १ अजीवतत्त्व २; अंति: (-), (पू.वि. टबार्थ आवश्यकतानुसार है, क्रमशः नहीं है.) ८२४७० (+) पर्युषणा व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२५.५x११.५, ५X३५). For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्यषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मोक्षमार्गं सतां ब्रूते यदागमपदावली" तक लिखा है.) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत ६४; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८२४७३. अजितशांति स्तव का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२६४११, २१४७४). अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: आयरं आदरं कुणह करउ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ के बालावबोध अपूर्ण से है., वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) ८२४७६. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१,३)=३, ले.स्थल. गंधार, पठ. श्रावि. मिथीबा पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: कल्याण करौ, गाथा-४५, (पू.वि. प्रथम __एक व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ से २३ अपूर्ण तक व गाथा-३२ अपूर्ण से है.) ८२४७९ (4) समरसिंहकुमार कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४९). समरसिंहकुमार कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समरसिंह नामकरण प्रसंग अपूर्ण से योगिनी प्रसंग अपूर्ण तक है.) ८२४८२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्ववृ०., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४४९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१ मात्र है.) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरः; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८२४८३. (#) नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४५१). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र का हिस्सा- अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-६ श्लोक-११० से १५४ अपूर्ण तक है.) ८२४८४. (+) पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६x४७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-७ अपूर्ण से सूत्र-२१ तक है.) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८२४८७. (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५३). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जैनो धर्मः प्रकटविभव; अंति: जीवै उठत कराहि कराहि, गाथा-३८. ८२४८८. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, २-४४३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: (-), (पू.वि. "अइयारो कउ तस्स मिच्छामि दुक्कडं पडिक्कमामिए" पाठ तक है.) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व मंगलीक पंच; अंति: (-). ८२४९१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० की गाथा-८ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ११५ ८२४९२. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-५ अपूर्ण से ___ अध्ययन-३ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८२४९३. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३८). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (१)दसाणुकप्पेय ववहारे, (२)कल्पसिद्धांत वंचायइ, श्लोक-१६. ८२५०९ (4) आत्मनिंदा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ९४३५). आत्मनिंदा भावना, म. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन: अंति: (-). (प.वि. "ए चेतन बापडा सोस न लै ते" पाठांश तक है.) ८२५१७. अनागत चौवीशजिन विवरण व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३४१२, २०४३६). १. पे. नाम. २४ जिन जीव विवरण-अनागत, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन जीव विवरण चौपाई-अनागत, मा.गु., पद्य, वि. १९५३, आदि: कहु जी आगम कालमांहि; अंति: किया बखाण कह जी. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: शासननायक श्रीवृद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ८२५२२. (+) आठकर्म १४८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. हंडी:बंद उदेरणा. पत्रांक दोनो और लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे., दे., (२३४११.५, १९४३२). १४ गणस्थानके ८ कर्म की१४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ करमारी १४८ प्रकृत; अंति: पंचेद्री और वेदनी. ८२५२४. (#) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ३२४७-२०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीवर्द्धमान; अंति: एवंकारे पाट ६८ जाणवा. ८२५२८. आदिजिन स्तोत्र व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, ३७-४०४२२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तववचोंबुदगर्जिततोषित; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२२ तक लिखा है.) २.पे. नाम. नगरवर्णन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रशस्त नगरवर्णन, सं., पद्य, आदि: अभ्रल्लिहामलविशालजिन; अंति: मृगे तेषु लब्धे सति, श्लोक-३. ८२५३६. औपदेशिक श्लोक व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पोहकरण, प्रले. ग. निहालचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १०४२५-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लेखिनी पुस्तका रामा; अंति: अष्टलज्जा न कारयेत, श्लोक-६. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरी नेहरी रे; अंति: ग्यांन नही गहिरा, गाथा-६. ८२५३८. (#) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. जोरामल; पठ. मु. कल्याणराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १७४४७-५०). For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवं; अंति: अधिकार हो महामुनी, गाथा-१६. ८२५४३. होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८२९, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लुणसर, प्रले. पं. दोला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १३४३४). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. ८२५५३ () माणिभद्रवीर छंद व गौतमस्वामी रास, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१,३,५)=३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, २१४१३). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. अगले पेटांक के लिये कोई अज्ञात कृति का मात्र आदिवाक्य "सयल जिणेसर प्रणमुं पा" पाठ है. मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामनी पाय; अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ___ उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) ८२५५४. (#) मौनएकादशी कथा व पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १५४३२). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ शुक्ल, ९, रविवार, ले.स्थल, पानपुरा, प्रले. चोलाजी सूरजमलजी, प्र.ले.प. सामान्य. मा.ग., गद्य, आदि: जंबद्वीपने विषे; अंति: ते मनवंछित सख पामे. २. पे. नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) ८२५५५ (#) महावीरजिन स्तवन, बलभद्रकृष्ण सज्झाय व जिनवंदनविधि स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ३, प्रले. मु. जेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १२४१८-२१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे नणदल सीधारथ; अंति: प्रीतविजय गुण गाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका थकी नीसरा; अंति: पोहचे मोक्ष दुयारि, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. जिनवंदनविधि स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करूं; अंति: किरतविमल सुख ठांम, गाथा-११. ८२५५६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९११, आश्विन कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. घाणेरानगर, प्रले. पंडित. अचलेसर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११, १२४४२). औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: महंमद०लेखो साहिब हाथ, गाथा-११. ८२५५९ (+) पुराणवेदादि उद्धृत जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१२, ६४३५-३८). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: महाभारते उक्त: घातक; अंति: भोजनं तु विशेषत. पुराणहंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महाभारते का छे; अंति: करवो ते शुद्ध न थाइ. ८२५६१. वीरजिन स्तवन व ज्ञान पहिरावणी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२३४१२, ८x१५-२५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ११७ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. २. पे. नाम, ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ८२५६४. सिंदर प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १८५२, श्रावण शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६-२२(१ से २१,२४)=४, प्र.वि. हुंडी:सिंदरप्र०टी०., त्रिपाठ., जैदे., (२२४१२, १६४३७). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. गाथा-८२ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक व ९४ अपूर्ण से है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. ८२५६५. देविचंदजी का आचार्य श्रीजिनचंदसागरसूरिजी के नाम पत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११, ३२४२०). देवीचंदजी का आचार्य श्रीजिनचंद्रसागरसूरिजी के नाम पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: की वंदणा वंचनाजी. ८२५६७. अंगफुरकण चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१x१२, १४४३३-३६). अंगफरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: श्रीहरख प्रभु पयवंद; अंति: वाणि जुसी गुरू भणी, गाथा-२३. ८२५७० (+) अग्यार गणधर लेखो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हंडी:गुणधरलेखो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४१२, २०४३६). ११ गणधर परिवार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला वांद श्रीइंद्र; अंति: संका टाली नीरवाणरी, (वि. अंशमात्र श्रीजंबुस्वामी प्रसंगवर्णन बाद में लिखा गया है.) ८२५७३. आदिजिन स्तवन, गौतमस्वामी सज्झाय व १३ काठिया नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१४.५४११, १९४२९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: नाभ का नंदन जगत बंधन; अंति: मोरादेवी०नंदण वंदजी, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: माहनै वाणी तनक सुणाय; अंति: ठाम बेठाय गोतमसामीजी, गाथा-१७, (वि. अंतिम दो गाथाओं के गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मा.गु., गद्य, आदि: आलस कर्म काठियो १; अंति: १२ सामदाणी कर्म कायो. ८२५७४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तानरोपानो., जैदे., (१८x११.५, २३४३२). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: पुन्य जोगे नरभव; अंति: जोडी बीकानेर चौमास, गाथा-१९. २.पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सीवपुरना पनरै दरवाजा; अंति: ए जोड वीकानेर मै करी, गाथा-७. ३. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: चीत चोखी चनेणबाला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८२५७५. पंचसुमति त्रणगुप्ति थोकड़ा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११.५, १८-२७४३३-४३). For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ समिति ३ गुप्ति बोल, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तराध्ययनसूत्ररा; अंति: (-), (पू.वि. "संजोग मीलावने लेवे तो दोष लागे खावे तो दोष लागे" पाठ तक है.) ८२५८२. दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२२.५४११, १२४२२-२५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ८२५८३. (4) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्ष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १३४२७-३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मयाकरि आपो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८२५८४. पांचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२४१२, १२४२२-२६). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., परिग्रह-५ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८२५८५. मेघकुमार सज्झाय व अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२२.५४१०.५, १३४३२-३५). १. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२१. २. पे. नाम. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा का बालावबोध, पृ. २अ, संपूर्ण. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ७९२२८१६२५१४२२६४३३७५९; अंति: द्वीप मध्ये मनुष्य. ८२५८६. (#) सुभद्रासती ढाल, धन्नाकाकंदी सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १६४२५-२८). १. पे. नाम, सुभद्रासती ढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सुभद्राजी दीठा आवता; अंति: नगरकी वासीय कामनी, गाथा-२१. २. पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मुनिवर धनानी हो करणी; अंति: पामीये वरसो सीवराणी, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथ जिनवरको बदन म; अंति: सरण तुमार रह सीरीमाए, गाथा-६. ८२५८७. २४ जिन अंतरकाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३४११, ११४२७-३०). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ महावीर २३ पार्श्व; अंति: महावीरजी मुक्ति गया. ८२५८८. (4) इलाचीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ७४१७). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८२५८९ (4) गीत व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ८,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११,११४२७-३०). १.पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. जिनकशलसरि गीत, आ. जिनचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल करो भरपूर कुशल; अंति: विनवे श्रीजिनचंदसूरि, गाथा-३. २. पे. नाम, जिनकुशलगुरु पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. जिनकुशलसरि पद, मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनो कर जाणीजै, गाथा-३. कार For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम जिनकुशलसूरि गीत पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पु.ि, पद्य, आदिः आयो आयो री समरंतो, अंतिः परमानंद सुख पायी री, गाधा-३. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: समरण होत सहाई कुशल; अति: चंदअक्षय नित पाई, गाथा-३. .पे. नाम जिनदत्तसूरि पद, पृ. ३ आ-४, संपूर्ण. ,जिनचंद्र, रा. पद्य वि. १८५०, आदि परतिख परचा पूरवै; अति जिनचंद० चित्त मझार हो, गाथा ९. मु. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कुशलसूरिंद सहाई हमा; अंति: आणंदचंद० दिन होत वधाई, गाथा-४. ७. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसुरीसर, अंति: चंद० हम है आस तुमारी, गाथा-३. ८. पे. नाम. जिनदत्तसूरिकालक्रम पद, पू. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " मु. आलमचंद, पुहिं., पद्य, आदि समरूं श्रीजिनदत्तसूर अंति (-), (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ८२५९० (+) चोर्याशीआशातना स्तवन, संपूर्ण, वि. १७१५, पौष शुक्ल २, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. विद्याविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३४१०.५, ११४३२-३५) ८४ आशातनापरिहार स्तवन- जिनभवन, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सुरासुर प्रणीय; अंति: खामुं शिरि बे कर करी, गाथा - २८. ८२५९१. वीसविहरमानजिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, दे., (२२.५x१२.५, ११x२५-२८). २० विहरमानजिन पूजा, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि (-) अति: (-). ( पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्वयंप्रभजिन पूजा अपूर्ण से अनंतवीर्य जिनपूजा का आदिवाक्य अपूर्ण तक लिखा है.) ८२५९२. मोहनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : मोवनीसज्झाय., दे., (२२.५X११, १०X३२-३५). औपदेशिक सज्झाय-मोहपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: जगमां जीवने मोटी; अंति: य कीधी आणी मन उल्लास, गाथा - २०. ८२५९३. होलिका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. उदैकंवर (गुरु सा. लाडु); गुपि. सा. लाडु (गुरु सा. अमरा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : होलीढाल., दे., (२२x११, १५X३२-३५). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति विनयचंदजी कहे करजोडी, ढाल ४. ८२५९४ (#) शत्रुंजयमंडणआदीश्वरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१, ३) = २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३१०.५, १०x२७-३०). "" आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा- ४७, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण २८ अपूर्ण तक व ४० अपूर्ण से है.) ८२५९५ (#) चंद्रप्रभु स्तवन व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X११, १३X२५-४० ). १. पे नाम प्रभाति पडिकमणुं, पू. १अ १आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि प्रथम इरियावही पडिक अंतिः दीसाउं इ० बहूल करसुं. १९९ २. पे. नाम. पोषह विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु प+ग, आदि प्रथम इरीयावही पडकमी; अति: करु नोकार ३ गणवा ३. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि जिनजी चंद्रप्रभुः अति राम० सुख लह्यो रे लो, गाथा-८. ४. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि प्रथम इरिआवही पडिक्क; अति पछे सामायक पारे. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२५९६. (+) धणराज पडतलराजरो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:थोकड़ो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४११.५, २१४२७-३०). धणराज पडतलराज थोकड़ा, मा.गु., गद्य, आदि: धणराज पडतलराज; अंति: सुची ४०० खंडवी १६०. ८२५९७. (+#) सीताजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १७४३७-४०). सीतासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: सरसत सामण बीनम सतगुर; अंति: नीवारो र रुगपतीया, ढाल-२, गाथा-५१. ८२५९८. वीरजिनतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२४११.५, ९x१७). महावीरजिन स्तवन-तप, सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनराय भावटभ; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-७. ८२५९९. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. अंत में उर्दू लिपि में कुछ लिखा है. पत्र-१४२., जैदे., (२२४१२, १९४१५). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: उत्कृष्ट काले एकसोसी; अंति: (-). ८२६०० पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४१२, ११-१४४३७-४०). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: खमासमण देइ इरियावही; अंति: नो १ सामाइयवयजत्तो ८२६०२. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२.५, १३४२७). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला जिनवर विहरमान; अंति: तणो नय वंदे करजोडी, गाथा-३. ८२६०३. (+) सातलाख सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११, १०४२३). श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: गमणागमण आलोउं सात; अंति: वंदेतु सूत्र कहवणी. ८२६०४ (4) महावीरजिन पद व उर्दू कृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२, ८४३५). १.पे. नाम. वीरप्रभुपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती पाय प्रणमी; अंति: वलि जाउ एह पएण जिनंद, गाथा-५. २. पे. नाम, अज्ञात उर्दू कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. उ., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८२६१०. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खाचरोध, जैदे., (२२.५४११.५, ११४२७). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजे ऋषभ; अंति: समयसुंदर कहे एम, ___ गाथा-२२. ८२६१४. आदिजिन व कंथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १५४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु; अंति: पल पल वलभ करे प्रणाम, गाथा-७. २. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ८२६१६. साधुअतिचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२०.५४१२, २०४३९). साधअतिचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८२६१९ (+) रोहिणीतप स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११.५, १५४३३). For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १२१ रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८२६२० (+) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १६४५५). १. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल सहियानै कहैरे; अंति: सीजै सुख मोख साथि, गाथा-१२. २.पे. नाम, नेमिनाथराजिमति गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जादव श्रृंगारा नेमि; अंति: कनकप्रिय० प्रणमीजै, गाथा-१२. ३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा साहिबीया; अंति: कनक० दीयंता आज्यो, गाथा-८. ८२६२१. (#) संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(३ से ४)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२, १०x२४). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ३२ ___ अपूर्ण तक व ४३ अपूर्ण से नहीं है.) ८२६२२. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६३, वैशाख कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. वीलाडा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४१०, २०४५८). १. पे. नाम, बहोतेर कला, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विचार जाणवो तेनी कला, (पू.वि. कला-५७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १४ विद्या, पृ. २अ, संपूर्ण.. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: राग १ रसायण २ निरगत; अंति: तीरण १३ रथ हाकवो १४. ३. पे. नाम, अट्ठाणु बोल बासठिया, पृ. २आ, संपूर्ण.. ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, आदि: पेले बोले सरवसुं; अंति: सरव अठाणु बोले विधि. ४. पे. नाम. ९९ बोल, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: समदीसरी मीथ्यात; अंति: सरब मीलीने ९९ बोल. ८२६२५ () आदिजिनाष्टक, औपदेशिक दोहा संग्रह व आत्मप्रबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१२, ११४३६). १.पे. नाम, आदिजिनाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन अष्टक, म. भवानंद-शिष्य, सं., पद्य, आदि: सकल मंगल मंगलमंदिरं; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ तक लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पुहि., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूसरी गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम, आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, ग. कहानजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे शिष्य सुणीजे; अंति: धन ते नरनारी प्यारि, गाथा-७. ८२६२७. (-) महावीरजिन स्तवन व देवलोक विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२, १९४३२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: (१)तीसलादेजीने सुपना, (२)पेली तो परनमु हो जीन; अंति: उतार जलम मरण सुधार, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. देवलोक के ८ आंगणा की विगत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पेला दुजा देवलोकरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पचीस जोजन तेम थारे उचा" पाठ तक लिखा है.) ८२६२८. थावच्चापुत्र वखाण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२२४११.५, १६४३०). थावच्चापुत्र नवढालियो, रा., पद्य, आदि: आरिसाना भवनै बैठा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ८२६२९. ककाबत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१२.५, १०x२२). कक्काबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कवर्ग अपूर्ण से टवर्ग अपूर्ण तक है.) ८२६३१. (4) नामकर्मनी ६७ कर्मप्रकृतिबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११, १६४३९). ६७ कर्मप्रकृतिबंध-नामकर्म, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति १ मनुष्यगति; अंति: गुणठाणे बंध अंत थयो. ८२६३२. (+) पार्श्वजीरी निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२४११, १४४२८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-२६. ८२६३३. पौषधविधि गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२२.५४१२, १३४३२). पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: हो समयसुंदर भणई सीस, ढाल-५, गाथा-३८, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-८ अपूर्ण से है.) ८२६३४. (+) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १२x२५). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात री नीद; अंति: क्षिम्या कहे नित एम, गाथा-३६. ८२६३५. पार्श्वनाथ नीसाणी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, १४४३२-३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन की घग्घर नीसाणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरख कहंदा है, गाथा-२७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: पास जिणेसर सांभलो; अंति: रविमले कीधव जात जगीस, गाथा-७. ८२६३६. (#) मृगांकलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:मीरगलेखा. पत्रांक खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४१२, १४४३२). मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ गाथा-५ से ढाल-२७ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८२६३७. (2) नवतत्त्वना २५६ भेद, अपूर्ण, वि. १८१५, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, प्र.वि. हुंडी:नवतत्वभेद., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०.५, १३४३८). नवतत्त्व २५६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वना भेद १४; अंति: ते दलनो संचय कहीइ, संपूर्ण. ८२६३८. (#) वंदनक अध्ययन सह अर्थ व असनादिक ४ भेद विचार, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १५४३७). १.पे. नाम. वंदनक अध्ययन सह अर्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: अप्पाणं वोसिरामि, सूत्र-०१. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि कहतां वांछु; अंति: कहेता वोसरावं . २. पे. नाम. असनादि ४ भेद विचार, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असण ४ भेद कहे छ; अंति: चखाण कर्या पछी सूजै. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८२६३९. आत्मनिंदा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२२४११.५, ११x१९-२३). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "ऐ चेतन देख तूं भरत चक्री के के" पाठ तक लिखा है.) ८२६४० (+) विहरमान २० जिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-८(१ से ७,१०)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२, १२४२४). २० विहरमानजिन पूजा, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुरप्रभजिन पूजा गाथा-१ अपूर्ण से चंद्राननजिन पूजा गाथा-१ अपूर्ण व चंद्रबाहूजिन पूजा से भुजंगजिन पूजा गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८२६४१. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४४७). १. पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कनकप्रिय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जोवन जल ज्युं वहि; अंति: यण जणनै मनि भावै रे, गाथा-१७. २.पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. १आ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, ले.स्थल. बहिलवा, प्रले. मु. रामचंद्र; पठ.पं. सरूपचंद (गुरु मु. रामचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तुं; अंति: राज कहे० सुणीजै जी, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: समय कहे करो द्याहडी. गाथा-१३. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. ग. कनकप्रिय, मा.गु., पद्य, आदि: परदेसै एक पंथी चालीय; अंति: सिवपुर सुख सार रे, गाथा-१३. ८२६४२. (+) सरस्वती छंद व गौतमस्वामी छंदद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, ११-१३४१७-३६). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर समुज्वल मराल; अंति: सहेदसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१९. २.पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वीसुत प्रातः; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: कामित दाता जग विख्या; अंति: लक्ष्मी पामे रे, गाथा-४. ८२६४३. सिद्धचक्र आराधन, दीक्षा विधि व २४ जन्मकल्याणक टीप, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-७(१ से ७)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४४२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र आराधन विधि, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. नवपद आराधन विधि, मा.ग., गद्य, आदि: आसोज सुदि ७ चईत्र; अंति: ७० अथ १२ काउसग्ग. २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम संध्या चारित्र; अंति: पूर्वक छै ए जाणज्यो. ३. पे. नाम. जिणकल्याणकरी टीप, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, आदि: आषाढ वदि पक्ष ४; अंति: १४ श्रीकुंथुनाथ जन्म. ८२६४४. मदनरेखासती रास व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, दे., (२१.५४११.५, १७-१९४४३). १.पे. नाम, मदनरेखासती रास, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. af For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: जुहा मांस दारु तणा क; अंति: संपती अधिकजी पावै, गाथा-५८. २. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ८२६४५ () प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. भाग्यविजय गणि; अन्य. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१३, १६४३६). प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समकित तो सरदहण रूप; अंति: वीचारवा जोग्य छे. ८२६५१. इरियावहीरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२२.५४११.५, १२४३२). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: (-); अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ___ ढाल-२, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ८२६५२ (#) जीभलडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२.५४११.५, ९४२८). औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडी रे जीभलडी तुं; अंति: कहे सुण प्राणी रे, गाथा-८. ८२६५३. (4) बाहुबल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११.५, १२४२७). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित्र लीयो; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा-११. ८२६५४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्वजिणंदा हो के; अंति: पसाया मारा लाल, गाथा-६. ८२६५५ (+) शंखेश्वरजिन लावणी व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२३४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. शंखेश्वरजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-शंखेश्वर, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमत अमर नरनि कर चरन; अंति: जिननी ते वरे शिवनारी, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह , पहिं., पद्य, आदि: को नर है को चाल है; अंति: तारण छे जब विचार, दोहा-१. ८२६५६. सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१२, ९४२२). सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: संप्रति कालै वीस; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२६५९ महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१२, १७४२७-३२). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथकुल उपना; अंति: तणा पावे सुख अनंत, गाथा-३०. ८२६६०. (#) साधु व आत्मार्थी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२,१३४४२). १. पे. नाम. साधु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... साधुगुण सज्झाय, ऋ. नवलमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रद्धावंत साधु धरम; अंति: कही रीष नवलमल अणगार, गाथा-११, (वि. आदिवाक्य का प्रारंभिक भाग खंडित है.) २. पे. नाम. आत्मार्थी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या दिल मांजना रे; अंति: कब लग शिवे दरजी, गाथा-६. ८२६६१. श्रावककरणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. मु. दलीचंद (गुरु पं. भाणचंद गणि); गुपि.पं. भाणचंद गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १२५ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं ऊठी परभात; अंति: पापतणा छूटइ आमला, गाथा-२१. ८२६६२. पार्श्वजिन स्तवन व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, २१४२०). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धर्यो प्रभु पह; अंति: नितयविजय० पायो, गाथा-८. २. पे. नाम. कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: ऊठिया धाड पैहली अवसज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८२६६३. (#) कालकाचार्य अष्टक, आध्यात्मिक होरी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. कालकाचार्य अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कालिकाचार्य अष्टक, सं., पद्य, आदि: प्रवरसेखाग्रे चूर्णि; अंति: तृषाथा द्विकरेण अंब, गाथा-९. २. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कुनु खेलै तोसू होरी; अंति: आनंद केर केर जोडी रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: फूलवेल रंग वेलरे पेट; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२६६४. रत्नविजयजी द्वारा लिखित पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपाल, प्रसं. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १९४१३). ___ रत्नविजयजी का गुरु के नाम पत्र, मु. रत्नविजय, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्त श्रीपार्श्व; अंति: कहेसो ते करीसुंजी. ८२६६५. जिराउलापार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४११.५, १२४३२). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउला मंडण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० तक है.) ८२६६६. आध्यात्मिक होरीपद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, जैदे., (२३४११, ६x२३). आध्यात्मिक होरी, म. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: घर आये चिदानंद कंत; अंति: को सुमति पीया के संग, गाथा-५. ८२६६७. चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र ऋषि (गुरु मु. नवलचंदजी ऋषि); गुपि. मु. नवलचंदजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२२.५४११.५, १०४२५). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी विधि वीनवु; अंति: हाथ अंतरगत अलगा नही, गाथा-८. ८२६६८. (+) धर्मजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, १०x२५). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गच्छा. महेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: धर्मनाथ जिन देख्या; अंति: जिनमहेंद्रसूरिंदा रे, गाथा-७. २. पे. नाम. श@जयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केशरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर नंदजी रे; अंति: मुनि केसरीचंदो रे, गाथा-३. ८२६६९. नेमराजुल पनरतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११, १४४३२). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमलै राजे; अंति: कह खंधवीजजी रो दास, गाथा-१९, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा-१९ तक लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) ८२६७०. गतागत बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४११.५, १३४२८). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गतागत बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेली नारकीरी २५ आगत; अंति: २८५ आगत ५६३ गत. ८२६७१ (4) एकादशी स्तवन व उपदेशपद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १३४३१). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर० कहो दाहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डाले बेठी सुडलि तस; अंति: करे तस मति छे रुडी, गाथा-४. ८२६७२ (#) नेमिजिन स्तवन व सामान्यजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, २६४१८). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५. नेमराजिमती स्तवन, आ. हंसरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: नेमजी तोरणथी रथ वाली; अंति: सफल वंछित फल्या रे, गाथा-५. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: वुबरी वाणी जिनवरतणी; अंति: मोकु दिल थकी धारी, गाथा-३. ८२६७३ (+) पद्मावती स्तोत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४०, पौष कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. करणपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, ९४२२). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्योतिष समस्या श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. समस्या श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अयनागतवासररामहता; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१अपूर्ण तक है.) समस्या श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२६७४. विजयक्षमासूरि स्वाध्याय व ज्योतिष पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. विजयक्षेमासूरि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. २.पे. नाम. ज्योतिष पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार; अंति: रासकुं उपमा दिजीये, गाथा-१. ८२६७५. गहुंली व सज्झाय संग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५४१२, १२४२९). १.पे. नाम. अग्यारगणधरनी गहंली, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ११ गणधर गहंली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीपविजय० जिनशासन रीत, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करणशं शोभतां; अंति: शुभ० मिले शिव साथ रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन गहंली, पृ. ३आ, अपर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___ मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी अपापानयरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. भीलडी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ से गाथा-२० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १२७ ८२६७६. ग्रंथनामसूची, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, २३४२०). ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, आदि: नेमनाथ चरित्र पत्र; अंति: चोविस जोड़ा पत्र ६. ८२६७७. सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२३). सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सुविधि; अंति: दरसण दीजीये रे लो, गाथा-५. ८२६७८. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, ११४३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ तक है.) ८२६७९. सुविधिजिन स्तवन व राजेमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२२.५४११, १०४२१). १. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सुविधि जिणेसर देव; अंति: कहे गणि मेघराज रे, गाथा-७. २.पे. नाम. राजेमतीनी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. राजिमतीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तुं सजनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८२६८०, महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६३, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्रले. मु. वृद्धिचंदशिष्य (गुरु मु. वृद्धिचंद ऋषि), प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १५४३८). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कहे धन मुझ एह गुरू, ढाल-१०, गाथा-१००, (पू.वि. ढाल-८ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ८२६८१. पार्श्वजिन स्तवन व वीशस्थानक आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. वस्तुतः प्रत अपूर्ण है किन्तु दूसरी कृति के लिपिक ने पत्रांक-१लिखा है. अतः अपूर्ण दिखाने के लिये पत्रांक-२ दिया गया है., जैदे., (२२.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. भाभापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. प्रत के अंत में "श्रीपडिक्कमणसूत्रविधि" लिखा है. प्रतिक्रमणगत यह स्तवन होने की संभावना है. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी सुख दीइ रे, गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-३ से है.) २.पे. नाम. वीशस्थानक तपनी विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: १ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: भावना कीजइ काउसग्ग ५. ८२६८२. शंखेश्वरजिन स्तवनद्वय व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. मु. विद्यारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, ११४३३). १. पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. जयमाणिक्य गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: शंखेश्वर प्रभु पासजी; अंति: तरा एकीधी सुख संते, गाथा-७. २. पे. नाम, शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सेवो प्रभु शिव सुखका; अंति: जिनलाभ महा सुखकार, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मारे भलो रे उगो; अंति: वंछित अनुपम राजनो रे, पद-५. ८२६८३. (#) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: दिसतु ___ शासनदेवता, श्लोक-४, (वि. आदिवाक्य आंशिक खंडित है.) ८२६८४. (+) विवाहपडल व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२, १२४३१). For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. विवाहपडल का पद्यानुवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. कनककशल, पुहिं., पद्य, आदि: अइओ अइओ नाटिक नाचै; अंति: सेवा इही मेवा मागे, गाथा-६. ८२६८५. तपउजमणादि विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, २०४४८-७५). तपश्चर्या-व्रत-उद्यापनादिविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पोसचैत्रचउमासवर्जित; अंति: (-). ८२६८६ () स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १३४३७). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से शांतिजिन स्तवन तक है.) ८२६८७. स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३४). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भल ऊगो दिवस प्रमाण; अंति: कहे सुजाण घणा गावसी, गाथा-११. ८२६८८. पार्श्वनाथजी स्तवन व ज्योतिष प्रश्नावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४११.५, १६४१८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. २. पे. नाम. ज्योतिष प्रश्नावली, पृ. १आ, संपूर्ण... शुकनावलीपच्छा, मा.गु., गद्य, आदि: एक पांच नव दोय षट; अंति: पडे तो पंथ आवे आज. ८२६८९ (+) पार्श्वजिन व दीपावलीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १२४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., प्रले.पं. विमलसोभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिस धीरनी पूरो जगीस, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है., वि. गाथांक अंकित नहीं हैं.) २. पे. नाम. दीपओच्छवमालिका स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसति मुझ वाणी, गाथा-४. ८२६९० (2) अनेकांतवाद का संक्षिप्त स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, २२४२३). अनेकांतवाद का संक्षिप्त परिचय, पुहि., गद्य, आदि: ओर तुमनै लिखा जिन; अंति: ताते वीरोध नाहि है. १६९१. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लासुर, प्रले. मु. मुक्तिहर्ष; अन्य. विश्वनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १३४३४). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: - मनोरथ सघला फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ८२६९२. खंधकमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जहेनगर, प्रले. सा. रूपा (गुरु सा. डाहीजी); गुपि. सा. डाहीजी; सा. सत्याजी (गुरु सा. स्याणाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंधकजी०., दे., (२२४१२, १३४२७). खंधकमनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर को नित नमी; अंति: ख्यो कह्यो भवजल तीर, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १२९ ८२६९३. (+) विजयकुमारविजयाकुमारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०, १२४२५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रामपुर गुण गाया, गाथा-१७. ८२६९४. सिद्धांतनी हुंडी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३४११.५, १०४२८). सिद्धांत हुंडी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम कृपालु कृपानीलो; अंति: चंद्रविजय सवि सुखकरो, गाथा-४४. ८२६९५ (#) ज्वर छंद, नवकार छंद व भगवतीसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१,५)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १२x२९). १.पे. नाम. ज्वर छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सारमंत्र जपिये सदा, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: ऋद्धि वंछित लहे, गाथा-१९. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक है.) ८२६९६. प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:प्रियमेलि., जैदे., (२२४११, १३४३७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ गाथा-६ तक है.) ८२६९७ (+#) गुरुगणकर्मकटण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्रले. मु. मोतीरामशिष्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४११.५, ११४२७). मोतीराम गुरुगुणवर्णन सज्झाय, मु. मोतीराम शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति वर्धमानजी; अंति: ते करो शुद्ध सुधार, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक नहीं है.) ८२६९८. औपदेशिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (१९.५४११, ११४२४-३०). औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-३६ अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक है.) ८२६९९. खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१.५४११, ११४८-३४). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: श्रीजिनचंद्रसूरि. ८२७०० (+) पुष्पवतीशीलविवरण सातढालियो, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १६४३९). पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविनासी अविकार जिन; अंति: विनय० सात सुखदाय रे, ढाल-७. ८२७०१. संवत् १८४४ वर्षीय विजयउद्योतसूरि आदि चातुर्मास पट्टक, अंकपलवि आदि औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र-१४४., जैदे., (५०x२३.५, ४५४२४). १.पे. नाम. संवत् १८४४ वर्षीय विजयउद्योतसूरि आदि चातुर्मास पट्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भ० श्रीविजयहीरसूरि; अंति: उपालंभ देवास्ये सही. २. पे. नाम, अंकपल्लव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ एकं १० दोय १०० सय; अंति: ७२३६० दंडांक प्रमाणे. ३. पे. नाम. औषधनिर्माण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८२७०२ (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रत के अंत मे "चंपा तुझमें तीन गुण रूप रंग अरु वास" दोहा अपूर्ण लिखकर छोड़ दिया है., संशोधित., जैदे., (२३४११, ९४२५). For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुमान, मा.गु., पद्य, आदि : आज मांरा पासजीउ चालो; अंति: गुमान० देखण दे री, गाथा - ३. ८२००३ () पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि व भोजराजा कथा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x१२, ३०x२३). 1 १. पे. नाम. पाक्षिकादिप्रतिक्रमण संक्षिप्त विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: वंदेतु कही पूरी कही; अंति: खामी नीथार पारगा हो. २. पे. नाम. राजाभोज तथा डोकरीनी कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. भोजराज डोकरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: गहूनो खेत्र साचववा; अंति: वररूची एक राजाभोज छो. ८२७०४. जिनलाभसूरि गीतद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३४१०.५, १३४३५). .पे. नाम जिनलाभसूरिनुं गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " जिनलाभसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: गायो गेहणी सोहले अति: वरदाई पूजवि जाई राजन, गाथा ९. २. पे. नाम जिनलाभसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आणे उमर अभंग पुछेसुं; अंति: भलो जिनलाभसूरीसर भूप, गाथा-५. ८२७०५. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे. (२१.५x१२.५, १३x२८). , १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पासजिनेसर की ; अंति: वीनती यह अलवेसर की, पद-५. २. पे. नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मनमंदिर नाथ वसावो; अंति: अंतरंग गुण सवि हसिया, गाथा-६. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जैवे. (२२x१०.५, १६x४८). १. पे नाम साहित्यिक लोकसंग्रह, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. चतुरकुशल पुरि., पद्य, आदि फागुन में फाग रमो; अति निगोदसुं रहो न्यारे, गाथा-३. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: क्या देख दिवाना हुआ; अंति: क्युं नही मूआ रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . मनोहरविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजी म्हारा आज अंति मनोहर० रे मारा राय, गाथा- ६. ८२००६ (W) गीत, सवैया व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, श्लोक संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि: वृंद्रावनानां वाजंति; अंति: माघ कवि कालिदास, श्लोक ७. २. पे. नाम. नेमजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, पुहिं, पद्य, आदि: तु बालब्रह्मचारी भल; अतिः सेवक कूं तुम तारी, गाथा ५. ३. पे. नाम चोरलक्षण पद, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि अजब जनावर एक पोकारे अति चाल लखण हे चोर का गाथा- १. ४. पे. नाम. रामचंद्र कवित्त, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. राम रावण युद्ध सवैया, पुहिं., पद्य, आदि नीचुं नीहारे रे, अंति आद सजे रामरा दल सबलं, सवैया ४. ५. पे नाम. प्रास्ताविक कवित्त सवैयादि संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि चरी अनेक रात की न; अंति: जइनो सामलो सटके छे, गाथा-४. ८२७०७. अजितशांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४) = १, पठ. श्रावि. कंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., . (२२.५X१२, ७४२९). For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अजियसंतिनाहस्स, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-३८ से है.) ८२७०८.(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सपखरो बाप जोरा वरखान; अंति: दार पायो हाजरा हजूर, गाथा-१४. ८२७०९ (+) दोढसोकल्याणकन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, प. १, प्रले. पंन्या. ऋद्धिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२२४१२, १३४३०). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१७. ८२७१०. केशीगौतम स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:गणधर०., दे., (२३.५४१२.५, ११४२५). केशीगौतमगणधर सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमिये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ८२७११. (+) महावीरस्वामी स्तवन व स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११,१२४३१). १.पे. नाम. महावीरस्वामिन स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १८०७, चैत्र शुक्ल, १०, गुरुवार, पठ. मु. गुलाबहर्ष (गुरु मु. लालहर्ष); प्रले. मु. लालहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, म. लखमण, मा.गु., पद्य, वि. १५२१, आदिः (-); अंति: निश्चय अफल्यां फले, गाथा-९९, (पू.वि. गाथा-९३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गुलाबहर्ष (गुरु मु. लालहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. गुणानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंति समजावी चालता; अंति: एज मन शुद्ध प्रीति, गाथा-१३. ८२७१२. (4) उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ९४२४). औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणे रे; अंति: पूरज्यो संघ जगीस रे, गाथा-८. ८२७१३. हरियाली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, १३४३१). औपदेशिक हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: गिरधी कंत ज आभरण तस; अंति: घर घरण गयो जमारो हार, गाथा-२२. ८२७१४. (E) नेमिराजिमती पदद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, ११४२२). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: असी लगती रे दल भर; अंति: प्यारी अखीया, गाथा-३. २.पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नहि जान धुउरे नही; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२७१५. दसदिग्पाल व नवग्रहपूजन यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, १७X४९). जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८२७१६. पौषध विधि व राईप्रतिक्रमण विधि, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, दे., (२२.५४११, १४४३०). १.पे. नाम. पौषध विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही कहीइ; अंति: मिच्छामि दक्कडम. २. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि पडिकम; अंति: (-), (पू.वि. "खमासमण देइने इच्छाकारेण संदि०भगव०" पाठांश से नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२७१७. महावीरस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पुना, प्रले. श्राव. प्रेमचंद झवेरचंद; पठ. सा. मानुबाई; व्याप. सा. संतोकबाई (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११.५, ११४४५). महावीरजिन छंद-खंभातमंडन, म. वीर मनि, मा.ग., पद्य, वि. १८१०, आदि: माहामंगलीक भजो आप; अंति: थ खंभात श्रीवर्धमान, गाथा-११. ८२७१८. (4) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मानसिंघ शिष्य (गुरु मु. मानसिंघ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १०४३७). पार्श्वजिन स्तुति, मु. सुमतिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर प्रभु परमे; अंति: मतिसौभाग्य जयकाराजी, गाथा-४. ८२७१९ तेरमास व महपत्तिनां पचास बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले.पं. रंगविजयजी गणि; अन्य. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, ११-१८४३३). १. पे. नाम, १३ मास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रियसंदेशा तेरमासा, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: दनो नाथ अती अढलक ढली, अध्याय-१३, (पू.वि. दसवें मास से २. पे. नाम. मुहपति पडिलेहण के बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्रार्थ तत्त्व साच; अंति: सर्वमिलीने पचास बोल. ८२७२० (+) मौनएकादशी, शत्रंजयगिरनार स्तुति व विजयजिनेंद्रसूरि छत्रबंध यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १०४३२). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २१अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, पृ. २१अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि तीर्थ; अंति: जीव सुखसंपत्ति मलें, गाथा-४. ३. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरि छत्रबंध यंत्र, पृ. २१आ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरि विजयबंध यंत्र, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). ८२७२१ (4) माणिभद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मनरुपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३५). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा सिमर; अंति: वकीर्ति इम सुजस लहे, गाथा-१०. ८२७२२ (#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १८x१४). महावीरजिन स्तवन, म.हीर, मा.गु., पद्य, आदि: सासणभुषण सामी सधीर; अंति: हरखे देजो समकित हीर, गाथा-६. ८२७२३. (#) ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. रंगविजय; पठ. मु. माणिक्यविजय; अन्य. पंन्या. गलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१३, २१४३९). कक्काबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध निवारीयै; अंति: वाधै विद्या विलास, गाथा-३४. ८२७२४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२३४११, ११४५०). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीया; अंति: पुण्य तणा प्रमाण रे, गाथा-११. ८२७२५. (+) अठार पापस्थानक व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१०.५, ९४२७). १.पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-पापस्थानक-१, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि सामायक मन शुद्धे करो; अति सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५, ८२७२६. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५X११, ५x२४). साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थंकर वांदौ जणदेव; अंति: भवसायरथी पार उतार, गाथा-२, (वि. आदिवाक्य में प्रारंभिक अक्षर "ती" नहीं है.) ८२७२७. (*) नंदिषेणमुनि सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., ( २३X११, ९३१). १. पे नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवि श्रुतरंग विनवइ, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमीजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: देस विदेह सोहामणु; अंति: गिरुआ साधु सुहामणी, गाथा-१५. ८२७२८. नवकार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२२x११, १२x२३). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि वंछतपूरण विध परे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८२७२९.) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५X११.५, १५X३३). १. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय, मु. उनादास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: उनादास० छाडण बालक, गाथा-२३, (पू. वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चंपालाल, पुहिं., पद्य, आदि हा काम घणाय नाक किम; अंति: चंपा० वडो हे निधाना, गाधा -९ ३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. י. लकीरें., जैदे., (२३x१०, १५X४० ). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय श्रावक, मा.गु, पद्य, आदि हुक चिलम चुंगि बीडी; अंति: मोख कदि नही जावे रे, गाथा ८. ८२७३० (+) औपदेशिक व आध्यात्मिक आभूषण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक मा.गु., पद्य, आदि: पाप तणा फल कडवा रे; अंति: सतगुरु कहेत सुणाय रे, ढाल -२, गाथा-२१. २. पे. नाम. आध्यात्मिक आभूषण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्नान करो मन समरण; अंति: आवागवण निवारी जाय, गाथा-४. ११x२२). १. पे. नाम. कलशप्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ ८२०३१ (#) ज्ञानपंचमी स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२.५x११.५ १४४३४). , . १. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पहेला प्रणमु गोयम स; अंति: अनंतसुख केवलि दाबीउ, गाथा- १५. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि सारदा, अति (-), (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ८२०३२. कलशप्रतिष्ठा, ध्वजारोपण व जिनविवप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १. कुल पे. ३, जैदे. (२३४१२.५, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदिः ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्व अंति: देवी कलस थापना मंत्र. २. पे. नाम. धजारोपण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ध्वजादिप्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं क्ष्वीं सर्व अति त्रण प्रदक्षणा देवी. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. बिंबप्रतीष्ठा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पिहलां प्रभुने पबासण; अंति: पुजा सत्तरभेदि भणावी. ८२७३४. (+) पद व होरी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, १६x४०). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्याओ रे; अंति: नेमराजुल शीव लीनो रे, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अतिउलसंत वसंत जिन; अंति: इणी परि खेले होरी, गाथा-१२. ३. पे. नाम, महावीरजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विबुधविमल, पुहि., पद्य, आदि: सरधा सविके साथ जीन ख; अंति: साये करता गुण अभ्यास, गाथा-६. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-होरी, मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: होरी मची जिनद्वार; अंति: रूप लहें ते सुखकार, गाथा-५. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक होली पद, पुहिं., पद्य, आदि: हारे होरी खेलो रे भव; अंति: तेरा पाप सकल हरकें, गाथा-३. ६.पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मधुवन मै धुम मची; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८२७३५. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, १०४२७). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: कोपि राज्ञा समिपे; अंति: सिद्धार्थ भुवः. ८२७३६. धन्नाकाकंदी सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१२.५, ११x१८). १.पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. भाणपुर, पठ. मु. देवा (गुरु मु. किसनसागर), प्र.ले.पु. सामान्य. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ई रे बतिसी कामणि रे; अंति: धना बरतसी जै जैकार, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. किसनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.. म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद सुरतरु की, गाथा-७. ८२७३७. (#) साध्वाचार, नेमिराजिमती व रेवती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०,१५४३७). १. पे. नाम. साध्वाचार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. साधु आचार सज्झाय, पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनयवि०पाय वंदन कीजै, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आए नेमजी पसुअन; अंति: ऋद्धिहर्ष करि जोडी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. रेवती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ विजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुनि सिंघासन रेवती; अंति: आनंद हरख अपार जी, गाथा-१०. ८२७३८. सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११,१२४३३). ७ व्यसन सज्झाय, म. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सगण सनेही हो सांभलि; अंति: नंद कहि करजोडिरे, गाथा-११. ८२७३९. (+) गौतम रास व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:गोतमरा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४११.५, १८४३१). १. पे. नाम, गौतम रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गौतमगणधर रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीवर्द्धमान; अंति: सदा नीमस्कारो रे, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १३५ २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. चोथमल, रा., पद्य, आदि: संतजीणेसर सोलमा प्रभ; अंति: अचलादेबेजी रो नंद, गाथा-१०. ८२७४०. यवराजर्षि बोध गाथा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१२.५, १३४३३). यवराजर्षि बोध गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुकमाल शुकोमल भडिलीय; अंति: चूलका मध्ये बैठी छै, गाथा-३. यवराजर्षि बोध गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कुंभाररै घरे जग्यामै; अंति: आवौ नथी अंतराय तूटौ. ८२७४६. चोविशजिन स्तुति व श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४२७-३५). १. पे. नाम. चोवीसतिर्थंकर स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नमो नमो देव निरंजनाय, (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ८२७५१. सज्झाय संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५४१३, १९४४१). १. पे. नाम, तप सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, म. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, आदि: तप बडो रे संसार मे; अंति: आसकरण० सहर चोमासो रे, गाथा-१४. २.पे. नाम, कालीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: काली हो राणी सफल किय; अंति: आ घर हरख अपार, गाथा-७. ३. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुवीर बताओ मेरा; अंति: तुरत प्राण जिन धमाया, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शीलगुण, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: रे मन थारे हे कांई; अंति: तो सुधरे सहु काज, गाथा-४. ८२७५३. नेमराजुल पद व नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२२४१०.५, १२४२६). १. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बैठी उंची गोखड; अंति: मतिहंस कहै धन तेह, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. ८२७५४.(+) सीमंधरजिन व वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.१, कल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्रावि. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५४१२, २२४२८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८३९, आदि: श्रीसीमंधर जिन; अंति: जेमल० कुचारे गांम, गाथा-१३. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदि: वीस विहरमान अहोनी; अंति: तीर्थंकर पदसारो, गाथा-९. ८२७५५ (+) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, २४२४). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२ तक है.) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवई पाखी पडिक्कमणु; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२७५६. षट्लेश्या श्लोक व परमाणु लक्षण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है., दे., (२४४११, ७४२०). १. पे. नाम. षट्लेश्या श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्र सदा क्रोधी; अंति: लेश्याधिको भवेत, श्लोक-६. २. पे. नाम. परमाणु लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जालांतर गते भानौ यत्; अंति: भाग परमाणु स उच्चते, श्लोक-१. ८२७५७. शांतिनाथ लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हंडी:संतनाथलावणी., जैदे., (२३.५४११, २०४३३). शांतिजिन स्तवन, मु. रामकिसन, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: संतनाथ जण संत का; अंति: सोर ममुच मुज्यारो, गाथा-१३. ८२७५८. (+#) सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविजय; अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ११४३३-३७). सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कथं उत्पद्यते धर्मः; अंति: भलाः कलंक न लागे कोय, गाथा-२०. ८२७५९ (#) कल्लाणकंद व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८२७६३. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२४४११, १६४१२). साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हरे निरंजन साहिबा; अंति: व न ओर निरंजन साहिबा, गाथा-५. ८२७६६. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सीवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, ८x१९-२६). गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-७. ८२७६८. () दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १३४२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: (-), संपूर्ण. ८२७६९ (#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १५४३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२१ अपूर्ण तक है., वि. श्लोक-१५ के बाद श्लोकांक नहीं लिखे हैं. परिमाण अनुमानित.) ८२७७१ (+) चोविसद्वारे दंडकयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४१३-६७). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८२७७३. (+) सत्यभामारुक्मिणी रो चुडलो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चूडलो., संशोधित., दे., (२२.५४११, १७४३१). चूडलो रास, मा.गु., पद्य, आदि: गणपति गुणनिधि लागुणी; अंति: उण्ण घर सदा रलियामणो, गाथा-१६, (वि. अंतिम दो गाथाओं में क्रमांक नहीं लिखा है. परिमाण ८२७७४. (+) पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, १०४२९). मानित For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसत्रुजो सिणगार; अंति: वीनयविजय० नमुं सीस, गाथा-२१, (वि. कुल ६ चैत्यवंदन हैं व प्रत्येक चैत्यवंदन में ३ गाथा हैं.) ८२८०० (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:नवतत्त्व., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११.५, ११४२२). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ तक है.) ८२८०३. (#) रंगबहुत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. मु. सत्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४४३). रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचे चतुर सुजाण, गाथा-७३, (पू.वि. गाथा-६० अपूर्ण से ८२८०५. नेमराजिमती पद व प्रहेलिकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३७-४०). १. पे. नाम. ग्रहफल, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सूरज उच्चैउच्चत्वं; अंति: तिसरै अन्न महुगा होय. २.पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: तितर संवो बादलो बंधव; अंति: अमर ऊप भाया जिस०, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: यादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सम्मेतशिखर पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, म. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन में जाय मची रे; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-३. ८२८०६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१२, १०४३०). औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु छु; अंति: पछी नित्य आनंदघन थाय, गाथा-११. ८२८०७.(+) जैनधर्म महिमा श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १८-२२४१७). जैनधर्म महिमा श्लोक, सं., पद्य, आदि: जैनो धर्मः प्रकट; अंति: तेनाल्प पुण्यै, श्लोक-१. जैनधर्म महिमा श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत वीतरागदेव; अंति: इहलोके परलोके सुखी. ८२८०९ स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. हीरसुंदरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३५-३८). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोशा कामिनी पूछइ चंद; अंति: करइ तस हीसि रेइ, ____ गाथा-२२. ८२८११. औपदेशिक गीत, अपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. अनुमानित पत्रांक १आ पर पुष्पिका लिखी गई है, जो अपूर्ण व अस्पष्ट है., जैदे., (२३४११.५, २२४१३). औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देस मुलकने रे परगणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८२८१२ () हीरचंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३२-३५). हीरचंदराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: राजा हीरचंद मोटको; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ तक लिखा है.) ८२८१३. बावीस परिषह व आधाकर्मी ४७ आहार दोष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४.५४११, १७४३५-३८). १.पे. नाम, बावीस परिषह विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, आदि: खुहा भूख परीसह महइ; अंति: टलइ इति वावीस परिसह. २.पे. नाम. आधाकर्मी ४७ आहार दोष का बालावबोध, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मिक यति; अंति: (-), (पू.वि. ४२ दोष तक ८२८१४. (+) भक्ष्याभक्ष्य सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११,१३४२५-२८). भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: माखण सहत पीव ग्रसत; अंति: कर्यो दयाके वहाने है, गाथा-५. ८२८१५ () स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १६४४०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र मुनिसर आवो; अंति: गणधरजा जगध्रनी तारी, गाथा-१७. ८२८१६. प्रद्मप्रभजिन स्तवन व औपदेशिक गीतद्वय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, २५-२८x१८-२२). १. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. आणंदसोमसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: घडी घडी पल मुझ सांभर; अंति: आणंदसोमसूरि० बेली, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वाजींद, मा.गु., पद्य, आदि: बाजींद कहे गोरी; अंति: दरबार इकेले खायगे, कडी-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. गोविंद, पुहिं., पद्य, आदि: दसमास उदर मे करता; अंति: साहु के हाथपां ना हे, गाथा-५, (वि. अंत में कुछ औपदेशिक पद्य लिखे हैं.) ८२८१७. जंबुकुंवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १५-१८x२७-३०). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो बासी; अंति: राया धरमो रो पेमो त. गाथा-२१. ८२८२०. माया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४११, २१४२०). औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. गंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: मीने गुणीधर वज सगाई, गाथा-१०. ८२८२२. (4) नेमराजिमती पद, गुरु गहुंली व दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १५४२७-३०). १. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: कोई दिन याद करोगे; अंति: माया जुठी जगत की रीत, पद-४. २. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मन सुना रे यारी सफल; अंति: करे तु हेत सुगतिसु. ३. पे. नाम. रामभक्ति गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: आपस की फट म गई०लंका; अंति: तुलसीदास दीवचे लंका, कडी-४. ४. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ.१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सखी री चल गढ गिरनारी; अंति: भज हु ढिग ठाडी री, गाथा-३. ५. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ करता दुरित हरता; अंति: सेवो थाएसे कल्याण ए, गाथा-५. ८२८२३. (#) तेजसिंघजी निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १४४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० तेजसिंह गुरुगुण निसाणी, मु. कुशला, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचोवीसे विसवा; अंति: कुशलचंद ऋषि कहैदा है, गाथा-१०. ८२८२४. शिवपार्वती सवैया, अन्नपूर्णा स्तोत्र व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२२.५४११.५, ३२४२३). १.पे. नाम. शिवपार्वती सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. कल्याण भट्ट, मा.गु., पद्य, आदि: उमियाजी एक प्रपंच; अंति: कल्याण भटट० बनायो, सवैया-७. २. पे. नाम, अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नित्यानंदकरी पराभयकर; अंति: मार्तंड पूर्णेश्वरी, श्लोक-९. ३.पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदपुरुष श्रीआदीश्वर; अंति: हर्ष सदा विलसंत रे, गाथा-८. ८२८२७. आबुतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३४१२, ११४२६). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंति: आवै रूपचंद बोले रे, गाथा-२२. ८२८२९ (+) वीसस्थानक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५,७४१७-२०). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी करूं; अंति: भवी जिनपद सुजस सवाय, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक नहीं है.) ८२८३०. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२४११.५, १५४३५-३८). अवंतिसुकुमाल चौढालिया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३५, आदि: एवंति सुखमालको केवु; अंति: पाया मन हुलास, ढाल-४, गाथा-५३. ८२८३१. (4) पार्श्वनाथजीरी घघ्घरनीसाणी, संपूर्ण, वि. १७७६, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. जयवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १५४४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा-२७. ८२८३३. (4) शालिभद्रजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. स्यापुरा, प्रले. सा. सरदी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १४४२७-३०). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहिपुर नयरी; अंति: देव तणां सुख भोगवेजी, गाथा-३८. ८२८३४. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सुरत, प्र.वि. हुंडी:नवकार., जैदे., (२३४११, १०४२७-३०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कल्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ८२८३५ (+#) कृष्णशुक्लपक्ष चौढालियो व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १३४३७-४०). १.पे. नाम. कृष्णशुक्लपक्ष चौढालीयो, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसल नित अवतरै, (पू.वि. ढाल-२ से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. ८२८३६. चोगतिनुं चोढालीयु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४११.५, १७४३३-३६). ४ गति चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीसामीने वीनवू; अंति: ए सीखामण उलसी, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२८४० (4) नेमराजिमती बारमासा, विजयशेठ सज्झाय व शरण सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, १२, शनिवार, जीर्ण, पृ.२, कुल पे. ४, ले.स्थल. जेपुर, प्रले. सा. रुपा (गुरु सा. अमराजी); गुपि.सा. अमराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, २०४२८-३२). १. पे. नाम. बारमाशीयो, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: समदबीजेजीरा नंद; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, कार्तिक कृष्ण, ११. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: उबी उबी राजुल अरज कर; अंति: हूया छे मंगलाच्यार, गाथा-१०. ३. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुकलपख विजीया बरत; अंति: (अपठनीय). ४. पे. नाम. च्यार सरणा सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (अपठनीय); अंति: चोथमल०बरत्या जेजेकार, गाथा-१२. ८२८४१. (+#) आसीकपच्चीसी व विविधक्षेत्रस्थ वस्तविशेषता विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १५-२२४४०). १. पे. नाम. आसीकपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: आसिक मोह्यो तुझ रूप; अंति: सौख्य घणं लहेस्ये, गाथा-२५. २. पे. नाम. विविध क्षेत्रस्थ वस्तु विशेषता विवरण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. विविधक्षेत्रस्थ वस्तु विशेषता विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: देव तो वीर १ गुरु तो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वनमा काष्टमां चंदन सती सीता" पाठांश तक लिखा है.) ८२८४३. (#) देवलोक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५४११, १८४३६-३९). देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बीजै देवलोकरै; अंति: (-), (पू.वि. ज्योतिषीदेव विचार अपूर्ण तक ८२८४४. सीमंधरजिन विनती व तारादेवी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १५४३२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, १२, प्रले. मु. चंद्रभाण ऋषि; पठ. सा. संतोक, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व पुकलावती विजैम; अंति: म्हारी पोह उगते सूर, गाथा-१३. २. पे. नाम. तारादेवी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुण्या ब्राह्मण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८२८४५ (+) अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. गाथांक नहीं लिखे है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४११, १४४४२-५२). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसत मात मना करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अविचलराज काजि थिर थापे पद्मावती परचे" पाठांश तक लिखा है.) ८२८४६. (+) जयतिहुयण स्तोत्र का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४११, १५४४२). जयतिहुअण स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेशिता; अंति: सीस क्षमाकल्याण जगीस, गाथा-४१. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १४१ ८२८४७. (#) चौवीसजिन नाम, चौवीसजिनमोक्ष विवरण व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ३७४२३). १. पे. नाम, २४ जिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीऋषभदेवने ३ ऊ.; अंति: अठमें केवल ऊपना. २. पे. नाम. २४ तप, मोक्षादि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहि., गद्य, आदि: ऋषभदेवने ६ उपवासे; अंति: (१)वीरजीनो २ उ० मोक्ष, (२)एतला माटे कह्यौ छे. ३. पे. नाम. औपदेशिक बोलसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक १अ पर भी शेष पाठांश है. विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: बत्रीस चोथ भक्त; अंति: तप कहेवाय छइ. ८२८४८. (+#) चौवीसजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४०). २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक ८२८४९ कयवन्ना चोढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:कवना., जैदे., (२२४११, १९४३८-४२). कयवन्ना चौढालियो-दानाधिकारे, म. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पार्श्वनाथ प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८२८५० (4) साधुवंदना व श्रेयांसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १५४२५-२८). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: विजय प्रणमुनीसदीस, गाथा-२९. २.पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में प्रतिलेखक ने चंदनबाला तप प्रसंग प्रारंभ करके छोड़ दिया है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांसजिन सुणो; अंति: मोहन वचन प्रमाण, गाथा-७. ८२८५१. गुरुगुण गहुंलीद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १३४२६). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल, आउवानगर, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ___मा.गु., पद्य, आदि: कुंकुम चंदन छडो रे; अंति: हने हर्ष थयो ते गाई, गाथा-७. २. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चालो साहेली वांदवा; अंति: सुध सरुप धर्या नेह, गाथा-७. ८२८५२. पार्श्वजिन स्तवन व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२२४१२.५, २८x१९). १.पे. नाम. नवखंडा स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडननवखंडा, वा. दान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु श्रीनवखंडापास; अंति: दान० गरीब निवाज हो, गाथा-५. २. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. पार्श्वजिन स्तवन से दोहा-२ तक है., _ वि. प्रारंभ में किसी वैदिक कृति की गाथा१६ व १७ लिखी हैं.) ८२८५३. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हंडी:स्तोत्रपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५,१३४३२). For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पूरण आसा; अंति: प्रभु संघने मंगल करो, गाथा-१३. ८२८५४. ज्ञानपंचमी स्तवन व नेमराजुल बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३२-४०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० प्रशंसिओ, ढाल-३, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वेसाखे वन मोरीया; अंति: मिलीया मुगति मझार, गाथा-१४. ८२८५५ (#) चंद्रगच्छीय डुंगरशी, वस्तुपालजी व रुघनाथजी गुरुगुण गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, २९-३३४१८). १. पे. नाम. डुंगरशी गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: डुंगरसीह अबीह सदगुरु; अंति: जायै सवे पूजि दीदार, गाथा-४. २. पे. नाम. वस्तुपाल उपाध्याय गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: महाजाण महिराण वयण जस; अंति: तणै वसतपाल मोटै वखत. ३. पे. नाम, रुघनाथजी उपाध्याय गुरुगण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपाध्याय रुघनाथजी गुरुगुण गीत, श्राव. जगराम भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यांन जिसौ गोतम; अंति: कहां कित्ति ऊगै किरण. ४. पे. नाम, रुघनाथजी गुरुगण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उपाध्याय रुघनाथ रै; अंति: जतन ज कीज्यो जालप, गाथा-३. ८२८५६. (#) ऋषभदेव स्तुति व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १५४२५-२८). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४३, पौष कृष्ण, ९, ले.स्थल. सुणेल, प्रले. मु. दोलतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. साधारणजिन स्तुति, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माइ तुठे देवी अंबाइ, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणैसर पूज कर; अंति: सुखसंपत्ति हितकार, गाथा-४. ८२८५७. औपदेशिक लावणी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १३४३०). १.पे. नाम, आध्यात्मिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: अब एक जिन दरसण चहिये, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जूगतमें खबर नही पलकी; अंति: जब वाता सब थलकी खबर, गाथा-६. ८२८५८.(#) बार भावना विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, २४-२७X४२). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित भावना ते; अंति: धर्म भावना कहीये. ८२८५९ (+#) मधुबिंदु सज्झाय व महावीरजिन तप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १७४२७-३०). १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परम सुख पद पामियै, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है., वि. गाथांक व्यतिक्रम के कारण परिमाण अस्पष्ट है.) For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण. गाथा - १०. महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी बुध द्यो; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, ८२८६० (#) माणिभद्र आरती आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२३४१२ ३२४२०-२३). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य वि. १८६५, आदि जय जय जय जय जगनिधि; अंति त ध्यावे पुरे तस आस, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. २. पे. नाम, वशीकरण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ. गु. सं., हिं. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि : आरति करु श्रीपास; अंति: विस्तार कहे प्रभु का, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि उगत प्रभात नाम जिनजी; अति हरखचंद० संपत बढाईई, गाथा ४. ४. पे नाम सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरखत बदन सुख पायो; अंति: हर्ष० देव नहि ध्यायो, ८२८६१. सिद्ध परमात्मा चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२३४११.५, १०४२४). सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्ध दरसन, गाथा-१३. ८२८६२. रुक्मणी सज्झाय, इलाचीकुमार सज्झाय व धनद कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२३X१२, ३६X१६). १. पे. नाम रुक्मणीसती सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण, मु. राजविजय, मा.गु, पद्य, आदि विचरंता गामो गाम; अंति राजविजय रंगे रमे जी गाथा- १४. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय गाथा - ३ से ४, पृ. १आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३. पे. नाम, धनद कथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति का अंतिम अंश पत्र १अ के हासिया में लिखा है. मा.गु., पद्य, आदि: (१)सर्वसंग्रह कर्तव्यो, (२) उज्झेणीनगरीने विषे; अंति: सुख भोगवे छे. ८२८६३. (#) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व वशीकरण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२३४१०.५, २८४१४). " १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: गोडीपासजी सेवीइ रे; अंतिः शीवरत्न वंदे लाल, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४. प+ग, आदि (-); अति: (-). , ८२८६४. अजितजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३x११.५, १५X३२). १. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. . रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबो रे; अंति: रोम अधिक तनुवान, गाथा-६. . पुहिं., पद्य, आदि: कुमर मेरा बोलो मुख; अंतिः बरतीवो जयजयकारी, गाथा-५. " २. पे. नाम, सीतासती पद. पू. १अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि जिनराज जोआनी तक जाय; अति (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है .) ८२८६५ () सीतासती पद, जोवन अस्थिर सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४, , प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अशुद्ध पाठ., दे. (२३४११.५, २२x२७-३०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय- मातापुत्र संवाद, पू. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १४३ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org पुहिं., पद्य, आदि: जसरथनंदन कुलबहु जगत; अंति: देण को यो छोडे जगदीस. ३. पे. नाम. जोबन अस्थिरनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव - जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि जोवनियारी मीजी फौजी, अंतिः आराधो सुख सेती रे, गाथा-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चतुर तेरी डुबी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'इन ओसरको पछताई' पाठांश तक लिखा है.) " ८२८६६. चौवीसजिन लछणादि विवरण व राशिफल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५४११, १२४३५). १. पे. नाम. चौवीसजिन लखनादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथजी पीला; अंति: सिंह लांक्षण पीला. २. पे. नाम. राशिफल- सिंह राशि, पृ. १आ, संपूर्ण. बार राशिफल, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण सिंह राशिफल अपूर्ण तक लिखा है.) ८२८६७. रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३१, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सूर्जपुर, दे., (२३१२, १०X१७). रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमनुं सार ते; अंति: कांतिविजय० अवतार रे, गाथा-७. ८२८६८. (७) वाडीफूलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि इंदरबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३X११, १५X३२). औपदेशिक सज्झाव- वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., पद्य, आदि वाडी राव करे करजोडी अंति: कोई न सके वारीजी, गाथा - १५. ८२८६९. () पार्श्वजिन स्तवन- फलवधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, अन्य. अमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१२, १२x२७-३०). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण पांमीयो; अंतिः सेवकने सानिध करै, गाथा - १६. ८२८७०. पद्मावती री सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२३४१२.५, १७२८-३२). " " " पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पद्य वि. १७वी, आदि हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छूटै ततकाल, ढाल -३, गाथा-३६. ८२८७१. (+#) सज्झाय, स्तवन व अढार नातरा नाम, संपूर्ण, वि. १८३४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२२११.५, १७४५०). १. पे नाम. पडिलेहण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, वा. साधुकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: ० गणहर गोयम सामि पणमी; अंति: इति भवसायर लीला तिरड़, गाया-१४ (वि. आदिवाक्य के पाठांश खंडित हैं.) २. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पू. १२-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि वाराणसी भुवन भूमि; अंति: पार्श्वजिनेश्वराय, श्लोक ९. ३. पे. नाम. अठारइ नातरा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि ०बालक माहर भाई अति तेह भणी माहरा० (वि. आदि एवं अंतिमवाक्य का पाठांश खंडित है.) , For Private and Personal Use Only ८२८७२. औपदेशिकादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे. (२१.५४११.५, १२४४१). " १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: पापी पैदा होंगे; अंति: करनी ऊहां जादू भरैगे, गाथा-४. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org मु. आनंद शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि बाग नेम मिल गए मुन; अंति: बंदु सीस नवायेजी, गाथा-५. ७. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. २अ संपूर्ण २. पे नाम औपदेशिक पद. पू. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि काया क्युं रोई रे; अंति जिन जीडी उनहीने तोडी, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: क्या मांगू कछू थिर न अंति जैसे चल्यो है ज्वारी, गाथा-३. " ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि सुनियो संत सुजान अति: सबद गुरु चित चेला रे, गाथा-३. " ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं, पद्य, आदि ए दुख केसे मीटे जिने अति गुण प्रभुजी असा है, गाथा-३. ६. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि एक अजब अली जी नेम, अंतिः जिनदास० जीनती गाइ, गाथा ४. ८२८७३. मल्लिनाथ चरित्र चतुर्थ ढाल, संपूर्ण वि. १९८२ कार्तिक कृष्ण १२, बुधवार, मध्यम, पू. १, पठ. मु. चोथमल; अन्य. मु. चंद्रमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी डालम., वे. (२३.५४१२, १६x४२-४५) "" मल्लिजिन चरित्र, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ८२८७४. (#) गौतमकेशी संवाद व द्वितीयातिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३१२.५, १२x२२). १. पे. नाम. केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसरपासना केशी; अंति: सीस उदयरस रंगे रे, गाथा-८. २. पे नाम बीजतिथि चैत्यवंदन, पू. १आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि दुविध धर्म आराधवा, अंति होवे कोड कल्यांण, गाथा-२. ८२८७५ () अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१x११.५, ९४२२-२६) ८२८७६. ध्वजादिप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २३x१३, १३x४०-४३). अजितशांति स्तवन, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत, अति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १४५ ८२८७७. पार्श्वनाथ स्तवन- पलविहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३×११.५, ११x२५-२८). ध्वजादिप्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि सचायं भूमिशुद्धि: अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. शतमूली आदि औषधियों के नाम अपूर्ण तक लिखा है.) पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु रे; अंति: रंग० अविचल पद निरधार, गाथा-७. ८२८७८ (१) वीरजिन, चंद्रप्रभु स्तवन व प्रास्ताविक दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, पठ. मु. आणंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२.५x११, ११x२७-३०). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि तु मन मान्यो वीरजी अति आनंदमुनि गुण गाय, गाथा ५. २. पे. नाम, चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: परमेश्वरसुं प्रीतडी, अंति: सो साधइ वंछित काम रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण पुहि., मा.गु., पद्य, आदि: हंसरु काग रहे तस कुं; अंति: आसरो ही उकु सुधोजांह, गाथा-४. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गाथा-७. २. पे नाम ज्योतिष, पृ. १आ, संपूर्ण. , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६ ८२८७९ (M) मौनएकादशीपर्व गणनुं व नारकी आयुमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१२.५, १८४३९). १. पे. नाम. मौन एकादशीपर्व गणनं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मी एकादशीपर्व गण, सं., को., आदि (१) जंबूद्वीपे भरते, (२) महाजस सर्वज्ञाय नमः अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः २. पे. नाम. नारकी आयुमान विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि रतनप्रभा जघन्य १०००० अंतिः माघवी आ ३३ सागरपम. ८२८८०. विमलाचल स्तवन व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३×१२, ११x२७). १. पे. नाम सिद्धाचलजीन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि वीरजी आया रे विमलाचल; अंतिः पद्मविजय परिणाम, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष, पुहिं., मा.गु. सं., पग, आदि नराक्षरं इंदु अंतिः क्रयाणीलेण विचार. " ८२८८१. पाँच महाव्रत सज्झाय- प्रथम महाव्रत, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२४४११.५, ९४२२ ). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति (-), प्रतिपूर्ण ८२८८२. (#) संयम सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२.५x१०.५, २५x२१). "" १. पे. नाम. संयम सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संयम, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: संजम सुरतरु सरीखो; अंति: भद्र भाखे उदय सुभद्र, गाथा-९. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद. पू. १आ, संपूर्ण. गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सरज्यु गंगा के तीर; अंतिः जा चरणमा पर्यो हे, ' पद - ३. ३. पे. नाम. रामभक्ति ख्याल, पृ. १आ, संपूर्ण. पु,ि पद्म, आदि सनमुख राजा राम खड़े; अंतिः चेरी होकर पाउं परी, पद-४. ४. पे. नाम. अविन्यासी लावणी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अविनाशी लावणी पद, श्राव. जयरामदास पुहिं., पद्य, आदि: चमक चमक चम विजुरी, अंति: गगनमंडल फोजावेरी, गाथा-४. " ८२८८३. शेत्रुंजयगिरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है, जैदे., (२३१०.५, २७-३०X९). शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव, ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय तीरथसार अंति: पाया ऋषभदास गुण गावा, गाथा-४. , ८२८८४ (२) पौषध, प्रतिक्रण, पच्चक्खाण व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२-१० (१ से १०)-२, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १३४३५). १. पे नाम. पौषधलेवानुं सूत्र. पू. ११अ संपूर्ण. 1 पौषध प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि करेमि भंते पोसहं, अंतिः अप्पानं वोसिरामि २. पे. नाम. पोसहव्रत पारिवा गाथा, पृ. ११अ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि सागर चंदो कामो चंद, अंति होय तस मिच्छामीदुकडं. ३. पे. नाम. सामायिक पारवानुं सूत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-वे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि सामाइयवयजुत्तो जाव; अंति: जे कोइ दूषण लागो हु०. ४. पे. नाम. पचक्खाण पारवा सूत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फासियं पालियं चेव; अंति: समणधम्मं पवत्तए, गाथा-२. ५. पे. नाम चौरासी लाख जीवयोनि विचार, पृ. १९आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि पुढवाइ सुपत्तेयं अति: चउचउदसनरेसु. ६. पे. नाम. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, पृ. ११९आ- १२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: पूरसमवाप्नुहित्व, श्लोक-६. ७. पे. नाम. चउक्कसायसूत्र, पृ. १२अ, संपूर्ण. चक्कसाब, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: जिण पास पयच्छउ वंख्यि, गाथा-२. ८. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पू. १२अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद, अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि अष्टक, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपूज्याः पार्श्व; अंति: वाचा जगद्योतकारका, श्लोक - ९. ८२८८५ (०) नक्षत्र सज्झाब, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे (२२.५x१०.५, ११४५०). "" नक्षत्र सज्झाय, पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गणहर गोयम; अंति: ऋषभदास कह्या ससनेह, गाथा-१२. ८२८८६. (+#) मौनएकादशी व सोलमां पापस्थानकनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. सुरज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : एकादशीस्तवनपत्र, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. एकादशीपर्व सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. एकादशी तिथि सज्झाब, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति: सुरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. सोलमापापथानक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. परनिंदात्याग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि: सुंदर पापस्थानक तजो; अंति: पामे शुभ जस हर्ष हो, गाथा - ९. ८२८८७. मल्लिचरित्र चतुर्थ ढाल व पुण्य महिमा, संपूर्ण वि. १९८२, कार्तिक शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु, चंद्रमुनि पठ. गुबुलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२३४११.५, १७५४२-४५). १४७ " १. पे नाम. मल्लिनाथ चरित्र चतुर्थ ढाल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी ढाल म. मल्लिजिन चरित्र, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. पुण्य महिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. पुण्य महिमा, नंदलाल, पुहिं, पद्य, आदि पुरुषोत्त प्रगट्या; अंतिः सज्जन कोय किन लावे, गाथा-३. ८२८८८. औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. जैदे. (२३४१२, १५४४८-५२). औपदेशिक सवैया संग्रह *, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि: सरल कउंसठ कहइ वधु; अंति: (-), "" सवैया ६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण सवैया-६ तक लिखा है.) ८२८८९ (-) सोनलसती सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व नारी गीत, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी दीपमा, अशुद्ध पाठ. दे., (२३.५x१२, २७४५६). " ३. पे. नाम. आधुनिक नारी गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि में अंग्रेजी पढ गई; अंति: (अपठनीय), गाथा - ९. १. पे नाम. सोनलसती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति दंपती निर्मल मन (पू.वि. शेरखां द्वारा बूंदीकोटा में सोनल की कसोटी हेतु जाने का प्रसंग अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. घासीलालजी, हि., पद्य, वि. १९८२, आदि सब सुख वर्तेजी जिन; अति: घासीलाल० मंगल पायाजी, गाथा- ११. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२८९० (4) गौतमस्वामी गुहली व गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२,१७४३५). १.पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने; अंति: उल्लसे निज आतमराम हो, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगण गहली, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सवि सवि सरखी; अंति: हारा सही रस माणी रे, गाथा-५. ८२८९१. संवच्छरीचउमासीपखीदेवसीराइ आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३४११.५, १४४३३). संवच्छरीचउमासीपक्खीदेवसीराइ आलोयणा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह भग; अंति: मिच्छामिदुक्कडं. ८२८९२. लुकमानहकीम की नसीयत, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रीणी, दे., (२२.५४१२, १३४२८-३२). लुकमानहकीम नसीयत, हिं., प+ग., आदि: जहा गणधर आसमान थिर; अंति: रगा सो पीछे पीछतावगा. ८२८९३. मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:मौनीइग्यारसगुणनो., दे., (२२४११, १२४२४). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ८२८९४. चोविसतीर्थंकर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३४११.५, ११४३०). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः ब्रह्मसुता गिर्वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७. ८२८९५ (#) अवंतिसुकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ऐवंती., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १८x२७-३०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: शांतिहरख सुख पावै रे, ढाल-१३, गाथा-१०७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ८२८९६. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३४११.५, १३४३०-३४). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: तेही तरणनो ठाम, ___ गाथा-५६. ८२८९७. (+) इर्यापथिकी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४११, १९४३२-३५). इरियावही विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)जैनागमवचः स्मृत्वा, (२)जे आत्मार्थी होय; अंति: करणे वाले है. ८२८९८ (+) वीसविहरमानजिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२२४१२.५, १३४२२). २०विहरमानजिन पूजा, म. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सीमंधरजिन पूजा अपूर्ण से स्वयंप्रभजिन पूजा अपूर्ण तक है.) ८२९०० (+) पुण्यप्रकाशनुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. इल्लोल, प्रले. बीका सांकली; पठ. मु. चंद्रविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकुंथुनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१२, १५४२८-३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नाम पुन्यप्रकास ए, ढाल-८, ___ गाथा-१०५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-५ गाथा-११ अपूर्ण से है.) ८२९०१. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४११.५, १३-१७४३१-३३). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुव्रतजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लयलागी रे मुने जिनवर; अंति: दिन नमण करे करजोडी, गाथा-५. २. पे. नाम. नयनवशीकरण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १४९ औपदेशिक सज्झाय-नयनवशीकरण, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे सुंदर काया; अंति: तेहने सुख घणोरे लो, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यानधरो परभूनो; अंति: हवै पंचम गति गामी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन पद, म. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी दीठा श्रीमंधर आज; अंति: रभु राज अढलक ढलीयाजी, गाथा-४. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सत्कर्म, म. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण बेठा; अंति: उपदेश सुत्रविचार, गाथा-११. ६. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर गुरुने चरणे ला; अंति: चरणे वंदे सीय नमाय, गाथा-७. ७.पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर माहरी वात सांभ; अंति: विचार अढलक वरज्यो रे, गाथा-१२. ८. पे. नाम. समकितनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गुणवंत सुण प्राण; अंति: पालता पामौ भवनो पार, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो नमो श्रीजिन; अंति: दीजै मयाचंदने पदवास, गाथा-५. ८२९०२. तीर्थंकर जन्ममहोत्सव, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सुदामापुरि, प्रले. मोरारजी भगवानजी जोशी; पठ. सा. जेतुबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, १२४२४-३०). तीर्थंकर जन्माभिषेक, मा.गु., गद्य, आदि: अधोलोक ८ दिसाकुमारि; अंति: नंदिसर दिवे आवे, अधिकार-२. ८२९०३. (+) प्रतिक्रमण के ८ पर्यायनाम द्रष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रमण का ८ पर्याय नाम., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४१२, २२४५६). आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमण के ८ पर्यायनाम दृष्टांत सहित, संबद्ध, प्रा.,रा., गद्य, आदि: अवश्यमेव करेजीरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "तो पण विणसी जाय" तक लिखा है.) ८२९०४. पार्श्वनाथ छंद व २४ जिनआयु स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२, १०४३२). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसकल सार सुरतरु; अंति: त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. २. पे. नाम. २४ जिनआयु स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वांदीय वीर जिणेशराय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८२९०५. शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४१२.५, ३०४२१). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुखकारं सार; अंति: नयप्रमोद०मनवंछित सकल, गाथा-१२. ८२९०६. अष्टप्रकारीपूजा रास, अपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०२-१०१(१ से १०१)=१, प्रले. मु. धर्मसूरि शिष्य (गुरु आ. धर्मसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पूजारास. श्रीसुवधीनाथजी प्रासादात्, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले.श्लो. (९३९) जाद्रिसं पुस्तकं द्रीष्टवा, दे., (२४.५४१२, ११४२८). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदिः (-); अंति: सुखसंपति बहु पाया रे, (पू.वि. ढाल-७८ गाथा-१५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२९०७. नमस्कार महामंत्र स्तवन व चौविस तीर्थंकर नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, ३-१०x१८-३०). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टलब्धि नवनिधि; अंति: जीवदया प्रतिपाल, गाथा-५. २.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, सं., पद्य, आदि: ऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: (-), श्लोक-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितनाथ तक लिखा है.) ८२९०८. (#) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२,१५४३५). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: राजुल आणंद पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. विरह पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. प्रिय विरह पद, म. मानसिंह कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वेर के वेर मिलाप; अंति: मान० थुईह घेर वसायो, गाथा-१. ३. पे. नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.. म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिनवरण जय जयो; अंति: सीस जेनेंद्र उजास, गाथा-६. ४. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लीजिणंद प्रभुस्यु; अंति: जिनेंद्र०जो परमाणंद, गाथा-७. ८२९०९ (-) बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १२४२४). १२ व्रत सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ग्यानसागर गुण गाय, गाथा-१५, (वि. प्रत का ऊपरी भाग खंडित होने के कारण आदिवाक्य अनुपलब्ध.) ८२९१०. चार सामायक विचार व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२, १५४४८). १.पे. नाम. ४ सामायक विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ प्रकार सामायिक विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: समगत सामायिक१ सुत्र; अंति: धरम न छोडउ. २.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीम भमरो फल; अंति: अरथे ओर कीधो नइ, गाथा-७. ८२९११. गजसुकुमाल लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१२, १२४२३-३०). गजसकुमालमुनि लावणी, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: गजशुकमाल देवकी नंदन; अंति: र जोधाणे हुस करी गाइ, गाथा-१८, (ले.स्थल. जोधाणा) ८२९१२. २४ जिन चैत्यवंदन व मल्लिजिन स्तुति द्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२, ९४३७). १.पे. नाम, २४ जिन चैत्यवंदन, प.७अ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र हैं. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: थया ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लि जिनवरस्युं; अंति: ज्ञानविमल उद्योत करा, गाथा-४. ३. पे. नाम, मल्लिजिन स्तुति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंभ नरेश्वर घर जिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८२९१४. (#) शांतिजिन स्तवन व नेमिजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. कमलकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४११.५, ३-६x२८-५३). For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १५१ १.पे. नाम. शांतिजिन स्तव सह स्वोपज्ञ अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तव, ग.शभशील, सं., पद्य, आदि: वासवानतदेवेन रंगागार; अंति: न तना स सनातनः, श्लोक-५. शांतिजिन स्तव-अवचूरि, ग. शुभशील, सं., गद्य, आदि: वासवः शक्रस्तेन नत; अंति: नर शास्वत आस अभूत्, (प्रले. पं. कमलकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमीशशमिने; अंति: न वेदे न जानातु ते, श्लोक-५. नेमिजिन स्तव-अवचरि, सं., गद्य, आदि: हे नेमीश भवंतं त्वां; अंति: स मुनिष सुंदरः. ८२९१५. पार्श्वजन्ममहोत्सव स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. म. विद्याविजय; पठ. पदमसी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ८२९१७. रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. अमरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२४४१३, ११४१७-२०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. विवेकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: पुन संजोगे नरभव लाधो; अंति: विवेकसोम०अधिकार रे, गाथा-१३. ८२९१८. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१२.५, १२x२६). सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहब सीसीते मंदीर; अंति: राखे तुमारे पास ए, गाथा-१३. ८२९१९ पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१२.५४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु रे; अंति: लहीए अविचल पद निरधार, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: रंगविजय० सिवराज रे, गाथा-६. ८२९२० (-) ४ गति बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११.५, २१४३३-३७). ४ गति बोल, रा., गद्य, आदि: पले पद श्रीअरीहंत; अंति: (-), (प.वि. अध्याय-४ अपूर्ण तक है.) ८२९२१. सरस्वती स्तोत्र व बीजतिथी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९४११, १०४२७). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शुद्धब्रह्म विचारसार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ तक लिखा है.) २. पे. नाम, बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ८२९२३. निग्रंथ प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पावडी, प्रले. मु. ललितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १५४३८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. "सत्तरसविहे असंजमे" पाठ से है.) ८२९२४. (#) शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२, १५४३६). शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नंदीसर विषे ५२; अंति: फल पांमीये, (वि. १आ पर अंकबद्ध कोष्ठक दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२९२५. सिंदरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४१०.५, ६४२०). कर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से ६ अपूर्ण तक व श्लोक-८ अपूर्ण से नहीं है.) ८२९२६. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:भक्तामर स्तोत्र., दे., (२०x१०.५, ६x२२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) ८२९२८ (+#) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३४११, २x२९). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणयं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसीअं आलोई अपडिकंत; अंति: (-). ८२९२९. अष्टमीतिथि स्तवन-ढाल प्रथम, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जशराज शिष्य (गुरु मु. जशराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कल्याण पाश्वदात., दे., (२३४११.५, ११४३१). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठांम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८२९३०. स्तवन, सज्झाय व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. आमोदनगर, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. मु. लखमीचंद (गुरु मु. मोतीचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १२-१६४३७-४५). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: अजित जिणंद जिनराजनो; अंति: दीजीइं निज सेवक जाणी, गाथा-८. २. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: आज अमारे आंगणीए कांइ; अंति: तूठा वीर दयाला रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: या माता ममता माया; अंति: ता मक्षगक्षक्ष गक्षम, श्लोक-१. ८२९३१ (4) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १५४४७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: वृद्धयः संपद्यते. ८२९३२. पार्श्वजिन, आदिजिन स्तवन व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१०.५, २८x२४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहनै रहनै अलगी; अंति: मोहन० स्तुति लटकाली, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. वर्धमान, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: आदेसर अरीहंतजी जगमा; अंति: हे वर्धमान मन उल्लास, गाथा-११. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ.१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ०देत्वं भोजराज खती; अंति: (अपठनीय). ८२९३३ () वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३७). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ८२९३४. पार्श्वजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, ५४१७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ०२२). हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १५३ पं. सरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिन पूजो रे लाल; अंति: कांई सरुपचंद गुण गाय, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)भवियण श्रीचिंतामण, (२)भवियण अश्वसेनजी के; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ८२९३५. तुंगीयाश्रावक व श्रावकधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४११.५, १६x२६). १. पे. नाम. तुंगीयाश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा., पद्य, आदि: श्रावग तुंगीया तणो; अंति: कनीरामजी गुण गाय, गाथा-१७. २.पे. नाम. श्रावकधर्म सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: सका इह प्रससा करजी; अंति: सालचंद जोडी उलासी, गाथा-१७. ८२९३६. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४३, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लखणेउ, प्रले. मु. रत्नचंद्र (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. विद्वान की परंपरा दो बार लिखी है. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२१.५४११.५, १०४२०). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: दमका नांहि भरोसा हे; अंति: प्रभु भज तज अभिमान, गाथा-११. ८२९३७. (+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नकुम, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., दे., (२२४११.५, १४४३२). अवंतिसुकुमाल चौढालिया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३५, आदि: एवंति सुखमालको केवु; अंति: पाया मन हुलास, ढाल-४, गाथा-५३. ८२९३८. औपदेशिक बारमासा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:बा०मा०., दे., (२१४११, १४४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक बारमासा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: चेत कहे तुं चेतन; अंति: रकाश किया चंद्रायणा, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दर्लभ, मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं गतमांहि भ्रमता; अंति: या पावै सुख श्रीकार, गाथा-११. ८२९३९. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वढवाण, पठ. श्रावि. अंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:माहावीरनीस्तुती., दे., (२०.५४११, ११४३०). ___महावीरजिन गुणवर्णन, रा., गद्य, आदि: हवे इहां कुणजे जाणवा; अंति: मोक्ष सुख पांमीये, (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८२९४०. दस श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पुरणीया, प्र.वि. अंत मे 'कोठारिजीने आत सारु' ऐसा लिखा है., जैदे., (२१x१२, १२४२०). १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं; अंति: कहै मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ८२९४१ राईप्रतिक्रमण विधि व पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. प्रत के अंत में कोई अज्ञात-अशुद्ध कृति लिखी है., दे., (२०.५४११, ११४२५). १. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कुसुमिणदुसुमिण ओढावण; अंति: सेत्रु० चेतवंदण कीजै. २. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: कमलदलविपुलनयना कमल; अंतिः श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. ८२९४२. (+#) गुरुगण सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४२१.५, ११४३२). १.पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. रायचंदजी ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत ज्यु लागे; अंति: साध साधवी जावनै जावै, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: वामा राणीये एक जायो; अंति: राय० जेमलजीरो उपगारो, गाथा-१४. ८२९४३. श्रावक पच्चक्खाण भांगा ४९, संपूर्ण, वि. १९३१, माघ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बालाभा, प्रले. श्राव. फुलचंद महेता; पठ. श्राव. हिराचंद मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भांगा., दे., (२०.५४११, १४४१५-२३). भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र भगवती सतक ८मे; अंति: नाणुजा कायसा कोटि १. ८२९४४. (+) पक्खीप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११.५, १०४२९). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: बंदेतु तांइदेवसी; अंति: (-), (पू.वि. "प्रगटलोगस कहणो पीछे खमासणा देना" पाठांश तक है.) ८२९४५ (4) सूरजजीरौ सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२७). सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करोने; अंति: नही को थाहरैजी तोलै, गाथा-१८. ८२९४८. शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०.५४१२, १५४३३). शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन; अंति: हियडे अधिक आणी रंग ए, ढाल-७, गाथा-३१. ८२९४९ (+) शांतिजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. बाई फुलकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, ११४२९). १. पे. नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगनाथ श्रीशांतिदेवा; अंति: भवोभवे पाय लागु, गाथा-१५. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. लाधाशाह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिजिनेसर सोल; अंति: त्रिणकाल के, श्लोक-५. ८२९५० (+) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १२४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. म. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: लोह कनक करि लेवा, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: नित नाम नाम नमो नमो; अंति: करम शत्रुकु हनो हनो, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ.५अ, संपूर्ण. मु. भूदर, पुहि., पद्य, आदि: भगवंत भजन क्युं भुला; अंति: दुरमति सिर धूला रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि रे सामलीया सा; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्युं प्रभु नाम विशा; अंति: हरख०माहि चितार्यो रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिननाम आधार सार; अंति: द्यानत० मुगति दातार, गाथा-४, (वि. कर्ता नाम अस्पष्ट है.) ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. हर्षचंद, पहिं., पद्य, आदि: अब हम कोठी करो सराफी; अंति: यामे नफा हाथ नही आया, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भक्ति मुगत सुखदाई; अंति: हरखचंद०परभव होत सहाई, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १५५ ९. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, प.६आ, पूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: चिदानंद खेले होरी; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है.) ८२९५१. कुंथुनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४१२,१५४२९). कुंथुजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: भगवंत आगल विनवू; अंति: रायचंद० तिथि नाम रे, गाथा-१५. ८२९५२. (#) औपदेशिक सज्झाय, २४ जिन स्तवन व गुरुगुण गीत, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२, १८४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: मयमत पीती सुत वंद; अंति: कहा सोवकी सप्र आस, गाथा-१३. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु.सोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: अजिहादा सदा जिनराज; अंति: सोहन० भी करण उधार, गाथा-१२. ३. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. राम मनि, पुहिं., पद्य, आदि: साढा नवि सजन घर आए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८२९५३. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२२४११, १७४१५). आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आपणी आनंदघन पद येह, गाथा-६. ८२९५४. गौतमस्वामी गहंली व नवपदनी गहंली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४१०, १२x२५). १.पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने; अंति: उल्लसे निज आतमराम हो, गाथा-७. २. पे. नाम. नवपदनी गहुँली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवपद गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर चतु चेकेरडी गु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८२९५५. १७० तीर्थंकर नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२०७११.५, ३३४२०). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरचंद्र श्रीचक्; अंति: श्रीबलभद्र सर्व. ८२९५६. पनरियो यंत्र व सुधर्मास्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (१९.५४१२,१०४२६). १.पे. नाम. पनरियो यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान सुरत; अंति: साधु गुहली गीत भणेरी, गाथा-७. ८२९५७. (#) ज्ञानपच्चीसी व आध्यात्मिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, १८४३८-४०). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग् योनि; अंति: बनारसी० करम को हेत, गाथा-२५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , म. भिन्न भिन्न कर्त कि, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जे न करइ नयपुष्प; अंति: (-), गाथा-३, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ८२९५८. वीशस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४११, १७४३७). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: अनुमान सनमान कीजे. ८२९५९ औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे.७, दे., (२०.५४११.५, १५४३०-३३). For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आ छे फूल खंड से अखंड; अंति: ध्रमसी० जोग पाइये, सवैया-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ.१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-माया परिहार, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: माया जोरवेकं जीव; अंति: न जाने हे त्रिभंडM, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुख को करणहार दुख को; अंति: जिनहरख० नित नकारजं, सवैया-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: आ छे नाणे केर चूणे; अंति: बोलावा केसो बोल है, सवैया-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-काया, पुहिं., पद्य, आदि: काया सी नगरी में; अंति: जब काल आण ग्रह्यो है, सवैया-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ के साचे; अंति: ऐसे जीव समकित है, सवैया-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कंता पाणी आपणे हथेली; अंति: ते तो न चढे लख, पद-१. ८२९६० (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:पार्श्वनाथ., संशोधित., दे., (२२४११, ११४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, म. शांतिसागर, सं., पद्य, आदि: श्री वरकानकमंडन खंडन; अंति: शांतिसागर० बुद्धि मे, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. विनय, सं., पद्य, आदि: तमालताली वनराजिनीलं; अंति: विनय० निजं दर्शनं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र-रावण, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, ले.स्थल. बनोली, प्रले. मु. निहाल ऋषि (गुरु मु. वखतावर); गुपि. मु. वखतावर (गुरु मु. रामचंद्र); पठ. मु. चंदनलाल साधु, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: आनश्व ते पार्श्वपदां; अंति: तो रावण पार्श्वनामा, श्लोक-७. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संततंयमुपवीणयतींद्रः; अंति: यतिजनार्पित रंगे, श्लोक-१२. ८२९६१ (२) शीलनववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १४४३७). शीयलनववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एकणै ठामै रहे नहीजी; अंति: सरीजी अया जीव सव आगे, गाथा-२०. ८२९६२. वैराग्यपचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. मांजी-शिष्या (गुरु सा. मांजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वय०पची०., जैदे., (२१.५४११.५, १७४३४). औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदि: सासणनायक श्रीवर्धमान; अंति: रायचंद० करो जाप, गाथा-२७. ८२९६३. अरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५३, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४२२). अरजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरजिन दर्शन निज; अंति: तरु रे सफले अने उमेद, गाथा-८. ८२९६४. (4) नेमिजिन बारमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४११, १६४२९). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वाम मेल; अंति: नवे निधि पामी रे, गाथा-१३. ८२९६५. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, दे., (४२४११, ४५४१६). २२६प्रग्नेमराजिनती वायुमासा. सु.कवियण, मा.प्र. पद्य, आदिः श्रावणमासे स्वाम मेल, अतिः नवे निधि For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० विवेकहर्ष गणी के प्रश्न विजयसेनसूरि के उत्तर, मु. विवेकहर्ष, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा कांजिकजलमभक्ष्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मनुष्य की स्त्री सभा मध्य खडी रहने का प्रश्न अपूर्ण तक लिखा है.) ८२९६६. (+) ज्ञानपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४११, १४४३४). ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनरतिर जग जोनिमई; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ८२९६७. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, ८x२०). शQजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल भेट; अंति: कांतिविजय० गायो, गाथा-५. ८२९६८. नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२१.५४११, ९४२६). नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागैजी गिरनार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८२९६९ (+#) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१३, ६x२९-३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थ; अंति: सुख लहइ सुसाधु. ८२९७० (+) रामासाध्वी सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. रामाजी की सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रामा साध्वी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आतम काज सुधारे सूरा; अंति: दूर जासी दुख की घामा, गाथा-११. २.पे. नाम. रामासाध्वी संथारा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तप तेग ग्रही शिवसाधन; अंति: बेकामा क्या बीस, गाथा-९. ८२९७१. साधुलंछन सज्झाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (११४११, १२४३२). १. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तारण तिरण जिहाज तुम; अंति: जी ते पावे भवपार, गाथा-१३. २. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: देखी सकै नहीं दूसरै; अंति: (-), गाथा-१. ८२९७२. आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., ., (२१४११.५, १८४४५). आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यातप्रदेशी अनंत; अंति: आत्मानी आत्मता जाणवी. ८२९७३. (-१) २४ जिन स्तवन व अज्ञात कृति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. बीकानेर, पठ. सा. रीमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०, १८४३०). १.पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाप पली मुगते जाना, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मधुबन ममाघबन; अंति: (-), गाथा-४. ३. पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मताच १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामगर्भित, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: नाभराजा मरादेजी राणी; अंति: चोईसमो महाबीरसामी, गाथा-२४. ८२९७४. चोविसजिन व सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सणेलनगर, प्रले. पं. दोलतसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति की गाथा-१ अपर्ण लिखी है., जैदे., (२१४११, १३४२८). १.पे. नाम. चौवीसतिर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवीचल थानिक पहुता; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसुर, गाथा-८. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि सलुणा नाथजी; अंति: सेवक कही मुखभाष, गाथा-५. ८२९७६. जीवने उपदेश, संपूर्ण, वि. १९४१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. खोडु, प्रले. श्राव. प्रेमचंद पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, ११४२६). औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: परम देवनो देव तुं; अंति: खोडीदास० जोड ए कही, गाथा-२२. ८२९७७. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, १३४२४). मेतार्यमनि सज्झाय, म. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८२९७८. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १५४२८). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर सामी सुनो राज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ८२९७९ (#) अज्ञात देशी पद्य जैन कतिद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नही है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १४४२८). १.पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरहंता श्रीभगवंत; अंति: (अपठनीय), गाथा-६. २.पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बाद में पेंसिल से पाठपूर्ति की गई है.) ८२९८०. स्थलिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत में पंचेन्द्रिय विचार प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है., जैदे.. (२१.५४११.५, २३४१६). स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जोगधानमा जो ताली हाथ; अंति: भाव नमे नित पाय, गाथा-१४. ८२९८१ (+) घंटाकर्णविविधमंत्र विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं है. पत्र १४२., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१२, ४५४१७). घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: यंत्र थापिए सवालाख; अंति: आराधन करवो सहि छे. ८२९८२. शांतिजिन व सविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १०४३३-३६). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. सूर्यमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि: हा रे कांई गजपुर; अंति: मे दु भवभव तणारे लो, गाथा-९. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुम चरणा चित दीनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा ८२९८३. (4) व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १२४३३). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः साधु सामाचारी वखाणी. ८२९८४. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सफलसं., संशोधित., दे., (२१.५४११, १०४२७). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८, संपूर्ण. ८२९८५ (+#) सीमंधरजिन स्तवनद्वय व अगियारगणधर पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:छुटक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११.५, १७४३०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुस्यालचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीश्रीमीद्र सायबाह; अंति: प्रभुजी सेवकनी अरदास, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रीमींद्रजीन स; अंति: अरजै सायब अवदार जौ, गाथा-९. ३. पे. नाम. इग्यार गणधर पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर पद, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणधर इग्यारं वीररा; अंति: दजी० गुणधरइग्यावीरना, गाथा-५. ८२९८६. (-) नेमराजिमती सज्झाय, कृष्णगोपी गीत व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४११, १६x२८). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कीसन बलभधरजी आय बरात; अंति: के जीन का लिया सरणा, गाथा-५. २. पे. नाम. कृष्णगोपी गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ब्र., पद्य, आदि: हीरे कनवा बरसोने के; अंति: कीसन की करा बडाई, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: टालतर बीतरत वकत मंजा; अंति: राम० कमेरीया पावेगा, पद-४. ८२९८७. (#) देवकी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:देउकी०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२४११, १३४३३). देवकी सज्झाय, म. लावण्यकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: रथनेमी नाम हवा; अंति: (-), (प.वि. ढाल-३ गाथा-३ तक है.) ८२९८८. किसनगढमंडन चिंतामणिपार्श्व शांति ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२०.५४१०.५, १०४२१). पार्श्वजिन स्तवन-किशनगढमंडन, आ. जिनमक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: करजोडी नित प्रणमं; अंति: ___ जिनमुक्ति० गाइया रे, गाथा-६. ८२९८९. कंसकृष्ण विवरण लावणी, चक्रवर्ती ऋद्धि विचार व चौद विद्या नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, अन्य. मु. मनोहर मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२२४११, १३४५४). १. पे. नाम. कंसकृष्ण विवरण लावणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: सुणतां स्नेही आणंद, गाथा-४३. २. पे. नाम. चक्रवर्ती ऋद्धि विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: चौदह रतन १ नो निधांन; अंति: पूर्ब साधु पणै रह्या. ३. पे. नाम. १४ विद्यानिधान, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: राग १ रसायण २ निरगत; अंति: ए चोदी विद्या निधान. ८२९९०. ऋषभजिन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१.५४११, ११४२३-२७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी; अंति: देवचंद०अविचल सुखवास, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: रे भावधर्म दातार, गाथा-१०. ८२९९१. देववंदन, चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ५, प्रले. मु. गोकुलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ९४३६). १. पे. नाम. चौमासीपर्व देववंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास सामलनु चेई रे, (पू.वि. गाथा-७ से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर परमातमा; अंति: शुभबंछित फल सिद्ध, गाथा-९. ३. पे. नाम. सकलतीर्थ वंदना, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरं, गाथा-१५. ४. पे. नाम. जिनपूजा- चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. जिनपूजाफल चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निजरूपे निजनाथ के; अंति: राम कहे सुखपुर, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेसर परमातमा पावन; अंति: चिदानंद सुख थाय, गाथा-३. ८२९९२. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, कार्तिक कृष्ण, ४, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मंगूमल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४११.५, ११४२३). नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति नेम जिणंद प्रभ; अंति: आतम गुण मुझ दीजीये, गाथा-११. ८२९९३ (4) बत्रीस आगम नाम व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सरवाड, प्रले. मु. लूणकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, ९x४३). १. पे. नाम. बत्रीस आगम नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ आचारांगसूत्रकालक; अंति: कालक आवश्यक नोत्कालक. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: भाव संसार सकइ की नाव; अंति: करे न आवणो होय, गाथा-४. ८२९९४. (+) वीतराग प्रार्थना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १४४३३). वीतराग प्रार्थना, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतरागस्वामी माहर; अंति: इं माहरउ नमस्कार हुउ. ८२९९५. कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४१२, १३४२९). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा-१८. ८२९९६. सहस्रकूटजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. गोकुलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, ९४३२). सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सहसकट जिन प्रतिमा; अंति: देवचंदनी प्रविवेकी. गाथा-१४. ८२९९७. श्रावक के बार व्रत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२१.५४११.५, १८४४५). श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो अणुव्रत थुलाउ; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. ८२९९८. पार्श्वनाथ स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, ९४२०). For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरू जगदीश; अंति: पद्म० अक्षय अविचलराज, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८२९९९ (+#) ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्रले. श्राव. साहाजी; पठ. मु. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१०, १०x१९). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर नगर; अंति: सारमंत्र जपिये सदा, गाथा-१६. ८३००० (+) मौनएकादशी, अष्टमी व रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२.५, १३४३०). १. पे. नाम. मौनएकादशीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषे; अंति: न्यस्त पादांबिकाख्या, श्लोक-४. २. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिन; अंति: सीस धीरने सुख संजोग, गाथा-४. ८३००१. सीमंधरजिन स्तवन, मरुदेवीमाता सज्झाय व सिद्धचक्र थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. जडाववगडी, जैदे., (२१.५४१२, १३४२२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जडाववगडी. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिमंधरजी सुणज्यो; अंति: पुरो मांहरी आसो जी, गाथा-७. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १८३७, कार्तिक कृष्ण, ७, ले.स्थल. मेडतानगर, पे.वि. २असे कृति प्रारंभ कर अन्त की कुछ गाथाएँ १आ पर लिखी हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनीतां भली वीर; अंति: ते नर पामें साता जी, गाथा-१२. ३. पे. नाम, सिद्धचक्र थई, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तुति, मु. दर्शनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदूं, सिद्; अंति: कहे पहोंचे सकल जगीश, गाथा-४. ८३००२. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११.५, १७४२५). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग, रा., पद्य, आदि: पुछ पीया कुण प्राणी; अंति: नहीं जाता रे पुछ, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: क्यों नाहक कष्ट; अंति: देवा मोक्ष नहीं पावे, गाथा-७. ८३००३. (-) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १९४३०). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ८३००४. सौभाग्यसूरि छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४१२.५, २७४१७-२०). सौभाग्यसूरि छंद, म. रुघपति, मा.ग., पद्य, आदि: गच्छ नायक जग मे गुरू; अंति: भव समुद्र इह तिरै, गाथा-१३. ८३००५. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१.५४१२, १५४२३). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव १ सुध; अंति: (-), (पू.वि. पाट ४५ श्रीजिनदत्तसूरि तक है.) For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३००६. (E) करहेटक पार्श्वनाथ व स्तंभनपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ११४३१). १.पे. नाम, करहेटक पार्श्वजिन स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. २.पे. नाम. स्थंभनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलि कमला; अंति: सोमशर्म यात्, गाथा-५. ८३००७. (-) बावीशपरिषह सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १६x२४). २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: घर छोडिने रे संजम आद; अंति: सबलदासजी इम भाख, गाथा-२५. ८३००८. (+) अतिचार आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४११.५, १३४३०). अतिचार आलोयणा, मा.गु., प+ग., आदि: महापरमकल्याणकारी; अंति: रुचि रहो मुझै जिनदेव. ८३००९. सत्तरिसो गुणनो स्तवन व नवपदजी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११.५, २०४४७-५०). १. पे. नाम, सत्तरिसोगुणनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १७०० जिन स्तवन, मु. कपूरचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीदायक; अंतिः श्रमण चंदकपूर ए, गाथा-११. २. पे. नाम, नवपदजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सुखदायक मन; अंति: श्रीजिनचंदनी वाणी, गाथा-४. ८३०१०. धर्मदासजी महाराज के जीवनादर्श व कर्मना अनभागनो स्वरूप, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १७४२८). १.पे. नाम. धर्मदासजी महाराज के जीवनादर्श, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. धर्मदासजी गुरुगुण गीत, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पूज्य धर्मदासजी धर्म; अंति: गावे शाजापुर गुलजार, ____ गाथा-३७. २. पे. नाम, कर्मना अनुभागनो स्वरुप, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहा सर्व जघन्य कर्म; अंति: (-), (पृ.वि. "समुदायनी एकेकी वर्गणा" पाठ तक है.) ८३०११ (#) कुमति निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, २२४३२-३५). कुमतिनिवारण सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तिरसउ जिन करउं; अंति: जिम भवसायर लिलातरो. ___ गाथा-२९. ८३०१२. शेजा स्तवन व मंत्रतंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १५-२२४१८). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: सोरठ देशमा जोजो तीहा; अंति: मुगतये गुण गाय रे, गाथा-११. २. पे. नाम. तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, पृ.१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,गु.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (वि. घर छोडकर गये हुए व्यक्ति को वापस लाने के लिये यंत्र प्रयोग सहित.) ८३०१४. दानशीलतपभाव पर प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, ८x२२). दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति:: समयसु० फल त्यांह रे, गाथा-६. ८३०१५ (+) जिनप्रतिमा स्तवन व बाहुजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२, १३४३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. . मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: मान० सुगुरुने सीस, दाल- २, गाथा-२१ (पू.वि. मात्र ढाल २ है.) २. पे. नाम. बाहुजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज अरज सुणोने रूडा; अंति: सागर० जिनजी दीनदयाल, १६३ गाथा-६. ८३०१६. (+) इलाचीकुमार सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २१.५x१२.५, १४x२७). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामे एलापूत्र जाणीई अति लब्धिविजय गुण गाय, गाथा १०. २. पे. नाम गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरि भजना करुं आपो; अंति: (-), (पू.वि.] ढाल १ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८३०१७. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. लखनउ, प्रले. गोकुलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५x११, १०x३२-३५). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि पुण्य संयोगे नरभव; अति मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा - १३. ८३०१८. (#) ललितांगकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X११, १७४५-४८). ललितांगकुमार सज्झाव- जंबूचरित्रे, मु. कुअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि मानवभव पामी दुलहो दश; अति छीपे दीपे ते निसदीस, गाथा १८. ८३०१९. (-) सामायिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक १४४. अशुद्ध पाठ., ,जैदे., ( १२.५x११.५, १२x१७). १. पे. नाम. २५ बोल-सामायिक, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. २५ बोल सामायिक-निश्चयव्यवहारभेदे, रा., गद्य, आदि: निश्चय सामायिकना बे; अंति: दीठा ते प्रतक्ष प्र०. २. पे. नाम सात नये सामायिक, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ बोल सामायिक-नयगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: १ नैगमनय ते० सर्व आत; अंति: रहीत सुधात्माने माने. ८३०२०. अमीझरापार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२२४११, २२४१७). "" , पार्श्वजिन छंद - अमीद्वारा, मा.गु., पद्य, आदि उठत प्रभात अमीझरो अति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ८ तक है.) ८३०२१. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-गाथा १० से २१, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रत पूर्णता संदिग्ध, जैदे., (२०x११, २८-३२x१७). For Private and Personal Use Only अज्ञात जैन देशी पद्य कृति*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. पुण्यफल, सज्झाय या दानफल सज्झाय जैसी कृति होना संभव है.) ८३०२२. (#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, आदिजिन स्तवन व मंत्रतंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. गुलाल (गुरु पं. कीर्तिकुशल); गुपि. पं. कीर्तिकुशल (गुरु पं. जिनकुशल); पं. जिनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१x१२, २५४१६-१९ ). " १. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव - कलिकुंडमंडन, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि नमामि श्रीपार्श्व अति (अपठनीय), श्लोक १०. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि धुनि ग्रहकति धपमप अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक ही लिखा है.) ३. पे. नाम, मंत्र-तंत्र संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). ८३०२३. आलोयणा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१x११, १२x२८). आलोयणाविचार, पुहिं., पद्य, आदि: देववंदन नही कीये हो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आलोयण-४१ तक लिखा है.) ८३०२४ () नेमिराजिमती स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २२x११, २४x१५-१८). १. पे नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि राजुल कहे रथ वालो अंतिः ईम मोहन कहस्यो वास, गाथा- ७. २. पे नाम पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजिणंद, अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १ तक लिखा है.) ८३०२५. पटद्रव्य पद, सुख के १६ बोल व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२१x११, १६×३२-३५). १. पे. नाम. घटद्रव्य पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने एक ही कृति तीन बार लिखी है, प्रारंभ में अपूर्ण १ गाथा लिखकर छोड़ दिया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ द्रव्य पद, पुहिं., पद्य, आदि: षटद्रव्य ज्यामे कह्य; अंति: आण सुधमन ध्यानए, गाथा-७. २. पे नाम. सुख के १६ स्थान, पृ. १आ, संपूर्ण, १६ बोल- सुखगर्भित, पुहिं., गद्य, आदि पहला सुख काया नही; अंति सुख पहुंचे नीरवाण१६, अंक १६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नैनसुख पुहिं, पद्य, आदि मेरे सनम से यु जाय; अति नैनसु० विधाता ऐसी रची गाथा ४. . ८३०२६. (#) नवपद स्तवन व व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२x११, १३४३२-३५). " १. पे. नाम. नवपद महिमा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि नवपद महिमा ध्यावो; अतिः कांइ वंदु बे कर जोडि गाथा-७. २. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि नमो अरि०१ जैहिजगजीवय; अति: विमल धर्मोपदेश देवैः ८३०२७. विजयादशमी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१x११.५, १८४३५-३८). ', 7 विजयादशमी लावणी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, बि. १९३८ आदि विजय दशमी दिन विजय अंतिः सुखकारी धर्म दशेरा, गाथा १०. ८३०२८. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २१x११, १२x२०). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि रख्या कवन समे उपनेजी; अति: भ्रहत्या जजकार मेरे, गाथा १३. ८३०२९ (A) आदिजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१२, १९x१७). १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. न्यायविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देशनो साहिबो अंति: भक्ति निज कर जोड रे, गाथा-७, २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहि., मा.गु. सं., पद्य, आदि चित चेतन कु रुपमझावे, अंति गिरवर हु के मोर. For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३०३०. पार्श्वजिन पदद्वय व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११.५, २५४२०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केशरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी सरसति सांमनि; अंति: चंद केशरगुण गाय हो, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमनाथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: परणावे ना केम पाछा; अंति: जे सीवरमणीपद ग्रेवू, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वारी रे मे पास जिणंद; अंति: डा लगा तु मनाल जणंदा. ८३०३१. आदिजिन स्तवन, पद व नवकार पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१x१२, १६x२५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंदघन जोगसर आयो; अंति: जगत जीण गायाए माय, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: आज अजोध्यनगरी मही; अंति: हीरा० दिया रे पोचाइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. नवकार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: भजो सउ सार मंत्र; अंति: भज्यां भरत जयजयकार, गाथा-४. ८३०३२. सामान्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. श्राव. जेठालाल चुनीलाल शाह; अन्य. श्रावि. मोतीबाई,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम पार्श्वजिन स्तवन लिखा है., दे., (१३.५४१२,११४१७). साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुहि तुहि तु; अंति: भुता लहे सुजस जमावरे, गाथा-७. ८३०३४. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२१४११.५, ६-१२४१४-३६). कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विजयपाल कथा अपूर्ण से है., वि. अंत में शीलव्रत का वर्णन लिखा है.) ८३०३५ (#) पद्मप्रभ व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १४४२३). १. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: तुमह पाय सेवरे, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवलीया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ८३०३६. बाहुजिन स्तवन व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४१२, १२४२१). १. पे. नाम. बाहजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामति रमवा हूं गई; अंति: फल कीयो अवतार हे माय, गाथा-८. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पावापुरजी के घाट बजर; अंति: ऐतारि भवसागर जलकाट, गाथा-३. ८३०३८. पार्श्वजिन छंद व नमस्कार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:छंदपत्र., जैदे., (२१.५४११.५, १४४२५-२८). १.पे. नाम, पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-२६. २. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, म. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-५ तक है.) Artem For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३०४० (+) सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५-२(१ से २)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे सखी तेह गुरुन; अंति: क्ति तणो मारग भलो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. सौभाग्यविमल गुरुगण गहुंली, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पुजो पुजो रे ते मुनि; अंति: मुक्तिमार्गमां चाले, गाथा-७. ३. पे. नाम. सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिवर नित वंदिये; अंति: मुक्तिमां चरियेरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुँली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पंन्या. मक्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सखी ते मनिवर ने अंति: क्तिनो मारग साचो रे, गाथा-५. ८३०४१. दंडकचोवीशनी चरचाना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. श्रावि. देवकुंवरबाई, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२१४११,११४४०). २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नारकि गतिमां डंडक १; अंति: डंडक २४ चोविस लाभे. ८३०४२. कृष्ण वासुदेव सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३०(१ से ३०)=३, दे., (२२४११.५, ८x२५-२८). कृष्ण वासुदेव सज्झाय, मु. दलीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: दलीचंद० सब के मन भाई, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ८३०४३. गुणस्थानक चढिवा पडिवानो विचार व बंधद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२०x१०.५, ८x२२). १. पे. नाम. गुणस्थानक आरोहावरोह विचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउदुरिक्क दुप्पण पंच; अंति: भिय तिय दोणि गच्छंति, गाथा-१. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउ कहतां च्यार पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै. २. पे. नाम. पंचसंग्रह-बंधद्वारे सह व्याख्यान, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छा अविरय देसा; अंति: नाणाजीवेसु नवि होति. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश; अंति: गाथा व्याख्यानम्. ८३०४४. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १०४२७-३०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंदर; अंति: पद्मविजय० मन अतिनूरो, गाथा-७. २. पे. नाम, २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-८. ३. पे. नाम. समेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर जिन वंदिये; अंति: पास सामलनु चेइ रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. समेतशिखरजी स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: जइ पूजो लाल समेतशिखर; अंति: रुपविजय मुज ते हेवा, गाथा-८. ५. पे. नाम, बाहुजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहेब बाहु जिणेसर; अंति: जस कहे सुख अनंत हो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३०४५. महावीरजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. बालचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. धनपतसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९×११.५, १७X३४). ८३०४६. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, दे. (२१x१२, ३२-३५४१६). 2 "" महावीर जिन स्तवन- पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि श्रीवीरचरणकज भेट्या अंतिः ज्ञान० मंगलवारा रे, गाथा ८. ८३०४७. पंच महाव्रतनी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२१X११, १२x२२-२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा-३३. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: सदभाय भणे ते सुख लहे, ढाल - ५, गाथा - ३१. ८३०५० (+#) वैराग्यात्मक हितोपदेश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक १४२, पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २१x१२.५, १७-२०X२५). संथारासूत्र- लघु-हिस्सा वैराग्यात्मक हितोपदेश, प्रा., पद्य, आदि: एगोहं नत्थि मे कोवि; अंति: तिविहेण वोसिरियं, ८३०५१. पंचपरमेष्ठि पद सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१.५X११.५, १४X३०). गाथा ३. संथारासूत्र - लघु - हिस्सा वैराग्यात्मक हितोपदेश बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि हुं एक हुं हुं इकेली, अंति: अरूपी आत्मस्वरूपी छे, (वि. टवार्थरूपी बालावबोध है.) " १६७ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि णमो अरिहंताणं; अतिः णमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं कहतां अंति (-) (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. "लाख योजन की सिद्ध शिला छे" पाठांश तक है.) ८३०५२. (#) अनंतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) = १, प्र. वि. अंत में किसी अज्ञात कृति को प्रारम्भ करके छोड़ दिया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२४११.५, १०x२७). " "" अनंतजिन स्तवन, भाव. लाधो साह, मा.गु., पद्म, आदि श्री अनंतनाथ जिन चौदम अति: भवोभव तुमचा दास जगमे, गाथा-५, संपूर्ण. ८३०५३. बोल, मंत्र व पुरुष लक्षण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. ३, गु., (२१x११.५, १४X३२-३५). १. पे. नाम. प्रदेसीराजानां बोल, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९४९, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, अन्य श्रावि. कपुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम. शीतलशांतिपार्श्वजिन मंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि ॐ नमो सिद्ध अ. सी. अति कर नमः १०८ बार गणवो. "" ३. पे. नाम. पुरुषनावत्रीश लक्षण का कवित्त, पृ. ५आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण पुरुष कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: नाणु अने मोटु काम; अंति: सज्जन शोभाय, गाथा- ७. ८३०५४ पार्श्वजिन आरती संपूर्ण वि. १८६९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२१४११.५, ८४३२). "" प्रदेशीराजा केशीगणधरसंबंध चौपाई, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति जाने झेर वीधु छे आही, गाथा- ९४, (पू.वि. गाथा ८८ अपूर्ण से है.) " पार्श्वजिन आरती, श्राव. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: जे पार्श्वनाथा प्रभु; अंति: चरणो से चीत लागा, गाथा-७. ८३०५५. राजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८८४ माघ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४२ प्रले. मु. खूबचंद्र, पठ. ऋ. रूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x११.५, ११x२५-३७). नेमराजिमती सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., पद्य, आदि: मंदिर नाव्या रे माही; अंति: पाय वंदो रे वारंवार, गाथा-९, संपूर्ण. ८३०५६. (#) नेमराजिमती स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२x११.५ १५२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: नेम वियावण आवीया; अंति: वरत्या जयजयकार जी, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चंदनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मनाउ श्रीनवकार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८३०५७. ऋषभजिन स्तवन व विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२१४११.५, १५४३२-३५). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनेसर ध्याइ; अंति: विषे गया कर सीमरण, गाथा-८. २.पे. नाम, विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धनधन विजय कुंवरजी; अंति: णसे पाले सील मत टाली, गाथा-५. ८३०५८. सुभद्रासती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२१४११.५, ११४३७). १.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरीमे सति सुभद; अंति: शिवपुर मारग चालो रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: तुं तो लख चोरासी; अंति: तीन लोकमाही आमोल रे, गाथा-१३. ८३०५९ औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११.५, १०x२५). औपदेशिक लावणी, मु. मनीराम, पुहिं., पद्य, आदि: एक रेण अंदेरी वीजली; अंति: मनीराम लागे वेरी, पद-३. ८३०६० (#) साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१२, १५४२५-२८). साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दुखहरण जिणेंद्र कर्म; अंति: तुम ग्यान पाया, गाथा-१०. ८३०६१ (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४११.५, १२४२२). पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: तेविसमो त्रिभुवनपति; अंति: नितमेव श्रीपास, गाथा-५. ८३०६२. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२१४११, १५४२८). साधारणजिन स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: भगति एवी रे भइ एवी; अंति: डहा सीजन तो तप करवो, गाथा-८. ८३०६३ (4) झांझरियामुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १७४४०). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: (-), गाथा-२४, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है.) ८३०६४. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४११.५, १३४२७-३०). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन स्तति, मा.ग., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ३. पे. नाम. शेव्रुजय स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ८३०६५ () वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १३४२१). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद; अंति: प्रभुजी पारे मन, गाथा-१२. ८३०६६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२१.५४१२, ११४३२). औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तजद मीतीत केसा तीरथ; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८३०६७. संसार से उद्धरने के लिए परमात्मा से विनती व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२१४११.५, १७४३५). १. पे. नाम. संसार से उद्धरने के लिए परमात्मा से विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संसार से उद्धरण परमात्मा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो जिणराजजी; अंति: तस निवार आप आपम ठेवी, गाथा-३०. २. पे. नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-२, (वि. प्रायः अशुद्ध पाठ.) ८३०६८.(2) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नही है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, ११४२३). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ८३०६९. ग्यारह गणधर स्तवन व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. प्रमदे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १३४२५). १.पे. नाम. ११ गणधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९२७, आदि: इंद्रभुतिजीने वांदी; अंति: मे गुण गावीया लो एजी, गाथा-१५. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ.१आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दीसे इंदर को; अंति: (-). ८३०७०. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२१x११, २०४३६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि जीवो आदिजिणेसर; अंति: हो कीजो चीत नीरमली, गाथा-३२, संपूर्ण. ८३०७१ (4) नेमराजिमती व दानशीलतपभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५,१६४३२-३५). १.पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: यारी चरणय चित ल्याई, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक २.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: लोह की नाव नंदी अती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८३०७२. आदिजिन स्तोत्र, चार निक्षेप गाथा व अष्टप्रहर भूमिकंप लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१७४१२, १४४२१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सुखकारणमुत्तमं ऋषभं; अंति: पार्श्वचंद्रेण, श्लोक-८. २.पे. नाम. ४ निक्षेप विचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नामजिणा जिणनामा ठवण; अंति: भावजिणा समवसरणत्था, गाथा-१. ३. पे. नाम. अष्टप्रहरभूमिकंप लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भूमिकंप लक्षण, सं., पद्य, आदि: दिनस्य प्रथमे यामे; अंति: राज्ञां विनाशयेत्, गाथा-५. ८३०७३. (-) पार्श्वजिन स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १४४२६). १. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुरतस्वामी बिनमे; अंति: एव बोदीजी आरती जी, गाथा-१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: चित राखे हजुरी मे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पार्श्वजिनंद प्रभु; अंति: (-), गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद-जीवदया, पृ. १आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: जीवदया दिल पालो रे; अंति: (-), गाथा-३. ८३०७४. पडिकमणा सज्झाय व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४११, ९४२५). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशू; अंति: मुगति तणो ए निदान, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब वासुपूज्य ते; अंति: विनय कहे मुझ तार हो, गाथा-५. ८३०७५ () शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १६४३२-३५). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, म. गणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शील सोहामणु पालीए; अंति: जिम होए मंगलमालो रे, गाथा-२२. ८३०७६. कृष्ण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२१x११, १४४२४). कृष्ण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर नगरी द्वारकाज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) ८३०७८. औपदेशिक पदद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२२४११.५, १५४२७-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __मु. अमोलक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमोलक मनुख जनम प्यार; अंति: न्यायमत हो भवदध पारे, गाथा-३. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुनिया में देखा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८३०७९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, १५४२३). __ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जीया चित्त चेतो चीतव; अंति: तो अखलु रे गाया खाली, गाथा-१२. ८३०८०. विजयप्रभसूरि गुणवर्णन, १८ शाखा व दंतधावन कौतुक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११, १२४२३-३२). १.पे. नाम. तपागच्छाधिराज विजयप्रभसुरी गुणवर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरिगणस्तति गीति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीविजयदेवसूरीशपट्ट; अंति: विघ्नपदशत्रुनेता, श्लोक-७. २. पे. नाम. १८ शाखा तपागच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विजयकुशलप्रभहंसविमल; अंति: तपेसरेगच्छ कहीइ तपा. ३. पे. नाम, दंतधावन कौतुक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गब गब घाल्ले टपटप; अंति: ए कोतीकमे दीठु कूवे. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० "" ८३०८१. अरिहंतपद व सिद्धपद स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२१४११, ७३२). १. पे नाम. अरिहंत थुड़. पू. १अ १आ, संपूर्ण. अरिहंतपद स्तुति, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: सहु यंत्र शिरोमणि; अंति: चारित्रनंदी मन भाय, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. चारित्रनंदि, पुहिं, पद्य, आदि निज भाव विलासी पर अंति: (-), (पू.वि. गाधा-३ अपूर्ण तक है.) ८३०८२. गौतमस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२१x११, १२३०-३५ ). " गौतमगणधर स्तवन, मु. हीराचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: श्रीगौतमसामी पृच्छा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २४ तक लिखा है.) ८ बोल- पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, आदि पापदा पित्र्य १ पापदि अंतिः पापनो मूल क्रोध. ३. पे. नाम. संयमित वाणी के ८ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ८३०८३. (#) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१X११, १३X२६). १. पे नाम. ८ बोल धर्मपरिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ बोल-धर्मपरिवार, रा., गद्य, आदि: धर्मदा पिता जाण पणा१; अंति: धरमरो मूल खीमा. २. पे. नाम. ८ बोल पापपरिवार विषयक, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ श्रावक गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले थाडा बोले; अंति: जीवोको साताकारी बोले. ४. पे नाम. १० बोल आवकगुण, पू. १अ संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: पेले बोले खावे की गम; अंतिः जावे कि थे निरवाण. ५. पे. नाम. दसप्रकार के ज्ञान आवे, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १० बोल- ज्ञानप्राप्ति के पुहि., गद्य, आदि: पंजइ दरियाके विस्वे अतिः सरीर के सुख छोडे तो. " ६. पे नाम. १० बोल अधोदृष्टि के लाभ, पृ. १आ, संपूर्ण पुहिं., गद्य, आदि पेले बोले निचा देख; अति: नि: टोऐ खातेमे ना डगे. ७. पे. नाम. १० बोल-अंधे के, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० प्रकार-अंधे के पुठि, गद्य, आदि: अहांसी घटाइ घंटे बधाइ अति दख २०९ हियेदा अंधा१०. " ८. पे नाम. पांच प्रकार के मुरख, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ प्रकार के मूर्ख, रा., गद्य, आदि: आप गल करे आप हंसे१; अंति: बात करे उथे खडे तो. ८३०८४. () औपदेशिक सज्झाय व पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१x११.५, १२x२३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि विषयारस के कारणेजी; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ९ तक लिखा है.) , " २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेंसिल से लिखी गई है. न्यामत, पुहिं, पद्य, आदि: (१) फेलाइआ है सारी दुनीया, (२) हिंसा को हटाया दयामय अंति: हम सहेगा एहसान तेरा, गाथा-४. ८३०८५. नेमराजिमती, औपदेशिक सज्झाय व नेमराजिमती गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) =१, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२१x११.५. १५४२६). " " १. पे नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: अ वसियो नेम लाल रे, गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) उर २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण १७१ मा.गु., पद्य, आदि दो साधु आयरी माता अंति: दसवर्ततास पालोजी, गाथा १०. ३. पे. नाम नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ मु. नैनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: तुमको हो प्रभु कसम; अंति: विधाता कैसी करी मेरे, गाथा-४. ८३०८६. (-2) गुरुगण गीत, औपदेशिक सज्झाय व सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १५४२३). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सेरुरामशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु नजरक्रन नित; अंति: सेरुरामसीष० जो उतार, गाथा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आ जीवधो रे प्रभु गुण; अंति: न जीवीडीर्मगनी चाल ए, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकरदास, पुहि., पद्य, आदि: नर क्या मुखडा धोता; अंति: कवी सकरदास जाता है, गाथा-४. ८३०८७. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२, १६x२३-२६). औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: भाव भगत का भोया हे; अंति: वार वारना भुला जी, गाथा-१२. ८३०८८.(-) देवकी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१x१२, १४४२४). देवकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन वाणी श्रवणार्थ जनसमूह गमन अधिकार से मुनि गोचरी गमन अधिकार तक है.) ८३०८९ (2) गुरुगुण सज्झाय, आदिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १४४२३). १. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आगे तु मारे अखत्यार, गाथा-३१, (पृ.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रत्नचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १९११, आदि: देखो जी आदिसर सामी; अंति: गायो हें जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: जोबन धन पाहुनो दिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८३०९० (+) औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित., दे., (२१४११.५, १३४२६). औपदेशिक लावणी, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लाभ नहीं लिया जिनंद; अंति: भव कीयो कुगुरु भज के, गाथा-४. ८३०९१. चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२१४११.५, २६४१५). चंद्रराजागणावलीराणी लेख, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी; अंति: दीपविजे०सउ फली आस रे, गाथा-६९. ८३०९२. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. क्षमासुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १५४३२). आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल आदिजिणंद जुहारीय; अंति: भवि भवि अविहड रंगि, गाथा-५५. ८३०९३. (#) दशार्णभद्र सज्झाय व शनि भार्या नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १०x२४). १. पे. नाम. दशार्णभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, अन्य. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसदीश, गाथा-१८. २. पे. नाम. शनिभार्या नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १७३ सं., पद्य, आदि: धमनि धामनी चैव कंकाल; अंति: पीडा न भवंति कदाचित्, श्लोक-२. ८३०९४. (#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १६x२२-२५). १.पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: मुझ मन हरष अपार, गाथा-५. २. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: फलस्यें मन साचूरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सखी संखेसरो मे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक ४. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अभिनंदनजिन पद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देख्यो अविचल वास, गाथा-५, (पृ.वि. गाथा-३ से ५. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीवधर्म म मुकीस विनय; अंति: ते चिरकाले नंदोरे, गाथा-९. ६. पे. नाम, समोसरण स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन वंदीये; अंति: जस० जिनपद सेवा खंत, गाथा-१७. ८३०९५ (+) बूढा वडेरा की शिखामण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११.५, १५४२७). १०० बोल-औपदेशिक, रा., गद्य, आदि: इण सीख मुजब चालै सो; अंति: थोडो बालो राखीजै. ८३०९६. (+) श्रावक अतिचार, वंदित्तु सूत्र व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२४११, १४४४०). १. पे. नाम, श्रावक अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: पहिला थूल प्राणातपात; अंति: ते मिच्छामिदक्कडं. २. पे. नाम, वंदितुसूत्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४१. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भजीयै छे श्रीजिनचरण; अंति: गुणसागर० समझावै, गाथा-४. ८३०९७. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२२४११, १३४३२). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावति; अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-६८. ८३०९८. (#) धन्ना सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे.. (२०.५४११, १३४२७). १. पे. नाम, धन्ना की चोकी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्नाजी चौकी प्रथया; अंति: भद्र जिन त्यागीय नार, गाथा-२१. २. पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु वचन विचार कर; अंति: प्यारा मे तो वारी रे. गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३ तक लिखा है.) " ८३०९९. पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पू. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२१x११.५ १५२५). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि वर्द्धमानस्वामि चोथा, अंति (-), (पू.वि. आर्य सुहस्ति तक है.) ८३१००. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९४५, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : पद्माव०., दे., (२२x११.५, १२x२८-३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर ० छूट ततकाले, डाल-३, गाथा-३६. ८३१०१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., ( २१.५X१२, १५X३९). महावीरजिन स्तवन, मु. जयराम, मा.गु. पद्य वि. १८७९, आदि: सरसति माता हो अविरल अतिः न दीठे हो पातिक जावे, गाथा - १३. ८३१०२. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., ( २१.५x१२.५, १४x२४). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मनुष्यगती से २२ परिसह अपूर्ण तक है.) ८३१०३ () साधुपाक्षिक अतिचार घे. पू. पू. संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२x११, १२x२९). साधुपाक्षिक अतिचार-श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: गणीयो चारजो तिहत्त ८३१०४. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, दे., (२०x१२, ११x२४). , पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आणी मन सूधी आसता; अति समयसुंदर० सुख भरपूरि, गाथा - ७. ८३१०५. आदिजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ३, दे. (२१.५x११.५, १०X३०). है. जैवे. (२२x१०.५, १७४४२). १. पे नाम. पोषध विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धरम जिणे ऊधर्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३१०६. तिथिक्षयवृद्धिनिर्णय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१X११, ११x२६). तिथिक्षयवृद्धिनिर्णय विचार, प्रा. सं., गद्य, आदि आह श्रीहरिभद्रसूरिभि अंति: दशाश्रुत० निर्णयोस्ति. ८३१०७. पौषध विधि व नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : पोसाविद्धि. पत्रांक अंकित नहीं पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: आदगे देवसीज जाणवुं. २. पे नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सुर असुर विंदित; अंति: करी अंबिका देवियें, गाथा ४. ८३१०८. ज्ञानपंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. नारायण नधुभाई ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ११, दे., (२१x१२, १०x२८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतक सुप्रपंच, अंतिः सिद्धायिका प्राविका श्लोक-४. ८३१०९. महावीरजिन स्तवन व महावीरजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११.५, ७३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तारि हो तारि प्रभु म; अंति: विमल प्रभुता प्रकासै, गाथा- ७. २. पे. नाम महावीरजिन कलश, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौवीसें जिन गाईयई घ; अति (-) (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८३११०. (+) चेलणा, ढंढणमुनि सज्झाय व मोक्षज्ञानचक्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०.५X११, ३५x२५). १. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धनि चेलणा वीर वखाणी; अंति: रायचंद० जगत गवानी हो, गाथा - ११. २. पे नाम, दंडणऋषि सज्झाव, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि टंढण रिषनै वंदणो; अति: कहे जिनहरख सुजाण रे, गाथा ९. ३. पे. नाम, मोक्षज्ञानचक्र, पृ. १आ, संपूर्ण. 3 ज्योतिष बंधिचक्र, मा.गु. सं., पद्य, आदि मुखाचंगस्य नामानि अतिः चक्रेस्मिन्० हेतवे (वि. यंत्र सहित) ८३१११. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, ,जैदे., (२२x१०, १७३१). मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सौहावणौ; अंति: त्रिकरण सुध परणाम हो, गाथा- १२. ८३११२. वयालिस भाषाभेद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९२ भाद्रपद कृष्ण, ५. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भाषा., जैवे. (२०.५x१२, १४x२५) दशवैकालिकसूत्रगत ४२ भाषाभेद सज्झाय, संबद्ध, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., पच, आदि सत बिहार भाषा भली रे; अंतिः रे ते सरबजी वार सेण, गाथा १७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८३११४ सिद्धमंगल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२०.५x११, १x२९). ८३११३. (४) गुणकरंडकगुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२०x११.५, १६४३३). गुणकरंडकगुणावली रास- बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि (-); अति: (-). (पू.वि. ढाल २ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) १७५ सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बीजो मंगल सुध मन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ तक है.) ८३११५. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि व ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१ (१) १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., दे., (२२x१२.५, ८x१३). १. पे. नाम. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: चोथमल० मासने वरसाला, गाथा - १४, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आ. हर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकाले ने तिण समे; अंति: हरख० भाख्या हो गोतम, गाथा-२१. ८३११६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रारंभ में "जादवानो रास" की समाप्ति का संकेत मात्र है., जैदे., ( १८x१२, २०१२-१७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिंहहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर कहिज्यो; अंति: वांछित मनह जगीस रे, गाथा - ९. ८३११७ नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १ ले स्थल धनेरा, प्रले ऋ. वाघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नव० छंद. जैवे. (२०.५x११, १८x४२). ', नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे अति: कुशल० रिद्ध वंचित लहै, गाथा १३. ८३११८. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., ( २१.५X११.५, १३४३८). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल खुखदाय रे, ढाल - ५, गाथा १६. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३११९ (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वनंदानगर, प्रले. पं. कल्याणचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१२, १२४३१). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रियसे पार्श्वदेवं, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत अनंत; अंति: मंगलीकमाला पवरत्तै. ८३१२०. धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३२). धर्मजिन स्तवन, म. लालजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: श्रीधर्मनाथ जिन वंदी; अंति: गुराजी रे लागु पायजी, गाथा-१२. ८३१२१. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२४११,१०x१९). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-२ से ४ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८३१२२. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२२४१०.५, १२४१८-२७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मा.गु., पद्य, आदि: साधु कहे सुणजी वडाजी; अंति: बरतारी खबर न काय, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-आलस परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: हा हा आ लीला सपना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ८३१२३. आगमपूजा स्तवन व पर्युषणपर्व सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२१.५४११, १५४२५). १.पे. नाम. पर्यषणपर्व सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: (-); अंति: परमं मंगल पावीऐ, ढाल-२, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-६ अपूर्ण से २. पे. नाम. आगमनी पूजानुं स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आगमनी आशातना नवि; अंति: रे हरे सुखमा ये मगन, गाथा-५. ३. पे. नाम. पर्युषण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: श्रीगोतम गुणधामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण मात्र लिखा है.) ८३१२४. साधारणजिन पद व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२२४११.५, ८x२६). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नावडीया पार उतार थार; अंति: बोहे श्रीया की लाज, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. गुमानचंद सुत, मा.गु., पद्य, आदि: काउके न आस राखे; अंति: गुमानचंदसुत०एक सेवडा, सवैया-१. ८३१२५. (#) विविध विचार, चरणकरणसित्तरी व ३२ दोषादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११, २३४४०). १.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १७७ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संसाररूपियो समुद्र; अंति: आरमणा पण ९३. २. पे. नाम. करणसित्तरीचरणसित्तरी गाथाद्वय, पृ. १अ, संपूर्ण. __करणसित्तरीचरणसित्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पिंड विसोही ४ समिई; अंति: निग्गहाउ चरणमेयं, गाथा-२. ३. पे. नाम. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कम्मठ० मणं१ वयर जोगा; अंति: सव्वे भणिया अरुविणो. ४. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ दोष-सामायिक के, मा.गु., गद्य, आदि: सामाई लीधो पालथी; अंति: ३२ बतीस दुषण जाणवा. ८३१२६. ज्ञानपच्चीसी दोहा व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालावाड, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसीना दोहरा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सूरिनर तिरजग जोन मे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-१३ तक लिखा है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह', म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पथर से बोल काउ पेड न; अंति: म्रतु भवे निसंसए, सवैया-२, ग्रं. गाथा ५. ८३१२७. शीयल चोढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ११४२५). शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमे रे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ___ ढाल-२ तक है.) ८३१२९. सम्यक्त्वधारी श्रावक धर्म व पोरसीपचक्खाण मान, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. जसरूपसागर (गुरु पं. जीवणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, ३०४२०). १. पे. नाम, पोरसी मान, पृ. १अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पोरसी थाये जेनो मान; अंति: पोरसी मान जाणवो. २. पे. नाम. सम्यक्त्वधारी श्रावक धर्म, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वधारी व्यवहार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीवरद्धमान चोवीसमा; अंति: प्रातकाले नमवो. ८३१३०, स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं है व उल्टा भी लिखा है., जैदे., (२१.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी शारदमाय प्रणमी; अंति: नमे तुज लुली लुली जी, गाथा-८. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर साहिबो; अंति: मोहन जै जैकारै, गाथा-७. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ मात्र लिखा है.) ४. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३१३१ (#) मधुबिंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०७, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दोयनडी, प्रले. मु. प्रेमजी (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१.५४११, १२४३९). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत रै द्यो; अंति: परम सुख में मागीये, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३१३२. ज्योतिषयंत्र, औपदेशिक लावणी व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२१.५४१२.५, १०x१५). १. पे. नाम. ज्योतिषयंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: या विनती अखमल की, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा लिखा है.) ३. पे. नाम. नंमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: नात तेरा दरसण की; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८३१३३. त्रोटाना बोल, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सामलजी; लिख. श्रावि. वेजु देवकरण बारीया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १५४३३). १७ बोल-प्रमाद परिहार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले बोले भणवा गणवा; अंति: पांचमा अधीननी. ८३१३४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, १२४२७). आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्याथी रे प्रभु; अंति: तारो दादा दयालजी, गाथा-१२. ८३१३५. नेमनाथ लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११.५, १७X२९). नेमराजिमती लेख, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरैवतगिरे; अंति: सीस रूपविजय तुम दास, गाथा-२०. ८३१३६. दसपच्चक्खाण के आगार व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२१.५४११, १०४३७). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाण के आगार, पृ.१अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: नमोक्कारसी अन्नत्थणा; अंति: समाहि वत्तियागारेणं. २.पे. नाम. दसविधपच्चक्खाण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नवकारसी२ अनत्थणाभोगे; अंति: गुरु४ पार०५ मह०६ स०७. ८३१३७. अष्टमी व ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२२४१०.५,१२४२२). १.पे. नाम, अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु नित्य; अंति: ते पामो भवि पार ए, गाथा-६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा-९. ८३१३८ (+) विचार बोल व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, पठ. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२१.५४११, १२-१५४४०). १. पे. नाम. प्रतिलेखना विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. २. पे. नाम. मुंहपत्ति पडिलेहण के पच्चीस बोल, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___मुहपत्ति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्वचिंतन; अंति: कायदंड ३ वज्यु. ३. पे. नाम, महपत्ति के पचास बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हास्य १ रति २ अरति ३; अंति: ५० पडिलेहण जाणवी. ४. पे. नाम. बासठ मार्गणा सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १७९ ६२ मार्गणा सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारगतांगिण इंद्रीय; अंति: बासठ भेद संभारौ, सवैया-१. ५. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राज्यां जोनि समीहते; अंति: जोगिंद्र चूडामणि, श्लोक-१. ६. पे. नाम. पर्वकर्त्तव्य गाथा १, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पर्वकर्तव्य गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मंत्राणां परमेष्टि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम, गूढार्थ श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्मारं स्मारं भारती; अंति: ध्यायंति योगिनः, श्लोक-२. ८३१३९ दशमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२१.५४११, १८x२०). पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: केरी सयल आस्या पुरणी, गाथा-४. ८३१४०. आत्मप्रबोध सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२१.५४१२.५, ७-१२४१३-२२). औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मा.गु., पद्य, आदि: जीव म करीस खोटी माया; अंति: मोक्षतणा सुख दीठा रे, गाथा-७, संपूर्ण. ८३१४१ (4) ५८ बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पूवि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, __ जैदे., (२१४११, ७-९४२२-२९). ५८ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल-८ से ३६ तक है.) ८३१४२. स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १६, दे., (२२४१२, १८४५०). १. पे. नाम. दशार्णभद्र पद, पृ. १अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: वीचरत वीचरत वीरजणंद; अंति: माय हीरालाल गाइओ जी, गाथा-१२. २. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यानी गरु आया तारण; अंति: होजो सीवापूवेग सीधाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गरुजी माने मूगती को; अंति: मे जुग जुक सीस नमायो, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: उपटमात जावो रे प्राण; अंति: मले मगत की रानी, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दर्लभता, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मती हारो रे जीवा मती; अंति: सतगुरु चरणे चीत धारो, गाथा-९. ६. पे. नाम. औपदेशिक स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गरुजी माने प्यारा हा; अंति: हीरालाल हरख धरीए ही, गाथा-६. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: किसी की परवा नही; अंति: अचलाजी मने चलावे ए, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कीसीकी परवा० दोलनवंत; अंति: छीन मे पार उतारे, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद- ज्ञानामृत, मु. हीरालाल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि किसी को दिल का दरद, अंति भाखे यो पंथ वहजे, गाथा-४. १०. पे नाम औपदेशिक पद- जैनागम महात्म्य, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- जैनागम, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साचा गुरु मीलावीना; अंति: हीरालाल० मुगती होय, गाथा-४. ११. पे. नाम. तप पद सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि सुरायो तप में जूंजीय, अंतिः सुराने वडियो वैराग, गाथा- ६. १२. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: सेणकरायनो दिकरो रे; अंति: हीरालाल० भदेस माय ए. १३. पे नाम, संयम अनुमति सज्झाय, पृ. ३अ संपूर्ण. मु. . हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: माता अनुमत दे अणीवार; अंति: हीरालाल० भोग परवार, गाथा-५. १४. पे नाम औपदेशिक सज्झाब नश्वर काया, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि काया कामिणी रे अरज; अति हीरालाल० सुख रखी रे, गाथा- ७. १५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-मानवभव, पृ. ३आ, संपूर्ण मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि देवादीकने दुर्लभ जाण; अंति हीरालाल० गणासी रे, गाथा- ६. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, पृ. ३आ, संपूर्ण. " . " मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि माया को मजूर बंदो; अंति हीरालाल० हितकार हे, गाथा-८. ८३१४३. (*) देवसिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२१४११, १५३६). देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., पग, आदि सामायिक लेवा विधि; अंति एक नवकार गणवो इति. ८३१४४. उवसग्गहरं स्तोत्र व बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, गु., ( २१.५x११, २०X२०). १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ११, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - ११. २. पे. नाम, उवसग्गहर मंत्र- बीजक, पृ. ३अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि अमुकं वसीकर राजा अति मंत्रनो समरण कीजे. ८३१४५. (+) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५X११, १३X३०). 3 गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मोहन, मा.गु, पद्य, आदि कहे माता कुमार ने अंति भवनो पार रे सोभागी, गाथा- ३३. ८३१४६. सरस्वति स्तोत्र व नवांगपूजाना दुहा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५-१ (४) =४, कुल पे. २, दे. (२०.५x१०.५, ८-११X१९-२५). १. पे. नाम. शारदा छंद, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी अंति आस फलस्ये ताहरी, गाथा - ३५. २. पे. नाम. नवअंग पूजा दुहा, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि जल भरी संपुट पत्रमा अति कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा १०. ८३१४७. (+) स्तोत्र, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (२) =४, कुल पे. ४, अन्य. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२१.५४१२, १८४५६). " " १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि आदिपुरूष आदिसजिन आदि; अंति (-), (पू. वि. गावा- ३२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १८१ कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कारन समकित शुद्धि, ___ गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३.पे. नाम, विषापहार स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगुण ईश; अंति: अचलकीरत० साहीबको नाम, गाथा-४२. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामण; अंति: करजोरकर बीनती करुं, गाथा-१९. ८३१४८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२१४११, १७४३७). १.पे. नाम, १४ गुणस्थानक स्तवन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. ग. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पय पणमी जिण पासना; अंति: सगणि भणै पास सुहंकरो, गाथा-२४. २.पे. नाम. २४ दंडक स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २४ दंडक गर्भितजिन स्तवन, मु. मतिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: सुख सहु संपद सुजस जस; अंति: मतिवर्धन गणि सुख लहै, गाथा-२३. ३. पे. नाम. अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदि: अदभुत मूरति इल अचल अ; अंति: भणै नित हित काज ए, ढाल-५, गाथा-३२. ४. पे. नाम, कर्मपच्चीसी सज्झाय, प. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: पेख करमगति प्राणिया; अंति: भणतां आणंद थाय रे, गाथा-२५. ८३१४९ (+-) निर्वाणकांड व दोहावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १३४२२). १.पे. नाम. निर्वाणकांड, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः (१)परम अपा नमु सदा भाव, (२)असटापद आदेसर पगट्या; अंति: घट परगट होय, गाथा-२५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहावली, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चदरुप प्रभु चरणजी ता; अंति: परसण तत गोता खाय, गाथा-२५. ८३१५०. दीपावली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, आषाढ़ शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. ईदरबाई,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दिवाली पत्र., दे., (२०.५४१२.५, १२४२६). दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: भविया प्रथम जिणेसर; अंति: हे रायचंद सुभ वाण रे, गाथा-३७. ८३१५२. बुढापा व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१२, १४४२९). १. पे. नाम. बुढ़ापा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बूढापण कांइ आवीउ; अंति: मुज आवागमण निवार, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेत प्राणीया रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८३१५३. शांतिनाथ छंद व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबचंदजी ऋषि; पठ. ऋ. देवचंद्रजी; अन्य. सा. साकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १४४४०). १.पे. नाम, शांतिनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सारदमात नमु सिरनामि; अंति: श्रीगुणसागर० पावे, गाथा-२०. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: च्यारे चुक्यो बारे; अंति: प्रभाते कर दरसनं. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३१५४. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४११, १०४२८). अरणिकमनि सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: मुनि अरणिक चाल्या; अंति: लब्धि० मुनिवर वैरागी, गाथा-७. ८३१५५. (4) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, ९४२३). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८३१५६. भगवतीसूत्र गहुँली व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४११.५, १२४२५). १. पे. नाम, भगवतीसूत्र गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण.. संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सइयर सुणज्यो रे भगवत; अंति: सुणंता मंगल कोड वधाई, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रीमंदिरजिन स्; अंति: ण धाम आतम काज सुधारो, गाथा-५, (वि. यंत्रसहित.) ८३१५७. (#) नेमराजेमति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, ८x२२). नेमराजिमती स्तवन, पं. हेमहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत सहि; अंति: मारा बंधिखाना छोडि, गाथा-९. ८३१५८. (+) गोडीजी अमृतध्वनि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२१x१०.५, १३४३०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: जिन सासन जिन अग्रहय; अंति: लच्छ श्रीधर्मावर, गाथा-५. ८३१५९ (+) अनाथीमुनी सज्झाय व सम्यग्दर्शन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. गेदाजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी मे 'सेणक' लिखा है किंतु कृति अन्य है., संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिकराय रयवाडी चढ; अंति: वंदे रे बे करि जोडि, गाथा-२२. २. पे. नाम. सम्यग्दर्शन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व गीत, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण षट दरसण निज; अंति: भवजल पार जी, गाथा-७. ८३१६०. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १३४४९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कपटपंथ परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सोहनलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: तजो तजो भाई कपटपंथ; अंति: देख्या निनबाना रे, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक पद-जीवदया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सोहनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्रभेद नहीं जाना र; अंति: सोहनलाल० माहीगाना रे, गाथा-५. ८३१६१. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१२.५, १४४२५). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी खूब बनी छै जी; अंति: अनोपम अबतो मारग पायो, गाथा-११. ८३१६२. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपचंद शिष्य (गुरु मु. रूपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १४४३२). पर्यषणपर्व स्तति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: ज्ञानविमल०महोदय कीजे, गाथा-४. ८३१६३. (+-) गुरुगुण गीत, औपदेशिक पद व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२२४११.५, १५४२८). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राम मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: साढे नवे सजन घर आए; अंति: सीर रामने तवन बनाया, गाथा-१०. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १८३ मु. राम मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: हां नी हां सवन राखु; अंति: राम० जग सुपने की जाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: खलक एक रेन का सुपना; अंति: कहे भूधरदास कर जोडि, गाथा-५. ८३१६४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११.५, ७४२२). औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, ऋ. त्रिलोकर्षि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन प्रारंभ मत राचे; अंति: त्रिलोकऋषिओस ओस आया, गाथा-११. ८३१६५. औपदेशिक सज्झाय व जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४१२.५, १४४२०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन समज तु जगत; अंति: राम० जीव मन दीनचार, गाथा-५. २. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: लोसी लोहसीलव तारे; अंति: जीव दया डाड पालो रे, गाथा-६. ८३१६६. (+) मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११.५, ११४२२). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली वीराज; अंति: (अपठनीय), गाथा-१४. ८३१६७. (-) औपदेशिक सज्झाय, महावीरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११.५, १२x२३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चकरी से राजी करत; अंति: चतर सजान रे. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: चाल आबेधपुरी गुन; अंति: आबेगा कोइ फर हो सार, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ऊंचे गढ पुर प्रभुजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३१६८. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय व बार भावना बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११, १४४३०). १.पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: में तो वेम छराला हो; अंति: मझार साधुजी गुण गाया, गाथा-१०. २. पे. नाम. १२ भावना बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद पंकज नामो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३१६९. (-) १० प्रकारे देवआयुष्यबंध सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४१२, १९४४०). १. पे. नाम. १० प्रकारे देवआयुष्यबंध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० प्रकारे देव आयुष्यबंध सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: दस प्रकारे बांद सुर; अंति: आसकरणजी अणगार हो, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंपा, पुहिं., पद्य, आदि: क्या मन आधे होये रेह; अंति: चंपा० अव राख रेहा रे, गाथा-८. ८३१७० (-) साधारणजिन स्तवन व अज्ञात जैन कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४११, १६४२५). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मुसीराम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंता; अंति: मुसीराम०प्रपावाण लला, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ असुंदर अक्षर, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: वाणी वीर की याय वसी; अंति: (-). ८३१७१ (+) २४ मांडला, ९६ तीर्थनाम व सामान्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १७४३५). १.पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: दरे उच्चारे पासवणे; अंति: दरे पासवणे अणहीयासे. २.पे. नाम. ९६ तीर्थ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वाणारसी १ राजगृह २; अंति: वडनगरी ९५ पारकर ९६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवन पत्र. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: भाव भगति मन आणि घणी; अंति: मनवंछित कारज सरइ, गाथा-१५. ८३१७२. (-) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२, १०४२४). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४, (प.वि. अंतिम दोहा से ८३१७३ (-) आध्यात्मिक पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४११.५, २१४३५). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मारो हिरो घमायो विरा; अंति: ठावो मेलियो अचरा मे, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हाथ मे हिरो आयो रे; अंति: अपना ही पेट भराया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नाथु, रा., पद्य, आदि: आगे जाणो चेतनिया साथ; अंति: चेतन देरी मत कीजो, गाथा-४. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भिखू, पुहिं., पद्य, आदि: मनावो आज छमछरी हिलमल; अंति: भिखू०बारबार सुद्ध मन, गाथा-७. ५. पे. नाम. समकितप्राप्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वप्राप्ति पद, म. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: जरासी आइ जाए. समकित; अंति: प्रभु से वेग मिलाइजा. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेतन जोर जवानी को; अंति: सीख मानो सतगुरु को, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. चौथमल, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुरु कुगुरु को; अंति: माहिमा किम जोड रे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८. पे. नाम. धर्म की पूंजी पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंतमें किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक "मने मारा राणाजी" पाठ लिखा है. औपदेशिक पद-धर्मपूंजी, म. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म की पुंजी कमाले; अंति: अमर० की धूनी रमा ले, गाथा-५. ८३१७४. पंचेंद्रिय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०४११, ३-१५४५-२३). ५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपुंरे तुझनें सीख; अंति: साश्वताजी मारा लाल, गाथा-७. ८३१७५ (+) स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, १३४३३-३६). १. पे. नाम, अरनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अर जिनवर सुणो साहिबा; अंति: उत्तम संपत पाय रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोडं माहरु; अंति: करुं वारंवार नामी रे, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भले भावे भगवंत आराधो; अंति: सफल करो अवतार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहल चढी मोरा नाथनी; अंति: रूपचंद० छै खुसाली रे, गाथा-३. ८३१७६. अष्टमी स्तवन व वैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२१४१०, १३४२४). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, प. ३अ, अपूर्ण, प.वि. मात्र अंतिम पत्र है. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: कांति सुख पांमे घj, ढाल-२, गाथा-२४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. वा. श्रीकरण, मा.ग., पद्य, आदि: समवसरण सिहांसणे जी; अंति: प्रणमंबे करजोड, गाथा-८. ८३१७७. चौवीसजिन चैत्यवंदन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०.५, १३४२८-३२). २४ जिन चैत्यवंदन, सं.,प्रा., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराजगाम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ तक २४ जिन चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एहवा जे भगवंत; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८३१७८. (#) स्तवन, बारमासा व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:बारमास., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, २०४४२). १.पे. नाम, नेमिराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात शिवादेवी जाया; अंति: शिव सुखपाया राजि धरि, गाथा-७. २. पे. नाम, नेमिनाथना बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फिर गए राज; अंति: ण कहइ करयो एहवो सनेह, गाथा-१६. ३. पे. नाम. १८ नातरा संबंध सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: देवर भतीजो भ्रात; अंति: सुता अठारह नाते है, पद-१. १८ नातरा कवित्त-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कुवेरसेन बालकस्यु छ; अंति: माता थकी ऊपनो वास्तै. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दर्लभता, मा.गु., पद्य, आदि: अरे नर भव पाईवो नवेर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक ८३१७९. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ५, दे., (२०.५४११.५, १७-२०x४०). १.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पशु पुकार सुण्या; अंति: काइ मलसे नयनें नयके, गाथा-५. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ.८अ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. राणकपुरतीर्थ गीत, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडू हेजालवू; अंति: सूं कहे मति को वीसार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजीन बारम; अंति: इम जीत कहे नीतमेव रे, गाथा-५. ८३१८० (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, ९४३३). पार्श्वजिन स्तवन, म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जयो तुं जयो तुं; अंति: रूधी सुख सिद्धि मेवा, गाथा-७. ८३१८१ (4) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४११, १८४४२-४६). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. कोश, योजन, देश, खंड आदि मान, १८भार वनस्पती, औपदेशिक सवैयादि संग्रह.) ८३१८२ (#) क्षुल्लककुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं है. अनुमानित पत्रांक दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११, १५४३९-४२). क्षुल्लककुमार सज्झाय, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धि सुविसाल, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ८३१८३. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडक विचारगर्भित, अपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. आंबोरी, प्रले. मु. उदयचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १६४३६). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ८३१८४. (4) श्रावककरणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११, ७X२३). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से १५ नहीं है.) ८३१८५ (+) पार्श्वजिन, जिनकुशलसूरि व शत्रुजंयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५,१२४२७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनकुशलसुरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु श्रीजिनकुशल; अंति: जिनचंद्र० तरु फल्या, गाथा-६. ३. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विनीता वने वीनवैरे; अंति: भारे कर्मा जी होय, गाथा-४. ८३१८६. (4) बौद्ध व जैनधर्म विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०x१०.५, ९४२३). ___ बौद्ध व जैनधर्म विचार, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'पृष्ठ ८ पं० २१' पाठांश से 'रत्नावली पृष्ठ ४२ पं० १३' तक का पाठांश है.) ८३१८७. स्वाध्याय विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूत्र सुणवारी वीधीपत्र., दे., (२१.५४११, १२४३८). स्वाध्याय विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्वपट्टिका पाटला; अंति: नवकार १ कालोप्पेवमेव. ८३१८८. पांसठियायंत्रनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११, १२x२५). पांसठियायंत्र छंद, मु. घर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: श्री नेमीश्वर संभव स; अंति: संघ प्रभु नामे निधान, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १८७ ८३१८९. घंटाकर्णवृद्धि कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं है. अनुमानित पत्रांक दिया है., दे., (२१४११, ७४२५). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: क्षमस्व परमेश्वर, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सभी जीव-जंतुओं का रोगनिवारण महाप्रभावी मंत्र से संभव है.) ८३१९०. रहनेमीराजिमती सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, २२४३६). १.पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: नाइ धोइ कि पटिर वेठा; अंति: वीत जाणे, गाथा-१०. २.पे. नाम. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: ऋद्धिहर्ष कहै एम, गाथा-१९. ८३१९१. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१.५४११, १०४२७). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात री नीद; अंति: श्रीजिन भाख्यो एम, गाथा-३५. ८३१९२. चोर व जुगट पच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२१.५४११, १०x२४-२८). १. पे. नाम. तस्करपच्चीशी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: चोरी चित्तना धरो नर; अंति: खोडी० पुरफते चोमासु, गाथा-२५. २. पे. नाम, जुगटपचीसी, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. जुगार पच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: छेल छबीला रे सुणजो; अंति: दास व्यसन द्यो छांडी, गाथा-२५. ८३१९३. आषाढभूतिमुनि संबंध व गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५, १६x४६). १. पे. नाम. आषाढाभूति चरित्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोम० कुं सुखकार, गाथा-६४. २. पे. नाम. गौतमपृच्छाचौपाई, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदतणा पय वंदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक ८३१९४. (+) नेमनाथराजमती सवैया बारेमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:नेमजीबारेमासप०., संशोधित., जैदे., (२१४१०, १२४३०-३५). नेमराजिमती सवैया बारेमासा, विनोद, पुहि., पद्य, आदि: विनवे ऊग्रसेन की; अंति: ल विनोद विनोदसें गाए, गाथा-२६. ८३१९५ (+) भगवतीसूत्र-शतक-२६ के बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११, १६x४१). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेस पखी दिठी; अंति: आहारीकना बंधक विसे११. ८३१९६. (+) २४ जिन स्तवन, प्रतिक्रमण विधि व प्रतिमा विक्रय गुप्त पत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.६-२(३,५)=४, कुल पे. ६, प्रले. भोजाजी गोरजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं. भिन्न-भिन्न लिखावट. संशोधन अपेक्षित., संशोधित., जैदे., (२१.५४११, १९-२९x११-१५). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि सयल जिणेसर प्रणमु अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २० तक लिखा है.) २. पे नाम प्रत्याख्यानसूत्र, पू. २अ अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगए सूरे नमुक्कार, अंति (-), (पू.वि. उपवास पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमण विधि, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक काल्पनिक. , ', मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: सामीववयजुत्तो दसम० (पू.वि. "अढाईजेसु" संकेत से है. वि. प्रतीकात्मक विधि.) ४. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि इछामी० अरीयाव० तसउ० अति: पलेवु पछ सामायवयजुतो, (वि. प्रतीकात्मक विधि.) ५. पे नाम औषध संग्रह. पू. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भांग से२०१ अजमो टॉ० अति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. प्रतिमा विक्रय गुप्त पत्र, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति नधी सताबीसु काम करजो, (पू. वि. "वेला पण ऐ रुपिया २५ बदले रोकाई रही छे" पाठांश से है.) ८३१९७. (+) महावीर स्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७ कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २१.५X१२, १६४३४-३८). महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसती भगवती दीउ मति, अति: कहे धन्य मुज ए गुरो, ढाल १२, गाथा- ७९. ८३१९८. (+) समकित थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : समकतथोकड., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५X११, १५X३१). सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित भाव; अंति : कारण समकत कहीइ छे.. ८३१९९. चोवीसतीर्थंकर बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ४. दे. (२१४११, १६-२१४३२-४० ). " २४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २४ जिन के पिता का वर्णन अपूर्ण से है व मो स्थान वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८३२०० अमरकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२ ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पूजी हीरालाल प्रसादे. हुंडी अवाच्य है. दे., " (२०.५X११, ९X३३-३७). अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जैन धरमना प्रखीयो; अंतिः पाप तणां फल खोटा रे, गाथा-५०. ८३२०२. शत्रुंजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२०.५X११.५, १०x२४). " शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -१, गाथा- १ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३२०५. पार्श्वजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२१X११.५, १७x४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि मुरत ताहरी हो राज, अंतिः हिवडे उल्लसी हो राज, गाधा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी उलाभडे मंति; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ८३२०६. अर्बुदगिरि व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२१११, ९३७). १. पे नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आवो आवोने राज; अंतिः सकल संघ सुख करई, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १८९ २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समेतसिखर जिन बंदीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ८३२०८ (+) नवग्रहगर्भितपार्श्वजिन स्तोत्र व वज्रपंजर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४११, ११४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहार दक्खो नालिय; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. २.पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८३२०९. अरनाथ चैत्यवंदन गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२१.५४११, २०x१५). १. पे. नाम. अरनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अरजिन चैत्यवंदन, म. रुप, सं., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर; अंति: सुद्ध रूप सुखाकर, श्लोक-५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: पंचन्ह माणुवयाणं; अंति: नवन बंभचेरविहं, गाथा-१. ३. पे. नाम, ऋषभजिन धमाल, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, म. जिनचंद, पहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो रे ऋषभ; अंति: गावो नित जिनवर को, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नटविट पुप्पादीलपटो; अंति: नय निवासो दक्षिणे०, श्लोक-१. ८३२१० (+) शांतिजिन स्तवन व थावच्चाकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. उत्तमविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४११, १४४३१). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: मोहन० पंडित रूपनो, गाथा-७. २.पे. नाम, थावच्चामुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्र मझार रे; अंति: मेघविजय इम विनवे ए, गाथा-१२. ८३२११. एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२०.५४११.५, १८४३८). एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ४ उद्ध्वलोके सिद्ध; अंति: पडवाई एक समि मोक्ष०. ८३२१२. (+-) आध्यात्मिक सज्झाय व औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२१४१०.५, १९४३५). १. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ अध्यात्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आधार छे सुत्रनो; अंति: पालने ते पोचे निरवाण, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मा.गु., पद्य, आदि: पुरब सुकरत पुन करीने; अंति: पीराणी हवा उदराखरा, गाथा-१४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., पद्य, आदि: भवसागर में भटकत भटकत; अंति: जाणो मन में समता आणो, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९० ८३२१३. (४) शत्रुंजयतीर्थ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. हाशिये में सांकेतिक प्रतीकरूप कुछ अस्पष्ट लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२१.५४११.५, १४४३३). " , १. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मारो मन मोह्यं रे; अंतिः ज्ञान०कहतां नावै पार, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल ए अवतार मांहरो; अंति: विनति सफल कीजे, गाथा- ११. ८३२१६. शांतिजिनस्तवन व जैनसामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२०.५x११.५, २३४१२). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण, "" मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ दयानिधि; अंति: मंगलमाल रसीयाजी, गाथा-५. २. पे. नाम जैनसामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. १५x२७). १. पे. नाम. मेवाडा ओषध, पृ. १अ, संपूर्ण. सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति: (-). ८३२१७. मेवाडा औषध, घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैवे. (१६४१०.५, औषधवैद्यक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर: अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम शाकिनीडाकिनीरक्षा मंत्र. पू. १आ, संपूर्ण. 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि शाकिनी डाकिनी भूत, अंति पर ए मंत्र चाले छे. ८३२१८. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( १६.५X१०.५, ९४२९). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणो अंति नमामः कुशलं लभामः, श्लोक ५. ८३२१९ मेतारज सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जेसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१.५x११.५, १२४३२). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: संजम गुणना आगलाजी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय, יי गाथा - १४. ८३२२० (#) आंबिलनी ओलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२२४११.५, १२X३०). नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंतिः मोहन सेहेज सभावा, गाथा-९. ८३२२१. (४) पार्श्वजिनविज्ञप्तिका व मायाम्नाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २१.५X११.५, १३X३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन विज्ञप्तिका, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि ० जगत्रय गुरु सर्वा; अंति भवदीओ सेवक पूरो आस, गाधा-९, (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य का प्रारंभिक अंश अवाच्य है.) , २. पे. नाम. मायाम्नाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि लंका महीधर हरे हणुओ अंतिः कार्यसिद्धिर्भवति. ८३२२२. नेमराजिमती लावणी, पद व प्रहेलिका दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. सोझत, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५x१०.५, २१x२०). १. पे नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कहो री माई केसे लगै; अंति: कहे जिनदास सेव थांरी, गाथा-४. २. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि सांवलिया मारा तुम कर अति: भवानुभव पाम्युं छे. गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३. पे. नाम, प्रहेलिका दोहा, प. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कोट माहे साध ठुडीया; अंति: फोजीयो कुमम नारा ओछा, दोहा-१. ८३२२३. धर्मजिन, नेमिजिन व भुजंगजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२१.५४११.५, २०४१४). १. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर हे जिनवर तुं; अंति: पूरो भवियण आस जी, गाथा-५. ३. पे. नाम, भुजंगजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: आय भुजंग प्रभु सेवीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ८३२२५. सुदर्शनमुनि, सुबाहुमुनि व उदायननृपतिविनती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., जैदे., (२१.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. सुदर्शनमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद विराजता; अंति: प्रेम मुनि जयकारी रे, ढाल-४, गाथा-२१. २. पे. नाम. सुबाहुमुनि सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. सुबाहकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: धर्म जिणेसर चित्त; अंतिः प्रेम मुनि सुखवास रे, गाथा-२१. ३. पे. नाम. उदायननृपतिविनती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म.प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर वेगइ आवणारे; अंति: प्रेम० गुण गावणा रे, गाथा-६. ८३२२६. सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी:सवाया., दे., (२१.५४११.५, १६४२२). सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पूरव तयासीलाख सुख; अंति: कुसामदीरा पोरा, (संपूर्ण, वि. विनोदीलाल, हीरालाल आदि रचित आदिजिन, महावीरजिन आदि सवैया संग्रह.) ८३२२७. रेहनेमीराजमती को चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. छोटीसादडी, प्रले. सा. चंदरी (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी; अन्य. सा. फुलकुवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रेनेमीजी., दे., (२१४११, १९४४०). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सीधने आयरिया; अंति: मास आसोज मुजार हो, ढाल-५. ८३२२८. (+) कंसकृष्णविवर्ण लावणी, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वडोद, प्रले. सुरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०४११,१०-१३४३०-३७). ____कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रे रे मेरी; अंति: के गुनता मनही आनंदे, ढाल-२७, गाथा-४३. ८३२२९. (+) शासनदेवी गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. शासनदेवी गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी गीत, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सूरगिर हूंती उतरै; अंति: भणे ज्ञानसमुद्र रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. गुरुज्ञानचंदजी गहुँली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. टेकचंद (नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानचंदजी गुरुगुण गहुँली, रा., पद्य, आदि: समुदारी लहरडीया; अंति: वाधो रे कुश्रीसिंघजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शासनदेवी गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: अवर नंदनवन घूघरीया; अंति: हूंती आई छ वर माय, गाथा-२. ४. पे. नाम. शासनदेवी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९.) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: काली गौरी गंधारी नइ; अंति: माणकचंदजी कोडी वरस, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीये रे में आज; अंति: श्रीआदेसर तुठारे, गाथा-७. ६.पे. नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीजै पासजी; अंति: नितमेव हो गोडीजी, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिकदोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अटवी जगत जाल काल; अंति: इण सरवरीयैरी पाल, गाथा-३. ८३२३० पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प०., दे., (२०.५४११, ७४१९). पद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण चक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ८३२३१. पंचमहाव्रत व पर्युषणपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सिझायप०., जैदे., (२२४१०.५, १७४३९). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ५महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांति०भणै ते सुख लहे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-४ से है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसण आवियां रे; अंति: मतिहंस कहे करजोडि रे, गाथा-११. ८३२३२. बोल संग्रह, प्रास्ताविक सवैया व केवलसमुद्धातस्थिरता बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११.५, १९४४५). १. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पालक पापी श्रेणिकनो; अंति: आर्य चारीत्र आर्य. २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पृथ्वीराज कवि, पुहिं., पद्य, आदि: एक समे अलबेली चली; अंति: पृथ्वी०गजब नचत कनैया, पद-२. ३. पे. नाम. केवलसमुद्धात स्थिरता बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. केवलीसमुद्धात स्थिरता बोल, मा.गु., गद्य, आदि: केवलीनो केवलसमुद्धात; अंति: कार्यण काय जोग होय. ८३२३३. पार्श्वजिन स्तवन, खंडगिरिगफा विवरण व प्रतिक्रमणादि विधि मध्ये छीक विचारादि संग्रह, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अंत में 'जोधपुर से कर भेज्यो' ऐसा उल्लेख है., दे., (२२४११.५, ९४२२). १. पे. नाम. गवडी पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन गोडीजी, श्राव. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मनहर पूरव चिहुदिसी; अंति: रण कहै केसरीचंद मुदा, गाथा-१४. २. पे. नाम, खंडगिरि गुफा ऐतिहासिक विवरण, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहि., गद्य, आदि: कटक से जगन्नाथ जाते; अंति: पार्श्वनाथजी का है. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमण योगादि क्रिया मध्ये बिलाडी छींक निवारण विधि आदि विचार, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के ___ पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह पेटांक ९असे ९आ तक की खाली जगह पर लिखा गया है. पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: छींक को दोष नही है, (पू.वि. पंचाचार पालुं पलावू अनुमोदु विचार से है.) ४. पे. नाम, जन्मपत्रिका आशिर्वाद श्लोक, पृ. १०आ, संपूर्ण.. जन्मपत्रिका आशीर्वाद श्लोक, सं., पद्य, आदि: आदिनाथादयः सिद्धाः; अंति: यस्यैषा जन्मपत्रिका, श्लोक-१. ८३२३४. (+#) सप्रदेशीअप्रदेशी बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक १४३, पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० भगवतीसूत्र-सप्रदेशीअप्रदेशी बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सपएसा हार गभविय; अंति: मनुष्यमा छ भंगो. ८३२३५. (#) नेमिराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१०.५, ७४२७). नेमराजिमती स्तवन, मु. अनुपकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सिवादेवी जाया मुज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३२३६. (+) बोल संग्रह-जीवादि भेद, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मोणशी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११.५, १९४३४). ___ बोल संग्रह-जीवादि भेद , मा.गु., गद्य, आदि: एगेंदीएसु पंचसु बार; अंति: (-), (वि. मार्गणा, मिच्छामि दुक्कडं भेद व वंदना प्रकारादि भेद.) ८३२३८. (4) श्रावकइकवीसी, संपूर्ण, वि. १९११, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. *पत्र १४२ प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १८x१३). श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक नाम धरायनें; अंति: कहे सुणो नरनारो, गाथा-२२. ८३२३९ गोचरी आदि गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४११.५, २४४१९). गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: समिइकसायगारव इंदिय; अंतिः सजोगी१३ अजोगी१४ गुणा, गाथा-१२, (वि. गोचरी आदि विषयक विशेष संग्रह.) ८३२४० (4) रावणमंदोदरी गीत व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. रुखमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, २८x१४). १. पे. नाम. रावण मंदोदरी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रावणमंदोदरी गीत, मा.गु., पद्य, आदि: मनोदरी मन चीतवे; अंति: मानो पीयाजी मारी सीख, गाथा-१५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ८३२४१ (+) आउखानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, ११४२३). औपदेशिक सज्झाय-आयष्य, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इणि आयु का टुटाने; अंति: होयो मुझ नसतार, गाथा-१०. ८३२४२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११.५, १०x२३). आदिजिन स्तवन, गोमद, मा.गु., पद्य, वि. १६४७, आदि: श्रीसारद हो देवी नमण; अंति: तीर्थंकर वादस्या, गाथा-१२. ८३२४३. पद्मप्रभुजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४१०.५, १०४२५). पद्मप्रभजिन पद, मु. पान मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु परसोत्तम; अंति: शीवस्यांमा लटकाली रे, गाथा-५. ८३२४४. (+) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११.५, १६४३५). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिणेसर; अंति: जिणचंद सकलरिप __ जीततो, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. श्राव. अखयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. म. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पाणी के कोट पवन के; अंति: रूपचंद० की कबान है, गाथा-४. ३. पे. नाम, गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो शीश; अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा-९. ४. पे. नाम, गौतमस्वामी दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, आदि: अंगूठे अमृत वसै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-२ तक लिखा है.) ८३२४५ (#) आत्मशिक्षा सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, ३३४२६). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमी; अंति: करइ ते शिवसुख लहइ, गाथा-२३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक एक थी सबला एक एक; अंति: खायउ भणभणाट लीछुटी, गाथा-६. ८३२४६. (+) शाश्वतजिनबिंबविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, १६x४०). शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जंपइ सार ए अधिकार ए, ढाल-६, गाथा-६०, ___ (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ८३२४७. (+#) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १४४३१). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४७. ८३२४८. अष्टकर्म विचार, पार्श्वनाथजी स्तुति व महादेव स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०, १२४३७). १.पे. नाम. अष्टकर्म विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणी; अंति: गुरुसंघनी आसातना करे. २. पे. नाम, पार्श्वनाथजी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें ट्रें दें गि; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महादेव स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांते दर्सनं जस्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ८३२४९. (+) वीरस्तवन विज्ञप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. वा. विद्यासागर; पठ. फूलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, ११४३०). __ भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक-३ सूत्र-७६२ से ७६४ का संबद्ध महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: जय सकल नरासुरस्वामी; अंति: समरसिंह० मनह जगीस, गाथा-३९. ८३२५० (#) आसीकपच्चीसी व गीतसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, कुल पे. ५, प्रले. पंन्या. हर्षसौभाग्य (गुरु उपा. जयसौभाग्य); गुपि. उपा. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १२४२५). १. पे. नाम, शृंगार गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मूल नानो नाहलो रे, गाथा-९, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. शृंगार गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: थे मत जाओ परदेस पूना; अंति: पाणी लागणो होजी रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. योगी गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत-योगी, मा.गु., पद्य, आदि: आव्यो आव्यो रे नणदल; अंति: मसरु घाघरो हो जी, गाथा-१८. ४. पे. नाम. आसीकपच्चीसी, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आसिक उभो तुझ रुप; अंति: जिनचंद्र० घणुं लहेसे, गाथा-२५. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सजन इसां कीजीइ जिनमे; अंति: तोहीन यांणो रास, गाथा-२. ८३२५३. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४१२, २२४४५). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १९५ " विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि अर्हतो विश्ववंद्या अति: (-). (पू.वि. "स्मार्तं इत्यादि पाठ तक है. वि. जैनधर्म व अन्य धर्म-संप्रदायों के विषय में विचार विमर्श.) ८३२५४. आहारना बीयालीस दोष, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२१x१२, ७२०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि : आहाकमु १ देसिय २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. ८३२५६. (-) औपदेशिक पद व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे. (२२४१२, १३४२५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जगत मे पार्श्वनाम; अंतिः सरवाले कहा छंद उचार, गाथा-६. २. पे नाम. दहा संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण, औपदेशिक दासंग्रह-विविधविषयोपरि, पुहिं., मा.गु. रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ८३२५७ (+) सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अशुद्ध पाठ. दे. (२२४१२, ११४१९). " सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससिकर निकर समुज्ज्वल; अति: (-) (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ८३२६४. (+) बुढा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५X११, २३x४५). बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दयाज माता वीनवुं गुण; अंति: (-), (पू.वि. 'थे काढीयो पूरन' तक पाठ है) ८३२६५. तीर्थवंदना, संपूर्ण, वि. १९०५, भाद्रपद कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१X१२, १४x१३). शाश्वताशाश्वताजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: सकल तीर्थाधिराज; अंति: नमस्कार होयज्यौ . ८३२६६. ऋषभ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२१x१०, २३१८). " आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि एतो प्रथम तीर्थंकर, अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा - ७. ८३२६७. (+) सीमंधरजिन स्तवन, महावीरजिन स्तोत्र व राजारीसालूरी वार्ता, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X११, १३३२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जगरूप, मा.गु., पद्य, आदि चंदाजी हो म्हे अरि, अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा-५. २. पे. नाम महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८६४, ज्येष्ठ कृष्ण, १. " महावीरजिन स्तोत्र व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, मु. रूप, सं., पद्य, आदि विचुधरंजकवीरककारको अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक- ७. ३. पे. नाम. राजारीसालूरी वार्ता, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासीये में बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपुरनगरका रावे छे. अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) ८३२६८. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०.५X११, ९×२६). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि : आदेस्वर पेहला अरीहंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ तक है.) י 1 , " ८३२६९. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३-४२ (१ से ४२ ) = १ कुल पे. २, जैवे. (२०x११, १३x२८). १. पे. नाम. गोडिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: शांतिकुशल०० सुख लहे, गाथा-३२, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्णमात्र है.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ४३२-४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी अति (-), (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ८३२७०. प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २१.५X१०.५, ८x२७). Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: (-), (पू.वि. साढपो-पुरिमड्ढ पचक्खाण अपूर्ण तक है.) ८३२७१ (4) देवकीराणी, महावीरजिन सज्झाय व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५४१०.५, १८x२८). १.पे. नाम, देवकीराणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवकी सज्झाय, म. रायचंदजी ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८४७, आदि: श्रीवसुदेवनीपट्टराणी; अंति: रायचंद० काठ कानी आया, गाथा-१८. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: नाभ नंदनसुं लागी लव; अंति: जिन कहेत भुददिइऊलागी, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब मोह तारलो महावीर; अंति: दर करो भवपार, गाथा-४. ८३२७४. (८) गजसुकुमाल सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४११, १३४२६). १. पे. नाम, गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिण आया हो सोरठ; अंति: मझार करजोडी रतन भणे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माणकचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जोवण धन प्रावणा दीन; अंति: रचीय बीजली रो चमकारो, गाथा-६, (वि. कर्ता का नाम नहीं है.) ८३२७५ (-) नेमिजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११, १३४३१). १.पे. नाम, दानशीलतपभाव सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दानशीलतपभावना सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)भाव जु उतरो भवपार, (२)धन धन सासहेणरा धणी, __गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमीनाथ साज, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती साज, पुहिं., पद्य, आदि: सहियोजी नेमि क्या; अंति: कियां मोक्ष ठाणाजी, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वएठे वजरदंत वपाल; अंति: दयानत नमो तीन काल, गाथा-८. ८३२८०. (#) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, १५४४६). शारदादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अविरल शब्द मयौघा; अंति: स जयतु सरस्वती देवी, श्लोक-१०. ८३२८१ (+) महावीरजिन व चोवीसतीर्थंकरपरिवार स्तवनादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१x१०.५, १०-१२४३२-३७). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: वीर जिणंद सासण धणी; अंति: धन धन बीर जीणंद, गाथा-९. २.पे. नाम. २४ जिन साधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंपदा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. करमसी, मा.ग., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकर तणो; अंति: श्रीसंघ पणमो सही, गाथा-६. ३. पे. नाम. जैन दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दहा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१, (वि. यह कति बादमें लिखी गइ है.) For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १९७ ८३२८२ (#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२२, मार्गशीर्ष कृष्ण, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. कृष्णचंद्र; पठ. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४११.५, ९x१९). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरजीनी बलिहारी; अंति: जिनेसर वंदो० छंदोजी, गाथा-१३. ८३२८३. रिखभाष्टक, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मंदसौर, प्रले. पं. मेघराज (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१२,११४२५). आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: देव मो दीदार दीजै; अंति: जुगि जुग एक तु करतार, गाथा-८. ८३२८४. (#) औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१२, १६४२७). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवदया, मु. सोहनलाल, पुहि., पद्य, आदि: सव सुनो भविकजन वात; अंति: दयादर्म की खेती, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-कलयुग, पृ. १आ, संपूर्ण. न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: हाथ से कलजुग के दामन; अंति: दर्सन को जाना चाहिये, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कलयुग, न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतो चेतो चेतनदा; अंति: नया तुम्हारी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... म. सोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: पीकर नर हो मस्ताना; अंति: सोहण जिन का कर्माना, गाथा-४. ८३२८५ (4) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पत्रांक नहीं है. पत्र १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, २८४७-१४). आदिजिन स्तवन, म. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर रिषभ; अंति: कपुर०मनना मनोरथ फलशे, गाथा-१४. ८३२८७.(-) चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, ११४२३). चंदनबाला सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: अंगदेश चंपानगरी रिध; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३२८८. (#) व्याख्यान पीठिका व ककाबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, ३२४२३). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असरणसरण भवभयहरण तरण; अंति: वाचना प्रारभ्यते. २. पे. नाम. उपदेशकारक कक्का सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ____ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ तक है.) ८३२८९ (-) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: दलाली., अशुद्ध पाठ., दे., (२०४११, ९४३५). औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: ओर दलाली जीवनेजी करी; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ८३२९० (-) सज्झाय व अढीद्वीप मनुष्यसंख्यादि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४११.५, ११४३०-३७). १.पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणी गल मेरी माता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा २. पे. नाम. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सातक्रोडाकोडीकोडीकोड; अंति: (-), (पू.वि. "एटली कोडाको" पाठ तक है.) ८३२९२. (#) जंबूकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से अनुमानित., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, २३-३०४४५). जंबूकुमार रास, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "प्रबो कर विचारणा" पाठांश से ढाल-६ दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ८३२९३ (-) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १२४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. चंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सिमर श्रीसतगुर के; अंति: पाप सव भव भव के जरनन, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रामपरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुंदर तन रुप अधक छाय; अंति: रामपुरण०सरण तेरी आया, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जग जीव दयादे मेले; अंति: जेनती पद गावनावे, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सोहनलाल ब्राह्मण, पुहिं., पद्य, आदि: सिमर नर महाबीर भगवान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८३२९४. स्तवन व लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५४, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, कुल पे. ४, ले.स्थल. पटियाला, प्रले. मु. हरीचंद (गुरु मु. सीदीराम); गुपि. मु. सीदीराम; पठ. सा. सुरजीजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., दे., (२०.५४११,१०-१२४२१-२८). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: दीज्यो मुक्तनो वास, गाथा-१५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-१५ अपूर्ण है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदिः श्रीमाहावीर प्रभु; अंति: सीपुर असनाजी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. १६ सती लावणी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: त्याग करो सुध मन धनइ, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. महावीजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, लछमन, रा., पद्य, आदि: महावीर प्रभु था वाणी; अंति: लछमन सुखदानीजी, गाथा-७. ८३२९५. चोविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१.५४११.५, १९४३०). २४ जिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: कहु धन धन छीब थारीजी; अंति: ग्यानचंद० चडती रती, गाथा-१६. ८३२९६. अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२४११.५, १०४२८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ दोहा-२ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८३२९७. जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ); प्रले. मु. मोतीलाल (गुरु मु. जगजीवण ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. जगजीवण ऋषि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, ९४२१). जीवकाया सज्झाय, आ. तिलकसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामण कंतसु विनव; अंति: तिलक० पभणी ढाल वैराग, गाथा-१५. ८३२९८पद्मप्रभ, महावीरजिन व नेमिजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:पद्मप्र०. हुंडी:बीरजीनस्त०. हुंडी:राजेमतीस्त०., दे., (२१.५४११.५, ९४२०). For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजि वीर जिणंदने, अति रंगविजय० पाय सेव हो, गाधा - ५. ३. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १. पं. नाम पदमप्रभूजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण पे.वि. हुंडी: पदमप्र पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि परम रस भीनो म्हारो अति पूरज्यो अकल जगीस हो, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि हु रे मोही छू मोरा अंति (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८३२९९. (*) जिनदत्तसूरि व जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१x११.५, १२x२२). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु, पद्य, आदि दादा चिरंजीवो सेवकजन; अति जिनचंद० मनवंछित फलजो, गाथा - ११. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि गाजे जिणकुशल गडाले, अंतिः जिनभक्ति जतीसर वंदे, गाथा १६. ८३३०० स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे. (२१.५x१२, १२x२५). " " १. पे. नाम. बिज थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अति: कहे पुरो मनोरथ माय गाथा ४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. २. पे नाम. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी अति निस्सेसजाड्यापहा श्लोक ८. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र १०८ नाम गर्भित, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा अति: (-). (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) १९९ संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४. ८३३०३. औपदेशिक पद व सरस्वती स्तोत्र द्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (१८.५x११, १०X२६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. अ.भा., पद्य, आदि करिमा बलख्या यबरे, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पद-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३३०७, (२) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५x११.५, ११x२८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. श्रुतस्कंध २ अध्ययन-१ पाठांश- "राय परिसा गया" से "सुदत्ते नाम अणगारे आले तक है.) ८३३०८ (#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३x११, ९X३० ). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मृषावाद आलापक अंतिक कुछेक पाठ अपूर्ण से परिग्रह आलापक प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ८३३१५. (#) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२x१०.५, १२X३३). Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमाल देवकीको नं; अंति: चोथमल० नित समरो भाई, गाथा-१८. ८३३१६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व मंत्र, अपूर्ण, वि. १८७०, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. २, प्रले. पं. मनोहरसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्याणमिंदरस्तोत्र., संशोधित., जैदे., (२१.५४११, १२४२८). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से २. पे. नाम. माहाकाली मंत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण, अन्य. मु. मानसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम), प्र.ले.पु. सामान्य. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो काली महाकाली; अंतिः ठः ठः ठः स्वाहा. ८३३२३. (+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११, १४४३८). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. "ए सुख भोगवी पछइ बीजा सुर" पाठ तक है.) ८३३२५. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, २०४३३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सुखलाभ इष्टि मिलइ, संपूर्ण. ८३३२७. महावीरजिन स्तवन व प्रश्नकुंडली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४९.५, २६४१४). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हु तो सरसतीने; अंति: गुणचंद्र गुणगाय रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. प्रश्नकुंडली, पृ. १आ, संपूर्ण... ज्योतिष संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संवत् १८१९ना वर्षे; अंति: प्रश्न समय. ८३३२८. (+#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, ९४२७). प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: नदी नाग सोनार नाई आप; अंति: नफर कर जांनीयो. ८३३२९ (4) नेमराजिमती बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११.५, १२४३४). नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: ध्याउं श्रीजिननाम कौ; अंति: (-), (पू.वि. श्रावण मास वर्णन अपूर्ण तक है.) ८३३३०. गजसुकमाल पद व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, दे., (१८x११, ९४२३). १. पे. नाम. गजसुकमाल पद, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. गजसुकमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेव्यानौनिधितूठीहां, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहो जगत गुर एक सुणिय; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८३३३३. (#) नरकभूमिविवरण, रस श्लोक व पूजाविधि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११,११४३३). १. पे. नाम. सात नरकना बलया, पृ. १अ, संपूर्ण. नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. ९ रस नाम श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ रसनाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: शृंगार१ हास्य२ करुणा; अंति: शांताश्च९ रसा भावाः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जिनपूजा विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २०१ मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८३३३४. (#) गजवर्णन, आदिजिन आरती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, २०४१९). १.पे. नाम. गजवर्णनं, पृ. १अ, संपूर्ण. गजवर्णन गाथा, अप., पद्य, आदि: अउरंग ओद्रग इंसास; अंति: किआं ठुआं पाडिगड्ढं. २. पे. नाम, आदिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. __पुहिं., पद्य, आदि: भभकंति वाजि भेर घणण; अंति: नाभनंदनकी आरत उतारयू, का.-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बूढा ते पण कहीइ बाल; अंति: समयसुंदर० चतुर सजाण, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने अंत में गाथांक गलती से ६ के स्थान पर ११ लिखा है.) ८३३३६. (+) आयष्यविचार व प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १४४३०). १.पे. नाम. विविध जीव आयुष्य विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनो आउखो वर्ष; अंति: तीर्यंचनो जाणवौ. २.पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मुंहपत्ती वंदणयं; अंति: (-), (पू.वि. उपधिपडिलेहण आदेश अपूर्ण तक है.) ८३३३९ (-) मायाबीज स्तोत्र, स्तुति व विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१४११.५, ७५४१७). १.पे. नाम. मायाबीज स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णं लयमयसिधः; अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१५. २.पे. नाम. मायाबीज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मायाबीज स्तुति-२६ श्लोक, सं., पद्य, आदि: सवर्णपार्श्व लयमध्य; अंति: मंत्रवद्भः कदाचन, श्लोक-२६. ३. पे. नाम. मायाबीज विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ___ सं., गद्य, आदि: यदा तु कस्यापि निमित; अंति: (-), (पृ.वि. होम विधि अपूर्ण तक है.) ८३३४५. (#) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालीयो व मृगावतीजयवंती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: चक्री. हुंडी: चक्रीसं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, २०४२९). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकालने तिण समें; अंति: संतनर आवौ नीमल मजारी, ढाल-४. २. पे. नाम. मृगावतीजयवंती सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. मगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: कहे जेवती भोजाइ; अंति: चोथमल. आज मारा जिण, गाथा-१७. ८३३४६. महावीरजिन गहली व दिवाळी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. श्राव. खुबचंद; पठ. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १०x१९). १. पे. नाम, महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत आ आ रे चंपा; अंति: शिवपुर नगरीमां वास, गाथा-७. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दिवाली थइ आज; अंति: कवि० दुनिया फेरो टाल, गाथा-५. ८३३६६. (#) रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी: रोहणीरो स्तव., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११, १०x१७). For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतप स्तवन, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८३३६८. (+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४११, १४-१६x२५). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वंद सतगुरु देव; अंति: ते तप गहे नारी, गाथा-२५. ८३३७२. (+) तीर्थंकरबल वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रारंभ में अज्ञात कृति का मात्र अंतिम पाठ है. पत्रांक अनुमानित., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १०x२५-२९). तीर्थंकरबल वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: १२ नरनो बल १वृषभनइ; अंति: एतावता अनंत बलना धणी, संपूर्ण. ८३३८१ (+#) पद्मावती आलोयणा, औपदेशिक पद व मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:पदमाव०. हुंडी:इग्यारसरो०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, ११५१९). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्माव उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: लागो आतमराम सुनेहरा; अंति: दानत०वरभत आनंद मेहरा, गाथा-३. ३. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:इग्यारसरो मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८३३८३ (#) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: मयणरेहानी चउपई., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११, १५४२९). मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५३७, आदिः श्रीजिणचउवीसइ नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ८३३८४. सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ११४४१). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२५ तक है.) ८३३८९ नेमराजीमती बारमासो व सभाषितानि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. पानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१०.५, ११४३५). १.पे. नाम. नेम राजीमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासा, म. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखी री सांभलि हे तं; अंति: लील विलासी हौ लाल, गाथा-१६. २. पे. नाम. सभाषितानि, पृ.१आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: मुख पद्मदलाकारं वाचा; अंति: नर मेल्यां ही फाडंत, श्लोक-२. ८३३९६. आदिजिन जन्माभिषेक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२०.५४११.५, ११४२८). आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जयजय करीए जननी ल" पाठांश तक लिखा है.) ८३४१०. निशीथसूत्र बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०.५४१२, १७४३९). निशीथसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हत्थिकर्म करने वाला; अंति: (-), (पू.वि. साधु उपकरण अधिकार अपूर्ण तक है.) ८३४१४. ११ गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९x१२, १२४१८). ११ गणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: ॐ नमः इंद्रभृतिजी; अंति: गावीयारी लोएजीम दली. गाथा-२५. ८३४१६. महालक्ष्मी स्तोत्र व वशीकरण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २०३ १. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततो; अंति: सौभाग्यं भूतिमिच्छता, श्लोक-११. २. पे. नाम. वशीकरण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह , मा.ग., गद्य, आदि: ॐ तारा त्रिपुरातोतला; अंति: ते मुझ आवे पाय पडता. ८३४२१. सरस्वतीदेवी स्तुति व सिद्धसारस्वत स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, ११४३२). १. पे. नाम. सरस्वती देवी स्तुति, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्मरूपा सरस्वती, श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८३४२५. (+) पद्मावती आलोयणा व थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१x१२, ६४१९). १.पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, थोकडा संग्रह, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आ पइठा पर पइठा तदुभइ; अंति: (-), (पू.वि. अब्रह्मसेवन अपूर्ण तक है.) ८३४२७. (+) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११, २८x२१). १.पे. नाम. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चुल्लग पासग धन्ने; अंति: सदा दुर्लभं, श्लोक-११. २.पे. नाम. मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो गोयमस्स सिद्ध; अंति: कीजे दिवाली रात्रै. ८३४२८. (4) पगाम सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १३-१६४३०).. १.पे. नाम. पगामसज्झाय सूत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. "जावंति के विसाहुं" पाठांश से है.) २. पे. नाम. मंत्र तंत्र संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐनमो सिगी वाजे धडहड; अंति: सासरे रहे सही. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मु. सिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हाथि सहसअढार लाख; अंति: ह हार्यो तु जितिओ, गाथा-३. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथासंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गयदा गयद पर सीघ वीरा; अंति: प्राण तूमारे पास, (वि. ५ गाथा हैं.) ८३४२९. (4) विपाकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित अतः अनुमानित., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२२.५४११, १३४३६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ मृगापुत्र अध्ययन अपूर्ण मात्र है.) विपाकसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३४३० (+) भलेनो अर्थ व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२, १८x२९). १.पे. नाम. भलेनो अर्थ, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. भले विवरण-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, म. जगराम, मा.गु., गद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: ___पामस्यो इति तत्त्वं, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- जन्मोत्सव, पृ. ५आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे सुधर्मा पति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३४३१ (+) लघुशांति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४१२, १४४३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ८३४३७. पद्मावतीदेवी स्तव व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२१४११, १०४२८-३३). १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-३०. २.पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: गंगा भगवती सरस्वती; अंति: ऐ एसो पद्मावती नमः. ८३४४२ (+) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४४१-५२). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वतंत्र व पत्रांक न होने से पूर्णता परिमाण अनिश्चित.) ८३४४३. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १२४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ८३४५१. आगमिक विविध विषय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२२४११.५, १६४३७). __आगमिक विविध विषय विचार, पुहि., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. 'नेत्तेहिं पलिछन्नेहि' पाठांश से ४ द्वार में से अनुगमद्वार ३ तक है.) ८३४५२. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२४१०.५, १२४२७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण ___ से २६ अपूर्ण तक है.) ८३४५३. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२१x११,१०४२४). महावीरजिन स्तोत्र, आ. मनिसंदरसरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहअणजण; अंति: मणिसुंदर० दाणउ अयरा, गाथा-५. ८३४५४. (+) कल्पसूत्र की कल्पकौमुदी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, क्रीत. मु. चंद्रदेव; विक्र. पं. चैन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पकोमुदी. सं.१८७८ आषाढ सुदी ११ को क्रित-विक्रित का उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२१.५४११, १४४२९). कल्पसूत्र-कल्पकौमुदी टीका, मु. विनयभक्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विनय० च तद्बुद्धैः, (पू.वि. अंतिम प्रशस्ति मात्र है.) ८३४५६. पद्मावती स्तोत्र व अन्नपूर्णा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १८४४४). For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-८. २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचरत्नअन्नपूर्णा स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: नित्यानंद पराभयकरी; अंति: करी कासीपुरा धीश्वरी, गाथा-५. ८३४५७. पार्श्वजिन व शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, २४४१३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं तु भवेभवे, श्लोक-५. ८३४५८. (+) भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११, १०४३३). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ८३४५९ (+) क्षामणक सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२.५, १३४२६). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमा०; अंति: (१)त्थार पारगा होहित्ति, (२)सम्मतं देवसियं भणीजा, आलाप-४. ८३४६२. पार्श्वजिन स्तोत्र व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सायरा जि.उदयपुर, प्रले. अमरचंद, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १०४२६). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: भेद विग्यांन जग्यौ; अंति: रे करजोर बनारसी बंदन, पद-३. ८३४६४. (+) दश श्रावककलक व सिद्धांत गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १०४३२). १. पे. नाम. १० श्रावक कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वाणियगामपुरम्मि आणंद; अंति: बारसवयधारया सव्वे, गाथा-१२. २. पे. नाम. आगमिक दृष्टांत गाथासंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: आयरियं परंपरेणाय आगय; अंति: लक्खणमाइण नायव्वा. ८३४६६. औपदेशिक कवित्त, तपगच्छनायाक स्तुति व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११.५, १९४२०). १. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरे जब इस जटा; अंति: इह परख जे सिघ तुह. २. पे. नाम. तपगच्छनायक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. तपगच्छ नायक स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि जेम सकल सुख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सौराष्ट्र सुखदे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक लिखा है.) ८३४६८. महावीर, पार्श्व व नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११, २६४१६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधान, श्लोक-४. ८३४६८. महावा महावीरजिन स्तुति दरमुदारमवद; For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ८३४६९ (+) वीरथुई अज्झयण व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९८०, ?, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १४४३५). १. पे. नाम. वीरस्तुति अज्झयण, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: वर्द्धमान त्रीसुखकरौ, गाथा-१९. ८३४७०. (4) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४१०.५, ८x२५). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वंछितं नाथं, श्लोक-४. ८३४७१ (+) भोजराजा श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. तिलोक ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदे०. अंत में "पुनमरखार्थं" लिखा है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२१.५४१२.५, ९४३२). भोजराजा श्लोक, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न; अंति: रूपेण मृगाश्चरंति, श्लोक-१. भोजराजा श्लोक-बालावबोध, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: कहत कुरंग तब कस्तुरि; अंति: (१)तिलोक ऋषि० भारी हे, (२)तिलोक० प्रभावे. ८३४७३. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२४१०.५, १०४२७). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-३१. ८३४७४. औपदेशिक बारमासा व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:बा०., दे., (२०.५४११, १४४४०). १.पे. नाम. औपदेशक द्वादशमासा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक बारमासा, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: चेत कहे तुं चेतन; अंति: रकाश किया चंद्रायणा, गाथा-१३. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभ, मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं गतमांहि भ्रमता; अंति: या पावै सुख श्रीकार, गाथा-११. ८३४७५ (#) पद्मावतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १२४३१). पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकुरुकुंडणंदंड; अंति: पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ८३४७६. गोडीपार्श्वनाथ बारमासो व दीवाली स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १०४२५). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बारमासो-गोडीजी, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सावण विनउ गुणपत; अंति: नाथसिघजी रह्या चोमास, गाथा-१५. . २. पे. नाम. दीपावलीपर्व सज्झाय, प. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन मंगल एह सकल दिन; अंति: हरखविजय० हरखे गाई रे, गाथा-९. ८३४७७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९९०, पौष शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११, १२४३९). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: ललु नाम्ना० शोधितं च, श्लोक-३७. ८३४८६. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४१०.५,७४२७). For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 2 हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० सुभाषित श्लोक संग्रह पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि वापीवप्रविहारवर्ण अंतिः कुब्जभूतोथ मानवा, गाथा-८. ८३४९६. धन्नाकाकंदी सज्झाय व दलाली सज्झाय- धर्मदलाली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी दलालीकासजाइ, वे. (२०.५x११.५, १७४३०). १. पे नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्ना अणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: रतन कहै करजोड, गाथा - २६. २. पे. नाम. दलाली सज्झाव- धर्मदलाली, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलली जीवनेजी करी अनं अति जावे आगे तुमार अखतार, गाथा - ३१. ८३४९७. ऋषभदेव पारणुं व औपदेशिक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२९१x११.५, १३X२७). १. पे. नाम ऋषभदेव पालणु, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पारणा, मा.गु., पद्य, आदि: (१) गडा एक सौ आठ सबी मन, (२) ए मारी रस सलडीया आद; अंति: गया पछववत्याजजकारे, गाथा - ६. २. पे. नाम. औपदेशिक स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मा.गु., पद्य, आदि: पुरब सुकरत पुन करीने; अंति: मुक्त न पहुता कोय, गाथा-१५. ८३४९८. सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. हुंडी तव० पत्र, दे., ( २१.५X११, १०X३०). १. पे. नाम. सम्यक्त्व स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि समकित विन जीव जगत, अंतिः भवमे दुख सबि सटक्यो, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: असुभ करम मल झाड के; अंति: र रतनसागर कहे सुर रे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २०७ आध्यात्मिक पद, मु. चानत, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मानले असांडी चत; अति द्यानत० गति गतीया रे, गाथा- ७. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) , ८३५००. गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१, ३)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२१X१२, १५x२९). , १. पे नाम. जिनभक्तिसूरि गुरुगुण गीत, पृ. २अ संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ में किसी अज्ञात सवैया का मात्र समाप्तिसूचक संकेत है. मा.गु., पद्य, आदि श्री खरतर रैखैल कहाण; अति: गुणसायर जिन भगतिगुरु, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनलाभसूरि गीत, पृ. २अ -२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: गायो गेहणी सोहले; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम जिनभक्तिसूरिजी गीत, पृ. ४-४आ, संपूर्ण जिनभक्तिसूरि गीत, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकामिनी सुगुरु; अंति: सांनिध सुजस पायौ, ढाल -२, गाथा - ९. ४. पे नाम. जिनलाभसूरि गीत, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. " "" मा.गु., पद्य, आदि: वडीवधारी धरा मै सोभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८३५०१. कल्पसूत्र टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२६.५x१२.५, १३४३७-४०)कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा, समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः अति: (-), (पू. वि. पीठिका अपूर्ण मात्र है. ) सूचक ८३५०२. (+#) चतुर्दशी स्तुति, कालिका छंद व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१x११.५, २०x२१). For Private and Personal Use Only १. पे नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि ड्रे ड्रे कि द्रे, अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. कालिका छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. कालिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: दिवि कांगुरै विराजे; अंति: देवि अंगूठे विराजे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जसद उदे परीज ४; अंति: (-), (पू.वि. विधि अपूर्ण है.) ८३५०३. पारीया विचार १२ पर्षदा स्तुति व वीतराग श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. गुणविजय गणि (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); गुपि.पं. लक्ष्मीविजय (गुरु ग. खेमविजय पंडित); ग. खेमविजय पंडित (गुरु ग. खुसालविजय पं.); ग. खुसालविजय पं. (गुरु ग. सुखविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२०४१२, ४४२७). १.पे. नाम. पारीया विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पारिया विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इशान भवनपति१ जोतषी२; अंति: ज्येष्ठ ७ पगले पोहर. २. पे. नाम. १२ पर्षदा स्तुति सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्; अंतिः संभूषितं पातु वः, श्लोक-१. १२ पर्षदा स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अगिनिकुणे गणधरादि; अंति: समोसरण मध्ये जाणवी. ३. पे. नाम. वीतरागभक्ति श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दिवारात्रौ सुखेदुखे; अंति: चरणं सरणं मम, श्लोक-१. ८३५०४. राजेंद्रसूरि, आदिशांति व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., दे., (२०.५४११.५, २०४३३). १. पे. नाम. राजेंद्रसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. गुलाबचंद, पुहि., पद्य, आदि: इसे मेरी जहाज भव; अंति: दोगे तो क्या होगा, गाथा-४. २. पे. नाम, आदिशांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिनशांतिजिन स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: मे अरज करुं सिरनामी; अंति: विन मोल मोल मोल, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. फकीरा, पहिं., पद्य, आदि: सब मिलकर मुख से बोलो; अंति: हर तुम पीर पीर पीर, गाथा-५. ८३५०६. (4) पार्श्वजिन स्तवन द्वय व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११.५, १८x२४). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: अक्षयसद्गुणगण शुभसरण; अंति: मह्यंदेता कमला रे, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: मुक्तालतावन्मुदे, श्लोक-७. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम तीरांजल ले चल्यो; अंति: करुं गुण भरीयो गाजंत, दोहा-२. ८३५०७. (+) कर्मप्रकृति बोल व बासट्ठ मार्गणा, अपूर्ण, वि. १८४९, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, १०४३५). १. पे. नाम, कर्मप्रकृति बोल यंत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., को., आदिः (-); अंति: ८ अणुपूव्वि४ वीहगगई२, (पू.वि. नामकर्म बोल अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बासट्ठ मार्गणा, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६२ बोल-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गई इंदीय काय जोए वेए; अंति: (-), (पू.वि. गुणस्थानक-१० कर्मप्रकृतिबंध विचार अपूर्ण तक है., वि. संदर्भ में कुछ गाथाएँ दी गई हैं.) ८३५०८. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने ___ से अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२१४११, १२४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २०९ ८३५०९ (+) वज्रपंजर स्तोत्र व अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०४११,१३४३०). १.पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ८३५१० (#) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०,५-९४२५). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासं, श्लोक-७. ८३५११. पदवीकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२०.५४११, २४२१). २३ पदवी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सत्तमम्मि समहयगयति, गाथा-४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ अपूर्ण से है.) २३ पदवी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामे शेष २० न पामे, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ८३५१३. (#) सरस्वती स्तोत्र, प्रास्ताविक दोहा व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १७४३४). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: या कुंदेंदु तुषारहार; अंति: भूयात्सदा शर्मदा, श्लोक-१०. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: जउपति संपति विमुखकत; अंति: तउ गोप गोपाल सहाय, गाथा-१. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: गवरीपुत्र गणेश वर दे; अंति: पारसनाथ अप्रमपरे, गाथा-८. ८३५१४. (4) प्रतिक्रमणसूत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वडाली, प्रले.पं. माणिक्यविजय; पठ. मु. हेमचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, १३४२९). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-इच्छामिठामि व प्राणातिपातसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर पासजी पूजीए; अंति: नयविमलने वंचित पूरति, गाथा-४. ८३५१६. महावीरजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२२४११, १३४३१). महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अरजवमदवगुणसंयुती, गाथा-९०, (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से है.) ८३५१७. जैनमंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२०.५४११, ८४३०). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्वर्गापवर्गगममार्ग; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठ अपूर्ण हैं.) ८३५१८. सूत्रकृतांगसूत्र, अध्ययन-११, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:मोखमागर., दे., (२०४११, १५-१९४४०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३५१९ (4) बरडावीरमंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१०.५, १८x१५). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: बरडावीरजी सत छ; अंति: कुलमरजाद कुरु स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३५२० (+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०.५४११, १०x२२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ८३५२१. जलयात्रा मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४११, २४१८). __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: देवताभ्यो नमः स्वाहा. ८३५२६. क्षेत्रमान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४११.५, १८x२०). क्षेत्रमान विचार, सं., प+ग., आदि: सप्रदेशोप्यभेद्यस्त; अंति: यथागमं ज्ञातव्यः. ८३५२९ (#) दिगंबर गच्छादि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४११, १२४१९). दिगंबर गच्छादि विचार, सं., प+ग., आदि: श्रीमूलसंघे संघ४ गछ१; अंति: नामभावात्कालदोषतः. ८३५३१ (#) महावीरजिन पारणं, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शीतलनाथजी प्रशादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x११.५, ८x२०). महावीरजिन पारणं, म. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला ओ पुत्र; अंति: अमी० थास्ये लीला लेर, गाथा-१८. ८३५३३. (#) भरहचरित्र व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५४११, १२-१५४३१-४२). १. पे. नाम. भरह चरित्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले.ऋ. आणंद; पठ.सा. लीछमा (गुरु सा. फतुजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तएणं से भरहे राया; अंति: सव्व दक्खप्पहीणं. २. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: माहस सरीरे कागकः; अंति: कदे लागै नही लीगार, गाथा-७. ८३५३४. (+) सरस्वती स्तोत्र, पार्श्वनाथ सतोत्र व सम्यग्दर्शन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४११.५, १५४२०). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथस्तोत्र-यमकबंध, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, म. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: पद्मप्रभ० जगत्मंगलं, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सम्यग्दर्शन गीत, प. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व गीत, पुहि., पद्य, आदि: दरसण षटदरसण निज मानै; अंति: तीरीये भवजल पार जी, गाथा-७. ८३५३५. बृहत्शांति स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (१९x११, ११४३०). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणत; अंति: सुखी भवत् लोकः. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-४ अपर्ण तक है.) ८३५४१. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१०.५,१३४३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८३५४२ (4) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्राव. भोजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १२४२६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ८३५४५. पंचमुखीहनुमत्कवचादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४११.५, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे नाम. पंचमुखीहनुमंत कवच, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. सुदर्शनसंहिता- पंचमुखहनुमत्कवच, हिस्सा, सं., प+ग, आदि ॐ अस्य श्रीपंचमुखी, अंतिः नित्यं महाबलसमन्वितं २. पे. नाम. पूजा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. हनुमत्पूजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: राती धोती, लाल अंगोछ; अंति: भवति कार्यसिद्धिः. ३. पे. नाम. हनुमान अष्टक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. हनुमानाष्टक, पुहि., सं., पद्य, आदि जय जय बजरंगी जालिम अंति: सरने जानं गिरतारं, गाथा-८. ४. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि ॐ ८३५४६. (+) साधुवंदितुसूत्र व व्याख्यानश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी पाठ., जैदे., ( २१.५X११.५, १२x१८-३०). १. पे नाम. साधुवंदितु सूत्र, पृ. ११-४अ संपूर्ण ले. स्थल, डीसानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि पठ. पं. देवविजय, 7 प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ह्रीं श्रीं जय जय अति जोडी सुमतिरंग वीनवै, गाथा- १५. श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि चत्तारि मंगलं अरिहंत अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं. २. पे नाम व्याख्यानश्लोक संग्रह, पू. ४आ, संपूर्ण प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एवं जाणी भविकप्राणी; अंतिः श्रीगुरुभ्यो नमः, गाथा-६, (वि. गाथा-३+३.) ८३५४७. पडिकमणासूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२१.५x११, १०x२५) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ; अति: वंदामि जिणे चठवीसं. ८३५४९. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५X१२, १२x२४-२८). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अति: (-), (पू.वि. स्तेय द्वार प्रारंभिक अंश तक है.) ८३५५० (+) स्तुति, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ९-५ (१ से ५) =४, कुल पे. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२१.५x११.५, ११x१९-२२) १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कीजे जे करजोडने दादा; अंति: महिर निजर अवधार हो, गाथा- ९. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन. पू. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि मन मोहनगारो साम सहि; अंतिः सफल आपणो करे जी लो, गाथा- १०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रथम स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे यदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. २११ मु. • मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: वामातणौ नंदन पार्श्व; अति: श्री मुनिमेरु बोले, गाथा-८. ५. पे नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. ९अ संपूर्ण. , सं., पद्य, आदि प्रथमं भारती नाम अंतिः प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-४ (वि. प्रतिलेखक ने दो श्लोक को एक श्लोक लिखा है.) 1 ६. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि या देवी स्तूयते अति हरतु मे दुरितम्, श्लोक-३ (वि. श्लोक ६ से ९. प्रतिलेखक ने दो श्लोक को एक श्लोक गिना है व श्लोकांक पूर्व पेटांक से क्रमशः लिखा है.) ७. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि सिद्धोविज्जायचक्की, अंति महं तित्थमेयं नमामि गाथा-१, (वि. श्लोक-१० से ११. प्रतिलेखक ने दो श्लोक को एक श्लोक गिना है व श्लोकांक पूर्व पेटांक से क्रमशः लिखा है.) ८. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीऋषभस्ततोजितजिनः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक का तृतीय पाद अपूर्ण तक है.) ८३५६६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक खंडित अतः अनुमानित., जैदे., (२१.५४११, १२४३३). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा-२६ से है.) ८३५६८. सनत्कुमार चौढालीयो, आध्यात्मिक पद व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२१४११, १६४३३). १.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण काले ने तिण समे; अंति: जाय बीराजीया मोक्ष, ढाल-४. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आतम सुन लीजै तने; अंति: केइ भोगवीया दुख अपार, गाथा-६. ३.पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: सिरि सिरिमिंदर सायबा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८३५७१ (+) शत्रुजयमंडण आदीश्वरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. तिमरि, प्रले. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १६x४६). १.पे. नाम. गृह विचार, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विपत्तिश्च रोगभयम्, श्लोक-७६, (पू.वि. श्लोक-६७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लग्न विचार, पृ. १५अ, संपूर्ण, वि. १८४०, भाद्रपद कृष्ण, ११. सं., गद्य, आदि: पांच५ इग्यारै११ सतर; अंति: अन्यलग्न भवैतिनं. ३. पे. नाम. शेव्रुजयमंडण आदीसर स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिरतिलो; अंति: अविचल लील विलास, गाथा-११. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ८३५७५ (+) प्राणप्रियभक्तामर सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११, १४४४९). भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादपूर्तिरूप-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: प्राणप्रियं नृपसुता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र-चतुर्थपादपूर्तिरूप का टिप्पण, सं., गद्य, आदि: श्रीनेमिनाथं-राजीमति; अंति: (-). ८३५८५. पडिवा स्तति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ११४२१). एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० होइ लीला जी, गाथा-४. ८३५९२. सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८७२, पौष कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पोसालिया, प्रले. पं. रंजतविजय; पठ. श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४११, ९४३०). सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उद्धरणं वेद; अंति: कर वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६ ८३५९४. दानशीलतपभावना संवाद व विवेकचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८०-७९(१ से ७९)=१, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४१०.५, ९४२०). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ८०अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८४९, फाल्गुन शुक्ल, १५, सोमवार. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २१३ उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदिः (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, (पूवि. ढाल-४, गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विवेकचिंतामणि, पृ. ८०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आप निरंजन हे अविनासी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८३५९५ (+) अध्यात्मकल्पद्रम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.२,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११.५, ९४३४). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: अथायं श्रीमान् शांत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है., वि. कहीं-कहीं गुजराती शब्दार्थ दिया हुआ है.) ८३५९६ (#) वंदितसत्र व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, १९४३०). १.पे. नाम. वंदितुसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्विसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपूरे रलीयामणो रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ८३६००. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२१.५४१२.५, १३४२५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ८३६०२. चिंतामणिपार्श्वनाथनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६५, पौष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नानालाल हरीनंद लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ठे.खडाखोटडीना पाडामां., दे., (२१.५४११, ९४३५). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमदेवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिपार्श्वनाथः, श्लोक-७. ८३६०३. आत्मावैराग्य सज्झाय व पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, अपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. लहिया ने पत्रांक-१ लिखा है, परंतु प्रथम कृति अपूर्ण होने से अनुमानित पत्रांक २ दिया है., जैदे., (२२४११, १०-१२४३५). १. पे. नाम. आत्मावैराग्य सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मान परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुगत मुगत सुख लेय रे, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: दिव सुंदर सौख्य भरम्, श्लोक-७. ८३६०४. ग्रहशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२०४११.५, १२४३०). ग्रहशांति स्तोत्र-बृहत्, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ से २३ तक है.) ८३६०५. मेघ वर्षादिमंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१२४११, ९४२७). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८३६०६. कुरगडुमुनि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १३४४०). १. पे. नाम. कुरगडूऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुरगडुमुनि सज्झाय-उपशमविशे, मु. धनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: उपशम आणो उपशम आणो उप; अंति: धनविजय गुण गाया रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित जोयनइ जीवडा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथांक नहीं लिखा है "मंगल परिगता भला" पाठ तक लिखा है.) ८३६०७. (#) क्षामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१०.५, १३४४१). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमा०; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ८३६१८. (+#) सम्यक्त्व के ६७ भेदबोल व ७ नयनाम श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११,१७४३९). १. पे. नाम. ६७ बोल सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउद्दहणा ४ तिलिंग ३; अंति: विसुद्धिं च समत्तं, गाथा-२. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)च्यारसद्दहणा ४ जीवा, (२)जीवादिक पदार्थ जाणवो; अंति: क्षय थकी मोक्ष छेइ. २. पे. नाम. ७ नयनाम श्लोक सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ नयनाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: नैगमः१ संग्रहश्चैव२; अंति: एवंभूत७ नया स्मृताः, श्लोक-१. ७ नयनाम श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: अन्यदेवहि सामान्य; अंति: देवं भूतोभि मन्यतैः. ८३६१९ अकडमचक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कृष्णदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अकडमचक्र., जैदे., (१९.५४११.५, १४४२६). अकडम चक्र, सं., पद्य, आदि: एकबीजंतथाकूटं माला; अंति: देव अरीमूलानीकंदयेत्, श्लोक-१३, (वि. अंत में कोष्ठक दिया है.) ८३६२९ (+#) सप्तव्यसन निवारणश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४११, २७४२०). ७ व्यसन निवारणश्लोक संग्रह-विविधधर्मगत, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८३६३०. विविध श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१२, १०४३५). विविध श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: जो समो सबभूएसू तसेसु; अंति: नादः पंचमश्चोपवेदः, (वि. भिन्न भिन्न विषय के श्लोकों का संग्रह है.) विविध श्लोक संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जिको जीव रागद्वेष; अंति: अजीवसब्द मिश्रसब्द. ८३६३१. (#) नेमिजिन स्तुति, कवित्त व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. कपूरचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५४११, ११४२३-३४). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदु पाय; अंति: मंगल करे अंबक देवीयै, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. रुघनाथ भंडारी, रा., पद्य, आदि: जेण काले मस्करा घण; अंति: रुघनाथ० कालमांहै अजा, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: पकड मौन रहीये कहीये; अंति: कल्याण एक सब रहै, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण... औपदेशिक दहो-धनहीन, पुहिं., पद्य, आदि: जा दिन वित्त न आपणे; अंति: दिन हर वैरी होय, गाथा-१. ८३६३२ (+) आचार्य सदारंगजी गीत, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धनो ऋषि (गुरु मु. अमर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१७.५४११, १३४२२). सदारंग आचार्य गीत, म. धनो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत प्रणम् हो सदगुर; अंति: धनो० पामै सुख थाय, गाथा-७. ८३६३३. शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्रले. मदन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. रुपकवर नेसराए., दे., (२१.५४११.५, १६४३०). For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २१५ शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहीब हो; अंति: समयसुंदर० जनमन मोहिए, गाथा-१५. ८३६३४. (4) पार्श्वनाथजीरी निसाणी, अपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पठ. मु. नेमजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४३०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ८३६३५ (4) स्तवन संग्रह व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, १४४२८). १.पे. नाम, नाकोडातीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुधी आसता देव; अंति: म्हारी चिंता चुर, गाथा-७. ३. पे. नाम. पुष्प श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. पूष्प दूहा, पुहि., पद्य, आदि: मधुर शीतलबास गुलाबकी; अंति: बाससु सुंदर केवडौ, गाथा-१. ८३६३९ (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१३, १०४२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (प.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) ८३६५०. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (१९.५४१२.५, १३४२८). यन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पूछीसुणो समणा माहणाए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ८३६५३.(+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०, ११४२७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: (-), (पू.वि. 'अकाले कयो सज्झाओ कालेनक' पाठ तक है.) ८३६५४. उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२०.५४१०.५, ९४२५). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: स्वामीने नमः स्वाहा, गाथा-१३, (वि. विधिसहित अपूर्ण.) ८३६५६. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १६x२८). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ८३६६६. सामायकना बत्रीसदोषनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४११.५, १२४३०). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण; अंति: गणी कान्हजी इम भासे, गाथा-८. ८३६६८ (#) साधुवंदना व पंचमीतप सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५४१०, ६x२०). १. पे. नाम, साधुवंदना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: पहिला प्रणमुं गिरवर; अंति: कांतिविजे० गुण गाय, गाथा-३९. २.पे. नाम. पंचमीतप सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचमीतिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: शुभवाणी देजो वर सारद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१६ ८३६६९ होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे, (२०.५x११, २३४५७). होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अथ श्रीचतुर्विंशतितम, अंतिः तत्र यत्नो विधीयतां. ८३६७०. मुनिगुण सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, दे., (२३X१२, ४३X२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिगुण सवैया, रा., पद्य, आदि पाप पंथ परहर मोख पंथ, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा-८ तक लिखा है.) ८३६७५ गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैये. (२१.५x११, १३३१). " " गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १० अपूर्ण तक है.) ८३६७६. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२१.५x११, १२x२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. 'पणवीसकोडिलक्खुतेवन्ना अठावी पाठ तक है.) , ८३६७८. प्रत्याख्यानसूत्र व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१x११, १३-१७४२५-२७). १. पे नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगेए सूरे नमोकारसहिय; अति गारेण वोसिरामि, २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि तु तो महाविदेहना अति गुण गाणे ताहरा जी, गाथा- ९. ८३६८० (+) स्नात्रपूजा विधिसहित अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र.वि. हुंडी:स्नात्रपु०., संशोधित., जैदे. (१७१२, १०x२१). , स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पच. वि. १८वी आदि (-) अंति (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल ६ त्रुटक की वधावीया जिनवर गाथा अपूर्ण तक है.) ८३६८५. शारदामाता स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२०.५x१०.५, ७X१८). भुवनेश्वरी अष्टक, सं., पद्य, आदिः ॐ ऐं ह्रीं मंत्ररूपे, अंति (-), (पू.वि. श्लोक -५ अपूर्ण तक है.) ८३६८६ (#) श्रावकविधि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३८-३६(१ से ३६) = २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५X११, ८x२३). श्रावकविधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मनरंगे प्रणमी सरसती अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) " ८३६८७. (#) पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५X११.५, १२x२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि : उगए सूरे नमुक्कारसीय; अंति: तस्स मिछामिदुक्कडं. ८३६८८ साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ८५, जैदे. (२१x११.५, १७३२). " पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि नमो अ० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं ८३६८९. वीरस्तुतिनाम अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२२x११.५, १२x२९). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्म, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अति आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. ८३६९०. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : १० पच०., दे., (२०.५X११.५, १६X३७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. ८३६९१ (+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-संशोधित., For Private and Personal Use Only जैवे. (२०.५x११, १२४३३). "" श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा., सं., पद्य, आदि: पूआपच्चक्खाणं पोसहो; अंति: मन्यते तद्दिनं वृथा, (वि. प्रास्ताविकादि भी है.) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २१७ ८३६९२. (+) बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १८४६, आषाढ़ कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. गुंदोच, प्रले.पं. प्रतापविजय (गुरु पं. कर्पूरविजय गणि); गुपि.पं. कर्परविजय गणि; पठ. सा. फतुजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, १५४२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जईनं जयति शासनं. ८३६९३. (+#) नेमराजिमती बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१२, १५४२१). नेमराजिमती बारमासा, म. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: लालविनोदि० कर्म खपाए, गाथा-२६, (प.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ८३६९६. बडो नवकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)-३, जैदे., (२१४१२, ९४२०). नमस्कार महामंत्र सज्झाय-बृहद्, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सवामीजि नीत नीत, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ८३६९८. (4) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १४४२३). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. लोगस्ससूत्र से उवसग्गहरंसूत्र अपूर्ण तक है.) ८३६९९ (-) लघुशांति स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४,प्र.वि. हुंडी:शांति., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अवसग्घरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: धर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-२. ४. पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: तज्जयबहोतपियासं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८३७०० औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. एदलागुढा, प्रले. पंन्या. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२.५, १४४३६). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मे राग श्रुते; अंति: सिद्धं गच्छेइ मानवा, श्लोक-३२. ८३७०१. (4) आदिजिन व अजितजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३, १४४३२). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. २.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: तमजितमभिनौमि यो विरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८३७०२. पडिक्कमणा, निंदापरिहार व इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२., जैदे., (२३.५४१२, २९४२२). १.पे. नाम. पडिकमणासमायक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणो भावसु दोय; अंति: धर्मसिंह० लाल रे, गाथा-६. २.पे. नाम. निंदा परिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि चावत म करो परतणी; अंति: मानवी पामे देवविमान, गाथा ५. ३. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवझायो रे, ढाल - २, गाथा - २५. ८३७०३ (*) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाधा व १४ गुणठाणा नाम, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. पंडित. लालु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५X११, १०X३१). १. पे. नाम जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह टवार्थ, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल केलि कलिं कला; अंति: वेज्जे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कफ १ रामति २ वेढलडाइ; अंति: देहरे इत्यादिक वजे. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम पू. १आ, संपूर्ण. " २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र यंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि ॐ नमो घुघर घूघरी; अंति: सही दुख नहीं देवै. . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि मिध्यात्व१ सास्वादन २; अंतिः केवली अजोगिकेवली. ८३७०४. पार्श्वजिन चैत्यवंदन व व्याकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११.५, ८X३६). १. पे नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पू. १अ, संपूर्ण. श्लोक- ५. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, २. पे. नाम. व्याकरण, पू. १आ, संपूर्ण. व्याकरण*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'देष्टेरस्यादाविति' से 'एस्भिबहुत्वे" तक लिखा है.) ८३७०५ (*) चक्रेश्वरी स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( २२x११.५, १३३५). १. पे. नाम चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीचक्रे चक्रभीमे अंति रक्ष मां देवि चक्रे, श्लोक ८. ८३७०६. (*) जिनकुशलसूरिसदुर्व्वष्टक व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १०X३३). १. पे. नाम. दादाजी मंत्र, पू. १अ, संपूर्ण, जिनकुशलसूरि मंत्र, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: कुरु कुरु स्वाहा, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) २. पे. नाम. जिनकुशलसूरिदुर्व्वष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिगुरु अष्टक, सं., पद्य, आदि मिथः प्रश्नपुंसां अति: भवतांतेनामित: संपदः, गाथा-९, ८३७०९. (+) ग्रहशांति स्तोत्र व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. सुंदर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री संभवनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२२.५X११, १३X२०). १. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र- लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अति ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक ११. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि संगत कीजे साधु की अंतिः नीच की आठो पहर उपाध, दोहा-२. ८३७१४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) -१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. पत्रांक- १आ पर " For Private and Personal Use Only नवतत्त्व की कुछ गाथाएँ लिखी गई हैं. दे., (२३x११, ९२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण मात्र है.) ८३७१५. २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैये. (२३४११, १२४३३). Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २१९ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. संभवनाथ स्तुति श्लोक-१ तक है.) ८३७१६. (+4) संथारा पोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४१०.५, ८४३०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३७१८. (+) वीसस्थानकगुण, पार्श्वजिन गणधर नाम व वीरभगवान शिष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १३४२४). १. पे. नाम. वीसस्थानक गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नमो; अंति: यनाणस्स नमो तित्थस्स, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ गणधरनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० गणधर गणनु, सं., गद्य, आदि: १ शुभ २ आर्यघोष; अंति: यशोधर ९ जय १० विजय. ३. पे. नाम. महावीरभगवान शिष्यनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति अग्निभूति; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. ८३७१९ (4) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४२८-३०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-४५ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक है.) ८३७२०. (+) नवकारमंत्र व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१०.५, १५४३४). १. पे. नाम. नवकार मंत्र महिमा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र माहात्म्य, संबद्ध, पुहि.प्रा., प+ग., आदि: श्रीं क्लीं क्तीं; अंति: तेल चोपडि होमीजै. २. पे. नाम. विजय यंत्र महिमा, पृ. ५आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूव्वं चिय तेरई ए; अंति: मंत्र चंद्रप्रभस्य. ८३७२१. प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२३.५४१०.५, ४०x१९). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेद्रं; अंति: सुधिया सदलंकृति, श्लोक-२९. ८३७२४. आयंबिल पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, ६४३१). आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: साढपोरसिपच्चखाई उगये; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरई. ८३७२५. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया है., कुल ग्रं. ५५५०, जैदे., (२६.५४११, ४४५३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सुयखंधो सम्मत्तो, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं ___ हैं., "कोसंबीए दोजणीउ रामेपिया" पाठांश से है.) ८३७२७. (4) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सुभाषित श्लोक व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, २-६४३२-४३). १. पे. नाम. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो १ भयतो २; अंति: तेषाममेयं फलम्, श्लोक-१. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-अवचरि, सं., गद्य, आदि: लज्जातो अर्द्ध मंडित; अंति: रहितं वर्त्तते. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: उत्तम मध्यम नीचजन; अंति: स्ताज्येयमेकानतिः, ग्रं. ३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मारि वीनति; अंति: उत्तम०वीनती अवधार रे, गाथा-५. ८३७२८. वसुधारा व पद्मावती लघु स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९५४, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. उदयापुर, प्रले. मु. राणजी (गुरु मु. गणसीराम ऋषि); गुपि. मु. गणसीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११, ७-१०४२२-४०). १.पे. नाम, वसुधारा स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सं., गद्य, आदिः (-); अंति: सर्वोपद्रवां० नाशयति, (पू.वि. "स्वगृहे परगृहे वा भगवतस्तथा" पाठांश से है.) २.पे. नाम. पद्मावती लघुस्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., पद्य, आदि: जयंती भद्र मातंगी; अंति: सुखार्थी लभते सुखम्, श्लोक-१०. ८३७३०. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०, १४४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं __ददातु, श्लोक-११. ८३७३१ (+) दसप्रत्याख्यानसूत्र व श्रावक के चौदह नियम, संपूर्ण, वि. १८०५, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. ध्रुणपुर, प्रले. मु. पीरागचंद्र; पठ. मु. कान्हा (गुरु मु. पीरागचंद्र),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पच्चक्खाण. "श्री पार्श्वचंद्रसूरि हस्ताक्षरेपरिलिखि" ऐसा प्रतिलेखन पुष्पिका के अन्त मे लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १४४४३). १.पे. नाम, दस पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम, श्रावक के १४ नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेस, गाथा-१. ८३७३२ (+) जीवभेद गाथा व ५६० जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, २-४४३७). १.पे. नाम. जीवभेद गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. जीवभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नारयतिरिनरदेवा चउद्द; अंति: ए ए सव्वेवि देवाणं, गाथा-५. जीवभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नारय १ तिरि २ नर; अंति: मिल्यां ५६३ भेद थायै. २. पे. नाम. ५६० जीवभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संठाण वण्णरसया गंधे; अंति: भेद अजीवना कह्या छे. ८३७३३. वीसस्थानकनु गणणु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, १५४३०). २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत; अंति: (१)लो० २४ सा० २४ खा० २४, (२)नोकारवाली वीस गणवि. ८३७३४. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा व दस पच्चक्खाण श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११,१५४४२). १.पे. नाम. प्रत्याख्यान आगार संख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. __ प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. २.पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पोरसिसाढपोरसि पच्चक्खाण अपूर्ण तक लिखा है.) ८३७३५. विविधविषय गाथा संग्रह व सरस्वतीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२३४१२, १०x४१). १.पे. नाम, विविधविषय गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: सुयकेवली आहारग; अंति: अणंतंगीयनाइयं. २. पे. नाम, सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २२१ सं., गद्य, आदि: ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी; अंति: वादिनी ह्रीं स्वाहा. ३.पे. नाम, स्वाध्यायगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ प्रकार स्वाध्याय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वायणापुच्छणाचेव तहाय; अंति: सुक्कंदोमुक्खहेऊइं, गाथा-२. ८३७३७. पंचपरेष्टि स्तवन महाप्रभाव, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. मोतिविजय (गुरु पंन्या. धनविजय पं, कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); गुपि.पंन्या. धनविजय पं (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२२.५४११,११४२८). ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणयं पणमिय; अंति: पुत्थयभरेहिं, गाथा-३४. ८३७३८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीनगर, प्र.वि. हंडी:जीवचार. वैणासरूप हेतै., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२८-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ८३७३९ (+) महावीर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. उदयलाभगणि (गुरु ग. सुमतिसोम वाचक); गुपि. ग. सुमतिसोम वाचक; पठ. श्रावि. फूलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, ११४३०-३४). महावीरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहंकोद; अंति: मह सया पायधणामो तुह, गाथा-४४. ८३७४०. इरियावहि कुलक व जंबूवृक्ष विचार, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. सा. कसुंबा आर्या; पठ. सा. चंपा (गुरु सा. कसुंबा आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जंबूविचा०., जैदे., (२४४१२, ७४३७). १. पे. नाम, इरियावहि कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: देवा अडनउयसय १९८ चउद; अंति: रे जीव निच्चंपि, गाथा-११. इरियावहि कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ५६५ जीवना भेद लिखिइ; अंति: ३१६ जोयण २३७. २.पे. नाम. जंबवृक्षविचार सह टबार्थ, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, (प्रतिपूर्ण, वि. क्षेत्र समास (अधिकार-५)) बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नाम अनुक्रमइ जाणवा, प्रतिपूर्ण. ८३७४१. नमस्कार महामंत्र पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४१०,१०४३२). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: वल्लभसूरि० नित्त, गाथा-१३. ८३७४२. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १५४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५३. ८३७४३. (4) सुभाषित काव्यानि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १७X४८). सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: नित्याप्रभुत्वंप्रभौ, श्लोक-९८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२४ अपूर्ण से है.) ८३७४४. (#) विचारपंचाशिका सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. गिरधर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२९). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसरिवराणं विणएण, गाथा-५१. ८३७४५. (+#) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. तत्त्वसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १२४२६). For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (१)नाणस्स परूवणं वुच्छं, (२)केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१. ८३७४६. (+) यत्याराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, २१४६०). साधु आराधना, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वं ग्लानस्य; अंति: स्तवनं उपसर्गहरदेशना. ८३७४७. साधारणजिन पद व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: नवतत्त्व प०., जैदे., (२३.५४११,११४३०). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण... ___ मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सचा तुं धनी तु; अंति: कायम तो कुरबान, गाथा-५. २. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-६०. ८३७४८. (+) महावीरजिन स्तुति व दशवैकालिकसूत्र दम्मपुफिया अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: प्रश्णवीयक्रण. हुंडी: दसवीकालक., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४१२, ४४२५-३०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: एगंत होइ सोय जीवदया, गाथा-११. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पांच महाव्रत अने; अंति: माता सुख करनारी. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म मं० मंगलिक; अंति: इम कहुं ८३७४९ (+) महावीरजिन स्तव-बृहत् सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४११, ४४३७). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: एअं पढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ का टबार्थ लिखा है.) ८३७५० (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, १२४३७). ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८३७५१ (+#) साधुपट्टावली-नंदीसूत्र गाथा २२-५०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२.५, १५४५१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३७५२. पद्मावतीस्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३९-५०). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-८ अपूर्ण से है.) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, वि. १२०३, आदि: (-); अंति: छंदसां प्रायः, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ८३७५३. (4) सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मुनिसिंहजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सुभाषि०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ११४३८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: राज्योपभोगरायनासनवाह; अंति: अमृतं पुत्रदर्शनं. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २२३ ८३७५४. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४३). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण तक ८३७५५. थुलभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२२४११, ९४२३). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सांतिकुसल पाट कुसदा, गाथा-१२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण से है.) ८३७५६. (+#) २४ जिन स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्रले. आ. उदयभूषण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, ७४३०). २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२५, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ८३७५७. (+) साधदेवसिप्रतिक्रमण व राईप्रतिक्रमण अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, ११४३२). १. पे. नाम. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., पृ. १अ, संपूर्ण. साधदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दक्कडं. २. पे. नाम. साधराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.म.पू., पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: गुरु करे ते तहत्ति. ८३७५८. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४४५). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-३५ अपूर्ण तक है.) ८३७६० घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. पत्र १४२., दे., (४८x१२.५, ४१४१६). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: कायव्वा सव्व कालेस, श्लोक-५. २.पे. नाम. गोरुचंदननो कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण. गोरोचन कल्प मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं हन हन; अंति: सहस्र श्लोक धारे. ३. पे. नाम. मंत्र चिंतामणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चिंतामणिमहामंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ आँ क्रॉ ह्रीं ऐं; अंति: दिन साधीइ होम कीजे. ४. पे. नाम. देवलोक आयुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. देवलोक देहमान-आयमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म ईशान बेसागर; अंति: तेत्रीस३३ सागर आयु५. ५. पे. नाम. ९ ग्रह अंतरमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. नवग्रह अंतरमान विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. राहुग्रह विमानमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: राहुनु वीमान लांब; अंति: जोजन २५० धनुष छे. ७. पे. नाम. बादरराज्य मान, पृ. १आ, संपूर्ण... १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मदेवलोकथी देवता; अंति: काले ईहा गोलो आवे. ८. पे. नाम, २४ तीर्थंकर उत्पत्तीक्षेत्रमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन उत्पत्तिक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ४ तीर्थंकर प्रथमथी; अंति: (१)चोवीसमा० जंबूधीपमा, (२)उपजवाना क्षेत्र छे. ९. पे. नाम, आठगति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ गति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: देवता १ देवतानी; अंति: मोक्ष८० आठ गतिओ छे. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अंग गलीतं पलीतं मुंड; अंति: न मुंचती आस्यापिंडं, गाथा-१. औपदेशिक पद-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एहवो वृद्धपणे होय तो; अंति: पुरुषने धन्य जाणवो. ८३७६१. तिविहार उपवास पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४११, १०४२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३७६२. (+) मौनएकादशीतप स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १४४२६). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधर साहीबा हूं; अंति: होज्यो आणंद हो, गाथा-९. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १आ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १९वी, फाल्गुन शुक्ल, २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. चंद्रविजय (तपागच्छ); अन्य. मु. रामविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: पामीयै मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२६, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-३ अंतिम गाथा अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम, कपरकरणकी विधि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. __ कपूरकरण की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: धावडोगुद सवसेर चोखो; अंति: कपुर निपजे सही. ४. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कुसुमिणदुसुमिण ओढावण; अंति: (-). ८३७६३. (+) विविधविषय गाथा व बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७०, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १०, ले.स्थल, जालोर, प्रले. पं. दयासिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, १९४६५). १.पे. नाम. मृत्यु सबंधी सुतक विचार, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति ऊपरी भाग में लिखी है. ___ मृत्यु सबंधी सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वृद्ध मूयै घररा मनुष; अंति: प्रहर ८ देवपूजा टालै. २. पे. नाम, २८ लब्धिविचार गाथा सह अर्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: एमाई हुँति लद्धीओ, गाथा-४. २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने शरीरनै फरसै सर; अंति: हुवै ते पुलाग लब्धि. ३. पे. नाम. अष्टसिद्धि विचार, प. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अणिमा नान्हौ सरीर; अंति: वशीकरण लब्धि थकी हुइ. ४. पे. नाम. साधुना १४० अतीचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (१)७०चारित्रना ७०क्रिया, (२)वय ५ समण धम्म १०; अंति: अभिग्गहा चेव करणं तु, गाथा-२. ५. पे. नाम. संमूर्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-संमूर्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कहिणं भंते समुच्छिम; अंति: चेव कालं करंतित्ति. ६.पे. नाम. १८ पापस्थान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसव ५ कसाय ९ बंधण १०; अंति: अठारस्सपावठाणांइ, गाथा-२. ७. पे. नाम. प्रासुकजल विचार गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अन्नजलं१ उन्हंवाकसाय; अंति: वासासुपुणोतिपहरुवरिं, गाथा-२. ८. पे. नाम, सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वासासुपनरदिवसंसिउण्ह; अंति: गिम्हेमासोवरिलूणं, गाथा-५. ९. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० साधुप्रतिक्रमणसूत्र गाथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिकमण१ गमण२ भोअण३; अंति: गुत्ति बिराहओ भणिओ, गाथा-३. १०. पे. नाम. ३६३ पाखंडी भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडीभेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: क्रियावादीना१८० भेद; अंति: ३६३पाखंडीना भेद हुवै. ८३७६४. लघु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ८-१४४४५). १. पे. नाम. लघु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जिणिंदवर वीर सासणयं, गाथा-२४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वांछितांर्द्ध कृरु; अंति: सप्तषटअष्टकुवेदबांणा, गाथा-१, (वि. यंत्रसहित.) ८३७६५. कक्काबत्रीसी, उपवास पचक्खाण व व्याकरणश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२., दे., (४१x१०,४०x१७). १.पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, तिविहार उपवास पच्चखाण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. उपवास का पच्चक्खाण लिखा है., वि. अंत में गोचरी सबंधी गुरु-शिष्य आदेशादि लिखा है.) ३. पे. नाम. व्याकरण श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याकरणश्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अद्दी| दीर्घता; अंति: कंठमाहुरसंयुतम्, श्लोक-२. ८३७६६. (+#) शाश्वतचैत्य स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. आणंदसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४१९-३६). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: षष्टिः प्रसादाश्चतु; अंति: मयातेवीसजुआ पणिवयामि. ८३७६७. (+) शांतिनाथजिन लावणी व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२, ८४३१). १.पे. नाम. शांतिनाथजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ महाराज; अंति: , स्वामी तमारी सेवा., गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीरं, श्लोक-४. ८३७६८.(#) पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०.५, १६x४२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: (-), (पू.वि. "केवलि पन्नत्तस्स" पाठ तक है.) ८३७६९. साधु आचार गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, ५४४१). साधुआचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: हणंतं णाणु जाणिज्जा; अंति: निव्वाणंपी उणति ते, गाथा-६. साधुआचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हणतं० इत्यादिक सद्दी; अंति: देवानी नीषेधना नथी. ८३७७०. खरतराणां व तपानां शब्द व्युत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१x१०, १५४४९). For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२६ www.kobatirth.org ८३७७१. थुई का थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२३.५x११, ६४३०). आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषेंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १. पे. नाम. खरतराणांव्युत्पत्ति, पृ. १आ, संपूर्ण खरतरशब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, आदि: शाब्दिक प्रष्टात्रप्; अंति: अतिशयेनखराः खरतराः. २. पे नाम. तपानांव्युत्पत्ति, पू. १आ, संपूर्ण तपा शब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, आदि: तान् तस्करात् आर्थात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सदाक्रोधाध्मातवित्तंत्वादिति" पाठ तक लिखा है.) ८३७७२. स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३४११, १५४३४). 3 कैलास स्तुतिचौवीसी, वा. पुण्यशील, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनेंद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अति श्रियं स लभते नरः श्लोक-२३. २. पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८३७७३ (+) वंदितुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२३४११, १५-२१४४३). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. 3 ८३७७४. जिनपंजर स्तोत्र व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १ कुल पे. २, प्रले. गणपत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x११, १५४५३). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. (२३.५X१०.५, १०X२०). १. पे. नाम लेश्यालक्षण श्लोक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा. सं., पद्य, आदि अतिरुद्र सदाक्रोधी, अंतिः शुक्ल लेश्या विधीयते श्लोक-६. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः ॐ नमो अदिश गुरु कुं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८३७७५. पाक्षिक नमस्कार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५x१०.५, १२४३४). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनर्षभ प्रीणितभव्य; अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. ८३७७६. (+) छ लेश्या व राजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., वा. उदयविजय, मा.गु, पद्य, आदि पशु पुकार सुन्या पछै अंतिः उदयविजय० नवणां नयणकि, गाथा- ७. ८३७७७. पच्चक्खाणसूत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, ले. स्थल. लाखेला प्रले, पन्या, ऋषभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४११, १३४२८). "" For Private and Personal Use Only १. पे नाम प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम् (पू. वि. देवावगासिक पचक्खाण अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुनिमित्तण श्रीसूत्रालापक, पृ. २अ, संपूर्ण. साधु वस्त्रपात्राहारादि अनुग्रह आलापक, प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारी भगवान पसाउ; अंति: भयवं अणुगाहो कायवी. ३. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पू. २अ २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि को भंते पोसंहं आहार; अंति: गरिहामि अपाण बोसरामि ८३७७८. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १०X२४-२७). चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०९-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-३ अपूर्ण तक है.) ८३७७९. () औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, २०-२३x४६). Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २२७ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जीवदया जिनधम्मोसावयज; अंति: दलने विरलाः मनुष्याः, श्लोक-४८. ८३७८०. नंदीसूत्र-स्थविरावली सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४११.५, १२४२२). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ तक है.) नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)गुरु लोगाणं जय, (२)इम कही एक गाथा कही; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८३७८१ (4) दशवैकालिकसूत्र, गाथा-१-१८, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १३४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३७८२. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व भूतप्रेत निवारण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १०४२६). १. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सुखनिधानं० निवासम्, श्लोक-८. २. पे. नाम, भूतप्रेत निवारण यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ मंत्र-यंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त यंत्र.) ८३७८४. (+) पाक्षिकचैत्यवंदन स्तुति व पाक्षिक स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२.५, ११४३०). १.पे. नाम. पाक्षिकचैत्यवंदन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जिनसाक्षात्सुरद्रुमः, (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ८३७८५ (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व पांचप्रस्थान नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (४६४१२, ३९४२१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: नाथ त्रिभुवनतिलओ, गाथा-५. २.पे. नाम. पांचप्रस्थान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ५प्रस्थान नाम-सूरिमंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: विद्यापुर्वक पीठ; अंति: ए पांचमु प्रस्थान. ३. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: प्राप्तव्यो नियति; अंति: सकते शिरसी तस धुलिका, श्लोक-२. ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ.१आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: टंकणज १ भारज १ खडी; अंति: गोली पेट पीडडट. ८३७८६. पडिकमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पडिसूत्रपत्र., दे., (२३.५४११, १०x२४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: (-), (पू.वि. इरियावही अपूर्ण तक है.) ८३७८७. (+#) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३६). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंदं महानंदैककारणं, प्रकाश-१०, श्लोक-११७. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३७८८. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६२, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३.५४११, ९-१७४४३-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०.) ८३७८९. होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३.५४१२.५, ११४२६). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३७९०, २१ स्थान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. सुंदर शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२६-३५). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६४. ८३७९२. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर्ण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११, ९४२९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण तक ८३७९३. जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:जयति०., जैदे., (२४४१०, ११४३६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विन्नवइ अणिंदिय, गाथा-३०. ८३७९४. (+) प्रास्ताविकगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २००२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, ले.स्थल. लांबा, प्रले. मु. घासीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रस्तावीगाथा., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४१२, १७४३५-३८). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हिं न कयाइ पडिसिद्धं, गाथा-१२९, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-६ अपूर्ण से है.) ८३७९५ (+) भक्तामरस्तोत्र शेषकाव्य व उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. श्रीनगर, प्रले. मु. कानु माहात्मा (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०, ११४३०). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, पृ. ४अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम, उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. ४आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ८३७९६. नवत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. प्रतिलेखक ने मात्र संवत् ४५ लिखा है., जैदे., (२२.५४१०.५,७४३४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४७, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: दशविध प्राण धरइ ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक टबार्थ लिखा है.) ८३७९७. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सुखविपाक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११.५, १८४४१). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०.) For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३७९८ (+) बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, संपूर्ण वि. १९०६ पौष शुक्ल १०, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. विकानेर, प्र. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२३.५X११, १३X२४). " वृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं. प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अति जैन जयतु शासनम्, ८३७९९ (+) वीरस्तुति अध्ययन, महावीरजिन स्तुति व नमीपवज्जा अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९९६, आषाढ़ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी : थुइ नमी., संशोधित., दे., (२३×११, १५X४३). १. पे नाम. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. २. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि पंचमहव्ववसुव्वयमूलं, अंतिः श्रीजंबूस्वामी जाणीए, गाथा - ११. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९ नमिपवज्जा, पू. २आ-४अ, संपूर्ण, उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण, ..... ८३८०० अजितशांति स्तव, संपूर्ण वि. १९१२ माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी अजिस०. हुंडी: अजि०., (२३.५x१२, १२४३०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितशांति स्तवन आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिये जिवसव्वभयं संत अति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा- ४२. ', ८३८०१. (+) मायावीज कल्पवार्ता, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५x११, ८४३२). मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु. प+ग, आदि अजुआले पखी पूर्णा, अंति वली प्रीति बाइ. ८३८०२. (*) पाखी खामणा व प्रव्रज्याकुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२४४१०.५, ११४४३). "" " १. पे. नाम. पाखी खामणा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिय; अति इच्छामोणु सिडि, आलाप ४. २. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. " ८३८०३. पगाम सज्झाय व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (३) = ३, कुल पे. २, जैदे. (२४४१०.५, " १३x४०). १. पे नाम, साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि करेमि भंते० चत्तारि०; अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं (पू.वि. 'तेबीसाए अगडझाय' से 'चाणामि नाण' पाठ तक नहीं है.) २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर स्वामि; अंति: देज्यो सुख भरपुर हो, गाथा - ७. ८३८०४. (+) संघयणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : संघयणसु., संशोधित., जैदे., (२३.५X१०, ९X३०-३४). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिठं जिणसव्वन्नु अति रइया हरीभदसूरिहि गाथा - ३०. ८३८०५ (+) नवतत्व, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पालीनगर, पठ. वैणासरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२x१०.५, ११X३०). २२९ For Private and Personal Use Only नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. ८३८०६. (+) कायस्थिति स्तवन व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२४x१०, १४४३९). १. पे नाम. कायस्थिति स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि जह तुह दंसणरहिओ काय; अतिः सकाय पय॑सेसु महंदेसु, गाथा- २३. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ८३८०७. (+) महावीरस्वामि स्तवन व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., गाथा - २२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: रुचिमंडलमंडित; अंति: वासं शिवश्रीविलासं श्लोक-१३. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२४.५x१०.५, १५४४५). १. पे. नाम महावीर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि जयज्जा समणे भयवं; अंति पढउ कयं अभयसूरीहि, " ८३८०८ (#) पंचदश आगारणा अर्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०.५, 3 १६x४५). प्रत्याख्यानसूत्र- बालावबोध पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेण अन्न; अंति: लेवो तो व्रतभंग नही ८३८०९ (४) कथाकोष, सवैया व स्वाही विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) ०१, कुल पे. ४, " प्र. वि. द्विपाठ, अक्षर फीके पड़ गये हैं, जैदे. (२५४११ २६५५५). "" १. पे नाम. कथाकोष, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ( १ ) सकृत् सकृत्, (२)संग त्यागे चैत्र कथा, (पू.वि. आलस्य श्लोक से है.) २. पे नाम औपदेशिक सवैचा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि अटक कटक वीचि झटक अति भ्रमसी० फिरे है, सवैया-४, " ३. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: बुधचंद्रोत्तरे मार्ग; अंति: एक वधइ तउ पुरुष मरे.. ४. पे. नाम. लाखी स्याही विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. स्याही विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अघेलाभर काजल साजी टा; अंतिः गाली घाली जड़ सीजीसु. ८३८१०. वृद्धशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, ले. स्थल. मगररोयनगर (मांग, जैदे., (२४.५x१०, १३X३१). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-); अंति: छिद्यंति विघ्नवल्लयः, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "ॐ मुनयोमुनिप्रवरा" से है.) ८३८११. (+) मनुजभव दृष्टांतकाव्य व प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५-२४ (१ से २४) १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, १४४३९). १. पे नाम. मनुजभव द्रष्टांतकाव्य, पू. २५-२५आ, संपूर्ण, मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासगर धन्न३ अतिः भूवस्नामाप्नोतिनो श्लोक-११. प्रा.,मा.गु.,सं., २. पे नाम प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा सह दृष्टांत, पृ. २५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि पडिक्कमणं पडियरणा २ अंति तित्थत्थेओकओतेण, गाथा-६, For Private and Personal Use Only संपूर्ण, प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदिः आठ प्रकारना प्रति अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ८३८१२. (*) खुडियार अध्ययन व सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X१०.५, ११x३१). १. पे. नाम. खुडियार अध्ययन - दशवैकालिकसूत्र, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २३१ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण से २. पे. नाम. जैन सुभाषित संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: लोभमूलानि पापानि; अंति: वहूरत्ना वसुंधरा, (वि. छुटक श्लोक संग्रह.) ८३८१३. (+#) कुव्यसन सज्झाय व पोरसी विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४५१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कुव्यसनपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बाण इंद्री संधि बाधउ; अंति: सुधि कहनिसु जाणो रे, ढाल-२, गाथा-१९. २.पे. नाम. पोरसी विधि, पृ. १अ-१आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संथारापोरसी विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पढमं पोरिसि सज्झायं; अंति: (-), (पू.वि. "श्राविकानइ" पाठ तक है.) ८३८१४. (4) चंद्रराजा रास-उल्लास २, अपूर्ण, वि. १८७८, पौष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, ले.स्थल. षोडनगर, प्रले. इंद्रराज; अन्य. जसराज; गिरधारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३१). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-२२ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ८३८१५ (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, १८:५५). १.पे. नाम. जीवादिपदार्थ स्वरूप, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जीवादि षड्द्रव्यस्वरूप, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करणमुत्प्रेक्ष्यमिति, (पू.वि. "नदानेनेत्येवमाहि" पाठ से है.) २.पे. नाम. आचारांगसूत्रनियुक्ति गाथा-३९ मनुष्य १६ संज्ञा सह शीलाकी टीका, पृ. २आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-निर्यक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. ८ प्रातिहार्य गाथा-सप्ततिशतस्थानक ग्रंथे, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कंकिल्लि१ कुसुमवुट्ठ; अंति: जयंतु जिणपाडिहेराइं, गाथा-१. ४. पे. नाम. ८ प्रातिहार्य श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१. ८३८१६. नमिराय ढाल, गौतम कुलक व लुंकारी हुंडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १६४४२). १.पे. नाम. नमीरायजीरी ढाल, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदिः (-); अंति: नमीयतणां गुणग्राम ए, ढाल-७, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल की अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, प. ३आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जागरइ नरा निचं जागरइ; अंति: नासइ पबज्यां अथ गणणं, गाथा-३, संपूर्ण. ८३८१७. समतिनाथ विनती व भक्तामर स्तोत्र-मध्यकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १४४४२). १. पे. नाम. सुमतिनाथ विनती, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. वीरा, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुमतिजिन विनती स्तवन, ग. रंगकलस, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी गति दायक भण्यउ; अंति: य जी पामियु परिमाणंद, गाथा-११. २. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-मध्यकाव्य ३२ से ३५, पृ. १आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपरि; अंति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. ८३८१८. मूर्तिपूजामतपुष्टि विचार-शास्त्रपाठयुक्त, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४१०.५, २३४५८). मूर्तिपूजामतपुष्टि विचार-शास्त्रपाठयुक्त, सं., प+ग., आदि: तथा केचन कुमतयः; अंति: (-), (पू.वि. 'तान् प्रसंशति स्वचेतसि वि' पाठांश तक है.) ८३८१९. (+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, सातलाख सूत्र व औपदेशिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०, १२४३७). १.पे. नाम, तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेअ, गाथा-१४. २. पे. नाम. सातलाख सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, प. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: गंतव्यं राज पथे; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ तक है.) ८३८२०. (+) पच्चक्खाणसूत्र, पौषधसूत्र व १४ नियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०,१६४३५). १.पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. पौषध सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसहं; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: न्हाण१३ भत्तेसु१४, गाथा-१. ८३८२१. पंचकल्याणक स्तुति, सज्झाय व प्रार्थनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ११, जैदे., (२२४११, १९४४२). १. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवं तं अजिय; अंति: सहिया पंचकल्लाण एसिं, गाथा-४. २.पे. नाम. दम्मपुप्फ यज्झयण, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-२४, (वि. पाठांतर सहित.) ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: केवलचंद्रस्य कलंक; अंति: भाजो हि जिनाभिषेकः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: नमोर्वाररागादिवैरि; अंति: शममय जय भयघनवनदहन, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ६. पे. नाम. प्रार्थना-स्तुति संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगदेकनाथ०; अंति: वल्लीवनच्छेदनेमये, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तति-अष्टविभक्तियक्त, सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु नतांग; अंति: प्रयच्छ प्रभो, श्लोक-१. ८. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति-प्रार्थना, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसुरासुर; अंति: क्षमैषाहि महात्मनाम्, गाथा-२. ९. पे. नाम. शांतिजिन नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं; अंति: संति संति० एनं जिनम्, श्लोक-१. १०. पे. नाम, परमात्म स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: कर्वत वो मंगलम, श्लोक-६. ११. पे. नाम. औपदेशिकगाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिपरमंगाणि; अंति: समयं गोयममापमाएय, गाथा-१०. ८३८२२ (+) सिद्धदंडिका प्रकरण सह अवचूरि व सिद्धदंडिका यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२४४९.५, १-५४५१-५५). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: आदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: नाम्नारूढिरिति. २.पे. नाम, सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: सुधीभिरभूह्या. ८३८२३. (+#) सर्वपच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४४१). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. ग. रत्नोदय (गुरु ग. हेमधीर), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुर्यना उदय; अंति: (अपठनीय), (वि. १७८२, श्रावण शुक्ल, ९, शनिवार, प्रले. मु. मनरूप; गुभा. मु. कान्हजी (गुरु ग. रत्नोदय); गुपि. ग. रत्नोदय (गुरु ग. हेमधीर); ग. हेमधीर (गुरु ग. गुणविमल); ग. गुणविमल (गुरु ग. गुणनिधान); ग. गुणनिधान (गुरु उपा. विजयतिलक), प्र.ले.पु. विस्तृत) २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मायापरिहार, म. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: माया वाद लीहे तो ते; अंति: चंद दरस अब पाइ, गाथा-३. ८३८२४. (+) पंचकल्याणकसूचनागर्भित गवडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: पार्श्वस्तवः हुंडी: पार्श्वस्तवनं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १५४३२). पार्श्वजिन स्तवन-पंचकल्याणकसूचनागर्भित, मु. देवचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वेशदेव; अंति: सौख्याय सुश्रेयसे, श्लोक-२६. ८३८२५. (#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेसमा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ४४३४). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १४ __ अपूर्ण तक व २४ अपूर्ण से नहीं है.) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजगनाथना धमस सरन; अंति: (-). ८३८२६. (+) चउराशी आशातना विचारगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. श्राव. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, ५४२६). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: वेज्जे जिणिंदालये, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मा १ रामति २ अंति: जड़ वीतरागनइ प्रसादिए, ८३८२७. (*) भावना कुलक, लुद्धानरा कुलक व औपदेशिक लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. मु. हरखाजी ऋषि (गुरुमु खेतसिंह ऋषि) पठ मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१०.५, १३x४३). १. पे. नाम. भावना कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि निसाविरामे परिभावयाम, अंतिः निवाणसुहं लहति गाधा -२२. " २. पे. नाम. लुद्धानरा कुलक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह पु.ि प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि निद्रा० लोचना मृगपति अति (-) (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.. **, वि. छुट्टक श्लोक संग्रह) ८३८२८. (+) चिंतामणिद्वात्रिंशिका व पार्श्वजिन मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X११, ११४३३). १. पे नाम. चिंतामणिद्वात्रिंशिका, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं जगद्देवं; अंतिः शश्वदन्वेषणीयम्, श्लोक-३१. २. पे नाम. पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि ॐ ह्रीं अर्ह नमीऊण अति: (१) ह्रीं नम स्वाहा, (२) नम परावर्त्तनाक्षराः, मंत्र- १. ८३८२९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५X१०, १२-१३X४०). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ८३८३०. भावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४.५X१०.५, ७४४२). भावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि निसाविरामे परिभावयाम अति निव्वाणसुहं लहंति, गाथा २२. भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नि० रात्रीनइ अंतिइ, अंति: मोक्षनुं सुख पामई. 1 " - ८३८३१. (+) बृहच्छांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५X११, ११x२६). बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ८३८३२. (*) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. क्र. प्रह्लाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४४१०, १४४४२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ, अंति: वंदामि जिणे चडवीसं. ८३८३३. अर्हत्प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५x११.५, १४X४०). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वेशो विभा; अंति: मोदक सेर पांच मान. ८३८३४. अमृतध्वनि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पू. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. झामपुर, प्रले. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, ११x२४). १. पे. नाम. अमृत ध्वनि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि चित्त धरि गुण ॐकार अंतिः कृत जिनगुन की जयमाल, गाथा-४ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक व्यवस्थित नहीं लिखा है.) " २. पे. नाम. मेह अमृत ध्वनि, पृ. १आ, संपूर्ण. मेह अमृतध्वनि, मु. धर्मवर्धन पुहिं, पद्य, आदि जल धल महियल करि जलद, अंति: खजमति अखे खलक अरज्ज, गाथा - २. ३. पे नाम. अमृतध्वनि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दागडगदि वधै दोलति अति बधे दोलत्ति दडड, गाथा-२. ४. पे. नाम जिनचंदसूरि अमृतध्वनि, पृ. २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २३५ जिनचंद्रसूरि अमृतध्वनि, मु. रंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरिंद जपि; अंति: रंग० जगि कायम जस वास, गाथा-२. ५. पे. नाम. अमृतध्वनि उपगीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गडगड गड गाजे गयण; अंति: विनयचंद इम वर्णवति, गाथा-२. ८३८३५. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन व रोहिणी स्तुति द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. चतुर्विंशती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-२६. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तति, प. २अ-२आ, संपूर्ण. म. लाभरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासुपूज; अंति: लाभरूची जयकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहिणी थुइ, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-आगरामंडण, मु. तेजह शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगरामंडण पास; अंति: सीस कहे सुख थाय, गाथा-४. ८३८३६. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रामसिणनगर, प्रले. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभौ प्राशादात्., दे., (२४४१०.५, ९४२८). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२४. ८३८३७. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १३४३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. शनिविचार तक है.) ८३८३८. (+) जैन धार्मिकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ६४३४). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: करुणदमो७ चरणपरिणामो८, ग्रं. २१. व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजगनाथना धर्म थकी; अंति: भावइ प्रवर्तीयइ. ८३८३९ (+) कुंडलिया व दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १२४३७). १. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलियो, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कंडलीयो, मा.गु., पद्य, आदि: करमइ रिष काया कसी; अंति: कीध रसना वस करमइ, पद-१. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-६ अपूर्ण तक ८३८४०, संथारापोरसी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १०४२२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. ८३८४१. (+) सनत्कुमारनो आलावो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सनंतकुमार., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११.५, ४४२६-३०). भगवतीसूत्र-हिस्सा सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणंकुमारेणं भंते; अंति: करिस्संति सेवं भंते. सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० सनतकुमार भ० हे; अंति: गौतम कहे से नेहेन. ८३८४२. (+) चिंतामणीमंत्र गर्भितपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, ११४३२). For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्परमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११, (वि. इसी कृति का प्रथम श्लोक अंत में पेंसिल से पुनः लिखा है.) ८३८४३. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १४४४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ८३८४४.(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, अष्टक व स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४,प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४११, ७४२५). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: विद्या दान फल प्रदा, श्लोक-३. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: या कुंदेंदुतुषारहार; अंति: निश्शेष जाड्यापहा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी नामानी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथमं भारती नाम; अंति: देवी शारदा वरदायिनी, श्लोक-५. ४. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. शारदाष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं ह्रीं पूज्ये; अंति: ध्यात्वा देवीसरस्वति, श्लोक-८. ८३८४५. (+) श्रीमती कथा व अतिचार आलोयणा गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३५-४०). १.पे. नाम. नवकार विषये श्रीमती कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. श्रीमती कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, सं., पद्य, आदि: पोतनश्चपुरं नाम भरते; अंति: यथा च श्रीमती पुरा, श्लोक-५३. २. पे. नाम. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चउपहुर दिवसमां; अंति: आलोअणमांहि आलोयस्यां. ८३८४६ (+#) जीवसीख कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४११, १२-१३४४२-४५). वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जम्मजरामरणजले नाणावि; अंति: वसोक्खं जेण पाविहिसि, गाथा-२२. वैराग्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जनम जरा मरणरूप जल; अंति: सुख जीव पामइ धर्मथी. ८३८४७. हरियाली संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, ६x४७). १. पे. नाम. हरियाली देपालीय सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसैं कांबलि भिंजै; अंति: मुरख कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: जोगारंभ हरीयाली. २. पे. नाम. परमारथ हीयालीगीत सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अचरिज एक अपूरब दीठो; अंति: वाचा अविचल पालो रे, गाथा-९. औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अचरिज एक अपूरव दीठो; अंति: जै तिहा शरीर घर राखै. ३. पे. नाम. परमार्थ हरियाली सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगलि साहिब नाचै; अंति: धरमै निज मनि ल्यावो, गाथा-८. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: सेव० कर्मरूप सेवकनै; अंति: श्रीजिन धर्मनइ विषइ. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३८४८. वीरथुईनाम अध्ययन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४३०-३२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ८३८४९. पार्श्वजिन स्तुति संग्रह व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४२४). १.पे. नाम. संखेश्वरजिन स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (६१८) जलाद्रक्षेत् स्थलाद् रक्षेत्. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१३००) जला रक्षेत् थला रक्षेत्. आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१, (वि. यह स्तुति चार बार बोलने का सूचन लिखा है.) ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-गौडी, प. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८३८५०. जंबुद्वीप संघयणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.२, जैदे., (२२.५४१२,१३४३४-३८). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभदसूरीहिं, गाथा-३०. ८३८५१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, ११४३०). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि मांहि भाविइ; अंति: __वाचक जस कहे देव, गाथा-१७. ८३८५२. दानशीलतपभावना संवाद व प्रास्ताविक कवित्त, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४५). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि संवादो रे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खरी वात भोजन की; अंति: हेतकर जिमावे रोटीया, पद-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. हमीर, पहिं., पद्य, आदि: किसी वांजने वडब किसी; अंति: हमीर कहे० ओपम किसी, गाथा-१, (वि. अंत में सज्जन विषयक १ दोहा दिया गया है.) ८३८५३. सरस्वती स्तोत्र, गायत्री मंत्र व जापमुद्रा, संपूर्ण, वि. १८४०, पौष शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीदासर, जैदे., (२३४१०.५, १४४३२). १. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम, श्लोक-१५, (वि. श्लोकांक-१४ व १५ अनुभूतिस्वरूपाचार्य विरचित सारस्वत व्याकरण की प्रशस्ति के है.) २. पे. नाम. गायत्री मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्. ३. पे. नाम. गायत्रीजाप मुद्रा, पृ. १आ, संपूर्ण. गायत्रीजाप मद्रा-जपांत, सं., गद्य, आदि: सुरभी ज्ञान वैराग्यं; अंति: अष्टौ प्रकीर्तिताः. ८३८५४. मल्लिजिन स्तवन, औपदेशिक दोहा व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२.५, १३४४०). १.पे. नाम, मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. अंत में रुपये-पैसे के लेन-देन के विषय में उल्लेख किया गया है. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम सूरलोकना वासी; अंति: लहे रूपविजय ससनेह, गाथा- ९. पुहिं., पद्य, आदि: मरण वेला मूरखा भजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ३. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में शांतिजिन स्तवन प्रारंभ करके छोड़ दिया है. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदिसर सुखकारी हो इक; अंति: वीनवे आवागमन निवार, गाथा-५. ८३८५५ आदिजिन स्तवन व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे २, दे. (२४४११, १६५३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि नाभिकुलगुरु कुल नभ; अंति: ज्ञानचंद० कोई न तोलइ ढाल २, गाथा - २४. २. पे नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक दोहा संग्रह-दानोपरि, पुहिं., पद्य, आदि: दान ते अनंत सुख दान; अंति: दान ते दाईयै, दोहा-२. ८३८५६. ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी ढालसाग०. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १२X४०). (#) " रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि मुनिसुव्रतस्वामीजी अति: (-), (पू. वि. अधिकार- १, डाल- २ गाथा १६ अपूर्ण तक है.) . ८३८५७. चक्रवर्तीचौदरत्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१०.५, ११x४८). १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न वयरीनो नाश; अंति: माणवाय ८ संखाय ९. ८३८५८. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, प्र. वि. पत्रांक न होने से अनुमानित दिया है., जैदे., " (२३.५X१०.५, १२X३५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ अपूर्ण से है व ३७ तक लिखा है.) ८३८५९. (#) गोडीचाजीनी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री मझ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१२, १६३९). प्रसादात्., पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जगत भविक कज मेहर; अंति: पामे चिद परमानंदा, गाथा - १६. ८३८६०. पद्मनाभजिन स्तवन व माणीभद्रजीरो प्रभाती, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२३.५x१२.५, १४x२९). १. पे. नाम पद्मनाभजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण, मु. नेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि भविजिन भावसुं नित; अंति: कहे नेमकुशल चीतलाया, गाथा- ११. २. पे. नाम. माणिभद्रजी महाराजनो प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर पद, मु. नेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि भवि तुमे भेटो माणिभद अतिः पुरो इछा हमारी हे, गाथा ५. ८३८६१. ब्रह्मचर्यबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४X१०.५, १८X३८). ब्रह्मचर्यबावनी, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अमृत वसति मुखि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २० तक है., वि. २०वीं गाथा में पाठांतर है.) ८३८६२. सीखामण सज्झाय, सर्वतीर्थंकर आयुष्यमान व देहमान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४x१०.५, १६x४४). १. पे. नाम. शीखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आचार, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता चरण नमीने; अंति: री धर्मे शीवसुख पामे, For Private and Personal Use Only गाथा - १२. २. पे. नाम. सर्वतीर्थंकरना आउखामान, पृ. १अ- १आ, संपूर्ण. २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि ८४ लाख पुरवनो आवुखु अंति: ७२ वरसनुं श्रीमहावीर Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ३. पे नाम. चोवीस तीर्थंकरना देहमान, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन देहमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि : ५०० धनुषनी काया; अंति: ७ हाथनी काया जाणवी .. ८३८६३. गौतमविलाप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x११.५, 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०X२१). महावीर जिन सज्झाय- गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि आधार ते हूतो रे एक अंति: पाम्या सिवपद सार, गाधा-१५. ८३८६४. जिनदत्तसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४११, ७X२६). जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि: सदगुरुजी तुमे सांभलो अंति: लाभउदै सुख सिद्ध हो, गाथा- ११. ८३८६५ (+) आदिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३० २९ (१ से २९) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४११, १५X६०). " आदिजिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक है.) ८३८६६ (०) पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५१२, १९५१९). पट्टावली*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कल्पसूत्र वाचना समाप्ति का उल्लेख किया गया है, परंतु लिखावट पद्धति आदि से लगता नही है. संशोधन अपेक्षित.) ८३८६७ () विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, उदयपुर, प्रले. श्राव. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२३.५४१०.५, १५४३८). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुसलदेसे कसुवीनगरी अति आदर्यो भरजोबन माही, गाथा - १८. ८३८६८. (#) आचारांग सज्झाय व बत्रीसदोषसामायिक कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. कनकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२३.५X१०, १८४५१). १. पे. नाम. आचारांग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-साधुगुण सज्झाय, संबद्ध, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जंबु धाई पुहकराद्वीप; अंति: : गुणसागर ० संत हो, गाथा - १९. २३९ २. पे नाम बत्रीसदोष सामायिक कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि पहिलू प्रणमूं जिन अति करेइयं श्रीपासचंदो, गाथा-२१. ८३८६९. (+#) शांतिजिन, साधारणजिन स्तवन व नमिराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. हितविजय (गुरु पं. यशविजय); गुपि. पं. यशविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२३.५४१०.५, १७४३७) "" १. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोलमा श्रीजिनराय अलग अंतिः मोहन० पंडित रूपनो, गाधा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . कांति, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीइं; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सज्झाय नवमा अध्ययननी, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि देव तणी ऋद्ध भोगवी; अति उदयविजय० वचने रे, १. पे नाम आदिजिन पूर्वभव आयुमानादि विचार, पू. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चंपानगरीथी शेठ धनोजी; अंति: अभिचनक्षत्रइ० गया. २. पे. नाम नमस्कार महामंत्र- पंचपद सह वालावबोध, पू. १आ, संपूर्ण गाथा - ९. ८३८७० () आदिजिन विवरण, नवकारमंत्र व ग्रंथलेखनसमय विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१२.५, ४७४२९) For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो नमस्कार हुवौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. पुस्तकारूढ ग्रंथ समय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आदिसर मोख पोता पछै; अंति: (१)वरसे पुस्तक लीखांणो, (२)रुषदेवजीरो समयो. ८३८७१ (4) वस्तुपाल प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १७२५९). वस्तुपाल प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "अथ श्रीवस्तुपाल शुभमुहूर्ते" पाठांश से "अहं समुद्रतटेवात्सम् पान्थः पुरो यामि" पाठांश तक है. (श्लोक-२६८ से २७७ के बीच का पाठांश)) ८३८७२ (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तर., संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १५४३८). प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार मांहे पहिला; अंति: भगवती में कह्य छै, प्रश्न-३३. ८३८७३. (#) वर्धमानस्वामी चौढालीयो व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. जतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:माहावीर., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, २०४५२). १.पे. नाम. वर्धमानजिनेश्वर चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालीया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सासणनायक सुरतरु; अंति: तिलोक०दीजो जेजेकार ए, ढाल-४. २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रूपीया ताकु रंग स जग; अंति: दीन तो हक वजावता है, (वि. प्रतिलेखक ने दोहा संख्या नहीं लिखी है.) ८३८७४. (#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४४०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि सद्गुरु पाय; अंति: भक्तिभाव प्रशंसिओ, ढाल-३, गाथा-२५. ८३८७५ (+) आदिजिनविनती व चंद्रप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, १२x२४). १.पे. नाम, आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विबुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद केरा प्रणमी पाय; अंति: विबुध०सुख द्यो भरपूर, गाथा-१५. २. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु राजिआ; अंति: जी उदय सदा सुखकंद, गाथा-८. ८३८७६. (+#) नवकारमंत्र छंद, स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. सा. कुसलाजी आर्या (गुरु सा. रुकमणाजी); गुपि. सा. रुकमणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१.५४११.५, ११४३५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीएण समरू; अंति: प्रभु सर्वसीस रसाल, गाथा-७. २.पे. नाम. नवकार को तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, म. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: पदमराज जस अप्राणी, गाथा-९. ३. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म.रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम अरिहंतदेवा; अंति: रायचंद० को ध्यान धरो, गाथा-१३. ८३८७७. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५४१२, १९४४७). १.पे. नाम. नंदिषेणनी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २४१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकश्रुत सुविचार; अंति: गुण गाया मुगत मनोहरु, गाथा-३८. २. पे. नाम. टाकरीपचवीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___टाकरियापच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: लांबा जुहार करे; अंति: असत अपनीआ अजस उपाए, गाथा-१९. ३. पे. नाम. छिनालपच्चीसी, प. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: पाछो जोवे पेडे चलती; अंति: लोका मांही लाज गमावे, गाथा-२५. ४. पे. नाम. मांकण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. म. भवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहि; अंति: भविक० करजो जणा हो. गाथा-८. ५. पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तू धोजे रे; अंति: सहज शिवसुखनी दाय रे, गाथा-६. ८३८७८. (-) गौतमस्वामीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४१२, ९४२४). गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम स्यामी वुझा करै; अंति: पामै सुख अथाग हो, गाथा-१६. ८३८७९. वीरस्तुति अध्ययन, आदिजिन स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १८वी, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. जीवणराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. वीरत्थुइनामाज्झयण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्ति बेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जसकर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: नाभिनंद तुम जीणंद; अंति: म सर्ण आये कटत धेरा, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुरनरआण सुणत वाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम दोहा का प्रथम पद लिखा है.) ८३८८० (4) वंकचूलरी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. श्राव. जडाव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वंकचूलचौढाल्यो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, २२४२९). वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वंकचूल भाखी कथा जथा; अंति: रतनचंद० जोडी रसालो, ढाल-६, गाथा-६१. ८३८८१ (+) अठावीसलब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. विनयचंद; पठ. श्रावि. गुलोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ११४३४). आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमं प्रथम जिनेसर; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. ८३८८२. ऋषिबत्रीसी व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, ११-१३४३६-४०). १.पे. नाम. ऋषिबत्रीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८५५. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिणहरख नमुकर जोडि, गाथा-३१. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हो रसीया थानु किण; अंति: अजरामर सुख पाया रे, गाथा-७. ८३८८३. भैरव छंद, वीर विलास व अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(२ से १३)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. पीपल्या-मेवाड, प्रले. मु. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १५४३०-३३). १. पे. नाम. भैरव छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... भैरवदेव छंद, मा.गु., पद्य, आदि: चरण आय चिंतवन करे; अंति: पामइ वरसत मंगल माल, गाथा-५. २. पे. नाम. वीर विलास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भैरवदेव विलास, मा.गु., पद्य, आदि: मुरड दयंता मारणो उरड; अंति: (-), (पू.वि. अंत के कुछ भाग नहीं हैं.) ३.पे. नाम. अंतरिक्षपार्श्वनाथजी को छंद, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: भावविजय देव जय जयकरण, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक माना है व कुछ गाथाओं के क्रम में भूल की है.) ८३८८४. गोडीजी स्तवन, शांतिजिन व आदिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२३४१२, २७४१७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. खुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसती सामीने; अंति: चंद खुसाल गोडीजी, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जेय जेय आरति शांति; अंति: नारी अमरपद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... म. माणेकमनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरती जिन; अंति: जाणी पोताना बाल, गाथा-६. ८३८८५. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मोहन डामर; पठ. श्रावि. लखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, ११४३७). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षिमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ८३८८६. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. चंदणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३४३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुधानरा अथपरा हवंति; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ८३८८८. शत्रुजाविनती, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने लेखन संवत् १९५ लिखा है., दे., (२३.५४१२.५, १४४३०). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसायरे; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५७. ८३८८९ आदितवार वेल व अष्टकर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १२४२६). १.पे. नाम. आदितवार वेल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेश्वर मनधरी; अंति: नमी काष्ट संघ वखाण, गाथा-२१. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लोकालोक नवतत्त्वतणा; अंति: टूट्या आठं ही कर्म, गाथा-९. ८३८९० (+) रतनकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२३, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. न्याय ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १३४४१). रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस कमल श्रीभगवंतजी; अंति: दसमी ढाल रसाल, ढाल-१०, गाथा-५३. ८३८९१ (+) साधुपाक्षिक अतिचार व संवत्सरीनो तप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४४७). १.पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. २आ, संपूर्ण. __संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेण एक उपवास; अंति: तप करी पहोंचाडवो. ८३८९२. (+) चंदनबाला, मनोरमासती व मदनरेखासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २४३ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कौशंबीपति सतानीक; अंति: ज्ञान० नामे मंगलमाला, गाथा-८. २. पे. नाम, मनोरमासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: मोहनगारी मनोरमा शेठ; अंति: ज्ञान०संतति थावें रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. मदनरेखासती सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी सुदर्शन मणिरथ; अंति: ज्ञानविमल अनुबंधइजी, गाथा-१३. ८३८९३. शिखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मोहन डामर; पठ. श्रावि. लखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११.५, ११४३६). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो सजन नरनारि; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. ८३८९४. जिनकुशलसूरि गीत, जिनदत्तसूरि व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, ११४२८). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, प. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल; अंति: नवेनिधान लिखमी मिलै, गाथा-३. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सद्गुरुजी थे सांभलो; अंति: लाभोदया सुख सिद्ध हो, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वाडी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सायधण कहै करजोडि हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम ___ गाथा लिखी है.) ८३८९५. (+) दशपच्चक्खाणगर्भित वीरजिनस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, ११४३७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का एक पद नहीं लिखा है.) ८३८९६. वीसस्थानकविधि, शाश्वताशाश्वत विचार व कामोत्तेजक स्थानवर्णन, संपूर्ण, वि. १७६२, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. ग. मणिविजय; पठ. श्रावि. अमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. २० स्थानकतप आराधनाविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमोअरिहंताणं २०० पूज; अंति: जिनशासन दीपाववं. २. पे. नाम, शाश्वताशाश्वत विचार, पृ. २अ, संपूर्ण... _ विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: लाखड स्त्री सायधान; अंति: आदे विमान सास्वता छे. ३. पे. नाम. कामोत्तेजक स्थान वर्णन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: निवासमागत छइं; अंति: मर्दन ताडन छइं. ८३८९७ (+) साधुवंदणा, अपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. पं. मानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १६x४२-४५). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: (-); अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-१०९, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ८३८९८ (+#) शनिश्चर, बृहस्पति व ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४६-३६). १. पे. नाम, शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः पुरा भ्रष्टराजाय; अंति: वृद्धिं जयं कुरु, श्लोक-११. २.पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिसुराचार्यो; अंति: सुप्रीतस्य प्रजायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३८९९ (+) पुद्गलपरावर्त स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पुद्गलस्व०., संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३२). पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार, पुहि., गद्य, आदि: यह जीव आठ प्रकार से; अंति: इस संसार में किए हैं. ८३९०० (+) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, ले.स्थल. राधणपुर, पठ. श्रावि. धनुबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्री धर्मनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२३४१२, १२४३४). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पावै घj, ढाल-२, गाथा-२५. ८३९०१. नेमराजेमतीना बारमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:बारमासपत्र., जैदे., (२३४१२, १६४२८-३१). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वाम मेल; अंति: नवे निधि पामी रे, गाथा-१३. ८३९०२. कवित संग्रह-समयसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२.५, १८४३८). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८३९०३. (+) शीयल सज्झाय व जैनगाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, ११४४१). १. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, म. जसकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेसर पाय प्रणम; अंति: सकल श्रेय पामीजइ रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), गाथा-१. ८३९०४ (4) सुमतिनाथ व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४२५). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीस्युं बांधी; अंति: मोहन० वाहलो जिनवर एह, गाथा-७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी में पामीयो रे; अंति: कवियण अंतर दूर निवार, गाथा-७. ८३९०५ (+) धुलेवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४१२, १२४३७). आदिजिन स्तवन-धलेवामंडन, पंन्या. अमीविजय , मा.ग., पद्य, वि. १८९३, आदि: लाल रंगीला धलेवजी; अंति: (१)अमीयवि० धणी जगताय रे, (२)अमीयवीजय० लाल रंगीला, गाथा-८. ८३९०६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३३). महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: आरजदेसमां आरजदेस मगध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे है, "जरकसिमांडी अंबाडी" पाठ तक है.) ८३९०७. फाग, होरी व टपादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२३४११, १४४३८). १.पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. पुहिं., पद्य, आदि: आई सब खेलन होली; अंति: बोलत हे बाली भोली, गाथा-३. २. पे. नाम, पार्श्वजिन-आदिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: धूम मचि जिनद्वार चाल; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती टपो, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: कें खेलू बाहोरी डोर; अंति: आनंद० चतर चित चोरी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. महावीरजिन टपो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २४५ महावीरजिन टपो-आध्यात्मिक, पुहिं., पद्य, आदि: भयो बसंत मेरे० जिन; अंति: माहावीर से लीओ साच, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. पुहि., पद्य, आदि: आई सब खेलन होली; अंति: बोलत हे बाली भोली, गाथा-४. ६. पे. नाम. वख जोग, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पडेवे छठ इग्यारस जाण; अंति: चोरी माहेथी वरने खाय. ७. पे. नाम, अज्ञात जैन रास, पृ. १आ, संपूर्ण. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., किसी अज्ञात जैन रास की ढाल-१५ की गाथा १५ से १७ लिखी है., वि. "ए गाथा ३.१५मी ढालमांनी छे ते नवी लखी छे ते रासमां लखवी छे" ऐसा लिखा है.) ८३९०८. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जतारण, प्रले. सा. गेना (गुरु सा. धनांजी आर्या, स्थानकवासी); गुपि. सा. धनांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४३). सामायिक सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: दोषण टालेने करो रे; अंति: रीष आसकरण भणे एमो जी, गाथा-१६. ८३९०९ (+#) गुरुगुण पद व पंचतीर्थी चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३७). १. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इण जगमांहि धन्य एक; अंति: (-), (वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रम-१. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनष; अंति: कवी ऋषभ० महिमा घणो, गाथा-३. ३. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रम-२. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं शांति जिणंद; अंति: शांतिनाथ समरो सह, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रम-३. मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमु निसदिस जनम; अंति: जस महिमा जगमें रह्या. गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रम-४. मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु पासजिणंद कमठ; अंति: कवि ऋषभ० सानीध कीध, गाथा-३. ६.पे. नाम, महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रम-५. ___ महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीरजिणंद महियल; अंति: बहुजन पाम्या पार, गाथा-३. ८३९१० (#) यादवारो फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, ले.स्थल. गानारीया, प्रले.सा. होकमी (गुरु सा. वीनाजी); गुपि. सा. वीनाजी (गुरु सा. मीर्गाजी आर्या); सा. मीर्गाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:फागरोपं., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११.५, १६४३९). नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगीरै मन भावीयो रे; अंति: राजहरख० फाग रसालो रे, गाथा-३०. ८३९११. सरस्वती छंद व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१३, ८x२२). १.पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सोही पुजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: कीसो बोल पुरष को बोल; अंति: (-), (पू.वि. पद-३ अपूर्ण तक है.) ८३९१२. दयासूरि अमृतध्वनि व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. अमृतध्वनी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दयासूरि तपागच्छाधिपती अमृतध्वनि, मा.गु., पद्य, आदि: तपगच्छ प्रगतिनायक; अंति: दिस दयासूरि सूरिंदजी, (वि. गाथांक अस्पष्ट है.) २.पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आंणी मन सुद्धी आसता; अंति: माहरी चिंता चूर, गाथा-७. ८३९१३. (+#) पार्श्वनाथ लघु स्तवन व ज्योतिष संग्रह-यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, ९४२५). १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ८३९१४. पासजिन स्तवन, गणेश स्तुति व मांकण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोनी माहरा आतमराम; अंति: वरतु सदा बधाइ रे, गाथा-५. २. पे. नाम. गणेशजी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष कृष्ण, १०, प्रले. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. गणेशजी द्रपद, तानसेन, पुहि., पद्य, आदि: जे गणेश जे गणेश जे; अंति: गजानंद गावत सुखकारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. मांकण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-खटमल, म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो; अंति: कहे करज्यो जयणा हो, गाथा-७. ८३९१५ (4) अट्ठावीसलब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १५४५०). आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. ८३९१६. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्रद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ८-११४५०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संपत श्रीपार्श्व; अंतिः सीद्ध नवनिध तेह तणे, गाथा-११. २.पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ पास संखेसरौ मन; अंति: उदेरत्न भाखे०आप तूठा, गाथा-७. ८३९१७. प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११.५, १९४५४-५७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) । ८३९१८. श्रावकना अतिचार, अपूर्ण, वि. १७४३, चैत्र कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्रले. मु. महिमाशेखर; पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. बाह्यतप स्थूल अपूर्ण से है.) ८३९१९. सातलाख सूत्र, अढारपापस्थानक सूत्र व मुहपत्तीना ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २४७ १. पे. नाम. सातलाख सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदिः (१)ईछाकारेण संदेसह, (२)सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. अढारपापस्थानक सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. मुहपत्तीना ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ चित्त सद; अंति: जीमणै पगे परिहरूं. ८३९२० (+) चौरासी आशातनावर्जन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ९४३२). ८४ आशातनावर्जन स्तवन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अधिक तस जगि विस्तरइ, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ से है.) । ८३९२१. (+#) औपदेशिक सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३०). औपदेशिक सवैया संग्रह, क. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: तपकेनतापकेन जगिकेन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक ८३९२२. शंखेश्वरजी- स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंद शितल सुख भोग; अंति: वीर० तेडतां दोय घरी, गाथा-९. ८३९२३. (#) हितशिक्षा सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जेठाजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि.म. वेलजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १२४३१). १. पे. नाम, हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण सपूरण एक अरिहंत; अंति: सेजसुंदर चार बोल, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारमुं; अंति: सहेजसुंदर उपदेश रे, गाथा-८. ८३९२४.(#) दशविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पठ. श्रावि. जयवंतदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १२४४३). दशविधयतिधर्म सज्झाय, मु. क्षेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदइ विधिस्यउ; अंति: वइ हेलि शिवरमणी लहइ, गाथा-१३. ८३९२६ () राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३४). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: मुहपती पडिलेहे. ८३९२७. उत्तराध्ययन नियुक्ति की चयनित गाथा के उपर यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७३, भाद्रपद शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२३.५४१२, ७४४७). उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र बीच की ४ गाथाओं का चयन किया है.) ८३९२९ (#) महावीरजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १२४४३). For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिनवर नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ८३९३०. ठाणांगसूत्र व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४८-१४७(१ से १४७)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३१). १. पे. नाम. ठाणांगसूत्र, पृ. १४८अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अन्य. मु. रामजी ऋषि; मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:ठाणांगसूत्रं. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम मांगलिक मात्र "श्रीवीतरागाय _ नमोनम" पाठ है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १४८अ-१४८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन ऋषभ जयौ सदा; अंति: छीजै भव दव दाह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १४८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हो सुंदर अजित जिनेसर; अंति: ज्ञान० परमाणंद पाऊं, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सुरतबंदिर, पठ. श्राव. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभदेव स्वामी हो काल; अंति: जे शिवसुखगामी हो, गाथा-३. ८३९३१. नलदमयंती सज्झाय व गुरुगुण पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: सझाय., जैदे., (२३४११, १३४३३). १.पे. नाम. नलदवदंती संबंध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८२३, कार्तिक कृष्ण, ३, सोमवार. नलदमयंती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: है है दोषि देव तें; अंति: समयसुंदर० हुसी सुखी, गाथा-११. २.पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सदा प्रसन्न सुभाव; अंति: ते पैठेंगे या दरीयाव, गाथा-२. ८३९३२ (+) तपसीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:चोढाली०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४११, १३४३१). कचरा साधु चौढालियो-तपसी, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन नमी करी हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक ८३९३३. (+) उपदेशरत्नकोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, चैत्र शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. नैणसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३७). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: हियए रमइ संसारे, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेश रूपीया रत्न; अंति: रमइ स्वेच्छायइ करी. ८३९३४. महावीरस्वामि पारण, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. लब्धिविजय; राज्यकाल मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १४४४७). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल, गाथा-३१. ८३९३६. द्वादशभावना सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४११.५, १४४४३). १२ भावना, प्रा., पद्य, आदि: पढममणिच्चमसरणं संसार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक लिखा है.) १२ भावना-टीका, सं., गद्य, आदि: एताः अनित्यत्वादयो; अंति: (-), (पू.वि. पंचमी अन्यत्व भावना अपूर्ण तक है.) ८३९३७ (#) साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२९). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., 'सकल साधु सामाचारी' पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३९३८. प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १२४३५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८३९३९ (+) आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडवानगर, प्रले. मु. डुंगरसी; पठ. श्रावि. लीलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १२४२८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न्यानरै विषै दरसनरै; अंति: हुवै तो ति० मि०. ८३९४०. दशपचक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. हुंडी:दशपच्चक्खाण पत्र. श्रीसंखेश्वरपार्श्वनाथ प्रासादात्., जैदे., (२३४११, ११४२९). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नम; अंति: रामचंद तपविधि भणइ, ढाल-३, गाथा-३३. ८३९४१. (+) सामायिक व प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १५४४७). १.पे. नाम. प्रभात सामायिक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभातकालीन सामायिक की विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,रा., गद्य, आदि: पहिली इच्छामि खमासमण; अंति: एकही ओढणा ओढीयइ. २. पे. नाम. सांझणी सामाईक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली इच्छामिखमासमणो; अंति: बइसण पडिगाहेमि. ३. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिलइ दिहाडइ व्याल; अंति: पांगुरण कहीयइ. ४. पे. नाम. प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआचार्यमिश्रह; अंति: पडिकमणा चलावीयइ. ५. पे. नाम. पूजा पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दंडक ५ नमोत्थुणं१; अंति: गराणं द्वादिशोधिकार. ८३९४२. (#) अतीत अनागत वर्तमान तीर्थंकरादि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्रले.पं. हंसविशाल गणि (गुरु भट्टा. चरणसुंदरसूरि); गुपि. भट्टा. चरणसुंदरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४०). २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.ग., गद्य, आदि: केवलज्ञानी१ निर्वाणी; अंति: सो पावइ सासयं ठाणं. ८३९४३. (+) पांचबोल स्तवन, अपूर्ण, वि. १७४९, पौष कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. गौतमसोम; पठ. श्राव. मनजी जेसिंघ साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३४). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ८३९४४. भरतबाहुबली, सीतासती सज्झाय व सर्वार्थसिद्ध स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३१-३५). १.पे. नाम, बाहूबल स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भरतबाहबली सज्झाय, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय श्रीवरइ, ढाल-४, गाथा-३८. २. पे. नाम, सीतानी सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: मतिसागर० तणो हुं दास, गाथा-२३. ३. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथसीद्धने चंद्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८३९४५. थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२, १६x४५). ३६ नियंठा-भगवतीसूत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्र श्रीभगोतीमे; अंति: (-), (पू.वि. बोल-३४ तक है.) ८३९४६ (+#) महावीरस्वामी पंचकल्याण स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १०४३३). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंदू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८३९४७. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(२ से ३)=३, प्र.वि. हुंडी: बोलछूटा., संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४३५). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आठबोले करी धरमरक्षा; अंति: उनको उपाध्यायजी कहना, (पू.वि. 'अलोकनो लोक' से 'इन पांचों के भेद' पाठ तक नहीं है.) ८३९४८. () वेदनिर्णयपंचासिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १६x४६). वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जगत विलोचन जगतहित; अंति: नर विवेक भुजबल रहित, गाथा-५२. ८३९४९ गंगातेली कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२४१०.५, १३४३६). गंगातेली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: अथ हिवै सिद्धार्थराज; अंति: कासू करे ते कहै. ८३९५० (+) जैन धर्म प्रभावकपरुष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४२). जैनधर्म प्रभावकपुरुष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्न श्रीऋषभदेवजी; अंति: वंदणा नमस्कार होयजो. ८३९५१ (+#) घंटाकर्णमंत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र व आदीश्वर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. जीतविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १०x२९). १. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम, आदीश्वर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमलाचल; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ८३९५२. () पोसहप्रतिक्रमण विधि व वीसस्थानक विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १०४३७-५२). १.पे. नाम, पोसहपडिकमणा ठाइवारी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिली न्यानदर्शन; अंति: पडिकमणा करावीयइ. २. पे. नाम. वीसस्थानक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सचितवीय भूमिसुयइ; अंति: वार ३ गाथा उचराविय. ८३९५३. (+) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १४४४०). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org २५१ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछीत पूरे विविध; अंति: कुशल ० रिद्ध वंछित लहै, गाथा- १८. ८३९५४ (७) नेमराजुलनी सज्झाव व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१२, १२५३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. नेमराजुलनी सज्झाय, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी रे पिउजी नाम; अंति: रूपविजय०भेटे आशा फली, गाथा-७. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि मत खोवो राता मनुष्य, अंति (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८३९५५. (+) सोलसतीनी सज्झाय व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४X१२, १६×३७-४०). १. पे नाम. सोलसती सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदनाथ आदैजिनवर वंदी; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र नमनादेव; अंति: नित्यम् मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ४. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंति (-) (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) " ८३९५६ वीरस्तुति अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११, १७४५४). १. पे नाम वीरस्तुति अध्ययन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि पंचमहव्वयमुव्वयमूर्त, अंति (-) (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है., वि. गाथांक पूर्वकृति से क्रमशः है.) ८३९५७. (+) स्तुति व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५x११.५, १६x४५) १. पे नाम ऋषभ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि प्र उठी वंदुरीषभदेव अतिः ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हर्षवर्द्धन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि परव पजुसण पुन्ये पाम; अंति ने नीसदिन वीओ वधाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पांखीडा तुरी पांखडी; अंति: सीधचक्र वधाउ मोतीयां, गाथा- १. ४. पे नाम साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीतीर्थराजोपदपद्म; अंति: दाता ददतां सेवं वः, श्लोक १. ५. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः सुनो देवी दया नंदा, श्लोक - १. For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. रोटला वखाण, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ. मु. हर्षवर्द्धन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक पद-रोटला, भवानीनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: रोटलानु ग्यान ध्यान; अंति: कोइने संतोसे, पद-१. ८३९५८. (+-) स्थापनाचार्यजी पडिलेहण विधि व डांडीधरविधि आदि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११, १६x४०). १. पे. नाम. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पाटली पडिलेही थापीइ; अंति: ते मिच्छामि दक्कडं. २. पे. नाम. डांडीधरनी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. दांडीधर विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नीसीही आसज्ज नीसीही" पाठ तक लिखा है.) ८३९५९ संभवजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १२४३२). १. पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन सुखकारी प्रभ; अंति: दया०चित्त लावे हो, गाथा-१०. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. ईश्वर शिष्य, मा.ग., पद्य, आदि: मनमोहनगारा थारा जिन; अंति: पसाया मे थुण्यो रे, गाथा-७. ८३९६० (#) गजसुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १०४२५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८३९६१ (+) स्तवन व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्रले. मु. दुलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१३, १४४३४). १.पे. नाम. २२ अभक्ष ३२ अनंतकाय नामादि, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, १५, शनिवार. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुडां२ रात्रीभोजन२; अंति: वेला ३१आलू ३२पिंडालू. २.पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, १५, शनिवार, ले.स्थल. बीनातट. मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: ६ सन्नि २ आहारे २. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. रूपविजय, रा., पद्य, आदि: पुरसादाणी हो पासजी; अंति: करी देज्यो वारवारजी, गाथा-७. ४. पे. नाम. चिंतामणि स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, ले.स्थल. बीलाडा. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण डूंगरीयारी झीणी; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-६. ८३९६२. सामायकपोसानी वीधी व देववांदवानी विधि, अपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, पठ. मु. गुलाबजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११,११४३२). १. पे. नाम. सामायक पोसानी वीधी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सामायिकपौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नीयम संजुतो ईम कहीये, (पृ.वि. करेमिभंते उच्चरावण विधि ___ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. देववांदवानी विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडीकमीने; अंति: जैनं जयति शासनं. ८३९६३. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १७४३६). For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० औपदेशिक सज्झाय, ऋ. कनीराम, मा.गु., पद्य, वि. १९७४, आदि: का न पडाय भवुत रमाइ; अंति: कनीराम० ___ मंगलवार भजो, गाथा-२५. ८३९६४. २४ जिन कल्याणकदिन आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १९४३८). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: कार्तिकवदि ५संभव; अंति: सिद्धांत पूजा कीजइ. ८३९६५. सिल उपर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (१२१२) जादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४१). शीयलव्रत सज्झाय, मु. अचल, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: चंदवदन मृगलोचनी; अंति: देख म राचो रे मानवि, गाथा-१०. ८३९६६. पार्श्वजिन स्तवन व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१३, १३४२४). १.पे. नाम, पंचासरा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अविचल अक्षय, राय, गाथा-७. २. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: हो जी पुरो परम विलास, गाथा-५. ८३९६७. कलिजुग पंचमआरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२४.५४१२, १३४३२). कलियुग सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुण मुज प्राणी सीख; अंति: धर्मे चित्त लगायो रे, गाथा-८, संपूर्ण. ८३९६८. औपदेशिक सज्झाय-७ बोलयुक्त, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२४४१२, २४४१५). औपदेशिक सज्झाय-७ बोलगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुथ्या०नाणी अणगार रे, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ८३९६९ (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १६x४१). १. पे. नाम, जीवकाया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, म. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: तु मेरां प्रीउ साजना; अंति: तो पावे रंग कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम, स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न कीजै हो; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-४. ३. पे. नाम. शीलमुद्रडी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, म. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जोनि मानव भव लाध; अंति: वीनवइ आवागमण निवारजी, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण रुवडउ; अंति: सैहजसुंदर उपदेस रे, गाथा-६. ८३९७०. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १०४३०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मृषावादविरमणमहाव्रत आलापक अंतिम वाक्यांश से रात्रिभोजनविरमणव्रत आलापक प्रारंभिक वाक्य तक है.) ८३९७१ (2) नववाड, नमस्कारमहामंत्र सज्झाय व ऋषभदेव स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १६४५०). १. पे. नाम. नववाडगर्भितशील स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: उदयरत्न० जाउ भामणि, ढाल-१०, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधिरने पुछे ऐं; अंति: सिद्धविजय० सुणो वाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो पंडित ते कूण; अंति: रूप कहै बुध सारी रे, गाथा-५. ८३९७२ (4) आगमसारोद्धारग्रंथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत में सिद्ध भगवान का सामान्य वर्णन लिखकर छोड दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४४०). आगमसारोद्धारग्रंथ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टकर्म वन दाहकें; अंति: सफल फली मन आस, गाथा-१९. ८३९७३. उपधानतपविधि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, १०४२७). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; ____ अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८३९७४. (#) द्रौपदीसती भास, ईडरगढ गीत व व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है अतः अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. द्रौपदीसती भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-२२ तक लिखकर पूर्णता सूचक लिख दिया है.) २.पे. नाम. ईडरगढ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. यादवराय राठौड गीत-ईडरगढ, मा.ग., पद्य, आदि: ईडर आंबा आंबली रे; अंति: मुंधडी रही निरास, गाथा-११. ३. पे. नाम. व्याख्यान पीठीका, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-अर्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरीहंत भगवंत उतपन; अंति: (-). ८३९७५ (4) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, २०४४५). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसरि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही राउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मप्रभ स्तवन-६ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८३९७६. (+) रायप्रश्नीउपांग सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १११-१०९(१ से १०९)=२, ले.स्थल. विनातट, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५८२९, प्र.ले.श्लो. (८२८) जलात र? तैलात् रक्ष, दे., (२४४१२, ७X४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सा सुपास पसवणी णमो ए, सूत्र-१७५, ग्रं. २११७, (पू.वि. "तिचवणं उववातथंकडंमणोमाण" पाठ से है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: राज० टबार्थ कृत. ८३९७७. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:विपाकसू०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १६x४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालिणं २ रायगिह; अंति: (-), (पू.वि. "माणुस्स आणए मासुस्सं अरणे मा" पाठ तक है.) ८३९७८. समयसार आत्मख्याति टीका के हिस्से समयसारकलश टीका का विवेचन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २-१(१)=१, जैदे., (२४४१२.५, २०४४१). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., पद-६ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है., वि. अंत में एक कडी में कुछ पाठ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३९७९ (+) नवतत्त्वादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, ३१४७२). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८३९८०. स्थलीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में भरहेसर सज्झाय का प्रारंभिक पाठ लिख कर छोड दिया है., जैदे., (२४४१०.५, १४४३५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछले मात मलार बहु; अंति: लीला लीखमी घणीजी, गाथा-१७. ८३९८१ (+) सप्तौपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४३७). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: भणै वंछित सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१८. ८३९८२. पजुसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: चैतवंदन., दे., (२३४१०.५, १०४३०). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकलपर्व शृंगारहार; अंति: पालतां होवे जय जयकार, गाथा-१३. ८३९८३. (#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, शांतिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २०४४७). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रनी सज्झाय-अध्ययन १, पृ. १अ, संपूर्ण.. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर शांतिजिणंदनी; अंति: राम० नव निधि पासे छे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ८३९८४. (2) अग्यारअंग बारउपांग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ९४३३). ११ अंग १२ उपांग सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अंग इग्यार सोहमणा; अंति: ज्ञानविमल सुनेह तो, गाथा-६. ८३९८५. (+) चौमासी-संवच्छरी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३२.५४११.५, १६४३०). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: देवसीयो पडिकमणु; अंति: देवसी पडीकमणु करवु. ८३९८६. (#) द्वारिकानगरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११, १६४३५). द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वलती देखी दुवारकाजी; अंति: माहा दुख पडिओ आय रे, __ ढाल-१, गाथा-२१. ८३९८७. परदेशीराजा व अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १४-१६x४४). १. पे. नाम. परदेशीराजानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रदेशीराजा सज्झाय, पहिं., पद्य, आदि: जैसे लोह को पारस मिल; अंति: केवली वचन प्रमानजी, गाथा-१५. २. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयवाडी चढ्यो; अंति: पहुंचे शिवपुर मोक्ष, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५६ " ८३९८८. (१) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५X११.५, १७x४८). १. पे. नाम. चौदस्वपन सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. " १४ स्वप्न सज्झाय, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले गहवर देखीयाजी; अंति: कांइ सुकन तना फल थाय, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: श्रीसंत प्रभूजी सांत अति: प्रभूजी ने ध्यायांजी, गाथा-५. ३. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि चित चाहत सेवा चरण की अति हरखचंद० मिटावो मरन की, गाथा-७. ४. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राघव, पुहिं., पद्य, आदि दुलोकित गय नरपति; अंतिः राघव०कर्म के झकझोलते, गाथा- १२. ५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीन आया हो सोरठन; अंति: करजोडी रत्नु भणे, गाथा-१४. ८३९८९. सासउसास को थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २३१०.५, १६x५१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु., रा. गद्य, आदि मगददेस राजगारी नगरी, अंति: ४२ कोड ४८लाख ८० हजार. ८३९९० (+) अंजनासुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २० - १९ (१ से १९) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जै.. (२३.५x१०.५, १७x४०). अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १७०६, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. खंड-३ डाल-१२ दूहा -२ अपूर्ण से ढाल १४ दूहा १ अपूर्ण तक है.) ८३९९१. (+) गजसिंघ रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५X१०.५, १९x४०). ११४३२). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पू. १अ २अ, संपूर्ण. गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरहंत सीध सेवत गणु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १५४ तक लिखा है. ) ८३९९२. सूर्यचंद्रमंडल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, वे. (२३४१२, १x२३) "" सूर्यचंद्रमंडल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्विपमां वे चंद, अति: १५ सुधी उत्तरायन होय. ८३९९३. (+) सीखामण रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जै. (२३४१२, १२४३१). . बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई, अंति: सवी टले कलेश तो, गाथा- ६५. ८३९९४ (+) तपश्चर्या-व्रत-उद्यापनादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४. पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५X१२, १५X३८). तपश्चर्या व्रत उद्यापनादिविधि संग्रह, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि (-); अति (-), (पू.वि. चैत्रीपूनमदेववंदन विधि अपूर्ण से पंचमीतप विधि अपूर्ण तक है.) ८३९९५. महावीर स्तवन व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४x११, महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर सुणो मोरी, अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलउ, गाथा १९. २. पे नाम पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणारसीमंडण जिणपास; अंति: तुठा नवनि आंगणे, गाथा ३७. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८३९९६. (+) चार निक्षेप स्वरुप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११.५, १३४३८). ४ निक्षेप स्वरुप, पुहि., गद्य, आदि: कोइभी वस्तूमें गुण; अंतिः सम्यक्त्वकेवलज्ञानसो. ८३९९७. (+) माणिभद्रवीर छंद व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. गढवल्लभी, प्रले. केशरसिंघ मथै; पठ. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२७२) जलातुं रौ स्थिलातुं रक्षै, जैदे., (२४४११, ९४३४). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: आपो मुझ सुख संपदा, गाथा-४३. २.पे. नाम. माणिभद्रवीर मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३०४) सिहाई डबी अरमचडी. माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो श्रीमाणिभद्राय; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-१. ३. पे. नाम, माणिभद्रवीर छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमणिभद्र सदा समरो; अंति: मुनि सुजस लहे, गाथा-१०. ८३९९८ (+) वीतराग वाणी व व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. खीमत, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१३, १४४२७). १. पे. नाम. वीतरागनी वाणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वीतराग वाणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भववेल कृपाणी संसार; अंति: प्राणी पसतापो करसो. २. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रे जीव भवप्राणी सदा; अंति: सीद्धांतनी वाचनाई. ८३९९९ बारभावना विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.४, जैदे., (२३४१२, २४४५६). १२ भावना विवरण, पुहिं., गद्य, आदि: अनित्यभावना ऐसा विचा; अंति: मोक्ष पधारे. ८४००० (+) प्रियमेलक रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,४)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, १८४४६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० इधक प्रमोद, ढाल-११, गाथा-२२०, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक व ढाल-६ दूहा-६ अपूर्ण से ढाल-७ अपूर्ण तक नहीं है.) ८४००१. नवनिधान स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, १५४४०). ९निधान स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नेसप्पे१ पंडूअए२; अंति: अधिष्ठायक एहवा निधान. ८४००२ (+) जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४४०). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., पठ. मु. हरिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. __ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. टबार्थ यत्र-तत्र है.) ८४००३. चौदस्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सोलसुपन., दे., (४७४११, १८४४७). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ८४००४. (+#) वीरजिन स्तवन व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन पासजी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १२४२६). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सासणनायक वीरजिणंद; अंति: गर करजोड करीजे वंदणा, गाथा-५. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद सकलरिपु जीततो, गाथा-५. ८४००५ (+) ६२ मार्गणा द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ५९४२८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूलभाव ५ उदयिक उपशमभ; अंति: (-), (पृ.वि. आदिअनादि भाव वर्णन अपूर्ण तक है., वि. यंत्र सहित.) ८४००६. तेरकाठीया सज्झाय व सिंधुचतुर्दशी, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १७४३८). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: दसा कहिये तेरह तीन, गाथा-१४. २. पे. नाम. सिंधुचतुर्दशी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: जैसे काहु पुरुष कौ; अंति: मुनि चतुर्दशी होइ, गाथा-१४. ८४००७. (4) गोचरी के ४२ दोष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ५७X२७). गोचरी के ४२ दोष *, मा.गु., गद्य, आदि: शय्यांतरपिंड लागउ; अंति: (-), (पू.वि. २७वां दोष अपूर्ण तक है.) ८४००८. (+#) मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३८). मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोलइ ग्रंथ संभा; अंति: लाल० विघन निवारी, गाथा-४. ८४००९ समकित स्वरूप व धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १४४२९). १.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरो; अंति: म राम कहे शुभ सीस रे, गाथा-५. २. पे. नाम. समकितनुं स्वरूप, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्व स्वरूप, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ते समकित त्रिण; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रवृतिकरण का वर्णन अपूर्ण तक है.) ८४०१०. समवसरणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १३४४१). महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन वंदीये; अंति: जस० जिनपदसेवा खांति, गाथा-१७. ८४०११. बारदेवलोक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. सौभाग्यविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बारदेवलोकनुमानंप., जैदे., (२३४१२, १३४३३). १२ देवलोक नामादि विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो सुधर्मदेवलोक; अंति: हस्र जिनबिंब नमस्करू, गाथा-१२. ८४०१२. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पंन्या. खांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १०x२४). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: वजीआ रातिने अंधारिमे; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. ८४०१३ (#) ऋषभजिन स्तुति, पार्श्वजिन स्तवन, पार्वती स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४५). For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे. नाम. पार्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरसांमणि सुरसांमणि अति: सांई सेवो सुरसामणि, २. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. सुबुधविजय, पुर्हि, पद्य, आदि ऋषभजिन अरज इसी अवधार, अंति: सुबुध० सुक्रत सारो, गाधा- ३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. सुबुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि अलवेसर प्रभु पासजिणे; अंति: सिध० सुबुध सुख थाई, गाथा ५. ८४०१४. (४) आत्म भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२३X११.५, १४X३९). आत्म भावना, मा.गु., सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानाय श्री अंति (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) 3 ८४०१५. (+) शीयल गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., ., (२३.५X११.५, १०x२४). शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि सुणो समजो सकल नरनारी; अति कवीवण० सीखो जरुर सी, गाथा - १८. ८४०१६. प्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. २१-१८ (१ से १८) = ३. पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२३५११, " " ४x२३). ८४०१८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५X११, १७x४३). १. पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "वं असंकिआभावा फासू" से "कमलावलिं दधत्या सदृशैरति" तक है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (-); अति: (-). २५९ औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण स्वार्थ, रा., पद्य, आदि: माता पिता बंधव भाइ; अंति: केवलीनो भाख्या धारो, गाथा - १५. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि राजतणी अति लोभीया; अंतिः वीरा हो गज थकी उतरो गाधा-७. ३. पे नाम. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, . चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक हदकीनी दोय; अंति: काती मासमे धर्म सारा, गाथा- १३. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि आज नाभ दुवार मची है; अंतिः कीदो उन मिलकर जोडी, गाथा ४. ८४०१९. (*) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, वे. (२३.५x११.५, ९x४३). "" मिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: तोरण आवी कंत पाछा, अति नेम अनुभव कलीया रे, गाथा - १५. ८४०२०. मौनएकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२३.५x१२.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only " एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पुछि वीरने सुणो; अंति सुव्रत सेठ सझाय भणी, गाथा- १५. "" ८४०२१. (-) १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी काटी, अशुद्ध पाठ. वे. (२२.५x११.५, २२४३३). १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतन चिंतामण जेहवो; अंति: आसकरण० सेर चोमासजी, गाथा-२२. Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४०२२. चउगतिवेल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. योग्यसुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११,११४३४). ___ नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन वीर तु; अंति: यामणे परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ८४०२३. गौतमस्वामी सज्झाय, श्रावक के १४ नियम व २१ गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१२.५, १४४४२). १.पे. नाम, गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम स्वामी प्रीछा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, श्रावकना १४ नेम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त कहेतां वीयो; अंति: भातपांणीरी मरजादा. ३. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो गुण लज्यावंत १; अंति: पाप क्रियासु अतीत, अंक-२१. ८४०२४. उपदेशबत्तीसी व मिथ्यादृष्टी वृतांत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १८४५५). १.पे. नाम. उपदेश बत्तीसी, प. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. सा. रूपी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य. अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि.१६८५, आदिः (-); अंति: बालचंद० छंद जाणीइं, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मिथ्यादृष्टी का वृतांत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मिथ्यादृष्टि वृतांत, पुहिं., पद्य, आदि: वेसी मिथ्यासुत वाणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) ८४०२५ (+) धर्मजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. दोलतराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४१०.५, १०४३२). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणलैनाथ अरज मेरी; अंति: दर करो दुख की बेरी, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण... प्रा.,सं., पद्य, आदि: बिंबाकारं सुधासारं; अंति: मंत्रणं तस्मान्न दोष, श्लोक-२. ८४०२६. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, ११४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: लीह प्रथम पीतमात; अंति: त्रीण एकलीह राखीसरे, पद-१. २. पे. नाम. बिछु मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. वृश्चिक विष उत्तारण मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ॐनमो आदेसगुरुकु कालो; अंति: डंक छोर ॐनमः स्वाहा, मंत्र-१. ३. पे. नाम, दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. दहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: राजा नारी जोगपंथ इहा; अंति: सदा न काला केस, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में हांसिये में लिखी गई है. मु. ज्ञान, पुहि., पद्य, आदि: जदुराय चढे वर राजुल; अंति: ग्यान० गज गाजत गरड, पद-१. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... ___ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआरे गुण तुम्ह; अंति: जस० जीवन आधारो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८४०२७. रोहणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४x१२.५, १३४३१). रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४. ८४०२८. चोवीसजिनमाता, पिता, गाम, लखनादि नाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२३.५४१२.५, १७४४८). २४ जिन स्तवन- मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि सयल जिनेसर प्रणमी अंति बोधवीज साची जिन सेव, गाथा - २७. ८४०२९. चरणसित्तरी करणसित्तरीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७४ पौष कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल पेधापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १२, दे. (२३.५x११.५, ७२६). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि पंचमहाव्रत दशविध यति अंति जगमां कीर्ति १३X२८). १. पे नाम. चौबीशजिन आंतरा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वाघोजी, गाथा ७. ८४०३०. (*) चौवीशजिन आंतरा व प्रभातीया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४.५४११.५, २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू रिषभजणेसर नमी; अंति: सवसुख देजो संपदा, गाथा-१८. २. पे नाम. १२ पर्षदा प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा-प्रभाती, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती पच्छिम दीप; अंतिः सेवक वांदि वनिकरा, गाथा-५. ८४०३१. (*) आवककरणी सज्झाय व सिद्धचक्रतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य श्राव, ऋषभदेवजी श्राव. सत्यदेवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित दे. (२३४१२, १३x२६). १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २६१ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. २. पे. नाम. सिद्धचक्रतप स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५१, आदि: भारथी भगवती पाय नमी; अंतिः सेव्या सिद्ध थाय, गाथा - १४. ८४०३२. (*) स्तवनचीवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x११.५, १४४३४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाला हो; अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सुविधिनाथ स्तवन गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ८४०३३. . (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. राजहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४.५X१०.५, १५X३९). नेमिजिन स्तवन- नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसहगुरुना पायद अंति: ल सेवा सयल जग आणंदणो, गाथा-४३. ८४०३४. नेमनाथराजमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, जैदे., ( २४४११, ९X२८). नेमिजिन बारमासा, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: समरुं सरसति मातने; अंति: नित नमु शुभ भावसुं, गाथा - २८. ८४०३५. (*) शांतिनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. हुंडी: सतोत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२४४११, १०x२९). शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारव मात नमो सिरनामी, अंतिः निश्चे शिवसुख पावे, गाथा-२१. ८४०३६. आचारछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. हुंडी आचारछ, वे. (२४४११.५, १७४२९) For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध समकित पाया; अंति: रतनचंद०० थोडो संसारो, गाथा-३८. ८४०३७. (+) वीरजिनपूजाविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. संतोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "दस अभिगम" नामक कृति का प्रारंभ करके छोड़ दिया है., संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४३१). महावीरजिन स्तवन-पूजाविधि दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जिणेसर; अंति: गुणविमल जयो जगदीस, गाथा-२७. ८४०३८. (+) समवसरण स्तवन व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११.५, १२x२५). १. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एकवार वच्छदेश आवजो; अंति: ओच्छव रंग वधामणा, गाथा-१५. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: पुज्यनीया सरस्वती, श्लोक-११. ८४०३९. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ९)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२,१३४३३). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "वचन बोले सो सिंह" से "मोटा नवबोल" पाठ तक है.) ८४०४० (+#) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. युक्तिअमृत मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १४४३५-३८). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्र; अंति: हिण ९ वास १० उसगो ११. ८४०४१. नववाडीविवरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२४११.५, ११४२८-३०). नववाड सज्झाय, उपा. आनंदनिधान गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: श्रीभगवंत इम उपदिसे; अंति: यां माहे एह प्रकाशे, गाथा-२७. ८४०४२. (+) नित्यकृत्यपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हंडी:मायावि विधि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२.५४११, १३४२९). श्रावक नित्यक्रिया विधि-दैनिक पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: भूमिशुद्धि १ अंग; अंति: क्षमस्व परमेश्वरः. ८४०४३. (+) वर्तमान व अनागत तिरसठशलाकापुरुष नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १३४१८). १. पे. नाम, वर्तमान ६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम-वर्तमान चौवीसी, मा.गु., गद्य, आदि: श्री भरत चक्रवर्ति; अंति: जीव श्री भद्रंकर. २. पे. नाम. अनागत ६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १. दीर्घदंत चक्रवर्त; अंति: संकर्षण बलदेव. ८४०४४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३४११.५, १२४३०). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: निर्मली उपशम रस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: वली दीजे दोसोटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: उदयरतन० रे प्रांणी, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४. पे. नाम. लोभनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, म. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लक्षण जोज्यो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-७. ८४०४५. पंचपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२.५४१०, १६x४३). पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: श्रीगुरुदेव के चरणार; अंति: सुखमे लहे सहस भावसुं, गाथा-६४. ८४०४६. (4) नेमिनाथ स्तवन व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२,११४२३-२५). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेऊगी साथ पिया; अंति: तुमारो देजो भगतीसार, गाथा-१०. २. पे. नाम, सरस्वतीजीरो छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण... सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४०४७. (#) वृद्धनमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. थोभ, प्रले. श्राव. ताराचंद परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वृद्धनमस्कारस्तवन., टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४११, १२४३०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ८४०४८. (-) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०, २०४४७). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जाग रे हे सदा नीचं; अंति: छिडकत हुं गुरुदेव. ८४०४९ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४३३). औपदेशिक सज्झाय-घेबर जमाई प्रसंग, म. सिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणेस्वर आददे तिर; अंति: भाखी एह सिवलाल, ढाल-२, गाथा-३२. ८४०५०. लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९०५, वैशाख कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१२, २९४५४). लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: जीव गइ इंदिय काए सुह; अंति: पजवा अनंतगुणा अधिक. ८४०५१. पंचेंद्रीय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १४४३२). ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: सुजांण लहो सुख सासता, गाथा-६. ८४०५२ (#) श्रेयांसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १७४३८). श्रेयांसजिन स्तवन, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीपास जिनबर जय; अंति: अग्यारमो जिनवर जयो, गाथा-१५. ८४०५३. अजितजिन स्तवन व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध, जैदे., (२३.५४१२, २४४२५). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर मुजने; अंति: हरा हवे भव पार उतार, गाथा-५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवि सुत प्रात; अंति: सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ८४०५४. (+) १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ९४२६). १८ नातरा सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण गाय रे मन रंगीला, गाथा-१२, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-१० अपूर्ण तक एवं ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४०५५. जंबुस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:जंबुक०., जैदे., (२२.५४१०.५, १३४२८). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरो बासी घरम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक ८४०५६. (+) स्तवन, औपदेशिक गाथा व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४३५-६२). १. पे. नाम. शुठी व दुग्धगुण वर्णन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. औषध संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वातं निर्दलयन् कफं; अंति: दुग्धं सत् चक्षुष्यं. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. गाथा संग्रह ,प्रा., पद्य, आदि: दिट्ठवीयाण दिवसे; अंति: खीणतन कस्स संदेहो, गाथा-२. ३.पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. चारित्रकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: ओलगडी अवधार रे तेवीस; अंति: चितमै धारिने रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सुंदर मूरति; अंति: जिनहर्ष० ताहरा पायौ, गाथा-९. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: सहीयर टोली भांभर; अंति: हितसं हेत बणावोने, गाथा-५. ८४०५७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३३). नेमराजिमती पद, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमट आई साहिबाजी वादल; अंति: भावसुं वंदे वारोवार, गाथा-१०. ८४०५८. अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५४११.५, ८x२५). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिनवर एम उपदेसे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८४०५९ (4) जंबुस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है, कृति अपूर्णता के कारण अनुमानित लिया है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, ७४१९). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तस लब्धिविजय गुणगाय, (पू.वि. गाथांक नहीं लिखा है, अंतिम ढाल का "नर ईछे अत घणी रे" पाठ से है.) ८४०६०. (4) पंचवधावा, सामान्यजिन व नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १९४५०). १.पे. नाम. पंचवधावा, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचवधावा सखी मो मन; अंति: जिनवर पंच संबोधनीजी, गाथा-६. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर गुणराशि; अंति: धर्ममुनि० सकल कल्याण, गाथा-१५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीने वीनवू; अंति: हु मिलीया मुगत मुझार, गाथा-२८. ८४०६१. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, ८-१३४२२-३५). १. पे. नाम. १० बोल नियाणा विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभ में "चोवीसबोल तपसाना" ऐसा लिखा १० बोल-नियाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तपसा करीने नीयाणु न; अंति: पण खमा करी जाणजो. २. पे. नाम. दसबोल महावीरस्वामी पछी विछेद गया, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २६५ १० बोल-महावीरस्वामी के बाद विच्छेद गई वस्तु, मा.गु., गद्य, आदि: जथाख्यातचारित्र विछे; अंति: छेद गइ ते जाणजो१०. ८४०६२. औपदेशिक दोहे, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, १६x४५). औपदेशिक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ के सब ही सके; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दोहा-४० अपूर्ण तक ८४०६३ (+#) तत्त्वविचार काव्य व धर्ममूलकाव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. सुमतिकल्लोल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ३४४८). १.पे. नाम. तत्त्वविचार काव्य सह अवचूरि, पृ.१अ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत५; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह-अवचूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्त्वानि नवतत्त्व; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य खंडित २.पे. नाम. धर्ममूलकाव्य सह अवचूरि, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं३ द्रव्यषङ; अंति: स च वैशुद्धदृष्टि, श्लोक-१, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, वि. आदिवाक्य खंडित है.) ८४०६४ (+#) अंजनासंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४४१-४८). अंजनासंदरी चौपाई, ग. भवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-९ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-११ की दुहा-२ अपूर्ण तक है.) ८४०६५ () नेमराजिमती नवरसो, अपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १६४२९-३३). नेमराजिमती नवरसो, म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), ढाल-९, गाथा-४०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ से है व ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४०६६. बीज स्तुति व एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १०४२८-३५). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: पुरि मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: अविचल लीला लहस्ये, गाथा-७. ८४०६७. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४१-४५). १.पे. नाम. गोशाला के १२ श्रावकनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तोलो१ तालप्रलंब२; अंति: अरिहंत करीने माने छे. २.पे. नाम. १५ कर्मादान नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १५ कर्मादान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इंगालकम्मे क० लीहाला; अंति: असती पोषणया कहीइ. ३. पे. नाम. पांचमेरुना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुदर्शनमेरु१ विद्युत; अंति: विद्युन्मालीमेरू. ४. पे. नाम. लाख योजन प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: आंखि मीच उघाडीइ एतला; अंति: ए राजनुं मान कह्यु. ५. पे. नाम. १२ दर्लभ वाना-लोकने विशे, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ दर्लभता नाम-मनुष्यभव, मा.गु., को., आदि: मानुष्याअवतार१ आर्य; अंति: आस्ता११ संयम१२. ६. पे. नाम. १० ज्ञाननक्षत्र बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६६ www.kobatirth.org १२X४४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० नक्षत्रज्ञान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: मृगशिर१ आद्रार पुष्य, अंति भण्यु ज्ञान वधारह ७. पे. नाम. ४५ आगमश्लोक संख्यामान, पृ. १आ, संपूर्ण. ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान, मा.गु, गद्य, आदि पिस्तालीस आगम सर्व अति एतली संख्या थाइ ८. पे नाम ज्ञानार्जन विशे हितशिक्षा, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु.. गद्य, आदि जो पणि दिवस प्रते एक; अति ज्ञान सीखवु वांछि छ ८४०६८ औपदेशिक सज्झाय व १० पच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२४.५४१०.५, 19 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोयम गणहर पाए लागुं; अंति: डि जिम परमानंद पाउरे, गाधा- ९. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि दसविह ग्रह ऊठी अंति: पामि निच्चि निरवाण, गाथा-८. ८४०६९ (*) संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, सांजनी पडिलेहण विधि व औपष संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ४-३(१ से ३) = १ कुल पे ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१२, १४४३४). "" १. पे. नाम संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: ज्ञानादि कहीइं, (पू.वि. वंदित्सुसूत्र के पाठ से है.) २. पे नाम. पौषधमे संध्यापडिलेहण विधि, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि पहेली हरीया० तस्सउत्; अंति: मुठसौरू पचखाण. ३. पे. नाम. औषध पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. " " औषध संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वालोजी दिखालो करै; अंति: प्रभु राखज्यो करार, गाथा-६. ८४०७० बाहुबलि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध. दे. (२३४११, १०x२३). भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १७वी, आदि राजतणा अति लोभीया; अंति समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ८४०७९. मुंहपत्ति के पच्चासबोल व शनिसरजी का छंद, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले स्थल, जेसलमेर, जैदे. (२३४११, ११४३८). "" 1 १. पे. नाम. मुहपत्ति के पच्चास बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवत्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि सुत्रार्थ तत्वदृष्टि, अंति: मुंहपतिरा बोल कह्या. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुराराज विष्टाय न; अंतिः विदधमं सततामिव मंगलं, श्लोक १०. ८४०७२. (+) गजसुकमाल सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे ४, ले. स्थल जहेनगर, प्रले. श्रावि रुपाइबाई. For Private and Personal Use Only प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X१०.५, १२×३२). १. पे नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीन आया हो सोरठन; अंति: करजोडी रत्नु भणे, गाथा - १३. २. पे नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रभवमाही पुणबध्य अति हा जी हा जी करत हे गाथा- १. , ३. पे. नाम. कृष्ण भजन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि कए न कछु सुणे य सब अंति नगर आगिन आनत कुंन, दोहा-७. " ४. पे नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हांसिया में लिखा है. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि बाजत्रीकुल जंतरी तुज; अंति: कापडी तुज अरपहीनावर. Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४०७३. (#) औपदेशिक कवित व विक्रमराजा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ३४४२०). १.पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मु. सुखराज, पुहिं., पद्य, आदि: आरंभ कीयो अपार पापको; अंति: सुख० प्रभुजी को दरसण, पद-१. २.पे. नाम. विक्रमराजा कथा, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: उजीणीनगरी राजावीक्रम; अंति: (-)... ८४०७४. सिद्धांत चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४३७). सिद्धांत चर्चा-विविध विषयक, पुहिं.,प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: महात्म्यमै प्रगट है. ८४०७५ () गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १६४३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी सुणी जिनराज तणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ तक है.) ८४०७६. स्तवन, पद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., जैदे., (२३४१२, ३२४२०). १.पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनंद्र० तसु नेहरे, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवद कै पार; अंति: चरणकमल का दासा है, गाथा-४. ३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ; अंति: जस कहे हेजई हलस्युं, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. विनोदलाल, पुहि., पद्य, आदि: आसरा तुमारा जैसे डुब; अंति: ब मेरा मुगतपुरी डेरा, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. कुसालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखोने आदेसर साहेब क; अंति: कुसालचंद गुण गाया है, गाथा-४. ६. पे. नाम. सुमतिजिन गीत-समवसरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुंगइती समवसरणां; अंति: जीतना डंका वाज्या रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारी लागे२ प्यारी; अंति: रो सेवक पार उतारो रे, गाथा-५. ८४०७७. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, ९४२०). १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सितलजिनव्र करु प्रणा; अंति: इहना गुण समरो नीसदीस, गाथा-५. ८४०७८. (+) मनगुणतीसी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बलाडा, प्रले. पं. आनंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, २७४१९). मनगुणतीसी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म मेले रे ए; अंति: पाप प्रणासे रे दुर, गाथा-२४. ८४०७९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, १४४३४). औपदेशिक सज्झाय, मु. नंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अरिहंत को नाम; अंति: नंदलाल यह भेद गावे, गाथा-१०. ८४०८०. स्तवन व पदसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (३३.५४११, १५४३२). १.पे. नाम. ऋषभजिनपद, प. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म.क्षमाकल्याण, मा.ग., पद्य, आदि: प्रात उठि समरियै; अंति: कल्याण चरणु की सेवा, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६८ २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण, मु. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २३-२आ, संपूर्ण www.kobatirth.org जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सूरत मूरत मोहनगारी अंतिः जिनहरष घरे मन ध्यान, गाथा ५. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनसुखसूरि, पुहि., पद्य, आदि कीजे कीजे कीजे सुनिज; अंतिः जांणी दरसण दोलत वीज, गाथा- ६. ४. पे नाम औपदेशकि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, नामदे, मा.गु., पद्य, आदि: रे मन पंखीया म पडस प; अंति: रामसु चित लाय रे, गाथा-५. ८४०८१.(+) ऊठाणारो सीलोक, बडो नवकार व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु, दोलतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१२, १३३०). १. पे नाम ऊठाणारो श्लोक, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं णमो अंतिः शांतिनाथ सोलमा जिणंद. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कल्पतरु रे अयाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चला लक्ष्मी चला; अंति: धर्मयेकोपि निश्चलः, श्लोक - १. "" ८४०८२. महावीरजिन चौडालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. हुंडी महावीरजी., जैवे. (२३.५x११.५, १६५४३). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिधारथकुलमै उपनी तीस; अति कीयो दीवाली रे दीन ए, ढाल ४, गाथा - ६३. ८४०८३. वीर पारणु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४X११, १०x४६). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल, गाथा - ३२. ८४०८४ (क) अगियार अंगनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही "" फैल गयी है, जैदे., (२२x१२.५, १३X३२). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वाध्याय-५ गाथा-६ अपूर्ण से स्वाध्याय-११ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ८४०८६. नेमजिन तपकल्याणक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २ ) =२, जैये. (२३x४, १४x२७) (२३.५X१२, ११-१३x४२-४७). १. पे नाम. रुक्मिणी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंगल-३ अपूर्ण से है व मंगल-४ तक लिखा है.) " ८४०८७. मेघकुमार चौढालीयो व अषाढाभूति चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२४४१०.५, १५४५५). १. पे नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. १अ २अ, संपूर्ण क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहि जाणीयइ र; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा- ४८. २. पे नाम. आषाढाभूति चरित्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण , आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः श्रीजिनवदन निवासिनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४०८८. रुक्मणी, मेघकुमार व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी: सिज्झाय पत्र, जैदे., For Private and Personal Use Only रुक्मणीसती सज्झाव, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि विचरता गामो गाम, अंतिः जाय राजबिजय रंगरम, गाथा - १४. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पू. ११-२अ संपूर्ण. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि वीरजिणंद समोसर्या जी अंति ते तरस्यै संसार, गाथा १८. Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २६९ ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म करो रे प्राणीया; अंति: ते पामै सिवलीला रे, गाथा-१०. ८४०८९ (+) गोचरी के ४२ दोष व बोलसंग्रह साधु के लिये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कल पे. २.प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. गोचरी के ४२ दोष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकरमी जती निमते; अंति: वैरावै ते नलइं. २. पे. नाम. बोलसंग्रह साधु के लिये, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आगमिकबोलविचार संग्रह-धार्मिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई साधु राते औषध; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-१४ तक लिखा है.) ८४०९० (+#) संथारापोरसीसूत्र व चौवीस मांडला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणां, प्रले. मु. सिवचंद (गुरु ग. उत्तमचंद्र, तपागच्छ); गुपि.ग. उत्तमचंद्र (गुरु ग. उदयचंद्र); पठ. श्रावि. झवेरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२६). १. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. २.पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसणे उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ८४०९१ (+) नेमनाथ बारमासो व स्त्री लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२-१४४३०-३२). १. पे. नाम. नेमनाथ बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: दिल शुद्ध प्रणमुं; अंति: सुख हुवै श्रीकार, गाथा-१४. २. पे. नाम. स्त्री लक्षण, पृ. २अ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: पुप्फवास पदमनी सहज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८४०९२. नेमराजुल प्रेमपत्रिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३४१२.५, १३-१५४४३). प्रेमपत्र- राजिमती का नेमिजिन के नाम, मु. ऋद्धिसार, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीगिरनारगढ; अंति: मी रची कवि ऋद्धिसार, गाथा-५१. ८४०९३. (4) श्रावक ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:३ बोल., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १५४३६). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणोपासक श्रावक ऐस; अंति: प शास्वता स्थान पामे. ८४०९४. (#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल, जोधपुर, प्रले. मु. पुनमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१०.५, १०४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिन; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: अंतरजामी सण अलवेसर; अंति: जिन० भवसायरथी तारो, गाथा-५. ८४०९५ (2) ज्ञानपंचमी व नेमराजिमति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पोमावसग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४२९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन, पृ. २आ-२३ अपूर्ण से है, उदर गणि, मा.ग. २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: भगत भाव प्रसंसियौ, ___ ढाल-३, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, नेमराजीमति स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. ८४०९६. समाधिमरण २८ भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:अठावी०भा०., जैदे., (२३४१२, २३४५५). २८ भावना-समाधिमरण, पहि., गद्य, आदि: १ अहो देखिये इस; अंति: से ही इस शरीर से जान. ८४०९७.(-) कुंथुजिन, पद्मजिन स्तवन व मनभमरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४११, १२४३५-४०). १. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडुं; अंतिः साचो करि जाणुं हो, गाथा-९. २.पे. नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री पदमप्रभु जिनराय; अंति: संघने दी इम आसीस ए, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलौ मन भमरा काइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८४०९८. अढारनातरां सज्झाय व दहासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १३४३७-४१). १.पे. नाम, अढारनातरा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलीने समरू रे पास; अंति: निधि होइ रे मनरंगीला, ढाल-३, गाथा-३२. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहासंग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लव्यंगचर काजे करे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८४०९९ (4) पुण्यप्रकाशनुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ तक है.) ८४१०० (+#) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १४४३९). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., पद्य, आदि: भद्दलपुर बासी षटबंधव; अंति: लबधी० लहीयै परमाणंद, गाथा-२३. ८४१०१. जंबकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. धंधोडा, प्रले. पं. नानगचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हरकुंवरजी के मुह से सुनकर लिखा है., जैदे., (२४४१२, १३४३८). जंबुकमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतचिन वाही काची सेली; अंति: जी दीयो सेतषाने चलाय, गाथा-१८. ८४१०२. नवकारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२२.५४१२, ११४२४). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. ८४१०३ (+#) व्याख्याननी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४४१). For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २७१ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मंगलिकमाला संपजे, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., आदिनाथ स्वामी के पवित्र वर्ण का वर्णन अपूर्ण से है.) ८४१०४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, ३८x२०). वचनगुप्ति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वचन विचारी रे सजन; अंति: पामइ सुख तहकीकस, गाथा-१५. ८४१०५ () सरस्वती छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १२४२३). सरस्वतीदेवी छंद, म. सहजसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सोई नित पूजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से है., वि. अंत में भगवान महावीरस्वामी की जन्मकुंडली बनाई हुई है.) ८४१०६. चतुर्दशीतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, ले.स्थल. पाहलणपुर, जैदे., (२४४११, ८४३५). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र __ नहीं हैं., श्लोक-२ अपूर्ण से है.) ८४१०७. (+#) परिग्रह परिमाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:परिगहपरिमाणपत्रं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४४९). परिग्रह परिमाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि पास जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ८४१०८. पंचपरमेष्ठी आरती व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२,११४२४). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेहली आरती श्रीजिराज; अंति: सुरग मुक्ति सुखदानी, गाथा-६. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाण; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ८४१०९ (+) पंचमंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११.५, ११४३५). ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं ए मंगल मन धरो; अंति: शुभ गुण ते वरई ए, गाथा-८. ८४११०. रात्रिभोजन व पांच इंद्रिय सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रभासपाटण,वेरावल, जैदे., (२३४१२, १०४३३). १.पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:रात्रीभोजननी सझाय. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक० गाइं अपार रे, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पांच इंद्रिय सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पांचइंद्रीनी. ५ इंद्रिय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दीपक देख पतंगीयो बेस; अंति: पामें ते भवनो पार, गाथा-७. ८४१११ (+#) परनारी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १५४३१). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण कंता रे सीख; अंति: कुमुदचंद० समझ ल्यो, गाथा-१०, संपूर्ण. ८४११२. पंदरपरमाधामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२२.५४११.५, ११४२०). १५ परमाधामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नरक तणा दुखमे सह्या, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ८४११३. (4) गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोवंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४११.५, २४४२०). गुरुगुण गहुँली, पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली सद्गुरु; अंति: रिधिसागर चिरंजीवो, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४११४. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले स्थल, पीपाड, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२३.५X१०.५, २०X२७-५४). सुमतिजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३०, आदि: सुमति जिणेसरजी हो; अंति: तणे जोडीयो तवन हुलास, गाथा-१४. ८४११५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८५२ भाद्रपद कृष्ण, ३०, शुक्रवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल भीलपुर, प्रले. पंन्या. गुलाबसौभाग्य; पठ. श्राव. विजैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x१२, ८x२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपविजय, रा., पद्य, आदि: पुरसादाणी हो पासजी; अंति: रूप० दैज्यो वारंवारजी, गाथा- ७. "" ८४११६. प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैवे. (२१x१०.५, ११x२७-२९). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नवकार कहजे१; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक देववंदन पुक्खरवरदी अपूर्ण तक है.) ८४११७. (*) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये., , ( २३१०.५, १५X३४). शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि मोरा साहेब हो; अंति: गुलाल जिन मोरी सबरी, गाथा - १६. ८४११८. (+) ढुंढियाउत्पत्ति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १२x२३). "" कुंडकउत्पत्ति चौडालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम ढाल की गाथा १२ अपूर्ण से गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ८४११९. (#) धन्नाऋषि सज्झाय व पद्मप्रभुजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२४४११.५, १३४३४). १. पे. नाम धन्नाऋषि सज्झाव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय; अंति: गाया हे मनमै गहगही, (२३.५X१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. फुहड रास, पृ. ३अ, संपूर्ण. गाथा - २२. २. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री पदमप्रभु जिनराय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४१२०. फूहड रास, पंचमहिमा पद व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे. ४, जैदे., औपदेशिक गीत- फुड नारी, मा.गु., पच, आदि: एक त्रिया मैं ऐसी अंतिः पुरुषरौ धूड जमारी, गाथा-२. २. पे. नाम. पंचमहिमा कवित्त, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण पंचमहिमा पद, क. गद्द, पुहिं., पद्य, आदि पंच वडे संसार पंच, अंति कहो पंच किणसू डी, पद- १. ३. पे नाम. पार्श्वजिन छंद- नाकोडा, पू. ३आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि आँखडीया अणीयालीया हो, अंति (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ८४१२१. पार्श्वजिन स्तवन व खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२३.५x११, २१४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. "" For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २७३ मा.गु., पद्य, आदि: पारस प्रभु ध्यान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथांक का उल्लेख अपूर्ण व अष्पष्ट होने से परिमाण अनुमानित है.) २.पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमने चरणे नमीज; अंति: योजी न कहीओ आपणु नाम, गाथा-२९. ८४१२२. नेमजिन सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ११४४१). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पियुजी पियुजी रे; अंति: पाय भेटे आस्या फली, गाथा-७. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. लाभहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामलिया सुंदर देहि; अंति: लाभहर्ष इम बोला रे, गाथा-७. ८४१२३. (+#) २० विहरमानजिन, २४ तीर्थंकर नाम व शाश्वताशाश्वत जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १४४३९). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगगुरु; अंति: देवने नमो नमो जिणाणं, गाथा-१. २.पे. नाम. शाश्वताशाश्वतजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वताजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वारीषेण; अंति: काल तस कर प्रणाम. ३.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेला श्रीऋषभदेव१; अंति: महावीर० नमो जिणाणं, अंक-२४. ८४१२४. शत्रुजय स्तवन व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, १९x१३). १. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: श्रीवर्धमानरी माइ, गाथा-५. २.पे. नाम. यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८४१२५. () नंदिषेणमुनि व सनत्कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४३८). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधजी न जाइये पर घर; अंति: एकलो पर घर गमण निवार, गाथा-९. २. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो सोहम इंद्र; अंति: मुनि धन धन सनतकुमार, गाथा-७. ८४१२६. नेमिराजर्षि व भरतबाहुबलि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंति: कहै. पामीजै भवपार, गाथा-८. २. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-८. ८४१२७. (+) रोहीणीतप स्तवन व गुणठाणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८८१, पौष शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. सुरजमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ११४३२). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, गुणठाणा सझाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समर वीर जिनेसर देव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ८४१२८. (4) ऋषभजिन स्तवन व कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०,१६-२७४१६-२६). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जस० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. भूतप्रेत निवारण यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: गंगा का प्रवाह गौतम; अंति: श्रेष्ठ पद सरस, गाथा-३. ४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. बलवीर, पुहिं., पद्य, आदि: अंमनमंजन संग निरंजन; अंति: पुजने नागनि आई, गाथा-२. ८४१२९. औपदेशिक सवैयाद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है. पत्रांक-१आ पर एक सवैया प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है., जैदे., (२३.५४१२, १४४४२). १.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: केश दिये शिर शोहन; अंति: बीना दूनी होत खोआरी, गाथा-२. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गंग, पुहि., पद्य, आदि: नृप मार चली अपना पीउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४१३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१२, ११४३७). १.पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ.७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मुगति मुझ आपज्यो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रानन जिन सांभलिय; अंति: देवचंद्र पदसार रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. चंद्रबाहुजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रबाहुजिन सेवना; अंति: अरिहंतनी सेवा सुखकार, गाथा-७. ४. पे. नाम, भुजंगजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्करवर दीवे हो के; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४१३१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४११.५, १०x२८-३१). महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: वीर जिनेसर सांभल; अंति: पावापुर जात्रा करी, गाथा-१७. ८४१३२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १२४३९). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संपति सदा सरस; अंति: इम संथुण्यो जगदीस रो, गाथा-२७. ८४१३३. (+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय-श्रेणिकराजा प्रसंग, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, प. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८४१३४. साधु के सताईस गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सताईसमो., दे., (२४४१२, १३४३२). २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमाहाव्रत पाले; अंति: विना जवू नहीं. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २७५ ८४१३५ (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. चनणमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्लोकछुट. कुछ प्राकृत गाथाओं का भावार्थ भी हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१०, १९४३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपूत्रस्य गृहं शून्य; अंति: पोसहविहिं अप्पमत्तेण, गाथा-४६. ८४१३६. जंबुस्वामी व अईमुत्तामुनि सज्झाय व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १४४४०). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवू स; अंति: पुहताजी मुगती मझार, गाथा-११. २. पे. नाम, अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर वांदीने; अंति: वंदे अइमतो अणगार, गाथा-१८. ३. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा, सांड़ दीन, पुहिं., पद्य, आदि: दीन तो देख विचार; अंति: जीवे तो ही खपना है, गाथा-१. ८४१३७. सवैया व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. नेमनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सवाइ नेमजी थाने; अंति: दीज्यो मुगति आवास, गाथा-१२. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. अनंतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीज्यो पासजी; अंति: ध्नान धरुं नितमे हो, गाथा-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: ज्यु मत हीण विवेक; अंति: ण अजान अख्यारत खोवे. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली ये तोरण आयो फर; अंति: नेम मनावौ हे नाहलौ, गाथा-९. ८४१३८. पार्श्वजिन स्तवन, आदिजिन पूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११.५, १३४३५). १. पे. नाम, वरकाणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणापुर राजीया; अंति: जिनभक्ति० मनोरथमाल, गाथा-७. २. पे. नाम. आदेसर पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीक्षीर हीरसु निर; अंति: दीज्यो अरघ अभंग, गाथा-१८. ३. पे. नाम. साधारणजिन अष्टप्रकारी पूजा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: गगनसिंधुहिमाचलनिर्गत; अंति: जीव अरघ पावते स्वाहा, पूजा-९. ८४१३९. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १५४३०-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ८४१४०. (+) प्रत्याख्यान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२४४११, १०४२७). प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: धुरि समरु सामिणी; अंति: जिम सयल संपति वरो, ढाल-२, गाथा-१७. ८४१४१. (+) २७ सतीयाँ सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, १०-१३४३५). For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी मननै भाय; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है, सुभद्रासती वर्णन अपूर्ण तक है.) ८४१४२. पार्श्वनाथ स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १७X४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४१४३. विकलपच्चक्खाण व कुगुरु संग छोडवा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १७-१९४२२-३०). १. पे. नाम. विकलपच्चक्खाण्ण सज्झाय, पृ. २३अ-२४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. वगडी. पच्चक्खाण्ण सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदिः (-); अंति: अण सुसविचार न कीजीए, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कुगुरु संग छोडवा सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: विन मुल धर्म जिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८४१४४.(+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तर., संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १५४४२). प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार माहे पहिला; अंति: भगवती में का छै, प्रश्न-३३. ८४१४५ (4) गोडिपार्श्वजिन स्तवन, दुहा व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ९४३६). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जस नामे नवनिध ऋद्धि; अंति: रिधिहरख कहै कर जोडी, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक द्हा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: जावो जीहा न कहुं; अंति: धन जात न लागै वार, दोहा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जलसुत तस सुत तसकर; अंति: नीपजै रिदे राखजो सोय. औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कमल ब्रह्मा नपद तास; अंति: उपज पद रेदे राखजो. ८४१४६. पंचांगज्ञान भाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३४१०.५, १५४४७). पंचांगविधि दोहा, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: क्षत्री गोवर्धन काज, गाथा-५६. ८४१४७. (+) गौतमस्वामीजीना सोल इकडा, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रावण कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मुनिलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:गोतमकडा., संशोधित., दे., (२३.५४१२,१८४३५). गौतमस्वामी रास, म. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: गुण गाउ गोतम तणा; अंति: गोतम० मे गुण घणाजी, गाथा-१६. ८४१४९ (+) अनाथीमनि चोढालिया व गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. उमेदान गुप्ता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १७४३२-३५). १. पे. नाम, अनाथीमुनि चोढालिया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा छो तरवर छाय हो; अंति: कत षायाक राज अगधराजी, ढाल-४, गाथा-४०. २.पे. नाम, गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org गौतमगणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: गौतम गुणधर गुण गाय; अंति: ऋषि चंद्रभाणजी विचार, गाथा- १३. " ८४१५० पट्टावली व ज्ञानपूजा, संपूर्ण वि. १९६९ भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पू. २, कुल पे. २ प्रले. पं. अमृतसार, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४४१२, १५४३३) १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पट्टावली. पट्टावली खरतरगच्छ, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: जयवंतो प्रवर्त्ती. २. पे नाम ज्ञानपूजा, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाहं; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ८४१५१. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५-२ (१ से २) ३, पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२४.५x११.५, ११४३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'पुव्विं अन्नाणयाए' से 'चउथे भंते महव्वए उवट्ठिओमि' पाठ तक है.) ८४१५२. (४) १८ नातरा चौढालियो अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, " जैवे. (२४.५x११, १२४३८). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि मानव भव पायो जी; अंति (-) (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ८४१५३. (+) सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६५ वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले स्थल, रतलाम, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ) पठ श्रावि, लखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. दे. (२५x१२. ९४२८). सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढमंडन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९६१, आदि: मांडवगढ मे विराजता, अति अतिमहित सुखदायवा गाथा- ११. २७७ ८४१५४. नवकार पद, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. १, प्रले. हरि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२.५x१२, १०x२२). " नमस्कार महामंत्र पद, पं. मनरूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्टि युग; अंति: काच ग्रहे कुण गमार, गाथा-४. ८४१५५. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित जैवे. (२४४११, १३X३२). ८४१५६. नवकार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पू. १, वे. (३३.५x१२.५, ९४२८). " पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. महिपाल, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पासनाह मइपाल थुणंतउ, गाथा-२४, (पू. वि. गाथा- १४ अपूर्ण से है.) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंतिः श्रीवर संघ रसाल, कवित संग्रह*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: मद भारे मत वारे घार; अंति: के तेरे दरा परि है. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-२. गाथा-७. ८४१५७. कलावती सज्झाय, कवित्त संग्रह व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. जैवे. (२३१०, ३१-३७४१५-२२). "" १. पे. नाम. कलावतीसती सज्झाय-शीलोपरी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कलावतीसती सज्झाय-शीलगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: अंबा अंके ज्युं बाल, गाधा- २२, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक कवित संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ८४१५८ (#) अक्षयनिधितपखमासमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४)=१. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२४४१२.५ १४x२३). प्र.वि. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन करने एवं साथीया करने का वर्णन अपूर्ण से गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८४१५९ (+) बारदेवलोक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११.५, १३४२७). १२ देवलोक नामादि विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो सुधर्मदेवलोक; अंति: हस्र जिनबिंब नमस्करू, गाथा-१२. ८४१६०. (#) सुभद्रासती व सनतकुमारचक्रवर्तीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हर्षचंद्र गणि; पठ. मु. मालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ अंत में ऋषि श्रीमालजी द्वारा मुनिहर्षचंद्रजी को नेमराजीमती सज्झाय भी लिखने की बात कही गई है, जो अपूर्ण व अस्पष्ट है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (४१४११, ४८x२१). १. पे. नाम, सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर सोधे इरया जीव; अंति: सीघले थकी ते लहे सुख, गाथा-२१. २. पे. नाम. सनतकुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन हं मा; अंति: लोक त्रीजे संभावी रे, गाथा-१८. ८४१६१. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १३४२७). १.पे. नाम. ऋषभाननजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: परम तुं मित्त हो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अनंतवीर्यजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिम मधुकर मन मालती; अंति: जस० गुण रंग रेली रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सूरप्रभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सूरप्रभ जिनवर धातकी; अंति: होजो नीत मंगलकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. विशालजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: घातकीखंडे हो के पछिम; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२ अपर्ण तक है.) ८४१६२. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७८८, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-६५(१ से ६५)=१, प्रले. मु. वस्ताजी (गुरु मु. जसवंत ऋषि); गुपि. मु. जसवंत ऋषि (गुरु मु. जगाजी ऋषि); मु. जगाजी ऋषि (गुरु पं. मांडणजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ६४३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-६ श्लोक-७५ अपूर्ण से है.) ८४१६३. (#) शीलगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०, १४४३५). औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मा.गु., पद्य, आदि: सील सरपन आवरे सीले; अंति: की जोड मीरगा नेणीजी, गाथा-१३, संपूर्ण. ८४१६४.(+) स्तवन, पद व गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा साहिब सुगुण; अंति: रभु० सुजसगुण तव आया, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २७९ २.पे. नाम. प्रभाती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रभाती पद-भैरव राग, म. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वीतराग नाम समर अष्ट; अंति: संत सरणि चढौमांम रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, पुहि., पद्य, आदि: देखोजी आदीसर स्वामी; अंति: चंदकुसाल गुण गाया है, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म.टेलाराम, पुहिं., पद्य, आदि: काकै सरणै जाउ नेमि व; अंति: वीनवी परसपरमसुख पाउ, गाथा-४. ८४१६५ (+) त्रिशलामाता डोहला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, प्र.वि. संशोधित., अ., (२५४११, ११४३६). कल्पसूत्र-संबद्ध त्रिशलामाता दोहला विचार, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै त्रिसला मातानै; अंति: रिसला माता विचरै है, (संपूर्ण, वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८४१६६. जीवविचार प्रकरण व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. आ. चंद्रसेन; पठ. मु. कल्याणदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया है., जैदे., (२३४११, ८x२९). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धानां उत्कृष्टी उगाहणा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: सिद्धानां उत्कृष्टी; अंति: अनंतपर्याय २. ८४१६७. नेमजी स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३.५४११, १०४३४-३७). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिणंदसू प्रीतडी; अंति: जे हो मुगत सुखकार के, गाथा-८. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मंत्रराजा रूठो काहो; अंति: जे ते घस्व पानी वहु. ८४१६८. (#) दानशीयलतपभावना क्रोधादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०, १७४४७). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: चुत्रीस अतीशयवंत; अंति: सज्जन गुण दरीआ, ढाल-४, गाथा-२७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवा फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. ३. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरतन० देसुटो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, माया सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज झांणयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४१६९ (+) जिनवाणीमाहात्म्य वर्णन स्तवन व ४५ आगम नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. जिनवाणीमाहात्म्य वर्णन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: वीरजिणंदनी वाणी सांभ; अंति: वाचक गुण गावैरे, गाथा-९. २.पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांग२; अंति: योगद्वार२ इति चूलिका. ८४१७० (+) सिद्धवंदना भगतारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, २०४३८). सिद्ध वंदना, प्रेमदास, मा.ग., पद्य, आदि: नमो नमो निरंजनं भर्म; अंति: हज ही दरसै जोति अनंत, गाथा-३३. ८४१७१ (+) ८४ आशातना विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०, ११४३५). ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनवर वंदन करो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., आशातना-८२ अपूर्ण तक है.) ८४१७२. जैनप्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४४-४६). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-३ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) ८४१७३. (+) पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४३५). पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिनं; अंति: (-). ८४१७४. नेमिजीरो बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., दे., (२३४११, ८४३४). नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सावण मासे स्वामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४१७५. नेमराजिमती विनती, संपूर्ण, वि. १८५३, भाद्रपद शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. सिरदारमल (अज्ञा. पं. फतेचंद्र); गुपि.पं. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५,१०४३२). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जान बणाय के हो राजि; अंति: सिवसुख पावै हो राजि, गाथा-१०. ८४१७६. (2) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, २०४४२). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२३ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-२५ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४१७७. साधारणजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४११, १२४२८). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ श्री जिनराय मन; अंति: मुक्ति सूख लहो जी, गाथा-१२. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८४१७८. (#) आषाढभूति पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४५). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्सण परिसो बाविसमो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८४१७९ (+#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ११४४१). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: कयं अभयदेवसूरिहिं, गाथा-२३. ८४१८०, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५४११, १५४३९). १.पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां नेम नगीनौ माह; अंति: सुनज्यो दीनदयाल हो, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु सिमेटो व्यथा; अंति: नैनसुख सरन तुमारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीनातट, प्रले. पंडित. अमृतमेरू; पठ. पं. अमृतरंग, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २८१ मा.गु., पद्य, आदि: अद्भुत ध्वनि जिनराज; अंति: निरखत भयो सुख चैन रे, गाथा-७. ४.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरुजी; अंति: प्रति नमति कल्याण, गाथा-५. ८४१८१ (4) इलाचीकुमार, भरतबाहुबली सज्झाय व आत्मबोध पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १५४३५). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लबधवीजे गुण गाए, गाथा-९. २. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राज लेवा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, आत्मबोध पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तेरे फुलसी दीदी पालक; अंति: काहे आगम साखे रे ते, गाथा-४. ८४१८२. औपदेशिक सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व ११ गणधर स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, पू.वि. औपदेशिक सज्झाय नेमिजिन स्तवन ११ गणधर स्तवन, दे., (२३.५४११.५, १६४३६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखरी आवी लाखे रे, गाथा-५, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवरियो साहेब है; अंति: कहे लीजे नाम सबेरो, गाथा-५. ३. पे. नाम. इग्यार गणधर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीइंद्रभूतिना; अंति: वंदु अग्यारे गणधार, गाथा-१२. ८४१८३. औपदेशिक सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२३.५४९.५, १५४३९). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय-सासबहु कलह, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: खपाय वहु काकासांणीजी, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म.खेम, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: संती जीणेसर सत करो; अंति: संतीकरो श्रीसंतीकरो, गाथा-१३. ८४१८४. (+#) सामायिक-प्रतिक्रमण व पौषधविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १५४५०). १.पे. नाम. सामायिक-प्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पाछिलै पहरि दिवस तणइ; अंति: कीजइ दोष को नहीं. २. पे. नाम. पौषध ग्रहण विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिपोसह प्रतिलेखन; अंति: (-), (पू.वि. "साधु समीपि आवी करी" पाठ तक है.) ८४१८५ (+) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १९४४०). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नारि रहित थानक कथा; अंति: लोक सहू सोभा कइ, (वि. विशेष जिनहर्ष रचित कवित्त संग्रह. अंत मे औषध दिया गया है.) ८४१८६. नवकारनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.३, दे., (२२.५४११,११४२९). For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमीण द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२६. ८४१८७ (+४) वीरजिन स्तवन, विधाता अष्टक व गौडी पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल खेरालुनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४११.५ ९x२९). . १. पे. नाम महावीरजिनविनती स्तवन, पू. १अ २आ, संपूर्ण पठ पंन्या, कांतिविजय मु, टेकचंद (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन - विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर सुणो मोरी वीनती अति समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा- १९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. विधाता अष्टक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा-३ तक पत्र ३अ के हांसिया में दुबारा लिखा है. पुहिं., हिं, पद्य, आदि: महामूरख ने मीदरे, अंतिः घणुं द्रव्य दाता तु, गाथा-८. ३. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि सेकाता रोटी जले को अंतिः जले को चेला किन ठाय, दोहा-१. " ४. पे. नाम. पार्श्वनजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मनोहरविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगनायक प्रभु दीपतो, अति पार्श्व जिनवर जयकरो, (२३.५X१२.५, १६५३३). १. पे. नाम अष्टमी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. गाथा-७. ८४१८८ नरक आदि थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३×११.५, १८४३२). १५ परमाधामी थोकड़ा, मा.गु., गद्य, आदि: पत्नी आंबनामे परमा; अंति: पराजा परांण लुटसां. ८४१८९ (+) अष्टमी स्तवन व खिमाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९१२ ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल, भाणपुर, प्रले. य. हरचंद, अन्य. मु. मगन प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी खेमा मगनजी की पुस्तकमे से ली., संशोधित., दे., " अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि (१) हां रे मारे जोवनिया, (२)हां रे मारे ठाम धर्मः अंति: कह कांति कर जोड रे, ढाल २, गाथा २२. २. पे. नाम क्षमाछत्रीसी, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: खेमा. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदार जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा ३६. ८४१९१. बीजस्तुति व ज्ञानपंचमी स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५X११, ११४३०). १. पे. नाम. बीजस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति देहि में सुद्धिनाणं, गाथा-४ २. पे नाम ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतक सुप्रपंच अंति: (-). ८४१९२. नेमिराजिमती, कुंथुजिन स्तवन व पंचवधावा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. मु. मेघा ऋषि (गुरु मु. महेश ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२३.५x१०.५, १३X२६-३० ). १. पे. नाम. नेमिराजीमति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मेघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि मात शिवादेवी जाया अति आवो रे हवह छोडी, गाथा ७. २. पे. नाम कुबुजिन स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: सकल सिद्ध प्रणमी; अति संघ तणी फल्यो आस ए, दाल-५, गाथा - ३१. ३. पे. नाम. पंचवधावा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. . हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचवधावा सखी मो मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८४१९३ शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३ वे. (२३.५४११, ८x२२). " For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ " शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुडिं, पद्य, आदि सारदमात नमु सिरनामि ; अति मन पंछित सिवसुख पावे, गाथा २२. ८४१९४ (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी अष्टाप०, संशोधित. दे. (२३.५x१२, ११४२६). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य वि. १७५६, आदि ऋषभ जिणंद रंगे नमी: अंति: ए तीरथ जयकारी रे, ढाल - २, गाथा - ३०. ८४१९५. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - १६ से ६१ तक है.) ८४१९६. (+) सीमंधरस्वामी विनती संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२२.५x१०.५, ९४२७). 1 सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूर आस्या मन तणी, गाथा - १९. ८४१९७ (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. दुदार, पालीनगर, प्रले. पं. शिवचंद्र ऋषि (गुरु पं. राजविजय); गुपि. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दुदारे वाडै आगत्तपूर्ण गछै पाल वसत्तव्यं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५X११.५, १४x२८). ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२३४११, ११x२९) " "" पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-३९. ८४१९८. पंचमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४६ श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३. ले. स्थल. पाटणनगर, जैदे., (२३.५x११. १३X३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगि मुणी, ढाल ६, गाथा ४९. ८४१९९. स्तोत्र, अष्टक व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५X११.५, १४X३३). १. पे नाम. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अति माहा कुरु मंगल, श्लोक ९. २. पे. नाम. रिखभदेवजी अष्टक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि देव मुझ दीदार दीजे; अंति: युग युग एक तुं करतार, गाधा ८. ३. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदनबाला वारणै रे; अंति: लहस्यें लीलानंद मेरे, गाथा-६. ४. पे. नाम नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. ३अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथुला नगरीनो; अंति: जी हो पामीजे भवपार, गाथा-८, (वि. कर्ता नाम समयसागर लिखा है.) ८४२००. पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, वे. (२३.५४१२, १४४३४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंदकल्याणवल्ली; अति जीरावलो रंग गायो, गाथा ११. २. पे. नाम. स्तंभनपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास; अंति: पासनाह सुविशालो, गाथा - १६. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जात्रा च प्रमाण, गाथा- ९. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- मगसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- मगसी, मु. मुक्तिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमगसी प्रभू पासजी अंति: तुम पाय सेवा रे लाल, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. शिखामण रास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. बद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय देवी अंबाई; अंति: (-), गाथा-६२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ८४२०१. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४११.५, १३४३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८४२०२. (+) संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १४४३०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. ८४२०४ (+#) कुशलगुरु गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १२४३८). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आयो आयो री समरंता; अंति: परमानंद सुख पायौ री, गाथा-३. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनदत्तसूरिसरु; अंति: सुद्ध चरण त्रिकाल रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: दादोजी दोलत दाता; अंति: कनककीर्ति गुण गाता, गाथा-२. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम ऐसे के चाकर हैं; अंति: सेवा मे सुख साकर है, गाथा-२. ८४२०५ (#) १४ सुपन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, २३४४५). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तीर्थंकर केरडी; अंति: मुनि लावनसयं भणदंप, गाथा-४६. ८४२०६. पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२३४११, १४४३८). ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरनी पेरे दोहलो; अंति: इम विनवे वीजेदेवसूर, गाथा-१६. ८४२०७. (#) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत, १८ भार वनस्पतिगाथा व जीव आयुष्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१३.५, १३४३३). १.पे. नाम, धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो १ भयतो २; अंति: तेषाममेयं फलम, श्लोक-१. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लज्जा थकी अर्द्ध; अंति: तेहनु फल अभेय छइ. २. पे. नाम. अढारभार वनस्पति गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कोडि अडतीस; अंति: शुभ० कहे मोटा यति, गाथा-२. १८ भार वनस्पति गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ३८ कोडि मण ११; अंति: लकडीनै जड़भार ६. ३. पे. नाम. जीव आयुष्यमान, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: मानवीरो १०८ कागलानो; अंति: आयुष्य बावीस सागरोपम. ८४२०८. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०.५, १४४२८). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंत पहले पद जानी; अंति: दूरगादासो०छे टंकसालि, गाथा-१३. ८४२०९ शांतिजिन स्तवन व साहिब स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:भासनो पत्र., जैदे., (२३.५४११,११४३३). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ गाशा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. सुज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: शांति जिणेसर मुरति; अंति: सुग्यान० नित पाया रे, गाथा-१५. २. पे. नाम, साहिब स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयदयासूरिगुरु भास, आ. धर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधकारी ने सरसति; अंति: धर्मसूरीश० आसीस रे, गाथा-१०. ८४२१०. जामनगरमंडनचिंतामणिपार्श्वजिन व सिद्धगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, ११४२३). १.पे. नाम. जामनगरमंडनचिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि जामनगरमंडन, म. देवविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी पार्श्व; अंति: वंदे देव वारमवार जी, गाथा-६. २. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जाना जी सुख पाना जी; अंति: शुभवीर का ज्ञाना जी, गाथा-६. ८४२११. नवपदपूजा-ज्ञानपद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१२, १३४२५-२८). नवपद पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८४२१२. (+) आनंदघन पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., जैदे., (२३४११.५,१३४३३-३५). आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-७० अपूर्ण से है व ७३ तक लिखा है.) ८४२१३. (#) असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३१). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, म. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल कर जोडी कहइं, गाथा-१८. ८४२१४. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४४६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संतिकरस्तोत्र, गाथा-१२ अपूर्ण से नमिऊण स्तोत्र, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८४२१५ (+) जिनप्रतिमापूजामतपष्टि संदर्भ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, ११४३०). जिनप्रतिमापूजामतपुष्टि संदर्भ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उक्कोसं दव्वत्थए; अंति: जिणघराओ पडिणिक्खमति२. ८४२१६. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३२). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपढओ तिहुअणए सयले, गाथा-१३. ८४२१८. (+#) नोकारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४११.५, ९४२६). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरीतहंत पद ध्यात्ये; अंति: जस० माहे अधूरी रे, गाथा-१३. ८४२१९ (+) चतुर्विशतिजिन स्तोत्र, स्तवन व वासपज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प.१, कल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, १४४३०-३५). १.पे. नाम, २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्ष लक्षमी निदानं, श्लोक-८. २. पे. नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८६ www.kobatirth.org ( २३११, १६३०). १. पे नाम ढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देवा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो श्रीआदि अजितनाथ; अंति: मज दीजा यो सेवा, गाथा- १३. ३. पे. नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि नायक मोह नचावीयो; अति एम जपे जिनराजो रे, गाथा ५. ८४२२० (+) करसानारी विनति व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., ( २४१२, १४x२७). १. पे. नाम. करगसानारी विनति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कर्कशानारी परिहार, श्राव. भगो साह, मा.गु., पद्य, आदि: करगसानारी विनतिजी; अंति: परहरज्यो असी नार, गाथा - १५. २. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह-परनारी परिहार, पुहिं., पद्य, आदि टुटो सो छपर घर, अंति: खावोगा मुडम जुती, दोहा-५. ८४२२१. ढंढणऋषि सज्झाय, महावीरजिन व गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि टंढण ऋषिने वंदना है; अति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा- ९. हुं कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि जगपति तारक श्रीजिनदे, अंति भगवंत भावेसु भेटीह, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पू. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस अम्हारो हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४२२२.(+) अजितजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., " जैदे., (२३x११, ११x४२). १. पे. नाम. अजितनाथसुख स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, अजितजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो अजीत जीणेसर; अंति: दायक तु भगवान जो, गाधा-७ २. पे. नाम. आदीनाथसुखद तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. ऋषभविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सखी पीमे प्रणमी आणंद, अंति: ऋषभविजय सुख वा रे, गाथा- ७. ८४२२३. (*) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पू. ४-२ (१, ३) -२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: उपासगद०. पत्रांक अनुमानित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५X१२, १६X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ आनंद श्रावक द्वारा व्रतोच्चारण में घयविहिपरिमाण अपूर्ण से अप्पमज्झिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमि पाठांश तक व ज्येष्ठपुत्र को गृहभार सौंपने का संकल्प अधिकार अपूर्ण से अवधिज्ञानोत्पत्ति में अघोरत्नप्रभा पृथ्वी पर्यंत ज्ञान अधिकार तक है.) ८४२२४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. हुंडी: स्तवन., संशोधित, जै., (२२x११.५, १७४३५-४०). १. पे नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सितलजिन सेजानंदी जयो; अंति: जने वीजीयानंद सूभावे, गाथा-५. २. पे नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर ठाढो रे डुगर, अंति: पामे कोड कल्याणो रे, ४. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारूं मन मोउं रे; अंति: केहता नावे हो पार, गाथा-५. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि तिर्थ अष्टापद नित; अंतिः जणंद वघते नेहो रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only गाथा-७. Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ५. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हारे पीया रे नेम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ८४२२६. अतिचार अनाचारादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, ११४३४). अतिचार अनाचारादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तथा जैनमार्गीन आगम; अंति: गीतार्थे वाची जोवो. ८४२२७. शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, साधुअतिचारचिंतवन गाथा व ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, पृ. १अ, संपूर्ण. शांति स्नात्र पूजाविधि-शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, हिस्सा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: ॐ वरकनअसंख वदुम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) २. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयनासनपाणि चईजई; अंति: वित्तहाकरण यइआरि, गाथा-१. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४२२८. (#) ४ मेघ विचार, ७२ कला काव्य व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११, ३२४१६-२२). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सद्बोधो जनकः क्षमा च; अंति: शेषा कला उच्यते, श्लोक-९. २.पे. नाम. ४ मेघ विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: चत्तारी मेहा पन्नता; अंति: एगे संवच्छरं भावा४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हे लक्ष्मे क्षणके; अंति: विश्राम० वर्णनानि, श्लोक-२. ४. पे. नाम. ७२ कला काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंतिम अंश पत्र-१अ में लिखा गया है. ७२ कला नाम श्लोक -पुरुष, सं., पद्य, आदि: लिखित १ पठित २; अंति: अब्द७१ नामालयः७२, श्लोक-३. ८४२२९. गौतमस्वामी भास व गुरुगुण गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२२.५४११.५, ११४४३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पाय; अंति: बेसे शिवपुर आसनेजी, गाथा-९. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही उद्यानमां; अंति: घणी वली पामे नवनिधान, गाथा-८. ८४२३० (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, २१४३४). औपदेशिक सज्झाय-आत्मा कर्म संवाद, मु. खुबचंद, पुहि., पद्य, वि. १९३२, आदि: (अपठनीय); अंति: खुबचंद० सिस नवाओ जी, गाथा-१७, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ८४२३१ (+) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १४४२३). श्रावककरणी सज्झाय, म. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो; अंति: तुम्ही पडमाधारी जी, गाथा-११ ८४२३२. (+) परमब्रह्मज्ञानचतुर्दशी, परमब्रह्म धमाल व परमब्रह्म स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४९.५, ११४३१). १. पे. नाम, परमब्रह्मज्ञानचतुर्दशी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. जिनसमुद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुद्र० पद आय समाया, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, परमब्रह्म धमाल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनसमुद्रसरि, पुहिं., पद्य, आदि: नमो ब्रह्म नमो; अंति: समुद्र० सरण ध्याया, गाथा-११. ३. पे. नाम. परमब्रह्म स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनसमुद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: भजो रे भजो भाई देव; अंति: समुद्र०शुद्ध सेवा रे, गाथा-४. ८४२३३. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १३४३३). अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., गद्य, आदि: तुम्ह तरणतारण; अंति: ग्यान दिनकर वासनम्, गाथा-९. ८४२३४. (#) छकाय सज्झाय व नमस्कारमंत्र स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १९४२५). १.पे. नाम. छकाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ६ काय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पांच हे नर साभलो; अंति: सारा वग होथा कीदे०, गाथा-१०. २.पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में किसी सज्झाय की प्रारंभिक दो गाथाएँ लिखकर छोड़ दिया है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: पदमराज जस अप्राणी, गाथा-९. ८४२३५ (#) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अष्टप्रकारीपूजा., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १९४५५). ८ प्रकारी पूजा, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: जयत्थं नमोर्हत्सिद्ध; अंति: जिनपते पुरुत कुरु, संपूर्ण. ८४२३६. ऋषभजिन व शत्रंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५,१२-१५४४१). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: आवो आवो ने लाल; अंति: सेवक अमृत जिनगुण गाय, गाथा-११. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजेगिरना वासी; अंति: इम कहे उदयरतन करजोड, गाथा-५. ८४२३७. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन व साधारणजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. प्रेमचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४४०). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने रहेने; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: में मतवाला जिनका; अंति: दील भितर पेठा छे, गाथा-५. ८४२३८. (+) १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समउ, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३५). १३ काठिया सज्झाय, म. उत्तम, मा.ग., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: उत्तम कहे गुण गेह, गाथा-१६. ८४२३९. गजसुकुमाल व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४३५). १. पे. नाम. गजसुकुमालजी का सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. मेडता, प्रले. सा. रतनाजी शिष्या (गुरु सा. रतनाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:गजसुखमाल. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: (-); अंति: चोरासी सुद्ध ल जाव, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सजझाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मीठा थे तो धुतर; अंति: वाख्यो श्रीभगवंत, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २८९ ८४२४०. ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९७९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., वे. (२३.५४११.५, १९५२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: जीवगइइंदिकाए जोए वेए; अंति: (-), (वि. बोल यंत्र.) ८४२४१ (क) कानडकठियारा प्रबंध, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्रले कसजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: कानकठीरो., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३x१०, १३X२९-३२). कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहत सिध समरु सदा; अंति: कहे सांभल नरने वीरोइ, ढाल ७. ८४२४२. बुढा रो विवाह, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. भिचोर, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास) मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५X११, २२X३४). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि निरधन के घर बेटी अंति धर्म बीना जीवनी कमाई, डाल- १२. ८४२४३. स्नात्रपूजा विधिसहित संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२३४११.५, ११४३३). " " स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि चउतीसय अतिसय जुऔ वचन, अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सुर कोडी कोडी" पाठांश तक लिखा है.) " ८४२४४ स्थूलभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: थूलभद्रनवरसो., जैये., (२२.५X११.५, १८X३३-३६). स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदि सुखसंपति दायक सदा अंति (-), (पू.वि. ढाल-७ की गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४२४५. (*) निर्वाणकांड की भाषा, चैत्यवंदना व गुरु जयमाल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६x२३, ९४२६). " १. पे. नाम निर्वाणकांड की भाषा, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं. पद्य वि. १७४१, आदि: बीतराग वंदो सदा भाव अति भया० कांड गुणमाल, गाथा २२. २. पे नाम. अकृत्रिमचैत्यवंदना-चरण ६. पू. ३अ ३आ, संपूर्ण अकृत्रिम चैत्यवंदना, सं., पद्य, आदि वर्षेषु वर्षा प्रवतेष अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३. पे. नाम. गुरां की जयमाल, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. गुरु जयमाल, जै.क. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसो; अंति: चढौ भूधर मागै ऐह, गाथा- १४, (वि. गुरु अर्घमंत्र भी दिया गया है.) ४. पे. नाम जिनदत्तसूरि पद, पू. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., पद्य, आदि सदगुरु के चरण चित, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८४२४६. (+) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पत्तन, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३X१०.५, १३x४१). नमस्कार महामंत्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: श्रीनवकार जपो सूधइ; अंति: माह सुदि दसमि उछाहि, ढाल - १४, गाथा - ९२. ८४२४७. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, वणोद, प्रले. परसोत्तम प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x१२, ११x२८). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल १०, गाथा ४३. ८४२४८. (छो आरानुं स्तवन, संपूर्ण वि. १९०७ मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. पालणपुर, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.. (२३.५X११, १४x२४). For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंदह पय नमि; अंति: सयल संघ कल्याण करो, ढाल-५, गाथा-६५. ८४२४९ (#) छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हरखै सदा, गाथा-२५. २. पे. नाम. गोडीजीनो छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार पादार; अंति: रामेण सर्वदा, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्ध विमलकरणी; अंति: नीत नमेवी जगपतिः, गाथा-९. ४. पे. नाम, आशापुराजीरो छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आशापुरादेवी छंद, किसना, मा.गु., पद्य, आदि: प्रग व्यथा आसापुरा; अंति: नाम लिया सहु को नमे, गाथा-५. ५. पे. नाम. गणपति छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समरी माता सारदा वंद; अंति: गुण सघला गुणपति, गाथा-५. ८४२५०. शीयल चोढालीयो, मान सज्झाय व औपदेशिक विचार, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. रुपचंद (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. रंगुबाई; गुभा. ग. मोतीचंद वाचक (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, १३४२५). १. पे. नाम. सीअल उपर चोढालीयं, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन आगमी रे; अंति: खंभातनगर गुण गावेरे, ढाल-४, गाथा-२०. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मान म करस्यो रे; अंति: बाली कीधा छे राख रे, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक विचार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक विचार-मायापरिहार, मा.गु., गद्य, आदि: मान अहंकार कायानो; अंति: तेना चारीत्रने धन छे. ८४२५१. आउखानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १०४२१). औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अणी आउखो तुटाने सादो; अंति: होजो भव भव साहाये रे, गाथा-९. ८४२५२. (+) पार्श्वनाथ स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक २८ भी दीया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०, १५४५१). १.पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तुति- जेसलमेर मंडन, मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: सिरि संभव संभव सामि; अंति: गुणवि०सुभमति समृद्धि, गाथा-४. २.पे. नाम. गौतमस्वामि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: गौतम लबधि निधान; अंति: नरगण थकित राउरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: आ जिन मुख छवि अजब; अंति: गुणवि०मेरे मनि सुहाइ, गाथा-३. ४. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वंदीयइ मन; अंति: गुण० हित राखी रे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद पंकज अनोप; अंति: गुण० ज्युं जलधर कुंभ, गाथा-३. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. गणविनय, पहि., पद्य, आदि: सगण गण गावतहइ; अंति: प्रतपउ जगि वडभागी, गाथा-२. ८४२५३. नवअंगपूजा दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. देवार्चन दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरि संपुट पत्रना; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. २. पे. नाम, बरासपूजा दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीतल गुण जेहमा रह्य; अंति: पुजो अरिहा अंग, गाथा-१. ८४२५४. पर्युषण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ११४२५). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. ८४२५५. रसवेल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. डाह्याभाई कल्याणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ९x४३). स्थूलिभद्रकोशा रसवेल, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति हुरचु रसवेल; अंति: चातुरी विसेषे आवे, गाथा-१५. ८४२५६. (4) पंचेंद्रीय व मनकमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११,१२४३७). १. पे. नाम. पंचेंद्रीय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल मातो रे वनमांहि; अंति: कहइ ते पाम शिव माग, गाथा-७. २.पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुने; अंति: पामो सद्गति सारो रे, गाथा-१०. ८४२५७. (4) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४२३). अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमतै सूर जी, गाथा-५. ८४२५८.(#) आत्मा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११,१०४२५). औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: लेसो साहिब हाथ, गाथा-१०. ८४२५९ (+) मृगापुत्र व रूकमणीराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १७X४०). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कानजी ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहामणो; अंति: कानजी० सुध प्रणाम हो, गाथा-१६. २.पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम; अंति: राजरषी रंगे भणे जी, गाथा-१४. ८४२६०. पक्खीप्रतिक्रमण विधि, राधाकृष्ण सवैया व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १२४३६). १.पे. नाम. पक्खीपडिक्कमणा विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ कृष्ण, १, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहली वंदेतूसूत्रताइ; अंति: तवन अजितशांति कहै. २. पे. नाम. राधाकृष्ण सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कारोही काजर कारीही; अंतिः अब० छोरोजी छोरो, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. केसव, पुहि., पद्य, आदि: लछनध्याम चले गज ज्यू: अंति: केसव० तब आयकै ऐसै, पद-१. ८४२६१ (-) बाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११, १३४२३). बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामत रमवा हु गइ; अंति: जिन० अवतार रे माय, गाथा-८. ८४२६२. नवतत्त्व प्रकरण सह गाथार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११.५, १०४२५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती जीवांने पदार; अंति: (-). ८४२६३. (#) वासुपूज्यजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२७). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजीन बारम; अंति: जीत वंदे नीत मेव रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ८४२६४. (+) साधुना २१ कल्पनीय पाणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. थराद, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है. पत्रांक-१आ पर हासिये में पोरसी पगला लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, १३४३५). २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदि: उस्सेयमं१ संसेयमं२; अंति: जलाइं पढमंगे भणिया, गाथा-२. २१ प्रकार के पानी-व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: पीठान धोअण१ पाननउ; अंति: ए त्रिणि कलपइ तेह. ८४२६५ (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३८). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "२४ जिनमाता-अचिरा१६" तक है.) ८४२६६ (+#) प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ७४२१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आयंबिल पच्चक्खाण अपूर्ण तक लिखा है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८४२६७. (+) २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२, १७४३५). २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहि.,सं., प+ग., आदिः ॐहीं परमात्मने; अंति: (-), (पृ.वि. अजितजिन पूजा अपूर्ण तक ८४२६८. (+#) ३२ बोल बासठियो, संलेखना पाठ व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १७४४१). १.पे. नाम. ३२ बोलरो बासठियो, प. १अ, संपूर्ण. ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., आदि: १समचै जीवमै २अप्रज्य; अंति: ३२ प्रज्या०आहारीकदे०. २. पे. नाम, संलेखना पाठ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिम मारणं; अंति: मिच्छामिदुक्कडम्. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: समज ग्यान अंकुर है; अंति: वीतरागकुड नही लवलेस, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २९३ ८४२६९ (+) प्रतिष्ठांतर्गत धूपादिविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३४१२.५, १३४३५). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ३दिन बाकी रहै तहां; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सर्व क्षेत्रदेवता मुझे सानुकूल होवो" पाठ तक लिखा है.) ८४२७० (+#) भगवतीसूत्र व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४२). १. पे. नाम, भगवतीसूत्रनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीर जिणेसर अरथ; अंति: गुण गावै सुजगीसजी, गाथा-२१. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी अतिभली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४२७१. कायावाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. ग. सदानंदविमल (गुरु ग. विजयविमल पंडित); गुपि. ग. विजयविमल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ८x२७). कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायावाडी कारमि सिचंत; अंति: पद्म० रखे खोडि लगाडी, गाथा-९. ८४२७२. दानशीलतपभावना संवाद व ऋषभदेव लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदिः (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, ग्रं. १३५, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल की गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ऋषभदेव लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सरसती माता सुमत की; अंति: रीषभदेव सारे काज, गाथा-१४. ८४२७३. स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्र १४२., जैदे., (२३.५४११, ३३४१६-२२). १. पे. नाम. पंचमी नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघनां विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परवपजूसण पुन्ये पांम; अंति: सकलचंद० जयकारी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. निदकोपर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतांत; अंति: एह हित सीख मानै, गाथा-९. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: रथ पुरो एह सीद्धाईजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंतजी लेइन; अंति: इम जित नमें नितमेव, गाथा-१२. ७. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मिनमेष त्रण पिस्ताला; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पांच एकत्रीसा" पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४२७४. शत्रुजय, ऋषभ व पंचतिर्थी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. चतुरविजय; पठ. श्राव. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १०४३०). १. पे. नाम. शेव्रुजय चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजोसिद्ध; अंति: (१)जिनजी करु प्रणाम, (२)ताइ सव्वाइ वंदामि, गाथा-३. २. पे. नाम. ऋषभ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: कवी ऋषभ० महिमा घणो, गाथा-३. ३. पे. नाम. पंचतिर्थी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ५तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: (१)कमलविजय० जय जय कार, (२)णे० ताएसव्वाए वंदामि, गाथा-७. ८४२७५. स्थूलिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११, ११४३६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवैर लालछोजी दया; अंति: रीतसू भला कीयौ भवंत, गाथा-११. ८४२७६. ऋषभजिन स्तवन, औपदेशिक व जीव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १४४३१). १.पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. सदासागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभजिणंद मन; अंति: सदासागर सुखसारोजी, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम म मुकीस विनय; अंति: जेम चिरकाले नंदो रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. जीव सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायारी वाडी कारमी; अंति: तिलक० करज्यो रखवाली, गाथा-९. ८४२७७. (-) नेमजिन व शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४११, १०४२८). १.पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह स्तुति है परंतु प्रतिलेखक ने "नेमि स्तवन" लिखा है. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करे अंबका देवया, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर; अंति: टालजे देवी अंबाईका, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे है.) ८४२७८. सुरजजीरौ सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२३.५४१०.५, ८-१२४४५). सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण करोने पसा; अंति: नही को थाहरैजी तोलै, गाथा-१७. ८४२७९ (+) वंदित्तुसूत्र सह विवरण+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, २३४५४). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र-१९वीं गाथा वंदित्तसूत्र-विवरण+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गुणव्रतोपरि सिहश्रेष्टि द्रष्टांत तक लिखा है.) ८४२८० नयनिक्षेप को थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३४११, १८४४५). अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नयद्वार१ निखेपद्वार२; अंति: जागरणा श्रावकरि. ८४२८१. शीलरी ३२ ओपमा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ३., (२३४११.५, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २९५ शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली उपमा ग्रह; अंति: शीलव्रत मोटोनेप्रधान. ८४२८२. पाखिपडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य.पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १४४३५). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसी वंदितु कह्या; अंति: देवसीअ० इछंखामेमि. ८४२८३. मेतार्यमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, १०४२४). मेतारजमनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: जिनहर्ष० त्रिकाल जी, गाथा-९. ८४२८४. (+#) इष्ट तिथ्यादि सारणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३५). इष्टतिथ्यादि सारणी, म. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदिः श्रीवामेयं नमस्कृत्य; अंति: शोधनीयाश्च धीधनैः. ८४२८५ (4) शत्रुजयपुंडरीकपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चैत्रीविधि., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १५४४८). पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं सकल श्रीसंघ; अंति: यथेष्टमनेषणीयमाहारम्. ८४२८६.(-) नवकार तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११.५, ९४२४). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) ८४२८७. कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव गणधर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४२८८. (+) जिनमहेंद्रसूरिजी के नाम पत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, १७४२०). जिनमहेंद्रसूरिजी के नाम पत्र, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीवामानंदन; अंति: (-), (पू.वि. द्वादशावर्त वंदना तक है.) ८४२८९ (#) बाहुबलि सज्झाय व पार्श्वजिन अमृतधुन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राणकपू, प्रले. ग. विनयविजय (गुरु ग. राजेंद्रविजय); गुपि. ग. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१२, १५४३३). १. पे. नाम. बाहुबलीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राज लेवा अति लोभीया; अंति: सहजसुंदर गुण गाय रे, गाथा-७, (वि. कर्ता सहजसुंदर लिखा है) २.पे. नाम. अमृत ध्वनी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अमृतध्वनि-गोडीजी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: झिगमग झिगमग जेहनी; अंति: थुणे जिनचंदह, गाथा-८. ८४२९० (+) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३८). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ८४२९१. आत्म निंदा, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. इंदोर, दे., (२३.५४१३, १०४३२). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. ८४२९२. (+) वीरजन्मोत्सव व जिनबल विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १९४४६). १.पे. नाम. महावीरजिन जन्मोत्सव, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., प+ग., आदिः (-); अंति: वीरजन्मोत्सवः, (पृ.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, जिनबल विचार पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: बार पुरुष बलवान वृषभ; अंति: सो बल अनंत बखानीये, गाथा-२. ८४२९३. (+) औपदेशिक पद, सज्झाय, लावणी व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, २२४५४). १. पे. नाम. फुलअंगुछो पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: कोइ लाधो होवे तो: अंति: निज उपाश्रय माहे रे. गाथा-१९ २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सुगुरु, मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: दिन उगासुं धंधो मांड; अंति: जसरुप० सीखामण दीनी, गाथा-१५. ३. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-परनारी परिहार, मु. सेवाराम, पुहि., पद्य, वि. १८८१, आदि: चतुर नर प्रनारी मति; अंति: सेवाराम कर्मुसे छटको, गाथा-१०. ४. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-पंचमआरा सज्झाय, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: हाथ जोडी मान मोडी; अंति: धर्म न रहिसी कोय, गाथा-१२. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बुधमल, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: अरे चितानंद मेरी कह; अंति: ऋषीसर जोडी उदेपुर रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुं कुमत कलेसण नार; अंति: वात खोटी मति खेडे, गाथा-४. ७. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. श्राव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: अहो नाणावटी नाणुं नी; अंति: रवजी० भवि प्राणी, गाथा-८. ८. पे. नाम. शीव आरती, पृ. २अ, संपूर्ण. शिव आरती, मा.गु., पद्य, आदि: सकलदेवनो रे देवता; अंति: भव भवनां दुख जावे रे, गाथा-२२. ९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कुलटा स्त्री, रा., पद्य, आदि: धन हो पुरष थारो भाग; अंति: कुत्ता आटो खाय, गाथा-७. १०. पे. नाम. २२ परिषह सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: साधुजीरो मार्गर कठि; अंति: चोथमल आगमनो अधिकार, गाथा-१०. ११. पे. नाम, श्रेणिकराजा सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्रेणिकराजा सज्झाय-समकित परिक्षा, रा., पद्य, आदि: राय श्रेणक तणी पारख; अंति: जीणरो खेवो पारी हो, ढाल-२, गाथा-२२. १२. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, प. ३अ, संपूर्ण. म. चोथमल, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीसीमंधर साहिब हो; अंति: चोथमल० वद मिगसर मास, गाथा-१२. १३. पे. नाम. निंदक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मा.गु., पद्य, आदि: अरीहंत सीधरो ध्यान; अंति: हो जाये मणरो सेरो, गाथा-११. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माटीनी गणगोर वणाइ जु; अंति: साधु पछे घणो पिछतासी, गाथा-८. १५. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. खीमा, पुहि., पद्य, आदि: काचा था जे चल गया हो; अंति: यौ छे सदगुरु वयण रे, गाथा-१४. १६. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणंदने सेवानंदा रे; अंति: ऋषि रायचंद इम भास हो, गाथा-१८. १७. पे. नाम. आनंदश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: हाथ जोडी वंदणा करूं; अंति: हे उदार हो सांमी हुं, गाथा-११. १८. पे. नाम. शिवपुरनगर वर्णन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शिवपुरनगर वर्णन पद, म. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: समी भोंमथी उंची अलगी: अंति: रतनचंद०काटे दुख फंदा, गाथा-११. १९. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहे; अंति: जीत० पाले जी के जी, गाथा-१४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: भवीक जीन भजलो भगवान; अंति: सुणज्यो भव्य प्रानी, गाथा-१४. ८४२९४. (+) द्रौपदीसती रास-स्वयंवरमंडप अधिकार, संपूर्ण, वि. १९८४, भाद्रपद कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:द्रोपदीस्वयं., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४१२, १४४४२). द्रौपदीसती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. ढाल-१४ से १५ है.) ८४२९५. कुमतिनिराकरणहंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२३४१२.५, १४४५५). कुमतिनिराकरणहंडिका स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंद पय; अंति: मेघ पभणे० परे सुखकाज, गाथा-७९. । ८४२९६. (+) प्रतिक्रमणादि सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. वखताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, १३४३३). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं०; अंति: तस्स मिछामि दुकडं. २. पे. नाम, प्रतिक्रमणादि विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पक्खी, चौमासी, संवत्सरी तप तथा काउसग्ग ___ संख्या व सातलाख सूत्र है.) ८४२९७. (+-+) अनाथीरो चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १६४४४).. __ अनाथीमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३४ अपूर्ण तक है.) ८४२९८. नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१०.५, ११४२७). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक है.) ८४२९९. सीमंधरजिनभरतक्षेत्र की फराद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१४(१ से १४)=४, प्र.वि. हुंडी:फराद०., जैदे., (२३४१२.५, १७४२६). सीमंधरजिन चोढालियो, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: (-); अंति: भवीक लोग सुख पाया, ढाल-४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ८४३००. पदवी द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४११.५, १२४३८). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातएकेंद्रिरतन चक्र; अंति: (-), (पू.वि. 'मंडलीकराजा ८ सेनापती' तक है.) ८४३०१. कामदेव श्रावक व तेरकाठीया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १८४४०). १. पे. नाम. कामदेव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन ईद्र प्रसंसिय; अंति: खुसालचंद०कीधी प्रकास, गाथा-१७. २. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. हिम्मतराम, मा.ग., पद्य, वि. १८२२, आदि: तेरे काठीया दरी कीज; अंति: छाड्या सीवपुर वासजी, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४३०२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १६x४०). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४३०३. साडापच्चीस आर्यदेशनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १२४४६). ___ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (१)६३ सिलाका उत्तम, (२)मगधदेशे राजगृही नगरी; अंति: १२ हजार सर्वग्राम. ८४३०४. महावीरजिन स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि); पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, १०४२७). १. पे. नाम. महावीरनुं तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंग•तुम पायनी सेव हो, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरनुं तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदणने जाये; अंति: एम का दीप कवीराये, गाथा-७. ८४३०५ (#) भीडभंजनपार्श्व, अजितजिन व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४४२). १. पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, म. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: पास जिणंदजी री जाउं; अंति: शिवरतन गुण गाया रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अरिहंत भगवंत; अंति: जैनेंद्र० देवाधीदेवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंके गढ फोज चली है; अंति: समो नही कोइ ओर, गाथा-६. ८४३०६. स्तवन, गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१०, २४४६७). १. पे. नाम. नेमराजुलद्वादशवर्णन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, उपा. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल वदति वार वार; अंति: कुशललाभ इणपरि कहे रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: वैठो हियडइ आविनै हे; अंति: हे मुगति महलमै रंगी, गाथा-९. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चौमासै आय; अंति: ऋषि लालचंद सुख सवाया, गाथा-११. ४. पे. नाम. स्थूलीभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: आवि वधाई श्वइ इक आली; अंति: थूलभद्र तुं व्रतधारी, __गाथा-१३. ५. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: उण मीत परदेशी विना; अंति: प्रीतम लेहु मनाइ, गाथा-७. ८४३०७. (+) मानछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४०). मानपरिहारछत्रीसी, मा.ग., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ तक है.) ८४३०८. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११, ६४१८). साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुरप्रभु अवधारो; अंति: इण परि बोले एह, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४३०९ चोवीसतीर्थंकरआंतरा कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ७४३८). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: महावीर पार्श्वनाथ; अंति: कोडि सागर- आंतरं. ८४३१० (+) चंद्रगुप्तराजासोलस्वप्न स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९२७, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लाडणु, प्र.वि. हुंडी:सोलेसुप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१०, १९४३७). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: संता कीधी जोडो रे, गाथा-५३. ८४३११. रात्रिभोजन स्वाध्याय व बिच्छुडंकनिवारण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. *अबरखयुक्त., जैदे., (२६४१०, १०-१२४२५-३२). १. पे. नाम. सीखामण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: मुगतितणा अधीकारी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. बिच्छुडंक निवारण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वड रे वड तारी उंडी; अंति: तोर उतर वेछी डंक. ८४३१२. बासठमार्गणाद्वार कोष्ठक व सारस्वत चूर्ण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, ३१x१३). १. पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: देवगति १ नरकगति २; अंति: सनीन ६१ असनी ६२. २. पे. नाम. सारस्वत चूर्ण, पृ. १आ, संपूर्ण. __ औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अश्वगंधा वचा कुष्ठा; अंति: सर्वव्याधिहरं परम्. ८४३१३. (+) आठकर्म एक सौ अट्ठावन प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १६x४५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी भेद ५ मति; अंति: (अपठनीय), (संपूर्ण, वि. अक्षर घिस जाने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ८४३१४. घंघाणीपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:घंघाणीत०., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५५). घंघाणीतीर्थ स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: पाय प्रणमुरे; अंति: वाचक समयसुंदर सुखकरो, ढाल-४, गाथा-२४. ८४३१५ (+) गोडीजीपार्श्वनाथ वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४६०). पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध गोडीजी, ग. कनकप्रिय, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: त्रेवीसम जिन तातजी; अंति: श्री ___ गौडीजिन भेटीयै, गाथा-१९. ८४३१६. (#) सागरश्रेष्ठी चौपाई-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२). सागरश्रेष्ठी चौपाई-दानाधिकारे, म. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४३१७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:धनाजीरी सझाय लीखी., दे., (२३.५४११.५, २२४४४). १.पे. नाम. कामदेव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: कुसालचंदजी प्रकास, गाथा-१७. २. पे. नाम. धन्नाऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी काकंदी हो; अंति: रतनचंद कहै जौड, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, म. जीवणदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी वीणजारा वीणज; अंति: जीवणदास०आवे वारुवारो, गाथा-१०. ४. पे. नाम. गणधरजीरा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तवन, मु. टोडरमल, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा श्रीवीर; अंति: गुण धरजो प्रउपगारी, गाथा-१०. ८४३१८.(#) सांबप्रद्युम्न रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३-२(१ से २)=१, प.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है..प्र.वि. पत्र में दो छेद किये गये हैं., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४५३). सांबप्रद्युम्न रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण तक है.) ८४३२१ (+) कुगुरुबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३७). कगुरुबत्रीसी, म. भीम, रा., पद्य, आदि: भांति भांति की टोपी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ८४३२२. (4) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२५). ___ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान; अंति: त. श्रीविजय खिमासूरि. ८४३२३. चेतन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ऋ. जेचंद; पठ. क्र. झाणजी मुनि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाई., दे., (२५४१०, १३४३०). __आध्यात्मिक सज्झाय-चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तु छे अनंतगुणनो; अंति: भगवंत भाव प्रकाशीओ, गाथा-२८. ८४३२४. (+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, अपूर्ण, वि. १८४९, आषाढ़ शुक्ल, बुधवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. तुरणिपुर पत्तन, प्रले. मु. लालचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३७). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, म. मनिचंद्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: अमरा पदमाश्रितम, श्लोक-२६, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक-१५ अपूर्ण से है.) ८४३२५. पद्मावती का ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, २२४४४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: करुणा काया ___फल पावेजी, ढाल-३, गाथा-५२. ८४३२८. (+#) अज्ञात जैन व्याकरण ग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४३). अज्ञात जैन व्याकरण ग्रंथ , सं., गद्य, आदि: प्र ऋच्छति; अंति: (-), (पू.वि. प्रकृतिप्रत्ययांत अपूर्ण तक है.) ८४३२९ (-) साधुधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १९४३२). साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदिः साधु धन थे जीत्या; अंति: हं सतगुरुजी को दास, गाथा-१८. ८४३३० (+) वैराग्योपरि भ्रमरनामे भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०-१४४३३-४३). औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली मन; अंति: माल रंग मनि भमरा रे, गाथा-१५. ८४३३१. नेमराजल बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. चेनहंस, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १३४३८). नेमराजिमती बारमासा, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मिगसर मासे मोहियो; अंति: विनय० हर्ष उल्लास, गाथा-२७. ८४३३२. (#) आर्यदेशनामादि विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ३४४२०). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे नाम, आर्यदेश नाम, पू. १अ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजगृहनगरी; अंति: तवा न०लाख२स० दगा०. २. पे. नाम. जंबूद्वीप सर्वनदी संख्या, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ गंगानदीनु परिवार; अंति: परिवार नदी १४०००. ३. पे नाम, सर्वनय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि थुणिमो केवलित्थं अंतिः कुण्ड सुपयत्वं, गाथा २४. " २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: नेगमः संग्रहश्चैव; अंति: वस्तुमानतरा वभूतनय. ४. पे. नाम. १२ पर्षदा समवसरण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकुणइ १ साधु अति बेसइ समोसरण सभा कही. ८४३३३. समवसरण स्तव व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १३-१५x५१). १. पे. नाम. समवसरण स्तव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १. पे. नाम. अंचलगच्छीय पट्टावली खमासणा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि ईच्छाकारेण संदेसह अति चिरजीयात् विजेराजे. .पे. नाम. पौषधपारणसूत्र तपागच्छीय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: इंदु कलंकी जीणे कीयो; अंति: तीणे कुरंग कह्यो लोग, गाथा-१. ८४३३४. (+) अंचलगच्छीय पट्टावली खमासणा, पौषधपारण व सामायिकपारणा गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. जीवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ११x२९). संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. सामायिकपारणा गाथा, पू. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५x१०.५, १३४५१) १. पे नाम. गर्भविहार, पू. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. अजितशांति स्तवबृहत् अंचलगच्छीय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जं जं मणेण बहु जं जं; अंति: करेन्न पुहप्प एतस्स, गाथा-५. ८४३३५ (+) विवाहपडल भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. "" जैदे., ( २६x१०.५, १५X४४). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु वाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ८४३३६. (*) नेमराजेमती सज्झाय इय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, अन्य सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में लिखा है 'आर्या मोतीबाईनं आ पानुं छे.', संशोधित., दे., (२५x१०, ११४३४). १. पे नाम नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. पं. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि नवभव केरी प्रीत खरी; अंति य देवरने राजुल समझाय, गाथा-५. , २. पे. नाम. राजेमतिनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि नेमनाथजी रथ पाछो अंति सेवक कहे सौरनामी रे, गाथा १५. ८४३३७. गर्भविहार, अजितशांति स्तवन व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., ३०१ अजितशांति स्तव बृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुर; अंतिः जनयति संघस्य मुदम्, श्लोक-१७. ३. पे नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अह अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४३३८ (+) पच्चक्खाण आगार कोष्ठक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५४१०.५, ५X४२). पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८४३४०. अतीतचीवीसी सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५x१०.५, ११४३७). 3 सुमतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुसुं हुं स्युं व; अंति: सुमतिदेव सुपसाय रे, गाथा-९. ८४३४९. सुदर्शनशेठ रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २३-१९(१ से १७,२१ से २२ ) =४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अंतिम पत्रांक खंडित होने से अनुमानित है, जैवे. (२४.५x१०.५, ११३७). सुदर्शनशेठ रास, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. गाथा- ३६४ अपूर्ण से ४२७ अपूर्ण तक व ४७३ अपूर्ण से ४९६ अपूर्ण तक है.) ८४३४२. (+) भगवतीसूत्र विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७६७, कार्तिक, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. विक्रमनगर, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x१०.५, १७४१९ ) - भगवतीसूत्र-विचार संग्रह संबद्ध, मा.गु., को. आदि चलमाने चलिए ए विचार अति: ४ पेटीश उद्देशा ११. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतक- ४१. "" ८४३४४. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ८-४(२ से ५)=४, कुल पे ६ प्र. वि. हुंडी थोयपत्र, जैदे (२६४१०.५, ८x२५). १. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सकलश्रेय श्रीमंदिर अति: (-) (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २. पे नाम, चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. ६अ - ६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आशिष अविचल सयल जगीश, गाथा-४, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. आषाढचातुर्मास स्तुति, पू. ६आ-७अ संपूर्ण. आषाढ़चातुर्मास स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि आसाढचोमासुं आव्युं अंति: गजानंद सदा सुख वीजे, गाथा-४. ४. पे. नाम. मासक्षमणदिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि जय श्रावण पंचमी; अति जयो दव सिद्धि सदा, गाथा-४. ५. पे. नाम राखीदिनेकथन स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. बलेवदिन स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि: भरतचक्री मास श्रावण अति: लीला जयति जगति विशेष गाथा-४. ६. पे नाम. पासक्षमणदिन स्तुति, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि: भाद्रवे मासि बहुल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४३४५. भरतबाहुबली सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लक्ष्मीराम (गुरु मु. तिलोकाजी ऋषि); गुप. मु. तिलोकाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६१०, १३५०-६०). " भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., पद्य, आदिः परमपुरिष धरा बुगलधरम अति: चंदन जगतमे शोभ चढावे, ढाल- १३, गाथा - २०३, ग्रं. २७३. २. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ४अ, संपूर्ण. गाथा - ३५. ८४३४६ (+) गिरनारतीर्थोद्धार रासादि प्रबंध, संपूर्ण वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल, भुजनगर, प्र. वि. हुंडी नेमिनाथप्रबंधमहिमातीर्थोद्धारप्रबंध. लेखन संवत् मात्र ४८ लिखा है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे., ( २३४१०, २३४५१). १. पे नाम. गिरनारतीर्थोद्धार महिमाप्रबंध, पृ. १अ ४अ संपूर्ण ले. स्थल, भूजनगर. गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल वासव सयल वासव; अति आपि सुख For Private and Personal Use Only मलग मुदा, प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: नीर न बोलि कठकुं कहो; अंति: सोउं बाकी पहेंचाणि, गाथा-३. ३. पे. नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गए सूरे नमक्कार अति सहसा० म० स० वोसरामि ४. पे. नाम. काग भाषा, पृ. ४आ, संपूर्ण. काक शकुन, मा.गु., गद्य, आदि जो गामंतरड़ जातां काग; अति: पंच गामंत्रइ चालई. ८४३४७ (+) जिनकुशलसूरि गीत, गौतमस्वामी गीत व तीर्थावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२३४१०.५, ७५२४). יי १. पे नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि विलसे रिद्ध समृद्ध, अंतिः साधुकीरत पाठक भाखे, गाथा- १५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य वि. १६वी, आदि वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तूठे संपत कोडि, गाथा- ९. ३. पे. नाम. तीर्थावली, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि सेडुंज रिषभ समोसर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २ अपूर्ण तक है.) ८४३४९ (+) आवश्यक, दशवैकालिकादि योगोद्वहन यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६.५४१०.५, १०x२९-४४). आगम योगोद्वहन विधि, प्रा., गद्य, आदि आवश्यक श्रुतस्कंधे; अंति: (-). ८४३५० (+) दशअधिकार स्तवन, अपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-३ (१ से ३)=४, प्र. मु. नायकव (गुरु पं. विवेकविजय); गुपि. पं. विवेकविजय (गुरु ग. शुभविजय): ग. शुभविजय (गुरु ग. तिलकविजय); प्रले. गोरजी पठ. श्राव. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका दो बार लिखी गई है. 'लिखितं गोरजी. पठनार्थे हीराचंद' बाद में लिखा गया है. संशोधित. जैदे. (२२.५x१०.५, १५X३०-३४). " पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल ८, गाथा- १०२, संपूर्ण. ३०३ २. पे. नाम. चरणसत्तरीकरणसत्तरी सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिनें करु वंदना; अंतिः खंते सारे आतमकाज रे, गाथा- ७. ८४३५१. (+) बारभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५X१०, १२X४१). , १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य वि. १६४६, आदि आदिसर जिनवर तणा पद, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण तक है.) ८४३५२. स्थूलभद्र सवैया व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध., ..... 1 (२५x९.५, १३-१५X३५). १. पे. नाम. स्थूलभद्र सवैया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि एक समें चारो शिष्य अंति: भद्र सुप्रसन्न जी, गाथा- ९. २. पे नाम औपदेशिक दुहा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मलूकदास वैष्णव, पुहि., पद्य, आदि देखत सकल मात्र हुवा है; अंति (-), गाथा- ६. ८४३५३. (*) आलोयणविधि सज्झाय व चरणसत्तरीकरणसत्तरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, अन्य लक्ष्मी बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १२X३७). १. पे. नाम पद्मावती आराधना, पू. १अ २अ संपूर्ण, " उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, डाल-३, गाथा - ३७. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४३५४. (+) पद, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. मु. पानाचंद (अज्ञा. पं. गोकल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०, ११४२०). १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी मे तेरे दरसण; अंति: चाकर रुपचंद गुण गाया, गाथा-४. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. श्राव. पानाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: खतरा दुर करणा दूर कर; अंति: वर वरणा खतरा दुर, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नहिं कोअ मेरा प्रभु; अंति: ण नहि चोरासी ना फेरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: दील लगा वामा सुत जीस; अंति: गंगाराम सदा गुण गावै, गाथा-५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आध्यात्मिक दहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे नगरीमां कुणरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४३५५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी; अंति: मुज हो अविचल सुखवास, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुणसंपदारे; अंति: देवचंद० भावधरम दातार, गाथा-१०. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री संभव जिनराजजी; अंति: शुद्ध सिद्ध सुखखाण, गाथा-८. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. ५.पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: नाजी नाजी नाजी छेडो; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. ८४३५६. एलाचीकुमार छढालियु, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२३.५४१०, १०४३९). इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ दुहा-२ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ८४३५७. (+#) शांतिजिन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.२,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४८). शांतिजिन चौपाई, मु. विक्रम, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम चउवीसे नमी; अंति: (अपठनीय), गाथा-५८, (वि. अंतिम वाक्य खंडित है.) ८४३५८. ऋषभ स्तव, महावीरजिन स्तवन व उपधान वृद्ध स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १८४४६). १. पे. नाम. शत्रुजयमंडनबृहत् स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण भणइ, गाथा-३२. २. पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: संथुणिउ त्रिभुवनतिलउ, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत पद उज्जल नमुं अंति पावे सुगुण सुधान, गाथा- ३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि सुखदायक श्रीसिद्धचक, अंतिः एहनो परम विचार, गाथा-३. • ३. पे नाम, उपधानतपवृद्ध स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ८४३५९. (+) चैत्यवंदन संग्रह व पर्युषण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, पठ. श्रावि. ज्योतिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x२., संशोधित, जैदे., (२३.५x१०, २६X१६). ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्म, आदि जय जय सिद्धचक्र सुर; अति: चेतन धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मविजय, , मा.गु., पद्य, आदि: सुण्यं गौतम निर्वाण; अंति: पद्म कहे भवपार, गाथा-३. मु. ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण आवियां रे; अंति: मतिहंस नमै करजोड रे, गाथा- ११. ८४३६० (#) पनरतिथि स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६४१०.५, ९५३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि जे जिनमुखकमले विराजे अति रंगविजय वधते रंगे, गाथा- २३. सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: स्तौमि वीर प्रभुम् श्लोक-१. २. पे नाम. पांचमीरी थुई. पू. ५अ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतक सुप्रपंच, अंतिः सिद्धायिका प्रायिका श्लोक-४. ३०५ ८४३६१. (+) दीपावलीपर्व, पंचमी व एकादशी स्तुति, अपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, कुल पे. ३, ले. स्थल ठिमरी, प्रले. मु. रतनचंद (गुरु पं. खीमासमुद्र मुनि); गुपि. पं. खीमासमुद्र मुनि (गुरु मु. हितसमुद्र, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); मु. हितसमुद्र (गुरु उपा. कीर्त्तिधर्मजी गणी, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); उपा. कीर्त्तिधर्मजी गणी (गुरु वा. ज्ञानवल्लभजी गणी, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); वा. ज्ञानवल्लभजी गणी (गुरु उपा. क्षमाप्रमोद गणि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); उपा. क्षमाप्रमोद गणि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); पठ. जेचंदजी श्राव ग्यानचंद श्राव रायचंद श्राव, तिलोकचंद भंडारी; राज्यकाल गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि अन्य. ग. अभयकमल, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १०X२८). . १. पे. नाम दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. יי ३. पे. नाम. एकादशी थुई, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ८४३६२. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मोजावाद्य, प्रले. मु. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, , प्र. वि. हुंडी : साधुवंदना का पाना छे. मुनी मनोहरलाल की नेसरामे छे अंत में सतीस्तुति सम्बन्धी दो गाथाएँ दी गई है, जो छूटे हुए पाठ प्रतीत होते हैं.. संशोधित. जैये. (२५x१०.५, १६४६३). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चौबीसी; अंति: जेमलजी एह तरणो दाव, गाथा-५२. ८४३६४. मृगापुत्र चौढालियो व सुदर्शनसेठ सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) =२ कुल पे. २, दे. (२६४९.५, १२X३७). १. पे. नाम. मृगापुत्र चौढालिया, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: प्रेमचंद इम गावै जी, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-७ से है.) २. पे. नाम, सुदर्शनशेठ सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सारद समरु मनरली सुगु; अंति: कौन कीई है वचारोजी, गाथा-१२. ८४३६५ (+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-२८(१ से २४,२६ से २९)२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८४५१). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-१३ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-५ तक व खंड-४ ढाल-४ गाथा-२७ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८४३६६. (+) आचारांग अणागाढ यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. य. लछीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३३). जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८४३६७. (#) शंखेश्वरपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४२८). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४३६८. दसपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदण नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ८४३६९ गीत, सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १६४३६). १. पे. नाम, अरणिकमुनि गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: समयसुं० सुद्ध प्रणाम, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: होजी रथ फेरी चाल्या; अंति: जिनहरख भलीपरे हो लाल, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ क सुणीज; अंति: ल सलूणे लोयणे हो लाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरवि सारदा ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ८४३७० (+) पन्नवणासूत्रे ९८ बोल अल्पबहत्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. बोल-९२ से ९८ पत्रांक-१अ पर लिखे हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१०.५, १७४२५-३३). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सवत्थोवा गरभज मनुष्य; अंति: ९८ सर्वजीवविसेसा. ८४३७१. औपदेशिक लावणी व नारीविरह गाथा, अपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वदनावर, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४११, ४४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ऋ. रामकिसन, पुहि., पद्य, वि. १८६८, आदि: (-); अंति: ए उपदेस सुणाणां है, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से गाया २. पे. नाम. नारीविरह गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सोलेइ सिणगार सज्यो; अंति: (-). ८४३७३. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३०७ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: देखो काम माहाबली जोध; अंति: खेम० ताकि हु बलहारी, सज्झाय-१. २. पे. नाम. मनुष्य कुलक्षणसुलक्षण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. केसवदास, रा., पद्य, आदि: कृपण मरंतो कोय लछेसू; अंति: केसवदास० एते सुलछन, गाथा-३. ३. पे. नाम. १० लक्षण दातार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुरो, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम कहे आवो पधारो; अंति: सुरो०लखण दातार कहावे, गाथा-३. ४. पे. नाम. ८ लक्षण अदाता-कृपण, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुरो, पुहि., पद्य, आदि: अदाता लखण आठ प्रथम; अंति: सुरो०ए अदाता लखण आठो, गाथा-२. ५. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: सित कुल बतातेकु चंदन; अंति: भ्रमटेक कछू नहि आनि, पद-१. ८४३७४. पच्चक्खाण आगार कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४४०). पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ११ आगार तक है.) ८४३७५. औपदेशिक सज्झाय व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक १आ पर कुछ उर्दू लेखन भी है., जैदे., (२६४११.५, १३४४५). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मु. कृपासागर, रा., पद्य, आदि: पुण्य करि पुण्य करि; अंति: कमल वांदु त्रिकाला, गाथा-९. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: सुदसुसाहधम्मं कहेइन; अंति: सुअववहारं पमाणतो. ८४३७६. (#) केशवजी तथा संघे विचारेल केटलाक बोल व श्रावक अतिचार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध. अंतमें ऋ. जयराज द्वारा किसी सेठ सेठाणी को महावीरजिन चोपइ, उपासक टबो पत्र ५, नेमनाथनो विवाह पत्र १२ पढने के लिये देने की बात लिखी गई है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०, ४६४२०). १. पे. नाम. केशवजी तथा संघे विचारेल केटलाक बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशवजी ऋषि श्रमणसंघ नियमावली, आ. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०४, आदिः (१)संवत १७०४ वर्षे, (२)श्री६ आचार्यजी ऋषि; अंति: वांचवो वंचाववो सही ३. २. पे. नाम. श्रावक अतिचार वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: वार व्रतना अतीचार; अंति: अतिचार १२४ छै. ८४३७७. छप्पय बावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४४८). छप्पयबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) ८४३७८. (#) साधारणजिन स्तवन, गरु स्तुति व प्रास्ताविक दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. श्रावंत, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: वीर जिणेसर पाय नमुजी; अंति: चलणे चित आणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. कुंवरऋषिगुरु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रविदास ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: मनह मनोरथ पुरा परम; अंति: श्रीजीव ऋषि सुप्रसाद, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रे दल इसोलषणा वता एक; अंति: तउ हमे विआगे वाण, गाथा-२. ८४३७९. सीमंधरजिन स्तवन, लक्ष्मीरत्नसरि गीत व आध्यात्मिक गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४५९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीसीमंधर जिणवरु; अंति: चल पदवी थिर करी थापओ, गाथा-११. २.पे. नाम. लक्ष्मीरतनसूरि गुंहली, पृ.१आ, संपूर्ण. लक्ष्मीरतनसूरि गुरुगुण गीत, आ. हंसरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गुरु श्री लखिमीरतन स; अंति: युगतइदिणंदे गुरुश्री, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखे हैं.) ३. पे. नाम, आध्यात्मिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. भीम, मा.गु., पद्य, आदि: मन सुधि विण सिद्धि; अंति: भीम भणइ जगि सारा, गाथा-५. ८४३८०. सप्तव्यसन सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४५२). १.पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रउपगारी साधु सगर; अंति: सीस रंग जयरंग कहै, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रत्नविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सकल सुख दाता हो; अंति: धि सहाइ हो संकटचुरणा, गाथा-९. ८४३८१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १० दुमपत्तयं, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १०४५७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ८४३८२. (-2) श्रावककरणी सज्झाय, बारव्रत पद व नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १०४३०). १.पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है., वि. २० के बाद गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम. श्रावक बारव्रत पद, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ व्रत पद, मा.गु., पद्य, आदि: बारवरत सुधा पालजे; अंति: मीथ्यामलम भरजपीड, पद-१. ३. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमो अधेनउत्ताधेनको; अंति: रतनचंद भणे रे उल्लास, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८४३८३. पद्मिनी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १३४३४). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४३८४ (+) १९८ बोल-गुरुवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १९८ बोल-गुरुवंदन, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदनक विषइ एकसउ, (२)२५ सरीरना पडिलेहण; अंति: (-), (प.वि. "१० भयसाचेव ११ भय तं" पाठ तक है.) ८४३८५. आलोयण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्यांनरी आसातना कीया; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., '१ साधनै स्त्री संघटैए १ साधवीनै पुरुष संघटै' पाठ तक है.) ८४३८७. (+) महावीरजिन स्तवन, आध्यात्मिक पद व सप्तव्यसन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३७). १. पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३०९ २.पे. नाम. आत्मध्यान पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मुझकुं डर हे रे एक; अंति: पे सरणा गुहीये तीनका, गाथा-४. ३. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ व्यसन सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण मेरे जीवडारे सुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४३८८. निसाणी व प्रास्ताविक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ९x४०). १. पे. नाम. गुरूशिष्य कथन निसाणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: इण संसार समुद्र को; अंति: सुख होइ सुलट्ठा, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पहिं., पद्य, आदि: जब ही दिन पानी सै; अंति: आंधां आगली आस्सी, गाथा-४, (वि. उदयराज एवं जसराज की कृतियाँ हैं.) ८४३८९ (+#) वीशस्थानकतपमंत्र व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४०). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "इच्छकार भ. वीसथानउ. का. लो. ३ पछे वंदणां" पाठांश तक लिखा है.) ८४३९०. इग्यार गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. मानुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'पढावनार बाई मानु' ऐसा लिखा है., दे., (२५४१०.५, ९४३४). ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: इंद्रभुतिना लीजे; अंति: वंदु अग्यारे गणधार, गाथा-१३. ८४३९१ (#) आठदृष्टिनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १८४५०). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ८४३९२ (+#) षष्टिशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२२). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणंति जंतु सिवं, गाथा-१६१, (पू.वि. गाथा-१६१ मात्र है.) षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पद जाउ अनंत सुख लहो, (पू.वि. गाथा-१६० व १६१ का बालावबोध है.) ८४३९३. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १४४३६). १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरतणां तृकाल चर; अंति: नप्रभाव बताग सवकुमरत, गाथा-७. ८४३९४. शनिश्चर छंद व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १३४४१). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तुं प्रसन्न सनीसर, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्यामवरण ठाकुर नहीं; अंति: नहीं सुता करो विचार. औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कालै वरण ठाकुरजी नही; अंति: हुई च्यार मुख वाली. ८४३९५ (+) सामायिक, धर्मरुचि अणगार व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी:पानोसि., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: मन बचैन काया सावं जर; अंति: रे आठु कर्मासु लडीये, गाथा-१३. २. पे. नाम, सीमंधरस्वामी वीनती, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. भद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमिद्रजिणेजी; अंति: जपुंरे मगुन गायजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर निरोपम सुंदर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८४३९६. (+#) लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. पल्लवीयारपार्श्वनाथ प्रसात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४४२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्वमंगलमांगल्यं, श्लोक-१९, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से १९ तक है.) ८४३९७. मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय-७वां दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, २४४१८). १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८४३९८. श्रेणिक राजा चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:श्रेणिक०., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). सम्यक्त्व चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४३९९ (+) अनागतचतुर्विंशतिजिन स्तवन व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १७११, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. म. हस्तिसौभाग्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१५४६०). १. पे. नाम. अनागतचतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. लाभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी पाय; अंति: मुझ भवि भवि इस रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पादं त्रिरुद्रदलं; अंति: संगिणीय दार लाभै. ८४४०० (+#) वीसस्थानक पेसवानी विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १४४३३). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: ते मिच्छामी दुक्कडं, संपूर्ण. ८४४०१. नरक-देव आयुष्यादि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४२९). २४ दंडक में जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८४४०२. (+) पंचांगुलीमाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०, १३४३७). पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति पाए नमि; अंति: (अपठनीय), गाथा-२६, (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं व अंतिमवाक्य खंडित है.) ८४४०३ (+) बोल व पद्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४५०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: पाचौंपाचयोर तातै चीत; अंति: ठोर नही पायीए, ग्रं. १. २. पे. नाम. १८ दोष रहित भावचारित्रीया, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ दोष रहित भावचारित्री, मा.गु., गद्य, आदि: आठ वरसना बाल उपरांत; अंति: हवे तो दीधी सूझै. ३. पे. नाम, अढारभार वनस्पतिनो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अढारभार वनस्पतिमांहि; अंति: १भार एवी १८ भारव०. ४. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र गाथा यंत्र सहित, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जाव मित्तकोट्ठागछंति; अंति: सियनट्ठो आणपुर्वी, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३११ ८४४०४ (१) अध्यात्म व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५x१०.५, १३४३५). १. पे नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुण गल मेरी माता भोल, अंतिः चला गुरु फास मेरे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भला भाई वेणी तु गल; अंति: (अपठनीय), गाथा-८, (वि. प्रत का बायां भाग खंडित होने से अंतिमवाकय अवाच्य है.) ८४४०५. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४४११, ८x४२). " " पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि वामानंदन साहिबा रे, अंति कहे रे टालो भवनो भोग गाथा- ७. ८४४०६ (+) स्तवन चोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे.. ( २३४१०.५, १४४३६). स्तवनचौवीसी, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संभवनाथ स्तवन गाथा-६ अपूर्ण सुमतिनाथ स्तवन गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८४४०७ (*) २३ पदवी विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी पदवी.. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४x१०.५, १७४३). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्री रत्ननी; अंति: (-), (पू.वि. '४ उपासुतर ५ तेरापइमाइतीपइप' पाठांश तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेष्ठ, ८४४०८ (+) देवलोक विमान, रत्नप्रभादि क्षेत्रमान व पंचेंद्रियादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७००, चैत्र कृष्ण, ४. शुक्रवार, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. सारंग मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०.५, १४X४६). १. पे. नाम. देवलोक विमान विवरण कोष्ठक, पृ. १अ संपूर्ण देवलोक विमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अनुत्तर उपरि ग्रीवेक; अंति: कीरण वयतंस चतुरंस. २. पे. नाम. नारकी आयुमान देहमान विचार कोष्ठक, पृ. १अ संपूर्ण. नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रतनप्रभा१ ७ ३ ६; अंति: तमतमप्रभा ५०० ० ०. .पे. नाम चतुर्विध पंचेंद्रिय विचार-प्रज्ञापनासूत्र पद- १गत, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ४. पे. नाम. निद्रायमान कर्मप्रकृतिबंध पाठ-भगवतीसूत्र शतक-५ उद्देश ४ गत, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण ५. पे. नाम. भारमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चिहुं पवायले प्रस्थ; अंति: ते आत्मांगुल कहिय. ८४४०९ (*) औपदेशिक सज्झाय, शांतिजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३४१०.५, १५४४३-४५) १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुने ना कहे शचि बने, अंति ने पुजे एक गाहो राज, गाथा १६. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण, मु. रिषभ- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि पंचम चक्री जिन सोलमा, अंतिः सफल करी नीज जीहा, गाथा - ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सो वाता श्रवणे सुणी; अंति: उलटे अक्खर वीस, गाथा- १. ८४४१०. अध्यात्म पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत में 'जंबु का दृष्टांत' कृतिनाम लिखकर बीजक जैसा कुछ अस्पष्ट " व अपूर्ण लिखकर छोड़ दिया है. जैदे. (२४.५४११, ११x२९). " " अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि चितानंद मन कहारे; अंति: चेतना निजगुण सुधहेरा, गाथा- १०. " For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४४११ (+) सुलसा श्राविका व चंदनबाला सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १०४३६). १.पे. नाम. सुलसा श्राविकानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुलसामहासती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शील सुरंगी रे सुलसा; अंति: नामे नवनिधि थायजी, गाथा-७. २. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: कौशंबीपति शतानिक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८४४१२. (+#) ईरियावहियसूत्रना भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४२१). इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: देवताना भेद १९८; अंति: (-), (पू.वि. भवनपति प्रसाद वर्णन __अपूर्ण तक है.) ८४४१३. (4) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ११४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ८४४१४. योगसंग्रह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११,११४३६). योगसंग्रह सज्झाय, ग. उदयसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीजिणवर प्रणम्; अंति: णआज्ञा शिवपुर वासरे, गाथा-१४. ८४४१५ (#) चोविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. आलमचंद नेणावाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १३४४०). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा प्रभु पेला रिषभ; अंति: सुवंदणारे लोय, श्लोक-१३. ८४४१६. वीसस्थानक विधि, तपगाथा व १२ देवलोक इंद्र संख्या नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम. वीसस्थानक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: शासननी प्रभावना करवी. २. पे. नाम. वीसस्थानक तप गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थएरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. ३. पे. नाम. १२ देवलोक इंद्र संख्या नाटक, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ देवलोक इंद्र नाटकसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: एकै हाथीयारइ ५१२; अंति: एतला नाटक जोवतो हुतो. ८४४१७. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्रले. वा. रत्नचंद्र; पठ. श्रावि. मूला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२७). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०. ८४४१८. जिनचंद्रसूरि सवैया व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०.५, १३-१५४३५-३८).. १. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि अष्टक, उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: ए जु संतन के मुख; अंति: समयसुंदर० आसीस इसी, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जैतसी, पुहि., पद्य, आदि: वामाको नंदन नयन आनंद; अंति: पावत जीव महा सुखसाता, पद-१. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३१३ ३. पे. नाम, जिनदत्तसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पा. रत्ननिधान, पुहिं., पद्य, आदि: घनघोर घटा विजुरी झबक; अंति: रत्ननिधान०किर्ति कहइ, गाथा-२. ४. पे. नाम. औपदेशिक गुरु पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुविषे, पुहिं., पद्य, आदि: कबीर ब्राह्मण गुरु ज; अंति: च्यारु वेदामांहि, गाथा-१. ८४४१९. नेमि स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ११४४१). नेमिजिन स्तवन, मु. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे श्रावण मासे; अंति: ननेम अनुभव फलीयो रे, गाथा-१३. ८४४२०. इलाचीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:शिझाय., जैदे., (२३४१०, ९४३०-३३). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे इलाचीपुत्र जाणी; अंति: लबधविजय गुण गाय, गाथा-९. ८४४२१. (+) नागीलारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हंडी:नागला., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३६). जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसारद प्रणमुं हो; अंति: गाया हो मुनी रामजी, गाथा-३३. ८४४२२. (#) नेमराजिमती संवाद, संपूर्ण, वि. १७५०, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु वा. नयविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १७४५५). नेमराजिमती संवाद, म. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीओ; अंति: लाल दोलितरा दातार रे, गाथा-३२. ८४४२३. (#) जीवशिक्षा, धन्नाशालिभद्र व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. कायापुर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १४४४४). १.पे. नाम. जीवशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पंच आंगुलि वेढ बनाया; अंति: सफल फली फल मोटी रे, गाथा-७. २. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जेणे दीधु तेणे लाधु; अंति: दीधुं लाभे भाइ इरे, गाथा-६. ३. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. अमर, मा.ग., पद्य, आदि: धारणी मनावइ रे मेघकु; अंति: रे छूटी जे भवतणा पास, गाथा-५. ८४४२४. चौविसजिन, नवतत्व व अढार पापस्थानकादि नामावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२३.५४१०, १०x२९). १. पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ१ अजितर संभव३; अंति: पार्श्व२३ महावीर २४. २. पे. नाम, नवतत्त्व नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव २; अंति: मोक्षतत्त्व ९. ३. पे. नाम. छ काय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथविकाय १ अपकाय २; अंति: त्रसकाय ६. ४. पे. नाम. १८ पाप स्थानक नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १; अंति: मायामृषावाद १८. ५. पे. नाम. पंचेंद्रिय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विवरण, पुहि., गद्य, आदि: देवतत्त्व, गुरु; अंति: श्रोत्रंद्रीकान. ६.पे. नाम. श्रावकना १२ व्रतनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिवेरमण जीव; अंति: अतिथि संविभागवत. ८४४२५ (#) मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १०४२६). मल्लिजिन स्तवन, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: मल्लिजिन लाग्यु; अंति: अनुभवसुखनी क्यारी रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४४२६. () अध्यात्म पद, जिनलाभसूरि गुहनी व गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५X१०.५, १५X३९). १. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. देवमाणिक, मा.गु., पद्य, आदि आज वधावी म्हारै सहगु; अति कीधो है देवमाणिक कठै, गाथा ५. २. पे. नाम. जिनलाभसूरि गुंहली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनलाभसूरि गहुंली, मु. देवमाणिक, मा.गु., पद्य, आदिः आवौ सहिया धरीयउ माहह; अंति: दीपै हे देवमाणिक कहै, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनलाभसूरि गीत पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. " मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि आज सुहावो जी दीह अंति: (-), (पू.वि. गावा-८ अपूर्ण तक है.) ८४४२७. (*) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५x१० २१४५४)बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि पृथ्वीकाय, सूक्ष्म अति: ५६० अजीवना भेद होइ. ८४४२८. (+) चौसठसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. ट्रंक, प्रले. मु. न्याय ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १६x४३). ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम पनै ज्यो नी; अंति: जैमल कहे आणो धिरती, गाथा-४२. ८४४२९ (७) पद्मावती आराधना व जिनकुशलसूरि गीत संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५, १७x४३). १. पे. नाम पद्मावती आराधना, पू. १अ १आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती: अंति: कठै पापथी छूटै ततकाल, ढाल ३, गाथा - ३५. २. पे. नाम जिनकुशलगुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि जपउ कुशलगुरु नाम; अंति दिन अधिक परताप वाघे, गाथा-४. ८४४३० (+) देवलोके विमान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, १२४३४-४१). देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मदेवलोकि बत्तीस; अंति: एतला विमान देवलोके. ८४४३१ (७) इक्षुकार राजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, पठ. श्राव, सुंदर चौकसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x१०.५, ११४३६). कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि कहि राणी कमलावती हो; अति जीवडा हो गुणह निधान, गाथा १०. ८४४३२. चार प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१०, १५X३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६६५, आदि (-) अंति (-) (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., खंड-२ ढाल-१ से खंड-२ ढाल -३ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४४३३. (f) टोटाना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी टोटानाबोल.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२६.५X११.५, १३x२२). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिले बोले भणवागणवा; अंति: ब्रह्मसूत्रनी साखे. . ', ८४४३४. सुभद्रासती सज्झाव, सुभाषित व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२६.५x११, १२४३३). १. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर अरिया सोझतो; अंति: भणै हमे वरास्यां माय, गाथा - २०. २. पे नाम सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण सूक्तावली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धैर्यं यस्य पिता; अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे नाम ज्योतिष, पू. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहिं मा.गु. सं. प+ग, आदि के देव कपटी कामीया अति: ११ दाचा मीन रासी १२. "" For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३१५ ८४४३५ (+#) श्रावककरणी सज्झाय, पार्श्वजिन व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १०-१४४४६). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदरने साचो कहो, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भगति आणी निज; अंति: मान कहै सुणिए अरदास, गाथा-५. ३. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, आ. रायचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवकने यै परमाणंद; अंति: रायचंद० भणै निसदीस, गाथा-५. ८४४३६. (2) लब्धि विचार, संपूर्ण, वि. १९११, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राउपुरा, प्र.वि. मुनीसंभुजीरी प्रत देखीने वली सुधकरीवो. पूर्णता के बाद रिमार्क लीखा हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४११, २२४६०). लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सकाम निर्जरा करतां; अंति: एवं सातवली सुध करीवो. ८४४३७. भले विवरण व उपदेश पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. रूपजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. भले विवरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. रूपजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. भले विवरण-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. जगराम, मा.गु., गद्य, वि. १८३९, आदि: प्रभु नेशाले बैठा; अंति: पामस्यौ इति तत्वं. २. पे. नाम. आत्मोपदेश पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत को; अंति: भावे भजन करो भगवंतको, गाथा-९. ८४४३८. (+#) रत्नचूड व्यवहारीनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रतनचंचोपाई., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३३). रत्नचूड चौपाई, म. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक एवं ढाल-३ दुहा-१ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८४४३९ (+) नेमजिन द्वादशमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. गंगविजय; पठ. पं. मेघवर्द्धन गणि (गुरु पं. कल्याणवर्द्धन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०,१३४४०). नेमराजिमती बारमासा, उपा. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिन प्रेम; अंति: वीनव्या नेमिस्वामी, गाथा-४२. ८४४४० (4) गिरनारमंडन नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. हेमरत्न (गुरु पं. विजयरत्न गणि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३२). नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: उवज्झाय। मंगल करू रे, गाथा-५२. ८४४४१. दिवाली देववंदनविधि, स्तुति स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१०.५, १२४४६). १. पे. नाम, दिवाली देववंदनविधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: थापनाथापी इरीयावहीपड; ___ अंति: कहें नय तेह गुणखांण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-उपधानविधिगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मनोहर मुरति महावीर, अंति: ज्ञानविमल० जयकार करे, गाथा- ४. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जय जय भवि हितकर वीर अंति: गुण पुरो वांछित आस, गाथा ४. ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधि गर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३ आदि श्रीवीरजिणेशरसु परि अंतिः मुझ देयो भवि भवि, गाथा - २७. ८४४४२. (+#) मिथ्यात्व के ७४ बोल व २५ भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२५x१०, ११४३६). " १. पे. नाम. मिध्यात्व के चौहोतर बोल, पृ. २१-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ७४ बोल-मिथ्यात्व के, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दान देइ ते मि., (पू.वि. बोल-३२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मिथ्यात्व के पच्चीस भेद, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिथ्यात्व २५ भेद विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अभिग्रहि मिथ्यात्; अंति: बडेरानी करे ते मिथात. ८४४४३. मुगतागिरि की निसाणी, संपूर्ण, वि. १७७० कार्तिक शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. अमृतसुंदर गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१२७३) एह नीसाणी बहु गुणी, जैदे. (२२.५x१०.५, १३४३४). , मुक्तागिरि निसाणी, क. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सुखकरणी अविनिजध; अंति: लाल सुकवि आखंदा है. ८४४४४ (४) चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २१-१८ (१ से १८) = ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०.५, १७x४६). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: उदय० आणंद लीलविलास, खंड-४, गाथा-८६२, ग्रं. ११२० (पू.वि. खंड-४ डाल-४ गाथा १२ अपूर्ण से है. वि. डाल ४५.) ८४४४५. (*) चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५x११, १७२९). चैत्यवंदनचीवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आदनाथ अति रूप सदा आनंद, चैत्यवंदन-२५, , गाथा - ७५. ८४४४६. (*) विजयसेठविजयासेठाणी व इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) -३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५x९.५, १०X२८). १. पे नाम. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, पृ. २अ ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशल नीतु घरि अवतरइ, ढाल-४, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम एलापुत्र जाणिये अति लब्धिविजय गुण गाव, गाथा ९. ८४४४७. (+) महावीरस्वामीनुं पारणुं, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पुफावती नगर, प्रले. कनीरामजी; पठ. श्रावि. मुलचंद-मा जेसलमेलीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पारणो., संशोधित., दे., (२३×१०.५, १२x२८). महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि श्रीअरिहंत अनंतगुणा, अंति: एहीज मंगलमाल, गाथा - ३१. ८४४४८, प्रदेशीराजा चौढालिया व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १. पे. नाम. प्रदेशीराजा चोढालीयो, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु, पद्य, आदि हाथ जोडी की वीनती अंति नामै कृतजपाल रे, ढाल ४. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई. पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आजनो बधाई राजा नाभी; अति नीरंजन आदेसर दयाल रे, गाथा ६. For Private and Personal Use Only २, जैवे. (२५४१०.५, १३४४५)११. बुधवार, ,ले. स्थल, नागपुर, ' , Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४४४९ (4) महावीरजिन, पार्श्वजिन स्तवन व आदिजिन स्तति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४-१(१)=३, कल पे. ३, प्रले. मु. जेराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजलदेसर, प्रले. मु. जेराम, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंति: पुन्यकमल भव भय हरु, गाथा-५३. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीसलपुर वादं आदि; अंति: संघना विघन निवार, गाथा-४. ८४४५० (#) गजसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अंतिम पत्र में पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १६४४४). गजसकुमालमुनि रास, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: भदलपुर पधारीया बावीस; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४४५१ (+) सीमंधरजिन, विमलजिन स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०, ११-१३४२९-३४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी सीमंधर; अंति: पद्मविजे०मुख अतिनूरो, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभक देख मेरे मन भइ; अंति: अगरचंद० अमरपद दीया, गाथा-३. ३. पे. नाम, विमलजिन महाव्रत स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल गुण मन; अंति: किरति व्यापेरे लो, गाथा-६. ८४४५३. बारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध. पत्रांक १आ पर दैनिक हिसाब का उल्लेख मिलता है., दे., (२४४१०.५, ९४२७). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.ग.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः (१)उच्चैर्गुणैर्यस्य, (२)सुखकर शंखेश्वर प्रभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम जलपूजा गाथा-६ तक लिखा है.) ८४४५४. (#) सज्झाय, भास, स्तवन व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ३२-३४४१९-२१). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: जाय लेजो रे लंकाना; अंति: रंगदास० ताग न तुटें, गाथा-४. २. पे. नाम. आचार्य शिवजीनी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. शिवजी आचार्य भास, पुहि., पद्य, आदि: जगतमै श्रीशिवजी मुनि; अंति: सेवक सुंगुण गायो, गाथा-३. ३. पे. नाम. संसार सासरु शिवपुर पीहरनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कुटुंब, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: संसार सासरुं माजी; अंति: नारायण उत्तम ठाम रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. किसनदास, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज तुमसुं दिल; अंति: किसन० दास तणी अरदास, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया-शंखेश्वरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आज जिनराज भेट्यो सब; अंति: उदय० के ही दीदार थई, दोहा-१. ६. पे. नाम. वणिक मापतोल व्यवहार दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुल मांडी मंगल; अंति: तदा तिहारे हेठ, दोहा-२. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४४५५ (+) गुरुगुण व गुरुवंदन गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४१०, ११४४३). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिद्धपुर. मु. जीतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नयरी राजग्रही जांणीय; अंति: जीतविमल सुख पावे रे, गाथा-७. २.पे. नाम. गुरुवंदन गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालणपुर. मु. जीतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: बेंनी आवो जइये गुरु; अंति: जीतविमल० सीवसुख थाय, गाथा-७. ८४४५६. (#) हितोपदेश व शरीर उपर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. विकानेर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १४४३२). १.पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वा श्रीजिन भाख्यो एम, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. कर्ता ने कृतिनाम 'शरीर उपर सज्झाय' लिखा है. म. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल भोला प्राणी; अंति: रूपचंद० संगम राचो, गाथा-९. ८४४५७. (+) आदिजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. गाथाक्रम-६ के बाद ७ की जगह १६ से गाथाक्रम लिखा है., संशोधित., ., (२६.५४९.५, ८४३३-३६). आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ८४४५८ (4) इलापुत्र सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४९.५, ९४३४). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीयो; अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८४४५९. जिनमंगल स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४९.५, ८४४२-४४). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम 'जिनमंगल स्तवन' लिखा है. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज मारा प्रभुजी सामो; अंति: गुणसागर० ए दिल आवो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: आवौ म्हारा रसीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा ८४४६० (+#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, पठ. श्रावि.सखा बाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंतिम गाथा-२२ का गाथांक नहीं लिखा है., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१०, १५४३३-४२). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमु शिरनामी; अंति: गुणसागर० सवसुख पावै, गाथा-२२. ८४४६१ (+#) भगवतीसूत्र वाचनाप्रसंग पत्र, संपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४९.५, ३२४२०-२५). भगवतीसूत्र वाचनाप्रसंग पत्र, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदिः स्वस्तिश्रीगुणयुत; अंति: (१)अनुमोदज्यो थे तत्र, (२)तुमुडै किजो राज, दोहा-२३. ८४४६२. (+) श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल चउपदी., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ९४३६-४५). श्रीपाल चरित्र, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंतगुण धरिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३१९ ८४४६३. (+#) नेमिजिन बारमासा व आबुजीरो स्तवन, अपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. रत्नधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५-१६४३८-४०). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन बारमासो, म. डूंगर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: डुंगरीयो०किम जास्य, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आबुजीरो स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अर्बदगिरितीर्थ स्तवन, वा. महिमसंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: आब शिखर सोहामणो; अंति: नमे नित जिनवर __मुदा, गाथा-२४. ८४४६४. प्रहेलिका, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे.४, प्र.वि. पत्रांक-१अ के प्रारंभ में नेमराजिमती सज्झाय का कुछ पाठ लिखकर छोड दिया है., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३६-४८). १. पे. नाम. प्रहेलिका पदसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: गगन सरोवर खिण्यौ बिण; अंति: लोग कहै छै खारीखारी, दोहा-५. २. पे. नाम. बाहुवल सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८५५, ले.स्थल. डीडवाणा. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: (१)तेरा बाबल मरीयो रे, (२)कूड आडोसी कूड पाडोसी; अंति: कहै कबीर० भखाय भवानी, गाथा-४. ४. पे. नाम. कलियुगप्रभाव पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कलियुगप्रभाव, मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: गई लाज मरजाद गई सहु; अंति: कवियण० थोक धरसु गया, गाथा-१. ८४४६५ (4) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४३१-३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८४४६६. (+#) औपदेशिक जकड़ी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३०x१५-३०). १.पे. नाम. औपदेशिक जकडी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामिनी बे लाल; अंति: विनय० बपरवाही मत करे, गाथा-५. २.पे. नाम. प्रियविरह पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सुंदर पटका गैंह रही; अंति: ताते टपकत मैंन, गाथा-४. ३. पे. नाम. जैन जकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण मेरे प्राणी; अंति: माल० जगमा यस लीजइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. मालकवीसरकृत जकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा मन सूआ बे सिंवल; अंति: कहि मेरे मनरंगी सूआ, गाथा-८. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धोला तो सव कुछ भला; अंति: जल उत्तरीया कुसलेण, गाथा-२. ८४४६७. (+) नववाडि सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:स्तवनपत्र., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १८४५२-५५). For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नववाडि सिज्झाय, पृ. २८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः पुण्यसागर० शील अखंड, ढाल - २, (पू.वि. ढालों का गाथाक्रम स्वतंत्र दिया है. ढाल २ गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिराजीमती स्वाध्याय, पृ. २८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनवेली प्रेम गहेली; अंति: लिखमीवल्लभ० रंगे गाया, गाथा - १०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हुं तो रंज्यौ रंज्यौ; अंति: जिनराज० भंज्यौ हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि पासजी मन मान्यौ अति वीनती मनवचक्रम साखे, गाथा-५. ५. पे नाम. २४ जिन गीत पार्श्वजिन गीत, पृ. २८आ, संपूर्ण. २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. पार्श्वजिन गीत., वि. गाथा-५.) ६. पे. नाम. साधुगुणवर्णन सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: पाचेइंद्री अहनिस वसि; अंति भणे विजैदेवसूरो जी, गाथा-१३. ७. पे. नाम कुरुदत्तमुनि सज्झाय, पृ. २८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि व्यापारी इक पुराहवणा; अंति (-) (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४४६८. वीशथानक विधि, संपूर्ण, वि. १७६४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पू. १, ले. स्थल, बेनातट, प्रले. पं. रंगमूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१०.५, १५X१६-४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० स्थानकतप विधि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि अरिहंतपुजा त्रिकाल अति कीजे फासूपाणी पाजै. ८४४६९. (f) श्रावककरणी सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ श्रीकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, १२x३२-३५) १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पू. १अ संपूर्ण. मु. नित, मा.गु, पद्य, आदि श्रावक धर्म करो; अंतिः नेत० समकति धारी रे, गाथा ९. २. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विक्रम, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७२१, आदि प्रथम आदि जिणंद, अति: विक्रम० सुख जे भणे, गाथा-७. ८४४७१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-१७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक-१६ को सुधारकर ३० किया गया है. संशोधित दे. (२६.५४१०.५, १२४३२-३४). " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८४४७५. (+#) चिंतामणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, पौष कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. भिलपुरनगर, प्रले. पंन्या. गुलाबसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२४४१०.५, ९४३७-४०). पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आणी मन सुधी आसता देव " अंति: कैहें सुख भरपूर, गाथा- ७. ८४४७६. समकितना ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पू. १, ले. स्थल, धोलेराबंदर, प्रले. श्राव. दुलभजी सुंदरजी शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: समकीतबो०., दे., (२६X१०.५, १३-१४X४०-४६). सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि जीवादिक पदार्थ जाणवा अतिः मोक्ष जवानो उपाय छे, ८४४७७. (+#) प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी पडकमणासूत्रपत्त्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१०, ८x२८-३२). "" प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि सामायिक लीये वांद अंतिः सुणै भयवंदसन्नभदो, (वि. मात्र प्रतीकात्मक पाठ है.) For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४४७८. जैनकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४१०, ११४३४-३६). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. डोकरी कथा, सुभुमचक्रवर्ति व जमदग्नि कथा अपूर्ण ८४४७९ (+) स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४४०). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-८ गाथा-३ अपूर्ण से स्तवन-१२ गाथा-४ अपूर्ण व स्तवन-१७ से स्तवन-२१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८४४८१. (+-#) इलापुत्र, रात्रीभोजन सज्झाय व उपदेश अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. ककोड, प्रले. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०, १५-१६४३८-४४). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापुत्र जाणज्यो; अंति: करी लबधबीज गुण गाय, गाथा-२७. २.पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, माघ शुक्ल, ४, शनिवार. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: छठोवरतर नीतनोय भोजन; अंति: चोथमलकरातीभोजन्म दोष, गाथा-१४. ३. पे. नाम. उपदेश अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कर गुजरान गरीबी से; अंति: रतनचंद० दुख मीटता है, गाथा-८. ८४४८२. नेमराजिमती फाग, होरी, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालावड, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१०.५, १०४३५-४०). १. पे. नाम. नेमराजिमती फाग, पृ. २अ, संपूर्ण. विद्या, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल नारि नउभवथी; अंति: लहे पद मुगतीसे जोरि, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजुल होरी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ नेमराजिमती होरी, मु. रामचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: अबतो रह्यो न जाइ रे; अंति: राम० नेमजी के तोले, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ मु. परसोत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तेरे जाना जरुर जोबन; अंति: भजन करिलेने जिनराया, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म.हीर, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन त्रिशलानंद चडा; अंति: हिर०वीर सफल दिन आजनो, गाथा-६. ८४४८३. (+#) स्तवनचौबीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०, १४४५०-५५). स्तवनचौबीसी, मु. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल श्रीऋषभ; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-१० गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४४८४. (#) मनगणतीसी चौपाई व जकडीसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३-१५४३२-३६). १. पे. नाम. मनगुणतीसी चौपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मनगुणतीसी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म मेले रे ए; अंति: कहैइ पाप पणासइ दरिय, गाथा-२९. २. पे. नाम. मनगुणतीसीजकडी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मल्लिदास, पुहिं., पद्य, आदि: नित नही जगमई जीवना; अंति: मल्लि० बहुर्यो नहीं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४४८५. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक खंडित है., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १९४४४-४८). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनीवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम. कलियुगनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: माय कहे मुज नानडी; अंति: सुकृत एक न पायो रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... म. लावण्यसमय, मा.ग., पद्य, आदि: आदित्य जोइन जीवडा जग; अंति: समै भणै चंदो जिन वीर, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. १आ, संपूर्ण. म. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वनमाली तणी खप करो मा; अंति: भणै० कवि कोडि न लाई, गाथा-९. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४४८६. (+#) चतुर्विंशतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, २१४६७). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही राउ; अंति: हिव कर आप समानो रे, स्तवन-२४. ८४४८७. (+) ६२ मार्गणा कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, ले.स्थल. सीतामउ, प्रले. श्राव. चांदमल भणसाली, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०.५, १८४९). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति १ नरकगति २; अंति: ६१ आहारी ६२ अनाहारी. ८४४८८. (+#) जिनकशलसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, ३३-३४४१५-१९). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण... पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरीसरू; अंति: निरमल धरि प्रेम, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराडिद्रहपुरवरइ; अंति: गुण० एहिज तत्व विचार, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरके चरणपाया सुरत; अंति: गुण० कुण कहइ जोरी वे, गाथा-७. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरीसर से; अंति: गुणवि० परमानंदरी माई, गाथा-७. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जलधार विना न अधार कछ; अंति: यबोलइ० पुखराव्रत मेह, गाथा-२. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांगानयरि सोहामणउ; अंति: गुणप्रणमइ निज भालकि, गाथा-५. ८४४८९. शालिभद्ररो सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, १२४३६-४०). शालिभद्रमुनि सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी पाये; अंति: ताहने सव सुखकारी, गाथा-३५. ८४४९० (-) आदिजिन सुखडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सुकरी., अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४९.५, १२४२६-३०). आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देइ माता चरण; अंति: पुतर संपत दातार, गाथा-२८. ८४४९१. नागश्री, काया व १४ नियम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०, १७-१८४५०-५१). १.पे. नाम. नागश्री सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३२३ मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धरमघोष आचार्यना; अंति: सब दुख जात परेरा रे, ढाल-२, गाथा-४७. २. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: कायाबिना सोभागी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. १४ नियम सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: हां रे चत्र नर नेम; अंति: रमरटी नगर तुंक माही, गाथा-१०. ८४४९२. (+#) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि; पठ. सा. खेमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, १०-११४३१-३२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: आहि समरै ए मनराजीओजी, गाथा-३६. ८४४९४. (+) साधु वंदना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४७). साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४४९५. पजुसणमहातम भास व आदिदेव स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४७, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, ९४२८-३३). १.पे. नाम. पजुसणमहातम भास, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कोढणा, प्रले. पं. दला, प्र.ले.पु. सामान्य. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आवीया रे; अंति: मतिहंस नमै करजोडि रे, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. चंद, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: हो प्रथम जिणेसर प्रथ; अंति: द्यो मुझ अविचल राज, गाथा-९. ८४४९६ (+#) सुखमवादर अल्पाबहुत्व व ३३ बोल सिद्ध अल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:अल्पाबहुत्व., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२३४१०, १७-१८४४२-४५). १. पे. नाम. सुखमवादर अल्पाबहुत्व थोकडो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९४८, माघ, १, शुक्रवार, ले.स्थल. महीपुर नागोरनगर, प्रले. मु. चनणमल (गुरु मु. सोभागमल); गुपि. मु. सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सर्वथी थोडी सुखम तेउ; अंति: सुखम विसेसाहियाछइ. २.पे. नाम. सिद्धो के ३३ बोल अल्पाबहत्व, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९४८, फाल्गुन कृष्ण, १३, ले.स्थल, जोधपुर मुरधरदेश, प्रले. मु. चनणमल (गुरु मु. सोभागमल), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रज्ञापनासूत्र-संबद्ध ३३ बोल सिद्ध अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा चोथी नार; अंति: देवीना संख्यात गुणा. ८४४९८. (#) गढचीतोडरी गजल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. आमेट, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१०, १४-१५४५२-५४). चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुरभूज धार; अंति: गढचीतोडरी खुब गाई, गाथा-५९. ८४४९९ जिणरस, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४४३-४५). जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपतिसारद पाय नमी; अंति: (-). ८४५०० छट्ठो अछेरो, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रावण कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १४४५०-५१). मृगावतीसती कथा-छठा अछेरा, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: कोशंबी नामे नगरि; अंति: अछेरा भूत वात जणावी. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२४ ८४५०४. (#) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. सूरविजय (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, . मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०, १५X४१). प्र.वि. २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा., मा.गु., सं., को., आदि: (-); अंति: (-). " ८४५०५. () महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x९.५, १२x१३). महावीर जिन पद पावापुरी, मा.गु., पद्य, आदि पावापुर नगरी भली अंतिः तव तें मोह्यो चित्त, गाथा-४. ८४५०६. (+) शांतिजिन स्तुति व त्रीजा महाव्रतनी गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५x१०, ९x४५). . १. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि शांति सोहंकर साहबो; अतिः कवि वीरे ते जाणं, गाथा ४. २. पे. नाम. त्रीजा महाव्रतनी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. बि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा ४ व ५ लिखा है.) ८४५०७ नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण वि. १७४८, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. मांडल, प्रले. मु. इंद्रसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४९.५, ११४४१) राजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि नेमजी हो पेखी पशु; अति: तुरुणी तजी हो लाल, गाथा - २०. ८४५०८. नेमराजिमती स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १५-१४ (१ से १४)=१, कुल पे. २, जै, (२३.५४९.५, १२४३४). " 19 १. पे. नाम. नेमनाथराजमती स्तवन, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. नेमराजिमती लेख, मु. जससोम, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: गड गिरनार सुठाम, गाथा-२१ (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. " मराजिमती स्तवन मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमण समरीए: अंति: मुझ मन पुरवो जगीस, गाथा १०. ८४५०९. प्रभाती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४४८.५, ७४३५) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जीण धरम कीजीय; अंतिः मुगति तणां फल जिहांह, गाथा- ६. ८४५१०. (+) चोवीसजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वीषणीया, प्रले. श्रावि. अखुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२३.५४१३.५, १९४३७). २४ जिन गीत, मु. चंदजी, मा.गु. पच, वि. १८२५, आदि चोविसे जिणवर नमु; अति तो ग्यानी माल होय, गाथा ३७. ८४५१३ (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, ११४२८). " ८४५१४. औपदेशिक सज्झाय जगत, पुहिं., पद्य, आदि ऐसा ग्वान न पाया साध; अंति (-) (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) (#) १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११, १३x४०). १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वज्ञं जिनमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. चंदनपूजा अपूर्ण तक है.) ८४५१६. (*) वीसस्थानक काउसग्ग सज्झाय व वीसस्थानकतप काउसग्ग, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. ले. स्थल. सत्यपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२३.५x१०, १४४३६). " ! १. पे. नाम. वीसस्थानक काउसग्ग सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत प्रथम पद; अंति: कहे तप शिवसुख दातार, गाथा ५. २. पे. नाम बीसस्थानकतप काउसग्ग, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३२५ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं लोगस्स; अंति: संघनी भक्ति साचववी. ८४५१७. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४४६). मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसुग्रीव सोहामणौ; अंति: खेतसी कवि गुणधार हो, गाथा-१६. ८४५२०. () आदिजिन स्तवन व उदेसंग जालानुं रूपक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४९, ११४४१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: जगत परमेश्वर तुहि; अंति: माधवजी० हरख नमाय जी, गाथा-१०. २. पे. नाम, उदेसंग जालानुरूपक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. अमृतध्वनि, उदयसिंह झाला, मा.गु., गद्य, आदि: मात्रा च्याररो करस; अंति: (-), (पू.वि. "राजमुकुंद भुजगीसी" पाठ तक है.) ८४५२१ (+) नेमराजिमति पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ३४३९). नेमराजिमती पद, म. चेनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी विन अवगुन क्यू; अंति: जपै शिवरमणी से जोडी, गाथा-४. ८४५२२. भाषासमिति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४९, १४४३६-४०). भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सतबिहार भाषा भली; अंति: कहे ग्यानतणो ए सार, गाथा-१४. ८४५२३. (#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. रुगनाथ मुलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१०, १३४३५). नेमिजिन स्तवन-जंबूसरमंडन, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: श्रीजिन नेम निग्रंथ; अंति: कहे गणी काह्न उल्लास, गाथा-६. ८४५२४. थुलिभद्रमहामुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १५४४१). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र मुनीसर आवो; अंति: जिहां लगि दुनी तारी, गाथा-१७. ८४५२५ (+) गौतमस्वामी रास व वीसस्थानक वृद्धस्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १७४६१). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ५अ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण से २. पे. नाम. वीसस्थानक वृद्ध स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, क. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरी सुगुरु; अंति: नयरंग० शिवसुख तिके, गाथा-१४. ८४५२६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९४-१९२(१ से १९२)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०, १४४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावलीगत यशोभद्रसूरि परंपरा अपूर्ण मात्र कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जंबूचरित्र अपूर्ण से यशोभद्रसूरि चरित्र अपूर्ण तक है.) ८४५२७. जयतिहुअण स्तोत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१०, ३०४२०). जयतिहअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जय जयवंत उचरति हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक का बालावबोध लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४५२८. (4) दानशीलतपभावना रास-४५वी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १२४३५). दानशीलतपभावना रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भाव कहयो०लयो पदसार, प्रतिपूर्ण. ८४५२९. रुकमणीसती स्वाध्याय व नेमिजिन बलगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२४.५४१०, १३४३८). १. पे. नाम, रुक्मणीसती स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम नेमि; अंति: राजविजय रंग भणे, गाथा-१४. २. पे. नाम. नेमिजिन बलगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. म.रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपचंद० बल ही अरिहंत, गाथा-१६. ८४५३०. महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १३४४६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अविचल पद शुभवीर, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मने धर्मजिणंद; अंति: उलट अति घणी रे लो, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनसुमति जिणेसर साहि; अंति: सुमति सदा सूखदाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वीर की दुहाई भाई जो; अंति: नंद केवल बिराजमान, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: क्या मांगूरे राम; अंति: हाथ झिटक चले जुहारी, दोहा-३. ६. पे. नाम, श्रेणिकराजा गीत, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नरग पडतो राखीइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४५३१ (4) प्रत्याख्यानसूत्र, औपदेशिक दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०, १४४४४). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: समाहिवत्ति वोसिरामि. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: देव धर्म गुरु ग्रंथ; अंति: सो ग्याता कल मांहि, गाथा-१५. ३. पे. नाम, २२ अभक्ष्य नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: वडनाफल पीपलना फल; अंति: चलितरस बहुबीज. ४. पे. नाम. ३२ अनंतकाय नाम, प. १आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, पुहि.,प्रा., पद्य, आदि: सुरणकंद वज्रकंद आलीह; अंति: थाथुलउ सूरचाल पालंको. ८४५३२. (+#) वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:वरदत्तचोपई., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४५७). वरदत्तगणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, म. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रणम जगदानंदकर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ दहा-२ अपूर्ण तक है.) ८४५३३ (+) आदिजिन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ९४३०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि प्र उठी वंदु रीषभदेव अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-शासनरक्षा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीमद्वीरजिनेश औहड अति: सिंघस्व भूयात्सदा, लोक-४. ८४५३४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९६- ९४ (१ से ८२, ८४ से १५) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी कल्प, जैवे. (२४.५४१०.५, ५४३४). - कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू. वि. पार्श्वनाथादि जिन चरित्र अपूर्ण भाग है.) कल्पसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४५३५ (+) महावीरजिन, पार्श्वजिन स्तवन व ज्योतिष विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, १०X२७). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. ३. पे. नाम. करणज्ञानसंक्रांतकरण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहिं., मा.गु. सं., प+ग, आदि जब बालव भद्रा वणिज, अंति: बधज्युं घरि घरि दाम. ८४५३६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., मु. ब्रह्म, मा.गु, पद्य, आदि नवलवतां तेरी आ छब; अंतिः सुणता आणंद आवै जी, गाथा ५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारी हो साहिब, अंति: सेवक जाणी कृपा करो, गाथा-४. , कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीपीली बादली हो; अति लाल कंतन मै वारो वार, गाथा-५. . ४. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. १५४५०). १. पे नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पू. १अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: अंगीया तो सोहे हो; अंति: जिम लहो हर्ष अपार, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरे मानी न लीजै रे; अंति: ऊठी प्रणमीजे रे, गाथा-४. ३. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरज गरज घन बरसै देखो; अंतिः धरमपाल० मन सरसे री, गाथा-२. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. (२५. ५X१०, ३२७ मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन म्हांरा त्रेवीस; अंति: पसाय पभणे अनुपमचंद, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ८४५३७. अतीत अनागत चोविसजिन नाम, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अंत में स्वस्तिक के विभिन्न चित्र अंकित हैं., जैदे., (२६X११, २७X१२). For Private and Personal Use Only १. पे नाम व्यतीतचोवीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीकेवलज्ञानी स०; अंति: स० २४ श्रीसंप्रति स०. २. पे. नाम. अनागतचोवीसी नाम, पृ. १अ संपूर्ण. २४ जिननाम - अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ पद्मनाभ सर्व अति: ३४ श्रीभद्रंकर स०. ८४५३८. (+) मोक्ष सज्झाय व विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X९.५, १०X३४). १. पे नाम, मोक्ष सज्झाय, पू. १अ संपूर्ण. मु. सहजसुंदर मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि मोक्षनगर माहरू सासर; अंति: छे मुक्तिनी खाणि रे, गाधा-५. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कुडी; अंति: जिनविजइं गायो रे, गाथा-९. ८४५३९. ५अनुत्तरविमानादि विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:बोल., अ., (२४४८.५, ११४४०). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विजय१ विजयंत२ जयंत्र; अंति: बोल पर पीरा न करे, (वि. विविध बोल संग्रह.) ८४५४०. अयवंतीसुकमालमहामुनि चोपई, संपूर्ण, वि. १८४९, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अयवंतीसु०., जैदे., (२५४११, १६४५१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: आदीसर अरिहंतने नमण; अंति: सांतिहरख सुख पावैरे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ८४५४१ (+) सीमंधरस्वामीविनती आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, कल पे. ४,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०, १५४३५). १. पे. नाम, सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए हु; अंति: भगतलाभ० आस्या मन तणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. फलवधिपारसनाथ लघु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः फलवधिमंडण पास एक करु; अंति: समयसुंदर० प्रमाण, गाथा-१०. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: भाव भगति मन आणि घणी; अंति: मनवंछित कारज सरइ, गाथा-१५. ४. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुखसा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ८४५४२. नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०, १३४४३). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: सुप्रसन्न नेमि जिणंद, गाथा-६७. ८४५४३. पच्चक्खाण आगार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४९-२९). पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-)... ८४५४४. () सीमंधरजिन स्तवनद्वय व नाकोडापार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०,१०४२७). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुण चंदाजी श्रीमंदर; अंति: वाधे मुज मन अति नरो, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: माहरी वीनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद० गरीब नवाज, गाथा-२१. ३. पे. नाम. नाकोडापारसनाथजीरो तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ८४५४५ (+#) थंडिल रा १०२४ भांगा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, ४७१४). १०२४ स्थंडिल भांगा, मा.गु., को., आदि: अनापात१ अनुपघात२ सम३; अंति: शुद्ध भांगउ जाणिवउ. ८४५४६. अंतरिकपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४९.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३२९ पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करी; अंति: भावविजय देव जय जयकरण, गाथा-६३. ८४५४७. शत्रुजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४९.५, ९४३८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७, गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) ८४५४८. (+) स्तवन सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१४(१ से १४)=४, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०,१६४४८). १.पे. नाम, आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजय, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तवन-बृहत्श@जयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ.१५आ-१६अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वर दीजै जी; अंति: नेम सुजस सुहाया जी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. १६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपो अरिहंतणा भगव; अंति: सुणज्यो भवियन नवकारा, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण रुवडउ; अंति: सहजसुंदर० उपदेस रे, गाथा-६. ५. पे. नाम, पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ.१६अ-१६आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत तणइ उचार; अंति: नदीइ मही की नाणइ रे, गाथा-५. ६. पे. नाम, विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, पृ. १६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आज आणंदी हे सखी भेट; अंति: सीस कहे आसीस हो लाल, गाथा-९. ७. पे. नाम, अरणकमुनि स्वाध्याय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-१०. ८. पे. नाम. हीरसूरि स्वाध्याय, पृ. १७अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, ग. सोमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि हुं; अंति: निजर करि जोय जोय नरे, गाथा-९. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. क. लाभहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामलिया सुंदर देहि; अंति: लाभहर्ष इम बोल्या रे, गाथा-७. १०. पे. नाम. सुमति स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ सुखकारी; अंति: सम कुण त्रिण तोलै, गाथा-९. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कहै निज कंतने; अंति: जयसोम० करो धर्म सखाई, गाथा-११. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. म. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: साचो साहिब सेवीयै रे; अंति: लाभउदय० आपो प्रमाणंद, गाथा-५. ८४५४९ (+) अर्बुदाचलकल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४९.५, ९४३२). अर्बुदाचलकल्प, मा.गु., गद्य, आदि: आबु उपरे उबरणी नामै; अंति: तेहनै नमस्कार कीजै, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० ८४५५० (+) अवंतीसुकमाल व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४. प्र. वि. हुंडी अवंतीसुकमा०., संशोधित, जैदे., (२३.५X१०, १४-२०x४२-४६). १. पे नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पू. १अ ४अ, संपूर्ण ले. स्थल. नवहर अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल - १३, गाथा - १०३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि : आउखा त्रुटा नै सांधौ; अंति: होज्यो निस्तार रे, गाथा - ११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि मन लोभी थारी कांई पत; अति लाद गयौ विणजारी रे, गाथा-८. ८४५५९ पजूसणनी धोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १३४३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा-६, ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, महमद शाह, मा.गु., पद्य, आदि: गाफल बंदा नीदडली; अंति: मांमद० प्रभुजी रे हाथ, पर्युषण पर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि परव पजुसण पुन्ये अति: ज्ञानविमल॰ महोदय कीजे, गाथा-४. ८४५५२. संघवर्णन, जिनमंदिर संख्या, ऐतिहासिक घटना व जंबुद्वीप वर्णनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. द्विपाठ, जैये. (२६.५४१२, १४४४४-५०% ३. पे. नाम. आभूसंघवी द्वारा निर्मित ७०० जैनमंदिर, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि विराद नगरने विषे; अंति: ७०० वली देहरा हता. ४. पे नाम महावीरनिर्वाण के बाद की ऐतिहासिक घटनाएँ. पू. १अ १आ, संपूर्ण १. पे. नाम. विक्रमादित्यराजा द्वारा शत्रुंजयतीर्थ छरिपालितसंघ वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. विक्रमादित्यराजा द्वारा शत्रुंजयतीर्थ छरिपालित संघसंपदा वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिद्धसेन दिवाकर; अंतिः एहवो संघ काढ्यो. २. पे. नाम. कुमारपाल द्वारा निर्मित १८७४ जैनमंदिर, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि श्रीकुमारपालने सोना; अंति: १८७४ देहरा हता. महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु., सं., गद्य, आदि: माविर निरवाणथी वर्ष अंति: १२व्रतअंगीकार करस्ये. ५. पे. नाम लाखजोजन जंबुद्वीप मान, पृ. १आ, संपूर्ण जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पंचसेछविस योजन उपर; अति एक लाख जोजन पूरा थाइ. ८४५५३. खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५४१२.५, १४४४०). "" For Private and Personal Use Only खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि नमो नमो खंधक महामुनिः अंतिः सेवक सुखीया कीजे, ढाल - २, गाथा - २०. ८४५५४. (+) २४ जिन १२० कल्याणकविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२.५, १३X२७). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि संभवनाथ; अंति: मुकवा ए विधि करवी. ८४५५५. माणिभद्रवीर छंद व २४ जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, वे. (२६१३, ११४३६). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरस सुमति आपो सुररां; अंति: राजरतन० जय जय करण, गाथा २०. Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३३१ २.पे. नाम. चौवीसजिन वर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमप्रभुने वासुपुज्य; अंति: नेमविमल कहे सीस, गाथा-३, (वि. विद्वान नाम के लिए 'नेमवीमल कहे सीस' लिखा है.) ८४५५६ (+) विविध बोल, विचार व विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १२,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १८४४२). १. पे. नाम. १४ नेम विगत, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचित ते जे वाह्यो; अंति: भरणादिक आहारनो करवो. २.पे. नाम. ६ कायरी मरजादा, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय१ मुरड माटी; अंति: पर्यंत त्रसजीव जाणवा. ३. पे. नाम. १२ व्रत विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्थूल प्राणाति; अंति: निर्वाण मुक्ति पामै. ४. पे. नाम. पर्वतिथिए वर्जितवस्तु नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग.. गद्य, आदि: पान नागरमग्घी नींब: अंति: ३ नींबनो ४ गलाबनो. ५. पे. नाम. ३२ दोष सामायकना, पृ. २अ, संपूर्ण. ३२ दोष-सामायिक के, मा.गु., गद्य, आदि: पालठी न जोडै१ अथिर; अंति: मिली बत्तीसदोष जाणवा. ६. पे. नाम. श्रावकना पोसाना १८ दोष, पृ. २अ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: संसारनी वात न करवी. ७. पे. नाम. १९ दोष कायोत्सर्गना, पृ. २अ, संपूर्ण.. १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडानी परि एकइं पगि; अंति: दोष श्रावकने न लागै. ८.पे. नाम. पोसाना २४ मांडला, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ९. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: अविधि आसातना हुई तै. १०. पे. नाम, शीतलारक्षा श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ त्रिशूलनी प्रेत; अंति: रौद्री सरणं प्रपद्ये, श्लोक-१. ११. पे. नाम. चउथाव्रतउच्चारनी विधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: वसहिकनि सिज्झादिए. १२. पे. नाम. दिग्दृष्टांतगाथा काव्य, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मनुष्यभवदर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासगर धन्न३; अंति: भूयस्तमाप्नोति नः, श्लोक-११. ८४५५७. खामणां गीत, संपूर्ण, वि. १९२१, माघ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. महताबकुमर बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२७४) कर कटि ग्रीवा नयन पदतिनखसहित सुजान, दे., (२६४१२.५, १२४२८). खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने; अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६. ८४५५८. देवलोक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२, ११४३४-३६). देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरस्वति; अंति: भवतणुं पातिक हर्यु, ढाल-७, गाथा-४४. ८४५५९ (+) रात्रीभोजन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ८४३३). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संजोगें मानभव; अंति: मुगति तणो आवाता रे, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३२ ८४५६० (७) स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे., (२७४१२, १०x२९). १. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि मे कीनो नही तुमविना अति लीजें भक्ति पराग, गाथा ५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहनन छेह ते दीधो; अंति: अमृतरस रंगथी पीधो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवअंगपूजा दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी है तथा कृति की अंतिम गाथा पत्र - १अ पर है. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि जल भरी संपुट पत्रना, अंति कहे सुभवीर मुणिद, गाथा- १०. ८४५६१. अतित अनागत वर्तमानजिन चोवीसी नाम व ४ शाश्वतजिन नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, दे., (२७X१२.५, १३X३०). १. पे. नाम. ३ चोवीसी नाम, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३ चौवीसीजिन नाम, सं., गद्य, आदि केवलज्ञानी १ निर्वाण अंतिः श्रीभद्रकृतसर्वज्ञाय. २. पे नाम २० विहरमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ३. पे. नाम. ४ शाश्वतजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ १ चंद्रानन२; अति वारिषेण३ वर्द्धमान४. ८४५६२. महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९३७, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण पठ. सा. सोभागश्रीजी (गुरु सा. सिणगारश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५४१३, ११४३८). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: रामविजय० अधिक जगीस रे, ढाल -३, गाथा-५६. ८४५६३. दोडसो कल्याणकनुं चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. लेखनसंवत् मात्र ७० लिखा है, कदाचित १९७० हो सकता है. दे. (२७४१२, १२४३६). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शाशननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. ८४५६४. मेतारजऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. कुल ग्रं. २२. दे. (२७४१२.५. १४४४०). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: संजम गुणना आगलाजी; अंतिः साधु तणी ए सज्झाव, गाथा - १४. ८४५६५. (-) श्रावक के २१ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५x१२, १६४४१). श्रावक २१ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पल बोल श्रावकजी केवा; अंति: संलेखणा संथारो करणो, अंक- २१. ८४५६६. ४ मंगल सज्झाय, संपूर्ण वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पू. २, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी; पठ. सा. सेरूजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६×१२, १३×३८-४३). ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतचोबीसी जिन नमु स; अंति: ऋष जैमलजी कहे एम तो, गाथा ३८. ८४५६७. पार्श्वजिन, महावीरजिन स्तुति व नेमिजिन २४ चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५x१२.५, १६x३५). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रमशः १ से ३. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रें दें कि ट्रें; अंति: (-), श्लोक-४, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-३ के बाद अन्य अपूर्ण कृति लिखी है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. श्लोक क्रमशः ४ से ६ तक. " महावीरजिन स्तुति-संगीताक्षरमय, सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा; अंति (-) (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-६ के बाद दूसरी कृति लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org गाथा - १२. ८४५६९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२७.५४१२, १२x२२). "" औपदेशिक सज्झाय- कुमति, मु. सुमति, मा.गु, पद्य, वि. २०वी, आदि सुणजो साच कहुं हुं, अंति सुमती० अनुभवसेली जागी, गाथा- १३. ३. पे नाम. २४ जिनचोक, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि एक दिवस बसें नेमकुमर अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चौक-२ गाथा-३ अपूर्ण से चौक-७ गाथा - १ अपूर्ण तक नहीं है व चौक १० गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४५६८. महावीरजिन स्तवन व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुडी: दामदरी, जैदे., (२७.५X१२, १२X३५). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) " २. पे नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. हर्षवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: गढगिरनारे भेटीइं भेट; अंति: हरखने०कल्पतरुनी छाहे, " ८४५७०. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, वे. (२६४१३, १२४३७). १. पे. नाम. ३४ बोल देव संबंधी, पृ. १अ, संपूर्ण. ३४ बोल- देव संबंधी, मा.गु. गद्य, आदि देव समकिती के मिथ्या अंति: आगारी के अणागारी ३४. २. पे. नाम. विविध बोल संग्रह - पन्नवणा मध्ये, पृ. १आ - ३अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र - बोल", संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ५थावररा कह्या ४७ जात अतिः करे आषाढभूतनी परे. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्रे बोल संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: करण५५ श्रीभगवतीसूत्र; अंति: लाभे ते यंत्रे जाणवा. ८४५७१. (*) मनमोहन पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथांक २५ की जगह १५ लिखा है., संशोधित., जैदे., (२७X१३, ११४३६). पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंदघन परमनिरंजन; अंति : सेव कहे भवजल तार, गाथा - २५. ८४५७२. (#) महावीरजिन, आदिजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. ग. मयाविजय पं, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५x१२.५, १३४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. " मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल, बीजापुर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: उंचा रीषभजीना देहरा; अंति: इम कवीयन दे आसीस, गाथा-५. ३. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. नरका पडसो, गाथा ११. २. पे नाम. ढुंढक औपदेशि पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ३३३ मु. . जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तु मेरा मनमें में ते; अंति: देव सकल मे हो जीनजी, गाथा-६. ८४५७३. कुंडक पदादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२७.५x१२.५, ११४४३). "" १. पे नाम. ढुंढक पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ढुंढकमतखंडन, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ निंद्या मत करो; अंति: राम० नहि तो For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-ढुंढकमतखंडन, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सदा मुज सूत्र लगे; अंति: राम कहे ते किम तारे, गाथा-५. ८४५७४. (4) चंदणबालारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१२, १८४३७-३९). चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कसुंबी नगरी पधारीया; अंति: सतीनो सरण हो स्वामी, गाथा-५१, (वि. कृतिकर्ता "करजोडी सेवग भणइ" पाठ मिलता है.) ८४५७५. रत्नविजय विहार गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. माणकचंद वाहलचंद दोशी; लिख. श्रावि. रलीयात वखतचंद पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४३१). रत्नविजय विहार गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: एक चउमासो हिवे करोजी; अंति: मा करो आप विहार, गाथा-१०. ८४५७६. चोवीसतीर्थंकरनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ३., (२७७१३, १५४३५). २४ जिन स्तवन, मु. अमरतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: हारे हु तो प्रणमुं; अंति: अमरते० अनुभवे रे लो, गाथा-९. ८४५७७. अट्ठाईनुं स्तवन व चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. सा. चंदनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, ११४२७-३३). १. पे. नाम. अट्ठाईनु स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ शुक्ल, १५, ले.स्थल. वडगाम, पे.वि. प्रतिलेखक का नाम लि. पं.रे. लिखा है. ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: स्याद्वाद शुद्धोदधि; अंति: बहू संघ मंगल पाया, ढाल-९, गाथा-५४. २. पे. नाम, चंदनबालारी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा-१३. ८४५७८. लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२६४१२.५, १७४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अगडदुं अगड, बाजे; अंति: भविजनकू सुख के दाता, गाथा-१७. २. पे. नाम, नेमनाथ की लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, म. चतरकशल, पुहि., पद्य, आदि: नेमनाथ मोरी अरज सुनी; अंति: फेरा नही फीरने की, गाथा-९, (वि. कर्ता चतुरकलश लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: उपदेश सुणो मत भाया, गाथा-४. ४. पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: सती के बेठ लावनी गाई, गाथा-४. ५. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. नान्ह, पुहिं., पद्य, आदि: आदजिनेशर पारणो आदजिन; अंति: ऋषभदेव महाराज रे, गाथा-४. ८४५७९ चोविसजिन कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. हठीसंग मानसंग बारोट; पठ. सा. मोतीश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १२४३०-३३). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: Oणीया श्रीजिनराय रे, ढाल-७, गाथा-४९. ८४५८० (#) चोवीसी नाम, २० विहरमान नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, २४४२३). For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३३५ १. पे. नाम. अतीतचोवीसीरा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १; अंति: स्पंदन २३ संप्रति २४. २. पे. नाम, आवतीचोवीसीरा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ१ सुरदेव२; अंति: भद्रक्रत २४. ३. पे. नाम, २० विहरमान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: देवजसो१० अनंतवीर्य२०. ४. पे. नाम. ११ गणधररा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति १; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. ५. पे. नाम, १२ चक्रवर्ती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभरत१ श्रीसगर२; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. ८४५८१. चरणसत्तरीकरणसत्तरीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ९४३९). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: ज्ञान० सुजस वाधे जी, गाथा-७. ८४५८२. अष्टमीतिथि स्तवन व रोहिणी भुवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मांडलनगर, अन्य. मु. दयासागर (गुरु मु. रुपसागर); गुपि. मु. रुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ११४३३). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तिरथ प्रणमु सदा; अंति: लावण्य० सुख संपूर्ण, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम. रोहिणी भुवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य; अंति: भगतिविजय० सुख थाय, गाथा-६. ८४५८४. सत्यावीसभव महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. लावण्यकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदिनाथ प्रसादे., जैदे., (२७४१३, १४४३९). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: शुभविजय शिष्य जय करो, ढाल-६. ८४५८५. अष्टमद सज्झाय व रोहीणी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. अमथालाल मानचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४४४). १. पे. नाम. अष्टमद सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे माहामुनी वारी; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे. गाथा-११. २.पे. नाम. रोहणी स्तुति, पृ.१आ, संपूर्ण. __रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: लब्धिरुची सुखकार, गाथा-४. ८४५८६. (4) चौमासी आराधना रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १३४३०-३८). चौमासी आराधना रास, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सकलसिद्धि दायकलनेमी, (२)तेणे काले तेहने समे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ अपूर्ण तक लिखा है व गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८४५८७. (4) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १३४३६). मेघरथराजा सज्झाय, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दशमे भवे श्रीशांतिना; अंति: दयाथी सुख निर्वाण, गाथा-१८, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हो, गाथा - १२. ८४५९०. मरुदेवाना ढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, वे. (२७४१२.५, १२४३७). ३३६ ८४५८८ (+) ६२ मार्गणाइ ५६३ जीवना भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६४१२.५, २७-२९४९-१४). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि देवतानी गति १५ परमा; अंति: देवना ९९ अप्रजाता. ८४५८९ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५४१२, १२४२९). , "" पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति अवनासी कासी; अंति: रूपविजय शिवराज ८४५९१. सेत्रुंजाजीनी गरबी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६.५x१२.५, १२X५२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरुदेवीमाता चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि माताजी मरुदेवा रे; अंति: नितनित ज्ञान अभ्यास, ढाल-४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि जे कोइ सिद्धगिरिराज; अति दीप० सुख साजने रे लो, गाथा १५. ८४५९२ शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९४८ माघ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेदपाटी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६.५४१३, १३४३६) " शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, पुहि., पद्य, आदि सेवा सांति जिनेसरु: अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा- १५. ८४५९३. कुमती सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२७.५x१२, १२x२१). पदेशिक सज्झाय कुमति, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, वि २०वी, आदि सुणजो साच कहुँ छु; अति सुमती अनुभवसेली जागी, गाथा - १३. ८४५९४ एकमतिथि व वीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नाथालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१२, १२X४१). १. पे. नाम. प्रतिपदानी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नितु नितु होइ लीलाजी, गाथा-४. २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बीज जिनधर्मनुं बीज अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. गाथा- २ लिखा है.) ८४५९५. छ आवश्यक, अष्टमीतिथि व मरुदेवानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक ६-७ को सुधारा गया है. दे. (२७४१३, ११४४०). १. पे. नाम. छ आवश्यक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तेह सिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा- ४४, (पू.वि. गाथा- ४२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु, पद्म, वि. १८३९, आदि: पंचतीर्थं प्रणमि सदा अति संघने कोडि कल्याण रे, बाल-४, गाथा - २४. ३. पे. नाम. मरुदेवानी सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: मारुदेवि माता रे, अंति: (-), (पू.वि. गावा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) (२७४१२, ११४४२). १. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. ८४५९६ (+) अठावीसलब्धि स्तवन व शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे., "" For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लिला मुनि; अंति: चक्केसरी रखवाली, गाथा-४. ८४५९७. (-) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७७१३, ११४२२). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन बंदउ श्रीबीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) ८४५९८. शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४२९-३१). शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सौधर्म देवलोके; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पांचमू सर्वार्थसिद्धि तक लिखा है.) ८४५९९ (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, ११४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० भावठ भागी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. ८अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ आदिकरण; अंति: केसर०पूंडरीक तेरा रे, गाथा-४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन गीत, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही चाहिइं नीत; अंति: करो ओर कछुअन चाहूं, गाथा-३. ४. पे. नाम. एकसागर श्वासोश्वास मान, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: एक सागरना सासोसास; अंति: एकसागरना सातमी नरगि. ८४६००. पजुसणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०४३१). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजुसण पुन्ये; अंति: ज्ञानविमल०महोदय कीजे, गाथा-४. ८४६०१ नेमसागरगरु गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ११४३४-३७). नेमसागरगुरु गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पेथापुर; अंति: सुभव मांहे माहलो रे, गाथा-८. ८४६०२. विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१३, ९४३८-४०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमप्रभुजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से महाभद्रजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४६०३. (#) आलोयणा दोष विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १६४३१). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: काल अतिकरमी अरथ दीया; अंति: घनीवार फरसे दोष सवला. ८४६०४.(+) नेमसागरगरु गहुंली व घुमरी, संपूर्ण, वि. २०वी, आषाढ़ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्य भंडार के प्रतनंबर-५७ का कागज चिपकाया गया है., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३२-३८). १. पे. नाम. नेमसागरगुरु गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुरुजी आव्या गोरी; अंति: सीववधूना सुख पावो रे, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमसागर घुमरी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमसागरगुरु गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पेथापुर; अंति: सुभव मांहे माहलो रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४६०५. (४) स्तवन संग्रह व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२, १५X३२-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण की; अंति: भीत मिटावो मरण की, गाथा - ६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीधर, पुहिं, पद्य, आदि निकी मुरति वामानंद अंतिः श्रीधर० प्रमानंद की, गाथा-५. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. उदयरत्न, रा., पद्म, आदि: म्हेतो नजरि रहस्यांज; अति (-) (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४६०६. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन व मरुदेवामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. अणहिलपत्तन, प्र. मु. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४१२, ११४३९-४१). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, पे.वि. ढालक्रम में ५ के स्थान पर ४ लिखा है व ढाल - ६ में गाथाक्रम सुधारा गया है. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमीय पासजिनेसर; अति गुणविजय रंगे मुनि, ढाल ६, गाथा ४९. २. पे. नाम. मरुदेवामाता सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. गुजराती लिपिबद्ध यह कृति बाद में लिखी गई है. मरुदेवीमाता सज्झाय, उपा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: तुज साथे नही बोलुं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-५ आंशिक अपूर्ण तक लिखा है.) "" ८४६०७ (#) १७० जिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी; मु. रामविजय (गुरु पं. भानुविजय); गुपि. पं. भानुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, ३८x१८-२४). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि श्रीजयदेव श्रीकर्णभद; अंतिः श्रीबलभद्र सर्व ८४६०८ (+) पिस्तालिस आगमतपनो गरणो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६१२.५, २४-२९४१४-२० ). ४५ आगमतप गणणुं, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) अथ पिस्तालिस आगमनो, (२) प्रथम श्रीनंदीसूत्र; अंति: उपंगसूत्राय नमः. ८४६०९. (+) तिथिपर्व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६६, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. रेवाशंकर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२.५, ११-१२४३६-४०). १. पे नाम बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि बीज कहे भव्य जीवने अति लब्धि० विविध विनोद रे, गाधा-८. २. पे नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती चरण नमि करी रे; अंति: हंसविजय जयकार रे, गाथा - १०. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणे अति लक्ष्मी० सुखदाया रे, ढाल ५, गावा- १६. ४. पे नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आठम कहै आठम दीने; अंति: लब्धि० पुण्यनी रेह रे, गाथा - ९. ८४६१० (+) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२.५, १३X३९-४३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमीय पासजिनेसर; अति गुणविजय रंगे मुनि, ढाल ६, गाथा ४९. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० " ८४६११. (+) चोविस जिनरा आंतरारो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. संशोधित दे. (२७१२.५, १२४३३-३५). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि सारद सारदाना सुपरे; अंति: नामे वर्यो जयजयकार ए, ढाल -४, गाथा-३५. ८४६१२. (+) श्रीमंधरस्वामीनी स्तवना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x१२.५, ११४३४-३६). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरस्वामीना; अंति: वार नमस्कार होजो. ८४६१३. नंदिषेणनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५x१२, १२४३०-३४). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगृही नयरीनो वासी; अंति: मेरुविजय० कोई तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. ८४६१४. (*) चोविस तिर्थंकरना आंतरानो स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५ १२४३५-३७). " "" २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि सारद सारदाना सुपरे, अंतिः नामे वर्षो जयजयकार ए, ढाल ४, गाथा-३६. ८४६१५. (+) चोविस तिर्थंकरना आंतरानो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. सा. भावश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५ १२४३२-३६). " " २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदना सुपरे; अंति: रामे० वर्यो जयकार ए, ढाल ४, गाथा- ३६. ८४६१६. गणधर प्रभातियो, स्तवन संग्रह व नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२७.५X१२, १०x३९). १. पे. नाम. गणधर प्रभातियो, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३९ ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदिः परभाते उठीने भविका; अंति: नमंता लइये शिवमेवा, गाथा-९. २. पे. नाम संखेचरपार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ-२अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि सुण सुण श्रीशंखेश्वर अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा - १४. .पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २अ, संपूर्ण. पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरनी वीनती अंति क मोहनने सुख धाये रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. नवकार रास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि समर रे जीव नवकार नित; अंति: आपणा कर्म आठे विछोडी, गाथा ६. ८४६१७ (*) औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२७४१२, १०X२८). औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर मनकुं रे समज; अंति: पुर चालो सावधान मोना, गाथा-६. ८४६१८. (+) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १०X३५-३८). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्म, आदि करजोडी कहे कामनी अंतिः श्रीमा०जिन धरे ध्यान, गाथा - १६. ८४६१९. चउसरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. हकमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२.५, १४X३८). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि मुजने च्यार सरणा; अंति: पामीश भवनो पारो जी, अध्याय ४, गाथा - १२. ८४६२०. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२७.५४११.५, ११४३७) " For Private and Personal Use Only भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि भरतेसर एम वीनवे रे भ; अति रूप० मुझने शीवा सदा, गाथा - ११. Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४६२१. (+#) अष्टापदतीर्थ स्तवन व दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ११-१२४३२). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, म. भाणविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: हो फलई सघली आस कें, गाथा-२३. २.पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है व प्रतिलेखक ने एकादशी स्तवन नाम लिखा है. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस पावापुरी प्रभ; अंति: मेरु दिओ मनुहार, गाथा-९. ८४६२२. श्रीमंद्धिरस्वामी स्तवन, सिद्धचक्र चैत्यवंदन व जिनबल विचार श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१३, ११४३७). १.पे. नाम. श्रीमंदिरस्वामी स्तवन, पृ.१अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालीताणानगर, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. कृति में पेन्सिल से आंशिक सुधार किया है. सीमंधरजिन स्तवन, म. विजयदेवसरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसती भगवती; अंति: पुरव पुन्ये पायो रे, ढाल-७, गाथा-४०. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां भव; अंति: माणीक कहे थइ उजमालो, गाथा-९. ३. पे. नाम. वीर भगवानरो बल श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. जिनबल विचार छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलु विसा; अंति: प्रभु विर्य ते तु, गाथा-१. ८४६२३. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७०, माघ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, जावाल, प्रले. य. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १२४३६-४०). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुवाहु कुवर इम; अंति: सुखविपाकमां अधिकार, गाथा-१७. ८४६२४. (+) चौमासीपर्व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, ले.स्थल. राधिकापुर, प्रले. पं. सोभागसागर गणि; पठ. मु. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १३४३४-३६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पाश सामलनुं चेई रे. ८४६२५. ६२ मार्गणा ५६३ जीवना भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२, ३२४१९-२०). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवतानी गति १५ परमा; अंति: (-), (पू.वि. ३४० स्त्रीवेदनी ____ मार्गणा में '१० गर्भज तिर्यंच पंचेद्रीना' तक है.) ८४६२६ (+) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४३८-४०). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिनीय मुझ; अंति: श्रीसार० आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२५. ८४६२७. (+-) मुनइग्यारस थोय व नमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मुनइग्यारस., अशुद्ध पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २५, दे., (२७.५४१२.५, ११४४२-४४). १. पे. नाम, मुनइग्यारस थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघनां विघन निवारी, गाथा-४. २.पे. नाम. नमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र श्लोक-२ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४६२८. वीसविहरमान स्तवन, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन व दशमाध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२, १२४४०-४२). १.पे. नाम, वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. अमीयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधर पेहलानमुंब; अंति: भणे मोक्ष तणा फल लेव, गाथा-१०. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसेठेजो सीणगार; अंति: विनय० सरणे नमू सीस, गाथा-२१. ३. पे. नाम. दशमाध्ययन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर विमल केवल; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ८४६२९ (+) सीमंधरजिन स्तवन-निगोददःख गर्भित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित.. दे., (२६.५४१२, ११४३७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोविशि जिन नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ दुहा-१ अपूर्ण तक है.) ८४६३०. मूरख सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३१-३३). मूरख सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: मुरखो गाडी देखी मलका; अंति: मोहन गाय भव गाडी रे, गाथा-९. ८४६३१. (+) शत्रंजयतीर्थ माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १आ की पावरेखा मिटाई गई है., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३४-३८). शत्रंजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: एहवो श्रीसिद्धाचल; अंति: एहवो तिर्थ छे. ८४६३२. (-) १८ पापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७७१३, १६x२९). १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: श्रीगुरुपद कज बंदता; अंति: (-), गाथा-१७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४६३३. (#) मौनएकादशीपर्व गणणु, पकवानकाल गाथा व १० नपुंसक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४३६-४०). १. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व गणj, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: (१)श्रीआरणनाथाय नमः, (२)हजार प्रमाणे करिवौ, (वि. विधिसहित.) २. पे. नाम. पकवान कालमान गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: हेमंते तीस दिण पनरस; अंति: कप्पई आरब्भ पढम दिणं, श्लोक-२. ३. पे. नाम. १० नपुंसक विचार सह बालावबोध, पृ. २आ, संपूर्ण. १० नपुंसकभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पिंडक १ वातक २ क्लीब; अंति: सौगंधिक९ आशक्त१०. १० नपुंसकभेद विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषाकारपणे स्त्री; अंति: ए १० अजोग्य जाणिवा. ८४६३४. (#) पर्यषणपर्व वधामणी गहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ८-११x१९-२२). साधारणजिन गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे ललित वचननी; अंति: जी रे गावती मंगल भास, गाथा-८. ८४६३५. (+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, ९-१०४३०-३२). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमुं सिरनामी; अंति: गुणसागर० निश्चै पावै, गाथा-२१. ८४६३६. (+) गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गुंहली., संशोधित., दे., (२६.५४१३, १०४२६-२८). For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुरुगुण गहुंली, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुण सजनी सुगुरु; अंति: अमृतविमल०सुख सास्वता, गाथा-८. ८४६३७. (+) पार्श्वनाथजीनी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११-१२४३०-३७). पार्श्वजिन लावणी, पं. गौतमविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर सांभलो; अंति: गोयम० प्रभु साहीबजी, गाथा-६. ८४६३८. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १५४३५-३७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ८४६३९. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१३, ११४२६-३०). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकारी रे, गाथा-२३. ८४६४० (+-#) सिद्धमंगल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १०-१८४५८-६४). १.पे. नाम. सिद्धमंगल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत मे सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय की गाथा-२ अपूर्ण तक लिखकर छोड दिया है. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बीजो मंगल मन सुध धाव; अंति: जामल० वारंवारा जी, गाथा-१८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभवदर्लभता, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव भमंतां; अंति: पासहासचंद० व्रत पालो, गाथा-१३. ८४६४१ (+) सागरचंद्र चौढालियो, औपदेशिक व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पेन्सिल से पाठ सुधारा गया है., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १८४४०-४८). १. पे. नाम. सागरचंद्र चौढालियो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: सागररायनी वारता कहुं; अंति: रतन धरम बिरत सेवज्यौ, ढाल-४, गाथा-४१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अपना पदकुं छाड रे; अंति: जिनराज का गहीयै, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नवलराम, पुहि., पद्य, आदि: नेमकी जान बनी भारी; अंति: नववल० के हुवै जैकारी, गाथा-८. ८४६४२. (+#) रिषभजिन लावणी व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, २१४१८-२२). १.पे. नाम, रिषभदेवजीनी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-धुलेवातीर्थमंडन, मु. ज्ञानरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: चलो चेतन० धुलेवगढ; अंति: ज्ञानरत्न संकट जावे, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जणेशर पेखता रे; अंति: ज्ञान० अइ प्रभाव, गाथा-७. ८४६४३. जिवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९६७, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, दे., (२७४१२, १२४३८-४०). जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: वृद्धिविजय० आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३, (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ८४६४४. (+#) गच्छपति शांतिसागरसूरिगरु गहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ९४२४-२८). For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३४३ गच्छपति शांतिसागरसूरिगुरु गहुंली, मु. खांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली गछपति; अंति: खांति सदा मंगल पावे, गाथा-९. ८४६४५. (+) पंचकल्याणक वीर स्तवन व पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, ११४३१-३५). १.पे. नाम, पंचकल्याणक वीर स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: रामविजय० अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५८. २. पे. नाम. पजूषण चैत्यवंदन, पृ. ४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक ८४६४६. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. माणकचंद डुंगरसी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ४४३७-४३). पार्श्वजिन पद, मु. सुखसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तु मेरा मनमै तु मेरा; अंति: सुखसागर० तीन भवन मे, गाथा-३. ८४६४७. (+) पार्श्वजिन छंद, आदिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १३४२८-३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वारु विश्वमां देस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. __ पुहि., पद्य, आदि: अरथ न आवे रथ अरथ गरथ; अंति: भाई राज पोपाबाइ कौ, पद-३. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरियाजी, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: जोओ लजा राखसो तो रेस; अंति: रिषभदासगुणवंता वाला, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कलियुग, पुहि., पद्य, आदि: कलीजुग केरा कुडकपटि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ८४६४८. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६४१२.५, १४४३३-३७). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इम झरवरा घोराणी; अंति: दींगे आवगे सारगपाणी, गाथा-५. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-रावण, पुहि., पद्य, आदि: आइ जब रावणकी राणी; अंति: सतीकु जाये दुख दीना, गाथा-४. ३. पे. नाम. लक्ष्मणराम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: लछमण बोल रे मेरा वीर; अंति: चीत्यामे रघुवीर, गाथा-५. ४. पे. नाम. लक्ष्मण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: भुजाबल मोरी कैस जीव; अंति: लंका फुक जैसी होली, गाथा-४. ८४६४९. (+) मार्गणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४३३-३७). मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम त्रिणि लेश्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतरायकर्म तक लिखा है.) ८४६५० (+) गोचरी के ४२ दोषादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४२४-३७). For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. ४२ दोष गोचरी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो आहाकम्मे दोष ते; अंति: एषणां दोष कह्या. २. पे. नाम. पांचदोष मांडलीना, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५ दोष मांडली के, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेहेलो संजोजना दोष; अंति: संजोग दोष कहीजे. ३. पे. नाम. छ कारण आहार लेवे, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधु आहारग्रहण के ६ कारण, पुहि., गद्य, आदि: पेलो दशभेदे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ८४६५१. दश दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२, १२४३५). औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., पद्य, आदि: मिथा पडिउ बहु भव भमि; अंति: जिनधर्मकरउ अतिघणू, गाथा-१५. ८४६५२. (+) ऋषभदेव थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३८). आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पेहलुं; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ८४६५३. (+) आठमनुं तवन व देवसिराइ प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५-१६x२३-३३). १. पे. नाम. आठमनुं तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांतीवीजे० पावे ____ घणु, ढाल-२, गाथा-२३. २. पे. नाम. देवसीराइ प्रतिक्रमण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८४६५४. (+) अमरकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, २०४५५-५६). अमरकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (१)चवदे पुनर्सार एह, (२)राजगृही नयरी भली; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४, गाथा-११ तक लिखा है.) ८४६५५. दसाणबाईना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दसां., जैदे., (२६४१२, १९४४३). दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नग्री गुण; अंति: घणा साधका जीव घणाः. ८४६५६. साधारण: जिनेश्वरस्तुति वर्णनातिसयेन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, पठ. श्रावि. रंगुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३४४७-५१). २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती कवि; अंति: सेवक सकलचंद सुतारणं, गाथा-३७. ८४६५७. (4) साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १२४४०). साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: आठ मास तांइ साधु मन; अंति: ए रीति प्ररूपी छई. ८४६५८. ऐमंतोरषी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४४६). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: वंदे अइमतो अणगार, गाथा-२०. ८४६५९. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४२६). महावीरजिन स्तति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवृधमानजिनवर परम; अंति: साहिब संघ मंगलकारणी, गाथा-४. ८४६६० (+#) २४ जिन मातापितादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, २५४१७-१८). २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., आदि: आदिनाथ सर्वार्थसिद्ध; अंति: सीधाईका समेतशिखर. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३४५ ८४६६१ (+) छ आवश्यकविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३७). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइं जिन चीतवीं; अंति: विनय० शिवसंपदा लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ८४६६२. ३२ असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १७४३४). _३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाई कहतां तारा तु; अंति: आधी रातकी असझाई३२. ८४६६३. (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सपनासोल., संशोधित., दे., (२६४१२, २०४४७). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: सुरपदवी लही सारो रे, गाथा-४५. ८४६६४. ६ काय जीवोत्पत्ति आयुष्यादि विचार, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मुढेरगाम, प्रले. श्राव. निधानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मनमोहनजीदेव प्रसादात्., जैदे., (२६४१२.५, २०४४५-४८). ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली पृथवीकाय बीजी; अंति: पमर्नु आउखु जाणवू जी. ८४६६५. (2) २४ मंडला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २९x१७-१९). २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसणे उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे आहियासइ. ८४६६६. (+) नेमराजिमती बारमासो, औपदेशिक दहासंग्रह व महासत्तासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४०-४७). १. पे. नाम. नेमनाथजीरो राजीमतीरो बारमासीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१३०६) कड कडी कर वेगडी. ___ नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम बिलूधी पदमणी; अंति: कवियण सिरेसुर नेम, गाथा-४५, प्र.ले.पु. सामान्य. २.पे. नाम, औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: पाणीने परनार लाभा; अंति: वालमो जो मीले एकंत, गाथा-३. ३. पे. नाम, महासत्तासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. _भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढहो तिहअणे सयले, गाथा-१३. ८४६६७. विविधबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १६४५१-५३). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोकांतिक देवपणेइ; अंति: ८५ उपासकसूत्रे. ८४६६८. ६२ मार्गणाए जीवना ५६ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, २८४८-२५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.ग., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारी अणाहारी. ८४६६९ साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नारनोल, प्रले. मु. ज्ञानचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ९४४०). साधारणजिन पद, मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: कर भाव पुजा भव प्रान; अंति: प्रभूपूजा सकल समाधी, गाथा-७. ८४६७० (-) महावीरजिनचूडा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने रागपरक आदिजिन स्तवन की आँकणी के साथ गाथा-१ लिखकर महावीरजिनचूडा स्तवन लिखा है., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-चूडा, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तारा मुखडां उपर जाउं; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने ___ अंतिम गाथा लिखे बिना ही इति लिखकर पूर्ण कर दिया है.) ८४६७१. (+) धन्नाजीरो सतढालीयो, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. सा. चुनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:धन्नाजीस०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३७-४०). धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नवमा अंग तीजा वरग मे; अंति: आसकरण०अणुसारे जोय के, ढाल-७, गाथा-७२. ८४६७२. (4) पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४१२, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ तक लिखा है.) ८४६७३. (+) महावीरजिन स्तवनद्वय व गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. विसनगर, प्रले. दूर्लभराम रायचंद भोजक; पठ. श्रावि. मेनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४४०-४२). १. पे. नाम. महावीरस्वामी पंचकल्याणक स्तवन-ढाल १-२, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसती भगवती दीउ मति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: ज्ञानविमले कहिइं, गाथा-९. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: नय करे परीणांम रे, गाथा-७. ८४६७४ (4) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. १आ का अवशेष पाठ १अ के हासिये में लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४०). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गोतम तणा; अंति: धन श्री गौतम स्वामजी, गाथा-१३. ८४६७५ (+) मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्राव. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "रात्रै लिखत्वा" ऐसा उल्लेख है., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३२-४०). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ८४६७६. (+#) पार्श्वजिन छंद देशांतरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २१४४२-४५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन समपो सारदा मया; अंति: स्तवीयो छंद देसांतरी, गाथा-३९. ८४६७७. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१५, आषाढ़ कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ११४४०-४३). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि-दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मि शुभ हेज, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदन सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणे; अंति: संघ सकल मुदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ८४६७८. (+) वीरजिन २७ भववर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. कुल ग्रं.७२, दे., (२७४१२, १४४५५). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशभविजय सुगुरू; अंति. सेवक वीरवीजयो जयकरो, ढाल-५, गाथा-५२. ८४६७९. कीरतधज ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:कीरतधज., दे., (२६.५४१२.५, १४४४३). कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: अयोध्या नगरी तेणोसरे; अंति: हीरालाल० खिन्न हो, गाथा-५६. ८४६८०. आतमनिंदा व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद जती; पठ. श्राव. लछमीपति दूगड, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, १२४४०). १. पे. नाम. आतमनिंदा, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि हे आत्मा हे चेतन; अंति: सो नर सुगुण प्रवीण. २. पे नाम औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सज्जन जैशा कीजीयै; अंति: नां काहूसैं बैर, दोहा-१. " ८४६८१. (N) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे. (२६.५x१२.५, ११x२३). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि सिद्धारथ कुलदीपक चंद, अति मनबंछत पुरण माहावीर, गाथा- १२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४६८२. साधु गोचरी अर्पण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६.५X१२.५, १४x४१). साधु गोचरी अर्पण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि झिरमर झिरमर मेह वरिस अंति तपसा वालाप तूठजो जी गाथा- २३. ८४६८३. हस्तप्रत लेनदेन व्यवहार पत्र, संपूर्ण, वि. १८८९ आषाढ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. लखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६X१२.५, ७x४२). हस्तप्रत लेन देन व्यवहार पत्र, मा.गु. गद्य, वि. १८वी, आदि संघाडा श्री पूज्यजी अंति: देवइ तौ अटकाव नही. ८४६८४. (*) शांतिजिन कलश व मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, १४X३५). १. पे नाम. शांतिजिन कलश मंगलाचरण श्लोक, पृ. १अ संपूर्ण. शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीजयमंगल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम मुनिगुण सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: मोह माहाभट जीतके अति विनय मांगे सोव, गाथा १४. ३४७ ८४६८५. (+) अध्यात्म गीता, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १३X३५). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि (-); अंति: रंगी मुनी सुप्रतीता, गाथा ४९ (पू.वि. गावा-८ अपूर्ण से है.) ८४६८६, () सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) - २, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२७X१२, १३X३१-३३). १. पे. नाम. अष्टमीनी सिज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति वाचक देव सुसीस, गाथा-७, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम बीजनी सज्झाय, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाव, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धि० विविध विनोद रे, ८४६८७. वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२७४१२.५, १०X३३-३५). गाथा-८. ३. पे. नाम. एकादशीनी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे एकादशी इम वंदे भ; अंति: ज्युं भव निस्तार हो. ४. पे नाम. एकादशीनी सिज्झाय, पृ. ४अ संपूर्ण. एकादशी तिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज मारे एकादशी रे; अंति: अविचल लीला लहेशे, गाथा-७. ५. पे नाम ढणमुनिनी सिज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्ण नरेसर पूछिओ रे अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि हां रे मारे प्रणमुं अंतिः तवन सोहामणो रे लोल, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४६८८. नेमराजीमती गीत, श्रावकगुण सज्झाय व श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: शवक., दे., (२७११.५, १७-१९x४२-५०). १. पे नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ संपूर्ण. ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि तोरण आया हे सखी कहे अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-८ तक लिखा है. वि. गाथा ८ तक लिखकर व कृति अपूर्ण छोड़कर दूसरी कृति का प्रारंभ किया है.) " २. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर वचन चित धर; अंतिः सुखतर भरपूरो जी, गाथा - ११. .पे. नाम. सुद्ध श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदर वाचक Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इम कहइ, गाथा - १४. ८४६८९. (*) २४ दंडक जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे., (२५.५४१२, २०४३५). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: नरक७ भवणपती १० पृथ्वी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भेद-८७ तक लिखा है.) १२X३२-३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि पास जिणंदा मेरी निजर, अंति दास सहित विदारा छे, गाधा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ७२अ, संपूर्ण. ८४६९० साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६४१२.५, १२X४६-४९). " साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे. मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ८४६९१. 6- पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७२-७१(१ से ७१) -१, कुल पे. ६. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२६.५४१२, (-) " ', " गाथा-७. ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. ७२आ, संपूर्ण. मु. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदि करम शत्रु मेरो कांइ अंति: हरष निरख गुण गाय जी, पद-४. ६. पे. नाम. नेमराजिमती पद. पू. ७२आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, पुहि., पद्य, आदि सब दुख टारोगे, अति सोभाग्य० तार भव तिर, गाथा-३, " ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद. पू. ७२अ संपूर्ण. मु. राजरत्न, रा., पद्य, आदि सांवरो नेम प्यारो री अति साम हमारो रे माई, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंग सुरंगी अंगीयां; अंति: नमुं कापरहेडा पास, पुहिं., पद्य, आदि: देखो सखी वनडो ए नेम; अंति: एहवो पायो भरतार, गाथा-४. " ८४६९२. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२७४११.५, १५४४४-५०%) दीक्षा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि मूल पुनर्वसु स्वाति अति व्याहार करीई. ८४६९३. शांतिकरस्तवस्याम्नाय, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. पं. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी शांतिकर आम्ना०. श्रीधर्मनाथजीप्रसादात्, हेमाभाईरावागमध्ये दें. (२७४१२, १३४४०-४२). " For Private and Personal Use Only संतिकरं स्तोत्र - आम्नाय संबद्ध, सं., गद्य, आदि एतत्स्तोत्रं त्रिकाल अतिः सर्वाभ्युदयहेतुरिति, ८४६९४. होलीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : होलीवा०., जैदे., ( २६१२.५, १५-१६X४०-४४). होलीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (१) श्रीवाग्वादनि अभिनम्, (२) श्रीजंबुद्वीपे; अंति: पयारोत संसारे. ८४६९५ ६२ मार्गणा व जीव के ५६३ यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २१(१) -१, कुल पे. २, जैदे. (२६.५x१२, ३१X९-२६). Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३४९ १. पे. नाम.६२ मार्गणा यंत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___मा.गु., को., आदि: (-); अंति: असन्नी आहारक अणाहारी, (पू.वि. २८ मार्गणा से है.) २. पे. नाम. ५६३ जीवभेद यंत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., को., आदि: भरति महाबिदेह; अंति: (-), (पू.वि. २४ जीवभेद तक है.) ८४६९६. (+) गोतमसामीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य.पं. सौभाग्यविजय (गुरु मु. न्यानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२-१५४३७-३९). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: गौतम ऋषि आपो सुखवास, गाथा-६६. ८४६९७. (+) सिद्धिदंडिका स्तवन सह यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १४-१५४२९-६१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोमसिद्धिदंडिका १; अंति: द्वितीया०सिद्धदंडिका. ८४६९८. पत्रलेखन पद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सरसपुर, प्रले. श्राव. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, ११४३४). साध भगवंत को पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्री गाम; अंति: १००५वार अवधारज्योजी. ८४६९९. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१३, ११४३३). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीक्रसहेसर पाय नमी प; अंति: पद्मविजय ___ जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. ८४७०० सौधर्मदेवलोक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ३., (२६.५४१२.५, १२४३५-३९). सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मावलोकें पेहलुं; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ८४७०१. चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चं०स०., कुल ग्रं.५०, दे., (२७४१३, १२४३२). चंदनबालासती गीत, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कौसांबि ते नगरी; अंति: लब्धीविजय गुण गाय हो, गाथा-३५. ८४७०२. (+) २४ तीर्थंकर आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १४४३२). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे त्रीजा आराना; अंति: वीर मोक्षे गया. ८४७०३. (#) पार्श्वजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन सुत सुंदरुं; अंति: धरीइं धर्म सनेह, गाथा-१३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ जिनेसर चरण; अंति: जो तारे तो तरीये रे, गाथा-११. ८४७०४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १६x४३). शQजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: वाचक समयसुंदर इम भणे, गाथा-३१. ८४७०५. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१२, १७X४२). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी प्रथम वहिरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सादडी नगर. सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनवु रे; अंति: उत्तम० अधिक जगीस, गाथा-२३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी सांमलवरणो; अंतिः प्रतिखिण करुणा करयो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या तन काची माटीका डे; अंति: सरणही तुही तारणहारा, गाथा-५. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदनजिन अरज अमारी; अंति: सबला कीधा राजी, गाथा-७. ५. पे. नाम, हितोपदेश सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: या मे वास में बे; अंति: मुगतपुरी मे खेलो, गाथा-७. ८४७०६. (+) महावीरजिन पारj, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२८). महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाइं पुत्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ८४७०७. (+) भवदेवभावदेवनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १०४३८). भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घरे आवीया; अंति: समयसुंदर० ध्यान रे, गाथा-६. ८४७०८. सिद्धचक्र स्तुति व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१३, १४४३८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन वंछित पूरण; अंति: राम कहै नितमेव, गाथा-४. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो सीमंधरस्वा; अंति: (-), (पू.वि. 'प्रभुजीने प्रणाम करे छे ए जाड' पाठ तक है.) ८४७०९. चोवीसदंडकनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२.५, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पुरो मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावे धर्मशी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८४७१०. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रावण कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अग्यारसनोस्त०. अंत में 'मुकाम पेथापूर तालुको सादरा .ई. महीकांठा ठेकाणा कोटफली' ऐसा लिखा है., कुल ग्रं. ८३, दे., (२७.५४१२, १३४४४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२९, ग्रं. ८३. ८४७११. (#) ८ कर्मनी प्रकृतिनो गुणठाणो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, २९४८-१९). १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ज्ञानावरणी प्रकृति; अंति: (-), (पू.वि. 'पंचिंद्री जाति का उदय १४ गुणठाणा' पाठ तक है.) ८४७१२.१० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दशपचखाणस्तवन., दे., (२६४१२.५, १२४३४). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद तप विधि भणी, ढाल-३, गाथा-३३. ८४७१३. (+) स्थूलिभद्रमुनि सवैया, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२७.५४१३, १४-१५४३२-४५). स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: एक समे चार शिष्य चले; अंति: स्वामी थूलभद्रजी, गाथा-९. ८४७१४. (+) आत्मनिंदाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ११४२१). आत्मनिंदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., पद्य, आदिः श्रुत्वा श्रद्धाय; अंति: कार्य हहा कर्मभिः, श्लोक-१०. ८४७१५ (+) २४ जिन विवरण, नवकारमंत्र व सोलसती सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. सा. सजना (गुरु सा. विलास महासती); गुपि.सा. विलास महासती; पठ. मु. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ९४३०). For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३५१ १. पे. नाम. तीर्थंकर नाम नगरादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.ग., को., आदि: ऋषभनाथ विनीता नाभिरा; अंति: त्रिसला सिंह हेमवर्ण, अंक-२४. २.पे. नाम, नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. ३. पे. नाम, सोलसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: गुण समरो श्रीनिसदीस, गाथा-५. ४. पे. नाम, नक्षत्रनाम तारादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह-, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. नक्षत्र नामानुक्रम आगे-पीछे है.) ८४७१६. शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १८४४७). शीयलव्रत सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: गेहरो रंग लागो हौ; अंति: जमलजी०कीयो कातीक मास, गाथा-१९. ८४७१७. ४ निक्षेपा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ३१x१९). ४ निक्षेपा सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भोला लोको रे भरमे मत; अंति: पडीमासूची गुण रेह, गाथा-१५. ८४७१८. (4) अष्टमीतिथि स्तवन व कलमनि थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणाग्राम, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२.५,११४३५-३७). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमु सदा; अंति: तवन रच्यु छे तारे रे, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम, कलमनि थोय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डाले बेठी एक सूडली; अंति: तेनी बुद्धि छे रूडी, गाथा-४. ८४७१९ (+) महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ९४२६). महावीरजिन पद, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनराया चोवीसमा; अंति: हरषे० रे म्हारा राज, गाथा-५. ८४७२०.(+) मल्लिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १०४४०). १. पे. नाम, मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन-भोयणीतीर्थमंडन, म. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदिः जिनराजा ताजा मल्लि; अंति: तेरा दर्स सुहावे जी, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संसार विषयक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: संसारियामां सगु तारू; अंति: ऋषभ कहे दगो दीधो रे, गाथा-५. ८४७२१. (+) यति प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. बोटापुनम मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रमण., संशोधित. कुल ग्रं. ७१, दे., (२७४१२.५, १२४३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ८४७२३. (+) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. लुदाणा, प्रले. श्राव. फकीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय. हुडी:पच्चीसी., संशोधित., जैदे., (२७४१२, २१-२४४४९). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, प. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजौल इण पर; अंति: राजुल पूरी आस रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. दुर्गादास, रा., पद्य वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पहले पद अति दुर्गदास० छै टंकसाली, गाथा १२. ३. पे. नाम, दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ४. पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पच, आदि: पापरा धानक अठार पूरा अति साथ कहै सिव पामी, गाथा- ३०. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल महिमा; अंति: जैतस धरमे जय जयकार (वि. प्रतिलेखक ने बीच की गाधाएं नहीं लिखी हैं.) .पे. नाम. सुगुरुपच्चीसी, पृ. २- २आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगर पछाणो इण अचार, अति संतहर्ष उछरंगजी गाथा २५. ६. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. २आ, संपूर्ण. - ८४७२४. (#) मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरजी प्रणमु अति संतजिन० इण चल गतसु, गाथा - २५. बुढ़ापा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. किलाधारनयर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९११) पोथी प्यारी प्राणकी, जैदे., (२७.५X१२, १५X४३). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य वि. १८४५, आदि नीरधन के घर बेटी जाई; अंतिः धर्म विना जीवनी कमाई, डाल-१२. ८४७२५. ऋतुवंति अस्त्री उपर सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, दे., (२६X१३, १२X३०). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरसति माता आये नमी अंति बहेली बरसो सिद्धि, गाथा-११, संपूर्ण. ३, ८४७२६. पंचमी, अष्टमी व एकादशी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत 'पोसगलित' शब्द का उल्लेख किया गया है, जैदे. (२७४१३, ९८४३१). १. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. "" ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः युगला धर्म निवारियो; अति श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा - ९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदि आठिमने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ३. पे. नाम, एकादशी नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: खिमा० सफल करो अवतार, गाथा - ९. ८४७२७ १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११, १४X३०-३५ ). १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि समरुं श्रीगीतम गणधार, अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही गाथा १५. - For Private and Personal Use Only ८४७२८ (+) गौतमस्वामी गहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १ ले स्थल पीचीयाख प्रले. कृष्णाजी मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५५१३, ९५३१). " " गौतमस्वामी गली, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति दान कहे०सुखनो धाम रे, गाथा-७, (पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा १ अपूर्ण से है.) ८४७२९ (+#) आरती, चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७१३, १५X३६). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८ आदि (-); अंति रूप लक्ष्मी सुखमेवा, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम सिद्धाचल चैत्यवंदन, पू. ३अ, संपूर्ण, Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३५३ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ३अ, संपूर्ण. __ मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भव भव आरत टाल अमारी; अंति: लक्ष्मी देई सुख थायो, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडणो; अंति: सीवसुख लक्ष्मीसंग हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे श्री; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८४७३०. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१३, १२४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: चालो चालोने जईये; अंति: नेह धरि गिरिराजने रे, गाथा-१२. ८४७३१. १२ मास नवकारसी कालमान कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, २४४१३). १२ मास नवकारसी कालमान कोष्ठक, मा.गु., गद्य, आदि: मागसर सुद १थी सुदि; अंति: कलाक ९ मिनिट १२. ८४७३२. ७० बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७४१२.५, १८४४८). ७० बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., को., आदि: १सर्वसु थोडा सत्री; अंति: देवता संखेजगुणा, संपूर्ण. ८४७३३. (+) स्तवन, चैत्यवंदन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१,४)=४, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४४४). १.पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मेरु०लहे भव तीर मेरे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: रिषभलंछन रिषभदेव; अंति: लक्ष्मीसरी जयवंत, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन भीडभंजन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, म.प्रेमउदय, मा.गु., पद्य, आदि: सेह माटे साहब सामा; अंति: देजो देजो लोभनो लासो, गाथा-५. ४. पे. नाम. ६ अट्ठाइ स्तवन, पृ. २आ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: चैत्रमासे सुदी पक्षम; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९, गाथा-५४, (पू.वि. ढाल-५, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-९, गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ५. पे. नाम. मगापुत्र सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मु. हंसविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सूगरीव नयरी सोहामणी; अंति: हंसविमल तस परिणाम रे, गाथा-२८. ६. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलु ने समरूं रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८४७३५. मेघरथराजानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. शिवपुरि, प्रले. रेवाशंकर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ९४३७). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दशमे भवे श्रीशांतिजी; अंति: सुख निर्वाण रूडाराजा, गाथा-२१. ८४७३६. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १८४३८). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५, गाथा-३ तक लिखा है.) ८४७३८. (+) बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४३०). For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा-८. ८४७३९ (+) प्रभातराईपडिक्कमण विधि व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११४२६). १. पे. नाम. प्रभातराइपडिक्कमण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरीयावही प० तसउत्तरी; अंति: संदि० बहुवेल करस्युं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ८४७४० (4) महावीरजिन स्तुति, सीमंधरस्वामी व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४८). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ रायकुल तिलो; अंति: ए बोधिबीज सुपसाय, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम, मंदरस्वामीनुं तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलावइ विजये जयो; अंति: जश० भय भंजन भगवंत, गाथा-८. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: समकित दाता समकित आपो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ८४७४१. लींबडी दीक्षा तथा पदवी उत्सव गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४३४). लींबडी मध्ये आणंदविजय-कमलविजय पदवी तथा रंगविजय-गुणविजय बडीदीक्षा महोत्सव गहुंली, मु. कमलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९४७, आदि: बेनी मोरी सुगुरु; अंति: कमल गुहली करे रे लोल, गाथा-१५. ८४७४२. शाश्वता अशाश्वताजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. अवल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३३). शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लख चोतेर; अंति: आत्मतत्वे रमीजे, गाथा-१३. ८४७४४. (+) माहावीरजिन चौढालियो व साधारणजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन चौढालियो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक शुक्ल, २, ले.स्थल. समाणा, प्रले. श्राव. रतीरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुलमजी उपना; अंति: किया दिवाली रे दिन, ढाल-४, गाथा-६३. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साधु सुपात्र बडे; अंति: दिन ऐसी मोजा पाउंगा, गाथा-१२. ८४७४५. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, ११४५१). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीगुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ८४७४६. आत्मा के ८ नाम व प्रत्याख्यान ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:४९भांगापत्रम्., दे., (२६.५४१२.५, ९४५७). १. पे. नाम, आत्मा के ८ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३५५ ८ नाम आत्मा के-भगवतीसूत्रे, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यात्मा १ कषाय; अंति: रण मांहो मांहे तुल्य. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मन करुं नहीं करावं; अंति: करावं अनुमोदं नहीं. ८४७४७. (+) औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ११४३५). औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आ संसार असार छे रे; अंति: जो तारे तो तार रे, गाथा-८. ८४७४८. सिद्धगिरि व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४३७). १. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. आत्मवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थ श्री सिद्धांचल; अंति: वल्लभ० तीरथ सिरताजे, गाथा-८. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पल पल गुण गाना गुण; अंति: मोक्ष को जाना जाना, गाथा-७. ८४७४९. नववाडिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १३४२८). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहनि जाउ भांमण, ढाल-१०, गाथा-४३. ८४७५०. (#) नवकार मंत्र, लूण उतारणगाथा व नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, ११४३०). १.पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... नमस्कार महामंत्र स्तवन-महिमा, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चउद पूरवनो सार मंत्र; अंति: मोक्ष तणी निसरणी, गाथा-६. २. पे. नाम, लूण उतारणगाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लूण उतारण गाथा, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: लुण उतारो जिनवर आगे; अंति: थाजो लुण न पाणी लुण, गाथा-३. ३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरीहंत सिद्ध मारे एक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनि स्वरूप अपूर्ण तक लिखा है.) ८४७५१. गुरुगुण सज्झाय, रामरावण संवाद व रत्नमुनि पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, २५४२१). १. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: में तेरे दरस बिना; अंति: नयनसुख दास बखानी जी, गाथा-६. २. पे. नाम. रामरावण संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: रावण से रघुवीर कहे; अंति: रावण को काल ने घेरा, दोहा-४. ३. पे. नाम. रत्नमुनि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, पुहिं., पद्य, आदि: रत्नमुनि पंडिताई; अंति: चंद्रभाण० चरनमांही, गाथा-११. ८४७५२. खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३७-४१). खंधकमनि सज्झाय, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखीया कीजे, ढाल-२, गाथा-२०. ८४७५३. () सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ९४२०-२८). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजीकुं वंदना; अंति: जिनेंद्र थुणंदा रे, गाथा-६. ८४७५४. (+#) बृहत् चैत्यवंदन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: चित्तमानंदकारी, श्लोक-९. ८४७५५ (+) मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:मोऊनएकादसी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४३३-३६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. ८४७५६. स्तवन, पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४०). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देखो रे जिणंदा; अंति: दीजै सिवपुर ठाण, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ.१अ, संपूर्ण. म. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो री सखी जिन दरसण; अंति: भयो शिवगारिया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कृपा करो ने गौडी पास; अंति: रूपचंद पदवी पाई, गाथा-५. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनपास दयाल लगा; अंति: हरखचंद० भव का जंजाल, गाथा-५. ५.पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनरी सेवा; अंति: ऋद्धि० मोहे हो दयाल, गाथा-४. ६. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पातलडी राजुल विनवे; अंति: कवियण मुगति आवासे रे, गाथा-७. ८४७५७. पक्खि चउमासी संवत्छरी तपादि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रारंभ में सत्तरभेदीपूजा की मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण लिखकर छोड दिया है., जैदे., (२६४११, १०४४१). पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भगवान पाखितप प्रसाद; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (वि. पक्खि, चउमासी, संवत्छरी तप, वंदन व साधु-श्रावक अतिचार क्षमापना की विधि लिखी है.) ८४७५८. बेहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ३७४१८-२०). २०विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: बेहरमानजिण बिचरं एह; अंति: मुकत आपो सामीयां, गाथा-१५. ८४७५९ (+) पंचमेरुसंबंधी ८० चैत्यालय पूजा विधान व जिन जयमाला, संपूर्ण, वि. १७९४, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. अमृतविजय गणि; अन्य. मु. राजविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४१२,११४३३). १. पे. नाम. पंचमेरुसंबंध्यसीति चैत्यालयपूजा विधान, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. __ पंचमेरुसंबंधी ८० जिनालयपूजा विधान, मु. भोजसागर, सं., गद्य, आदि: अर्हत्सिद्धौ गणपोपाध; अंति: मुक्तिफलं लभेत्. २. पे. नाम. पंचमेरुजिनजयमाला स्तवन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. म. भोजसागर, सं., पद्य, वि. १७८५, आदि: संद्वांतसमतिविभाव्य; अंति: भोज० स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-२१. ८४७६० (+) लब्धि २१ द्वार २२२ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६३४२५-२८). २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदिः (१)जीव१ गइ२ इंदिय ३काय, (२)समचइ जीवमांही न्यान; अंति: (-), (पू.वि. 'जीवामाही न्यान १ केवलीन्यान की नीमा' पाठ तक है.) ८४७६१ (4) गजसुकुमाल सज्झाय, सुमतिजिन स्तवन व दानाधिकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२,१५४५०-५६). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे. नाम गयसुकमालमुनीसरजीनी सज्झाय, पृ. १.अ. संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिन आया ए सोरठ: अंति: मझार करजोडी रतनो भणे, गाथा-७. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अमरजी कुमर, मा.गु., पद्य, आदि: सुमत एक बात सुणै; अति अमरजी० मोए पाव करणा, गाथा-४. ४८x२०). १. . पे नाम ९८ अल्पबहुत्व बोल, पू. १अ संपूर्ण. ३. पे. नाम. दानरी इधकाइरी सज्झाय मुनीवर अधिकार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दानाधिकार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि केसरीया बंधव तणो हु; अति कीधो तीनुई काल रे, गाथा- १३. ८४७६२. ९८ अल्पबहुत्व बोल व चक्रवर्ती नामादि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. २, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, ९८ बोल यंत्र- अल्पबहुत्व, मा.गु., को, आदि सर्वधी थोडा गर्भज मन, अंति: ९८ सर्वजीवविसेसा. २. पे. नाम चक्रवर्ती नामादि जैन यंत्र संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण יי जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८४७६३. मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२६.५५१२.५, १२४२५-४५). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: श्रीअरणनाथाय नमः. ८४७६४ (+#) हेमदंडकादि गाथा, ५५ शरीरादिकरण व २४ दंडक जीवद्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११.५, १९५२). १. पे. नाम. हेमदंडक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगंमि, गाथा-५. २. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: ०१ दव्व२ सरीरा३ साया अति गंध‍ रस १० फासाय११, गाथा २. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. पद्य, आदि दव्वसरीर इंदियमणवय अंति: बावन्नमण्य पणपन्ना, गाधा- ३. " ४. पे नाम. २४ दंडक जीवादि भेद कोष्ठक, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. ५५ शरीरादिकरण गाधा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. युगलिक मनुष्य, गति६४ आगति२५ व नरकादि जीव शून्यकाल विचार सहित. २४ दंडके २१ द्वार विचार-जीवादि, मा.गु., को., आदि: जीवभेद शरीर आहार० अव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वैमानिक २४ आदि असंख्याता पाठ तक लिखा है.) ८४७६६. (+४) जिनपालजिनरक्षित चौडालियो व ५६३ जीवभेद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X१२, २०-२१x४०-४४). १. पे. नाम जिणरिपजिनपालनो चौडालियो, पू. १अ २आ, संपूर्ण जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, मा.गु., पद्य, आदि अनंता सिद्ध आगे हुआ अंतिः विदेह चवे जासी मोख, ढाल -४, गाथा ६८. २. पे नाम. ५६३ जीवभेद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि मिच्छामि दुक्कडं इण; अति इम कहै रिषभदासजी, गाथा-१३. ८४७६७ (+) कालिक जोग विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २७-२६ (१ से २६) = १, प्र. वि. संशोधित दे. (२६४११.५. "" ११X३६). ३५७ ८४०६८ पंनरतिथि जिनकल्याणक मंत्रजाप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५४१२, ११४३४). दशवैकालिकसूत्र- योग विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रथम दिने पाटलि; अति (-). (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पात्रा पडिलेहण के बाद चैत्यवंदन करने हेतु सूचन तक लिखा है.) १५ तिथि जिनकल्याणक मंत्रजाप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पडवेने दिवसे श्रीकुं, अंति: तिथिइ एवी रीते करवो. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४७६९ (+#) प्रश्नउत्तरवार्तिक सिद्धांतसार, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. भक्तिविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२,१५४४०). प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.ग., गद्य, आदि: नवकार माहै पहिला पद; अंति: जीवै पन्नवणामाहे क०, प्रश्न-३९. ८४७७० (-) सुभद्रासती छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९४-१९३(१ से १९३)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३१). सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरावकनी छे उत्तम जात; अंति: छे ए सुभद्रा नार, (संपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८४७७१. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१३, ११४२६-३२). पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिराउली पूजी; अंति: वीरमुनि० नायक सुरपति, गाथा-४. ८४७७२. साधुवंदना बडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२.५, १२४३४-४०). साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ तक लिखा है.) ८४७७३. गुरुविहारविनती गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में जलतैलादि से प्रतसुरक्षा हेतु सूचन किया है., दे., (२५.५४१२.५, १३४३१). गुरुविहारविनती गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अंति: जिम करो आप विहार, गाथा-१९. ८४७७४.(+) ५ चारित्र ४२ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, २१४४५-५१). ५ चारित्र ४२ द्वार यंत्र, मा.गु., को., आदि: सामायक का दोय भेद; अंति: नवकोडि संख्या३. ८४७७५ (+) इंद्रिय द्वार विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., ., (२७४१२, १६x४१). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८४७७६. भगवतीसूत्र सज्झाय व धोबीडानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ९४३४-३५). १.पे. नाम. भगवतीसूत्रनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमे अंग भगवति जाणि; अंति: हन मुगतपुरीनो राज रे, गाथा-७. २.पे. नाम. धोबीडानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी है. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तु धोयजे मननो; अंति: सीखडी अमृतवेल रे, गाथा-६. ८४७७७. (+) क्षिमाछतीसी स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७X१२, ९-१०४२७-३०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीवदया गुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, (पू.वि. गाथा-१३ से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) ८४७७८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. लिखावट से प्रतिलेखन २०वी का लगता है, संभव है की १८८२ में लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि हो., जैदे., (२५.५४१२.५, ९४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जगत सुपनो जाण; अंति: राज भज्या सुख होय रे, गाथा-९. ८४७७९ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १०x४५-४८). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. रतनचंद, मा.ग., पद्य, आदि: सकलपख विजीया बरत; अंति: बीजसेठ घर सेठाणी, गाथा-८. ८४७८० (-) औपदेशिक पद सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२.५, २१४३८). For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३५९ १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१अ, संपूर्ण. रा. मानसिंह महाराजा, रा., पद्य, आदि: काउ की न आस राखै काउ; अंति: मानसिह सुखी एक सेवडा, गाथा-५. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मंदरीये काइ डोलती; अंति: कबीर० में मोती पोले, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: वैरण जीवडा मारग नवी; अंति: जठे थारो नइ लवलेस, गाथा-७. ४. पे. नाम. अमृतफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया अमृतफल खावो रे; अंति: तुरत जमी मे वावो रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पुरण गुण संपन्न महा; अंति: मुनिराज है संत हमारे, पद-२. ६. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: इत लोहा कुंजर परा उत; अंति: बने परसेवानय बीन, गाथा-१. ७. पे. नाम. चातुर्मास योग्य स्थान के १३ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहि., गद्य, आदि: कादो जिहां थोडो होय१; अंति: जिहां चोमासो इ करणो. ८. पे. नाम, पाटण ऋद्धिवर्णन पद, पृ. १आ, संपूर्ण... ___ मा.गु., पद्य, आदि: चोसठ हजार नार नवनिधि; अंति: कहो तेरी केती रीध है, गाथा-२. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मिथ्यात्वी, पुहि., पद्य, आदि: नाम शुद्ध को धरावे; अंति: नर होवो परभात रे, गाथा-३. ८४७८१ (+) चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १०४३९). १. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहे उपजे विनय विनित, गाथा-३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सुपनविध कहे सुत होसे, (२)सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ३. पे. नाम, महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणजो एकह चीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण.. म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारिखी वंदो सदा वनित, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुं सीस, गाथा-३. ८४७८२. छ आवश्यकविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२७४१२, १२४३५-३७). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तेह शिवसंपद लहै, ढाल-६, ___ गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-३६ से है.) ८४७८३. गहूंली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२, १३४३६). १. पे. नाम. गौतमगणधर गहुंली, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंन्या. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: सुद्ध रूप धरी नेह, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, गणधरपद गहुँली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण... ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटांबर दिनमणि सर; अंति: रूपविजय० करे रंगे हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नव कनक कमल पगला धरता; अंति: जिनराज वधावे गुणखाणी, गाथा-८. ८४७८४. (+) स्तवनचौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३१). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-३ गाथा-२ अपूर्ण से स्तवन-७ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८४७८५. आत्महितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२७४१२.५, ९४३३-३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: ममता माया मुकइंजी पर; अंति: ते लहे सुख संसार रे, गाथा-७. ८४७८६. नेमजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४३०-३१). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१५. ८४७८७. मेतारजमुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१३, १२४२८-३३). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: संजमगुणना आगरुजी पंच; अंति: भणे जी साधुतणी सजाय, गाथा-१४. ८४७८८. (#) मिच्छाम दक्कडनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, १३४४१-४७). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीगुरु सनमुख रहि; अंति: शुभविर० अनुसरिई जी, गाथा-१४. ८४७८९. उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १६-१९x४०). उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित नित नरभव लह्यो; अंति: मेरे एह दीयो उपदेस, गाथा-२६. ८४७९०, चंद्रप्रभजिन स्तवन व आशीर्वादश्लोक द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ७-९x४८). १. पे. नाम, चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. २. पे. नाम, आशीर्वाद श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: दुर्वारा वारणेद्रा; अंति: पूरय त्वं मनोरथान्, श्लोक-२. ३. पे. नाम. आशीर्वादश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अमरगुरु कुजी रे यत्र; अंति: कीर्ति च नारायणे, श्लोक-२. ८४७९१ ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-२ अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखा हुआ लगता है., जैदे., (२७४१२.५, १५४४१). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-५, दोहा-१ अपूर्ण तक है.) ८४७९२. ६२ मार्गणाद्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कामेश्वर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, २९x१२). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: पृथ्वीकाय गति आगति. ८४७९३. जिनकल्याणक स्तवन, आदिजिन पद व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२.५, १४४३०-३१). १. पे. नाम. वर्तमानचौवीसीकल्याणक स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: थुणिआ श्रीजिनराया रे, ढाल-७, गाथा-४९. २. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३६१ आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: मिलि माचो रे, गाथा-३. ३. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विषयने विसारी; अंति: परउपगारी परमानंदो रे, गाथा-३. ८४७९४. पंचमी सज्झायद्वय व अष्टमीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२, १३४३६). १.पे. नाम. पंचमीनी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखकारी रे, ___ ढाल-५, गाथा-१६. २. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ३. पे. नाम, अष्टमीनी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४७९५. राखडी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. सा. कीस्तुरा (गुरु सा. चनणा आर्या); गुपि. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. रामकवर आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राखडी., जैदे., (२६.५४११.५, १९४३८). आध्यात्मिक बारहमासा राखडी, पुहिं., पद्य, आदि: पहली तो जे; अंति: पजोइ म्हारी मन तणी, गाथा-१८. ८४७९६. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अवीरेंद ऋषि (वडतपगच्छ); पठ. श्राव. छोटुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४०). सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेशो; अंति: जिनहरख सुजाण रे, गाथा-१५. ८४७९७. (+-) संजतिराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४९, भाद्रपद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. परमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १५४२८). संजतीराजा सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बानी सतगुरु की सुण; अंति: माल बीनवे दीप कमाल, गाथा-२४. ८४७९८. २४ जिन विवरण यंत्र, विचारसारोद्धार व पांचबोलनो विचार, अपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४१-४०(१ से ४०)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. साणा, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, ३४४२१). १. पे. नाम. २४ जिन विवरण यंत्र, पृ. ४१अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजित२ संभव३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन तक लिखा २. पे. नाम. विचारसारोद्धार, पृ. ४१अ-४१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "३३७८० भेदजी करें करावे" से पाठ है) ३.पे. नाम. पांचबोलनो विचार, पृ. ४१आ, संपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक कृष्ण, १०, ले.स्थल. मीसांणा, प्रले.पं. अमृतविजय (गुरु पं. चंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. ५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: केवलीना जोगथी जीव; अंति: सम्यक्त्व जाये. ८४७९९ पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे.. (२५४१२,१३४३४). १. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल भाखै कान न; अंति: धन-धन ते नरनारा, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दिवस-दिवस तु धंधे; अंति: जिनवर वचन प्रमाण, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोय खबर पड़ी रे; अंति: सतगुरु बाह गही रे, गाथा-५. ४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १आ, संपूर्ण, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तन बस्तर कूं रंग लगा; अंति: मोटो लगायो दागो रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चलि आयो; अंति जिनधर्म कीजे, गाथा १०. ८४८००. परमाधामी दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२५.६X११.५, १४४४७). १५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कुंभे के कुंभीमाहेथी; अंति: ते महाघोष पर०१५. ८४८०१. मृगापुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५X१२, १२x२९). मृगापुत्र सज्झाव, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सुग्रिवनवरि सोहामणि; अंति: हंस०तुझ सम अबर न कोई. गाथा - २९. ८४८०२. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २, जैदे. (२५४१२, १३४३४). 1 " शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंति: स्तवियो गीर सोहेकर, गाथा - २७. ८४८०३. वखाणनी पीठिका व हनुमान मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, १६x४६). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठीका, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि भगवंत वीतरागनी वाणी; अंति: तत् संबंधनी वाचना. २. पे. नाम. हनुमान मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: अगन कोटका पुतली; अंति: (-). ८४८०४. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२६१२.५, ११४३०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी छंद - अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सारद मन आणी अति: वाचा फलसी ताहरी, गाथा ३५, (वि. गाथा २६ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) ८४८०५. विगय रहित ३० द्रव्य के नाम व नवतत्व भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२५.५४१२ १०४४४-४७). १. पे. नाम विगयरहित ३० द्रव्यनाम पु. १अ १आ, संपूर्ण वि. १९०४, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण. " अनंतगु०. ८४८०९. दिवानी सझाइ, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. १, वे. (२५x१२, १२४३१). ३० निविधाता नाम, मा.गु., गद्य, आदि दूध विगय ५ दही५ घृत; अंतिः पक्कवान विगयमें नहीं. २. पे नाम. नवतत्व रूपीअरूपी भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि एकसे अठ्यासी भेद रूप; अंति: (-). ८४८०७. सेडुंजगीरीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४१२, ११४३६). "" शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव, ऋषभदास, मा.गु, पद्य, आदि श्रीसेजो तीरथ अति पाव ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ८४८०८. (+) ३ वेदरी अल्पाबहुत्व जीवाभिगमपडिवति, संपूर्ण, वि. १९५३, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. लींबडी, प्र. मु. चनणचंद (गुरु मु. सोभागमल): गुपि. मु. सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अल्पाच. अंत में 'मोटा उपाश्रयने मध्ये उत्तर्या दीन अठारे रह्या चरमालीये अतापनालीवी उठासुं बिहार करीने वडवाण शेहर गया १० दिन रह्या पछे कांप गया ८ दिन रह्या' ऐसा उल्लिखित है, संशोधित, दे., (२५x१२.५ २९४६९). , जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहुत्व विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि १ सुक्ष्मनिगोद अप्रज; अंति: काइया नपुंसक יי औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि दशधारी दिवो कह्यो ए अति प्रगटे घटमां सदाय, For Private and Personal Use Only ढाल - २, गाथा - १५. ८४८१०. प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४१२.५, ११x४४-४८). Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org १. पे नाम, प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, पृ. १९अ, संपूर्ण. प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुराज; अति जिन सेवानुं कोड, गाथा- १४. २. पे. नाम महावीरस्वामीनु स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि जगपती तारण श्रीजगदेव अंति: संवत नैवासी अष्टमी, गाथा ५. ८४८११. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अस्पष्ट है. वे., (२७४१२, १२x४६-५२)दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: १ नोकारवाली गुणावी . ८४८१२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ६, दे. (२६१३, १२३० ). " १. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-६. २. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जय जय नाभिनरिंदनंद, अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि सोलम जिनवर सांतिनाथ अति लहियै कोडि कल्याण, ८४८१३. २४ दंडक नाम व भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, दे. (२६४१२, १३४३२). गाथा - ३. ४. पे. नाम, नेमिजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि प्रह सम प्रणमो नेमि, अंति क्षमा० करे प्रणाम, गाथा- ३. ५. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि पुरसादाणीय पासनाह, अंतिः प्रगटै परम कल्याण, गाथा - ३. ६. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि बंदु जगदाधार सार सिव, अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १ तक लिखा है.) २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: संसारी जीव च्यारगती अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "त्रियंच पंचेंद्री जीवना भेद जाणवा" तक लिखा है.) 3 ३६३ ८४८१४. सिद्धचक्र नमस्कार व नवपद स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. ले. स्थल. दमणविंदर, पठ श्रावि. कंकुचाई; श्रावि. मोतिबाई; प्रले. पं. रुपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, ११४३९). १. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसाधन असंख्य जे; अंति: बोलता पामे मंगलमाल, गाथा-६. २. पे. नाम. नवपदनी थोय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणेसर अतिअल; अंति: भाण० सानिध करजो मायजी, गाथा-४. ८४८१५. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१२, ११३६). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि माहरू डुंगरीये मन; अंतिः सिद्धिविजय गाथा - १३. ८४८१६. सिखामण सज्झाय व हितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२७४१२, १२४३१). For Private and Personal Use Only सुखवास हो, Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, सिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तु पाटण जेवां; अंति: रत्नविजयन्नाव्या कामे, गाथा-१२. २. पे. नाम. हित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजी घरबार सारु मिथ्य; अंति: रत्नविजय०पामर प्राणी, गाथा-१२. ८४८१७. सीवपुरनगर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३५). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: नय कहै सुख अथाग हो, गाथा-१६. ८४८१८. पर्यषणपर्वादि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७४१२.५, १२४३३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मणि रचित सिंहासन बेठ; अंति: संघने शासनदेव सहाई, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ स्तुति, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रेमे; अंति: गुरु पसाई मंगल करु, गाथा-४. ३. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीपजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिसरवर द्विप; अंति: देवी सांनिध्य कीजे, गाथा-४. ८४८१९. पोसह विधि व संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४४४). १. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहली इरिआवहिपडिकमिइ; अंति: संदिसाउ ख० बहुल करु. २. पे. नाम. संथारापोरसीनी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ८४८२०. पार्श्वजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. धर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पासजी; अंति: धर्मनी भवो भव भावना, गाथा-६. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेन्सिल से लिखी है तथा १अ पर पूर्ण किया है. मु. यशकीर्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुज मन; अंति: बुध जगिसके जई केज्यो, गाथा-५. ८४८२१. (+) श्रावक ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. आ. अमृतचंद्रसूरि; पठ. श्राव. लक्ष्मीपति शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६.५४१२, ११४३३). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंति: पंडित मरण होइज्यो. ८४८२२. पंचकल्याणक मंगल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कुसलगढ, जैदे., (२६४१२, १५४३५). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि पंच परम गुरु; अंति: जिनवरदेव चहु गह गयो, ढाल-५, गाथा-५०. ८४८२३. थुलीभद्रमुनिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. कल्याणजी नरोत्तमदास लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:थुलिभद्रनिसज्झाय., जैदे., (२६४१२.५, १२४३६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलिभद्र मुनिगुण; अंति: गाथा-१७. ८४८२४. (-) ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२.५, १३४३२). ग्रहशांति स्तोत्र-लघ, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-१०, (वि. प्रारंभ में विधि दी गई है.) ८४८२५ (-) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. वलाद, प्रले. पंन्या. शिवरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ प्रसादात्., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १४४२३-२६). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम 'जिनपद' लिखा है. ग्रहशातिस्तान For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३६५ मु. अमरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उस मारग मति जायरे मन; अंति: देख देत देखाय रे, गाथा-६. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम 'जिनपद' लिखा है. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मुगतपुरी सुर; अंति: आनंदघन० पाप समे समे, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: कबु मुक्त जाना होइतो; अंति: रूपचंद० आपे बेज्यानी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ.१आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: लागत बुंद कटारी लाग; अंति: सूरदास० जीते हम हारी, गाथा-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: बुदे भीज मोरी सारी; अंति: सूर० रीया प्यारी रे, गाथा-५. ८४८२६. चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, २५४५६). भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: संख्यातगुणा ८४८२९. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२९). कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडो किमही; अंति: साचो करि जाणुं हो, गाथा-९. ८४८३०. विविध स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ९, जैदे., (२६.५४१२, १८४३५-३७). १.पे. नाम. संभवजिन गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. संभवजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तो बांध मगावु आठ चोर, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्यानमां३ हम मगन भऐ; अंति: जस कहे। मैदान में, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: बलीहारी हुं नेमरायरी; अंति: निश्चै सुख पद पायरी, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्रुवपद रामि हो सामि; अंति: आनंदघन महि माहि, गाथा-८. ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सविधि; अंति: मोहनविजय कहे सिरनामी, गाथा-७. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: मेरो चिदानंद अविनासी; अंति: ब्रह्म अभ्यासी हो, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनराज हमारे दिल; अंति: सरस सुधारस मे लस्यां, गाथा-६. ८. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीस्युं बांधी; अंति: मुने वालो जिनवर एह, गाथा-७. ९. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: जयो शिवादेवी मल्हार, गाथा-७. ८४८३१ (+) स्नात्र पूजा व लूण उतारण विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४४५-४७). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाडलिपुर, प्रले. मु. नयनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. स्नात्रपूज ना विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)प्रथम पवित्र होई, (२)चउतीसे अतिशय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६२. २. पे. नाम. लूण उतारण विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लूण उतारण गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो जिनवर अंगे; अंति: (-), (पू.वि. "सुरशैलचूला" पाठ तक है.) ८४८३२. सीमंधरस्वामि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२७४१२.५, १२४३६). सीमंधरजिन स्तवन, म. विजयदेवसरि शिष्य, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: पुरवपन्ये पाये रे, ढाल-६, (प.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ८४८३३. (+#) सोल सूपना, अपूर्ण, वि. १९१९, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. रामलाल (गुरु मु. सीताराम साधु); गुपि. मु. सीताराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, २३४३७). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलपुर नामे नगर चंद; अंति: रिष जैमल करी जोडो रे, गाथा-४२, संपूर्ण. ८४८३४. संजतीमुनि सज्झाय व अभव्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सझायप्रत., जैदे., (२७४१२, ११४३७). १. पे. नाम, संजयराजऋषीनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संजतीराजा सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरु सरीखो संयम; अंति: भाखे उदय सुभद्र, गाथा-९. २. पे. नाम, अभव्य सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेस न लागे अभव्यने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८४८३५ (+) भूयस्कारखंध अल्पत्तरबंध अवस्थितबंध लक्षण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२७४१२, १९४४८). भूयस्कारखंध अल्पत्तरबंध अवस्थितबंध लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: उपशांत मोहादिक तीन; अंति: मोहनीना बंधस्थानक, संपूर्ण. ८४८३६. (+) जंबूपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जंबूपुच्छा., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४२८). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा पूर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८४८३७. (+) रत्नमाला प्रश्न व कर्मफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १२-१४४२६-३३). १.पे. नाम. रत्नमाला ग्रंथना प्रश्न, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९११, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ११. प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे सीष्य पुछे हे; अंति: घणा ज दुर्लभ छै, प्रश्न-६५. २.पे. नाम. कर्मफल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. रा., पद्य, आदि: हो सामी गलाने वीषे; अंति: घणा खावे ते क०, गाथा-२०. ८४८३८. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ४४४२८-३३). स्नात्र पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंति: (-), (पू.वि. इंद्रासन कंपन ढाल अपूर्ण तक है.) ८४८३९ समोसरणविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. वा. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३०-३१). साधारणजिन स्तवन-त्रिगडाअधिकारमय, ग. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७०९, आदि: सिद्धारथ कुल चंदलो; अंति: रे सफल फलि मुझ आस रे, गाथा-१९, (वि. रचना वर्ष १७९१ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३६७ ८४८४० (-) उदाईराजा चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५४१२, १५४३१-३५). उदाईराजा चौढालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८४८४१. गुरुगुण भास व जिनप्रतिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३२). १. पे. नाम, गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जंगमतीर्थि चालता; अंति: मलयो हेजे छइ मनमांहि, गाथा-१०. २.पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमिणि मनिधरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८४८४२. (+#) कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४३६). कलियुग सज्झाय-मेघवर्षा, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रइ मेघ तेडावीआ; अंति: (-), गाथा-३४, (वि. अंतिमवाक्य खंडित ८४८४३. (+) उपधानतप मालापरिधान गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. वल्लभ लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३७). उपधानतप मालापरिधान गीत, पुहिं., पद्य, आदि: भाई अब माल पहेरावो; अंति: संसार तणो लहे पार, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८४८४४. भगवतीसूत्र सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नही है., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४४५). १.पे. नाम, भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगवती सतक पहिल; ____ अंति: सूख पामिय रे लालै, गाथा-१७. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, म. भेरूदास, मा.गु., पद्य, आदि: म करि रसरंग पीया; अंति: नर नार जे सीयल पालै, गाथा-७. ८४८४५. (#) औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४१). १.पे. नाम. सीखामण आत्मानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधिकापुर, पे.वि. श्री आदिश्वरजी तथा शांतिनाथजी प्रासादात्. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल० जिन चरण जनम; अंति: नवी गर्भावासे अवतरे, गाथा-२५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, प. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउला मंडण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८४८४७. (+) नेमराजुल संवाद चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ९४४१). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ तक लिखा है.) ८४८४८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३०). औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आ संसार असार छे रे; अंति: सोमवि० चेतो रे चेतना, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४८४९ (+) हंडी प्रतिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १०४३२). जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमां; अंति: मान० सुगुरुने सीस, ढाल-२, गाथा-२१. ८४८५० (+) बासठमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ३७४१३-२८). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव१ गइ२ इंदि३ काय४; अंति: असन्नी आहारक अणाहारी. ८४८५१. रूपसीह गच्छनायक भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. आणंद ऋषि (गुरु मु. वणायग ऋषि); गुपि. मु. वणायग ऋषि; पठ. सा. लीला आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भास आचार्यजीनी., जैदे., (२७४१२, १७X३८). रूपसिंह गच्छनायक भास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुभमती वीनवुजी; अंति: रूपसीह० चंद्रदिवाकर, गाथा-२७, प्र.ले.पु. मध्यम. ८४८५२. वरसिंह गच्छपति चौढालिया व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. रामजी; अन्य. सा. वीरबाई आर्या; सा. कुंअरिबाई; सा. रूपाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चोढालिउं., जैदे., (२६४१२, १३४४३). १.पे. नाम. वरसिंह गच्छपति चौढालिया, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. संकर, मा.गु., पद्य, वि. १६१४, आदि: गोअम गणहर पाये नमी; अंति: संकर० संघ सहू जेकार, ढाल-४, गाथा-२६, प्र.ले.प. सामान्य. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वडपणनि वचारी जोजो; अंति: परि बट्ठो रे वडपण, गाथा-५. ८४८५३. (+) गुरुविहार गहुंली व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३७). १.पे. नाम. गुरुविहार गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज रहो मन मोहना तुम; अंति: (-), गाथा-११, (वि. १०वीं गाथा तक पाठ समान मिलता है तथा ११वीं गाथा में किसी अन्य कृति का पाठ देकर कृति को ११ ही गाथाओं में पूर्ण कर दिया है, जबकि यह कृति १७ गाथात्मक है।) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-धर्ममहिमा, मा.गु., पद्य, आदि: चोसठि दीवा जिहां बले; अंति: ज्या घर धर्म न हंत, दोहा-१. ८४८५४. औपदेशिक सज्झायद्वय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १५४४८). १.पे. नाम, आत्महितोपदेश स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. गुणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित धारो वाता; अंति: गुणचंद० वात कल्याणकी, गाथा-७. २. पे. नाम. आतम उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: इण जुगमें माया; अंति: करमसी० वार हजारी रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरवा रे गुण तुम तणा; अंति: जस० प्राण आधारो रे, गाथा-५. ८४८५५. (+) अंगलमान व पालामान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४६४). १.पे. नाम. अंगुलमान विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)से किं तं अंगुले, (२)कुण ते आत्म आंगुले; अंति: आंगुल असंख्यातगुणा. २. पे. नाम, पालामान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ३६९ मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लाख जोजन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आवल का समय अपूर्ण तक लिखा है.) ८४८५६. (#) भरतबाहुबली छंद, नेमराजीमती गीत व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५४१२, १६५३४). १. .पे. नाम. भरतबाहुबली छंद, पृ. १अ- ३अ, संपूर्ण, पठ. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. वादीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल देस अजोध्यो अति वादीचंद्र० वखांणी ए. गाथा ५७. २. पे. नाम नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सुंदर सारी बालकुमारी अंति: मनोरथ फलीया, गाधा- ६. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: दान सुपत्त हि गुझ; अंति: एनी मडीयां निरत्त, गाथा- ४. ८४८५७. (+) साधवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४, प्र. वि. हुंडी : साधवंदनापत्र प्रारंभ में 'उगाडे मोठे वांचवी नहीं' ऐसा उल्लेख मिलता है., संशोधित., दे., (२६X१२, १३x४५). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि नमु अनंत चौवीसी ऋषभ अंति हेते कया मुनी गुणसार, गावा- १११. ८४८५८. (+) ऋषभजिन स्तवन, शांतिजिन व अनंतजिन पद, अपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. वे. (२६४१२.५, ११४२५-२८). " १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा - ६. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, गुरुवार, ले. स्थल. पादलीप्त, पे.वि. श्रीशत्रुजे प्रसादात्, शांतिजिन स्तवन, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: शांतिप्रभु वीनती एक; अंति: सूरि मुक्तिपदना आधार, गाथा- ७. ३. पे नाम. अनंतजिन पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण, पू. वि. अन्त में शेठ नरसीनाथ एवं उनकी भार्या वीरबाई द्वारा सं. १९२६ चैत्रसुद १५ में नवपद के उत्सव करने का उल्लेख मिलता है. आ. हर्षवंदरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि जग उद्धारण देव कृपा; अंति: हरष० करु त्रिभुवन धणी, गाथा ४. ८४८५९. शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि. धापू, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६४१२.५, १२४३२). शांतिजिन छंद, मु. दीपसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रीसंतीनाथजीरो कीजे; अंति: मारा मनरि चिंता काट गाथा - १६. ८४८६० (#) २४ जिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४३२-३६). २४ जिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकरने नमु; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन- ९ गाथा १ अपूर्ण तक है.) " ८४८६१. (+) शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८ ) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, १०X२५). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल -७ गाधा-१३ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८४८६२. इरिवावही, इग्यारै अंग बारे उपांग सज्झाय व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैवे. (२६४१२, १२४२८-३१). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः (-); अंति: विनयविजय उवझाय रे, ढाल-२, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इगयारै अंग बारें उपांग सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ११ अंग १२ उपांग सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अंग इग्यारै सुहामणा; अंति: ज्ञानविमल सुनेहा तो, गाथा-६. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.. चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्लयल्ल; अंति: पास पयच्छिओ वंछिओ, गाथा-२. ८४८६३. नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४३३). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजेगेरी नगरीना वासी; अंति: अवें रामवीजय गुण गाइ, ढाल-३, गाथा-१५. ८४८६४. (+) नगरथराजा व अनाथीमुनि ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६-१९४३८-४५). १.पे. नाम. नगरथराजा ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. हुंडी:नगरथ. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि: दीया बरोवर धरम नाही; अंति: दया तणो बीसतारोजी थे, गाथा-३१. २. पे. नाम. अनाथीमुनि ढाल, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:अनाथी. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस श्रेणक सुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ८४८६५ (+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४४३). १.पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुलाबकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: सोला सीणगार बतीसो; अंति: गुलाबकीरत०सबही बीसरी, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गरभो मत देख सुंदर; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र १ गाथा तक लिखा है.) ८४८६६. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ८४३४). शांतिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नारिये ते नरने भलो; अंति: पद्म० तो लेख लखाउं, गाथा-५. ८४८६७. (#) बीजनी सज्झाय व जिनक्षेत्रपालादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ११४२८-३२). १. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: विजयलबधि०विविध विनोद, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनक्षेत्रपालादि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वीर जगतपती ऋषभ तेरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., असंबद्ध व अपूर्ण पाठ.) ८४८६८. (#) सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पटलावदनगर, प्रले. मु. राजाराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३६). सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. जितसी, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सेजि आरज्या; अंति: जितसी०सोना केरो ठांम, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३७१ ८४८६९. ४७ आहार दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:४२दोष अर्थ., जैदे., (२७४१२, १७४३८). ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्म १ देसिय; अंति: सोलस पंडुगमे दोसा, गाथा-६. ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आहाकम्मं कहतां कोई; अंति: दोष मांडलाना कहीजे०. ८४८७० (+) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. दोलत; पठ. श्राव. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में २० स्थानक का आंशिक पाठ देकर छोड दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, ११४३१-३३). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे मानवभव; अंति: मुगति तणा अधीकारी रे, गाथा-१३. ८४८७१. २४ जिन स्तवन-देहमान व ८४ आशातना स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४५५). १.पे. नाम. २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध; अंति: धरमसीमुनि इम भणे, ढाल-५, गाथा-२९. २. पे. नाम. ८४ आशातना स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनपास जगत्र; अंति: वंदे जैनशासन ते वली, गाथा-१८. ८४८७२. (+) मेरूतेरस स्तवन व मेषादि राशि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मेरूतेरसकोस्तवनम् सही., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४२). १. पे. नाम. मेरूतेरसको स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशी स्तवन-लघु, मु. भूपविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: श्रीसरस्वति प्रणमी; अंति: भूपविजयशीस०वंछित फलो, ढाल-३, गाथा-३०, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम. मेषादि राशी विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अश्विनी भरणी कृतिका; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७ अपूर्ण तक लिखा है. श्लोकार्ध को १ श्लोक गिना है.) ८४८७३ (+) अठावीस बोल सिखामण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४-१५४३४-३७). २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: पहिली सिखामण जेहनी; अंति: कर्णे पिडे नहि. ८४८७४. नेमिजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३९). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सखि श्रावणनी छठ उजली; अंति: शुभवीर० खिण चित्त रे, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहेबा सफल दीवस आज म; अंति: हरख० जुगते गुण गाय, गाथा-८. ८४८७५. (+) मरुदेवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४४३). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आई; अंति: प्रगटी अनुभव सारी रे, गाथा-१८. ८४८७६. दीक्षा विधि, यतिमृत्यु विधि व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:दीक्षाविधि., जैदे., (२६४१२.५, १८४४६). १. पे. नाम. दीक्षाविधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. दीक्षा विधि *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: लगडा उतारी उत्तरासण; अंति: नोकरवाली गणाविइं. २.पे. नाम. यतिमत्यका विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधु कालधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: कोटिकगणवइरी शाखा; अंति: कीजइ नमस्कार चिंतन. ३. पे. नाम, आलोचना गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: आलोअण१ वयर खामेण३; अंति: कायव्वं अंतकालंमि. ८४८७७. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मोतीविजय; पठ. मु. खूबचंद (गुरु मु. मोतीविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ११-१३४४३). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: तारों संसार सारो रे, स्तवन-२४. ८४८७८. (+) अरणिकमनि सज्झाय, औपदेशिक सभाषित व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पेटांक २ व ३ का गाथानुक्रम क्रमशः है., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ५४१६). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर० फल सिधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तमाखु तुं तुरकणी; अंति: हस्त तालिं ददाति, गाथा-२. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औषधिवर्णन पद, सं., पद्य, आदि: आफुबीज पवाडका नोसादर; अंति: करो दादसुं झेर, श्लोक-१. ८४८७९ (4) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १८४४१-४५). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६६. ८४८८०, अढार नातरा व रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९७५, फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार, ले.स्थल. प्रेमदरवाजा अमदावाद, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.प. सामान्य. म. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास; अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. गुजराती लिपिबद्ध यह कृति बाद में लिखी गई है. आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. ८४८८१ (+) समकितरूपी सासरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३९). __ आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. भावप्रभ, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीइं इम जइइं रे; अंति: भावे सिवसुख लहीइं रे, गाथा-८. ८४८८२. आसाढन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, दे., (२५.५४१३, १३४३३). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: अनें आसाढ उलटीयोजी; अंति: हंस० उलट्यो ए जलधार, गाथा-१०. ८४८८३. समोवसरण व सिद्धीतपनुं गरगुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया; अन्य. श्रावि. चंपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १०४३६). १.पे. नाम. समोवसरणनुं गरj, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भवजिननाथाय नमः १०; अंति: खमासमण चोथी बारी. २.पे. नाम. सिद्धितप गरj, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धितप विधि, गु.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सर्व मुक्ति मोक्षनाथ; अंति: गुणधारकाय नमः. ८४८८४. कलावतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७X१२,११४३५). कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि कोसंबिनो राजा; अंति: तारो भवपार रे कलावती, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३७३ ८४८८५. (+) मौनेकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९८, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. ज्ञानसागर; पठ.पं. गजविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२४३६-४१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: कहे कांति० मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ८४८८६. (+) सिद्धाचलजीनं स्तवन व पार्श्वचिंतामणि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेदपाटी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ९x४२). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी- स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सीद्धाचलगीरी भेट्या; अंति: रे धन्य भाग्य हमारां, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वचिंतामणि स्तोत्र, प. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिपार्श्वस्तु, श्लोक-७. ८४८८७. १२ मास नवकारसी कालमान कोष्ठक व १२ मास समयदर्शन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, २५४१४). १.पे. नाम. १२ मास नवकारसी कालमान कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मागसर सुद १थी सुदि; अंति: (१)सुदि १थी सुदि १५, (२)कलाक ९ मिनिट १२. २. पे. नाम. १२ मास समयदर्शन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पोससुदमां कलाक ९; अंति: मागसर० क० ९ मिनिट १२. ८४८८८. (+) चैत्रीपूनिम को तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९३५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. श्राव. अवीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, १३४४४). १. पे. नाम. चैत्रीपूनिम को तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिणवरनै; अंति: साधुकीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: मन सव पर अशवार है मन; अंति: पर तब इह डूबनका सांग, गाथा-२. ८४८८९ देवसीराइ, आलोयण व काउसग गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. साधदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., पृ. १अ, संपूर्ण. __ साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: ते मिच्छामि दुकडं. २. पे. नाम. रात्री आलोयण गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: मिच्छा मि दुक्कडं. ३. पे. नाम. गोचरी आलोयण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहि असाविजा; अंति: साह देह साधारण, गाथा-१. ४. पे. नाम. काउसग्ग गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयणासन्नपाणे चेइअसिज; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. ८४८९० (4) चंदनबालानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ८-१२४३३-३५). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४८९१. सांतिनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१२, १२४३३). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१. ८४८९२. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३२). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वृद्धमान जिन विनवू; अंति: रलियामणो परमकृत उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ८४८९३. आत्मरत्नचिंतामणि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, १२४२६-२९). औपदेशिक सज्झाय-नरभवरत्नचिंतामणि, मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: आ भव रत्नचिंतामणि; अंति: जीव अनंता तरीआजी, गाथा-१३. ८४८९४. झांझरियाऋषि व मेतारजमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३०-३२). १. पे. नाम. झांझरियाऋषीनी सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. झांझरियामनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: सहु वृंदा रे, ढाल-४, गाथा-४३, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम. मेतारजमुनीनी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मेतार्यमनि सज्झाय, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरुजी; अंति: साधुतणी ए सिज्जाय, गाथा-१४, प्र.ले.पु. सामान्य. ८४८९५. प्रदेशी सज्झाय व नेमजिणंद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १८४४२). १.पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: तेजसिंह० वड अधिकार ए, (पू.वि. गाथा-३५ से है.) २.पे. नाम. नेमजिणंद स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: नेमजी हो पेखी पशु; अंति: रिद्धहरख कर जोडि, गाथा-२०. ८४८९६. नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ८x२६). नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: त्वं तजि यक राजुलनार; अंति: जनदास सुणु जनवर रे, गाथा-४. ८४८९७. (+) दसपच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:दसपच्च०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, ९४२३). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नम; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ८४८९८. (+) नेमनाथजीनो पखवाडीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नेमजीपख., संशोधित. कुल ग्रं. ५०, दे., (२६.५४१२.५, ११४४५-४८). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, म. माणेकविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८२५, आदि: पडवे पीतांबर प्रेमदा; अंति: जुगमें राख्या नाम, गाथा-१५. ८४८९९. सिद्धाचलगिरिराज चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बाव, प्रले. पं. रंगसागर; पठ. श्रावि. भुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७९१) जब लग मेरु अडग है, (१२७५) कर गरदन कर बेडवी, दे., (२६.५४१२.५, ११४३०). शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (१)विमल केवल ज्ञान कमला, (२)प्रथम खमासण देइ; अंति: पास सांवल, चेइ रे, गाथा-७, (वि. विधिसहित.) ८४९०० (+) वासक्षेपपूजा व जिनलब्धिसूरि वधावो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३७५ १. पे. नाम, वासक्षेपपूजा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जस० कोई नही अधूरी रे, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनलब्धिसूरि वधावो, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सारा श्रीसंघनी हो; अंति: लालचंद० वरस प्रतपीजै, गाथा-७. ८४९०१. दीवा सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १०४३०). १. पे. नाम. दीवा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दशधारी ए दीवो कहो ओ; अंति: तो निश्चे मुक्ते जाय, ढाल-२, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: उदयरतननी वीनति; अंति: मोक्षपुरिमां वास. ८४९०२. पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लाकडीआनगर, पठ. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, ___ गाथा-२७. ८४९०३. महावीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४२८). महावीरजिन स्तवन-आमलकी क्रीडा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: माता त्रिसला नंद कुम; अंति: माताजी सुख पावे रे, गाथा-९. ८४९०४. मौनएकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४४०). एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा-१५. ८४९०५ (+) नववाड्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२, १०४३३). ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: गुरूने चरणे नमी समरी; अंति: उदयरत्न० जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ८४९०६. पद, गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६.५४१२.५, ११४४२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवसर बेर बेर नही आवे; अंति: समर समर गुण गावे, गाथा-५. २.पे. नाम. राजुल निवेदन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखत ही चित्त चोर लि; अंति: शिव सुख अमृत पियो, गाथा-३. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... शांतिजिन पद, मु. रायसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: उठ प्रभात प्रात भयो; अंति: श्री श्रीजिन केहवो, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आंगण कल्प फल्यो री; अंति: समयसंदर० सोहिलोरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी गति मेरी मति; अंति: राजुलकी विनय वीनतिया, गाथा-४. ८४९०७. (+) सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३५). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाये; अंति: पोहर १२नो सूतक जाणवो. ८४९०८. नेमिजिन ४ चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चार चोक., दे., (२७४१२.५, ११४४२-४७). नेमिजिन लावणी, म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल; अंति: गाइ मतजे कोडे परभु, ढाल-४, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४९०९ (+) आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४३७-४२). आत्मनिंदा भावना, म.ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन; अंतिः सो नर सुगुण प्रवीन. ८४९१० (+) आत्मशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, १२४३९). औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: पूजा देव गुरू सेवा; अंति: धर्म चित्त धरणां, गाथा-१५. ८४९११. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १३४३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४९१२. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, भाद्रपद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, नागोर, दे., (२६.५४१२.५, १६४५२-५५). नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: राजुल उभी विनवे रे; अंति: (१)वारी करे धरमरो काम, (२)अवघर अयजाद सांभलाजी, गाथा-२२. ८४९१३ (+#) समतारस सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९५, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. केकीद, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समता., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४५१). औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभु, मा.गु., पद्य, आदि: जेह हुवा उतसपरांणी; अंति: मतासु सीव प्रमाणो रे, गाथा-५५. ८४९१४. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३४). स्नात्र पूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शांतिनाथ कुसुमांजली गाथा अपूर्ण तक नहीं है व मंगलदीवो अपूर्ण तक लिखा है.) ८४९१५ (+#) दशक्षेत्र अतीत अनागत वर्तमान चोवीसीजिन विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, २२-२६४३४-५०). अतीत अनादि वर्तमान चौवीसी नामादि-१०क्षेत्रे, मा.गु., को., आदि: जंबूद्वीप भरते अतीत; अंति: करे कराववी अनुमोदवी. ८४९१६. जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७४१२.५, १६४१९). जीवाजीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८४९१७. औपदेशिक सज्झायद्वय व सात कुव्यसन लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२७४१२.५, २८x१६-१९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राम शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: हैं जैनी वो ही जो; अंति: सतसंग के वेठ उजालें, गाथा-६. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-हिम्मत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. राम शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: वुधी धोवन कहेरी जकसे; अंति: सीसराम नहीं धारो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सात कुव्यसन लावणी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ व्यसन लावणी, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: चोरी जुवा मास मद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८४९१८. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नवकारछंद., दे., (२७४१२.५, १५४४२). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: रीध वृध संपद लहे, गाथा-१७. ८४९१९ हितशिक्षोपदेश सज्झाय, संपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १. दे.. (२७४१२.५.११४३४). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुणगाय, गाथा-१६. ८४९२०. शत्रंजयतीर्थ थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२७४१३, ११४३३). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय तीरथ सार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३७७ ८४९२१. नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, १३४४१). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: साधुने कोइ न तोले हो, ___ ढाल-३, गाथा-११. ८४९२२. महावीरजिन हालरड व क्षमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १३४३०-४०). १.पे. नाम. महावीरजिन हालरडु, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, १३, ले.स्थल. विसलपुर, प्रले. श्राव. मोतीलाल मनसुखराम शा, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: जो दिपविजय कविराज रे, गाथा-१७. २.पे. नाम. क्षमा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: खेमा करो क्रोधने दुर; अंति: करो क्रोधने दूर टाली, गाथा-११. ८४९२३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १५४४२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-५ तक है.) ८४९२४. पंचपदरी बंदणा, संपूर्ण, वि. १९४८, भाद्रपद शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १८४५७). पंचपद गुणवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पले पद नमो अरिहंताणं; अंति: माहरो नमस्कार हो. ८४९२५. ५६३ जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १५४९). ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-)... ८४९२६. पार्श्वनाथ छंद-गोडीजी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ११४३७). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गौडी धणी से; अंति: उदयरत्न० जाल त्रोडी, गाथा-८. ८४९२७. (+) मालारोपण विधि व देववंदन अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४५८). १.पे. नाम. मालारोपण विधि, प. १अ, संपूर्ण. __उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: खमा मुहपत्ति पडि; अंति: विशेष तप विलोक्यते. २. पे. नाम. देववंदन अधिकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा ८४९२८ (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. विवेकविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमरासो., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४२). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-७७. ८४९२९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३१). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन रे; अंति: भक्ति वसे भगवान रे, गाथा-११. ८४९३०. महावीरजिन पदद्वय व मनभमरा भ्रांति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १५४३९-४१). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. सांकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जरी सामुं जुओने महाव; अंति: सांकलचंद०तारो तीर रे, गाथा-५. २. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. केशवलाल शिवराम, मा.गु., पद्य, आदि: जरी सामे जोवोनी; अंति: केशव०नीर छांटो छरररर, गाथा-५. ३. पे. नाम. मनभमरा भ्रांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मनभमरा भ्रांति पद, श्राव. सांकलचंद, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: अरे जीव भमरा भूल्यो; अंति: भणे अरे जीव भमरा, गाथा-५. ८४९३१. (+) अष्टमद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ११४४१). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे महामुनि वारिई; अंति: अविचल पदवी नरनारि रे, गाथा-११. ८४९३२. (#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ९४३३). शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंदा तुं साहि; अंति: तिविजय प्रणमइ नीसदीस, गाथा-५. ८४९३३. (#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लखनऊ, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष),प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १५४४२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षाथी पहलइ दिवसइं; अंति: प्रथम विहार करावीजै. ८४९३४. कार्तिकशेठ कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४६). कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, आदि: पाछले भवें कार्तिक; अंति: छै पूर्वभवनुं नाम. ८४९३५. सीमंधरजिन स्तवन व माणिभद्र आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १०४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पृ.वि. वस्तुतः युगमंधरजिन स्तवन है किंतु प्रतिलेखक ने सीमंधरजिन स्तवन लिखा है. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे पामी अति; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. २.पे. नाम. माणीभद्र आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर आरती, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: जे जे नीधी माणकदेवा०; अंति: दीपविजय०पुरो सवि यास, गाथा-७. ८४९३६. सकलजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वढवाण शहेर, प्रले. श्राव. झवेरचंद गुलाबचंद शाह; पठ. श्रावि. दीवालीबाई जीवा संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ८४३३). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हमेरे तमारेने तमेरे; अंति: जगतारण जग जय नेता, गाथा-१०. ८४९३७. जिनेंद्रसूरि, गुरुगुण गहुँली व सिद्धगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२४३९). १. पे. नाम. जिनेंद्रसूरि गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि गहंली, म. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली सह मिलि; अंति: कोडि कल्याण रे, गाथा-११. २. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५. गुरुगुण गहुंली, मु. हीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोहमसामी आव्याजी; अंति: हीरसागर जस सवाया जी, गाथा-७. ३. पे. नाम, सिद्धगिरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीद्धगीरी वंदो भवीका; अंति: ज्ञानविमल० गुण गाई, गाथा-८. ८४९३८. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दिक्षावि., संशोधित., दे., (२७४१२, ११४३९). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति:१ नोकारवाली गुणावीइं. ८४९३९. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:उत्तराधेन., जैदे., (२७४१२, १५४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८४९४०. अइमत्तामुनि सज्झाय व शीयल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, २०७३३). १. पे. नाम, अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: हम घर वेर नव्यीस्या, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, मा.गु., पद्य, आदि: रीस चढी बोलै छै राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक ८४९४१ (4) औपदेशिक पद, स्तुति व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १९४३८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पहिं., पद्य, आदि: पालो पालो रे संजम कि; अंति: मिलि एह विरिया रे, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो मेटो रे भवीक जन; अंति: तिलोक० सुविसाली रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-लोभ परिहार, म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: छोड़ो छोड़ो रे कपवट; अंति: थने शिववधु वरणी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मानो मानो रे सुगुरु; अंति: तिलोकप्रभु सरण हेणी, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भइ रे वटाउ जागो; अंति: उवट पंथ सिव जागो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: चेतो चेतो रे चतुर जग; अंति: तिलोक० गामे चोटा रे, गाथा-५. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: काटो काटो रे काल की; अंति: तिलोक० नही खासी रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मानो मानो रे सिखामण; अंति: अमृत शिव तेरी रे, गाथा-६. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: सतगुरुजी कहे जग; अंति: करु प्रभुजी जपना रे, गाथा-४. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: करा करो कर्म से दंगा; अंति: तिलोक० रंग अथंगा रेक, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रात्रिभोजन त्याग, म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मत करो रे भोजन निसि; अंति: फल अति सुखदाई रे, गाथा-६. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नमो नमो रे देव; अंति: दीजो मदाई भगवंता रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नम गुरु जपो रे आप; अंति: विचल वीस वसैया रे, गाथा-६. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: धर्मरूपी वनाय लो; अंति: कहे धर्म गह्या रे, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: करो गानादिक को अजवाल; अंति: मुकति को मालो रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सुध सम्यक्त वरत रस; अंति: म तिलतर जड टींचो रे, गाथा-६. १७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-तपविषे, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तपस्या करो भव; अंति: करे सो वरे विराणी रे, गाथा-५. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, म. तिलोक ऋषि, पहिं., पद्य, आदि: मत करो चतर अभिमाना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८४९४२. हीराणंदसूरि यसवेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १६x६२). हीराणंदसूरि यशवेलि, ग. शुभंकर, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वरदाइनी; अंति: शुभंकर राजकरउ गछराउ, गाथा-७४. ८४९४३. (+-) पंचमआरा सज्झाय व दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १५-१९४३५). १. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सकलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: आरा पांचमा कलजुग; अंति: अचारी सबका जै जैकारा, गाथा-१२. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल नल्यो धरम; अंति: जेतसी धरमसु जय जयकार, गाथा-१३. ८४९४४. (+) चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लखतर, प्रले. श्राव. जसराज रायचंद; गृही. श्राव. मलुकचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,११-१३४३५). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले; अंति: रायचंद०लोक में जाय, ढाल-४, गाथा-३७. ८४९४५. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:श्रावकरो पडिकमणा., दे., (२६४१२, १६४३७). आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आवसही इछाकारेण संदेस; अंति: त्रिकाल वंदना होज्यो. ८४९४६. अढारनातरा सज्झाय, औपदेशिक पद व मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२,१३४३१-३२). १. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक ही माइ तिण मुझ; अंति: अठारह न्याते भाखे, गाथा-८. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चाले; अंति: चढि बैठे ते निकले, गाथा-४. ३. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८४९४७. समवसरण व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १६x४०). १.पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. समवसरण रचना स्तवन, म. अमरविबोध, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: तेहने सिद्ध फल दाखे, गाथा-२३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: उदयरत्न० जाल त्रोडी, गाथा-८. ८४९४८. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १३४४०). नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, म. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जिनचंद्र गुण गावै रे, गाथा-१५. ८४९४९. राखी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. वीरंदेउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राकीकोसतवन., दे., (२५.५४१२, ९४३८). For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३८१ गाथा - १०. राखी स्तवन, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राखी तहेवार करो धर्म; अंतिः सुखे भवजलनीधी तीरीये, ८४९५०. २४ दंडक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५४१२, १९४२१-३०). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४९५१. (+#) महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२५.५५१२, १५५४०-४६). " महावीर जिन स्तवन- पंचकल्याणक मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि शासननायक शिवकरण बंदु अंति: लहे अधिक जगिस ये, ढाल -३, गाथा-५६. ८४९५२ (#) आषाढाभूतिमुनि पंचदालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११.५, १३३०). זי आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल २ गाथा ११ तक लिखा है.) ८४९५३. बुढापा चौपाई व साधुलक्षण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जै, (२५.५x१२, २१४३८-४१). , १. पे. नाम बुढ़ापा चौपाई, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि नीरधन के घर बेटी जाई; अति धर्म बीना जीवनी कमाई, ढाल १२. २. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: त्यारण तिरण जिहाज; अंति: जी ते पावे भवपार, गाथा-१३. ८४९५४. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२५.५X१२, ३७x९-१८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ३ दिने० सीवरतन पदनो. ८४९५५ पटअड्डाइ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४१२, १०x३६). " ६ अट्टाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८३४ आदि श्रीस्याद्वाद सुधोदध, अंति: लक्ष्मी० मंगल पाइया, ढाल - ९, गाथा - ५४. ८४९५६. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५४१२, १३x२८) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वर वरस हजार, गाथा - १४. ८४९५७ मृगापुत्र, जंबुकुमार व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे. (२६५१२, १५x२७-३०). १. पे नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि सुग्रीवनवर सुहामणो अंतिः सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२१. २. पे नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक नरबर राजिओ अंति करो जिम पामो भवपार, गाथा १०. ३. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लखमीरतन० अयमंतो अणगार, गाथा - १८. ८४९५८ (+) साधु पंचभावना, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, खीमेल नगर, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५x१२, १८x४८). साधु पंचभावना. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि स्वस्ति सीमंधर परम; अंति: सुख संपति गृह थावोजी, ढाल ६, गाथा - ९५. ८४९५९. सिद्धाचलजी स्तवन व कमठतापस पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी स्तवनग., जैये., (२५.५X१२, १३X३०). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १८७३ आदि सिद्धाचल सिद्ध सुहाव; अति शुभविर वचनरस गावे रे, गाथा - ११. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कमठतापस पद, पृ.१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुमहि जायवो अश्व खेल; अंति: वे धरनिधर पद पावे रे, गाथा-३. ८४९६० (4) श्रावक व साधु आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १७४३९). १. पे. नाम. श्रावक आलोयणा, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदिः श्रावग समकत भंग जगन; अंति: तीन तेहीज फेर देणा. २. पे. नाम. साधु आलोयणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: समकत अतीचार २ उप०; अंति: सुइ टुट जाव तो बेलो. ८४९६१. (+) शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४२६). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालतणे भवे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ८४९६२. लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४३९). १. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हे री हेरी माई मेरो; अंति: मलज ज्ञान की मैना, पद-५. २.पे. नाम. आत्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, म. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: मन सन रे तेरी सफल; अंति: जिनदास मान नहि नावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म.जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: आप समझका घर नही जाणै; अंति: माल मलकको ठग खावे, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: बैठे विनती गाइ रे, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: सुक्रत की बात तेरे; अंति: सु जोर तेरो नही रे, गाथा-५. ८४९६३. सिद्धचक्र स्तवन व अरिहंतपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३०). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजै स; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१५. २. पे. नाम, अरिहंतपद सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. ८४९६४. (4) पंचमआरानी सज्झाय व १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ११४२५). १.पे. नाम, पंचम आरा की सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच आराना भाव रे; अंति: सांभलजो भवी धीर रे, गाथा-२१. २.पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहला ते प्रणमुंपास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-५ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३८३ ८४९६५. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय व परनारी परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कृपाचंद महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३४). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-६. २. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण परनार; अंति: समझी जावो मुरलीवाला, गाथा-१०. ८४९६६. (+) कामदेवश्रावक व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, २०४४४). १. पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, म. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: कुसालचंदजी की प्रकास, गाथा-१६. २. पे. नाम, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: चोथमल० नित समरो भाई, गाथा-२३. ८४९६७. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:महावीरसमजूती., दे., (२५.५४१२, २४४४२). २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: विश्वा १० लहणुं, (पू.वि. पूर्वाषाढा नक्षत्र अपूर्ण से है.) ८४९६८. नेमीसर बारेमासी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १८४४०). नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: हरखकिरत० सुख पाबै, गाथा-२६. ८४९६९ (+) सर्वव्रत भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४५३). सर्वव्रत भेद-४९ भांगा, सं., गद्य, आदिः तत्राद्यव्रते २१ तत; अंति: अत्र षड्० स्थापनायाः. ८४९७० (+) प्रतिक्रमणविधि, स्तुति व अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहली बंदेहू; अंति: तवन अजितशांति कहै. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ हिस्सा, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: रक्षतु क्षेत्रदेवता, श्लोक-३. ३. पे. नाम. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८४९७१. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १०४४७). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी समरी मात; अंति: शिललच्छी तस वरे, गाथा-१६. ८४९७२ (+) देवसीप्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १६x४७). देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: श्रीमते शांतिनाथाय. ८४९७३ () नेमराजिमती लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४२८). नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: हेरी हेरी माई मेरो; अंति: तरसे हमारे नेणा, पद-५. ८४९७४. (#) क्षामणाविधि स्वाध्याय, सिद्धदंडिका स्तवन व बारपर्षदा स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, अन्य. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ४९४२३-३०). For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. खामणाविधि स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. ३. पे. नाम. बार पर्षदा स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद; अंति: संभूषितं पातु वः, श्लोक-१, (वि. यंत्र सहित.) ८४९७५. २० स्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १०४३३). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहुं; अंति: खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा-१४. ८४९७६. पंचपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगुरुदेव के चरणार; अंति: मिलहं सहज सुभायसू, गाथा-६६. ८४९७७. (4) पार्श्व पोखणा स्तवन व प्रभु पोखणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ९x४८). १. पे. नाम. प्रभुना पोखणानो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभु पोखणा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे इंद्राणी पूछे व; अंति: प्रभुने एम पोखीयाए, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन पोखणा, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-पोखणा, मा.गु., पद्य, आदि: वेवाण उठ तुं वहेली; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ८४९७८. (+) संजया विचार व नारीमहिमा गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, २२४४८-५०). १. पे. नाम. संजया विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतक २५ उद्देश ६, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंति: चारित्रना० संख्या ५, द्वार-३६. २. पे. नाम. नारीमहिमा गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तरुण त्रिया नर बृध; अंति: कामन मोहन पास मंगायो, गाथा-८. ८४९७९. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोतीलाल; पठ. य. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: निलकमलदल सामला रे ला; अंति: क्रांतिसागर० मन तुही, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: ज्ञानवान ज्ञानदानेन; अंति: बठकरगं गासर्णपयठ, गाथा-४. ८४९८० (#) चारमंगल पद व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १८४३२). १. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो उजेणी नगरी; अंति: वार २१ तथा १०८ गणीइं. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८४९८१ (4) उदयचंदगुरु स्तुति, नेमराजिमती सज्झाय व चिंतामणिपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १८४३८). १.पे. नाम. उदयचंदगुरु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्वामीजी उदयचंदेजी; अंति: उदयचंद महाराजजी, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: चोकती चतराई पामी; अंति: कीय संगार सार, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: आवुत चिंतामण पारस; अंति: सामीजी पुरो जी आस, गाथा-६. ८४९८२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १०४३०). औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, मु. माधव मुनि, पुहि., पद्य, आदि: भज मन भक्तियुक्त; अंति: माधव० सुमति सयानी का, गाथा-७. ८४९८३. विवाह पद व नंदिषेणमनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०४३४). १.पे. नाम. विवाह पद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य. कबीर, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन पीआजी थारो; अंति: कबीर० नसि घरवासा, गाथा-१०. २.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८४९८४. (#) महावीरजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३०). __ महावीरजिन नीसाणी, पुहि., पद्य, आदि: सरसति मन ध्यांउ मोजा; अंति: सुणता मन रीझंदा हे, गाथा-२२. ८४९८५ (#) २४ तीर्थंकर माता पिता लंछनादि नाम व सिद्ध द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, २४४२४-२८). १. पे. नाम. २४ जिन माता, पिता, लंछणादि नाम विवरणा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सिद्धद्वार विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ३ लोक माहि ए सीझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "असुरकुमारना आया १० सी०१२ सुसमआरामाहि सीझ" पाठांश तक लिखा है.) ८४९८६. (#) आबूतीर्थ स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५). १. पे. नाम. आबुतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ कृष्ण, ८. आदिनजिन स्तवन-आबूतीर्थमंडन, म. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आबगढ रलीयामणो जिन; अंति: कीर्ति०थाए कोडकल्याण, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी रे जो; अंति: इम रामविजय गुणगायजो, गाथा-५. ८४९८७. (#) संतोषछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, २०७२). संतोषछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: सांहामी स्यउं संतोष; अंति: कीधी संघ जगीस __ जी, गाथा-३६. ८४९८८. नेमराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ.१, ले.स्थल. अलवर, प्रले. श्राव. बकसीराम; पठ. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३७). For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, म. खेमो ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीनेमीसर निते नम; अंति: सुखीया बसै क सहीया ए, गाथा-१५. ८४९८९ मौन एकादशीतप विधि व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:मौनएकादशीग्रहणविधि., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३८-४०). १. पे. नाम. मौनएकादशी तप विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मौनएकादशीतप विधि, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रभात श्रीभगव; अंति: २ फेरी दीजै. २.पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समय० कहे करो द्याहडी, गाथा-१३. ८४९९० (+) शारदा स्तुति, मेघकुमार सज्झाय व स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १४-१६४२९-३४). १. पे. नाम, शारदा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शारदामाता स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीन् वीनवु; अंति: भावधरि जिनपूजीयेजी, गाथा-१०. २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघकु; अंति: होज्यो नवहीनेधाण, गाथा-६. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न करजे हो; अंतिः प्रभु रीति प्रीतडी, गाथा-४. ८४९९१ (+) पद्मप्रभु गीत व धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:धनारीसझा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १५४२९-३१). १.पे. नाम. पद्मप्रभु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. पद्मप्रभजिन स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीयु करतार भणी; अंति: इण घरि छइ आ रित, गाथा-५. २. पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: गावै कल्याण सुरंग रे, ढाल-२, गाथा-२२. ८४९९२. बीजतिथि सज्झाय, ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ११४३०-३९). १. पे. नाम. बीजतीथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया तुं वेहलो; अंति: सहिजसुंदर० चोमासे रे, गाथा-६. २.पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक कृष्ण, ७. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: विजयलक्ष्मी० दाया रे, ढाल-५, गाथा-१६. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भमर रोय रुदन मत कर; अंति: कीयो तु नीकलजे नीचंत, गाथा-३. ८४९९३. (+) स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३४). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भल ऊगो दिवस प्रमाण; अंति: सुजाण घणा सुख पावसी, गाथा-११. ८४९९४. औपदेशिक पद, बारमासा व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. हुंडी:सिज्झा०., जैदे., (२५४११.५, १६x४५). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: तुमारो बावो रे बावो; अंति: साधोय दो जख को जावो, पद-१०. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३८७ २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, पुहिं., पद्य, आदि: भावधरी जिन पूजीय मेर; अंति: मुकतना फल होसीजी, गाथा-७. ३. पे. नाम, गुरुगुण बारमासा, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: साधु गुरु मुनिजन; अंति: आपने मुख भाषा भगवंता, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मानवस्वभाव, पुहिं., पद्य, आदि: सोवत न गत नचावत अंग; अंति: केसव० भइया एते कुछन, गाथा-१. ८४९९५ (#) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १२४३४). नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो ऊठो भवि; अंति: वरदायक लाधो वदे, गाथा-१८. ८४९९६. समतीकमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ८४३४). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रेहनी रेहनी रेहनी; अंति: जिनस्तुति अति लटकाली, गाथा-६.. ८४९९७. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२, १७४३७). पज्झाय, मु. जमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामे नगर; अंति: चंद्रगुप्तराजा सुणो, गाथा-२७. ८४९९८. १७० जिन स्तवन व एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. १७० जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १७० जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, म. माणेक, मा.ग., पद्य, आदि: सोल जिनेश्वर श्यामळा; अंति: माणेक भव निस्तार, गाथा-५. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसि रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा-७. ८४९९९. मनिगण सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:सिझाय., जैदे., (२४४१२, १२४३५). १.पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन वस्य; अंति: करुं विनय मांगे सोवे, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहो कुन गती नारी कंत; अंतिः रस रमे रंग अनुसारी, गाथा-६. ८५००० (+) झांझरीयामुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:झांझ०म०., संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४४२). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: इम सांभलता आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. ८५००१. शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १३४३२). शांतिजिन छंद-हस्तिनापरमंडन, आ. गणसागरसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद मात नम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ८५००२ (#) वज्रपुरंदररा चोढालीयो व तीस उपमा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १६४३३). १. पे. नाम. वज्रपुरंदररा चोढालीयो, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सहु हरख्या बाई भाई, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-२३ अपूर्ण २. पे. नाम. तीस उपमा सज्झाय, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधु ३० उपमा सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: तिस ओपमा साधरी रे; अंति: गण गाया हो मुनिसर, गाथा-१२. ८५००३. (4) चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४४४). १.पे. नाम, ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, म. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन युगादिदेव; अंति: जिन कहे अंतरमांन, गाथा-३. २. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संति जिणेसर सोलमा; अंति: जिन भजंता धरि नेह, गाथा-२. ३. पे. नाम. नेमनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम बाल ब्रह्मचारी; अंति: जिनविजय गुण गाय, गाथा-२. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी श्रीपासजी; अंति: चरण भजो धरि नेह, गाथा-२. ५. पे. नाम, महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक समरीइं; अंति: जिन०दिन दिन दोलत थाय, गाथा-२. ६. पे. नाम, पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेवा चउनामसेवा; अंति: भव होजो ताहरी सेवा, गाथा-५. ७. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो सिद्ध; अंति: ठविए भविजनना मन मोहे, गाथा-१. ८. पे. नाम. ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पवृक्षनी छांहडी; अंति: उदयरत्न करु प्रणाम, गाथा-१. ९.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेहला प्रणमु वेहरमान; अंति: नय वंदे बे कर जोड, गाथा-१. १०. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगरी तो चंपापुरी; अंति: अनोपम तेहनी देह, गाथा-१. ११. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भजो भवियण भजो भवियण; अंति: भवियणा पामो भवनो पार, गाथा-१. १२. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तीर्थंकरा मोक्ष कामे, गाथा-५. १३. पे. नाम, सिद्धपद चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाणमाणं चरमालयाण; अंति: नमो ते सिध्य महागुणी, श्लोक-२. १४. पे. नाम, अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५००४. (#) स्थूलिभद्र सज्झाय व क्षेत्रपाल पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, २६x१९-२०). १.पे. नाम, थूलभद्रजी की सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, म. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लबध लिछमी घणी जी. गाथा-१७. २. पे. नाम. क्षेत्रपाल पूजा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जन को उद्योत भरु; अंति: गायो गीत भेरूलाल को, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३८९ ८५००५ (+) शांतिनाथ स्वाध्याय व एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १२४२७). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दसमे भवे श्रीशांतिजी; अंति: दया ते होसे नीरवाण, गाथा-२१. २. पे. नाम. एकादशीनुं तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८५००६. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४४८). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजीनेशर केशर; अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६, गाथा-४८. ८५००७. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, २३४२०). नवपद स्तवन, म. मक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देश मनोहर माळवो; अंति: लहे वरमाळ ललनाश्री, गाथा-१०. ८५००८. नागदत्तशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४१२, १२४३२). नागदत्तशेठ सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि उजेणी रे; अंति: जय जयकारो जिरे, गाथा-४८. ८५००९. कायाकुटुंब गीत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. छाणी, प्रले. ग. जसविजय (गुरु पं. केसरविजय); गुपि.पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कया०., जैदे., (२४४१२, ६४४४). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलु न माने रे काइ; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावना मांहे अनित; अंति: पंडित विचारी जोज्यो, (वि. १८४६, फाल्गुन शुक्ल, ५, ले.स्थल. छाणी) ८५०१०. अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२, २८x१६-१८). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंति: तस न्यायमुनि जय थाया, ढाल-२, गाथा-१३. ८५०११. अरणिकमुनि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १८४३२). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगर अति चालीयाजी; अंति: रतनचंद गुण० ए अधिकार, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण काल रो भरोसो भाई; अंति: करजो धरम रसालो ए, गाथा-१३. ८५०१२. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, ४४३०). आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगल साहेब नाचे; अंति: विनयसागर० मन लावो, गाथा-८. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मरूपिया सेवकनी; अंति: थई मोक्षना सुख पामो. ८५०१३. (+-) आणंदश्रावक सज्झाय व १० श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२,१५४३७). १. पे. नाम. आणंदश्रावक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आनंदश्रावक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (१)गोतम उठ्या गोचरी थे, (२)हाथ जोडी आणंद कहे; अंति: चवन जासी मोख हो सामी, गाथा-१०. २.पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणंदने सेवानंदा रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., मात्र गाथा-१ तक लिखा है.) ८५०१४. अमकासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, १२४२८). अमकासती सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमका ते वादल उगियो; अंति: वीरविजय गुण गावता रे, गाथा-२३. ८५०१५. चंदनबालानो चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१२, १७४६७-७२). चंदनबालासती चौपाई, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: फणिमणि मंडित नील तन; अंति: ते भव पारो रे लो, ढाल-१४, गाथा-९२. ८५०१६. () ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आगलोल, प्रले. पं. गणेशविजय; पठ. श्रावि. धीबाई मोतीचंद हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १९४३३-४१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. ८५०१७. महावीरजिन स्तवन द्वय व समोसरण तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., दे., (२४.५४१२, ९४२१). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सुप्रभु मेरे वीरजिन; अंति: प्रगट कल्याण भयो, गाथा-८. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर प्रभु त्रिभुवन; अंति: शासनपति गुण गाए है, गाथा-५. ३. पे. नाम. समोसरण तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गई थी मे समोसरण; अंति: जीतरा डंका वाजै रे, गाथा-७. ८५०१८. (+) नेमि बारोमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखरी सांभल हे तु; अंति: लील विलासी हौ लाल, गाथा-१५. ८५०१९ सोभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ., (२५४१२, १२४३१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. ८५०२० (4) समयसार सवैया व आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १X४., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१२.५, १६४५२-८२). १.पे. नाम. समयसार कलश की आत्मख्यातिटीका का विवेचनरूप समयसार सवैया-जीव अधिकार गाथा-५३ से ७२, पृ. १अ, संपूर्ण. समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद संग्रह, पृ. १अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: हे अनंत व्यापक सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) ८५०२१ (4) जंबू गोहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२, १३४२७). जंबूस्वामी गहंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीओ मुनिराय; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ८५०२२. (+) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १३४३३). शांतिजिन स्तवन, म. शांतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंदनी; अंति: थायजो संघ मंगलकारी, गाथा-२०. ८५०२३. (+) साधुआचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:जीसामी., संशोधित., दे., (२४४१२.५, १५४३२). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३९१ साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: चालुजी स्वामी घर छोड; अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-५३. ८५०२४. (#) लघुशांति स्तवन व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४२७). १. पे. नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. ___ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. २.पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में "रीषभदेवजी स्तवन" ऐसा लिखा है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म; अंति: मुगति तणा फल त्याह, गाथा-६. ८५०२५ (-) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अस. हुंडी:सतु. हुंडी:सवा., अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११.५, १७४३१-३७). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं, (२)आसोकव्रखं सुरपुफ; अंति: ज्यारे जांणो नरग, (वि. प्रारंभ में नवकारमंत्र बाद में विनोदीलाल व लालचंद ऋषि आदि कृत सवैयादि संग्रह.) ८५०२६. (4) अंतरिक छंद, विजयलक्ष्मीसूरि बारमासो व सुमतिजिन पद, अपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १८४४०). १. पे. नाम, अंतरीक छंद, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: धन ते जिनवचने रमे, गाथा-५६, (प.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरि बारमासो, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हु तो सरसतिने पाये; अंति: तपागछमां० अजूआलू रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नरखत बदन सुख पायो; अंति: तुम वन और देव न आयो, गाथा-४. ८५०२७. २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४१२, १२४२६). २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रप्रभजिन स्तुति तक लिखा है.) ८५०२८. आदिजिनवीनती, स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १७७५, कार्तिक कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. सीरोहिनगर, प्रले. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १०४२५). १. पे. नाम. शेजयमंडन आदिनाथविनती स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयमंडन, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: सुरसति भगवति पाए; अंति: देव देये सिवपुरी, गाथा-२५. | २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिवंस इख्याग; अंति: नंदण बिछोवाहडां वीच, पद-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मातपिता जाणि नही; अंति: दलद्रि हुई पुरज पुरज, दोहा-२. ८५०२९. नवाणुप्रकारीपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १६x४५). नवाणुप्रकारीपूजा विधि, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पूवि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूजा-२, ढाल-२, गाथा-३ तक लिखा है.) ८५०३१. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, प. १. दे.. (२५४१२. ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सहु मंत्र; अंति: अनुपम जस लीजे रे लो, गाथा-१३. ८५०३२. चोवीसजिनवर पनरबोलनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रावण कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कल्पवल्ली, प्रले. श्राव. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, १४-१७४३५). २४ जिन १५ बोल स्तवन, मु. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकमलदलवर नयन कुलह; अंति: निवर राजरत्न सुहंकरा, गाथा-७७. ८५०३३. पौषधव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. मगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, ८४३६). पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो संवर आणीइं; अंति: गुण० करमनी कोडी रे, गाथा-१४. ८५०३४. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४१२.५, ११४३६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८५०३५. चेलणामहासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वेरागढ, प्रले. श्राव. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२,१२४३०). चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: समय० पाम्यो भवनो पार, गाथा-७. ८५०३६. (+) जीस्वामीनी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:जीसामी., संशोधित., दे., (२४४१२, १४४३७-३९). साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: चालुजी स्वामी घर छोड; अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-५३. ८५०३७. (#) विमलाचल स्तुति व शांतिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १०४२६-२९). १. पे. नाम. विमलाचल थुई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेसर समरीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८५०३८. गहंली, भासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १७, जैदे., (२५.५४१२, ८-२०४४६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वरअतिशय कंचनवाने; अंति: उलस्ये आतिमराम हो, गाथा-७. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्यनें; अंति: अमुलक भावना भावो रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर हे के मुनिवर; अंति: पांमे लाभ अपार, गाथा-७. ४. पे. नाम, सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमां; अंति: चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ५. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर मुख्य; अंति: सुख सास्वता हो लाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ. २अ, संपूर्ण. मु.ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकरण व्रत धारता; अंति: पामजो सुख अभंग, गाथा-६. ७. पे. नाम, सुधर्मास्वामी भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावे जिनशासन धणी जी, गाथा-८. ८. पे. नाम, सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक विरनो गणधर अंति: देवचंद्र सूत सत्य रे, गाथा-६. ९. पे नाम. गुरुगुण गहुली, पू. २आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि आगम वयण सुधारस पीजे अति: सकल मंगल घरि लावे रे, गाथा-५. १०. पे. नाम गौतमस्वामी गहली, पृ. २आ-३अ संपूर्ण मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि हे गुणनिधि, अंति: गुहली करो विज्ञान, गाथा-८. ११. पे नाम वासुपूज्यजिन गहुली, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि चंपानयरी अति हे अति: कहे मुझ आस्वा फली, गाथा ५. १२. पे. नाम. महावीरजिन गहुली, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवीर समोसर्या अंतिः पामीजे देवविमान, गाथा- ९. १३. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुधर्मा सेवीइ; अंति: ऋद्धिसौभाग्य सुखसार, गाथा- ९. १४. पे. नाम गौतमस्वामी भास, पू. ३आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु जिनपति हो; अंति: ऋद्धिसौभाग्य दातार, गाथा- ९. १५. पे. नाम गौतमस्वामी भास, पृ. ३-४अ संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि साहिबा गुरु गछपति अंतिः सदा सुख पावती रे लो, गाथा-५. १६. पे. नाम. सुधर्मास्वामी भास, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही ज्यान अति पाप दोहग दुख वामवाजी, गाथा-७. १७. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7 मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे अनुरंगी मुनि, अंति: धर्मनई वरता रे, गाथा- ६. ८५०३९ (+) ६२ मार्गणाए ५६३ जीवना भेद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित दे. (२५x१२ ३४४८-१३). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवता मनुष्य तिर्यंच; अंति: असनि आहारी अणाहारी. ८५०४०. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५X१३, १५x४१). " " पट्टावली - दिगंबर मूलसंघ, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (१) मज्जविसयकसाया० अष्टौ (२)श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), " (पू.वि. आर्य सुहस्तिसूरि के पाट तक है.) ८५०४९. चरणकरणसित्तरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वडवांण, प्रले. श्राव. माणकचंद वीरजी शाह, अन्य. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में 'आ पानुं बेन दीवालीबानुं छे.' ऐसा लिखा है. दे. (२५x१२. ११X३०). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: जगमां कीर्ति वाघोजी, गाथा-७. ८५०४२ (+) आत्मभावना, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५५१२, ३६x२८). आत्मभावना, पुरि., मा. गु, गद्य, आदि: अरे आतमा अरे चेतन, अति दी तो भवि कुं. ८५०४३. विहरमान स्तवन, जिनतीर्थादि नमस्कार व सोल सती स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३. दे., (२४.५x१२, १२४३२). १. पे. नाम विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: मुक्ति मुज आपजे, गाथा-७. २. पे. नाम जिनतीर्थादि नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय गिरनार, अंति: नमस्कार होसो जी. ३. पे नाम. सोल सती स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१. ३९३ For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५०४४. द्वार, विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे ७, ले. स्थल पोरबंदर, प्रले. मोरारजी भगवानजी जोशी; पठ. सा. रुडीबाई माहासति, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५४१२, १७४३९). ', ४. पे. नाम. २० विहरमान नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. १. पे नाम. सिझणा द्वार, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को. आदि: १ पेली नरकना नीकला अति: आठमे समे सीझे तो ३२. २. पे. नाम. जीव आयुष्यमान विचार कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मनुषनु आउषु १२० अति उत्कृष्ट ५ वरसनु, : ३. पे नाम. १० नक्षत्रनाम कोष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण मा.गु., को., आदि: १ मगसिर २ आदरा ३; अंति: १० चित्रानक्षत्र. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीमंदीरस्वामी; अंति: २० अजीतसेन स्वामी. ५. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि इंद्रभूति १ अंति: ११ प्रभास सामी. ६. पे नाम. ११ गणधर माता-पिता नाम पू. २अ, संपूर्ण. 1 मा.गु., को, आदि १ वासुभूति २ वासुभूत अति: १० नंदादेवी ११ अइभदा. ७. पे. नाम. चक्रावोगढ यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५०४५. (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सवाइजैनगर, प्रले. श्राव. बकसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सोलसुपना, संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२५x१२.५, " १६X३०-३२). , चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंतिः ऋष जेमल कधी जोडोरे, गाथा-४५. " ८५०४६. नेमिजिन सलोको, संपूर्ण वि. १९२१ मार्गशीर्ष शुक्ल, १ बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल थराद, प्रले. माणकचंद मेवाराम ठाकुर, पठ. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, अन्य. मानसंग मनोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नेमिजीनो लोको. दे., (२५X१२, ११३३). नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धि बुद्धि दाता, अंतिर न आवें कोइ तस तोलि, गाथा- ५७. ८५०४७. (*) महावीरजिन स्तवन व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २२-२१ (१ से २१ ) = १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१२, १२४३५). יי १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. . देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवचंद्र० प्रकाशे, गाथा-७, (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: चौवीसें जिन गाईवइ अति: पूर्णानंद समाजो जी गाथा ९. ८५०४८, (+) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२, १०x४०). औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: भोलो मन भमरा तुं कां; अंति: तो कांइ आवेजी साथ, गाथा-१०. ८५०४९. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पादलिप्तगाम, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १३x२२-३६). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री अष्टापद उपरे अति भास० फले सघलि आस के, गाथा- २३. ८५०५० (*) औपदेशिक सज्झाय द्वय व मरण प्रकार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे ३, प्र. मु. आनंदसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, १२-१७X३५-३९). १. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटुं बोले; अंति: तेहथी अनुभव लहिये रे, गाथा-१३. २. पे. नाम, आत्म सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतांत; अंति: एह हित सीख माने, गाथा-९. ३.पे. नाम. मरण प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण... मरण प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अध्यवसाय मरण१ आहार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १६वें प्रकार तक लिखा है.) ८५०५१ (#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, २०४१३-१७). १.पे. नाम. सेजा तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखीयां सफल भइ में; अंति: रतनसुंदर० -जय जयकार, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामण स्वामी साचा; अंति: बनारसी बंदा तेरो, गाथा-८. ८५०५२ (#) पाखीपडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ११४३१-३३). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु देवसिय आलोइ; अंति: सामायिक मुहपत्ति, (वि. क्रमशः सूत्रों का प्रतीक पाठ दिया है.) ८५०५३. चक्केसरीनी गरबी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खंभातबंदर, अन्य. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १४४३४-३६). चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली चकेसरी मात; अंति: दीप० बहु सोभा ताहरी, गाथा-९. ८५०५४. (4) पार्श्वजिन छंद व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चांदोडगाम, प्रले. श्राव. माधवसंघ; अन्य. मु. मेघराज; मु. दोलतराज (गुरु मु. मूलराज, अंचलगच्छ); गुपि. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १०४४०-४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, प. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदय० रेख महाराज भीजो, गाथा-५. २.पे. नाम. संखेश्वरपासजिनो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आज संखेस्वरा सरण हं; अंति: उदय० करो संभारी, गाथा-५. ८५०५५ (+) पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १३४३४-३६). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: थापनाचार्य प्रथम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ 'थंडिलो पडिलेही आग्या मांगी उच्चा' तक लिखा है.) ८५०५६ (+) गोडीजी पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गोडीपार्श्वनाथ छंदनो पार्नु छे. कहीं-कहीं गाथाक्रम नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १६-१७४३४-३८). ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेसरा; अंति: जीत कहे हरषे वंदो, गाथा-२३. ८५०५७. (+) औपदेशिक सज्झाय व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजीकी., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २१४३१-५१). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-औपदेशिक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव समदभीज घर नार; अंति: भव जीवो मनुष दुह, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, नेमिसरजी की ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमद सेवादेजी राणी; अंति: रायचंदजी कह लय लागी, ढाल-१, गाथा-१८. ८५०५८.(+) झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रोहठ, प्रले. मु. शिवदास ऋषि (गुरु मु. कुशालचंद); गुपि. मु. कुशालचंद; पठ. मु. कनीराम ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:झांझरीयानो., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६-१७४३७-४१). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणें सीस; अंति: भवरतन० संभलतां अणदक, ढाल-४, गाथा-४२. ८५०५९ (+) भुवनपती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १३-१४४३२-४१). १० भुवनपतिदेव स्तवन, पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: असुरादि कह कुमार दश; अंति: (१)इम दीप रचे रे लोल, (२)दीपविजय० लह्यो घणा, ढाल-१, गाथा-१५. ८५०६० (+#) नेमराजीमति चौपाई व बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३-१५४३२-५५). १. पे. नाम. नेमराजिमती चौपाई, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. सा. नगीना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रूपचंद० आणंद होई, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमराजीमति बारमासो, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. नेमराजिमती बारमासा, आ. कीर्तिसूरि, रा., पद्य, आदि: सावण मास सुहामणो सुद; अंति: कीरति० भवनो पार हो, गाथा-१४. ८५०६१ (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४४४-४८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ तक है.) ८५०६२. (+) हितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १९४५०). अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीइं; अंति: लहे सुजश रंग रेल रे, गाथा-२९. ८५०६३. (+) हितशिक्षा सज्झाय व ३२ सामायिकदोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४३०-३४). १.पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: विजयभद्र० नही अवतरै, गाथा-२५. २. पे. नाम. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पय; अंति: ज्ञानविमल० वाधे नूर, गाथा-१०. ८५०६४. महावीरजिन स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, १५४४४). १.पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीस वरस गिह वास जा; अंति: पद्म०चौवीह सुर मंडाण, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: पद्म० नीतु कल्याण, गाथा-७. ३. पे. नाम, महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीस वरस केवली पणे; अंति: पद्म० निजगुण रीधि, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३९७ ४. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण्यं निरवाण गौतम; अंति: पद्म कहे भवपार, गाथा-३. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान उज्वल दीवो करो; अंति: पद्म कहे कल्याण, गाथा-५. ६. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरम चोमासुं वीरजी पा; अंति: पद्म० ए परम कल्याण, गाथा-६. ८५०६५. २००४ युगप्रधान नामगृहवासव्रतपर्याययुगपदवर्ष विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, ४४४२५-३८). दुषमप्राभृत-यंत्र का यंत्र, मा.गु., को., आदि: (१)वर्द्धमान वंदी करी, (२)१ सुधर्मास्वामी २; अंति: (-), (पू.वि. उदय-५ ३३वै विष्णुमित्र युगप्रधान तक है.) ८५०६६ (#) गोचरी ४७ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, ४४४१५-२६). गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: आहाकमु १ साधूने काजे; अंति: न सके तो आहार करे. ८५०६७.(+) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४३२-३६). नेमराजिमती सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: कांति गाय श्रीकार रे, गाथा-१५. ८५०६८ (#) १०८ पार्श्वजिन नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ११४२५-२९). १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.ग., को., आदि: १ कोका पार्श्वनाथ २; अंति: १०८ सलूणा पार्श्वनाथ. ८५०६९ विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४,प्र.वि. हुंडी:नांणताभव., जैदे., (२५४१२, १२४४०-४७). १.पे. नाम. ऋध की गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. गम्मा ऋद्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उववाय परिमाणं संययणु; अंति: अणुबंधो कायसंवेहो, गाथा-२. २.पे. नाम. १९९८ नाणता विचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र शतक २४ उद्देश २४-नाणता १९९८ प्रकार बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नरकमै ११९ तिर्यंचमें; अंति: गतरा १९९८ नाणता थया. ३. पे. नाम. नाणता स्थान विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उच्चतमेव१ लेस्या२; अंति: नव ठाणै नाणता हंती. ४. पे. नाम. प्रश्नोत्तर, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, आदि: अध्यवसाय भला पाडु या; अंति: उंचा नीचापणा माटै छै. ८५०७० (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. मालचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पठ. श्राव. जीतमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १७४३४-४४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: १ नरकगति में; अंति: अनंतो काल जीवार्थी. ८५०७१. पाक्षिक स्तुति व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ९४३५-३७). १. पे. नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्ये सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिषसारणी संग्रह*, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-).. ८५०७२ (#) पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चर्तुदस., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १०x२४). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५०७३. (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हुंडी:अक्षयतृतीव्याखन्. श्रीमदिइष्टदेवो ज्जयति., संधि सूचक चिह्न., दे., (२५.५४१२, १०४३२-३६). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०, (पू.वि. 'अहंकर्वाणोजातिस्मरणजज्ञानं' से है.) ८५०७४. (+) करणकुतूहल की गणककुमुदकौमुदी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३४-३८). करणकुतूहल-गणककमदकौमुदी टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७८, आदि: शंभुस्वयंभुवमहं; अंति: (-), (पू.वि. 'विधानं कथयिष्यामीति' तक है.) ८५०७५ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९-१०, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (२६४१२, १४४३५-४१). ___ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८५०७६. (#) आदिजिन गीत व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३४-३६). १.पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जीणंदसू प्रीत; अंति: मीठाचंद० गुण गाया रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: संभव साहिब एक अरज; अंति: मनने रंगे रे, गाथा-१२. ८५०७७. (+#) भीलडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४३०-३४). भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनवू; अंति: उदयरतन०ए सति छे रुडि, गाथा-२१. ८५०७८. (+) प्रत लेनदेन संबंधी पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., ., (२३.५४११.५, १५४२७-२९). जैन सामान्यकति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८५०७९ (+) चितसंभूतरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रावण शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रूण, प्रले. मु. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चीतसंभुनो०., संशोधित., दे., (२३४११.५, १८४३३-३५). चित्रसंभूति सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित कहें ब्रह्मरायने; अंति: कवियण० गमन नीवारो हो, गाथा-२३. ८५०८०. (+#) १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १५४२७-३१). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदैरतन० सुखसंपद ए, गाथा-१७. ८५०८१.(#) नंदीसूत्र सज्झाय व दशवैकालिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२७-३१). १. पे. नाम. नंदीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जए भदं दमसंघसूरस्स, गाथा-१०. २. पे. नाम, दशवैकालिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: वुछंती साहुणो तीबेमी, गाथा-५. ८५०८२. (+) सिद्धाचल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४२९-३५). शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: मुनींद्रैः सुरेंद्र; अंति: भक्त्या भजध्वं च तम्, श्लोक-३३. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ३९९ ८५०८३. (+) नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. प्रतिलेखक हेतु "लिषतु परदेशी" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित., ., (२५.५४१२, ८-१०x१८-२३). नेमिजिन स्तुति, चतुर्भुज, सं., पद्य, आदि: जय जय जादव वंश वतंस; अंति: शिवंकरः, श्लोक-९. ८५०८४. इरियावही कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६-४०). इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पयडचत्ता तिमही; अंति: पमाणमेयं सुए भणियं, गाथा-१०. इरियावहि कलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अडतालीस पद ४८ तीनसइं; अंति: २४ हजार १०० सो २०. ८५०८५ (#) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले.पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११-१२४२४-२८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०. ८५०८६. (#) २४ मांडला विधि, ४ मंगल पद व १४ गुणठाणा नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २८x१५). १.पे. नाम. २४ मांडला, पृ.१अ, संपूर्ण. __प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसणे उच्चारे; अंति: दरे पासवणे अहियासे. २.पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपती सोहे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ सास्वादन२; अंति: केवली अजोगिकेवली. ८५०८८.(+) संग्रहछत्तीसी-ढाईद्वीप वस्तु विचार, संपूर्ण, वि. १९५६, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. श्राव. खीवराज ओसवाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२, १२४३२-३६). संग्रहछत्तीसी-ढाईद्वीप वस्त विचार, मा.गु., पद्य, आदि: संग्रह छतीसी सांभल; अंति: नही संदेह लीगार जी, गाथा-३६. ८५०८९ (+) अक्षरबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १३४३०-३४). अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरीया करी कर; अंति: मुनि महेस हित जाण, गाथा-३४. ८५०९०. (+2) शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१८, मध्यम, प. १.प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे.. (२६४११.५, १९४३१-३५). शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीबीर सोवैपुर; अंति: सासता सुख सुलवै लागी, गाथा-२१, (वि. कर्ता का उल्लेख नही है.) ८५०९१ (+#) कलावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:केलवती., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १८-२२४२८-५५). कलावतीसती चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगमीदर जीण जघते; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८५०९२. समकितना ६७ बोलनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक २२० व २२१ अंकित है संभवतः बडे ग्रंथ के लिए अनुमानित प्रत्रांकन किया गया होगा., जैदे., (२६४१२, १५४३८-४२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८५०९३. (+) शांतिजिन स्तवन, नेमिजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२६-३०). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: मोहन० देवी मात मलार, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत मोहन वेलडीजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५०९४. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन अधिकमास कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त मेवाडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सझाय., संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३३-३७). औपदेशिक सज्झाय, मु. कनककमल, मा.गु., पद्य, आदि: चोरासिलख जुनमे रे; अंति: कनककमल० मोह निवार, गाथा-१०. ८५०९५. गौतमपच्छा का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२.५, १०४२६-३०). गौतमपृच्छा-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: हे भगवन जीव किसो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-१९ तक लिखा है.) ८५०९६. श्रीपाल रास-खंड ४ ढाल ११ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२०-२५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८५०९७. (+) महावीरजिन पालणु, अंतरिक्षपार्श्वनाथ छंद व सिद्धाचल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीराचंद (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक क्रमशः दिये है, किंतु पाठविक्षेप के कारण प्रत्रांक काल्पनिक दिये गये है., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १४४३४-४४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेह नमे मुनि माल, गाथा-२८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: लावण्यसमे० पामु सदा, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से गाथा-४३ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरो मन मोह्यो रे; अंति: ज्ञानविमल० नावे पार, गाथा-५. ८५०९८ (+) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, प्र.वि. हुंडी:वडीशांत., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२५-३१). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: ध्यायमाने जिनेश्वरे, (पू.वि. "अच्छुत्ता मानसी" से "मस्तके दातव्यमिति" तक पाठ नहीं है.) ८५१०० (#) सर्वार्थसिद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कोटरामपुर, प्रले. मु. सरदारमल ऋषि; गृही. शंभूराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९-४३). सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: इण सवार्थसिधक चेद्रव; अंति: सर बोलै इमरत वाणी रे, गाथा-२०. ८५१०१ (4) ऋषिमंडलादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. प्रारंभ में "श्री पूज्यश्रीजीनचंद्रसागरसूरभिः गुरुभ्यो नमः" ऐसा उल्लिखित है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४३३-३५). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:ऋषीमंडल. ऋषिमंडल स्तोत्र-लघ, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो आद्यंताक्षर; अंति: लभ्यते पदमव्ययं, श्लोक-५५, (वि. अंतिम श्लोक में ५५ के स्थान पर ४५ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० : २. पे. नाम. जिनपंजर प्रभावक स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९१७, ले. स्थल, पीपलिया, पठ. मु. हीरालाल विजयगच्छ; श्राव. मोतीलाल श्राव. श्रीलाल सा. सरकुवर प्रले श्राव. जगजीवण, प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. हुंडी जिनपंज. जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहीं अंतिः असी श्रीकमलप्रभाक्षः, श्लोक-२५३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: ग्रह सांती. ग्रहशांति स्तोत्र- त्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु ० ४. पे. नाम मांगलिक स्तुति-प्रथम श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: अर्हंतो भगवंत इंद्र; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंति: कुर्वंतु नो मंगलं, श्लोक - १. ६. पे नाम औपदेशिक दुहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावतीपटल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्माणिक्यरश्मि अंति देवी मां रक्ष पद्ये श्लोक ९. " , ४०१ औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: चंचल जोवन जात है; अंति: करो धर्मसु प्रेम, दोहा-१. ८५१०२. (९) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत में "कृतघ्नेद्वेषणे न देयं महागोप्यं इति" ऐसा उल्लेख मिलता है. संशोधित, जैदे. (२६११.५, १९४०). "" विधीयते श्लोक-११. ८५१०३. (*) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, पठ. पं. कल्याणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, ११×३२-३६). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८५१०४. (+) नवतत्व प्रकरण संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११.५, १२X३५-३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा- ४९. ८५१०५. प्रतिमाधिकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११.५, १२X४०). शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि चत्तारि ४ अट्ठ ८ दश; अति: जगगुरु विति, गाथा १५. ८५१०६. (+) ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १९×४५-४७). कक्कावत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि कका करमनी बात करी अंति: मुगत तणां फल पामि गाथा- ३३. ८५१०७ (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२६५११.५, १४४३५). For Private and Personal Use Only पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि श्रीमद्गीर्वाणचक्र अति पद्मावती स्तोत्रम् श्लोक-२७, (वि. प्रारंभ में मूलमंत्र व अंत में हवनविधि दी गई है.) " ८५१०८. (+) महावीरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५ १६x४५). महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि सदा योगसाम्यात्, अंतिः तांक्रिशक्रश्रियः श्लोक-३२. ८५१०९. (+३) गुणावली लेख, भरहेसर सज्झाब व १४ श्रावकनियम गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १५X४५). १. पे. नाम. गुणावली लेख, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८९५, फाल्गुन कृष्ण, ३, ले. स्थल. बेदडा, प्र. मु. स्वरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्. गुणावलीचंद्रराजा पत्र, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: फलसे सहुनी आस रे, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि भरहेसर बाहुबली अभय; अति: जसपडहो तिहुयणे सवले, गाथा- १३. ३. पे नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: नाण१३ भत्तेसु१४, गाथा-१. ८५११० (+#) इग्यारस सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. कंकुबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३०). एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुव्रत सेठ सझाय भणी, गाथा-१५. ८५१११ (#) शीतलजिन स्तवन व नमिराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२५-३०). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सैहज सुरंगा; अंति: सुबुद्धिकुसलगाया रे, गाथा-६. २. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सुदर्शनराय हो जी; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा-६. ८५११२. (+#) हितसिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हर्षवर्द्धन (गुरु पं. क्षेमवर्द्धन); गुपि.पं. क्षेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १३४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पसाउले; अंति: रूपविजय गुण गाय, गाथा-१७. ८५११३. १२ देवलोक नामादि विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६.५४१२, १४४३७). १२ देवलोक नामादि विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला सुधर्मा नामे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. १२ देवलोक वर्णन किञ्चित् पाठांश अपूर्ण तक है.) ८५११४. बलभद्र सज्झाय, गौतमस्वामि सज्झाय व मुहपत्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२, ११४३०-३३). १.पे. नाम. बलभद्र सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सकल भवि सूख देई रे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तुठई संपति कोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. मूहपत्ति सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुहपत्ति सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मांडलमंडण जगदानंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक ८५११५. सौभाग्यपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-५(१ से ५)=३, जैदे., (२६४१२, १३४४३-४७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९, संपूर्ण. ८५११६. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, जावालग्राम, पठ. सा. भावश्री, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वजिनबिंब प्रसादे., दे., (२६.५४१२,९४३८). अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटें ग्यान अनंत, गाथा-१४, (वि. प्रत में गाथाक्रम न होने से गिनती करके लिखा है.) ८५११७. आदिजिन स्तुति, पार्श्वजिन स्तुति व अष्टमितिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२, १२४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., पद्य, आदि: उद्योत्सारं शोभागारं; अंति: तारा भूत्यैस्तात्, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४०३ २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तति-पलांकित, सं., पद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: रीद्धि वै दोषम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमि अष्ट प्रमाद; अंति: विघन सदैव दरे हरे, गाथा-४. ८५११८. संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४११.५, ३२४१९). संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् २१३ वर्षे राजा; अंति: (-), (पू.वि. राणकपुरतीर्थ व धरणा पोरवाड वर्णन तक है.) ८५११९ (+) पोसह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १४४२७-३१). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमै; अंति: जै भयवंदसन्नभद्दो. ८५१२० (+) पार्श्वजिन स्तवन, मंत्रसंग्रह व दंतदृढीकरण औषधविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, ११४३६-५०). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण; अंति: क्षमा० सवाई थायै हो, गाथा-७. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,ग.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३.पे. नाम. दंतदृढीकरण औषधविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: माजु फलटं१ हीराकसी; अंति: कीजे दांत कठीन हुवै. ८५१२२ (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: वासठि मार्गणा नरक १; अंति: अनंत भागै सिध पदमें. ८५१२३. (+) पर्युषणा नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १२४३३). पर्यषणपर्व नमस्कार, म. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजय मंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ८५१२४. (+) विचार षड्विशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:डंडक., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४२९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: सओ विसेसओ जाइ सरणस्स, गाथा-४५. ८५१२५ (+#) चौवीसठाणा भाषा व ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ३३४२०). १.पे. नाम. चौवीसठाणा भाषा, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय २ काए ३ जोए; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'समो १२ सन्ति १३ आहारे १४' तक लिखा है.) २. पे. नाम. ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... ___ मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: संज्ञी आहारी अनाहारी. ८५१२६. (+) १६ सती सज्झाय व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, ११४४०). १.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कर्पर, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. अंत में "चंद्रपत्र" लिखा है. म. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतक ओढण; अंति: परसंस सदा पदमावती, गाथा-७. २. पे. नाम. अध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना राणी रे रायजी; अंति: हुं तो रे संसार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५१२७. मेघकुमार सज्झाय व प्रास्ताविक प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १४४३६). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने अणुव्रत विषयक अज्ञात कर्तृक गाथा-१ अपूर्ण लिखकर छोड दिया है. म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, आदि: चारित्र लेईने चिंतवे; अंति: त्रिविध शिर नाम रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. प्रस्ताविक प्रहेलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: एक पर प्रसीध चरण; अंति: अरथ कोइ विरलो कहे. ८५१२८. नागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२,१३४३२). नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१७. ८५१२९. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३३). कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि कोसांबिनो राजा; अंति: समयसुंदरमुनि० पार रे, गाथा-१३. ८५१३० (+#) पर्यषणा नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १२४३४). पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजय मंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ८५१३१. जिननमस्कार श्लोक संग्रह व ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३२-३३). १.पे. नाम, जिननमस्कार श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: धर्मशरणमर्हता, श्लोक-११. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवसे र; अंति: जिनचंद्र० सहियां ए, गाथा-७. ८५१३२. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२५४१२, १२४३२). कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि कोसांबिनो राजा; अंति: समयसुंदरमुनि० पार रे, गाथा-१३. ८५१३३. औपदेशिक सज्झाय, सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय व छठाआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२,१३४३४-३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: केसि विधे समजावू; अंति: मिलावू हो मन्ना, गाथा-५. २. पे. नाम. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. छठा आरा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. छट्ठाआरा सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छठो आरो एवो आवसे; अंति: रायनो मेघ भणे सुखमाल, गाथा-७. ८५१३४.(2) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, २०४३५-४०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. नरसिंग, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: नवघाटीमां भटकत रे; अंति: दिन यो कीयो अभ्यास, गाथा-९. २. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, कबीर, रा., पद्य, आदि: सुण मारी चतुर सुजाण; अंति: फेरमती करजोर भाई, दोहा-११. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४०५ ३. पे. नाम, स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो पूरबदेस; अंति: चुंदरीआ सुगरीजी रीत, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभटांन जीपवा; अंति: काड्यो चीरचीर चरररर, गाथा-५. ८५१३५ (+#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, लिख. सा. देवश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में लखापितं का नाम पेन्सिल से लिखा गया है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, १२४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरूने चरणे नमि; अंति: हो तेहने जाउं भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ८५१३६. (+) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. श्राव. मुनीलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चैत्यबंदण पत्रम्., संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. शांतिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. शांतिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: करौ संघ कल्याण, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन-श्लोक-१, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्ण गजराज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ५. पे. नाम. सिद्धाचलमंडण ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम, श्रीगोडी पार्श्वजिन चैत्यवंदन, प. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पास नमीये; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ८५१३७. (+) समाधिमरण भाषा, संपूर्ण, वि. १९७३, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. अनोपचंद्र; लिख. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १५४४१). समाधिमरण भाषा, श्राव. सूरचंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९१९, आदि: वंदों श्रीअरहंत परम; अंति: सूरचंद० पाठ मन लाय, गाथा-५५. ८५१३८. (#) शांतिनाथ उपदेस श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्र १आ पर अन्य प्रतिलेखक द्वारा पाठ पूर्ति की गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४३७). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत अनंत; अंति: मंगलिक सुख पामे. ८५१३९. असज्झाय विचार व असुझतानो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १७४४२). १. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उलकापात १ दिशिदाह २; अंति: उदेसाथी जाणवी. २. पे. नाम. असझतानो विचार, प. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि पुत्र जनमे दिन १०: अंतिः दिन १७ बीते कल्पे. ८५१४० (#) मरुदेवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२, १३X३५-४०). मरुदेवीमाता सज्झाब, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि एक दिन मरुदेवी आई अंतिः प्रकटे अनुभव सारि रे, गाथा - १८. ८५१४१. बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५४१२, १३४३४) बीजतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति त्रिसलानंदन; अंति: न्यायसमुद्र० जयकारी, ढाल-३, गाथा - १९. ८५१४२. (+) कुशलसागरमुनि पट्टावली व अमृतधुनी, संपूर्ण वि. १९८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्रले. पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X१२, ११३६-४०). १. पे. नाम. कुशलसागरमुनि पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य वि. १९वी आदि पं श्रीकुशलसागरजी तत; अंतिः तत् शिष्य मगनमल. २. पे नाम. अमृतधुनी, पृ. १आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतध्वनि, क. राज, पुहिं., पद्य, आदि: गिरधर अधर गोवर्धन कर, अंति: हु भान शशितान रचझ्या गाथा ४. ८५१४३. (+) दीवाली की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : दिवलीरोत ०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X११.५, १९३७-४०). दीपावलीपर्व रास, मु. मनोवर, मा.गु., पद्य, आदि भजन करो भगवंतरो गणधर अंति: मनोवर बंदु नितमेव, ० गाथा - ३९. ८५१४४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी आवस्सग, वे. (२४.५x१२, ११४५५-६०)औपदेशिक सज्झाय-साधु क्रिया, मु. मेवाडी मुनि, रा., पद्य, वि. २०वी, आदि: आवसग करो कह्यो जिनवर; अंतिः मेवाडीमुनि० जावोरे, गाथा-१८. ८५१४५ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, १२४३०). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: इक घर घोडा हाथिया जी; अति लावण्य० दानप्रमाण रे, गाथा - १३. ८५१४६. (+#) पंचमीतपविषये गुणमंजरीवरदत्त कथा प्रसंग वीरविभुगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ३अधिकत श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. पद्मविजय पंडित, पठ. श्राव. वखत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३५-३८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल - ६, गाथा- ६९. ८५९४७. (९-) वज्रपंजर नमस्कार व ऋषभजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित - अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, १५X३६). १. पे. नाम. वज्रपंजर नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल, सूरत बिंदर, प्रले. ग. निहालचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि पंचपरमेष्ठि; अति: परमं श्रीयं श्लोक-१, प्र.ले.पु. सामान्य, . २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन -शत्रुंजयतीर्थमंडण, मु. रूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि उत्तंग तीर्थं धरणीइं अंति रूप तुमारो दासा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. रूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि साहिब ससनेहा प्रथम अति लेउ भामणा रे जो, गाथा-५. ८५१४८. () अभव्य कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २४.५X११.५, ११x२८-३०). संबोध प्रकरण -हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि जह अभविय जीवेहि, अति तेसि न संपत्ता, गाथा ९. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५१४९ (-) बुध रास व प्रथम प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४२९-३१). १.पे. नाम. बुध रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करता कि गत अगम है; अंति: चाडी चुगली खाजै नही, गाथा-२२. २.पे. नाम. प्रथम प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: पाप खुलाय रै, गाथा-५. ८५१५० (+) ज्ञानगणतीसी व औपदेशिक बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १८४५२-५५). १.पे. नाम. ज्ञानगुणतीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमगणधर पायज लागुं; अंति: दिन संजम सुध आराध्या, गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक बारमासा, म. रामकृष्ण ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: ओ संसार असार चतुरनर; अंति: भवियण के मनगमता हे, गाथा-१३. ८५१५१ (#) पद्मावती छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हंडी:पदमावतीछंद., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ९४२१). पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सगती सदा सानिध करो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८५१५२. (#) सांवरा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४५७). पार्श्वजिन स्तवन-धुलेवा-केसरिया, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: केसरीयो विराजे धुलेव; अंति: गातां उपनो उलास रे, गाथा-१७. ८५१५३. (+) ६ आरा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:छआराना०., संशोधित., दे., (२५४१२, १७४४५). ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोडि सागरोपम; अंति: ते जीव सुखि थासे, ग्रं. १८०. ८५१५४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२,१५४३९). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-३ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८५१५५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१२, १७४४६). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से चंद्रप्रभजिन स्तवन तक है.) ८५१५६. नंदिषेणमनि चौढालियो, संपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २,प्र.वि. हंडी:नदषीणी., जैदे., (२४४११.५, २०४३४). नंदिषेणमुनि चौढालियो, रा., पद्य, आदि: नंदिषेण कवररी वारता; अंति: नंदिषेण मोटो मुनी, ढाल-४, गाथा-७४. ८५१५७. महावीरजिन पद व पर्युषणपर्व पद द्वय, संपूर्ण, वि. १९३७, भाद्रपद शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. मुन्नीलाल; पठ. श्राव. सुमतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तवनपत्रं., दे., (२४.५४१२.५, १२४२८-३२). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: राणी त्रिशलाने देखा; अंति: करत अबीर मुनी बंदणा, गाथा-५. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अबीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: देखो परब पजुसण आया; अंति: अबीरचंद गुण गाया रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पजुसणपर्व पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पर्युषणपर्व स्तवन, आ. हेमचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: आज अजब छवि जिनवर की; अंति: मनवंछित फल पइयै रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५१५८. नवकार रास अष्टकर्मछुटण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. राजेंद्रविजय; पठ. मु. मोहनलाल (गुरु पं. राजेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२९). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरोजी; अंति: प्रभ सुंदर शीश रसाल, गाथा-७. ८५१५९. विविध पद, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४४१२, २०४५१). १.पे. नाम. अविनीत शिष्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: काल दुकाले आवियास रे; अंति: रे भार्यां मारो पाट, गाथा-७. २.पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: इतो सूत्रसिद्धांत वच; अंति: सुराने चडियो वैराग, गाथा-६. ३. पे. नाम. संयम महिमा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संयम महिमा, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: कुमरा साधतणो आचार; अंति: हीरालाल० हीरदा मझार, गाथा-५. ४. पे. नाम. दीवालीदिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधो रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. जिनवाणिमहिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज इसा रे० निशदि; अंति: शीतल थाय सुणता ततकाल, गाथा-४. ६. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मत दो गुन गौरव यश मत; अंति: लागी लागी पण लागी, (वि. वीररस पद, गुढ पद.) ७. पे. नाम, औपदेशिक पद-सासुवहु, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मंदर जाती देरे जाती; अंति: कहत कबीर०लागे प्यारी, गाथा-४. ८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हूँ थने वरजु छु तु; अंति: तो आलस करने बेशे ए, गाथा-६. ८५१६०. औपदेशिक पद व अनंतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१२.५, १५४२७-२८). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: पालो पालो रे संजम की; अंति: गुण का है दरीया रे, गाथा-६. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरवारनी सोहेली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५१६१ (#) गौतमविलाप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, ८x२४). गौतमविलाप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वेगेसुं जइ वंदीसुं; अंति: न बहु पेरे कीधी रे, गाथा-१७. ८५१६२ (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्लोकप्रस्ता०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३५-३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं दया दमंद्रीण; अंति: (-), (पू.वि. अदत्तादान दोहा अपूर्ण तक ८५१६३ (+#) उत्थापन श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४५). औपदेशिक पद-असारसंसार, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चला लक्ष्मी चला; अंति: धर्म एको हि निश्चलः. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० औपदेशिक पद-असारसंसार-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: (१)अहंत भगवंत असरण, (२)भो भव्यप्राणी जीवो; अंति: मंगलीकमाला०. ८५१६४. २४ जिन परिवार परंपरादि विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, २१४३९-५९). १.पे. नाम. २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथना ९८पुत्र; अंति: एतलैइ ४००४ सर्वंकइ. २. पे. नाम. युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: सर्वाग्रई २००४ युग; अंति: हिया दुन्निसहस्सा, (वि. यंत्र सहित.) ३. पे. नाम. ९ नारद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ भीमनारद २महाभीम; अंति: नरमुखनारद ९अनमुखनारद. ४. पे. नाम. ११ रूद्र नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.., को., आदि: १ अभेज्जइश्वर २अमरइश; अंति: ११ महादेवरूद्र जाणवा. ५. पे. नाम. साध्वीजी २५ उपकरण, पृ. २अ, संपूर्ण. साधसाध्वी २५ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रओ१ पात्राबंधन२; अंति: खंधकरणी ४हाथ लांबी. ६.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बाहुबलने ३लाख बेटा; अंति: पणि नावे मोटो दोष छे. ८५१६५. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १८४४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-४, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८५१६६. गणेशाष्टक व पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७४४७). १. पे. नाम. गणेशाष्टक, पृ. ११अ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकाररुपं महती व; अंति: भक्तिभाजं सुरेद्रः, श्लोक-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ८५१६७. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १५४३९). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभवनाधि; अंति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ८५१६८. लोगस्सकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:लोगस्सकल्प., जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). २४ जिन मंत्राक्षरफल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं लोग; अंतिः प्रतिष्टा वधि कीरत. ८५१६९ (+) धर्मप्रभावे पापबुद्धिमंत्री कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. हंडी:धर्मबुद्धिकथा., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १९४४५). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, आदि: पृथ्वीभूषणपुरे पाप; अंति: मोक्षं जग्मषु. ८५१७० (+-) लघुशांति व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४२७). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जिनेश्वरे, श्लोक-१७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: जिण पासु पयस वंचीउ, गाथा-२. ८५१७१. आदिजिन स्तोत्र व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६४३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रमुखानागा; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ८५१७२. (+) पार्श्वनाथ महास्तोत्र व शारदाष्टकसप्रभाव स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७X४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथपरमात्मनः महास्तोत्रम्, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शारदाष्टकं सप्रभावस्तोत्रम्, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शारदाष्टक, सं., पद्य, आदि: ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र; अंतिः सदा सारदे देवि तिष्ठ, श्लोक-८. ८५१७३. मौनएकादशीपर्व स्तुति द्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ.१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ८५१७४. रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४५, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १०४३९). रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो रे गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१५. ८५१७५. महावीरजिन पद, गुरुविहारविनती गीत व श्रावकयोग्य नियम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४४१२, १२४३६). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-गंधारमंडन, म. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधार बदीर सकल सुंदर; अंति: मानविजयन मंगल थाय, गाथा-४. २. पे. नाम. गुरुविहारविनती गीत, प. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये; अंति: म करो आपे विहार, गाथा-१२. ३. पे. नाम, श्रावकयोग्य नियम, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: स्वाध्याय- करवू; अंति: आ जीवनने सफल करो. ८५१७६. वासक्षेप पूजा, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, प्रले.पं. अगरचंद्र; पठ. श्रावि. किसनबीबी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, ११४२६). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंतपद ध्यातो थको; अंति: कोइ न नये अधूरी रे, गाथा-१३. ८५१७७. (+) पार्श्वनाथ लावणी, संपूर्ण, वि. १९३४, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. मुन्नीलाल; प्रले. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम बाद में लिखा गया है., संशोधित., दे., (२४४१२.५, १३४२९). पार्श्वजिन लावणी, मु. अबीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम सुण मन मेरा भज; अंति: टाल दीया भव दुख फेरा, गाथा-५. ८५१७८. १६ तप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१४, बेदइंदुनंदमेदिनी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. बीरेंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ११४३०). १६ तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर भाखियो रे; अंति: लाल निश्चै मुगति जाय, गाथा-७. ८५१७९ अष्टोत्तरीस्नात्र व नवग्रहादि पूजन सामग्री सूचि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.२, कुल पे. २, दे., (२३४१२, २८-४२४१७). १. पे. नाम, अष्टोत्तरीस्नात्रनो सामान मेलववानी विगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: पंचतिर्थी ४ ते मध्ये; अंति: (-). २. पे. नाम. ९ ग्रह १० दिग्पाल पूजन सामग्री सूचि, पृ. २अ, संपूर्ण. नवग्रह दशदिग्पालपूजन सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: १ कनेरना फुल २; अंति: घेसीदल ५ पेंडा ५. ८५१८०. आदिजिन लावणी व काम गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२.५, १३४३७). १. पे. नाम. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुनीइं बातां सदा सेव; अंति: (१)रीषभदास कही०फजरां मे, (२)मूलचंद०डीगंबर० देवा०, गाथा-९. २.पे. नाम. काम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-दुर्जय कामदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंथा धायबो खगेस जोडा; अंति: जीपे ओ तो दुसरो परम, गाथा-४. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: ॐआदेश गुरुकु नारसिंघ; अंति: मंत्र सारणी वाचीइ. ८५१८१ (+) चंद्रराजा रास-उल्लास-४ ढाल-२२, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १४४३९). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८५१८२. औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे.५, दे., (२५४१२.५, १५४५०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडारे; अंति: शाश्वता सुख लीजीइं, गाथा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पूरा रे; अंति: पभणीस ओछा रे बोल, गाथा-६. ३.पे. नाम, पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरू चरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: सिद्धा वंछि थोक हो, गाथा-१२. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: थाको देस भलो छे जी; अंति: माने दीजो शिवपुर राज, गाथा-१२. ८५१८३. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४३६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो गीरी सिद्धाचल; अंति: ऋषभ कहे वरे शिवराणी, गाथा-१३. ८५१८४. संध्यासामायिक विधि व इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, ११४२९). १. पे. नाम. संध्यासामायिक विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै पाछिलै पहुर; अंति: बैसै धर्मध्यान करैइ. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५१८५. तपपारणादि कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मुंबइ, प्रले. उपा. कल्याणनिधान; पठ. पं. गुणपद्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चिंतामणी प्रासादेन लि., दे., (२५४१२.५, २४४३५). For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५१८६. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १४४२६). असज्झाय सज्झाय, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि. गाथा-११. ८५१८७. महावीरस्वामीनू चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:महावीर., जैदे., (२४४१२, १५४३२). महावीरजिन चौढालीया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सासणनायक सुरतरु; अंति: मुनिजन कीज्यौ सुध, ढाल-४. ८५१८८. चोवीसतीर्थंकरनो तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२.५, २१४३८). २४ जिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: श्रीआदनाथ करिजे; अंति: सदा भगती दो कंठ मेरी, गाथा-३१. ८५१८९. महावीरजिन चैत्यवंदन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १३४३१-३२). १.पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंद विलास वास सा; अंति: तेही ज भविजन धन्य, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरपक्ष विरला कोई; अंति: सो साहेब का प्यारा, गाथा-५. ८५१९०. दीवा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०-३१). औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दश द्वारि दीवो कह्यो; अंति: निश्चे मोक्षे जाय, ढाल-२, गाथा-९. ८५१९१. भीलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२,१३४२८-२९). भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनवू; अंति: ए सति छे रूडी, गाथा-२०. ८५१९२. महावीरजिन चैत्यवंदन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, ११४३६-३८). १.पे. नाम. महावीरजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंद विलास वास सा; अंति: ज्ञानविमल०भविजन धन्य, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: अवधू निरपक्ष विरला; अंति: सो साहेब का प्यारा, गाथा-५. ८५१९३. महावीर जिन स्तवन-दीपावली पर्व गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १३४३२). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व गर्भित, म. माणेकमनि, मा.गु., पद्य, ई. १९वी, आदि: सरसतीस्वामीने विनवं; अंति: फरि नावं गरभावास, गाथा-१६. ८५१९४. अष्टापदनो स्तवन व ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३४). १. पे. नाम, अष्टापदनो स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, म. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: हो फलसे सघलि आस के, गाथा-२३. २.पे. नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिनेसर स्वामि रे; अंति: जित प्रह उगमते सूरजो, गाथा-६. ८५१९५ (+) मनिसवतजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, ७X२१). १.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रत के ऊपरी भाग में उल्टा लिखा है. पुहिं., पद्य, आदि: वसंत ठीकाणे पाइये; अंति: मोती सीपा माहि, गाथा-१. २.पे. नाम. आगमिकपाठ सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४१३ आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच का भाग लिखा है.) आगमिकपाठ संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रथम पंक्ति का टबार्थ नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. दो पंक्तियों के बीच-बीच में पुनः इसी स्तवन की एक-दो गाथाएँ लिखी हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजिन वांदवा; अंति: पणिमन मांहि परखाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. दो पंक्तियों के बीच-बीच में लिखा है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिननी सेवा करतां; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रत के हासिये में लिखा है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: तुझ मुझ रीझइ री जी; अंति: सीस एहज चीत धरे री, गाथा-५. ८५१९६ (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, २९४६१). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एक वर्ग एक ज हए ते; अंति: तेहन गीतार्थ कहीइ, (वि. 'बोल १४ आलोयणा का' व 'द्वीपसमुद्र की परिधी काढवा की आमनाय' के बोल का संग्रह.) ८५१९७. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३०). असज्झाय सज्झाय, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता आदि नमीने; अंति: वहेला वरसो सिद्धि. गाथा-११. ८५१९८. बीजनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १३४३२). बीजतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति त्रिसलानंदन; अंति: नायसमुद्र कहे जयकारी, ढाल-३, गाथा-१९. ८५१९९ (+) सौरपक्षे मासविशेषे कल्याणकतिथि पक्षाणि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १०४२२-३७). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकसुदि ८; अंति: महावीर० पारंगताय नमः. ८५२०० (#) ६ आवश्यक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १९x४३). ६ आवश्यक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक आवश्यक; अंति: पछे पच्चक्खाण छे. ८५२०१ (+) गुरूगुण गहुंली, कवित्त व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पं. दोलतविजय; पठ. श्राव. नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३५). १. पे. नाम. गुरुगण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे ते अनुरंगी; अंति: ग्यांनामृत वचन वीलास, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त-प्रहेली, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-प्रहेलीका, पुहि., पद्य, आदि: जगमे प्यारो कौन कौन; अंति: (-), गाथा-२, (वि. अंतिमवाक्य खंडित ३. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८५२०२. (+) दानशीलतपभावना कुलक व सुभाषित पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४४०). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. अशोकमनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सुभाषित पद्य संग्रह, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदिः तवसंयमदाणरुओ पयई; अंति: षडेते स्वानते गुणाः, श्लोक-७२. ८५२०३. (-) विहरमान २० जिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, २०४४३). १. पे. नाम, विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सीरमींदरसामी सीवरु; अंति: अठइ ज बेठा सुख चावु, गाथा-१०. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-साधुधर्म, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: मुगत जावणारो रे मारग; अंति: चोथमल० सारो आतम काज, गाथा-१३. ८५२०४. जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्र-१४२ है., जैदे., (२५४१२, ४२४२०). जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थ पुण सीझइ ज सही, (पू.वि. महावीरजिन शासनकाल में चैत्यवंदन-पूजन प्रसंग से है.) ८५२०५. (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २०४३५-४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७० अपूर्ण तक है.) ८५२०६. गर्भबहोतेरीनी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय द्वय, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. रणी, प्र.वि. स्थल रण लिखा है, जैदे., (२६४१२.५, १९४३०-५०). १.पे. नाम. उपदेस सत्तरी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल, अजमेर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, आदि: उतपत जोय जीव आपणी; अंति: इम कहीये श्रीसार ए, गाथा-७०, (वि. गाथांक क्रमशः नहीं लिखा है. अंत में गाथा ३७० लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओ जीव काल अनादि; अंति: लालचंदजी इम भाखे रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. हरसुख, रा., पद्य, आदि: कायासु मायासु सगली; अंति: हर० प्रभुजीरो ध्यान, गाथा-६. ८५२०७. () प्रेमभक्तिलेख दोहा चकवाचकवीउपमागर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. न्यानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में १०विध पच्चक्खाण गाथा-१ अपूर्ण लिखकर छोड़ दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४७). प्रेमभक्तिलेख दोहा-चकवाचकवीउपमागर्भित, पहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजगदीस; अंति: निरखत हर्ष विशेष, दोहा-१६. ८५२०८. (+) नेमराजुल बारमास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १२४२४). नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात वरबुधी सदगुर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ८५२०९. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वृद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११४२७-३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ८५२१०. गौतमस्वामी अष्टक व राधाकृष्ण होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १२४२८-३१). १.पे. नाम, गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेलो गणधर विरनो रे; अंति: वीर नमे नीसदीस, गाथा-८. २. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: व्रजमे एसी होरी मचाई; अंति: हाइ तुम चित चोरकनाई, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५२११. (+) बीमारी लक्षण पद, नवकार छंद व कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, १४४४९). १.पे. नाम. बीमारी लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. बीमारी लक्षण पद, मा.गु., पद्य, आदि: कर अंगुष्टसु मुल; अंति: ज्यू सुख पावे जीव, गाथा-६. २. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१४. ३. पे. नाम, कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१९. ८५२१२ (+) तीर्थंकर स्तवन व महावीरजिन स्तवन द्वय, अपूर्ण, वि. १९६४, आषाढ़ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. गोवरधन त्रिवेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४४४१). १. पे. नाम. तीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: होइ आनंद वहार रे; अंति: थाओ आनंदहरख अपार रे, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. वृद्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभू शिवपद मेल पधार; अंति: वृद्धिवि०आपी वीहरवाड, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा संदेशो देजो; अंति: जिनदास० सौ कहेवायजो, गाथा-५. ८५२१३. (+) औपदेशिक पद द्वय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजिमगंज, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ९-११४२५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. बाल, पुहि., पद्य, आदि: जीयरा मेरा जान काहै; अंति: बाल० समझावकुं गायाबे, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. अबीरेंद ऋषि (वडतपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. अबीरेंदु ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९४०, आदि: मनुवा मेरा म्यान तोह; अंति: अवीर० आतम समझाया वे, गाथा-५. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मन लोभी मन लालची; अंति: (-), गाथा-२. ८५२१४. राजुलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२९). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: कांति गाय श्रीकार रे, गाथा-१५. ८५२१५. सीमंधरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १४४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. हकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. म. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमें आरे रे दुषम; अंति: रत्नवि० विण तेह अनाथ, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संकेसर मंडण पासजि; अंति: लबधी० विरविजेनी वाणी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे है.) ८५२१६. ४ शरणा व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मयाचंद डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४३६). १. पे. नाम, च्यार शरणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने च्यार सरणा; अंति: समयसुंदर०भवनो पारोजी, अध्याय-४, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक दोहा-जीभ विशे, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारे इंद्री सोहीली; अंति: जीभ न जीती जाय, गाथा-१. ८५२१७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, २१४२३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: किरत कीजे प्रभु पास; अंति: नवनीधी सदा आणंद घणे, गाथा-११, (वि. गाथा-७ के बाद गाथांक नहीं लिखे है.) ८५२१८. १७० तीर्थंकर नाम, १२ चक्रवर्ती व वासदेवादिनाम संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, दे., (२६४११.५, १२४२२-२७). १.पे. नाम. नवप्रतिवासदेव अनागत चोवीसीनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ९प्रतिवासदेव नाम-अनागतचौवीसी, मा.गु., गद्य, आदि: १ तीलकनाम पहलो प्रती; अंति: नवमो प्रतीवासुदेव. २. पे. नाम. १७० जिन नाम-ढाईद्वीप, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. १७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवजी पहला; अंति: (-). ३. पे. नाम, १२ चक्रवर्ती नाम-अनागतचौवीसी, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दीरघदत्त चक्रवर्ती १; अंति: १२ श्रीअरीनाह बारमो. ४. पे. नाम, अनागतचौवीसी के ९ वासदेव नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. ९वासुदेव नाम-अनागतचौवीसी, मा.गु., गद्य, आदि: १ नंदी पहलो वासुदेव; अंति: त्रिपृष्ट० वासुदेव. ८५२१९ (#) कमलावतीराणीरी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १७४३१). कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भूगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: सुख पामी सीरीकार, गाथा-३२, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ८५२२०. दादाजी स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १२४४०). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सिर सेहरो हो; अंति: वीरनो० जंपै परमानंद, गाथा-९. २.पे. नाम. दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: दोलत दो दादा सदगुरु; अंति: गुण गावै परमानंद, गाथा-९. ८५२२१. ५ पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ८५२२२. (#) अष्टापद स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १९४५५). १.पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: एक सरस अतिसइ गुणवंत; अंति: भणह निसुणह एक चित्त, गाथा-५३. २. पे. नाम. साधुदिनचर्या सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण... आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोअम पूछेइ वीर पासि; अंति: साधु भव तरस्यै तेह, गाथा-६१. ३.पे. नाम. अध्यात्म गीता, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वींझवाग्राम, प्रले. उपा. भक्तिविलाश, प्र.ले.प. सामान्य. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. ४. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नाथ तु त्रिहुं; अंति: नित्यात्म रस सुख पीन, गाथा-२१. ८५२२३. आदिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९११, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ९४३९). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४१७ मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खीमावि० आगम रीतरै, गाथा-६. २. पे. नाम. निश्चयव्यवहाररूप अध्यात्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: जैन कहो क्यौं होवे; अंति: ज्ञानदशा जस उंची, गाथा-१०. ८५२२४. आरती, नंदीषेणमुनि सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १०४३१). १.पे. नाम. ७ पद आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: पांचु परमपद भज सूख; अंति: दोलत मांगलदै सूखखानी, गाथा-७. २.पे. नाम, नंदीषणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नंदीषेणसाधु सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो रहो वाला; अंति: राममूनी जयकार लाल रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. मोटा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पारस तु तो परतक्षदेव; अंति: मोटारीषी गावे मुदा, गाथा-५. ८५२२५ (+) सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, ८x२९). सपार्श्वजिन स्तवन-जयपुर मंडन, म. रत्नविजय, पुहि., पद्य, वि. १९००, आदि: हो जिनवरजी मरजी करनै; अंति: रत्नबिजय शीर धारे छे, गाथा-९. ८५२२६ (+) माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ८४३०). माणिभद्रवीर छंद, म. उदयकसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दो सरस्वती; अंति: लाख लाख रिझा लहे, गाथा-२६. ८५२२७. (+) चंदनबालासती चौपाई, आषाढभूति चौढालियो व इलापुत्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, २४४५९). १. पे. नाम. चंदनबालासती चौपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चनणमाला. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: फणीमणीमंडित निलतन; अंति: ढाल सुख निरखे रे लो, ढाल-१४. २. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अषाडभुत०. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो; अंति: इधका उछानो इधकार हो, ढाल-७. ३. पे. नाम. इलाचीपुत्र चौढालियो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अलापुत्र०. इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनीलो; अंति: संपदा नामई जय जयकार, ___ढाल-४, (वि. प्रतिलेखक द्वारा अंतिम गाथा प्रशस्ति अपूर्ण है.) ८५२२८. नेमिजिन बारमास स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. ऋषभकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३६). रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेखी पसु रथ वालीयो; अंति: जिणसासण सिणगार रे, गाथा-१३. ८५२२९ पार्श्वजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १४४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीगोडीजी प्रसादात् लिखा है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: मोहन कहे० प्राण आधार, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन कुल चंदा हो; अंति: शांतिकुशल०पंकज भमरलो, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी में पामीयो रे; अंति: कवियण अंतर दर निवार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५२३०. पार्श्वजिन स्तवन व चंद्रप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १३४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज मोरा पासजीने चालो; अंति: भागा दीसा अब जागीरे, गाथा-६. २. पे. नाम, चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, म. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया संदेसो कहैजो; अंति: मेहीअल मेघ प्रमाण, गाथा-५. ८५२३१. नेमिजिन चौढालियो व परजनकुवर चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. सा. गंगा (गुरु सा. छगना); गुपि. सा. छगना (गुरु सा. दलुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजीचो०. गुरणीजीके प्रसादसु., दे., (२६४१३, १६x६४). १. पे. नाम. नेमजीको चोढालियो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक शुक्ल, ३, शनिवार, ले.स्थल. साहेपुरा. रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: धन ___ तरछ थारो मन, ढाल-३. २.पे. नाम. परजनकुवर का चोक, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार. परजनकुवर चौक, मु. हीरालाल, पुहि.,रा., पद्य, आदि: लखीया लेख नइ मट करम; अंति: हीरालाल कही करता सोइ, चोक-४. ८५२३२. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मंमाई, प्रले. पं. मेघविजय गणि; पठ. श्रावि. हरकुंवर बाई, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १२४३६). असज्झाय सज्झाय, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदि नमि; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ८५२३३. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७७१३, १४-१५४३५). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: प्रगटे सकल गुण खाण. ८५२३४. देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२७७१३, १५४३४). महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष; अंति: वडि सांत कहेंवी. ८५२३५. पद्मावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १०४३३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३७. ८५२३६. (+#) आचार्य लक्ष्मीचंद्रजी गीत, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. अखयचंद्र (बृहन्नागोरीलुंकागच्छ); पठ. सा. रामी आर्या (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १०४३३). लक्ष्मीचंद्र आचार्य गुरुगण गीत, म. कीर्तिचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: सरसति सामण बीनवू हे; अंति: वाण सुणावो हो राज, गाथा-९. ८५२३७. छ भाव व छ द्रव्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४१३, १३४३४-४१). १. पे. नाम. छ भाव विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६ भाव विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)उदइए१ उवसमिए२ खइए३, (२)उदयना २ भेद उदय१ उदय; अंति: २० भांगा - सून्य छै. २. पे. नाम. छ द्रव्य विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परिणाम १ जीव २ मुतं; अंति: जूदा लिया रह्या छै. ८५२३८. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६९, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कीरपाचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १३४३५). मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेजीयो माता कहे; अंति: वरत्या जे जे कारो रे, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५२३९. शत्रुंजयपर्वतनी भास व शत्रुंजयशिखर भास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २-२ (१) = १, कुल पे. २, प्रले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६१२.५, ९५३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि गुण अनंत अपार प्रभु अंतिः स्वामी तुमारो आधार, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. १. पे. नाम. शेत्रुंजापर्वतनी भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुंजयतीर्थ रायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८बी, आदि (-); अति माहातममांहि, गाथा-६, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. शत्रुजाशिखर भास, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आवो भवि भविक अति ज्ञानविमल० साधे रे, गाथा-७, ८५२४० (+) औपदेशिक पद, स्तवन व कलियुगबत्तीसी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- संशोधित., दे., ( २६.५X१२.५, १७३६). १. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १अ, संपूर्ण. जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक इक रणका सूपना; अंति: जादुराय मोहि तारा, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४१९ मु. वृद्धिकुशल, रा. पद्य, आदि तेवीसमा जिनराज जोडै; अंतिः वंदण चरण त्रीकाल, गाथा-३, ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: केदन केमी जवण क्य पर; अंति: अपनी यारी० भवजल पार, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. कलियुगबत्तीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: देखो भा कलजूग आयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ११ तक है.) 3 ८५२४१. (*) ४ दुर्लभ वस्तु सज्झाय, संपूर्ण वि. १९११, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पू. १ ले स्थल वनौली, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत होने की संभावना है. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित. वे. (२७४१३ १४४३३). ४ दुर्लभ वस्तु सज्झाय, मु. रत्नचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १९११, आदि श्रीजिणवचने जाणज्यो; अति: रत्नचंद० जिनवर कही, गाथा १४. ८५२४२. औपदेशिक सज्झाय व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६.५x१२.५, १९३६). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तैन क्या करतुत करी; अंति: धनि० सीर धूल पडी रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि: तरुण त्रिया नर वृधहै; अंति: मोहने पास मंगायो, गाथा-७. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र के ८४ लाख पद कि विगत, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). , " ८५२४३. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. १८२९, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पू. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२५X१३, १५X३०). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० ई भ ए, ढाल ६, गाथा-४८. ८५२४४. सात समुद्धातलक्षण थोकडो, संपूर्ण, वि. १९६६ आश्विन शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल, भाणपुर, प्रले. सा. गंगाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सातसमदगीत. श्रीछगना माहासाब, श्रीरतनाजी माहाराज का परसाद से., प्र.ले. श्लो. (१२८०) पाना प्यारा प्राणची दे. (२६×१२.५, १७४४४). 1 ७ समुद्धात धोकड़ा, मा.गु., गद्य, आदि सात समुद्धातना नाम अति: (१) च्यारबोलास मुगतजाणु, (२) आईउईअरीलरीनतरी. Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५२४५. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४३०). १.पे. नाम. चेलानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, म. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घनघटा भुवन रंग छाया; अंति: एम वीरविजय गुण गाया, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: किं भावी नारकोहं; अंति: नमःश्रीनाभि सूनवे, श्लोक-२. ४. पे. नाम. ४ शरणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ____ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: तो भवनो हुं पारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ५. पे. नाम. काठीया सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेलो आलस काठीयो रे ध; अंति: भावसागरचीतजी वारु, गाथा-७. ६. पे. नाम. धरमनाथनु स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मुंने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. ८५२४६. पद्मावती आराधना व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. पद्मावतीराणी आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन शुक्ल, १२. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-४३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ८५२४७. औपदेशिक पद, सुमतिकुमति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. श्राव. गोविंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १५४३८). १. पे. नाम. औपदेशिक पद-दर्मतिविषये, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हे दरमति वेरण थई; अंति: उपाधितणो छे उपगारो, गाथा-७. २. पे. नाम. सुमति कुमति संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हे सुमतीजी येवडो मुझ; अंति: समाधि तणा घरमां भलसे, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपरि, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५२४८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३७). १.पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पामीओ भवतणा पार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रसनचंद प्रणमु तुमा; अंति: तेहनेरे वंदु वारोवार, गाथा-७. ३. पे. नाम. माया उपरे सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो; अंति: ए मारग छे सुध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित होजो परिणाम, गाथा-७. ५. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. सकलचंद्र गणि, पहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५२४९ (+) सामाइक विधि व राईपडिकमणा विधि व सामायिक पारवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, १७७३४). १.पे. नाम. प्रभातसामायिक विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रभातकालीन सामायिक की विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,रा., गद्य, आदि: प्रथम तीन नवकार गुणी; अंति: गुरु कहै करेह. २. पे. नाम. राईपडिकमणा विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम चैत्यवंदना करण; अंति: करुं नवकार ३ गुणना. ३. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सामायक पारवा मुहपत्त; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ८५२५०. सीमंधरजिन स्तवन, शांतिजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, ९४२२-२४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलुडी विदेह खेत्रमा; अंति: मानविजय० तुम पद सेव, गाथा-५. २. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंदनी; अंति: साहीबा संग मंगलकारी, गाथा-१६. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: श्रीसीधाचलगिर भेटीया; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५. ८५२५१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन व केशीगौतम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट; पठ. श्राव. सरूप सेठ शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३४). १.पे. नाम. शेजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ शेजा राह; अंति: ज्ञानविमल गुण गावेरे, गाथा-८. २.पे. नाम. गोयमकेसी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसर पासना; अंति: सीस उदे रसरंग रे, गाथा-८. ८५२५२. बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१३, १३४२८-२९). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाय; अंति: सालभद्र०टलीय कलैस तो, गाथा-६२. ८५२५३. आदिजिन स्तवन व गणधर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १३-१७४२८-३७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, प. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि (-); अंति दीप० मंगलमाल सुहाय, गाधा-१६, (पू.वि. गाधा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ११ गणधर गहुंली, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदि पेहेलो गोयम गणधरु: अंतिः दीपविजय० जिनशासन रीत. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५२५४ (७) सज्झाव संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१,३ ) -२, कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक खंडित है. अनुमानित पत्रांक दिये हैं.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४-१६३०). १. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: (-); अंति: नाम थकी सिव वासो हो, गाथा-१५, (पू. वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: तेरी फुल सी देह पलक अंति (-), (पू. बि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) " ३. पे. नाम. शीलनी सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सियल जस उत्तम प्रणी, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गिना है.) ४. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. . जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषीजीने वंदणा; अंति: सुजाण रे हुवारी लाल, गाथा-१०. ८५२५५. ऋषभजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सुरत बंदर, प्रले. मु. हजारीमल (कैवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बड़े चीटे के उपाश्रय में लिखने का उल्लेख है. दे. (२६४१३. १६५३२). आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धरम जिणइ उधर्यो; अंति: कविता नर रीषभदासो, गाथा - ७२. ८५२५६. कर्मग्रंथ यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, वे. (२६४१३, ४३x२९) कर्मग्रंथ - यंत्र*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. १४ गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ता विचार यंत्रसहित. कर्मग्रंथ २ व ३.) " ८५२५७ क्षेमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९५४ आश्विन अधिकमास शुक्ल, १ मध्यम, पू. २, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. रामजी वीरचंद भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४१३, १३४३२) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर अति समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ८५२५८. (+) गुरुगुण गँहुली व शृंगार काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२.५, १०x३२). १. पे. नाम. गुरुगुण गँहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुली, मा.गु., पद्य, आदि चरणकरण करि सोभता, अंति: जगजस पडह बजाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शृंगार काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण. शृंगार श्लोक, सं., पद्य, आदि: स्त्रिकांतविक्ष्य; अंति: दशत्योष्टमगनं भक्ति, श्लोक-१. ८५२५९ (+*) औपदेशिक सज्झाय दुर्मतिविषये, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७X१३, ११३५). औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दुरमतडी वेरण थई लीधो; अंति: ते मानंदपदवी वरसे, ढाल-२, गाथा - १५. ८५२६०. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२६.५X१३, ८४०). पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पंच पदने ध्यावो; अति विजयजिनेंद्रसूरिराय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५२६१. (*) नवपद आराधना विधि, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., " . (२६×१२.५, १६x४७). नवपद आराधना विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम आशु शुदि ७ अंति: (-), (पू.वि. सिद्धचक्रउजमणा विधि तक है.) ८५२६२. निरवाणवीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९३९, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. ८-५ (२ से ५,७)=३, दे., (२७१३, १२X३५). महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अति श्रीसंघर्ष वधामणा, ढाल १०, गाधा १२५ (पू.वि. डाल- १ गाथा ८ अपूर्ण से डाल- ६ गाथा ६९ अपूर्ण तक व ढाल-८ गाथा ८५ से ढाल १० गाथा १०४ अपूर्ण तक नहीं है.) ८५२६३. पोषहविधि, संपूर्ण, वि. १९३८, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. लक्ष्मी, प्रले. ग. विद्याविजय; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पठ श्रावि नालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७४१२.५, १२४३५). . पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवहि; अंति: चैत्यवंदन करवुं. ८५२६४. आत्महितउपदेश व सिद्धाचलनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:भावना., दे., (२६.५X१२.५, ११X३१). १. पे. नाम. आत्महित उपदेश, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अथ भावना अहो चेतन; अंति: कर्म जाई कलेस टले. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि उमैया मुजने घणीजी हो; अति हो एहमां नहि संदेह, गाथा-७. ८५२६५. (*) ज्ञानपंचमीपर्व वृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, अजीमगंज, पठ. श्राव. जगतचंद, 5 प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६१२.५, १०x२२). ज्ञानपंचमीपर्व महावीर जिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति भक्तिभाव प्रशंसिओ, ढाल -३, गाथा-२०. ८५२६६. स्वाद्वाद स्वाध्याय व पार्श्वजिन स्तवनम्, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१(१) १, कुल पे. २, जैये. (२६४१२, १८४४८-५२). १. पे. नाम स्वाद्वाद स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति श्रीसार० रतन बहुमूल, गाथा २१, ( पू. वि. गावा- १० अपूर्ण से है.) २. पे नाम पार्श्वजिन स्तवन, पू. २अ, संपूर्ण. ८५२६७. कलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२७४१३ १३४४२). 3 " ४२३ पार्श्वजिन स्तवनजिनप्रतिमास्थापनगभिंत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति नित प्रतिमासुं नेह, गाथा-७. कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कौशांबीनो राजा; अंति: मुजने उतारो भवपार रे, गाथा - १३. ८५२६८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४१२.५, ८४३६). For Private and Personal Use Only शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आपो आपोने लाल मोंघा; अंति: सेवा कामगवी दोहंति, गाथा-७. ८५२६९. चांदलीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६१२.५, १२X४२). सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलीया संदेसो जिन; अंति: जिनहरख सुजाण रे, गाथा-१५. ८५२७०. (+) ३२ विजय तप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७१२.५, १२५०). ३२ विजय तप स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा-८ अपूर्ण से डा-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५२७१. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदनविधि सहित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से २,६)=४, ले.स्थल. मुमाइ बंदर, प्रले. पं. रत्नविजय; पठ. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १४४३९). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५, (पू.वि. मतिज्ञानभेद २२ अपूर्ण तक व मनःपर्यवज्ञान का पाठांश नहीं है.) ८५२७२. आवतीचौवीसी नाम, १२भावना व ५अणुत्तर विमान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१३, १५४२७-३०). १. पे. नाम. आवतीचौवीसी नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीपद्मनाभ श्रेणि; अंति: सिद्धथी आवसी. २. पे. नाम. बारभावना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ भावना पद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना; अंति: बोधबीजी समूक्त पामै, गाथा-१२. ३. पे. नाम. ५ अणुतरविमान, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: विजय १ वैजयंत २ जयंत; अंति: सर्वार्थसिद्धविमान ५. ८५२७३. स्तवन, चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ९, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३८). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-२३ ___ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. समेतशिखर चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीजगदीश वीश; अंति: धरज्यौ श्रीजगदीस, गाथा-३. ३. पे. नाम, ऋषभ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.ग., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमै नेम; अंति: क्षमा० करै प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम, पार्श्व स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ७. पे. नाम. वीरजी चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जगदाधारसार; अंति: कल्याण करी सुपसाय, गाथा-३. ८.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: कल्याण० चेतन भूप, गाथा-६. ९. पे. नाम, श्रीमंधर स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंद जिनवर विहरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५२७४ (१) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. हुंडी लघुदंडकनो टिप्पण युक्त विशेष पाठ... २५X४८). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .दे.. (२६१२.५. दंडकभेद बोल- लघु, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहण संघयणं; अंति: मनजोग वचनजोग कायाजोग, ८५२७५. (W) बीजामहाव्रतनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५x१२.५, ९५३०). मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि असत्य वचन मुख नवि; अंति कांतिविजय सुध आचार, गाथा-५. ० ३. पे नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित पू. १आ, संपूर्ण " ८५२७६. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., ( २६.५X१२.५, १२x२५-३८). महावीर जिन स्तवन- छट्टा आरा परिचयगर्भित, आव, देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि सकल जिणंद पाए नमी, अंति देवीदास संघ मंगल करो, ढाल -५, गाथा- ६४. ० ८५२७७. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन व २४ जिन चैत्यवंदन इय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२७४१२, १३x४०). १. पे नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्म, आदि: चैतर वदि आठम दिन अंतिः प्रगटें ग्वान अनंत, गाथा - १४. २. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन - देहमानगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पंचसया धनुषमान प्रथम, अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा ३. " ४२५ (गुरु आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पद्मप्रभूने वासु अंतिः कहें वंदो ते निसदिस, गाथा- ३. ८५२७८. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. सीव सा. फुलजी); गुपि. सा. फुलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x११, ११x४२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु. पद्य वि. १८३०, आदि पुचे देसा हो प्रभुजी अंति: वांदु हो बेकर जोडने, " 3 गाथा - १५. ८५२७९. सीमंधरजिनविनती स्तवन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी श्रीमीदर, दे., For Private and Personal Use Only (२६X१२.५, १९x४०). १. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पू. १अ संपूर्ण सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: कुडलीपुर नगरी भलीजी अंति रतनचंदजी कर अरदासक, गाथा - १३. २. पे. नाम चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: चंदपुरी नगरी जाणी, अंति: पोषदसातु बीसपतवारो, गाथा-११. ८५२८० (-) महावीरजिन १० स्वप्न व लघुसाधुवंदनानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७X१२, १८३६). १. पे. नाम. महावीरजिन १० स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयै रे; अंति: सुत्त भगोती साख, गाथा - १३. २. पे. नाम. लघुसाघुवंदनानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधुवंदना सझाय-लघु, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी वंदना नित नित अति: पुरवमतणी आस रे, गाथा - ९. ८५२८१. रोहिणी स्तवन, सुविधिजिन स्तवन व सिद्धगिरिमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२.५, १५X४४). Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. रोहिणी स्तवन-ढाल १, पृ. १अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल है.) २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक विधि; अंति: मोहनविजय कहै शिरनामी, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धगिरिमहिमा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. ८५२८२. शत्रुजयतीर्थना १०८ खमासमणाना दुहा, अपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. रूपविजय; लिख. पं. उत्तमविजय; पठ. श्राव. नागरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री राधनपुरना वासी श्री आदिश्वरजिन प्रासादात्, श्री चिंतामणजी गोडीजी प्रसादा., जैदे., (२७.५४१३, १३४३५). शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दहा, म. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पामशे जय जय मंगळ माळ, गाथा-१२१, (पू.वि. गाथा-५४ अपूर्ण से है.) । ८५२८३. आदीसरजीनी सोभा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १२४४२). आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: भरतजी कहे सुणो मावडी; अंति: जय० मंगलमाल सवाय रे, गाथा-१६. ८५२८४. (#) साधुवंदनसेवन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. य. लछीराम; पठ. श्रावि. घीसो बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३७). साधुवंदनसेवन सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रावक समुजी एम विचा; अंति: भावसेली परकासी जी, गाथा-१६. ८५२८५. वैराग्य सज्झाय व खड्गकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, १२४३७). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडला आजै जावु के; अंति: नाम शोध्या नथी जडता, गाथा-६. २. पे. नाम. खड्गकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. खंधकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एवंती नगरी सोहामणी ज; अंति: जुवो भगवतना कीण, गाथा-१६. ८५२८६. (+-) दानशीलतपभावना स्तवन, धन्नाजी सज्झाय व मूर्ख के सौ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. दानशीलतपभावनारो तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुक्त तणा फल त्यांह, गाथा-६. २. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. मूर्ख के १०० बोल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-३० अपूर्ण से है व ५५ अपूर्ण तक लिखा है., वि. संभव है कि आगे का अंश प्रारंभिक पन्नों की अवशेष जगह पर लिखा गया हो.) ८५२८७. ज्योतिषचक्र विचार व अरनाथजिन स्तवन, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १३४२९). १. पे. नाम. ज्योतिषचक्र विचार, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. मुक्तिचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४२७ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: क्षेत्रे दिवस उगे १३, (पू.वि. सूर्य विमान परिमाण से है., वि. भरतक्षेत्र व महाविदेहक्षेत्र बीच दिन-रात की तुलना भी दर्शाई गई है.) । २.पे. नाम. अरनाथजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. जमना, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. पान, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ अढारमा उपगारी; अंति: पान कहे पुरसादाणी, गाथा-५. ८५२८८. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुडी:पंचमीस्तव., जैदे., (२५.५४१३, ११-१४४२७-३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक है) ८५२८९. प्रतिक्रमणसूत्र, वैराग्य सज्झाय व गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., दे., (२५.५४१२.५, १०-१७४२३-३८). १.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लोगस्ससूत्र गाथा-३ अपूर्ण से है व __ पुक्खरवरदिवड्ढेसूत्र गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसे; अंति: मिलै भूधर मागै जेह, गाथा-१४. ८५२९०. पूनासहेरप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ९४३२). साधारणजिन स्तवन-पूनामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: विस्वना वाला रे; अंति: शांतिरा आशीस, गाथा-५. ८५२९२ (+) स्नात्रपूजा विधिसहित व नवअंगपूजा दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्नात्र श्रीवीरविजयजी कृत., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४४७). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन शुक्ल, ७, मंगलवार, ले.स्थल. पाटणनगर. पं. वीरविजय, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १९वी, आदि: सरस शांति सुधारस; अंति: वीर० घर घर हर्ष वधाई, ढाल-८. २. पे. नाम. नवअंगपूजा दहा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण... नवअंगपूजा दहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुटपत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ८५२९३. १५ तिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. पं. केसरीचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १३४३५). १५ तिथि सज्झाय, डूंगरसी, रा., पद्य, आदि: चतुर नर ज्ञान विचारो; अंति: डि भव भव मे सुख जाणो, गाथा-१६. ८५२९४. (+) मार्गानुसारीना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, ११४३५). मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: धर्माधिकारी गृहस्थ; अंति: धर्मनो अधिकारी होय. ८५२९५. (+) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. मंमाइबंदर, प्र.वि. हुंडी:नवपदपूजा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१३, १२४२६). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९, (पू.वि. पूजा-९वीं के पाठांश "सात नये आदरे" से है.) ८५२९६. (+) छ आवश्यक विचार स्तवन व नरकाधिकार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९१०, पौष शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १६x४४). १.पे. नाम. ६ आवश्यकविचार स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० शिवसंपदा लहे, ढाल-६, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नरकाधिकार स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५२९७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, ८४३५). आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: रिषभजिनेसर दिनकर साह; अंति: लालचंद० मझारो रे, ___ गाथा-११. ८५२९८. मोटो पखवासानो गुणनो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १२४३१). मोटा पखवासानो गुणनो-१ से १६ तिथि तप, मा.गु., गद्य, आदि: कुंथुनाथ पारंगताउ; अंति: मुकवी पूजा भणाववी. ८५२९९ (+) जीवनी उत्पति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४३९). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पत्ति जोइ जीव; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-६९. ८५३००. २४ जिन पुत्रपुत्री संख्या, ५ मेरू नाम व अष्टमी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७४१२.५, ११४२७). १. पे. नाम. २४ जिन पुत्रपुत्री संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन त्रपत्रीसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजीरे १००; अंति: महावीरजी० १ बाइजी. २. पे. नाम. ५ मेरु नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुदर्शनमेरु विजयमेरु; अंति: वर्धमान मेरु जीनजः. ३. पे. नाम. अष्टमीरी थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ लिखी है.) ८५३०१. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१३, ११४४२). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अठम जिन चंद्रप्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ८५३०२. मौनएकादशी गणणुं व फलदहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, ११४२७). १.पे. नाम. मौनएकादशी गणनं, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबू भरते अतित चोवी; अंति: श्रीअरण्यकनाथाय नमः. २. पे. नाम, मौनएकादशी गणनुंफल दहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गुणनफल दहा, मा.गु., पद्य, आदि: मृगसर सुद एकादशी वरस; अंति: पामे मोक्ष आगार, गाथा-३. ८५३०३. (+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८३, जैदे., (२७४१२.५, ११४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानेरी समोसर्य; अंति: कांति० मंगल __ अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ८५३०४. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत् व लघ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १०x२४-२७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीयौ, ढाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचिम तप तुम्है करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ८५३०५. पंचांगुलीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१३, १५४३५). पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती पय नमी; अंति: करणी सदा शक्ति पुरंत, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४२९ ८५३०६. औपदेशिक सज्झाय, सकलजिन स्तवन व गौतमस्वामी गहुँली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स०उ०त०., जैदे., (२५.५४१३, १२४४०).. १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीपविजय० ना मान, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सकलजिन उल्लेख स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवजीवन प्रभु मारा; अंति: जय० अनंतगुणी गुणवंता, गाथा-११. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ.४आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे कामनी कहे सुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५३०८.(#) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १६४३१-४०). आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिमा भागे उप. १०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ४८वें आलोयणा तक लिखा है.) ८५३०९. नमस्कार महामंत्र छंद व पाँचतीर्थ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ११४४१-४६). १. पे. नाम. पंचपद नवकारमंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आदीजीणसरु; अंति: भाव भगति करि आसता, गाथा-८. ८५३१०. ४७ दोष संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३०). ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय; अंति: ४ धूमे ५ कारणेय, गाथा-६, (वि. लेखनशैली बोल जैसी है.) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: साधु अर्थे करे ते; अंति: विना आहार न लेते, (वि. लेखनशैली बोल जैसी है.) ८५३११. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, १२४३९). सुबाहकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: खेत्रमा जासे मोक्ष, गाथा-१५. ८५३१२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४०-४६). ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान स्वामी; अंति: गच्छ ८४ स्थापना छे. ८५३१३. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३५-३८). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देवकुरुना सात दिवसना; अंति: लाधे मेरु पर्वत माथे, (वि. आदिजिन पूर्व ९९ बार शत्रुजय यात्रा का सूक्ष्मावलोकनादि युक्त.) ८५३१४. (#) गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लिंबडी, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गतागत्य., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १८४४५). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना; अंति: ५६३नी एक ३४ बोल थिया. ८५३१५. स्तुति व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१३, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति सारखी वंदु सदा विनीत, गाधा-६, (पू.वि. गाधा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. . विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि परवराज संवत्सरी दिन अंतिः वीरने चरणे नमुं सीस, गाथा- ३. " ३. पे. नाम आदिजिन चैत्यवंदन, पू. २अ-२आ, संपूर्ण मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पवृक्षनी छांहडी; अंति: उदयरत्न करु प्रणाम, गाथा - ६. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: सकलकुसलवल्लि पुष्क; अंति: भविकजीवने भवजल तारवा, गाथा-३. ८५३१६ (+) ११ प्रश्नादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे ४, प्रले. मु. भारमल ऋषि: पठ मु. सुमेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६x१२.५, १६x३४). १. पे नाम. ११ प्रश्न, पृ. ११-३अ, संपूर्ण. केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, आदि परदेसी राजा कहे छे; अंतिः कुमारे प्रतिबोध दीघो. २. पे नाम. ५६३ जीवभेद गाथा, पृ. ३४-३आ, संपूर्ण जीवभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नारयतिरिनरदेवा चउद्द; अंति : नीर्यापथिक्याः, गाथा-५. ३. पे नाम ज्ञानपूजा गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि नमंत सामंतमही विनाहं अति लाभाय भवक्खयाय, गाथा २. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. १२४ श्रावकना अतिचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. " १२४ श्रावकव्रत अतिचारभेद वर्णन, प्रा. सं., गद्य, आदि: पणसहलेण ५ परसकम्म १५ अति वसायपत्तेयं ६०. ८५३१७. नमस्कार महामंत्र छंद व शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६.५x१३. ३३X२२). १. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सुखकारण भवियण समरो; अंतिः णी और मंत्र कांइ पढे, गाथा- १६. २. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पुछा करी; अंति: वरो पामो सुख अपार हो, गाथा - १६. ८५३१८. (+) रत्नविजय रास व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९३३, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. मंगलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., ( २६.५x१२.५, १८x४५). १. पे नाम, रत्नविजय रास. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य वि. १९३३, आदि सरसत गणपत दीजियी अंति: सांडेराव मझार, डाल-५. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि: एक धर्म को एक अंग; अंति: कहत सयाने लोइ, गाथा- १. ८५३१९ (*) २४ जिनपंचकल्याणक तिथि २० स्थानकजाप काउसग्ग संख्या व तप गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है. संशोधित. जैदे. (२६४१२.५). " "" १. पे नाम, २४ पंचकल्याण तिथि व जाप विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक - तिथि व जाप, सं., गद्य, आदि: आषाढ वदि पक्षः ४; अंति: १ प्रमाण जाप सवः. 3 For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. वीस स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, पृ. २अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: १ अरिहंतभक्ति नमो; अंति: शासननी प्रभावना कीजै. ३. पे. नाम. वीस स्थानकतप गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि अरिहंत सिद्ध पवयण अंति तित्थवरतं लहड़ जीवो, गाथा- ३. Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ८५३२० (+) विंशोपचार पूजा विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६४१३, १५X४०). विशोपचारपूजा विधि, मा.गु. प+ग, आदि: प्रथम शुचिर्जल वडे, अति: (१) स्वस्थाने मूकवा, (२)जीवने याविधि बतावणी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५३२१. (+) अष्टमी तिथि स्तवन व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६x१३, १२x३०-३३). १. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पू. १अ ३अ संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तिरथ प्रणमुं सदा; अंतिः लावण्य० कोड कल्याण रे, ढाल ४, गाथा - २४. २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन रमे चित कौन रमे; अंति: हर ब्रह्मा कौन नमे, गाथा- ६. ८५३२२. पिस्तालिस आगम अष्टप्रकारी पूजा व गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. पानाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२.५, १०X३७). १. पे नाम, पिस्तालिस आगम अष्टप्रकारी पूजा चतुर्थ धूपपूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे नाम. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारो सोरठ देश देखाओ, अंति ज्ञानविमल० सिर धरीवा, गाथा- ७. ८५३२३. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, दे., (२७X१३, १३x४३-४९). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ग्यांन दृष्टि न; अंति: सुजस० हृदय पखालो, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि कंत विण कहो कुण गति; अंतिः सुजस०रमे रंग अनुसारी, गाथा ६. ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि परम गुरु जैन कहो; अति जैनदशा जस ऊंची, गाथा- १०. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जोतुं ज्ञान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकासी, गाथा-९. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. . विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके; अंति: विराजो सूख भरपूर, गाथा-७ ६. . पे नाम औपदेशिक पद, पू. २अ संपूर्ण, ४३१ मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि कहां करू मंदिर कहां अंति: या दुनिया मे फेरा, गाधा-५. ८५३२४. शांतिजिन स्तवन, सम्मेतशिखर स्तवन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी : शांतिजिन स्तवन. दे. (२६४१२.५, १३४३८) १. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति जिनेंद्र० जिनेश्रिये, गाथा २१, (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समेतशिखर स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८६६, आदि सिखर समेत जुहारो भवि; अति लब्धिचंद्रसूरि सारो, गाथा-५. ३. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४अ, संपूर्ण, मु. दास, मा.गु., पद्य, आदि वरधमानजिन सांभलो मुझ; अंति दीजीए रागद्वेषनो नास, गाधा- ७. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५३२५ (+) चक्रवर्तीनी ऋद्धि, अक्षोहिणीसैन्यमान व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, २४४३५). १. पे. नाम. चक्रवर्तीनी ऋद्धि, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: निधान ९ रतन १४; अंति: राजधानी ३६०००. २. पे. नाम. अक्षोहिणीसैन्य मान, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ अक्षौहिणीसैन्य मान, मा.गु., को., आदि: हाथी २१८७० रथ २१८७०; अंति: ६५६१० पायक १०९३५०. ३. पे. नाम. बोल विचार संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: द्रव्यात्मा १ कषाय; अंति: (१)वरस ४८ भगवतीसू., (२)लाख झाझेरो देखइ छई. ८५३२६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, १०४३६). औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावळो; अंति: तो तमे पामस्यो मोक्ष, गाथा-१३. ८५३२७. (+) औपदेशिक एकवीसी व सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:उपदेशीक., संशोधित., दे., (२६.५४१२,१५४४१). १.पे. नाम. औपदेशिक एकवीसी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८२०, आदि: श्रीजिनवर दियो इसो; अंति: ताहरे वरते परम आनंद, गाथा-२४. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ज्ञानीहु का ज्ञान; अंति: त्रिया के प्रसंग ते, सवैया-१. ८५३२८. (+#) सौ बोलनो बासठियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २,प्र.वि. हंडी:१००बोलनोबाष्टीयो., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३२-३९). १०० बोल-पदार्थादि के, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवमै १४ १४ १५ १२; अंति: अचरमस १४ ११३ ८ ६. ८५३२९. नमस्कार महामंत्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नोकार०., जैदे., (२६४१२, १८४४४). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलीजी लीजे श्रीअरिह; अंति: जाणज्यो श्रीनवकारातो, गाथा-१८. ८५३३०. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३०). सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधिय; अंति: ज्ञानविनोद० लाल रे, गाथा-५. ८५३३१. आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ११४२२). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो श्रीआदि; अंति: ज्ञानविमल मति जागी, गाथा-१०. ८५३३२. (#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३८). १.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: ऋषि लालचंद०सुख सवाया, गाथा-११. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: जल की शोभा कमल है दल; अंति: यतोधर्मस्ततोजयः, गाथा-२. ८५३३३. २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १२४५३). २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: भौ वंदू श्रीआदजिनंदए; अंति: निज भौज भणे सुखकारजी, गाथा-१३. ८५३३४. चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १२४३५). चंदनबालासती सज्झाय, म. कंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४३३ ८५३३५. ८ प्रकारीपूजा, शांतिनाथ आरती व मंगलदीपनी गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. श्राव. जेसींघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १३४३७-४०). १.पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिजगनायक तु धणी; अंति: अमीकुंवर कहे नहि वार, ढाल-८. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. २आ, संपूर्ण... सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चारो मंगल चार आज मार; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-७. ८५३३६. (+#) पोसहउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४३१). पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडिकमिइं; अंति: तत्थस सामाइवई हुते. ८५३३७. (+) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८९४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:राजम०. प्रतिलेखक का नाम अशुद्ध व __ अस्पष्ट लिखा है., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, २३४४०-४३). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धनें आयरी; अंति: रायचंदजी कीनी जोड हो, ढाल-५. ८५३३८. चौद गुणठाणा विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३, १७४३६). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५३३९ (+) १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १३४२८). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ८५३४०. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१३, १३४४५). जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: वृद्धिविजय० आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८०. ८५३४१ नमस्कारमहामंत्र पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, २१४१८). नमस्कार महामंत्र पद, मा.गु., पद्य, आदि: सास्वत नोकार मंत्र ह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ८५३४२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१३, १३४३२-३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: गुण गाया जी, ढाल-५, गाथा-४२. ८५३४३. (+) भैरवनाथ पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ९x१६). भैरवदेव पद-रतनपुरीमंडन, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रातसमे सुमरो नर; अंति: भैरुकीनेजाउ बलिहारी, गाथा-४. ८५३४४. नेमिजिन स्तवन व देवानंदामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता वीनकुंजी; अंति: जबुवा नगर मजार, गाथा-११. २. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: कही इम वाणी हो गोतम, गाथा-१२. ८५३४५. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२.५, १३४३२). श@जयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५३४६ (#) ४ ध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,ले.स्थल. धनेरा, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. रामकवर आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, २६४५४). ४ ध्यान विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: आरतिध्यान रुद्रध्यान; अंति: तस मीछाम दकडो. ८५३४७. (+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पंन्या. उत्तम; अन्य. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:थांभणास्तवनांपत्र., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४२७). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-३५. ८५३४८. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १२४३५). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ८५३४९ (+) १६ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४४३). १.पे. नाम. सूयगडांग १६ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूयगडांगना १६ अध्ययन; अंति: अ०१४ जमति १५ गाहा १६. २. पे. नाम. १६ वचन बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एकवचन घट पट वक्ष; अंति: रुई वाणीयानी परै. ३. पे. नाम, १६ सख के बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ बोल-सुखगर्भित, पुहि., गद्य, आदि: पहिलो सुख काया नीरोग; अंति: सुख पोहचे निर्वाण१६. ४. पे. नाम. चंद्रगुप्त राजा के १६ स्वप्न, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पवृक्षनी तूटी डाल; अंति: वर्षा आरे पांचमे नही, गाथा-१६. ५. पे. नाम. १६ सीलका गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. शीलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सुध सील पालै तो कलंक; अंति: पर्वत टीबे सरीखो थाय. ६. पे. नाम. गुरुशिष्य १६ प्रश्नोत्तर, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या रे चेला बिना; अंति: सीहै विना मान मानंग, गाथा-१६. ७. पे. नाम. १६ दख के बोल, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. १६ बोल-दखगर्भित, पुहि., गद्य, आदि: पहले दुख घर आंगण; अंति: रिणी१५ जे फोजा धणी१६. ८५३५० (#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी व मंगल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, २२४६०-६३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. अनोपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: श्रीजिन वदन निवासनी; अंति: पायो धवल धीग गौडीधणी, ढाल-८. २. पे. नाम, स्तुति संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयजिनं सुरेंद; अंति: रिपुक्षयं० प्रणौमि. ८५३५१. नेमराजीमति पद व महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४३७). १.पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. हरिबल, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत सहि; अंति: भवोभवना बंधिखाना छोड, गाथा-९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीध रे, गाथा-९. ८५३५२. जंबूस्वामीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १३४३२). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनवू; अंति: भाग्यविजय० जय जयकार, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४३५ ८५३५३. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७X१२.५, १४४४२). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: फले सघलि आस के, गाथा-२३. ८५३५४. (+) प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४३६). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८५३५५. नागिलाभवदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जेठालाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नागी०सा०., दे., (२६४१३, १२४३७). नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: भवदेव भाई घेर आवीया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१५. ८५३५६. महावीरजिन निर्वाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७७१३, १६४३८). महावीरजिन निर्वाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतम महासौभाग्य; अंति: दिन प्रतें पूजा करे. ८५३५७. समवसरणप्रकरणनी गणतरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १३४३६). समवसरण प्रकरण-संबद्ध समवसरण प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बत्रीस अंगुलने; अंति: ऊंची आ प्रमाणे करी. ८५३५८. (+) औपदेशिक दोहा व सवैयाइकतीसा, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२६.५४१२.५, १५४४२). १. पे. नाम, औपदेशिकचर्चा विवरण दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रणम् विघन विघातने; अंति: ठगै वै जिनमत के चोर, दोहा-८. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया इकतीसा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. अबीरचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: सिंह पट्टा काव्य का; अंति: छोड पथ धरो तत बात का, दोहा-९. ८५३५९. १३ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:१३ बोल., दे., (२६.५४१२.५, १५४३६). १.पे. नाम. तेर क्रिया, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ बोल संग्रह, मा.गु., प+ग., आदि: तेरे १३ क्रिया; अंति: समदाणीकर्म काठीयो १३. ८५३६०. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७X१२.५, १०४३५). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: हो फले सघली आश के, गाथा-२३. ८५३६१. (+) धनाश्री सवैया व महासती कुंडलीया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, २०४६५). १. पे. नाम. धनासरीरा सवैया, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ___ धन्नाश्री सवैया, पुहि., पद्य, आदि: चौथे आरे केरा जसतीन; अंति: तो क्यूं तज अणगार जी, दोहा-४५. २. पे. नाम. महासती कंडलिया, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. महासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: तीसती के घर साधने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८५३६२. आत्महितविनंति छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३४). आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू पाय लागी करूं; अंति: स्वामि सदा सुख करशे, गाथा-१०. ८५३६३. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रतनसुंदर शिष्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: लहीउ मणीरयणासुरिहें, गाथा-६७. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५३६४. ऋषभदेव स्तति व सनत्चक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालडी ग्राम, पठ. श्रावि. रतनबाइ,प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. २.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण... मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. ८५३६५ (4) चतुर्दशगुणठाणाविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४२८-३२). समतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (अपठनीय); अंति: कहे __ एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४, (वि. आदिवाक्य अपठनीय है.) ८५३६६. २४ जिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३८). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर पार्श्व; अंति: सलाकापुरुष नीपजे. ८५३६७. ७ समुद्धात विचार व इंद्रिय विषय २५२ विकार विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६४१२.५, १३४४९). १. पे. नाम. ७ समुद्धात विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यने ७ समुद्धात; अंति: वहिला कर्म निर्जरइ. २.पे. नाम. सिद्ध विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चउदमा गुणठाणाना अंत; अंति: लही जे शिव पोहता. ३. पे. नाम. ५ इंद्रिय २३ विषय २५२ विकार विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पांच एकेंद्रि; अंति: दिशामां प्रवर्तवू. ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: खेचरिएचक्ष २३ गोचर; अंति: वनस्पतिकाय त्रसकाय. ८५३६८. (+) सत्तरसोजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. धनसुख ऋषि; पठ. मु. छत्रचंद्र (गुरु मु. अबीरचंद्र ऋषि, पासचंदगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमद्भागीरथी तटे., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १०४३०). १७० जिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८८४, आदि: सब दिपाकै मध्य विराज; अंति: जिनवर संघ सयल सुखकरू, गाथा-१५. ८५३६९. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संपूर्ण, वि. १९६७, पौष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १२४३१). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८५३७०. धन्नाअणगार सज्झाय व रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १५४३०). १. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: अमां होवै जयजयकार, गाथा-१३. २.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र हैं. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक ८५३७१ () १२ भावना सज्झाय द्वय व निद्रात्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. माणेकचंद; पठ. मु. फतेचंद, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४५०). १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय-प्रथम भावना ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकुलकमलना हंस तुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४३७ २.पे. नाम. १२ भावना सज्झाय-द्वितीय भावना ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. निद्रात्याग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नीदरडी वेरण होय रीही; अंति: हो मुनि कनकनिधान, गाथा-७. ८५३७२. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:घुघरनीसाणी., दे., (२७४१३, ११४४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: नितपरते होय उछरंग ए, गाथा-२७. ८५३७३. पार्श्वजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ९४२६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सोभागी साहब; अंति: जेतसी भवभव तुहीज देव, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिमंधरजी सुणज्यो; अंति: लालचंद० ए अरदास रे, गाथा-७. ८५३७४. औपदेशिक स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नाणानगर, प्रले. मु. जिनेंद्रविजय (गुरु मु. प्रतापविजय); गुपि. मु. प्रतापविजय; अन्य. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:थुईपत्र., जैदे., (२६४१२, २४३०). औपदेशिक स्तति, आ. भावप्रभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: उठी सवेर सामायक कीध; अंति: भावप्रभसरि० भोगी जी गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां संसारी जीव बे; अंति: तेहनो आपण हार छइं. ८५३७५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३१). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: प्रीतविमल अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-४९. ८५३७६. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. केसरडाग्राम, जैदे., (२६४१२, १२४३९). स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: पांखडि विधि लखिइं छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लूण उतारण विधि तक लिखा है.) ८५३७७. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१६,१६x४५). नवतत्त्व थोकड़ो, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकी सम्यक्त्व; अंति: जीव मोक्ष जाए. ८५३७८. ८ प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विजापुरनगर, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१११८) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, जैदे., (२६.५४१२, १४४३९-४१). ८ प्रकारी पूजा, म. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: यांति मोक्षं हि वीरा, ढाल-९, गाथा-७७. ८५३७९ (+) आषाढभूति चौढालियो व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. नेमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आषाढभू., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १८४३९). १. पे. नाम. आषाढभूति चौढालियो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: मानसागर० वाण रे लाल, ढाल-७. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पठपुत्रकिमालस्यमपठो; अंति: ताहि बधैकर दोष न होई, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५३८०. ५६ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १७४५२). ५६ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भगवानजी सरीर; अंति: ते पाप कर्म के उदै. ८५३८१ (+) शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७१८) भग्न दृष्टि कटी ग्रीवा, (९६६) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, जैदे., (२६.५४१२, १२४३९). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदयरत्न०माहाराज भीजो, गाथा-५. ८५३८२ (+) पार्श्वजिन स्तवन व साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. ८५३८३. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह व सूत्रग्रंथादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ३८x१८). १.पे. नाम. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: केतलो हे भगवन असुर; अंति: उद्देश. ६ कह्यो छे. २. पे. नाम. सूत्रग्रंथादि जैन पारिभाषिक नाम सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. सूत्रग्रंथादि जैन पारिभाषिक नाम, प्रा., पद्य, आदिः सुत्तं१ गंथर सिद्ध; अंति: पन्नवणा८ आगमेय९, गाथा-१. सूत्रग्रंथादि जैन पारिभाषिक नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु.० गुरु समीपइं; अंति: ते भणी आगम कहीयइं. ८५३८४. सज्झाय, पद व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: (-); अंति: धि वृद्धि कीरति कहे, ढाल-५, गाथा-१०७, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शीतलजिन गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: पलो मे तो साह्यो रे; अंति: अमृत० दृढरथ के छौना, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पीहरीइं जी अमे; अंति: मोकं दरस देखाज्या, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नव भव की में नारी; अंति: साहिब अवीचल पद रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: अमरास कोल केइणे; अंति: कोरी आंछीन कोरी वृंद, गाथा-३. ८५३८५. भले अर्थ- महावीरजिन पाठशालागमण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, ११४३५). । भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रे आगले उच्चार; अंति: कहे ए __भगवंत जगत्गुरु. ८५३८६. छटक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.१, दे., (२६४१२,१६x४३). __ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: २२४ दंडकै मोख भग०; अंति: फल ते अतिंद्री सुख. ८५३८७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३७). For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४३९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: __ श्रीमद्यादवसैनिकस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५३८८. दीवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३२). औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दस द्वारे दिवो कह्यो; अंति: तो नीश्चै मोक्ष जाय, ढाल-२, गाथा-९. ८५३८९ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४६). औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: साचे मन जिन धर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) । ८५३९०. (+#) श्रीचंद दहा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. महिमाअमृत (गुरु मु. हितकमल, खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंददुहा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२, ८४४७). चंद्रराजा रास-चयन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: वरत्या जय जयकार, उल्लास-४, दोहा-५२, संपूर्ण. चंद्रराजा रास-चयन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला धराधिप राजा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम दोहे का टबार्थ नहीं लिखा है.) ८५३९१ (+) उपध्यानविधिगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४४२). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीर जिनेसर सुपरि; अंति: मुझ देज्यो भवो भवे, गाथा-२७. ८५३९२. महावीरजिन सज्झाय-पजुसणपर्व, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १०४३२-३४). पर्यषणपर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पिता मित्र तापस मल्य; अंति: गाय दहिकासण ठाय, गाथा-२०. ८५३९३. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १५४४८). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ८५३९४. सूत्रना अंणमलता बोल, असज्झाय भेद व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४४). १. पे. नाम. सूत्रना अंणमलता बोल, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ९० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: मल्लिसणं अरहोउ; अंति: घणी टीकाकारज जाणे. २. पे. नाम. असज्झाय भेद, प. ४आ, संपूर्ण. १० प्रकार असज्झायकाल विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: १ मास २ सोणीते रुधिर; अंति: गुरुपरंपराथी जायेणाइ, अंक-१०. ३. पे. नाम. निर्विघ्न अध्ययन मुहूर्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मृगसीर १ आद्रा २; अंति: वेसे तो विघ्न न उपजे. ८५३९५. वीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७X१२, १२४३४). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मारा प्रभुजी मुजने; अंति: ति आपोरे वीर जिणंदा, गाथा-८. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वच्छ श्रीकच्छमां; अंति: ज्यारे पेलि पारो, गाथा-५. ८५३९६. (4) ऋषभाष्टक व गणेशजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५,१५४४२). १. पे. नाम, ऋषभाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी; अंति: रिद्धि सिद्धि पाइये, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गणेश छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. गणेश स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरनायक आदि सुंडाल; अंति: गुणिजें नाम गुणेसरा, गाथा-६. ८५३९७. (+) कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १०४४१). कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: कहे धर्मध्यान कीजे, गाथा-११. ८५३९८. गौतमस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १०x४१). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तुठां संपति कोडि, गाथा-९. ८५३९९ (+#) सम्यक्त्व स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३१). सम्यक्त्व छप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: तथा श्रावक है आराध, गाथा-५६. ८५४००. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४३५). ___ कलावतीसती सज्झाय, मु. सारंगधर, मा.गु., पद्य, आदि: आगतनाम नगर पातष्टा ज; अंति: नामि सुरी नरनारि, गाथा-१०. ८५४०१. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२.५, ८x२६). शांतिजिन स्तवन, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिनेसर सोलमा; अंति: रूपचंद० लील विलास, गाथा-११. ८५४०२. आदिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२६४१२.५, २३४२३-२४). आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसंदर, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जय सुरअसुर नरिंद; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५४०४. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.१.प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १३४३४). औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरती मत सुमत द्यो; अंति: शातिकुशल० शिवसुख वरो, गाथा-१४. ८५४०५ (+) भरतबाहुबल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, ५४१६). भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अति लोभीयो; अंति: समयसुंदर गुण गाया रे, गाथा-७. ८५४०६. सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. मगनश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२९-३१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरीये मन मो; अंति: सिद्धिविजय सुखदाय हो, गाथा-१३. ८५४०७. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, १०४३९). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: तुने संसारसुख किम; अंति: कविदास०च्यार निवारजो, गाथा-१२. ८५४०८. शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन व सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. महोदय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमुं; अंति: वंदीए महोदय पद दातार, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. म. साधविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: सीस कहे करजोड, गाथा-५. ८५४०९. पर्युषणपर्व स्तुति व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ११४४८). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. और For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूण्यनो पोषण पापनो; अंति: दिन दिन अधिक वधाईजी, गाथा-४. २.पे. नाम. सेजा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लिला मुनि; अंति: सारी चकेसरी रखवाली, गाथा-४. ८५४१०. भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १५४४०). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदी प्रणमी प्रेमसू; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, गाथा-२१. ८५४११. सामायिकव्रत पूजा ढाल व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ११४३७). १.पे. नाम. १२ व्रत पूजा-सामायिकव्रत पूजा ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. विधि रहित मात्र पूजा.) २. पे. नाम. रीखवजीन तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुम साथे नही बोलु; अंति: ऋषभ मन अणंदे जी, गाथा-५. ८५४१२. त्रेवीसपदवी विचार व चौदगुणस्थानक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १८४५१). १. पे. नाम. वीसपदवी विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ तीर्थंकरपदवी; अंति: पदवी जीवने पोते नावे. २. पे. नाम. चउदेगुणस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्वगुणथानक१; अंति: अयोगीकेवल गुणठाणा १४. ८५४१३. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. सेवाडी, प्रले. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४४२). १. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वपरमेष्टीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रेहनी रेहनी रेहनी; अंति: जिनस्तुति अति लटकाली, गाथा-६. २. पे. नाम. दिनपद देहीभाव, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. दिन, मा.गु., पद्य, आदि: आ देही अमरनांही जोजो; अंति: मेलो मान वडाइरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. शेजाजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चलो तो शेज गिर; अंति: भावे वीतरागता ध्याइई, गाथा-६. ४. पे. नाम. कबीर हरजस, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, कबीर, पहिं., पद्य, आदि: मोती वरणारेणां भाई; अंति: कबीर० ठिकाण करणारेहं, दोहा-६. ८५४१४. रहनेमिराजल संवाद, संपूर्ण, वि.१९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,१७४५७). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: वेकी नीत वंदन करो जो, गाथा-४०. ८५४१५ (+) ९८ बोलारो बासठियो, संपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४२). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., आदि: १ सर्वथी थोडा गरभेज; अंति: सर्वजीवा विसेसाहिया. ८५४१६. दस पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु मु. हेमविमल); गुपि.मु. हेमविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४२६). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५४१७. सम्मेतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १०४३३). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सफल दिन उग्यो; अंति: कवि रूपविजय कहे आज, गाथा-५. ८५४१८. कम्मपयडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जयदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १३४३०). कम्मपयडी स्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, वि. १९४१, आदि: सेना मात जितारि सुत; अंति: अमृतगति चित नित वशी, ढाल-२, गाथा-२७. ८५४१९ उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.१,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२७.५४१२, १६x२६-३२). उपदेशपच्चीसी, मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी जोणम जी; अंति: रामदास० उतरे भव पार, गाथा-२५. ८५४२०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १०४२७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीनजि जगवल्लभ जिनराज; अंति: रंग सुखसंपदा रे लो, गाथा-७. ८५४२१. (+) चैत्यवंदन चौवीसी व सीताजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सरा, प्रले. हरीचंद गोरजी; अन्य. भोजराज, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. चैत्यवंदन चौवीसी, स्तवन-१ से ४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमजिन युगादिदेव; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: उदय० होज्यो प्रणाम, गाथा-७. ८५४२२. (+) तीन मनोरथ व च्यार शरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३८-४१). १. पे. नाम. तीन मनोरथ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: करइ संसारनो अंत करै. २.पे. नाम. च्यार शरणा, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारि सर्ण; अंति: नो सो पडिवजूं छू. ८५४२३. अजितजिन स्तवन व हरजस, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४३४). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में अनानुपूर्वि विधि अंक संख्या दी गई है. ___ मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: रिष रायचंद० किरपानाथ, गाथा-१८. २. पे. नाम. हरजस, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: मायाजुग अंधारसै रे; अंति: तो असल वसीरो लोग, गाथा-५. ८५४२४. (+) उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८९५, वैशाख कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वसंतपुर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १६४३८). उपदेशपच्चीसी, मु. चंद्रभाण, रा., पद्य, वि. १८६०, आदि: चौरासी म चाकजूंरे; अंति: मनरे चेलोचुत्र सुजाण, गाथा-२५. ८५४२५. बाहुबली सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १६x४४). १. पे. नाम, बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा भणी; अंति: रूप०मुझ होयो सदा सवे, ढाल-२, गाथा-६०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोय जतन करे जीवडा; अंति: लबधिकहे केवलनाणी रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४४३ ८५४२६. (+#) शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १९४४१). शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीबीर सोवपुरन; अंति: जुगतसु जोड कीनी, गाथा-२१. ८५४२७. सीमंधरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कोटा, प्रले. झमकू, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, २२४४२). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: तिरभवन साहब अरज सुनो; अंति: श्रीजिनवचन विलास, गाथा-२०. ८५४२८. (2) तेजसिंह गुरुगुण गीत व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३४). १. पे. नाम. तेजसिंह गुरुगण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सा. पद्माबाई, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण जिन शांति; अंति: बाई पदमा० जयजयकार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८५४२९. नमस्कार महामंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ३., (२६४१२, ९४३३). नमस्कारमहामंत्र स्तवन, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथमतो श्रीअरीहंत; अंति: जीव दयारा जतन करो. गाथा-१३. ८५४३०. (+) नमस्कार महामंत्र स्तवन व परनारीपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४३७). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम नमु श्रीअरिहंत; अंति: मुकत चाहो तो धरम करो, गाथा-१३. २. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. परनारी परिहार सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: रावण मोटो राय कहावै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-७. ८५४३१ (+) समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ८५४३२. ४ शरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, १०४३८). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: तो भवनो हं पारो जी. अध्याय-४, गाथा-१२. ८५४३३. २८ लब्धि नाम व २८ लब्धिव्रत विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १२४३३). १. पे. नाम, २८ लब्धिनाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीआमोसहिलब्धिए; अंति: पुलायकवब्धिए नमः. २. पे. नाम. २८ लब्धिव्रत विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धि व्रत विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलेने छेहले दहाडे; अंति: लब्धिए नमः कहेवो. ८५४३४. अठावीसलब्धि दहा व अठावीसलब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पादलिप्तपुरनगर, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७४१२, १०x४१). १. पे. नाम. अठावीसलब्धि दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८ लब्धि नाम दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: आमोसहिलब्धि भलि; अंति: नमो नमो गौतमस्वाम, गाथा-५. २. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठावीस लब्धि सारी; अंति: पणु पामो त्यारे रे, गाथा-६. ८५४३५. (+) परमानंदपच्चीसी व पंचतीर्थी चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०४३८). १. पे. नाम. परमानंदपच्चीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमानजीनंद वंदु; अंति: फारो अध न आतम लीजीए, गाथा-८. ८५४३६. ४ शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३३). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने च्यार सरणा; अंति: समयसुंदर० नो पारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ८५४३७. (#) कर्मग्रंथ १०० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, प्र.वि. हंडी:सोबोल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, २२४४२). कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कहो सामी काणो होय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-९१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५४३८. (+) पांचकारणसंवादवर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अंत में 'श्लोक ८६ की० पांनासुधि पुणा छ आना' ऐसा लिखा है., संशोधित., दे., (२७४१२, ११४३६). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदीइ; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ८५४३९ (+) पर्यषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ११४३६). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजुसण्ण पुन्ये; अंति: ज्ञानविमल०महोदय कीजे, गाथा-४. ८५४४०. मान सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३८). औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: हुई घर घर की पनीहार, गाथा-१३. ८५४४१ (+) पांचवादी विचार, संपूर्ण, वि. १९५२, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भरतपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, २५४५८). ५ वादी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: काल१ स्वभावर नियत३; अंति: ते मिथ्यात्वी छे. ८५४४२ (2) ४ मंगल पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३-१८७९, मध्यम, प. २, कल पे. ६, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. खुश्यालसागर (गुरु ग. ऋद्धिसागर); गुपि.ग. ऋद्धिसागर; प्रले. मु. भाणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४४. प्रताकार में ४ पत्रों में लिखा तो गया है परंतु खड़े पत्र की भाँति अनुसंधान पाठ ऊपर-नीचे के क्रम मे मिलता है. अलग-अलग समय में अलगर लेखक द्वारा लिखा गया है. चंपो पार्श्वदेवजी स्थानक में प्रत लिखी गयी है., अशद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४२६-४८). १.पे. नाम. दानशीयलतपभावना उपदेश, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण शुक्ल, १३. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, ढाल-४, गाथा-२०. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६३, भाद्रपद शुक्ल, १५, शनिवार. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: हंसरू काग रहो तरु; अंति: नहि सो नवखंडे राजीयो, दोहा-१८. ३.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. 19. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४४५ प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: करम परताप तुरीय; अंति: तिम मुल अधिकेरुं थाय, दोहा-४. ४.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८६३, वैशाख शुक्ल, ७, गुरुवार, पे.वि. फुटकर संकलन है. अलग-अलग समय में लिखा गया है. अंत में गेडागीर राज्ये भाई मेलापगीर लख्यावितं का उल्लेख है. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: क्षत्रं० छायापति छात; अंति: धन्यं मृतं ये नराः, श्लोक-८. ५.पे. नाम. समेतशिखर अष्टापद तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ७, मंगलवार. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा; अंति: ज्ञानवि० नायक गावे, गाथा-८. ६.पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र शुक्ल, १५, शनिवार. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जीव कहे तारी ओतम काय; अंति: उदयरत्न० संघली लीजै, गाथा-१२. ८५४४३. सिद्धचक्र स्तवन व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३१-३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्रनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. नवकार छंद, प. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध परि; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१८. ८५४४४. चोथो व्रतउच्चराववानी विधि व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेता, प्रले.पं. प्रधानसागर गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१३०७) लेखणी पुस्तका रामा, दे., (२५.५४१२, १३४४१). १. पे. नाम. चोथो व्रत उच्चराववानी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतर्थव्रत उच्चारण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा पोचतो जोई; अंति: साहमीवच्छल करै. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण... औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: समजण हार सुजाण नर; अंति: राबन पावै राजीया, दोहा-२. ८५४४५. अंतिम आराधना संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८१, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. केशवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बीच में छेद किया गया है., जैदे., (२७४१२, १४४३७-३८). अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहिली इरियावही पडिकम; अंति: लोभंपेज्झं तहा दोसं. ८५४४६. सिद्धाचलजीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. उद्योतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीआणंदभरे; अंति: सेवताए घर घर मंगलमाल, ____ ढाल-२, गाथा-२०. ८५४४७. बलभद्रमुनि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५८). १.पे. नाम, बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. काना, प्र.ले.पु. सामान्य. ___मा.गु., पद्य, आदि: मन मान्यो तूंगियापुर; अंति: पालीन जासी मोख रे, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. धरमसी, पुहिं., पद्य, आदि: खंड के अखंड लाडु; अंति: कहैत पुन जोग पाइय, दोहा-४, (वि. परिमाण गिनकर दिया गया है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: पुरव पुन बीना कहत; अंति: चीत चुप चढी चरj, पद-३. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खाय खिलाव खगकर: अंति: कौ सौचै काहा करहै. दोहा-४. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५४४८. शंखेश्वरपार्श्व छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. हमीरपुर, प्रले. मु. लाभचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, प. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम, उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. गौतमस्वामी दहा, पृ. १अ, संपूर्ण... __मा.गु., पद्य, आदि: अंगूठे अमृत वसै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ४. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ८५४४९ (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., अ., (२५.५४११, १२४१९). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: संज्ञी अनाहारि आहारि. ८५४५०, नंदिषेणमनि सज्झाय, नवपद स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, १४४४९). १.पे. नाम. नंदिषेण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंति: सुकवि इण परि विनवे, गाथा-६. २.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीया चतुर सुजाण नवपद; अंति: समर समर गुण गाय रे, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: जीवत भारआमति; अंति: गुरु ने हम चेला हो, दोहा-४. ८५४५१ (#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १३४२९). अइमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वांदी; अंति: करसी तपावै सिवधाणा, गाथा-१४. ८५४५२. ऋषमणीनी सज्झाय व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. हकमचंद गोवींद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १४४३५). १.पे. नाम. ऋषमणिनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम; अंति: राजविजय रंगे भणी जी, गाथा-१५. २. पे. नाम, पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यवंत पोशाळे आवे; अंति: कह्या दुःख हरणी, गाथा-४. ८५४५३. पर्युषणपर्व सज्झाय व सातवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३१). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्यषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-१, म. माणेकविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सखी पर्व पजुसण आविया; अंति: ____ माणेकविजय जयकार रे, गाथा-९. २.पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ वार सज्झाय, म. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदितवारे उतावला; अंति: एवि रतनविजयनी वाणी, गाथा-९. ८५४५४. दीपावलीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३४). दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४४७ ८५४५५. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, ओसियामाता स्तुति व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७१, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. मयाचंद डुंगरजी भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १२४३६). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता सरसति; अंति: सेवक नित्यविजय जयकार, गाथा-३७. २.पे. नाम. ओसियामाता छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में सरस्वती स्तुति लिखा है. म. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: अपुत्रस्य गृहं शुन्य; अंति: स्वर्गं गच्छति मानवा, श्लोक-२. ८५४५६. साधारणजिन चैत्यवंदन व नेमिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ११४३३). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्री जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिनाथ नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: राजकुमर श्रीनेमनाथ; अंति: मोकलुं पछे हुँ आविस, गाथा-१०. ८५४५७. २४ जिन चैत्यवंदन, पर्यषणपर्व चैत्यवंदन व महावीरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. ३, दे., (२७४१२, १३४३९). १.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ.१अ-२अ, संपूर्ण. मु. रत्नवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीनाथज वृषभलंछन; अंति: नित्य उगमते भाण ए, गाथा-२७. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडाकलप पूरव दिने घरी; अंति: सुणे तो पामे पार, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिनजी नमस्कार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. यशविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: लहिइ नितु कल्याण, गाथा-७. ८५४५८. (-) बीजतिथि व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, १२४४५). १. पे. नाम, बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बिजय कहै भव्यजीवने; अंति: विजयलबधि०विविध विनोद. गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ८५४५९ (+) औपदेशिक सज्झाय द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १२४३९-४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-युवावस्था, पुहिं., पद्य, आदि: जोबनधन थीर नहीं रेणा; अंति: नर रसना जीती जान, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुरु; अंति: नित्य आनंदघन सुख थाय, गाथा-११. ८५४६०. आदिजिनविनती स्तवन व पंडरीकगणधर पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११४५०-५४). १.पे. नाम, आदिजिन विनती स्तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: जिनहरष० देजो परमानंद, गाथा-२०. २. पे. नाम. पुंडरीकजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन पुंडरीक गणधरु; अंति: ञान विशाल मनोहारी रे, __गाथा-५. ८५४६१. औपदेशिक दहा संग्रह व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, २०४४३). १.पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: एक समे जब सींह कू; अंति: कालजौ सोते काढी लीध, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बातन से वयर कटत पंथ; अंति: सीख्यौ जात धूल में. ८५४६२. बासट्ठीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, १७४३७). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५४६३. (+) सील रथ व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१३(१ से १३)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १२४३६). १. पे. नाम. सील रथ, पृ. १४अ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. महासत्व महासती कुलक, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीयै, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरब वार निनांणू; अंति: कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. ८५४६४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-४(१ से ४)=४, कुल पे. १४, जैदे., (२५४११.५, २१४३८-४६). १.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: हरज्यो विघन हमारा जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनेसर भुवण; अंति: जिनमहिमा छाजे जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुमतिकुमति सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण... ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सोहागण वीनवै; अंति: भक्ति युक्ति उपाई, गाथा-९. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. __मु. कपुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी अजितजिणंदने; अंति: कपुरने सिवसुख राज हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. दयासूरि गहुंली, पृ. ५आ, संपूर्ण. दयासूरि गुरुगण गहंली, पं. प्रितीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सील सोभागी जाणीइं रे; अंति: पूरी सहुनी आसरण. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: परमसनेही माहरो गुणनो; अंति: लबध कहै शुभ वाण हो, गाथा-७. ७. पे. नाम. जिनेंद्रसूरि भास, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.. म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोझितनगर सोहामणो; अंति: सौभाग्य० अजी मन भमगै, गाथा-९. ८. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल थाने अरज; अंति: थीरा रहज्यौ महाराज, गाथा-६. ९.पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मटा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारा लागो पासजी आत; अंति: इम कृष्णविजयनो सीस, गाथा-५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रंगविजय, मा.ग., पद्य, आदि: जी प्रभूजी पासजी पास; अंति: रंगविजय० सिवराज रे, गाथा-६. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. वखत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वालहा हांजी; अंति: जी कृष्नहु रंगमे, गाथा-१०. १२. पे. नाम. शंखेश्वरजिन छंद, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक पार्श्व; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा-३२. १३. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ___संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः श्रुतदेवता चरणे नमे; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. १४. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५४६५. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, ११-१२४२३-२८). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवलि कादंबिनी; अंति: (-), (प.वि. ढाल-९ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८५४६७. सामायिक विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ११४३५). सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम थापनाचारज; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक लिखा है.) ८५४६८. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ८x२८-३३). नेमिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: सहीया हे नेमीसर वनडा; अंति: माहरी लीजीये हो राज, गाथा-७. ८५४६९. सिद्धचक्र व गणधरस्थापना गुंहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. गजेंद्ररत्न; पठ. श्रावि. पुतली बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १०-१२४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र गहुंली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वात निदाननी रे लो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गणधरस्थापना गंहली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गणधरस्थापना गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनिहारे नयरी अपापा; अंति: काई वंदना वार हजार, गाथा-९. ८५४७० (#) औपदेशिक सज्झाय, कुलनाम व चंदण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२.५, ३५४२५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अबक जोग मिल्यो छर हे; अंति: जमलजी कहे० कारज सारो, गाथा-१५. २. पे. नाम. १२ कुल नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: उग्रकुल१ भोगकुलाणि; अंति: कलाणि वा अनेयरस् बा. ३. पे. नाम. चंदण सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सांझ पडी दीन आथम्यो; अंति: जणा पोहता नर्ग मझार, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५४७१ (+) रावण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,१७४३३). रावण सज्झाय, म. जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहै भैभीछण सन हो; अंति: पाछी मेल दे प्रनारी, गाथा-१७. ८५४७२. (+) लेश्या, समवसरण व षड्द्रव्य ११ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५७-६३४१५-३०). १. पे. नाम. लेश्या ११ द्वार विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नामाई वण रस गंध फास; अंति: पहली आवे तो काल करे. २. पे. नाम. समवसरण ११ द्वार, प. १आ-२आ, संपूर्ण. समवसरणद्वार-भगवतीसूत्रे-शतक ३०, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस २ पखी ३; अंति: १ क्रियावादी लाभै. ३. पे. नाम. षड्द्रव्य ११ द्वार, पृ. ३अ, संपूर्ण. षड्द्रव्य ११ द्वार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: परिणाम१ जीव२ मत्ता३; अंति: काल५ असर्वगत५. ८५४७३. साधारणजिन पद व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १०४३०). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वखता, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु मेरे तारणतरण; अंति: आयौ बगता कै माहाराज, गाथा-२. २.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___ मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मारो कंथ चतुर दिल; अंति: आनंदघन० जन प्राणी हो, पद-५. ८५४७४. महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, १२४३१). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ८५४७५. ४२ दोष विवरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२.५, १५४४३). गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सासनपति चोवीसमो; अंति: रचना अठारै अट्ठोतरै, गाथा-३६. ८५४७६. धर्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. रायचंद घहेलाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२४३८). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करी वंदण होज्यो. ८५४७७. (+) विहरमानजिन नाम-उत्कृष्ट संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, ३०x१३). विहरमानजिन नाम-उत्कृष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथ१; अंति: ३४ श्रीबलभद्र. ८५४७८. सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ४,६ से ८)=४, कुल पे. १२, दे., (२६४१२, १७४५०). १. पे. नाम, श्रावकोपदेश सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: होवे पडमाधारी जी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहि., पद्य, आदि: काशीदेश बनारस नगरी; अंति: मोखमारग दीखलाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. आसकरण, पुहि., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीने वंदना नीत; अंति: उतम साधुजी रो दास रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद; अंति: प्रभूजी रो पीर, गाथा-१२. ५.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मा.गु., पद्य, आदि: चलो दरसन चलीये; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. २४ जिन लावणी, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४५१ म. विनयचंद, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: विनयचंद वंदत चरना, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-११ से है.) ७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अजीत संभव; अंति: महासुखां की खाण है, गाथा-८. ८. पे. नाम. भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम समरूं श्रीरीषभ; अंति: वंदना भरतने होय ए, गाथा-२६. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ.१०अ-१०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-३१. १०. पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: श्रीरीषभ अजित संभव; अंति: कीया भवसागर तीरना, गाथा-१२. ११. पे. नाम. ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियं, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पौ उठी परभात ज समरूं; अंति: सफल फली मुज आस रे, गाथा-१०. १२. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: (-), ___(पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५४७९ (+) लिपि, भाषा व कला नाम, अपूर्ण, वि. १९०९, ?, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्ष हेतु प्रतिलेखक ने १९ब९ लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१२, १६४२७-३२). १. पे. नाम. १८ लिपि नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)बली भगवंतइ ब्राह्मीन, (२)हंसलिपि१ भूतलिपि२; अंति: मूलदेवी लिपि१८. २.पे. नाम. १८ देशनी भाषा नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण. १८ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, आदि: लाटी१ चोटी२ माहली३; अंति: मालवी१७ महाजोधी१८. ३. पे. नाम. ७२ कला नाम, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: लिखत१ पठत२ गणित३; अंति: सर्पदमन७१ नावाबंलि७२. ४. पे. नाम. ६४ कला नाम, पृ.१०आ, संपूर्ण. ६४ कला नाम-स्त्री, मा.गु., गद्य, आदि: नृत्१ उचित्य२ चित्र३; अंति: प्रश्नपहेली६४. ८५४८० (+) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४४१). अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतलडी बंधाणी रे; अंति: मोहन कहे मनरंग जो, गाथा-५. ८५४८१. स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१२.५, १३४३५). स्तुतिचौवीसी, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलजिन स्तुति, गाथा-५ अपूर्ण से नेमिजिन स्तुति, गाथा-५ तक है.) ८५४८२. पार्श्वजिन थाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०). पार्श्वजिन थाल, म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे बोलावे; अंति: थावे गीता गाय सदाय, गाथा-९. ८५४८३. अष्टमी, सिद्धचक्र व चैत्रीपूनमनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सुंदर; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५४८४. पंचमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२,१०४३६). पंचमीतिथि स्तवन, म. वर्धमान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १४८४, आदि: सारद प्रणमी पाये सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ८५४८५. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३१). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८५४८६. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३३). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८५४८७. मयणासुंदरीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४४५). मयणासंदरीसती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करो; अंति: ज्ञानविमल० उल्लास रे, गाथा-१२. ८५४८८. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, १२४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने रे; अंति: कीधो भणे भणिय आदरे, ढाल-३, गाथा-२८. ८५४८९. औपदेशिक सज्झाय व मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अद्यतन, दे., (२५४१२.५, १५४५९). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-साधु दोषनिवारण, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: इचरज आवे रे विना; अंति: कर के मुगती पधारो रे, गाथा-१३. २. पे. नाम, मेघरथराजा सज्झाय-दया विषये, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमेघरथराजा राख्यो; अंति: काइ अभयदान परधान हो, गाथा-२०. ८५४९० (+) ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, २४५१९-२१). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सर्वसुं थोडा गर्भेज; अंति: ९८ सर्वजीवविसेसा. ८५४९१. इलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. किसतुरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. स्थल नाम अवाच्य है., जैदे., (२५.५४१२, २३४२३-३५). इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनीलो; अंति: केवलग्यान विशेषइ, ढाल-४. ८५४९२. गोडीपार्श्वजिन छंद व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मणिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-१८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ८५४९३. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१२, १२४२७). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: फले हो सघली आस कें, गाथा-२२. ८५४९४. (+) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३२). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख कृष्ण, ४. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सेहजानंदी; अंति: जिनविजय आणंद सभावे, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: हरीयाली डुंगर जाइजो; अंति: उत्तम पुरो आस्या रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. वज्रधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह स्तवन अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखित प्रतीत होता है. वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: एक सबल मुझ मन धोखो; अंति: सरसव जितलो फेर रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि सुण चंदाजी सीमंधर अतिः पद्मविजय० अति नूरो, गाथा- ७. ८५४९५. (+) अजारीभवानी व गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. श्री सुवधिनाथजी प्रशादात् संशोधित, जैदे. (२५.५X११.५, १५४५७-६०). १. पे. नाम. अजारीभवानीजीरो छंद. पू. १अ २अ संपूर्ण, सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: वाचा फलशी माहरी, गाथा- ३५. २. पे नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. २अ ३अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: कांतिवजे० गोडी धवल, गाथा ३७. " "" ८५४९६. शीलव्रत ३२ उपमा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. हुंडी शीलनी बतीस उपमा, जैदे. (२५.५४१२, १५X३९). शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व ग्रह नक्षत्र अति उत्तम अने प्रधान छे. ८५४९७. पांडव लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५x११.५, १८x४६). पांडव लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पांडव पांचों संयम, अंति: हीरालाल०भविय हितकारी, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने गायांक अव्यस्थित लिखा है अतः गाथा परिमाण गिनकर दिया गया है.) ८५४९८. (*) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, १२ गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. मु. कस्तुरकुसल प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १४X३६). " २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निजगुरु चरणकमल नमि अति: नय० जिनगुण भणीई, गाथा - ३८. ८५४९९. त्रैलोक्यविजययंत्रकल्प व आठकर्म प्रकृति, अपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, ले. स्थल. गढनगर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक खंडित होने से पत्रांक अनुमानित है. अंत में 'वीरचंद पुस्तकोपर' लिखा होने से संभवतः वीरचंद नामक प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रत पर से प्रतिलिपि की गई होगी., जैदे., (२५.५X१२.५, १५X३८). १. पे. नाम. त्रैलोक्यविजययंत्रकल्प, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.. त्रैलोक्यविजययंत्र कल्प, प्रा., पद्य, आदि (-): अंति: कप्पणकप्पडुमो सुहइ, गाथा- २३ (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विवरण, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानावरणीरी ५ अंति (-), (पू.वि. कर्मप्रकृति विवरण- ४५ तक है.) ८५५००. देवलोकनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X१२, ११४२५). देवलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मा देवलोकमां; अंति: वरज्यो जय जय कार रे, गाथा-११. ८५५०१. दीवा सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, दे. (२५.५५१२.५, १०X३१). " १. पे. नाम. दीवा सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गाथा - ९. औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दशधारी ए दीवो कहो ओ; अंति: तो निश्चे मुक्ते जाय, ढाल-२, २. पे नाम औपदेशिक पद. पू. १ आ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः उदउरतननी वीनति, अंति: मोक्षपुरिमां वास. ८५५०२. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : सज्झाय., जैदे., (२५X१२, १४X३६). इरियावही सज्झाय संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी अति विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल २, गाथा २५. ८५५०३. बीस बहेरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३२ माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पू. १, जैवे. (२५.५x१२, ११-१३x२८)२० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी श्रीमंध; अंति: लीबउ० अविचल पदवी मागु, गाथा- १८. Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५५०४. धनाअणगारनो चोढालीयो व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९४५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. विसलपुर, प्रले. जुठाभाई डाह्याभाई; पठ. सा. डाहीबाई महासती शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११-१३४४६). १. पे. नाम. धनाअणगारनो चोढालीयो, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९४५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, ले.स्थल. विसलपुर, प्रसं. जुठाभाई डाह्याभाई; पठ. सा. डाहीबाई महासती शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य. धन्नाअणगार चौढालिया, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: (-); अंति: मालमुनी गुण गाय, ढाल-४, (पू.वि. अन्तिम ढाल की गाथा-१ अपूर्ण से है., प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अजाणी फोजो पावसे; अंति: कवीजन० उतारो एकरदीस, गाथा-७. ८५५०५. १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई सह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १४४३२). १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीन चोविस पाय; अंति: अमरसुंदर० सवि सुख लह, गाथा-१६. १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई-बीजक, पुहि.,सं., गद्य, आदि: वांछाकृतार्द्धकृतरूप; अंति: शांतिकरता० जंत्र विध. ८५५०६. (+) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, संपूर्ण, वि. १९५५, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १२x२५). २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: कहे ज्ञानविमलसरीस, गाथा-१५. ८५५०७ (#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १७४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भुवनचंद, पुहिं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: का डर राख रे प्राणी, गाथा-१४. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुम सुण जुहा की आरी; अंति: सत की विसन को मर भाइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दया पालन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दाया पालानी मन चित; अंति: भाइ दुरगत म ना जावो, गाथा-४. ८५५०८. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, चैत्र कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले.सा. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ११४३८). सीमंधरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पुर्वदेसा हो प्रभुजी; अंति: नथमल० वरते जेजेकारे, गाथा-१५. ८५५०९ १२ कुल नाम, १० अछेरा व तपागच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १०४५१-५६). १.पे. नाम. १२ कुल नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: खल अरहंता वा; अंति: भावे लोगच्छेर० ए अणं. २. पे. नाम. १० अछेरा, पृ. १अ, संपूर्ण. १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीमहावीरनै छद्मस्थ; अंति: ए दश अछेरा कह्या. ३. पे. नाम, पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: दयासूरि विजयधर्मसूरि. ८५५१०. त्रिभंग्यर्थ व विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १५४४३). १.पे. नाम. त्रिभंग्यर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिपदी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उपन्ने वा१ विगमइ वा२; अंति: ध्रुव ते स्थिर वस्तु. २.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, प. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ४५५ 1 विविध विचार संग्रह " गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि तथा जीव समयसमयप्रते; अंति प्रदेश घणा श. ३५, (वि. कर्म, लेश्या, भगवत्यादि पाठ सह विचार.) ८५५११. धर्मजिन स्तवन- नागपुरमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X१२, ९X३१). धर्मजिन स्तवन-नागपुरमंडन, मु. रतन, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: शिवनाजीनो सायखो; अंति: रयपुर संय सुजाण, गाथा ५. ८५५१२. स्तवन व होरी पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., ( २६४१२, १२४३५). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति: प्रभू प्यारा रे, गाथा - ५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा. गु., पद्य, वि. १८८३ आदि विमलाचलगिरि वंद्या, अंतिः सुगुण सदा सुखकारा रे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. नेमिजिन होरीपद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, मा.गु, पद्य, आदि: मेतो सगरी भीज गइ कुण; अति हस हस देत है ताली रे, पद-४. ४. पे नाम वसंत पद, पू. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कुण खेले तोसें होरी; अंति: आनंद रहवा जोरी रे, गाथा-३. ८५५१३. नववाड दशमो कोट, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : नववाड०., जैदे., (२५X१२, १८x४२). शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमुं पंचपरमेष्ठि; अंति: हरख अपार रे माही, ढाल - १०. ८५५१४. सिद्धक्षेत्र तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १ दे. (२५५१२, १४४३८). शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी: अंतिः सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा - १६. ८५५१५. (#) नेमराजिमती तेरमासा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रत के अन्त में कोई अज्ञात कृति लिखी हुई है जो अवाच्य है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२, १४- १९३० -५१). " नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नदीए जल वहता थया" पाठ तक लिखा है.) ८५५१६. (+) वसीराम लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमरसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै.., (२६X१२, १२X३९). वसीरामस्वामीगुरुगुण लावणी, मु. पूजा, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवितरागदेव नमः अति: पूजा०सेहेरमे गुण गाइ, गाथा - १७. ८५५१७. गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल. विरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत्येक पत्र पर पत्रांक १ लिखा है., दे., । १२X३२). (२६५१३, ९. पे. नाम महावीरजिन गहुंली, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सैयर जगगुरु वंदन; अंति: मोहन० सफल थया सहू आशा, गाथा- १०. २. पे. नाम. पजुसणनी गहुली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व गहुली, मु. सुमतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि हूं तो घाल भरुं रे; अंतिः सखी सूमतीवीमल भव पार, गाथा-८. ३. पे. नाम. पजुसणनी गहुंली, पृ. ३अ -३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति समरी; अंति: मोहन०वधांमणां रे लोल, ४. पे. नाम. गुरुविहार गहुली, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज रहो मन मोहना तुम, अंतिः शुभवीर० नार रे, गाथा- १७. ८५५१८. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. सोजत, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, १४४३५-३९). For Private and Personal Use Only गाथा-८. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव रांणी पदमावती; अंति: कीयो जांणपणानो सार, ढाल-३, गाथा-३६. ८५५१९ (+) गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सजाय., संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १४४३६). गुरुगुण सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: जंबूद्वीप भरतमै; अंति: कीयो मोतीचंद हित आणी, गाथा-१९. ८५५२०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ९४२३). शजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)जात्रा नवाणुं करीये, (२)पूरव नवाणु वार; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. ८५५२१. नमस्कार महामंत्र छंद व १९०५ आठमपाखीनी टीप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ३०४२४-३०). १. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: कुशललाभ० वंछित लहे, गाथा-१८. २.पे. नाम. १९०५ आठमपाखीनी टीप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८५५२२. नवपद स्तति व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३८). १. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरं सुखदायक मनसुध; अंति: श्रीजिनचंद्रनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहइ; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ८५५२३. (+#) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३१). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा रे पंथ चलैगो; अंति: रूपचंद० उतरौगै पार, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: सहीयां मारे प्रभुजी; अंति: निरख बदन सुख पासा ए, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. मेघसंदर, पुहिं., पद्य, आदि: पुजण जास्या मे तो; अंति: भवदधि पार उतारो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुणो सुजाण नेम; अंति: भर आंणौ सुजाण नेमजी. ५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: संतजिणेसर बंदियै सुख; अंति: आनंदघन० अविचल आस, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: रे तुं लगजा मनवा; अंति: तुम साहिब हो मेरा रे, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे वटाउव बहिया; अंति: आनंदघन० सफल कर लहीया, गाथा-४. ८. पे. नाम, नेमराजुल पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मनो रे मुज बालवा; अंति: पीया दोउं उतरो पार, गाथा-३. ९.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कबीर, पहिं., पद्य, आदि: जबलग जीये जब करले; अंति: कवीर० विखरगया मेला, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४५७ म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कीनो तो जिनजीसु नेहड; अंति: आनंदघन० घुराय दीया, गाथा-३. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: छिन छिन जावै रे समझ; अंति: आनंदफल पावे रे समझलै, गाथा-४. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा रे जाय कहो; अंति: आनंदघन न राखो लाज, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: जडसै कटारे डारु नीबु; अंति: पायो मे निरमल ग्यांन, गाथा-३. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अटके हो नेणां जिन; अंति: तमसे जिनरस पीयो गटकै, गाथा-२. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन के पाए लाग; अंति: आनंदघन पाय लागरे, गाथा-३. १६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बरव्याहन आयै जादुपति; अंति: जां सुख पावै सील सती, गाथा-३. १७. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: भवि तुमे सांझ समे; अंति: प्रभु दरसण होत आणंदा, गाथा-५. १८. पे. नाम, औपदेशिक पद-वैराग्य, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: दुनीया मतलब कि गरजि; अंति: आनंदघन०मुरदा संग जली, गाथा-३. १९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण... श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: इस नगरी में किस विध; अंति: सायब लुट गया डेरा, गाथा-३. २०. पे. नाम. साधारणजिन होरी पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यौ जिनमंदरमें; अंति: उतरे पेले पार री, गाथा-३. २१. पे. नाम. साधारणजिन होरी पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कुण खेले तोसें होरी; अंति: नंदघन कहै कर जोडी रे. २२. पे. नाम. प्रास्तावित कवित्त संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पहिं., पद्य, आदि: सोवत सीप बसै जलमें; अंति: को कंथ पीता को पीता, गाथा-२. ८५५२४. (+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३२-३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९१०, फाल्गुन कृष्ण, ४, प्रले. ग. फतेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे; अंति: करण नमो २ गोडी धवल, गाथा-३७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवि सुत प्रात; अंति: सुजस० दोलत सवाइ मात, गाथा-९. ८५५२५. २४ दंडक स्तवन, विधि व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२, १२४३२-३७). १. पे. नाम. चोवीसदंडक स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: ___गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. २.पे. नाम, संथारापोरसी विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: एय समत्तं मए गहियम, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पछखांण पारवानी विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमा० इरिया० पडिक्कमी; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ४.पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मिळू; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ८५५२६. (+) साधारणजिन, अजितजिन व अनंतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा तोरी वाणीइ; अंति: प्रेमे०इम कवी कंत रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित श्रीशांतिनो; अंति: पासचंद० हरखै भणी ए, गाथा-९. ३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अनंतजिन पद, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: जगदुद्धारण देव कृपा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५५२७. (+) इलाचीकमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १२४३८). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे इलाचीपुत्र जाणी; अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८५५२८. (+) मौनएकादशी स्तवन, औपदेशिक दोहा व फकीरचंदमनि चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, २१४३६). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: सुदी अगियारस वडी, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा-गरुमहिमागर्भित, पृ.१अ, संपूर्ण. ___ पुहि., पद्य, आदिः (१)वुढाला तेरी अकल कीदर, (२)सोला वरस का वेटा वटी; अंति: सुणावै० ती जहाडी, गाथा-११. ३. पे. नाम. फकीरचंदमुनि चरित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. सदाकुंवर, पुहि., पद्य, वि. १९३३, आदि: जंबुदीपरा वरतखेत्र; अंति: दरसण दीजो कुरणागरो, गाथा-१२. ८५५२९ मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मांनतुंगरास., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३७). मानतंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८५५३०. अढार हजार शीलांग रथ यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १०x१२). १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५५३१ (+) आदिजिन व २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,११४३३). १. पे. नाम. आदेश्वरभगवाननु चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर प्रणमु श्रीआदि; अंति: केवली वंदु बे कर जोड, गाथा-९. २. पे. नाम. वीस वहेरमाननं चैत्यवंदन, प. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. जीव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर युगमंधर प्रभु; अंति: वंदता जीव लहे भवपार, गाथा-६. ८५५३२. लौकिकस्थविर व आगमपाठक वंदनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४४०). १. पे. नाम. लौकिकस्थविर वंदनावली, पृ. १आ, संपूर्ण. 8.) For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., गद्य, आदि: लौकिकथिवरदेशकाय; अंति: थिवराय नमः. २. पे. नाम. आगमपाठक वंदनावली, पृ. १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: श्रीआचारांगश्रुतपाठक अंतिः श्रुतपाठकाय नमः, ८५५३३. () चुडलो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. लिछमाजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चोडलो., अशुद्ध पाठ. जी., (२५४१२.५, १८-२१४२६-३८). चूडलो रास, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गुणधर लागुजी पा; अंति: परायो हरजी चुडलो, गाथा-२३, (वि. गाथांक अव्यवस्थित हैं.) ८५५३४. (+) सिद्धाचल स्तवन व ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४.५X१२.५, १५x२९). १. पे. नाम सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेताली मुझ पांखडीजी अति जी नही इणमे संदेह के, ४५९ गाथा-७. २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पू. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमी पास जिणेसर अंति (-), (पू. वि. प्रथम ढाल तक है.) ८५५३५. (*) चंदणबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय पठ. श्रावि धनकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में किसी अन्य प्रतिलेखक ने प्रभास गणधर तक के नाम लिखे हैं., संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १४४४०). चंदनबालासती सज्झाय, पं. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६२०, आदि वीरजिणेसर पाय पणमी, अंतिः मुगतिना सुख ते लहे, ८५५३६. (*) सालभद्रधनानी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१२, १३४३१). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि मुनि तो वइभारगिरि जइ अति: पाम्या भवजल पार रे, गाथा - २७. गाथा - १२. ८५५३७. महावीरभगवाननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२.५, १२४३८). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदिः आधार ज हुंतो रे एक; अंति: पाम्या सिवपद सार, गाथा - १५. ८५५३८ () सीमंधरजिन स्तवन व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. ३, प्र. मु. विवेकविजयः गाथा - ९. २. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसीमंधर साहिबा अति भक्ति०चरणें सिरनामी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. अन्य. ग. रत्नविजय (तपागच्छ); पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदेसरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१३, ११४३२). " १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कुडी; अंति: जिनविजये गुण गायो रे, For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि शत्रुमित्र समचित्त, अंति: वलि अवधारो हेव, गाथा-१. ८५५३९ (4) गौतमरास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, अजमेर, प्रले. सा. इमरता (गुरु सा. सुव्रता), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५x१२.५, १६-२२४३३-४२). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: (अपठनीय); अंति: गोतमसांमीमां गुण घणा, गाथा-१४, प्र.ले.पु. सामान्य. ८५५४० (+) संख्यातादिक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५५१२.५, १७४४२). संख्याता असंख्याता अनंता मान विचार, मा.गु. सं., गद्य, आदि संखिज्जे ग० ७१; अति विदंति किं बहुना. Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५५४१. असिज्झायनी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२.५, १३x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असज्झाय सज्झाय, मु. प्राषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरसती माता आदि नमीने अति वहेला वरसो सिद्धि, गाथा - ११. ८५५४२. (+#) सुबाहुकुंवरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१२.५, ९३०). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुवाहु कुवर इम; अंति: खेत्रमा जा मोक्ष, गाथा - १५. ८५५४३. (७) १८ नातरा सज्झाव, संपूर्ण वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, कोटा, पठ. श्रावि. सीरुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२५x१२.५, ९४२२-२७). १८ नातरा सज्झाव, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि पहीलि पहला तो प्रणमो अंतिः सिद्धविजय० मन रंगीला, हाल-३, गाथा-३२, (वि. कर्ता सीद्धविजय लिखा है.) ८५५४४. गुरुगुणवर्णन जोड व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१२, २०x४९). १. पे. नाम. गुरुगुणवर्णन जोड, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८५, आदि: सतगुर हे सोदागर भारी; अंति: जद कीधी प्रकासों, गाथा १६, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि नगरी धारकी कडि किसन; अंति: लाधो संजमा भारोजी लो, गाथा- ९. ८५५४५. कृष्णजी व पार्श्वजिन ढाल, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी कृष्णजी०, जैये. (२४.५४१२.५, २३४५६). १. पे नाम श्रीकृष्णजीरी ढाल, पृ. १अ ४अ संपूर्ण कृष्ण ढाल, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीनेमनाथसमोसर्या अति: सकल मुनि सुखदाइ रे, ढाल १८. २. पे नाम, पार्श्वजिन ढाल, पू. ४-४आ, संपूर्ण. नानूलाल द्विज, पुर्हि, पद्य, आदि दरस सशि निर्मलश्री अतिः शिर बिनवै लुस्लुस्के, गाथा ५. ८५५४६ (+) ४ ध्यान विचार व वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. वे. (२४.५x१२.५, १९-२६४३०-३७). १. पे नाम. ४ ध्यानभेद विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ४ ध्यान विचार, मा.गु. रा., गद्य, आदि प्रथम आरितध्यान जीका अति: (१) चेत नहीं पिण पोताना, (२) विषे यो अधिकार जाणवा. २. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: असार के० साररहित एवो; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८५५४७ (+) सीझणद्वार व उपवासादि फल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४१३, १७X३५-५२). , १. पे. नाम. सीझणद्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: रत्नप्रभाना आव्या; अंति: नपुंसक १ समे १० सीझै. २. पे. नाम. उपवासादि फल, पृ. १आ, संपूर्ण. उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि १ उपवास करे तो एकनौ; अति: ६२५नौ फल एतला होइ. ८५५४८ (+#) कल्पसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१ ( ४ ) = ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१२.५, १५x४२) For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ', कल्पसूत्र-वालावबोध", मा.गु. रा. गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नमस्कारमंत्र के प्रभाव वर्णन अपूर्ण तक है.) ८५५४९. बूधरनागीला सज्झाय, अष्टमीतिथि स्तुति व बीजतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२४.५x१२.५, १३४२८). १. पे. नाम भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि बुधरभाई घर आवियोजी अति समयसुंदर गुण गाय जी, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पू. १अ १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जिवत जुग परमाण, गाथा-४. ३. पे. नाम बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि रज उडे तो निरंतर पडे, अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. असज्झाय विचार कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., को., आदि (-): अंति: (-). मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि बीज रीझ करी सींचीए; अंति कर ए श्रीसुववीर हजुर, गाथा- ४. ८५५५०. गाथा संग्रह, असज्झाय विचार व कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २४x१२.५, २०x४२-४७). १. पे. नाम चयनित गाथा संग्रह. पू. १अ संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कोणिय चेडय रणोरणामि; अति नमिओ अजिअसतो कउलेण, गाथा २९. ८५५५१. (+) कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६X१२.५, १२x२५-३०). ४६१ कुंथुजिन स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि राति दिवस नित सांभरे; अंतिः पद्मने मंगल माल लाल, गाथा-७. ८५५५२. (+) १३ काठिया सज्झाय व कान्हडकठियारा प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X१२.५, १८X३५-४० ). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल नागोर, प्रले. मु. मगन, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. आसकरण ऋषि, रा. पद्य वि. १८६९, आदि: रतनचिंतामण एहवो पामी; अंति: आसकरण० सेर चोमासजी, 1 1 १. .पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. , गाथा - २१. २. पे. नाम. कान्हडकठियारा प्रबंध पू. १आ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. 1 मु. . जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहत सिध समरु सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ की गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८५५५३. (+) प्रभंजना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१२.५, १३(३१). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि गिरि वेताढ्यने ऊपरे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र ढाल १ तक लिखा है.) ८५५५४. (४) गीत, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२.५, १३-२४४४०-६०). For Private and Personal Use Only मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि श्रीजिनपाश दयाल अति अपनैका मेटो भव जंजाल, गाथा-४, २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखीयां सफल भइ में; अंति: कहै रै वरतै जयजयकार, गाथा- ७. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी जान जरा सा ; अंति: भवदुख फंदन कटणा रे, गाथा-३. Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: चालो राजा श्रेणिक; अंति: नवलप्रभुजी से नेहरा, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, पुहि., पद्य, आदि: मेरो दिल वस कीयो; अंति: पदम को चित्त हर लाय, गाथा-४. ६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंद्राप्रभु जिन; अंति: तुम चरणै बलिहारी, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी दोढवी दान की; अंति: लाल० तौ सब वतावता है, गाथा-३. ८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मूलचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: मना तूं छोड मनमथ कुं; अंति: मूलचंद० संपती पावै, गाथा-५. ९.पे. नाम. भैरुजी रो गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. भैरुजी गीत, मु. मूलचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: ॐ नमो अनाद सिध भैरवौ; अंति: मूलचचंद० भैरवो भूपाल, गाथा-४. ८५५५५ (+#) जिनकुसलसूरि चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२, ७-१२x२३). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसहजिणेसर सो जयो; अंति: जयसागर० फल ते लहए, गाथा-१५. ८५५५६. धर्मभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१२, १२४२७-३०). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन हो प्रभु संसार; अंति: रीने वंदना होज्यो जी. ८५५५७. (+) विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., जैदे., (२५४१२, २१४४६). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तमस्काय लंघन विचार अपूर्ण से त्रसनाडी विचार तक है., वि. देवलोक, मेरुमांडणी आदि विचार.) ८५५५८ (+) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, प्रले. पं. कीर्तिविमल (गुरु पं. दयावर्द्धनमुनि); गुपि.पं. दयावर्द्धनमुनि; राज्ये गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि (खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नव०सि०पत्र., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६-४०). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर जिनचरण प्; अंति: जुगति नवि बाडो रे, ___ ढाल-११, गाथा-९७, (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-८ की गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ८५५५९ (+) गौतमस्वामी रो स्तवन व होलिका चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. कृष्णचंद्र; राज्यकालरा. सीधरिसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, २२४४५). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गण गावो गोतम तणा; अंति: रायचंद० गोतमस्वाम जी, गाथा-१२. २. पे. नाम. होलिका चरित्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरष प्रथम; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, ढाल-४, गाथा-५९. ८५५६०. देवानंदामाता सज्झाय व कठियारादृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१२, १२४२५-३०). १.पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप हो देखी मन; अंति: पूछि उलट मनमां आणि, गाथा-११. २. पे. नाम. कठियारादृष्टांत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. कान्हडदृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनवर रे गौतमगणधर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५५६१ (+) जिनग्रहप्रतिष्ठा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. पांचिलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में अज्ञात यंत्र दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३८). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम दिनरी विधि मुल; अंति: नवकारवालि एक गुणै. ८५५६२. (+#) पद, स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५-१७४५२-६०). १.पे. नाम. दिनमान श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अयनादिक वास राम हता; अंति: दिनकर्कादिनिशा, श्लोक-१. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जगदीस, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: जगदीस की दहाई है, (वि. पत्र की स्याही फैलने के कारण आदिवाक्य अपठनीय ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चोप चीणी मे गुण छै; अंति: तणी दे सुपात्रे दान, गाथा-२. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूर तुम पाय सेवता, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: बालापणइ डावइ पाय चंप; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. ६. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ७. पे. नाम, चौवीस तीर्थंकर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. सुखडी री स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माई जउ तुसे अंबाई, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जिनानाम नाम स्फुरद; अंति: स्वर्णकांति, श्लोक-४. ११. पे. नाम. चैत्यपरपाटी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीसे–जयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदष्यम्, श्लोक-४. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धुप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण... आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १५. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं ध्याउं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १६. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तति, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु. पद्म, आदि: चउवीसे जिनवर प्रणम् अति जीवित जनम प्रमाण, " गाथा-४. १७. पे. नाम. आलोवणा विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि आजोणा चउ पहरा दिवस अंतिः मांहि आलोवु छु. १८. पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि नमंत सामंत मही बनाहं अंति लाभाय भक्क्खयाय, गाथा २. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९. पे. नाम. १४ आवक नियम गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ आवकनियम गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि सचित्त १ दव्व २ विगइ अति: १ ३नाहण १४ भतेसु, गाथा- १. २०. पे. नाम. पाणी पारण गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. पानी उपयोग की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: साढपोरसि चउविहार; अंति: भणइ पाणि अंबारे... ८५५६३. (*) चोवीस तीर्थंकरजीना सुत गणति व २४ तीर्थंकर नाम, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१ (१)-१, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी तवन, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२४.५X१२, १४४०). - १. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकरजीना सुत गिणति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण वि. १८९६ ले स्थल, शाजापुर, प्रले, मु. जीतजी (गुरु मु. मोतीचंद); गुपि, मु, मोतीचंद (गुरु मु. सोभागचंद ऋषि) मु. सोभागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि राजाराणी कुटंबो घणो अंति: सूद चौथे मृगसर मास ज, गाथा- १८. २. पे. नाम. २४ तीर्थकरनाम, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला रीषभदेवजी; अंति: महावीरसामीजी २४, अंक २४. ८५५६४ (#) श्रावक करणी, नेमनाथ लुहर, कृष्णजी बारमासो व कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २)=२, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१२, १३४४५) "" १. पे. नाम. श्रावक करणी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. 1 आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि (-); अति जिनहरख० दुखहरणी के एह गाथा २२, (पू. वि. गाथा - १९ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. नेमनाथ लुहर, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अति जिनहरष पर्वपै हो, गाथा ९. ३. पे. नाम. कृष्णजी बारमासो, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण, वि. १८७२ पौष कृष्ण, १२ ले स्थल, सूरजगढ, प्रले. पं. धरमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. कृष्णराजा बारमासा, मु. कुसलसमय, मा.गु., पद्य, आदि: गुडलाबाद गरजीया काली, अंति: अणदेस ककुसलो कोटडी, गाथा - २४ (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा के रूप में गिनती करके लिखा है.) 3 ४. पे नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. गिरधर, पुहिं, पद्य, आदि राजा के दरबारमै जाइय; अति फेर तोहि पूछे राजा, पद- १. ५. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पू. ४आ. संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि ठकुराइ के रोगते गात; अंति: लघु चेतो ठकुरावस, पद-१. ८५५६६. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५४१२.५, १२४३०). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता, अंतिः साधुविजयतणो ० करजोड, गाथा ५. ८५५६७. बहुतर भेद मिथ्यात विवरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५४१२, १६x४२-४५). ७२ मिध्यात्वभेद विवरण स्तवन, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्म, वि. १९वी आदि आदि प्रमुख ले अति जपै रूपवल्लभगणिवरू, दाल-४, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४६५ ८५५६८. (+#) सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४३५-४०). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: भो श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत अनंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'सर्वसंपत्तिहेतु' पद तक का अर्थ लिखा है.) ८५५६९ (4) आलोयणाछत्रीसी व भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १७४३२-३५). १.पे. नाम. आलोयणाछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन कृष्ण, २, शुक्रवार, ले.स्थल. टांपीगाम, प्रले. पं. धीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोइं तु आपणा; अंति: में करी आलौयण उछाह, गाथा-३६. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. धीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम: अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, गाथा-२१, (वि. लेखनकार्य के आधार से यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है.) ८५५७० (+) नवकारमहामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १२४२६). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंतिः प्रभु सुंदर भास रसाल, गाथा-७. ८५५७१ (4) नित्यस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३-१७४४०). लघुस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रावक स्नान करी नवी; अंति: कहै मंगले वौ खमावै, (वि. मूल पूजा का मात्र प्रतीकपाठ दिया है.) ८५५७२. (+) वीर निर्वाण व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३६-४०). १. पे. नाम. वीरनिर्वाण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व गर्भित, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, ई. १९वी, आदि: सरसतीस्वामीने विनवू; अंति: फरि नावं गरभावास, गाथा-१५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९००, आदि: सांभल सजनी रे प्यारी; अंति: हरी लहे सीत ठकुराइ, गाथा-११. ८५५७३. विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १६-३०-२६-३०). विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजलोक विचार से देवलोक विचार तक ८५५७४. (+) अंतरिक्षपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३७-४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात मया करी आपो; अंति: भावविजयदेव जय जयकरण, गाथा-५०. ८५५७५ (+#) छ काय नाम व १० सम्यक्त्वरुचि बोल, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १८४३७-४०). १.पे. नाम. छ कायना नाम, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७८९, आषाढ़ कृष्ण, १३, बुधवार, प्रले. श्राव. धरमचंद झवेरी; पठ. श्राव. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:छ कायनां नाम. ६ काय जीव उत्पत्ति आयष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले परथवी काय; अंति: एहनो एक समय ते प्रजव. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. १० सम्यक्त्वरुचि बोल, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: सराग समकित तेहनी दस; अंति: (-). ८५५७६. (+) स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४९, माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ७, ले.स्थल. गोपीपुर चांदलागिरी, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १८४५०-५५). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: (-); अंति: भक्ति करें बहु प्यार, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-जंबूसरमंडन, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: श्रीजिन नेम निग्रंथ; अंति: कहे गणी काह्न उल्लास, गाथा-६. ३.पे. नाम. होरी पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, म. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेली समता केरे; अंति: महनंद० रस रमीयें, गाथा-७. ४. पे. नाम. आतमप्रबोध सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक फाग, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे नगर निरुपम; अंति: साहिब सिद्ध समान, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिणंदसुं ताली; अंति: महानंद ठाय सही रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. बलदेवमुनि स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेव महामुनी तप तपे; अंति: सकलमुनी सुखकार रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. थूलभद्रकोस्यानी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया तु वेहलो आवे; अंति: वाट जोई चोमासे रे, गाथा-६. ८५५७७. (+#) आचारोपदेश का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १४४५५-६०). आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान अने आनंद तेहज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८५५७८. (+) दयामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. धनपाल (गुरु मु. शिवजीत); गुपि. मु. शिवजीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४०). दयामाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दया भगवती छे सुखदाई; अंति: वंछा मनें धरणी जी, गाथा-३९. ८५५७९. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १३४३८). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अठम जिन चंद्रप्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ८५५८० (#) ३४ अतिशय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १४-१७४४५-५०). १.पे. नाम, ३४ अतिशय स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सुय देवी प्रणमुं सही; अंति: संयम पूरे जगीस ए, ढाल-३, गाथा-२२. २.पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२७. ३. पे. नाम. सीमंधर जिनेंद्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय सीमंधर जगदीश्व; अंति: मद्य ममास्तु शुभाय, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनेंद्र सामान्य नामार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० २४ जिन नाम-शब्दार्थ, सं., गद्य, आदि: व्रतधुरा वहनात्; अंति: वृद्धितो वर्धमान २४. ८५५८१. नेमराजुल स्तवन व औपदेशिक गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, २५४१६). १.पे. नाम. नेमराजल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: जंबू भरतैह सइया मारी; अंति: जीवणनामे सब सुख लहै, गाथा-९. २. पे. नाम. भटीयाणी गीत, प. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, रा., पद्य, आदि: आव्यो आव्यो हे नणंदल; अंति: उदयापुरने चहटे होजी, गाथा-७. ८५५८२. (+) सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २४२४). सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल शकत वल्ली; अंति: श्रीयस सांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भवी प्राणी सकल; अंति: संपदा पणुं पामइं, (प्रले. ग. फतेविजय; गुपि.पं. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) ८५५८३. (+) कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण, वि. १९४३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:कल्याणमं०. अंत में "देशमालवौ राज्य राठोडी साधु ९" ऐसा लिखा है., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १५४३५-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: __ कारण समकित सुद्धि, गाथा-४४. ८५५८४. चरणसितरीकरणसितरी व धम्मोमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १०४३५). १.पे. नाम. चरणसित्तरी करणसित्तरी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चरणसी०. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: जगमां कीरति वाधे जी, गाथा-७. २. पे. नाम. धम्मोमंगल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धमोमंगल०. दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धमो मंगल महिमा निलो; अंति: धर्म नांमे जय जयकार, गाथा-६. ८५५८५. (+) सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र व दीपावलीपर्व स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. अभयराज; पठ.पं. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३३-३८). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुसलवली पुसकरा; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत असरणसरण; अंति: कल्याण मंगलीक संपजै. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. दीपावलीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीर प्रभु, श्लोक-१. दीपावलीपर्व स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलीक माला संपजई. ८५५८६. (+) सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. ध्रांगधरानगर, पठ. सा. प्रेमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४४०-४५). सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: श्रीयसुवधिजिणंद; अंति: गुण देवाधिदेवना रे, ढाल-२, गाथा-२९. ८५५८७. (+#) राजमती नेमनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १८४७३-७५). बोध, पृ. २अ-२आ, सनौमि वीर प्रभु, श्लोक-गलीक माला संपजई. For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासा, मु. श्यामगुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: फुली चैतवसंत सोहंत; अंति: सिवपुर नेम के नंदन, गाथा-१३. ८५५८८. आठमदनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३२). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारीइं; अंति: अविचल पदवी नरनारि रे, गाथा-११. ८५५८९. सिद्धना पंदर भेद व नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:सि०भे०., दे., (२७४१२, ९४३४). १.पे. नाम. १५ सिद्ध नाम सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिणसिद्ध १ अजिणसिद्ध; अंति: अनेकसिद्ध १५. १५ सिद्धभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिणसिद्ध ते तिर्थंकर; अंति: ऋषभदेवजी प्रमुख. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण रूपीअरूपी बोल गाथा-१, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवतत्व मांहेथी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८५५९० दिसाणुवाई विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १३-१६४३९). दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव समुचेइ सरवथी; अंति: सकाइया वीसे साहीया. ८५५९१ (4) नेमराजुल सज्झाय व निंदा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, १५४३२-३५). १.पे. नाम. नेमराजल सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण, ले.स्थल. टोडा, प्रले.मु. रामविजय (गुरु पं. भानुविजय),प्र.ले.प. सामान्य. नेमराजिमती सज्झाय, मु. वेलजी, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: गया मुगति मझारी रे, गाथा-१७, (ले.स्थल. टुडा, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.प. सामान्य) २.पे. नाम. निंदा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा तुम करे रे; अंति: सहजसुंदर० ओछारे बोल, गाथा-६. ८५५९२. विषापहार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने १ दोहे में गुरुस्तुति की है., दे., (२५.५४११.५, २०४४५). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: आतमलीन अनंतगुण; अंतिः सदा श्रीजिणवर को नाम, गाथा-४१. ८५५९३. (#) सिंहगुफावासी साधु व पीठमहापीठ कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. सिंहगुफावासी साधु कथा, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेहनी गुणश्रेणी वधे. २. पे. नाम. पीठमहापीठ कथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. पीठमहापीठ कथा-मत्सर परिहारे, मा.गु., प+ग., आदि: हवें मत्सर धरी अंते; अंति: पुरुषे मत्सर न करवो. ८५५९४. बारमासो व स्तवनसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: राम कहै सुभ सीस हो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हरिबल सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हवि सुणयो भवियण तुमे; अंति: अरी मन भीम प्रचंड, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.... नेमराजिमती बारमासा, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पालै अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० ४६९ ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., पद्य, आदि: आज भलै दिन उगीयो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ८५५९५. चालीसबोल मुखवस्त्रिका, बावीस अभक्ष्य बत्तीस अनंतकाय सज्झाय, व वस्तुकालप्रमाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १२४३०-३५). १. पे. नाम, चालीसबोल मुखवस्त्रिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्र कर; अंति: विराधना ए परिहरं, (वि. इस कृति में लेश्या-३,शल्य-३,कषाय-४ के बोल नहीं दिए हैं.) २. पे. नाम. बावीस अभक्ष्य बत्तीस अनंतकाय सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासण रे सुधी सरदह; अंति: ते सवि सुख लहै, गाथा-१०. ३. पे. नाम. वस्तुकालप्रमाण स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनाथ रे मुखै; अंति: वर तपागछ है नायको, गाथा-१५. ८५५९६. अष्टमीतिथि स्तुति व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, म. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: बीयगुणे सासाणं तुरिय; अंति: देसणा तरिया४, (वि. अंत की दो पंक्तियों में ग्राम-नगर की व्याख्या लिखी गई है.) ८५५९७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १६४३५). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अगडम बोले कोई; अंति: भाखी भली सुभ वाण रे, गाथा-१३. ८५५९८. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४५-५०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अठ अरिष्टनेमी नामे; अंति: कानाजी जीहो जी, ढाल-१०, गाथा-७५. ८५५९९. अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गिरधारीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०४३०). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा; अंति: लह्यो आनंद अति घणो, ढाल-२, गाथा-२०. ८५६०० (#) सीमंधरस्वामिचंद्राउला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, २२४४२-४७). सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनवुरे; अंति: उत्तम० अधिक जगीस, गाथा-२४. ८५६०१ (#) पांचमतिथि स्तुति व बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४३१). १.पे. नाम. पांचमी स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन पंचम; अंति: सफल थयो अवतार तो, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजदिन स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवूर; अंति: देवनां सर्यां काज रे, गाथा-९. ८५६०२. अवधिज्ञान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. जमनादास हीराचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ६x२९). अवधिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो पूजो अवधिज्ञान; अंति: लक्ष्मी सुखधाम रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५६०३. (+) विजैकुमरजी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, १२४४२). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीबीतराग जिणदेव; अंति: लालचंद० किया सिरनामी, गाथा-२२. ८५६०४. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय व ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १९४३६). १.पे. नाम, अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक हदकीनी दोय; अंति: नाम थकी मंगलमाला, गाथा-१३. २.पे. नाम, ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: ऋषभ राजा रे राणी; अंति: रायचंद० आउ पूर्व पाइ, गाथा-१६. ८५६०५. ११ गणधर स्तवन व साधारणजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. ११ गणधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पावाए नयरी प्रसीध; अंति: पापती नीरभय टालताए, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा १ के बाद गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. साधारणजिन गीत-औपदेशिक, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रखे नाचतां प्रभुजी; अंति: साचो सदा सुख ए जाणो, गाथा-४. ८५६०६. गुणरत्न संवत्सर तप व सागरोपम पल्योपम विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., दे., (२७४१२, १७४४२). १.पे. नाम. गणरत्नसंवच्छर तपविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. गुणरत्नसंवत्सर तप, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सागरोपम पल्योपम विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: च्यार कोस को कूवो; अंति: स्वासोस्वास लेवै. ८५६०७ (4) निर्वाणकांड, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१८.५, १४४३०). निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहि., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग वंदु सदा भाव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "तुगीगढ बंदुधर" पाठ तक लिखा है., वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८५६०८. (+) सनत्कुमार सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ८-१४४३९-४२). १. पे. नाम. सनत्कुमार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: खेम० गाया मन हरखे रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीध रे, गाथा-९. ८५६०९ गहुंली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:गहुं., जैदे., (२६.५४१२, १३४४०). १.पे. नाम, गौतमस्वामी गहंली, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुहली करो विज्ञात, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गुहंली भाष, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... गुरुगुण गहंली, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर भांभर भोली एह; अंति: राम० जाउ बलीहारी रे, गाथा-९. ३.पे. नाम, खंधकमुनि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पंचमअंगे वखाणीया बीज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८५६१० (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४७). प. २आ, अपूर्ण, पू. वि. गाथा-८ अपूर्ण तक ह.) से (२६४१२, For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८५६११. (#) वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. हुंडी:आलेणा स्तव, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १०x२६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-९७, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा-१ अपूर्ण से है.) ८५६१२. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२७४११.५, १६४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-साधु, मु. चंद्रनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: चंद्र० जिन जीहंदा, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ मु. चंद्रनाथ, पुहि., पद्य, आदि: जिनजी साधक साध कहावे; अंति: वाणी दोही मोख सिधावे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आगमवाणी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. चंद्रनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: जिनजी साध वडे बलवंता; अंति: सिधमंडल माहि जावे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधु, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: जागो रे साधु निंदसुं; अंति: गयो सिद्धि मारग लेखे, गाथा-७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुद्गल, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: आतम चेतन आपणो लिखीये; अंति: स्वरा प्रभु पार अभवा, गाथा-७. ८५६१३. आदिजिन प्राभातिक व महावीरजिन जन्मोत्सव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). १.पे. नाम, आदिजिन प्राभातिक, प. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो रे माइ आज रिषभ; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन जन्मोत्सव, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: ढोल ददामां दडदडी वाज; अंति: लीबो भणि वीरजीज्ञाता, गाथा-१२. ८५६१४. (4) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३३-३५). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: आचार्य श्रीमांणचंदजी, (वि. पाट ३७ के बाद क्रमांक नहीं लिखा है.) ८५६१५. १० आश्चर्यवर्णन गाथा सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्ग१ गब्भहरणं२; अंति: जिणिंदस्स तित्थंमि, गाथा-२, संपूर्ण. २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अछेरा कहिता अचरिज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अछेरा-४ अपूर्ण से अछेरा-७ अपूर्ण तक व "सुविधिनाथ ९ तीर्थंकरने वारे थयो" पाठ से आगे नहीं है.) ८५६१६. सम्यक्चारित्र विचार व नेमसागरगुरु गहुँली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२६.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. सम्यक्चारित्र विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___प्रा.,सं., प+ग., आदि: सम्मत्तचरणसहिया सव्व; अंति: सिद्धाणो गाहणा भणिया, (वि. गाथा ५.) २.पे. नाम. नेमसागर गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमसागरगुरु गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पेथापुर; अंति: सुभव माहे माहालो रे, गाथा-८. ८५६१७. आध्यात्मिक होरी व महावीरजिन गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ३४४२०-२२). For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभव रीत ठराय निज; अंति: ज्ञान हार्यो मोहगमार, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन गहंली-प्रथमदेशनागर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: गुणशिलवनमां देशना; अंति: ज्ञानउदयोत० लोकालोक, गाथा-६. ८५६१८. (+) नववाड बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७११.५, १६४३४). ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: चित्र पूतली यथा नीबू; अंति: तो नवमी वाडी भाजै. ८५६१९ (+) पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३०). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: कांति०भणै ते सुख लहे, ढाल-५, गाथा-३०. ८५६२०. (+) महावीरजिन विनती स्तवन व नोकारवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४३९). १.पे. नाम. महावीरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-विनती, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति रे प्रणमी करी; अंति: धीर०नयविमल पंडितवरं, गाथा-२७. २.पे. नाम, नोकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो चतुर नर ए कोण; अंति: रूप कहै बुध सारी रे, गाथा-५. ८५६२१. उपदेशछतीसीना सवैयाएकतीसा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, प्रले. पं. प्रेमविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १७४४३). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरुप यामें प्रभु; अंति: जिनहरख० मोकुं दिजीउं, गाथा-३६. ८५६२२. (+) तीर्थावली स्तवन व वर्तमान चतुर्विंशतिजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,११४३४). १.पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१३. २. पे. नाम. वर्तमान चतुर्विंशतिजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण... २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव पहिलो जगभाण; अंति: सोलस कंचणवरणी काय, गाथा-८. ८५६२३. नेमिजिन स्तुति व २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३८). १.पे. नाम. नेमीनाथजीनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __ नेमिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल वरनारी रुपथी; अंति: पद्मने जेह प्यारी, गाथा-४. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीत, मा.गु., पद्य, आदि: संप्रति काले विचरंता; अंति: जीत लहे सुख कंद, गाथा-१०. ८५६२४. (#) तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रायण, प्रले. रामुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२, २०४४७). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: संसारनो अंत करे. ८५६२५. हित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२,११४२९). अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलीये; अंति: लहे सुजश रंग रेल रे, गाथा-२९. For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ३ चौवीसीजन नाम, सं., गद्य, ., (केवलज्ञानी १ निर्वाण), ८४५६१-१ ४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु., गा. १, प+ग., श्वे., (नाम निक्षेप स्थापना), ८३०७२-२ ४ प्रकार सामायिक विचार, प्रा., मा.गु., प+ग. म्पू, (समगत सामायिक‍ सुत्र), ८२९१०-१ ४ मेघ विचार, प्रा., सं., गद्य, मूपू., ( चत्तारी मेहा पन्नता), ८४२२८-२(#) ४ शरणा विचार, प्रा.मा.गु.. गद्य, मृपू., (तेणं कालेणं तेणं समण), ८१६०९-२ (*), ८१३१२(5) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपु (श्रीशत्रुंजयमुख्य), ८५५६२-११(+) ५ दोष मांडली के, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू.. (ग्रासैषणाना पांच दोष), ८४६५०-२ (+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ८१४३५(+) (२) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( भवभयहरण तरणतारण), ८१४३५ (+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभर अमरपणयं पणमिय), ८३७३७ ५ प्रकार स्वाध्याय गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (वायणापुच्छणाचेव तहाय), ८३७३५-३ ६ भाव विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उदयउदय दुविहेप्पन्नत), ८५२३७-१ ७ नवनाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वे., (नैगमः १ संग्रहचैव२), ८३६१८-२(+४) " (२) ७ नयनाम श्लोक-टीका, सं., गद्य, श्वे., (अन्यदेवहि सामान्य), ८३६१८-२(+#) ७ व्यसन निवारणश्लोक संग्रह - विविधधर्मगत, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., पद्य, मूपू., वै., बौ., अन्य, (--), ८३६२९(+#$) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., डा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ८४८७९१०) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (जयत्वं नमोर्हत्सिद्ध), ८४२३५(#) ८ प्रातिहार्य गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू., (किंकिल्ले कुसमवुडी), ८३८१५-३(+) ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्षसुरपुष्प), ८३८१५-४(+) ९ निधान स्वरूप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (निधान माहे जयवंता), ८४००१ ९ रसनाम श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, जे इतर ? (शृंगार हास्य २ करुणा), ८३३३३-२(*) " , ९ वाहनफल ज्योतिष गाथा संग्रह, प्रा., गा. ३, पद्य, जै., इतर, (--), ८२३४७-२ (२) ९ वाहनफल ज्योतिष गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जे., इतर (सुर्ज नक्षत्रुसुं), ८२३४७-२ " १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.मा.गु. सं., अं. ११३, प+ग, भूपू., ( उवसमा १ गब्भहरणं २), ८५५०९-२, ८२००१(5) . १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, म्पू., (नमोक्कारसी अन्नत्थणा), ८३१३६-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० आवक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, भूपू (वाणियगामपुरम्म आणंद), ८३४६४-१(*) १२ कुल नाम, प्रा., गद्य, थे. (फासुय जीव पडिगाहेत). ८५५०९.१, ८५४७०- २(क) १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू. (आग्नेयां गणभृद्विमान), ८३५०३-२, ८४९७४-३(४) (२) १२ पर्षदा स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूणे गणधर विमान), ८३५०३-२ १२ भावना, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (पढममणिच्चमसरणं संसार), ८३९३६ ($) (२) १२ भावना- टीका, सं., गद्य, म्पू, (एताः अनित्यत्वादवो), ८३९३६(३) " १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., ( उच्चैर्गुणैर्यस्य), ८१३०५ (+#$), ८५४११-१, ८४४५३ ($) १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( उच्चारेसु वा क०), ८१३३८-२ १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., ( जिण अजिण तिथ तिथा), ८५५८९-१ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) १५ सिद्धभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (जिणसिद्ध ते तिर्थंकर), ८५५८९-१ १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ८५०४३-३, ८५१०१-५(2) १६ सती स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (आदौ सती सुभद्रा च), ८१४९२-२ १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडतीस कोडि ११), ८४४०३-३(+) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा.१८, पद्य, मप., (जे नो करंति मणसा), प्रतहीन. (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., म्पू., (--), ८५४६३-१(+), ८५५३० २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८३८९६-१, ८३९५२-२(2) २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ८१६५७-२ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ८३७१८-१(+), ८५३१९-३(+), ८४४१६-२ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या , प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं २०००), ८४५१६-२(+), ८५३१९-२(+), ८२६८१-२ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ८४३८९(+#$), ८४४००(+#), ८२९५८, ८४४१६-१, ८४४६८ २० स्थानकतप सज्झाय, क. पद्मविजय, प्रा.,मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (वंदिय श्रीजिनवर चउवी), ८१५६७-१(+) २१ प्रकार के पानी, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (उस्सेयम संसेयम उदल), ८४२६४(+) (२) २१ प्रकार के पानी-व्याख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (पीठानु धोअण१ पाननउ), ८४२६४(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ८३७९०, ८१८४२(६) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच उंबर वड१ पीपल२), ८३९६१-१(+) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह),८२८१३-१ २३ पदवी गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (चऊदस्स रयणा चक्की), ८३५११(६) (२) २३ पदवी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (चौदरत्न १४ चक्रवर्ति), ८३५११(६) २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्ग१ गब्भहरणं२), ८५६१५ (२) २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अछेरा कहिता अचरिज), ८५६१५(5) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), ८४५५४(+), ८५१९९(+), ८१७९० २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मप., (कार्त्तिकवदि ५ नाणंस), ८३९६४, ८४५०४(#) २४ जिन चैत्यवंदन, सं.,प्रा., श्लो. २९, पद्य, मपू., (सुवर्णवर्णं गजराजगाम), ८३१७७(६) (२) २४ जिन चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवा जे भगवंत), ८३१७७($) २४ जिन नाम, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभ १ अजित २ श्रीसंभ), प्रतहीन. (२) २४ जिन नाम-शब्दार्थ, सं., गद्य, मपू., (व्रतधुरा वहनात्), ८५५८०-४(#) २४ जिन नाम, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (ऋषभ १ अजित २ संभव ३), ८२९०७-२($) २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, मप., (कारतीक वदि ५ श्रीसंभ), ८५३१९-१(+) २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहि.,सं., पूजा. २४, प+ग., दि., (ॐ ह्रीँ श्री अनंता), ८४२६७(+$) २४ जिन मंत्राक्षरफल, मा.गु.,सं., गद्य, दि., (ॐ ह्रीं श्रीं ऐं लोग), ८५१६८ २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), ८३७५६(+#$) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो.८, वि. १४वी, पद्य, मप., (जिनर्षभ प्रीणितभव्य), ८३७७५ २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मप., (भरहेसरकारिय देव हरे), ८५५६२-७(+#) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरः पार्श्व नमिः), ८३५५०-८(+#s) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र),८४१९९-१ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ८४२१९-१(+), ८१४९२-१, ८३७८२-१, ८३५१०(#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ८५५६२-६(+#) For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ४७५ २४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ८३१७१-१(+), ८४०९०-२(+#), ८४५५६-८(+), ८४६६५(#), ८५०८६-१(#) २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (गइ इंदिय च काए जोए), प्रतहीन. (२) २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंदिय काए), ८५१२५-१(+#$) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (आमोसहि विप्पोसहि), ८३७६३-२(+) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (आहव० हस्तपादादिकना), ८३७६३-२(+) ३० लेखन साधन विचार, सं., गद्य, इतर, (कीकी १ कर्ण २ कोटि), ८१९८४-२ (२) ३० लेखन साधन विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, इतर, (आंखिनी कान ग्रीवा), ८१९८४-२ ३२ अनंतकाय गाथा, पुहि.,प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (सर्वकंदजाति सूरणकंद), ८४५३१-४(#) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा.५, पद्य, मपू., (अहाकम्मु १ देसिअ२), ८१८२९(+#), ८१८५५, ८३२५४ (२) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ),८१८२९(+#), ८१८५५ ४५ आगमतप गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), ८४६०८(+#) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्मु १ देसिय २), ८४८६९, ८५३१० (२) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), ८४८६९, ८२८१३-२($) (२) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (यतिने काजे रांधीने), ८५३१० ५५ शरीरादिकरण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (दव्वसरीर इंदियमणवय), ८४७६४-३(+#) ५८ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (नाणेम जाणइ भावे),८३१४१(#$) ७२ कला नाम श्लोक -पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (लिखित १ पठित २), ८४२२८-४(#) ८४ लाख नरकावास गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तीस पणवीस पनरस दस), ८१७१३-५ १२४ श्रावकव्रत अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (अथ ५ अतिचाराः अथ), ८५३१६-४(+) १७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवसर्वज्ञाय), ८५२१८-२ १९८ बोल-गुरुवंदन, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (वंदनक विषइ एकसउ), ८४३८४(+$) ३६३ पाखंडीभेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (एकसौ असी क्रियावादीन), ८३७६३-१०(+) ३६३ पाखंडीभेद गाथा, प्रा.,सं., गा. ९, पद्य, श्वे., (मूर्खकस्य स्वभावोयं), ८१८३८-२ ५६० अजीव भेद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रोक्ता वर्णरसाकृति), ८३७३२-२(+), ८१४७२-१ अंगुलमान विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, भूपू., (से किं तं अंगुले), ८४८५५-१(+) अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा.७०, पद्य, मूप., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ८१८४४(+$) (२) अंगुलसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (उ० ऋषभदेव स्वामी ते), ८१८४४(+$) अंचलगच्छीय पट्टावली खमासणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (ईच्छाकारेण संदेसह), ८४३३४-१(+) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही), ८५४४५ अकडम चक्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (एकबीजंतथाकूटं माला), ८३६१९ अकृत्रिम चैत्यवंदना, सं., श्लो. ६, पद्य, दि., (वर्षेष वर्षाप्रवतेष), ८४२४५-३(+) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मप., (प्रणिपत्य प्रभु), ८५०७३(+$) अजितजिन कलश, पंन्या. रूपविजय, मा.गु.,सं., ढा. ६, पद्य, मूपू., (चक्रे देवेंद्रद्वंदैः), ८२३१०(#) अजितजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (सकलसुखसमृद्धिर्यस्य), ८१७५०-३ अजितजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (तमजितमभिनौमि यो विरा), ८३७०१-२(#$) अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ८२१४०-१(+5), ८३५०९-२(+$), ८३८००, ८२०७३(#s), ८२८७५ (#$), ८२१४४(६), ८२७०७(5) (२) अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजिअं अजितनाथ किसउ), ८२४७३(5) (२) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ८१३९७-२(+5), ८१७२०(+#), ८४५४१-४(+$) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अजितशांति स्तव बृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ८४३३७-२ अज्ञात जैन व्याकरण ग्रंथ, सं., गद्य, मूपू., इतर, (प्र ऋच्छति), ८४३२८(+#$) अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप., (सत्तादि नवदि दो दो), प्रतहीन. (२) अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (७९२२८१६२५१४२२६४३३७५९), ८२५८५-२, ८३२९०-२( अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), ८३५९५(+$) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ८१८७१(-#$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., पू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), ८४२८०, ८१५०७(5) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानपांचमद्ये श्रुत), ८१९३३ अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी पराभयकर),८२४२३-२, ८२८२४-२ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः), ८१९७१(#$), ८३७१९(#$), ८४१६२(६) अरजिन चैत्यवंदन, मु. रुप, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नगर गजपूर पुरंदर), ८३२०९-१ अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण), ८३७८७(+#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ८५५२२-२ अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यत्र श्रीभरतेश्वरः), ८१३६७-३(+) असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति), ८२२३५(#) आखेट वर्णन-आत्माकर्मसंबंधे, सं., गद्य, मप., (वनं १ दह दिशि), ८१३३७(+$) आगमपाठक वंदनावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीआचारांगश्रुतपाठक), ८५५३२-२ आगम योगोद्वहन विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (आवश्यक श्रुतस्कंधे), ८४३४९(+), ८१३२२(5) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ८५१९५-२(+$) (२) आगमिकपाठ संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८५१९५-२(+$) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., मप., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ८३४६४-२(+) आगमिकबोलविचार संग्रह-धार्मिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (१ वंदित्तुनी ७ गाथा), ८४०८९-२(+$) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), प्रतहीन. (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), ८३८१५-३(+) (३) आचारांगसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., वि. ९१८, गद्य, मूपू., (तत्र वंदित्वा सर्व), ८३८१५-३(+) (२) आचारांगसूत्र-साधुगुण सज्झाय, संबद्ध, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जंबु धाई पोखरा दीप), ८३८६८-१(2) आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं., वर्ग.६, श्लो. २४६, वि. १५वी, पद्य, मप., (चिदानंदस्वरूपाय), प्रतहीन. (२) आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञान अने आनंद तेहज), ८५५७७(+#$) आत्मनिंदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (श्रुत्वा श्रद्धाय), ८४७१४(+) आत्म भावना, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्धमानाय श्री), ८४०१४(#$) आदिजिन अष्टक, मु. भवानंद-शिष्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (सकल मंगल मंगलमंदिरं), ८२६२५-१(#$) आदिजिन चरित्र, सं., पद्य, मप., (--),८३८६५(+#$) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (सुवर्णवर्ण गजराज), ८५१३६-३(+) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., गा. १६, पद्य, मपू., (मुक्तालंकार विकार), ८३३९६(६) आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा.,सं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जय सुरअसुरनरिंदविंद), ८५४०२(5) आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु.,सं., गा. ४, वि. १७२१, पद्य, मूप., (प्रथम आदिजिनंद वंदत), ८४४६९-२(#) AS) For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ४७७ आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (भव्यांभोजविबोधनैक), ८३७०१-१(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), ८१४९२-५ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (जिनेंद्र नमनादेव), ८३९५५-३(+) । आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), ८३९५५-४(+$), ८३७७१ आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (उद्यत्सारं शोभागारं), ८५११७-१ आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथं नतनाकि), ८३७६७-२(+) आदिजिन स्तोत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, पू., (सुखकारणमुत्तमं ऋषभं), ८३०७२-१ आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (तववचोंबुदगर्जिततोषित), ८२५२८-१($) आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ८५१७१-१ आध्यात्मिक श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (हंसा केरि बिसणि बगला), ८१८३३-१(+) आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मपू., (उग्गए सूरे नमुकारसी),८३७२४ आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (एगेंदियाणं जं कहवी), ८१६५७-१, ८१९९६ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मपू., (अवरविदेहे गामस्स), प्रतहीन. (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूप., (--), ८२०१८(+#$) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ८२६३८-१(#) (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छामि कहतां वांछु), ८२६३८-१() (२) प्रतिक्रमण स्तुति, हिस्सा, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुल नयना), ८४९७०-२(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ८३११९(+), ८५१३६-४(+), ८५५६८(+#), ८५५८२(+), ८५५८५-१(+), ८१९८१, ८५१३८(#) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत अशरण), ८३११९(+), ८५५६८(+#s), ८५५८५-१(+), ८१९८१, ८५१३८(2) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहीइ समत्तं न), ८५५८२(+) (२) ६ आवश्यक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार आवश्यक थया कर्म), ८५२००(#) (२) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसई जिन चीतवीं), ८४६६१(+), ८५२९६-१(+$), ८४५९५-१(६), ८४७८२($) (२) १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ८३७३१-२(+), ८३८२०-३(+), ८५१०९-३(+#), ८५५६२-१९(+#), ८१४७६-१ (३) १४ श्रावकनियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सचित्त पृथिव्यादि), ८१४७६-१ (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (घोडानी परि एकई पगि), ८४५५६-७(+) (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ८३८४५-२(+), ८१३७९-१, ८१३५१-२(2) (२) आवश्यकसूत्र-(प्रा.रा.)प्रतिक्रमण के ८ पर्यायनाम दृष्टांत सहित, संबद्ध, प्रा.,रा., गद्य, मप., (अवश्यमेव करेजीरो), ८२९०३(+$) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ८४५५६-९(+), ८४०६९-२(2) (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), ८४९४५, ८१९८३(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ८१९८३($) (२) इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (१५ करम भूम ५ भरत ५), ८४४१२(+#S) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ८३७०२-३, ८५४६४-१३ ८५५०२, ८२६५१(३), ८४८६२-१(३) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू (गुरु सन्मुख रही विनय), ८४७४५, ८४९५६, ८४७८८(#) (२) उवसग्गहर मंत्र- बीजक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे. (अमुकं वसीकर राजा), ८३१४४-२ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू. (कल्लाणकंदं पढमं), ८२७५९-१(७), ८१५२७-१(३) (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (प्रथम दोय गाथारो नम), ८१३२८-२, ८१८४०-४, ८२५९५-४क "" (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (झीयावही तसुतरी), ८४९७२(*) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), ८४०१६ ($) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टवार्थ, मा.गु.. गद्य, मूपू (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ८४०१६ (३) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं). ८५२८९-१(३) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. ३, प+ग, भूपू (सागरचंदो कामो), ८४३३४-२(*), ८२८८४-२१५) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मृपू., (करेमि भंते पोसह), ८३८२०-२(+), ८३७७७-३, ८२८८४-१ (४) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ८५५२५-४ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, मूपू (इच्छाकारेण संदिसह), ८३८९१-२(*) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग. म्पू., (मुहपत्तिवंदणयं), ८२७५५ (+३), ८२९२८(+०७), " " " ८३९८५(+), ८१८४०-२, ८२७०३-१ (# ), ८४०६९-१(#$) (३) पाक्षिकचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू.. (प्रथम देवसी पडिकमणो), ८२७५५ (+३), ८२९२८(+) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं., प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ८२९४४(+), ८४२६०-१, ८४२८२ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ८१५९६ (+$), ८४९७०-१(+), ८५०५२(#) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ८३७८४-२ (+), ८१७०२-५, ८३३००-३, ८५०७१-१, ८५०७२(#), ८४१०६ ($) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू. (इरियावहि पडिकमिई), ८३९४१-३(+), ८५३३६(१), ८३१०७-१, ८३९५२-१(७) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरियावही पडिक ), ८५०५५ (+5), ८५११९ (+), ८२७१६-१, ८४८१९-१ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरियावहि चार नवकारनो), ८४१८४-२ (+४), ८५२६३ י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू (खमासमण देइने इरिया), ८२६००, ८२५९५-२(क) (२) प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ८२१७२(+), ८३३३६-२ (+$), ८४२९६-२(+), ८४११६($) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, मूपु. ( पाहिली रात्र शय्या), ८३९४१-४(२), ८४४७७ (+#), ८५२४९-२ (+), ८३९२६(#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू. ( देवसिय आलोय पडिक्कं), ८१४९५(१), ८९४३२(३), ८१९५३(३) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (कर पडिकमणुं भावशुं), ८१८२१-२, ८३०७४-१ ८३७०२-१ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ८५३५४(+), ८५४८५, ८५४८६ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खे.मू. पू.", संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू, नमो अरिहंताणं नमो ), ८४६५३-२ (७) ८२८८४-३(०), ८१४६५-१(३), ८३७८६ (३), ८१३५१-१(२३) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा. गा. ५, पद्य, भूपू (सुतत्तत्खदिट्ठी) ८३१३८-१(५) "" For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ४७९ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ८१९६८(+#s), ८२०७४(+$), ८३१९६-२(+६), ८३७३१-१(+), ८३८२०-१(+),८३८२३-१(+#), ८४२६६(+#$),८४३४६-३(+), ८३६७८-१,८३६९०,८३७६१,८३७६५-२,८१८४७), ८२५५४-२(१), ८३६८७(१), ८४५३१-१(#), ८२१०७-१(६), ८२२२५-२(5), ८३२७०(5), ८३७३४-२(s), ८३७७७-१(६) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ८३८०८(#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सूर्य उग्ये थके इतरे), ८३८२३-१(+#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ८४२६६(+#$), ८१८४७(#$) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (दो चेव नमोक्कारे), ८३७३४-१ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ८३१३८-३(+), ८४०७१-१, ८५५९५-१, ८१६४९-१(#$) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. भानुमेरुगणि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय पणमेवि), ८१५४८(+) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहिया० कु), ८१८४०-१ (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिक),८३१९६-४(+),८३७६२-४(+), ८४७३९-१(+), ८१३२८-१, ८२९४१-१, ८२५९५-१(2), ८२७१६-२(६) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ८१६२५-१(#$) (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ८३४५८(+), ८४६६६-३(+), ८५१०९-२(+#), ८५४६३-२(+), ८१६९१, ८४२१६ (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्ध), ८२०३४(+), ८२४६७(+#S), ८३०९६-२(+), ८३७७३(+), ८४२७९(+$), ८२७४६-२, ८३८२९, ८२९३३(#S), ८३५९६-१(#), ८३५६६($) (३) वंदित्तसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (वंदितु क० वांदीने), ८२४६७(+#S) (३) वंदित्तुसूत्र-विवरण+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८४२७९(+$) । (२) विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (विशाललोचनदलं), ८४७३९-२(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (णमो अरिहंताणं णमो), ८३६७६(+$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिं), ८४७२१(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ८३५१४-१(#) (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ८२६०३(+), ८३८१९-२(+), ८३९१९-१ (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (नाणंमि दंसणंमि०), ८३९१८(६) (४) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानने विषे दर्शन), ८३९३९(+) (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार , संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ८३०९६-१(+) (२) श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदलविपुलनयना कमल), ८२९४१-२ (२) संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (तिहां धर्मशाला), ८३९४१-२(+), ८५१८४-१ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (संसारदावानलदाहनीरं), ८१५२७-४(६) (२) साधुअतिचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मप., स्था., (१४ ज्ञानरा ५समगतरा),८२६१६(क) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ८२०८२(+#$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), प्रतहीन. (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ८३४५९(+), ८३८०२-१(+), ८३६०७(2) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ८२४८४(+$), ८२४८८(+#$), ८३५४६-१(+), ८३६५३(+$), ८३८३२(+), ८४२९६-१(+), ८१४००, ८३५४७, ८३६८८, ८३४२८-१(#$), ८३७६८(#$), ८२९२३(६), ८३८०३ For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (निवर्तवा वांछउ), ८२४८८(+#$) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ८२४८४(+$) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ८३९७०(+$), ८३३०८(#$), ८४१५१(६) (३) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (पडिक्कमणा परियरणा), ८३८११-२(+) (४) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (कहै छै जिम कोइक राजा), ८३८११-२(+$) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूप., (सयणासणन्नपाणे), ८४२२७-२, ८४८८९-४ (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ८३७५७-१(+), ८४९७०-३(+), ८२२२५-१, ८४६९०, ८४८८९-१ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ८१३९४(+), ८१४५५(+), ८३८९१-१(+), ८५१०३(+),८५३६९,८१३८६(१), ८३१०३(2), ८३९३७(2) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र गाथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पडिकमण१ गमण२ भोअण३), ८३७६३-९(+) (३) साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ८३७५७-२(+), ८४८८९-२ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ८३६९८(#$) (३) चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ८५१७०-२(+-), ८१७९८-३, ८४८६२-३, ८२८८४ (S) (२) सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ८१५३८-३(+), ८१६४९-२(#) (२) सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण तस्स), ८५२४९-३(+) आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (आयुर्बलं विपुलमस्तु), ८४७९०-३ आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (दीर्घायुर्भव भण्यते), ८४७९०-२ इरियावहि कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ८५०८४ (२) इरियावहि कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), ८५०८४ इरियावहि कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूप., (दवा अडनउयसयं १९८ चउद), ८३७४०-१ (२) इरियावहि कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (५६५ जीवना भेद लिखिइ), ८३७४०-१ इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., वि. १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), ८४२८४(+#) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ८३७९९-३(+), ८४३८१(+$), ८४४७१(+), ८५०७५(+#), ८४१३९, ८४९३९, ८१९८२(६), ८२४९१(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य. ३६, गा. ६०७, पद्य, मूपू., (नामं ठवणादविए), ८३९२७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मप., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ८१८६०-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (पहिलौ विनय अध्ययन), ८१३५३-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-द्रमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (वीर विमल केवल धणीजी), ८४६२८-३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), ८२१६७(+$) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ८३५०८(+$) (२) उपदेशमाला-चयन, प्रा., गा. १०६, पद्य, मप., (नमिउण जिणवरिंदे इंद), ८२१९५(+#) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ),८३९३३(+) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ८३९३३(+) उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (शुभमुर्हते पूर्व), ८४९२७-१(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ८४२२३(#$) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं), ८३७९५-३ (+), ८३९१३-२(+#), ८५४४८-२, ८३६९९-२ (-) " उवसगहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. १३, पद्य, मूपू (उवसग्गहरं पासं० ॐ), ८३६५४ उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपु. ( उवसग्गहरं पासं पासं०) ८३१४४-१ ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा., मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नहि जिणभवणे गमणं घर), ८२१३८-२ ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., श्लो. ६२ नं. १५०, पद्य, मूपू (आचंताक्षरसंलक्ष्य), ८३७५८+६) ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपु. ( आताक्षरसंलक्ष्य), ८५१०१-१(-) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि सं., श्लो. २६ ई. ११वी, पद्य, दि.. एकीभावं गत इव मया), ८२३३५-१(३) ', " " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (अंग गलीतं पीतं मुंड), ८३७६०-१० (२) औपदेशिक पद अर्थ, मा.गु. गद्य, मूपू., (एहवो वृद्धपणे होय तो). ८३७६० १० , औपदेशिक पद-असारसंसार, मा.गु., सं., पद्य, श्वे., (चलं चितं चलं वितं), ८५१६३(+#) औपदेशिक गाथा संग्रह * पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, वे (अजो कृष्ण अवतार कंस), ८१६२६-४+३) ८४०७२-४(१), ८५३१८-२(१), " " ८१५८४-२ (#), ८३०२९-२(#), ८४१४५-३(#), ८४४०९-३(#), ८१६१२ ८१३७९-२, ८३१५३-२, ८३८१६-३, ८४३९४-२, २(३), ८१९१७(-) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-टवार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (कमल ब्रह्मा नपद तास), ८४३९४-२, ८४१४५-३(७) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (जं जं समयं जीवो), ८३८२१-११ " औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गा. ९, पद्य, वे., ( काम वली सवही पुरहे), ८३२२९-७*), ८३८७३-२(५०), ८४८६५ २(+#$), ८१९८४-३, ८२२५७(#), ८४४५४-६(#), ८४८५६-३(#), ८४७८०-६(-), ८५४२८-२(#) ', (२) औपदेशिक पद असारसंसार-(पु.हि.) बालावबोध, पुहिं., गद्य, वे. (अर्हत भगवंत असरण), ८५१६३(+) औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार, प्रा.मा.गु. सं., गा. १७, पद्य, मूपू.. (बुद्धेः फलं तत्त्व), ८२२१३(३) औपदेशिक लोक, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (क्रोध मान यथा लोभ), ८४०८१-३(१) औपदेशिक लोक सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (संवत्सरेण यत्पापं ), ८३८१९-३ (+३) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मीं गजवाज), ८३७०० औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा.,मा.गु. सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ८१२७४-१, ८१८२३-१, ८१८३८-१, ८२५३६-१, ८९४०४-२ (३), ८१६२७-४(३) ४८१ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा. सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ८४०२५-२ (+), ८३७७९(#) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., सवै २५, पद्य, जै. वै.? (पांडव पांचेही सूरहरि, ८१३६१ (+३), " ८१५७७-५(१), ८५३२७-२(+), ८३१२६-२, ८२९५७-२(४४), ८२८८८(३) औषधवैद्यक संग्रह, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, इतर (अनार दाणा टो. ८०), ८३५०२-३ (+३), ८५२०१-३(+), ८३२१७-१, ८४३१२२,८३७८५-४० औषध संग्रह, मा.गु., सं., गा. ६, पद्य, इतर ( अथ नाहि परीक्षा), ८४०५६-१(*), ८४०६९-३(#) औषधादि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, इतर ( माजु फल टं१ हीराकसी), ८५१२०-३(+) औषधिवर्णन पद से, श्लो. २, पद्य, इतर (टंकैक मिरचं पलं घृत), ८४८७८-३ (+) " " कथाकोष, सं., प+ग, मृपू., (--), ८३८०९-१(३) कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला ), ८२७३५ (+) कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ८१५३६ ($), ८२०९१($), ८४४७८($) करणकुतूहल, आ. भास्कराचार्य, सं. अधि. १० ग्रं. २०० ई. १९८४, पद्य, वै., इतर (गणेश गिरं पद्मजन्मा), प्रतहीन. (२) करणकुतूहल-गणककुमुदकौमुदी टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं. ग्रं. १८५०, वि. १६७८, गद्य, मूपू. वै., इतर (श्च्योतच्छैलशिलोच्छल), ८५०७४ (+$) करणसित्तरीचरणसित्तरी गाथा, प्रा. गा. २, पद्य, म्पू (पिंड विसोही ४ समिई), ८३१२५-२ (# ) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कर्मग्रंथ (१ से६), आ. देवेंद्रसूरि; आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., अ. ६, गा. ३९७, वि. १४वी, पद्य, मप., (सिरिवीरजिणं वंदिय कम), प्रतहीन. (२) कर्मग्रंथ (१ से ६)-यंत्र*, मा.., को., म्पू., (--), ८५२५६ कर्मभूमिअकर्मभूमि आदि विचार, सं., गद्य, मपू., (कृषिवाणिज्यतपः संयम), ८१९९१(६) कलशप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम भूमिशुद्धिकरण), ८२७३२-१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, स्पू., (तेणं कालेणं० समणे),८३७१४(६), ८४५२६($), ८४५३४(5) (२) कल्पसूत्र-कल्पकौमुदी टीका, मु. विनयभक्ति, सं., गद्य, मूपू., (--), ८३४५४(+$) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ८३५०१(६) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं), ८५५४८(+#$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (अरिहंतनइ माहरो), ८४५२६($), ८४५३४(६) (२) कल्पसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (ए जंबूद्वीप भरतखंडनै), ८१३६४(+$) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह, सं., प+ग., मूपू., (--), ८४५२६(5) । (२) कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर),८४७०२(+),८२५८७, ८४३०९,८५३६६ (२) कल्पसूत्र-संबद्ध त्रिशलामाता दोहला विचार, मा.गु., पद्य, मप., (हिवै त्रिसला मातान), ८४१६५(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ८१८४१(+#), ८२०२४(+), ८३३१६-१(+६), ८२३३५-२(६), ८३१३०-४(६), ८३४५२(5) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ८३१४७-२(+$), ८५५८३(+), ८१४५०(#) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूप., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ८३८०६-१(+) कालमान विचार, सं., गद्य, मपू., (१ समयोत्यंत सूक्ष्मः), ८१४७८-१ कालिकाचार्य अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (प्रवरसेखाग्रे चूर्णि), ८२६६३-१(-2) कालिकाचार्य कथा, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (श्रीकालिकाचार्य धर्म), ८१६३१ कुंडलीलेखनप्रक्रिया, सं., गद्य, वै., इतर, (स्वस्तिश्रीऋद्धि), ८१४३१-२(+#) कपात्रदानपरिहार कथा, सं., गद्य, श्वे., (दान कपात्रनां), ८१७८५-१(#) क्षेत्रमान विचार, सं., प+ग., श्वे., (सप्रदेशोप्यभेद्यस्तु), ८३५२६ खरतरशब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, मूपू., (शाब्दिक प्रष्टाव्रप्), ८३७७०-१ गजवर्णन गाथा, अप., पद्य, म्पू., इतर, (अउरंग ओद्रग इंसास), ८३३३४-१(#) गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (ॐ ॐ ॐकाररूपं अहमि), ८५१६६-१ गम्मा ऋद्धिविचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (उववायं परिमाणं संघयण), ८५०६९-१ गर्भविहार, प्रा., गा. ९, पद्य, मपू., (--), ८४३३७-१(६) गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ८४३७१-२, ८१७३९-२(#) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ८३९०३-२(+), ८४०५६-२(+), ८४७६४-२(+#), ८१४७६-२, ८३२३९, ८३७३५-१, ८४१७७-२, ८४३७५-२,८४८७६-३, ८५५९६-२, ८१५५६-२(#) गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ८१७१२-२, ८३०६९-२ गायत्रीजाप मुद्रा-जपांत, सं., गद्य, वै., (सुरभी१ ज्ञान२), ८३८५३-३ गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत), ८३८५३-२ गिरनारतीर्थ कल्प, मु. ब्रह्मेद्र; सरस्वती, सं., श्लो. २३, पद्य, मप., (श्रीविमलगिरेस्तीर्था), ८१९८५(#) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (चउदुरिक्क दुप्पण पंच), ८३०४३-१ (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउ कहतां च्यार पैडा), ८३०४३-१ गुणस्थानके भाव विचार, सं., गद्य, मूपू., (चत्वारो भावाः),८१४७८-२ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० गृह विचार, सं., श्लो. ७६, पद्य, इतर (--) ८३५७१-१(+४) " गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ८४८८९-३ गोरोचन कल्प मंत्र, सं., गद्य, श्वे. ?, (हूँ हन २ ॐ ह्रीँ), ८३७६०-२ गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. १४, पद्य, वै. (भज गोविंद भज गोविंद), ८२३२३-२ " गौतम कुलक, प्रा. गा. २० पद्य म्पू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ८२९६९ (+), ८३८२७-२(१), ८३८१६-२, ८३८८६ " , (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ८२९६९(+#) गौतमपृच्छा, प्रा. प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, भूपू (नमिऊण तित्थना), ८१८४६, ८३६७५ (३) " , (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर ), ८१८४६ ($) " (२) गौतमपृच्छा-अनुवाद, मा.गु., गद्य, म्पू, (हे भगवन जीव किसो), ८५०९५(३) गौतमस्वामी मंत्र, प्रा.सं., गद्य, म्पू., (अरिहो भगवओ गोयमस्स), ८९४२९-२(*) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो १०, पद्य, मूपू (इंद्रभूर्ति वसुभूति). ८२११२-२ (०) ८३५७१-४(०) ग्रहशांति स्तोत्र बृहत् आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., लो. २८, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ८३६०४(३) ग्रहशांति स्तोत्र- लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ८३७०९-१ (+), ८३८९८-३(००), ८१३५४४४९), ८४८२४९९, ८५१०१-३-०१ घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रणम्य गिरिजाकांतं), ८३१८९($) घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (ॐ हाँ ह्रीं श्रीं), ८२९८१ (*) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ८३९५१-१(०) ८३२१७-२ ८३७६०-१ चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ८५३२५-१(+), ८२९८९-२ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ८३७०५-१(#) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. गा. ६३. वि. ११वी, पद्य, मूपू (सावज्जजोग विरई), ८३८४३(+), ८३५४२(m) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ८३७७८(+$) चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., इतर (--), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि- पद्यानुवाद, श्रीसार कवि, पुहि., गद्य, भूपू. वै., इतर (युं विचार ज्योतिष को), ८२३४४ (+#$) " " चयनित गाथा संग्रह, प्रा. गा. २२, पद्य, म्पू. (पुढवी आउ वणस्सह बारस), ८५५५०-१ चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू. (एवय समणधम्म १० संजम), ८३७६३-४(*) चिंतामणिमहामंत्र विधिसहित, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँ क्रोँ ह्रीँ ऐं), ८३७६०-३ चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मृपू. ( वंदित्तु वंदणिज्जे), ८१८४३(*) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे ), प्रतहीन. (२) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ८३३२३(+#$) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं० तेणं), प्रतहीन. (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मृपू., (तेणं से भरहे राया), ८३५३३-१(ख) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति यंत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, भूपू., (--), ८१९२९(*) जन्मपत्रिका आशीर्वाद श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., इतर, (आदिनाथादयः सिद्धाः), ८३२३३-४ जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. अधि. ३३, पद्य, म्पू, इतर (प्रणम्य सारवां), ८१९७७ +#5) " " , जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू.. (जय तिहुयण वरकप्प), ८३७९३ " " (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतउ था हे), ८४५२७($) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेशिता), ८२८४६(+) जिनकुशलसूरिगुरु अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु (मिथ: प्रश्नपुंसा), ८३७०६-२ (+) जिनकुशलसूरि मंत्र, सं. गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), ८३७०६-१००) " जिनचंद्रसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (एनोनाक्तः कदाचिद), ८२४३१-२ (क) ४८३ For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जिनचंद्रसूरि स्तति, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (कलारश्म्यासक्त्या तज), ८२४३१-१(+) जिनचंद्रसूरि स्तुति-सवैयाबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (सुंदररूपमिदं तव), ८२४३१-३(+) जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अद्य प्रक्षालित), ८१४६९-१(+#$), ८१५८१-३(+), ८३८२१-१०, ८३८२१ ८,८५१३१-१, ८२८८४-६(4) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ८३७७४-१, ८३८३६, ८५१०१-२(2) जिनप्रतिमापूजामतपुष्टि संदर्भ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (उक्कोसं दव्वत्थए), ८४२१५(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वेशो विभा), ८३८३३ जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ८२७३२-३ जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ८४२६९(+$) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ८१६०२($) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ८५५६१(+#) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ८३८२६(+), ८३७०३-१(2) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां १ क्रीडां),८३८२६(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्लेष्मा क्रीडा हासा), ८३७०३-१(2) जिनमहेंद्रसरिजी के नाम पत्र, सं., गद्य, मप., (स्वस्ति श्रीवामानंदन),८४२८८(+$) जीवभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (नारयतिरिनरदेवा चउद्द), ८३७३२-१(+), ८५३१६-२(+) (२) जीवभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नारय १ तिरि २ नर), ८३७३२-१(+) । जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा.५१, वि. ११वी, पद्य, मपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ८१८५६-१(+), ८३७३८(+), ८४००२-१(+5), ८१५७२(#5), ८१८५७-१(#5), ८१५२०-१(६), ८४१६६-१(६) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ८१५७२(#$) जीवादि षड्द्रव्यस्वरूप, सं., प+ग., मूपू., (जीवाजीवश्चेतिसमासतस), ८३८१५-१(+$) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), प्रतहीन. (२) जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहत्व विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, स्पू., (१ सुक्ष्मनिगोद अप्रज), ८४८०८(+) जैनधर्म महिमा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू., (जैनो धर्मः प्रकट), ८२८०७(+) (२) जैनधर्म महिमा श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीअरिहंत वीतरागदेव), ८२८०७(+) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ८४१७२(5) जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मप्., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ८३७८५-३(2) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ८५०७८(+), ८१७८५-४(#), ८४८६७-२(#$), ८३०१०-२(5) जैन सुभाषित, सं., पद्य, मूपू., (चंपांगे च पुलिंग), ८३८१२-२(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ८२३८९(+$), ८१८२४(६), ८३७२५($) (२) १७ बोल-प्रमाद परिहार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहले बोले भणवा गणवा), ८३१३३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), ८४३६१-२(+), ८३१०८, ८४१९१-२($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ८३३००-२, ८२७५९-२(#$) ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (नमंत सामंतमही विनाह), ८५३१६-३(+), ८५५६२-१८(+#), ८२५६१-२, ८४१५०-२ ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ८२४६१(+#$) ज्योतिष, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम २मंगल), ८१३९२-२(+#), ८३९१३-१(+#), ८४३९९-२(+), ८४५३५-३(+#), ८४८७२-२(+S), ८१२७६-४, ८१६६९-२, ८२८८०-२, ८३३२७-२, ८४४३४-३, ८५३९४-३, ८४२७३-७(६) ज्योतिष बंधिचक्र, मा.गु.,सं., पद्य, इतर, (मुखाद्यंगस्य नामानि), ८३११०-३(+) ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., को., इतर, (--), ८३१३२-१ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ज्योतिष विचार, मा.गु. सं., प+ग, भूपू इतर (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), ८३८०९ ३(#) " " ज्योतिष श्लोक, मा.गु., सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो ), ८२८०५-१ ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गा. ११, पद्य, मूपू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणि), ८१५४६-२ (+) ज्योतिष लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, इतर (--), ८४१५७-३ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि से श्लो. २९४ पद्य म्पू, इतर (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ८३८३७+७) ८२७६९ (MS) "" " ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र - सबीज, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ८१४९२-४ तत्त्वविचार लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि व्रत१२), ८४०६३१(२०), ८९१९९८(१) (२) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह - अवचूरि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (तत्त्वानि नवतत्त्व), ८४०६३-१(+#) (२) तत्त्वविचार लोकसंग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८१९९८(#) तपश्चर्या-व्रत-उद्यापनादिविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (अथ सूर्योद्यापन विधि), ८३९९४(+$), ८२६८५ तपा शब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, मूपु. (तान् तस्करात् आर्थात), ८३७७०-२ (६) "" तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ८३८१९-१ (+), ८४३३७-३($), ८३६९९-४($) तिथिक्षयवृद्धिनिर्णय विचार, प्रा. सं., गद्य, म्पू, इतर (आह श्रीहरिभद्रसूरिभि) ८३१०६ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ८३५२० (+), ८४७५४(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. "" (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. स. १२, ग्रं. ४७८८, पद्य, मूपू., (नमो विश्वनाथाय जन्मत), ८२४८३(#$) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ८३७८४-१(+$), ८३८३५-१ (+#), ८३३८४, ८२३३७(१), ८२७४६-१ ($), ८२०८० (-) ४८५ त्रैलोक्यविजययंत्र कल्प, प्रा. गा. २३, पद्य, म्पू, (पणमह लच्छिनिवास), ८५४९९-१(३) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवीस जिणे), ८५१२४ (+), ८१८६४-१ (#), ८२७६८(#$), ८५०८५(#), ८२५८२ ($) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ८२७६८(#) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्क्डि), ८३८१२-१(०४), ८३८३९-२(+$), ८२२१९(#S), ८३७८१ (#), ८२४९२($), ८५१६५($) (२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ८१८७० () (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ८३७४८२(+), ८३८२१-२, ८५०८१-२०१ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ८५२०२-१(+) दिगंबर गच्छादि विचार, सं., प+ग. दि., (श्रीमूलसंघे संघ४ गछ१) ८३५२९() (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ८३७४८-२(*) (२) दशवैकालिकसूत्रगत ४२ भाषाभेद सज्झाय, संबद्ध, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मृपू., (सत बिहार भाषा भली रे ), ८३११२ (२) दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाब, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू.. (धम्मो मंगल महिमा), ८४७२३-३(१), ८४९४३-२(१) ८५५८४-२ (२) दशवैकालिकसूत्र- योग विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, म्पू., (दशवेयालियम्म एगो), ८४७६७ (+३) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मूपू. (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ८१४३० (२३), ८३९८३-१(२), ८४९२३(३) दांडीधर विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू. (प्रथम इरियावहि), ८३९५८-२(३) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ दिनमान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., इतर, (अयनादिक वास २ राम), ८५५६२-१(+#) दीक्षा विधि *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (दीक्षा देन्हार पूरवे), ८४८७६-१ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेतां एतला), ८४९३८(+), ८४८११, ८४९३३(4) दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मूलपुनर्वसुस्वाति), ८४६९२(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ८४०४०(+#), ८२६४३-२ दीपावलीपर्व गणना, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (भगवान महावीर स्वामीय), ८१३६७-५(+) दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (पापायां पुरि चारु), ८४३६१-१(+), ८५५८५-२(+) (२) दीपावलीपर्व स्तति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अहँत भगवंत असरणसरण), ८५५८५-२(+) दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मपू., (रिअरयसमीरं मोहपंको), ८१८५७-३(#$) दुषमप्राभृत, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (बीइ तेवीस तीइ अडनवइ), प्रतहीन. (२) दुषमप्राभृत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को., मूपू., (नमः श्रीभद्रबाहवे), प्रतहीन. (३) दुषमप्राभूत-यंत्र का यंत्र, मा.गु., उद. २१, को., म्पू., (वर्द्धमान वंदी करी), ८५०६५(६) दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (अनमिलनी बहुतई मिलई), ८५२१३-३(+), ८१५३२-२, ८१८६५-२, ८४९९२-३, ८४३७८-३(#), ८४०९८-२($) दुहा संग्रह जैन, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ८१५५८-२(+), ८३२८१-३(+) देववंदन अधिकार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अहँस्तनोतु स श्रेय), ८४९२७-२(+$) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ८३९६२-२ देवीचंदजी का आचार्य श्रीजिनचंद्रसागरसूरिजी के नाम पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ८२५६५ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), प्रतहीन. (२) महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ८१३६९-१(+), ८५१०८(+) द्वादशाक्षरमंत्र विधि, सं., गद्य, मूप., (ॐ नमो भगवते महासत्ता), ८२२९०-२ धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (लज्जातो भयतो वितर्क), ८३७२७-१(#), ८४२०७-१(#) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (लज्जातो अर्द्ध मंडित), ८३७२७-१(#) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लज्जा थकी अर्द्ध), ८४२०७-१(#) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड), ८४०६३-२(+#) (२) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट-अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं अतीत१), ८४०६३-२(+#$) ध्वजादिप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (सचायं भूमिशुद्धिः), ८२७३२-२, ८२८७६($) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ८३७५१(+#) (२) नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदि इति कः), ८२२३९(), ८३७८०($) (२) नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ८५०८१-१(#) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मप., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), ८३७४५(+#), ८२२६०(#), ८२२२०(६), ८३७८०(5) (२) नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूप., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ८३७६४-१ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मपू., (णमो अरिहंताणं), ८४७१५-२(+), ८३०५१, ८५४४८-१, ८३८७०-३(#), ८१२८५(६), ८३१२१(६) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचपरमेष्टि प्रतिइं), ८१२८५(६) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ८३८७०-३(#), ८३०५१(६), ८३१२१(६) (२) नमस्कार महामंत्र गाथा यंत्र सहित, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (जाव मित्तकोट्ठागछंति), ८४४०३-४(+) (२) नमस्कार महामंत्र माहात्म्य, संबद्ध, पुहि.,प्रा., प+ग., मूपू., (श्रीं क्लीं क्तीं), ८३७२०-१(+) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० नवग्रह स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सः), ८२३२९-२४) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, म्पू. (जीवाजीवापुन्नं पावा), ८२८०० (+३) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाधा, प्रा., गा. ६०, पद्य, भूपू (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ८२२३३.१(+०३), ८२४६३ (*), ८२४८२ (+४), ८३७४२(*), ८३८०५(+), ८४००२-२ (+३), ८५१०४(+०), ८५३६३(+), ८३७४७-२ ८३७९६, ८१३४०(३) ८२४६९ (३), ८४२६२ (६) (२) नवतत्त्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीरः), ८२४८२ (+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनं देव), ८१३४०(३) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार ), ८४००२-२ (+s), ८२४६९($), ८३७९६($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (जिनमती जीवाने पदार्), ८४२६२(३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ८४८०५-२, ८५५८९-२($) नवपद आराधना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (प्रथम आशु शुदि ७) ८५२६१ (+) नवपदतप आराधना विधि, प्रा., मा.गु. सं., तप. ९, पग, मूपू. (आसी अजूयाली आठमि धकउ), ८१९३०-१(#) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ८५२९५ (+$), ८१४४७-१(#$) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं., गा. १४, पद्य, म्पू. (अरिहंत पद ध्यातो), ८४२१८ (+), ८४९००-१ (+३), ८१७८३, ८५१७६ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं. स्मर. ९ प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं० हवइ), ८४२१४+३) " नवीनप्रासादस्थापना विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (छत्तत्तयउत्तारं भालक), ८१३३५ नारिकेलकल्प-विधिसहित, मा.गु., सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), ८२२९०-१ निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्धावयमि उसहो चंपार), प्रतहीन. (२) निर्वाणकांड-(पु.हि.)पद्यानुवाद, जै. क. भैया, पुहिं. गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., ( वीतराग वंदों सदा भाव), , ८४२४५-१(+), ८५६०७(#$) निशीथसूत्र, प्रा. उ. २० . ८१५. गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थकम्म), ८१९९२(३) (२) निशीथसूत्र - बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू ? (हत्थिकर्म करने वाला), ८३४१० (३) 1 ', निषादादि स्वर विचार, मा.गु., सं., पग, मृपू. इतर ( नासाकंठस्वरस्तालु). ८२२९०-३ नेमजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (राज्यां जोनि समीहते), ८३१३८-५ (+) नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीशशमिने), ८२९१४-२(#) (२) नेमिजिन स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू. (हे नेमीश भक्तं त्वां), ८२९१४-२०) नेमिजिन स्तुति, चतुर्भुज, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (जय जय), ८५०८३(*) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू. (कमलबल्लपनं तव राजते), ८३४६८-३ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (विक्षेपोर्जितराजक), ८१४६९-३ (+) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, म्पू, संततंयमुपवीणयतींद्र ), ८२९६०-४(+) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू., (नाभेयं संभव तं अजिय), ८३८२१-१ पंचजिन स्तुति, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (जयति कनकावदातः कृष्ण), ८१८३३-२(+$) , , पंचदशक, आ. हेमचंद्रसूरि सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (भज जिनराजं भज जिनराज), ८२३२३-१ पंचपरमेष्ठि वर्णमान लोक सं., . ४, पद्य, म्पू (परमेष्ठि पदी पंचभि) ८१८८२-२ पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), प्रतहीन. + ', (२) पंचपरमेष्ठि स्तुति-वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (अर्हतभगवंत अशरणशरण), ८१६०६-१(३) पंचमेरुजिनजयमाला स्तवन, मु. भोजसागर, सं., श्लो. २१, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (संद्वांतसमतिविभाव्य), ८४७५९-२(+) पंचमेरुसंबंधी ८० जिनालयपूजा विधान, मु. भोजसागर, सं., गद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धौ गणपोपाध), ८४७५९-१(+) पंचरत्न अन्नपूर्णा स्तोत्र ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (नित्यानंद० पराभयकरी), ८३४५६-२ 1 For Private and Personal Use Only ४८७ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, मूपू., (मिच्छा अविरय देसा),८३०४३-२ (३) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश), ८३०४३-२ पकवान कालमान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (वासासु पनर दिवसंसि), ८४६३३-२(१) पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (मूहपत्ति वंदिणयं), प्रतहीन. (२) पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (भगवान पाखितप प्रसाद), ८४७५७ पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., पू., (--), ८४३३८(+), ८४५४३, ८४३७४($) पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ८३१३६-२ पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (सावण वद पडवाक दिन), ८३१२९-१ पच्चखाण पारणक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (फासियं पालियं चेव), ८२८८४-४(#) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (खमा० इरिया० पडिक्कमी),८५५२५-३ पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ८३८६६(#), ८५६१४(#) पट्टावली खरतरगच्छ, सं., गद्य, मपू., (श्रीगौतमस्वामी), ८४१५०-१ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्धमानाय), ८२४९३(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (प्रणम्य त्रिविधं), ८२५२४(2) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ८१६६७ पट्टावली-दिगंबर मूलसंघ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रैलोक्याधिपं नत्वा), ८५०४०($) पत्रपद्धति-संस्कृत पत्राचार पत्र संग्रह, सं., पत्र. १०, प+ग., श्वे., (स्वस्ति श्रीमद), ८२३५२(+) पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ८४१७३(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ८३४५६-१, ८३७५२($) (२) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., ग्रं. ५२२, वि. १२०३, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं देवं), ८३७५२($) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा.१०, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड), ८१८१४(+), ८२६७३-१(+$), ८३४७५ (2) पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मप., (ॐ आँ क्रॉ ह्रीं ए), ८३४३७-२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ८४१९७(+#), ८५१०७(+), ८३४३७-१ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (जयंती भद्र मातंगी), ८३७२८-२ पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (ॐ ॐ ॐकार बीज), ८४३२४(+$) पद्मावतीपटल स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (श्रीमन्माणिक्यरश्मि), ८५१०२(+) पद्मावती स्तोत्र, सं., श्लो. ४५, पद्य, मपू., (श्रीमद्गीर्वाण चक्र), ८३२३०(६) परमाणु लक्षण, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (जालांतर गते भानौ यत्), ८२७५६-२ परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्न), ८५४३५-१(+$) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ८२४७०(+$) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (स्म० श्रीपार्श्वनाथ), ८२४७०(+$) पर्वकर्तव्य गाथा, प्रा.,सं., गा.७, पद्य, म्पू., (मंत्राणां परमेष्टि), ८३१३८-६(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, श्वे., (प्रथ्वीभूषणपुरे पाप), ८५१६९(+) पार्श्वचंद्रसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (श्रीपूज्याः पार्श्व), ८२८८४-९(2) पार्श्वजिन १० गणधर गणनु, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशुभगणधराय नमः), ८३७१८-२(+) पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ८५१७२-१(+$) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ३, पद्य, मप., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ८१४६९-६(+#) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूप., (वरसं वरसं वरसं वरसं), ८२९३०-३, ८३६०३-२ पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूप., (जगद्गुरुं जगद्देवं), ८३८२८-१(+#) पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा.,मा.गु., मंत्र. १, गद्य, मप., (ॐ ह्रीं अहँ नमीऊण), ८३८२८-२(+#) पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ८५१६६-२($) पार्श्वजिन लघुस्तोत्र-रावण, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (पार्श्वपदांबुजातं), ८२९६०-३(+) पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, मूपू., (कल्याणमालां कमलां), ८१८८५(+$) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ८३५५०-३(+#), ८३००६-१(#) पार्श्वजिन स्तव-कलिकंडमंडन, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मप., (नमामि श्रीपार्श्व), ८३०२२-१(#) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (स्फुरद्देवनागेंद्र), ८४८८६-२(+), ८३६०२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मपू., (मनश्चिंतितं यो ददाती), ८२१२८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (रुचिमंडलमंडित), ८३८०७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (वाराणसी भवन भूमि), ८२८७१-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचकल्याणकसूचनागर्भित, मु. देवचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूप., (श्रीमत्पार्श्वेशदेव), ८३८२४(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. शांतिसागर, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (श्री वरकानकमंडन खंडन), ८२९६०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपा), ८३५०६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कल्याणकेलि कमला), ८३००६-२(#), ८१७०२-८(5) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. महिपाल, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (--), ८४१५५(६) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मप., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ८१८५६-२(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), ८२१२५-१(+$) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन-अवचूरि, मु. जयसागर, सं., गद्य, मप., (योगो ज्ञानदर्शनचारित), ८२१२५-१(+$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मालामालानबाहुर्दधददध), ८१४६९-८(2) पार्श्वजिन स्तुति-अष्टविभक्तियुक्त, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पार्श्वः पातु नतांग), ८३८२१-७ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नै दें कि धप), ८३५०२-१(+#), ८५५६२-१३(+#), ८२९१५, ८४५६७-१ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ८५५६२-१२(+#), ८५११७-२ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, स्पू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ८३०६४-४ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ८३४६८-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ८३२४८-२, ८२६८३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), ८३५३५-२($) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो), ८३२१८ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मसिंघ, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (वंछित आस पुरण प्रभू), ८१४९२-६($) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ८१३६७-४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ८१४६९-७(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मपू., (नमु सारदा सार), ८४२४९-२(4)८३८४९-३($) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ८३८४२(+), ८३६००, ८३७३० पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ८३२०८ १(+), ८४४१७ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ८३५३४-२(+), ८३४६२-१ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ८५४६४-१२, ८४३६७(#$), ८२१५६(5) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. विनय, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (तमालताली वनराजिनीलं), ८२९६०-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघना), ८३८४९-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ८२२२६-२(+#), ८३८०६-२(+), ८३९५१-२(+#), ८५३८२-१(+), ८१४९२-३, ८३४५७-१,८३७०४-१, ८३४७०(#) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), ८३३२५(+) (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ८२१११(+), ८१८१५-२, ८२०५५-१, ८२२०९(2) पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं सकल श्रीसंघ), ८४२८५(2) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ८१५६१(5) (२) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोए वरीसे छत्रीस), ८१५६१(६) पुराणहंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ८२५५९(+), ८२३५७ (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाइं सांभल), ८२५५९(+) पूजा पद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक ५ नमोत्थुणं१), ८३९४१-५(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), ८१४५१(#) पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिकम), ८१८४०-३ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ८१२८२-१(+#), ८४४०८-३(+), ८३९३८ (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद ११, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मपू., (भासाणं भंते किमादीया), ८२२८३(5) (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अ० प्रयापति हे भगवान), ८२२८३(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ८५४१२-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा गर्भज), ८१९४७-१४(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प्रश्न.८, गद्य, म्पू., (इदा अगीए जमी नीरती), ८३४२५-२(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), ८४५७०-२ (२) प्रज्ञापनासूत्र-संबद्ध ३३ बोल सिद्ध अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा चोथी नार), ८४४९६-२(+#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-संमूर्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहिणं भंते समुच्छिम), ८३७६३-५(+) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन),८३४७७ प्रतिलेखना गाथा, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (कत्तिय पय चउ पउणो), ८१९२१-२ प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मनइंन करुं वचने न),८१९२१-१,८४७४६-२ प्रभातकालीन सामायिक की विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,रा., गद्य, मप., (पहिली इच्छामि खमासमण), ८३९४१-१(+), ८५२४९ प्रमख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मप., (श्रीमहावीरदेव थकी), ८२१३२(#$) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मपू., (संसार विसमसायर भवजल), ८३८०२-२(+) प्रशस्त नगरवर्णन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूप., (अभ्रल्लिहामलविशालजिन), ८२५२८-२ प्रशस्ति पद्धति, सं., प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीसकलं कलं), ८२२५८(+#$) प्रश्न संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (नतुचतुर्दश्यां), ८१८६२(+$) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ८३७२१ प्रासुकजल विचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (अन्नजलं१ उन्हंवाकसाय), ८३७६३-७(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ८३२०९-२ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गा. २८, पद्य, मप., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ८१३९०(+), ८३४६९-२(+), ८३७९४(+$), ८४९७८-२(+), ८३४२८-४(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति), ८३२०९-४, ८२१४८-२(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (देयं भोजधनं धनं),८२९३२-३ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., इतर?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ८१४११-१(+#5), ८५१६२(+$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ८२४३१-५(+), ८२४८७(+#), ८४१३५(+#), ८५३७९-२(+), ८३७६४-२, ८४९७९-२, ८१८०२(#), ८३२४०-२(१), ८३५३३-२(#), ८५३३२-२(#), ८५४४२-४(2) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., इतर, (श्रिष्टे संगः श्रुते), ८४२२८-३(#) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ८३९५५-२(+), ८३०६४-१, ८४१९१-१ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), प्रतहीन, (२) यवराजर्षि कथानक, संबद्ध, प्रा.,सं., गा. ४, प+ग., मूपू., (अधावसि पधावसि ममं च), ८२२२१-१(+) बहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मप., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजल जलहर), ८३७४०-२ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), ८३७४०-२ बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मप., (भो भो भव्याः शृणुत), ८४२६५(+#$), ८५०९८(+$) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ८२२५३(+#), ८३६९२(+), ८३७९८(+), ८३८३१(+), ८२३८१, ८३५३५-१, ८१५९०६), ८३८१०($) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूप., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ८२०००(#$), ८२१६५ (#S) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ८२१६५(#5) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ८२०००(#$) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ८३८९८-२(+#) बोल संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, मप., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ८३९४७(+$), ८४४२७(+), ८५१९६(+),८५३२५-३(+), ८२५९९, ८३२३२-१, ८४६६७, ८५३६७-४, ८४४३३(#), ८३१०२(६) बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछै), ८४०३९(+5), ८१६९९, ८१८३८-४, ८४५३९, ८२३४७-१(६) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ८१६५९(#$), ८५३८३-१, ८५३८६ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ८१८५९(+$), ८२१४०-२(+$), ८३४४३(+), ८३५४१(+), ८३६५६(+#), ८३७५०(+),८३७९५-१(+), ८१८५८-१, ८१८६१,८३६३९(#$), ८४४१३(#5), ८२९२६($), ८३१३०-३($) (२) भक्तामर स्तोत्र-काव्य फल, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (सर्व संपदा लक्षमी), ८१६०१ (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., दि., (गंभीरताररविपुरि), ८३७९५-२(+), ८३८१७-२ (२) भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादपूर्तिरूप-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्राणप्रियं नृपसुता), ८३५७५(+s) (३) भक्तामर स्तोत्र-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र-चतुर्थपादपूर्तिरूप का टिप्पण, सं., गद्य, मपू., (श्रीनेमिनाथं-राजीमति), ८३५७५ (+$) भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), प्रतहीन. (२) भक्तामर स्तोत्र-(पु.हि.)पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मूपू., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ८३१४७-१(+$), ८२०६१(६) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूप., (नमो अरहंताणं० सव्व), ८१७७७(+$), ८४४०८ (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मप., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत),८१७७७(+$) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक-३ सूत्र-७६२ से ७६४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (एएसि णं भंते पुढवि), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक-३ सूत्र-७६२ से ७६४ का संबद्ध महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (जय सकल नरासुरस्वामी), ८३२४९(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मपू., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेस पखी दिठी), ८३१९५(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध, प्रा., गद्य, मूपू., (सणंकुमारेणं भंते), ८३८४१(+) (३) सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सनंतकुमार हे पुज), ८३८४१(+) (२) १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (सूत्र भगोती सतक पहल), ८४८४४-१ (२) ३६ नियंठा-भगवतीसूत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवतीजी सतक २५), ८३९४५(६) (२) भगवतीसूत्र गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ८३१५६-१ (२) भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूप., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ८४८२६ (२) भगवतीसूत्र-पंचमआरा सज्झाय, संबद्ध, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (हाथ जोडी मान मोडी), ८४२९३-४(+) (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ८४५७०-३, ८५२४२-३ (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु., को., मूप., (अत्थिणं भंते समणवि), ८४३४२(+) । (२) भगवतीसूत्र शतक २४ उद्देश २४-नाणता १९९८ प्रकार बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरकमै ११९ तिर्यंचमें), ८५०६९-२ (२) भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (सूत्र भगवती सतक ८मे), ८२९४३ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ८४२७०-१(+#) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचम अंगे भगवती जाणि), ८४७७६-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मपू., (वंदि प्रणमी प्रेम),८५४१०,८५५६९ २(१), ८१६९५(5) (२) भगवतीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८२६९५-३(#$) (२) भगवतीसूत्र-सप्रदेशीअप्रदेशी बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (सपएसा हार गभविय), ८३२३४(+#) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ८३८२७-१(+), ८३८३० (२) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नि० रात्रीनइ अंतिइ), ८३८३० भूमिकंप लक्षण, सं., श्लो. ५, पद्य, इतर, (दिनस्य प्रथमे यामे), ८३०७२-३ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलन), ८२१३९(+$) भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, वै., इतर, (मालवदेशे श्रीधारानगर), ८२१७९-६(#) भोजराजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (येषां न विद्या न), ८३४७१(+) (२) भोजराजा श्लोक-बालावबोध, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (कहत कुरंग तब कस्तुर), ८३४७१(+) मंगल श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १, पद्य, मप., (अर्हमित्यक्षरं), ८१९३०-२(#) मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,गु.,सं.,हिं., प+ग., इतर, (--), ८५१२०-२(+), ८१५९४-२, ८२८६३-२(१), ८३०१२-२($) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (ॐहींश्री अहँत), ८३४२७-२(+), ८३०५३-२, ८३५२१, ८३६०५, ८३५१९(#), ८३५१७(5) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., इतर, (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ८२९५६-१,८३२१७-३, ८४१२४-२, ८४१६७-२, ८४३११-२, ८४८०३-२, ८५१८०-३, ८१६४६-३(#), ८३०२२-३(#), ८३२२१-२(#), ८३४२८-२(२), ८४१२८ २(2), ८४९८०-२(2) मंत्र यंत्र संग्रह, सं., गद्य, इतर?, (ॐ हिं यकाट्वऊरु), ८३७०५-२(#) मंत्र-यंत्र संग्रह, सं., गद्य, वै., इतर, (ए यंत्र अष्टगंध सु), ८३७८२-२ मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., इतर, (ॐ नमः काली नै), ८३३१६-२(+), ८२०९३, ८१७२४-२(#), ८३७७४-२($) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवओ बाहुबलि),८३७२०-२(+) मधुरस्वरकुस्वरदृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., इतर, (नीलकंठ शुकश्चैव वायु), ८२१७९-५() मनुष्यभवदर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ८३४२७-१(+), ८३८११-१(+), ८४५५६-१२(+) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मपू., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ८३२४८-३(5) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ८३४१६-१ महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नमोर्वाररागादिवैरि), ८३८२१-५ महावीरजिन जन्मोत्सव, सं., प+ग., म्पू., (--),८४२९२-१(+$) महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (१. श्रीवीर केवलात्), ८४५५२-४ महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ८३७४९(+), ८३८०७-१(+), ८४१७९(+#), ८१४०४-१(#) (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ८३७४९(+$) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूप., (भावारिवारणनिवारणदारु), ८१८५७-२(#) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ८१८६०-२(+), ८३७४८-१(+), ८३७९९-२(+), ८३९५६-२(६) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पं० पंच महाव्रत अने), ८३७४८-१(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (वीरं देवं नित्यं), ८३९५७-५(+) महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ८३४६८-१ महावीरजिन स्तुति-शासनरक्षा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (श्रीमद्वीरजिनेश औवड), ८४५३३-२(+) महावीरजिन स्तुति-संगीताक्षरमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (पापा धाधानि धाधा), ८४५६७-२ महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ८३४५३(+) महावीरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ४४, पद्य, मप., (दरियरयसमीरं मोहंकोद), ८३७३९(+) महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, मु.रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ८३२६७-२(+#) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (सर्वमंगल मांगल्यं), ८३६९९-३(-) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ८२३८७-२(+) मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., श्लो. २१, पद्य, मप., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ८५१०१-(#) माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (ह्रीं श्रीं क्लीं), ८३९९७-२(+) मायाबीज विधि, सं., गद्य, मप., (विधिना ह्रींकार), ८३३३९-३(-६) । मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, स्पू., (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ८३३३९-१(-) मायाबीज स्तुति-२६ श्लोक, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (सवर्णपार्श्व लयमध्य), ८३३३९-२(-) मार्कंडेयपुराण, ऋ. वेद व्यास, सं., अ.१३७, पद्य, वै., (तपःस्वाध्यायनिरतं), प्रतहीन. (२) दर्गासप्तशती, हिस्सा, ऋ. वेद व्यास, सं., अ. १३, ग्रं. ७००, पद्य, वै., (सावर्णिः सूर्यतनयो), ८२२७१-१(#$) मासकल्प विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (--), ८२४६८(६) महपत्ति पडिलेहण सज्झाय, वा. साधुकीर्ति, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (गणहर गोयम सामि पणमी), ८२८७१-१(+#) मूर्तिपूजामतपुष्टि विचार-शास्त्रपाठयुक्त, सं., प+ग., मूपू., (तथा केचन कुमतयः), ८३८१८(६) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ८४६७५(+), ८२८९३, ८४७६३, ८५३०२-१, ८२८७९-१(2), ८४६३३ मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., पू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ८२४४०(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ८४३६१-३(+), ८५१७३-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीभाग्नेमिर्बभाषे), ८३०००-१(+) यवराजर्षि बोध गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, स्पू., (उहावसीहा पुयावसहा), ८२७४० For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) यवराजर्षि बोध गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कुंभाररै घरे जग्यामै), ८२७४० योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मपू., इतर, (यत्र वित्रासमायांति), ८२२३४($) रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., इतर, (वागर्थाविव संपृक्तौ), ८२२८७(+$) (२) रघुवंश-टिप्पण, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, मपू., इतर, (अहं कविकालिदास), ८२२८७(+$) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, स्पू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ८२३८८(+) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ८३९७६(+$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८३९७६(+$) (२) प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. ११, गद्य, मपू., (प्रथम हिवे ११ प्रश्न), ८१६११(+) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), ८१४७२-२(६), ८३१२५-३(2) (२) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, श्वे., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ८१४७२-२ रोगीपृच्छा श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., इतर, (पाणीपादौ भवेद्दष्णं), ८२३८५-१(+) (२) रोगीपच्छा श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जे रोगीना हा० दाघ), ८२३८५-१(+) लग्न विचार, सं., गद्य, इतर, (पांच५ इग्यारै११ सतर), ८३५७१-२(+) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मपू., (शांति शांतिनिशांत), ८१४३१-१(+#$), ८२२२६-१(+-#), ८३४३१ (+$), ८४३९६(+#5), ८५१७०-१(+-), ८५२०९, ८५०२४-१(#), ८३६९९-१(-) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ८२२६४(+#$), ८३८०४(+), ८३८५० (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ८१३१९(+#$) लघस्नात्र विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मप., (प्रथम नित्य जिसी), ८५५७१(#) लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहि.,प्रा., गद्य, श्वे., (जीव गइ इंदिय काए सुह), ८१८८४, ८४०५० लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ८३७७६-१(+), ८२७५६-१ लौकिकस्थविर वंदनावली, सं., गद्य, मप., (लौकिकथिवरदेशकाय), ८५५३२-१ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (ॐ परमेष्ठि), ८३२०८-२(+$), ८३५०९-१(+), ८५१४७-१(+-), ८२०२६ वर्धमान बासठीयो, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (भावगइइंद्रीकाए जेए), ८१७४० वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, मूप., (ॐ नमो अरिहंताणं), ८१८८२-१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ८२२९७(#), ८२९३१(१), ८३७२८-१(5) वस्तुपाल प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १४०५, गद्य, मपू., (पूर्वं गुर्जरधरित्री), ८३८७१(#$) वार नक्षत्र कष्टावली, सं., गद्य, श्वे., इतर?, (अद्य १ वृष२ मृगांग), ८१९६१-२(+) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, म्पू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), ८३७४४(#) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (समरवीर राजा महावीरनउ), ८१९९५-३(+$), ८३८९६-२,८३१२५-१(2) विचारसारोद्धार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ८४७९८-२($) विजयप्रभसूरिगुणस्तुति गीति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (श्रीविजयदेवसूरीशपट्ट), ८३०८०-१ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, म्पू., (तेणं कालेणं तेणं), ८३७९७(+), ८३९७७(+$), ८३७८८, ८३३०७(#5), ८३४२९(#$) (२) विपाकसूत्र-टीका, सं., गद्य, मपू., (--), ८३४२९(#$) विवाह अतिचार दृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., इतर, (जीवेस्ते गौतमस्त्रीं), ८२२२६-४(+-#) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा), ८१९१२() (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), ८२६८४-१(+$) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणी गुणज्ञेषु गुणी), ८३४४२(+$), ८४१८५(+), ८५१५९-६, ८३१८१(#$), ८४०१३-२(#), ८१८५३-१(६), ८२८५२-२(), ८२८२२-२(#), ८४०४८(-), ८५०२५(-) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ४९५ विविध विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (अयंसां भंते जीवे), ८५१६४-६ विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जईया होही पुच्छा), ८१९३१(+), ८५५५७(+$), ८१८५३-२, ८५३१३, ८५५१०-२, ८५५७३(5) विविध श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (सर्वदोषविनिर्मुक्तः), ८३६३० (२) विविध श्लोक संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, मपू., (जिको जीव रागद्वेष), ८३६३० विवेकहर्ष गणी के प्रश्न विजयसेनसरि के उत्तर, मु. विवेकहर्ष, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (तथा कांजिकजलमभक्ष्य), ८२९६५($) वीतराग वाणी, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (जयसिरिवंछियसुहए), प्रतहीन. (२) वीतराग वाणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवंत श्रीवीतरागदेव), ८३९९८-१(+) । वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., इतर, (सरस्वतीं हृदि), प्रतहीन. (२) वैद्यवल्लभ-हिस्सा वातज्वरनिदान श्लोक, मु. हस्तिरुचि, सं., श्लो. ५, वि. १७२६, पद्य, मप., इतर, (सरस्वती हृदि), ८१८०३ (३) वैद्यवल्लभ-हिस्सा वातज्वरनिदान श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (--), ८१८०३($) वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जम्मजरामरणजले नाणावि), ८३८४६(+#) (२) वैराग्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जनम जरा मरणरूप जल), ८३८४६(+#) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, म्पू., (संसारंमि असारे नत्थि), ८५५४६-२(+$) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (संसार असारमाहि नथी), ८५५४६-२(+$) व्यवहार सम्यक्त्वउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम तो देव श्रीअरि), ८१६०९-१(+) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासियं), प्रतहीन. (२) व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० पाडलीपु), ८१८५१(+) (३) व्यवहारसूत्र-चलिका सोलह स्वप्न विचार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (ते काल पांचमा आराने), ८१८५१(+) व्याकरण, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., वै., इतर, (रंते भव: दंत्य: देत), ८३७०४-२($) व्याकरणग्रंथ, सं., गद्य, इतर?, (--),८१८२२-१(६) व्याकरणश्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (अद्दी? दीर्घतां), ८३७६५-३ व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा), ८१३९१, ८२९८३(2) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ८३५४६-२(+) व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दानं), ८१३०२(+), ८१३२६(+$), ८१७३६(+#), ८३८३८(+), ८४१०३(+#s), ८२२११(#5), ८३०२६-२(#), ८३८२५ (#s), ८१६०६-२(5) (२) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा), ८३८३८(+), ८३८२५(#S) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ८३९५१-३(+#), ८३४५७-२ शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, म्पू., (धरणेंद्रप्रमुखा नागा), ८५१७१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धक्षेत्र), ८१४६९-१०(+#) शत्रंजयतीर्थ स्तति, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (सिद्धोविज्जायचक्की), ८३५५०-७(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (मुनींद्रैः सुरेंद्रै), ८५०८२(+) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ८२२२१-२(+$) शनि जाप, सं., पद्य, वै., (धामिनी १धंखन्नी चैव), ८२००४-२(+#) शनिभार्या नाम, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), ८३०९३-२(#) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ८३८९८-१(+#), ८४०७१-२ शनीश्वर मंत्र संग्रह, सं., गद्य, इतर, (ॐ नमो भगवते श्रीशनि), ८२३२९-१(2) शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., ढा. २, गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीजयमंगल), ८४६८४-१(#) शांतिजिन स्तव, ग. शुभशील, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (वासवानतदेवेन रंगागार), ८२९१४-१(२) (२) शांतिजिन स्तव-अवचूरि, ग. शुभशील, सं., गद्य, मपू., (वासवः शक्रस्तेन नत), ८२९१४-१(२) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अं ही कूर्मयुगं), ८३८२१-९ For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांति स्नात्र पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (२) शांति स्नात्र पूजाविधि-शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, हिस्सा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ॐ तं संति संतिकर), ८४२२७-१(६) शारदादेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, श्वे., (अविरल शब्द मयौघा), ८३२८०(#) शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ८३८४४-४(+), ८५१७२-२(+), ८३६८५(६) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), ८३७६६(#) (२) शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (ज्योतिष्कव्यंतरेष्वस),८३७६६(+#) शाश्वतजिन स्तव, प्रा., गा.५, पद्य, मूपू., (वंदामि सत्तकोडी लक्ख),८२१२८-१(+) शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (दीवे नंदीसरम्मि), ८१३६७-२(+) । शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मपू., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), ८५१०५ (२) शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव-टीका, सं., गद्य, म्पू., (दाहिण द्वारे ४ पच्छि), ८१९९० । शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूप., (नित्ये श्रीभुवना), ८२११२-१(+), ८२३८७-१(+), ८५१६७ शीतलारक्षा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै., वै., इतर?, (ॐ त्रिशूलनी प्रेत), ८४५५६-१०(+) शीयल नववाड विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (वसहि कह निसिज्जेंदिय), ८१४९१-३ शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अहं भंते तुम्हाणं), ८४५५६-११(+) शृंगार श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (हें कांतिकुचभारविभ्र), ८५२५८-२(+) । शैलेशीविचार गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मप., (नाऊण वेअणिज्जं अइ), ८२४६६(#) (२) शैलेशीविचार गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मप., (नाऊ० ज्ञात्वा केवलेन),८२४६६(#) श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (श्रावक धर्मनइ विषई), ८२९९७ श्रीमती कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, सं., श्लो. ५३, पद्य, श्वे., (नवकारअक्खरकरेणं पावं), ८३८४५-१(+) श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. ७, पद्य, वै., इतर, (कपाटमुद्धाट्य चारुने), ८२७०६-१(#) श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्याम), ८१९७५-२(+), ८३८२७-३(+$), ८१४६५-४, ८१७४७-२, ८३०६७-२ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मप., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ८१५८१-४(+), ८४२२८-१(2) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., वै., (गोश्रावः किमयंग), ८३१३८-७(+) श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., गा. २०, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (एगग्गचित्ता जिणसासणं), ८१९७६(+#) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ८१५९५(+), ८३६९१(+), ८५२०२-२(+), ८५२४५-३(+), ८१८३६-२, ८३५०३-३ (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रावकना दिवस-दिवस), ८१५९५(+) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अरिहंत भगवंत उत्पन्न), ८३९७४-३(2) श्वासोश्वासपरिमाण विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (ब्रह्मदत चक्रवंत ७सइ), ८१७३०(६) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मप., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), प्रतहीन. (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ५७७३, ई. १५वी, गद्य, मूपू., (जयति विजितरागः ___केवला), ८२०१९(5) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मप., (अरिहं देवो सुगुरू), ८४३९२(+#$) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (एक श्रीअरिहंत वीतराग), ८४३९२(+#S) संक्रांति वार फल, सं., श्लो. ७, पद्य, इतर, (संक्रांतिमादित्यदिने), ८१५४६-३(+) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पाला च्यार ते मधे), ८५५४०(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मप., (संतिकरं संतिजिणं), प्रतहीन. (२) संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (एतत्स्तोत्रं त्रिकाल), ८४६९३ संथारापोरसी विधि, प्रा.,मा.ग.,गा.११, प+ग., मप., (पहिल संथाड करावीइ),८३८१३-२(+#$) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ४९७ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसीहि निसीहि निसीहि),८३७१६(+#$), ८४०९०-१(#),८४२०२(+), ८३८२१-३, ८३८४०, ८४८१९-२, ८५५२५-२, ८१९९९(#) (२) १८ पापस्थानक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (पाणीयवायमलिअं), ८३७६३-६(+) संथारासूत्र-लघु, प्रा., गा. ६, पद्य, मपू., (एगोहं नत्थि मे कोई), प्रतहीन. (२) संथारासूत्र-लघु-हिस्सा वैराग्यात्मक हितोपदेश, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (एगोहं नत्थि मे कोवि), ८३०५०(+#) (३) संथारासूत्र-लघु-हिस्सा वैराग्यात्मक हितोपदेश-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (हुं एक छु हुं इकेलौ), ८३०५०(+#) संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मपू., (जह अभविय जीवेहिं), ८५१४८-) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मप., (नमिऊण तिलोअगुरुं),८२६२१(#$) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (अहं भंते अपछिम मारणं), ८४२६८-२(+#) संवच्छरीचउमासीपक्खीदेवसीराइ आलोयणा, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (इच्छाकारेण संदिसह भग), ८२८९१ सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (वासासु सगदिणो उवरिं), ८३७६३-८(+) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., कां. ३, गा. १६८, वि. ११वी, पद्य, मप., (सिद्धं सिद्धट्ठाणं), ८१७३१(६) (२) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., कां. ३, गद्य, मूपू., (शास्यते जीवादयः), ८१७३१($) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ८५०२०-१(#), ८३९०२(६), ८३९७८(5) समरसिंहकुमार कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ८२४७९(#$) समवसरणतप विधि, मा.ग.,सं., प+ग., मप., (भवजिननाथाय नमः १०),८४८८३-१ समवसरण प्रकरण, प्रा., गा. २१, पद्य, मप., (तियणकुलसिरतिलयं), प्रतहीन. (२) समवसरण प्रकरण-संबद्ध समवसरण प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (बत्रीस अंगुलने), ८५३५७ समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ८४३३३-१ समस्या श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४४, पद्य, श्वे., (वंध्याः योधः कुहुनि), ८२६७३-२(+$) (२) समस्या श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अयनागतवा सररा महता), ८२६७३-२(+$) सम्यक्चारित्र विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (सम्मत्तचरणसहिया सव्व), ८५६१६-१ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), ८३६१८-१(+#) (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसद्दहणा० जीवजीवदि), ८३६१८-१(+#) सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (द्रव्य समकित भाव), ८३१९८(+) सम्यक्त्व स्वरूप, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (जिम सम्यक्त्वनु), ८४००९-२(5) सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी), ८३७३५-२ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मप., (ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत), ८१५२६-१(#) सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मप., वै., (नमस्ते शारदादेवी), ८३५३४-१(+), ८३८४४-१(+), ८४०३८-२(+), ८२४३२, ८३३०३-२ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (प्रथम भारती नाम), ८३५५०-५(+#), ८३८४४-३(+), ८३४२१-१(६) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (या कुंदेंदतुषारहार), ८३८४४-२(+) सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ८३५५०-६(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूप., (करमरालविहंगमवाहना), ८३८५३-१, ८३४२१-२($) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), ८३३०३-३($) For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-टीका, सं., गद्य, वै., इतर, (सत्रसप्तशति यस्मै), ८२२५९-१(+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (श्रीअनुभूतिस्वरूपाचा), ८२२५९-१(+#$) सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (या कुंदेंदु तुषारहार), ८३५१३-१(#) सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, वै., (शुद्धब्रह्म विचारसार), ८२९२१-१(६) सर्वव्रत भेद- ४९ भांगा, सं., गद्य, श्वे., (तत्राद्यव्रते २१ तत), ८४९६९(+) साधारणजिन अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पूजा. ९, प+ग., मपू., (गगनसिंधुहिमाचलनिर्गत), ८४१३८-३ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (देवाः प्रभो यं), ८१९०१(६) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वं मया), ८१९०१($) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ८३९५७-४(+), ८३८४९-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ८५५६२-८(+#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (केवलचंद्रस्य कलंक), ८३८२१-४ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनानामनाम स्फुरद्गा), ८५५६२-१०(+#) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मपू., (मंगलं भगवान वीरो), ८३८२१-६, ८५३१५-४, ८५३५०-२(2) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (या माता ममता माया), ८२९३०-४ साधुआचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हणतं णाणु जाणिज्जा), ८३७६९ (२) साधुआचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (हणतं० इत्यादिक सद्दी), ८३७६९ साधु आराधना, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वं ग्लानस्य), ८३७४६(+) साधुदर्शनफल श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (साधूनां दर्शनं पुण्य), ८१४१४-२(+) साधु वस्त्रपात्राहारादि अनुग्रह आलापक, प्रा., गद्य, मपू., (इच्छकारी भगवान पसाउ), ८३७७७-२ सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाए इच्छाइ), ८१७४६-१(+#) सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (च्यार सरना करना कर), ८३२१६-२ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा.,मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (पहिलूं प्रणमं जिन),८३८६८-२(2) सामायिकपारणा गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जं जं मणेण बहु जं जं), ८४३३४-३(+) सामायिकपौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्पू., (--), ८३९६२-१(६) सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ८४१८४-१(+#), ८५४६७(5) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., इतर, (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ८१९६२(+#$) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ८३७५४(+$), ८३७९२(+S), ८२५६४(६), ८२९२५(६), ८३५४९(६) । (२) सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मप., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ८२५६४(६) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ८५००३-१२(2) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूप., (जं उसहकेवलाओ अंत), ८३८२२-१(+), ८४६९७(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ८३८२२-१(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., मूपू., (अनुलोमसिद्धिदंडिका १), ८३८२२-२(+), ८४६९७(+) सिद्धपद चैत्यवंदन, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. २, पद्य, मप., (सिद्धाणमाणदरमालयाणं), ८५००३-१३(#) सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ८२८६१ सिद्धांत चर्चा-विविध विषयक, पुहिं.,प्रा., प+ग., श्वे., (--), ८४०७४(६) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मपू., इतर, (श्रीमद्गुरुपदाम्भोज), प्रतहीन. (२) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., इतर, (अनिट् स्वरांतो भवति), ८१८७५(+#) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, मूपू., इतर, (वृङ् संभक्तौ याद), ८१८७५(+#) सिद्धितप विधि, गु.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (सर्व मुक्ति मोक्षनाथ), ८४८८३-२ सुदर्शनसंहिता, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सुदर्शनसंहिता-पंचमुखिहनुमत्कवच, हिस्सा, सं., प+ग., वै., (ॐ अस्य श्रीपंचमुखी), ८३५४५-१ सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), ८२१७९-२(#) । सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ८२७५८(+2), ८३४८६(+), ८२३२३-३, ८२२२८(२), ८३७२७-२(#), ८३७५३(#) सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., श्लो. ४५, पद्य, जै., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ८१९९५-१(+), ८२०७५-३, ८५४५५-३, ८१३८१ ५(2), ८२३२९-५(2) सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २००, प+ग., श्वे., (ॐकारबिंदु संयुक्तं), ८१७५३-२, ८३७४३(#s) सुभाषित संग्रह *, सं., श्लो.८, पद्य, इतर, (नागो भाति मदेन), ८३३८९-२ सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., इतर, (राज्यं निःसचिवं गत), ८२३००($) सूक्तावली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., इतर, (धैर्यं यस्य पिता), ८४४३४-२ सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मपू., (वीरं विश्वगुरुं), ८२०९६(+) सूतक विचार, सं., गद्य, मपू., (जातकमृतकसूतयोः केचिद), ८२१३८-४ सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ८२१३८-३ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ८३५१८ (२) सूत्रकतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मप., (पुच्छिसुणं समणा माहण),८१८६० १(+), ८३४६९-१(+$), ८३७९९-१(+), ८३६८९, ८३८४८, ८३८७९-१, ८३९५६-१, ८३६५०($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (२३ सुगडांगजी के), ८५३४९-१(+) सूत्रग्रंथादि जैन पारिभाषिक नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सुत्तं१ गंथं२ सिद्ध), ८५३८३-२ (२) सूत्रग्रंथादि जैन पारिभाषिक नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सु.० गुरु समीपइं), ८५३८३-२ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ८१८५२(+#5), ८१९९३(+$), ८४६२७-२(+-8), ८३७१५(६) | (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (अद्वितीय भास्वन्), ८१९९३(+$) स्तुतिचौवीसी, वा. पुण्यशील, सं., ढा. २४ स्तुति जोडा, पद्य, मपू., (ऋषभ योगीश्वरं भजत), ८३७७२(5) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ८३९३०-१($) स्थापनाचार्यजी पडिलेहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि तस्सउ), ८३९५८-१(+-) स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., ढा. ८, वि. १९वी, प+ग., मूपू., (सरसशांतिसुधारससागर), ८५२९२-१(+) स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ८१६३७ स्वाध्याय विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (पूर्वपट्टिका पाटला), ८३१८७ हनुमानाष्टक, पुहिं.,सं., गा.८, पद्य, वै., (जय जय बजरंगी जालिम),८३५४५-३ हेमदंडक गाथा, प्रा., गा.५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार),८४७६४-१(+#) होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (अथ चतुर्विंशतितम), ८३६६९ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मप., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ८२५४३, ८३७८९() होलीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवाग्वादनि अभिनम्), ८४६९४ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४ गति २४ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू (कषाय घणी हुइ अमेलता), ८१५३० ४ गति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (सरसतीसामीने वीनवुं), ८२८३६ ४ गति बोल, रा., गद्य, श्वे., (पले पद श्रीअरीहंत), ८२९२० (-$) ४ दुर्लभ वस्तु सज्झाय, मु. रत्नचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १९११, पद्य, वे., (श्रीजिणवचने जाणज्यो), ८५२४१(+) ४ ध्यान विचार, मा.गु., रा. गद्य, भूपू (प्रथम आरितध्यान जीका), ८५५४६-१(०), ८५३४६(१ ४ निक्षेप स्वरुप, पुडिं, गद्य, मूपू., (कोइभी वस्तूमें गुण), ८३९९६ (+) ४ निक्षेपा सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपु., (भोला लोको रे भरमें), ८४७१७ ४ प्रकार जीव वर्णन, पुहि., गद्य थे. (उत्तम पुरुष की दसा), ८९४०६ " ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, भूपू.. शशिकुलतिलो), ८४३६५ (+), ८४४४४ (#$), ८४४३२ (६) (सिद्धारथ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-वृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ५, पद्य, म्पू, (नगर कंपिलानो धणी रे) ८१३१०, ८१७८२-१ ४ बोल- तीर्थंकर अकरणीय, मा.गु., गद्य, म्पू., (१ जीवनी आदि काढवा), ८२१७४-५ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ८१४०१ (+), ८४९८०-१(#), ८५०८६-२(०६), ८५४४२-१(क) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलुं ए मंगल जिनतणु), ८२१६० ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हार च्या), ८५३३५-३ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु गा. १२, वि. १८५२, पद्य, वे (पो उठीनें समरीजै हौ), ८२८४०-४०) , ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), ८४५६६ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ८५२४५-४(+), ८४६१९, ८५२१६-१, ८५४३२, ८५४३६ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ८१९१६-२(#$) ४ शरणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै चार सरणा करवा), ८५४२२-२ (+) ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, भूपू., (ऋषभ१ चंद्रानन२), ८४५६१-३ ५] अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (विजय १ वैजयंत २ जयंत). ८५२७२-३ ५ इंद्रिय २३ विषय २५२ विकार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पांच एकेंद्रि), ८५३६७-३ ५ इंद्रिय के विषय, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ कायाना ५ चक्षूना), ८१३६८-१ ५. इंद्रिय विवरण, पुहिं. गद्य, भूपू (स्पर्शनंद्रिय १) ८४४२४०५ , ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगुलनो), ८१८६४-२(#) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( काम अंध गजराज अगाज), ८३१७४, ८४०५१ " ५ इंद्रिय सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दीपक देख पतंगीयो बेस), ८४११०-२ ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., डा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू (सिद्धारथसुत वंदिये), ८१६५५ (५०), ८३९४३ (+३), ८५४३८(१) ८२११६ ५ चारित्र ४२ द्वार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (सामायक का दोय भेद), ८४७७४ (+) ५] तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू (धुर समरु श्रीआदिदेव), ८४२७४-३ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ८२१६४, ८५३०९-२ ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ८१७३८-३, ८४१०८-१ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ८५२२१, ८१६१८(#) ५ प्रकार के मूर्ख, रा., गद्य, श्वे. (आप गल करे आप हंसे१), ८३०८३-८(#) ܕ. For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५०१ ५ प्रकार निद्रा, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम एक सबदसु जागे),८१६२७-३ ५प्रस्थान नाम-सूरिमंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (विद्यापुर्वक पीठ), ८३७८५-२(2) ५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मप., (केवलीना जोगथी जीव),८४७९८-३ ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (पहिलू ए मंगल मन धरो), ८४१०९(+) ५ मंगल स्तवन, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (उस पहलो मंगल अरिहंत), ८१५३३-२(+$) ५ महाव्रत ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (गुरुना गुण सुणजो सहु), ८१९४४(5) ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवै रे), ८४५०६-२(+$), ८५६१९(+), ८३०४७, ८२८८१, ८२५८४(६), ८३२३१-१(६) । ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ८४२०६ ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, ., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), ८४०६७-३, ८५३००-२ ५ वादी विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (काल१ स्वभावर नियत३), ८५४४१(+) ५ समिति ३ गुप्ति बोल, मा.गु., पद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनसूत्ररा), ८२५७५($) ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्यावाद शुद्धो), ८४७३३-४(+$), ८४५७७-१, ८४९५५ ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ८५१५३(+) ६ काय जीव उत्पत्ति आयष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पृथ्वीकाय अपकाय), ८४५५६-२(+), ८५५७५-१(+#), ८४४२४-३, ८४६६४, ८१४४४(4), ८१७९१-२(4) ६ काय सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पांच हे नर साभलो), ८४२३४-१(#) ६ द्रव्य पद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (षटद्रव्य ज्यामे कह्य),८३०२५-१ ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, मपू., (अंगारमर्दकाचार्य), ८१८३८-३ ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (निगम नइ १ संगर २), ८४३३२-३(#) ७ नरक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मा १ पहिली नारकी), ८१७९१-१(2) ७ नरकस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली नरगे जगन), ८१३६२ ७ पद आरती, मु. दोलत, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (पांचु परमपद भज सूख),८५२२४-१ ७ बोल सामायिक-नयगर्भित, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ नैगमनय ते० सर्व आत), ८३०१९-२(-) ७ वार सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आदितवारे उतावला), ८५४५३-२ ७ व्यसन लावणी, मु. राम, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (चोरी जुवा मास मद), ८४९१७-३ ७ व्यसन सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि मेरे जीयरा सीख), ८४३८७-३(+$) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ८४३८०-१, ८२०७०-२(2) ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), ८२७३८ ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (काया कामण जीवसं इम), ८१३८२ ७ सती सज्झाय- चेटकराजपत्री, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (चेडा राजा रे बेटिया), ८१९५९-३(+) ७ समुद्घात थोकड़ा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात समुद्धातना नाम), ८५२४४ ७ समुद्धात विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यने ७ समुद्धात),८५३६७-१ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ८४३१३(+), ८३२४८-१, ८१५५६-१(#) ८ कर्म ८५ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणी ६), ८१३५९-२(+) ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), ८५४९९-२($) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीयकर्म), ८१५८८($) ८ कर्म सज्झाय, सा. भामाजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८१२९८(5) ८ गति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवता १ देवतानी), ८३७६०-९ For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०२ ८ जिन स्तवन- वर्ण प्रभातिषु, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०. वि. १८३६, पद्य, ., (प्रभातें उठीनें), ८५४७८-११ " ८ नाम आत्मा के भगवतीसूत्रे, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यात्मा १ कषाय), ८४७४६-१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३६, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ८१६८६-२(#$) ८ प्रकारी पूजा, मु. कुंअरविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (त्रिजगनायक तु धणी), ८५३३५-१ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ८५३७८, ८१६८६-१(#$) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ७८ गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपु. ( अजर अमर अविनाश जे), ८२९०६ (६) ८ बोल- धर्मपरिवार, रा. गद्य, ओ., ( धरम को पिता), ८१९४७-२(१) ८३०८३-११-०) 1 ८ बोल-पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे), ८१९४७-३(#), ८३०८३-२(#) ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारी) ८४९३१(+), ८४५८५-१, ८५५८८ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ८, गा. ७६, पद्य, भूपू (शिवसुख कारण उपदेशी ), ८४३९१(३) " ८ लक्षण अदाता - कृपण, मु. सुरो, पुहिं. गा. २, पद्य, ओ., ( अदाता लखण आठ प्रथम), ८४३७३-४ " ८ आवक गुण, मा.गु., गद्य, म्पू., (१ श्रावक केहवा होय), ८१५३८-२(*), ८३०८३-३(७) ८ संपदा नाम, मा.गु., अंक. ८, गद्य, वे., (आचारसंपदा १ सुत्रसंपद), ८१९४७-८ (क) " ९ नारद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ भीम २ माभीम ३ रुद्), ८५१६४-३ ९ प्रतिवासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (अश्वग्रीव १ तारक२), ८१९४७-११(#) ९ प्रतिवासुदेव नाम-अनागतचौवीसी, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ तीलकनाम पहलो प्रती), ८५२१८-१ ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, वे. (अचल१ विजय२ भद्र३), ८१९४७-१२(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., ( वसति १ स्त्रीनी कथा), ८५६१८(+) ९ वाड सज्झाच, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, म्पू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ८४९०५ (+), ८५१३५(४०), ८४२४७, ८४७४९, ८१७८०(०३), ८३९७१-१(०३), ८१६६५ (३) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., डा. ९, गा. ५६, पद्य, म्पू., (आदि आदि जिणेसर नपुं), ८१५०५ (+) ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य थे. (त्रिपृष्ठि १ द्विपू०) ८१९४७-१०(A) 1 , ९ वासुदेव नाम अनागतचौवीसी, मा.गु., गद्य, म्पू., (१ नंदी पहलो वासुदेव), ८५२१८-४ ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवुं सांभलीनै शिष्य), ८१४४९-१ १० दृष्टांत सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (दस दृष्टांते दोहिलो), ८१९२५-१(#) १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., डा. १०, वि. १७९०, पद्य, मूपू., ( श्रीजिन वीर नमी), ८४३९७ १० नक्षत्रज्ञान बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मृगसिर नक्षत्र), ८४०६७-६ १० नक्षत्रनाम कोष्टक, मा.गु., को. मूपु. (१ मगसिर २ आवरा ३) ८५०४४-३ १० नपुंसकभेद विचार, मा.गु., गद्य, थे. (पिंडक १ वातक २ क्लीच), ८४६३३-३(*) "" (२) १० नपुंसकभेद विचार- बालावबोध, मा.गु., गद्य, वे. (पुरुषाकारपणे स्त्री), ८४६३३-३(४) " १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू. (दसविह ग्रह उठी) ८४०६८-२ १. , १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ८३८९५ (+), ८४८९७ (+), ८३९४०, ८४३६८, ८४७१२, ८५४१६, ८२०६३ (#$) १० प्रकार अंधे के पुहिं., गद्य, श्वे. (अहांसी घटाइ घटे वधाइ), ८३०८३-७(#) , १० प्रकार असज्झायकाल विचार, मा.गु. रा., अंक. १०, गद्य, म्पू., (रसरो लोलपी हुवै तो), ८५३९४-२ १० प्रकार के धर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (गामधर्म ते लोकानी), ८२१७४-११ १० प्रकार के पुत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (पिताने पवित्र करै), ८२१७४-१३ , १० प्रकार के स्थविर, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्राम १ नगर २ राष्ट्र), ८२१७४-१२ १० प्रकारे देव आयुष्यबंध सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा. गा. १३. वि. १८६५, पद्य, वे (दस प्रकारे बांद सुर ), ८३१६९-१(-) " "" १० बोल-अधोदृष्टि के लाभ, पुहिं., गद्य, श्वे., (पेले बोले निचा देख), ८३०८३-६(#) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५०३ १० बोल-ज्ञानप्राप्ति के, पहि., गद्य, श्वे., (पंजइ दरियाके विस्वे), ८३०८३-५(-2) १० बोल-धर्म, मा.गु., अंक. १०, गद्य, श्वे., (दया पाले सो दानेसरी), ८१९४७-१(2) १० बोल-नारकीबिना दख, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीतनो चउत्थी नारकी), ८२१७४-१० १० बोल-नियाणा विचार, मा.ग., गद्य, मप., (तपसा करीने नीयाणु न), ८४०६१-१ १० बोल-महावीरस्वामी के बाद विच्छेद गई वस्तु, मा.गु., गद्य, मपू., (जथाख्यातचारित्र विछे), ८४०६१-२ १० बोल-श्रावकगण, पुहिं., गद्य, श्वे., (पेले बोले खावे की गम), ८३०८३-४(#) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ८१५२२, ८५२६६-१(६) १० भुवनपतिदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरनिकाय १ नागनिकाय), ८१९८४-४ १० भुवनपतिदेव स्तवन, पं. दीपविजय, मा.गु., ढा. १, गा. १५, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (असुरादि कह कुमार दश), ८५०५९(+) १० मनुष्यजन्म दर्लभ बोल, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मपू., (पहिलै बोलै मनुष्यभव), ८१९४७-५(2) १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ८१४७९-१(+) १० राजधानी-जंबूद्वीप भरतक्षेत्रे, मा.गु., गद्य, स्पू., (चंपानगरी अंगदेशमै१), ८२१७४-७ १० लक्षण दातार पद, मु. सुरो, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रथम कहे आवो पधारो), ८४३७३-३ १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदा रे), ८४२९३-१६(+), ८५०१३-२(+-) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं), ८२९४० १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (दश श्रावक भगवंतना),८५१८२-४ १० सम्यक्त्वरुचि बोल, मा.ग., गद्य, मप., (निसर्गरुचि१), ८५५७५-२(+#$) १० साधुलक्षण सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (पहिलो लक्षण साधनो जी), ८१३२३-१(-) १० सुख नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (आरोगपणु ते देहि), ८२१७४-९ ११ अंग १२ उपांग सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अंग इग्यारै सोहांमणा), ८४८६२-२, ८३९८४(#) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मपू., (आचारांग पहेलु का), ८१४६६-१, ८४०८४(#) ११ गणधर गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पहेलो गोयम गणधर), ८५२५३-२, ८२६७५-१(६) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, पू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ८३७१८-३(+), ८५०४४-५, ८४५८०-४(#) ११ गणधर पद, मु. फतेचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (गुणधर इग्यारं वीररा), ८२९८५-३(+#), ८१९४५-२(-) ११ गणधर परिवार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइं त्रीजो वायुभुति), ८२५७०(+) ११ गणधर माता-पिता नाम, मा.गु., को., मूपू., (१ वासुभूति २ वासुभूत), ८५०४४-६ ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (प्रभाते उठीने भविका), ८२०८३-१, ८४६१६-१ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.ग.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे),८४१८२-३, ८४३९० ११ गणधर स्तवन, मु. टोडरमल, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (चोवीसमा श्रीवीर), ८४३१७-४ ११ गणधर स्तवन, मा.गु., गा. २५, वि. १९०७, पद्य, श्वे., (ॐ नमः इंद्रभूतिजी), ८३४१४ ११ गणधर स्तवन, मा.गु., गा. १५, वि. १९२७, पद्य, श्वे., (इंद्रभुतिजीने वांदी), ८३०६९-१ ११ गणधर स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (पावाए नयरी प्रसीध), ८५६०५-१ ११ रूद्र नाम, मा.गु., को., श्वे., (१ अभेज्जइश्वर २अमरइश),८५१६४-४ १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (मतिज्ञान१ सुतज्ञान), ८१५६५-२(2) १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, श्वे., (उग्र कुलाणी वा कहता), ८१५३१-२(+) १२ गुण अरिहंत, मा.गु., अंक. १२, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्राति), ८१८७७-२($) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ८१९४७-९(१), ८४५८०-५(#) १२ चक्रवर्ती नाम-अनागतचौवीसी, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीरघदत्त चक्रवर्ती १), ८५२१८-३ For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ दुर्लभता नाम-मनुष्यभव, मा.गु., को., मूपू., (१ मनुष्यभव २ आर्य), ८४०६७-५ १२ देवलोक इंद्र नाटकसंख्या, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिले देवलोके ५०), ८४४१६-३ १२ देवलोक कोष्ठक, मा.गु., को., श्वे., (--), ८१४७४-३(+#) । १२ देवलोक नामादि विवरण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (पहिलो सुधर्मदेवलोक), ८४१५९(+), ८४०११, ८५११३ १२ पर्षदा-प्रभाती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरस्वती पच्छिम दीप), ८४०३०-२(+) १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ८४३३२-४(#) १२ पूर्णिमाफल चौपाई, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै., इतर?, (प्रभु पय प्रणमी बोलि), ८१५४६-१(+) १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनित भावना १ असरण), ८१५६५-१(#) १२ भावना पद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (पहिली अनित्य भावना), ८५२७२-२ १२ भावना बारमासो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनपद पंकज नामो), ८३१६८-२($) १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिली अनित भावना ते), ८२८५८(#) १२ भावना विवरण, पुहि., गद्य, मूपू., (अनित्यभावना ऐसा विचा), ८३९९९ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ८४३५१(+$) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, गा. ९०, पद्य, मूपू., (विमलकुलकमलना हंस तुं), ८५३७१-१(#) १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ८५३७१-३(#), ८१५२८($) १२ मास नवकारसी कालमान कोष्ठक, मा.गु., गद्य, मूप., (मागसर सुद १थी सुदि), ८४७३१, ८४८८७-१ १२ मास समयदर्शन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोससुदमां कलाक ९),८४८८७-२ १२ व्रत पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (बारवरत सुधा पालजे), ८४३८२-२(-2) १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला समकित व्रतना), ८४५५६-३(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (--), ८२९०९(-2) १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (आलस १ मोह २ बने ३), ८२५७३-३ १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (पहिला प्रणमुं गौतम), ८४७२७ १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), ८५५५२-१(+), ८४०२१(-) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ८४२३८(+), ८२१३८-१ १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ८५२४५-५(+) १३ काठिया सज्झाय, श्राव. हिम्मतराम, मा.गु., गा. १५, वि. १८२२, पद्य, पू., (तेरे काठीया दुरी कीज), ८४३०१-२ १३ काठिया सज्झाय, पुहिं., गा. १७, पद्य, दि., (जोवट कारै वाटमै करै), ८४००६-१ १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहि., गद्य, श्वे., (किचड गारा थोडा होवे), ८४७८०-७(-) १३ बोल संग्रह, मा.गु., प+ग., मूपू., (तेरे १३ क्रिया), ८५३५९-१ १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ८५४१२-२,८१५६५-३(#), ८१७९१-३(#), ८३७०३-२(#) ८५०८६-३(#) १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणस्थानकनी), ८१४२७(#$) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), प्रतहीन. (२) १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., मपू., (मिथ्यात्व सास्वादन), ८५३३८ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ८१८१२ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), ८२०२५(+$) १४ गुणस्थानक स्तवन, ग. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (पय पणमी जिण पासना), ८३१४८-१ १४ गुणस्थानके ३८० भाव विचार, मा.गु., गद्य, मप., (गुणठाणु १ लु उदयीक), ८१९१९(5) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५०५ १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणठाणइ अठकरम), ८२५२२(+) १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (उधि बंध १२० प्रकृति), ८४७११(5) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ८१६७३(+$) १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचितद्रव्य १ अचित), ८४०२३-२ १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सचित ते कोने कहीइं), ८४५५६-१(+) १४ नियम सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. २०वी, पद्य, श्वे., (हां रे चत्र नर नेम), ८४४९१-३ १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, पू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), ८१५७३-३ १४ भेद-जीव के, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना १४ भेद तेमा), ८२१०९ १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ८३८५७ १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (साते नरगे सात राज), ८१४७४-१(+#) १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूप., (कोई देवता सोधर्मदेव), ८३७६०-७, ८४०६७-४ १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (विद्याकला रसायण),८२६२२-२(+), ८२९८९-३ १४ श्रोता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा., वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीश्रीमंदर साहिबा), ८१९२२(), ८१९४८(5) १४ स्वप्न बोल-मोक्ष गमन, पुहि., गद्य, श्वे., (हाथी की घोड़े), ८१७१८-२ १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ८४२०५(#), ८४००३(5) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पहिले गहवर देखीयाजी), ८३९८८-१(+) १५ कर्मादान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (इंगलकर्म चुला चार), ८४०६७-२ १५ तिथि जिनकल्याणक मंत्रजाप विधि, मा.ग., गद्य, मप., (पडवेने दिवसे श्रीक), ८४७६८ १५ तिथि सज्झाय, ऋ. करमचंद, मा.गु., गा. २६, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर जगगुरु), ८१६१२-१ १५ तिथि सज्झाय, डुंगरसी, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (चतुरनर ग्यान विचारो), ८५२९३ १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (एकम कहै तू एकलो रे), ८२३४६-२ १५ परमाधामी थोकड़ा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पत्नी आंबनामे परमा),८४१८८ १५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अंब१ अंबरीष२ शामशबल), ८४८०० १५ परमाधामी सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (--), ८४११२(६) १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ८५५०५ (२) १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई-बीजक, पुहि.,सं., गद्य, मपू., (वांच्छा कृतार्थिकृत), ८५५०५ १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ८५४७८-१० १६ तप स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिनेसर भाखियो रे), ८५१७८ १६ बोल-दखगर्भित, पुहि., गद्य, श्वे., (पहले दख घर आंगण), ८५३४९-७(+) १६ बोल-सुखगर्भित, पुहिं., अंक. १६, गद्य, श्वे., (पहला सुख काया नही), ८५३४९-३(+), ८३०२५-२ १६ वचन बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एकवचन घट पट वृक्ष), ८५३४९-२(+) १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ८४३९३, ८३२९४-३($) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ८३९५५-१(+), ८५०८०(+#), ८५३३९(+), ८१४३७-१,८२६४४-२,८१५२९-२(६) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), ८५१२६-१(+) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (शीतल जिणवर करी), ८४७१५-३(+), ८४०७७, ८१२७३-१(#) १६ स्वप्न लावणी-चंद्रगुप्त राजा, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (शासन नायक सुरतरू), ८१७४७-१(६) १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ८४५१४(#S) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ८१४४७-२(#$) १८ गण राजा नाम देशादि विचार, मा.गु., गद्य, मप., (अढार राजा श्रीमहावीर), ८२१७४-६ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०६ १८ दोष रहित भावचारित्री, मा.गु., गद्य, मूपु (अठारै दोष रहित भाव), ८४४०३-२ (+) १८ नातरा कवित्त, पुहिं., पद. १, पद्य, खे, (देवर भतीजो भ्रात), ८३१७८-३००) " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (२) १८ नातरा कवित्त-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., ( कुवेरसेन बालकस्यु छ), ८३१७८-३(#) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर, ८२८७१-३०) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहला ते प्रणमुं पास), ८४७३३-६(+$), ८४०९८-१, ८४९६४-२(१३) ८५५४३) १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ४. गा. ७५, पद्य, मूपू (मानव भव पायो जी), ८४१५२ (५७) १८ नातरा सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु. दा. ५. गा. १०७, वि. १८१४, पद्य, म्पू, (वीर धीर गंभीरवर वासि), ८५३८४-१ (३) १८ नातरा सज्झाव, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ८४०५४(+९) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलां ते समरूं पास), ८४८८०-१ १८ नातरा सज्झाव, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे. (एक ही माइ तिण मुझ), ८४९४६ १ १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली प्राणातिपात), ८३९१९-२, ८४४२४-४ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, सज्झा. १८. ग्रं. २११, पद्य, मूपु (पापस्थानक पहिलं कहि), ८२७२५-१(*), ८२१५९(३) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., गा. २१, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाव बंदीय), ८४६३२ ($) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, वे (प्रथम जिणेसर पाए), ८१६५४(४) , י १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (पापरा थानक अठार पूरा), ८४७२३-४(+) १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोले पोसानी रातने, ८१५३८-४ (+), ८४५५६-६(+) १८ भार वनस्पति गांधा, क. शुभ, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (प्रथम कोडि अडतीस), ८४२०७-२(१) (२) १८ भार वनस्पति गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम ३८ कोडि मण ११), ८४२०७-२(#) १८ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (लाटी चोटी २ माहली ३) ८५४७९-२(*) १८ लिपि नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (हंसलिपि १ भूवलिपि २) ८५४७९-१ (+) १८ शाखा तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (विजय शाखा १ हंस शाखा), ८३०८०-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (चेतन १ अचेतन २ एवं ), ८१४६८ -१(+) १९ बोल- श्रावकाचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (पेले बोले भणवा गुणवा), ८१७४२ २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी १), ८३९४२(#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. अमीवविजय, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू. (पहिला सीमंधर नमो), ८४६२८-१ , २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. जीव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर प्रभु), ८५५३१-२ (+) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८. वि. १८वी, पद्य, मूषू. (पहेला जिनवर विहरमान), ८२६०२ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु. गा. १, पद्म, से., (जय जय जगगुरु), ८४१२३-१(+) " २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ८१७९८-२, ८४५६१-२, ८५०४४-४ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपु. ( सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ८४५८०-३ () २० विहरमानजिन पूजा, मु. नित्यविजय, मा.गु., पूजा. २०, ग्रं. २७०, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (मनमोहन पासजी सकल), ८२६४० (+३) ८२८९८(+३), ८२५९१(३) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. गोरधन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीस विहरमान अहोनी), ८२७५४-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे. (श्रीसीमंधर साहिब हो), ८४२९३-१२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जीत, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (संप्रति काले विचरंता), ८५६२३-२ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२४, पद्य, स्था., (सीमंधर युगमंधरस्वामी), ८१४५२-४ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रथम सीमंधर करुं), ८१५६७-२(*) " २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (पहिला स्वामी सीमंधर), ८५५०३ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५०७ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (विहरमानजिन विचरे एह), ८४७५८ २० विहरमानजिन स्तवन, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (सीरमींदरसामी सीवर), ८५२०३-१(-) २० विहरमानजिन स्तवन-वर्तमानतीर्थंकर, मु. ज्ञानविलास, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (पंच परमगुरुने नमी), ८१३४५-१(+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., स्त. २०, वि. १७५५, पद्य, मूप., (पुंडरीकणी नगरी वखाजी), ८१६१६() २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूप., (पुखलवई विजये जयो रे), ८४६०२(5) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पंचविदेह विषय),८३०६४-२ २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (उत्तम साध पधारीया),८१९६६ २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (अरिहंत प्रथम पदे),८४५१६-१(+) २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं),८३७३३ २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, क. नयरंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति समरी सुगुरु), ८४५२५-२(+) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पय पणमी जिनवर देवना), ८१२६८ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसत हां रे मारे), ८२२८२-१,८४६८७ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुअदेवी समरी कहुं), ८२८२९(+$), ८४९७५ २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ८१४२१-१ २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (अरिहंतजी गुणगीराम), ८२१२३-३ २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (हस्तकर्म करै तो सबल), ८१३५३-१(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ८५५९५-२ २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ८४५३१-३(#) २२ परिषह सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (साधुजीरो मार्गर कठि), ८४२९३-१०(+) २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (साधुजी रो मारग कठन), ८३००७(-) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ८४४०७(#$), ८४३००(६) २४ जिन १५ बोल स्तवन, मु. राजरत्न, मा.गु., गा. ७७, पद्य, मूपू., (विमलकमलदलवर नयन कुलह), ८५०३२ २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल थानक पहुता), ८२९७४-१ २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ८४६११(+), ८४६१४(+), ८४६१५(+) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभू रिषभजणेसर नमी), ८४०३०-१(+) २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव आउखू), ८३८६२-२ २४ जिनआय स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वंदीइ वीरजणेसर राय), ८२९०४-२(६) २४ जिन उत्पत्तिक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, स्पू., (४ तीर्थंकर प्रथमथी), ८३७६०-८ २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आदिनाथजी आसाड), ८२६४३-३ २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, म्पू., (प्रणमी जिन चोवीशने), ८४५७९, ८४७९३-१ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसती आपे सरस वचन), ८२२८२-२ २४ जिन गीत, मु. चंदजी, मा.गु., गा. ३७, वि. १८२५, पद्य, मप., (चोविसे जिणवर नम्), ८४५१०(+) २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गी. २४, पद्य, मपू., (समरि समरि मन प्रथम), ८४४६७-५(+) २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूप., (निजगुरु चरणकमल नमी), ८५४९८(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रत्नवर्द्धन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीआदीनाथज वृषभलंछन), ८५४५७-१ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ८५५०६(+), ८१३९३-७() २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीए लीये दीक), ८२९१२-१(६) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), ८५२७७-२ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (पद्मप्रभने वासपूज्य),८१३९३-६, ८४५५५-२, ८५२७७-३ २४ जिन जीव विवरण चौपाई-अनागत, मा.गु., गा. ८, वि. १९५३, पद्य, मूपू., (कहु जी आगम कालमांहि), ८२५१७-१ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ८४३४७-३(+$), ८५६२२-१(+), ८२६१०, ८३०४४-२(#), ८१३१५-१(६) २४ जिन देहमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (५०० धनुषनी काया), ८३८६२-३ २४ जिन नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूप., (श्रीरिषभनाथजी), ८४१२३-३(+#), ८५५६३-२(+#) २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीआदिनाथ को आउखो), ८२८६६-१, ८२८४७-१(१) । २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहि., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवजीका कल्याणक),८१७०६(+), ८२८४७-२(#) २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., मपू., (ऋषभ१ अजित २ संभव३), ८१५३१-१(+), ८२२०२(+), ८१९३४(#s), ८४९८५-१(#) २४ जिननाम-अतीत, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी निर्वाणी), ८१९४७-६(2) २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी), ८४५३७-१, ८४५८०-१(#) २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ८४५३७-२, ८५२७२-१, ८१९४७-७(#), ८४५८०-२(#) २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.ग., गा.८, पद्य, मप., (ऋषभदेव पहिलो जगभाण), ८५६२२-२(+) २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ८४४२४-१ २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथना ९८पुत्र), ८५१६४-१ २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (राजाराणीरो कटुंबो), ८५५६३-१(+#) २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), ८१७४९-१(#) २४ जिन पुत्रपुत्रीसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेवजीरे १००), ८५३००-१ २४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभनाथसामी सरवा), ८३१९९(६) २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.ग., अंक. २४, को., श्वे., (आदिनाथ सर्वार्थसिद्ध), ८४६६०(+#), ८४७१५-१(+) २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रिषभदेव उतराषाढा धन), ८४९६७(६) २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वृषभ लंछन ऋषभदेव), ८४७३३-२(+) २४ जिन लावणी, मु. विनयचंद, रा., गा. १२, पद्य, मप., (समर समर जिनराज समर), ८५४७८-६(5) २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूप., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ८२०६०(+), ८४७९८-१(६) २४ जिन साधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंपदा सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चोवीस तीर्थंकरनो), ८३२८१-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. अमरतविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (हारे हु तो प्रणमु), ८४५७६ २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं प्रथम), ८१३९३-२ २४ जिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (कह धन धन छीब थारीजी), ८३२९५ २४ जिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (चोवीसे जिन गाईये), ८५०४७-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. देवा ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (नमो श्रीआदि अजितनाथ), ८४२१९-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (श्रीजिनवर गुणराशि), ८४०६०-२(#) २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि वंदो आदजिनंदजी),८५३३३ २४ जिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ६, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (--), ८५५७६-१(+$) २४ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आदिनाथ मुझ अंतरजामी), ८१७६१-१ २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (वंदु श्रीआदिनाथ अजित), ८१३२१-४(+) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ अजीत संभव), ८५४७८-७ २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिह), ८१३२१-३(+) २४ जिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकरने नमु), ८४८६०(#$) २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (करि कच्छपी धरती कवि), ८४६५६ २४ जिन स्तवन, मु. सोहनलाल, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (अजिहादा सदा जिनराज), ८२९५२-२(2) २४ जिन स्तवन, मा.गु., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (मेरा प्रभु पेला रिषभ), ८४४१५(#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (वंछितपूरण सुरतरु जेह), ८२१६१-२(#) २४ जिन स्तवन, पुहि., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ८५१८८ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (श्रीरिषभनाथ रक्षा), ८१७६१-२ २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. लाभकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सरसति सामिणी पाय), ८४३९९-१(+) २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मपू., (पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध), ८४८७१-१ २४ जिन स्तवन-मातापितानामगर्भित, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (नाभिराय राजा मरुदेवा), ८२९७३-४(-#) २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ८३१९६-१(+$), ८१७०९, ८४०२८ । २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ८१३२१-२(+) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ८२८९४ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (कनक तिलक भाले हार), ८२८४८(+#$), ८५०२७() २४ जिन स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (प्रणमं जिनदेव सदा), ८१७३८-४ २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., पू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ८२७७१(+#) २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, मपू., (सप्त नरके समुचे गति), ८१३४७(+) २४ दंडक गर्भितजिन स्तवन, मु. मतिवर्द्धन, मा.गु., गा. २३, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (सुख सहु संपद सुजस जस), ८३१४८-२ २४ दंडकगर्भितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, स्पू., (--), ८१५१८(+$) २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, मपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ८३०४१, ८१७३५(2), ८४८१३(३) २४ दंडक में जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेहेलि नरगे जघन आउखु), ८४४०१ २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मपू., (नरक७ भवणपती१० पृथ्वी), ८४६८९(+s), ८४९५० २४ दंडके २१ द्वार विचार-जीवादि, मा.गु., अंक. २४, को., मूपू., (शरीर५ अवगाहना संघयण६), ८४७६४-४(+#$) २५ पुद्गल प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रातु कालु नीलु पीलु), ८१५६५-४(2) २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति), ८१५९९(+8), ८१७००(+#$), ८१७१८-१ २५ बोल सामायिक-निश्चयव्यवहारभेदे, रा., गद्य, श्वे., (निश्चय सामायिकना बे), ८३०१९-१(-) २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ८१३५३-२(+) २७ द्वार अल्पबहत्व विचार-दिशा आदि, मा.गु., गद्य, मूप., (दिसि गति इंदिय काए), ८१७६७-२(-2) २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू., (प्रह समै उठी मननै), ८४१४१(+$) २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाव्रत पाले ५), ८४१३४, ८१५९७-१(क) २८ भावना-समाधिमरण, पुहिं., गद्य, श्वे., (१ अहो देखिये इस), ८४०९६ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (आमोसही विप्पोसही), ८५४३३-१ २८ लब्धि नाम दोहा, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आमोसहि लब्धि मलि), ८५४३४-१ २८ लब्धि व्रत विधि, मा.गु., गद्य, मूप., (पहेलेने छेहले दहाडे), ८५४३३-२ २८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अट्ठावीस लब्धि सारी), ८५४३४-२ २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मप., (जीणरी सरदणा परुपणा), ८४८७३(+) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २९ बोल-मूर्खलक्षण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ बोले विना भूख), ८१६४१(2) ३० निवियाता नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (ध विगय ५ दही५ घृत), ८४८०५-१ ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाइ कहता तारो तूट), ८४६६२ ३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्यादि विचार, मा.गु., गद्य, स्था., (आचारांग कालिक), ८२९९३-१(#) ३२ दोष-सामायिक के, मा.गु., गद्य, मूप., (पालठी न बेसे १ अथिरा), ८४५५६-५(+), ८३१२५-४(-2) ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., मप., (१समचै जीवमै २अप्रज्य),८४२६८-१(+#) ३२ लक्षण पुरुष कवित्त, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नाणु अने मोटु काम),८३०५३-३ ३२ विजय तप स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८५२७०(+$) ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (संयम धर सुगुरु प्राय), ८५०६३-२(+) ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, पू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८१६२७-१(६) ३४ अतिशय स्तवन, मु. जयवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सुय देवी प्रणमुं सही), ८५५८०-१(4) ३४ बोल-देव संबंधी, मा.गु., गद्य, श्वे., (देव समकिती के मिथ्या), ८४५७०-१ ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान, मा.गु., गद्य, मप., (पिस्तालीस आगम सर्व), ८४०६७-७ ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ८४१६९-२(+) ४५ आगम नाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआचारांग २५००), ८२१०७-२ ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८५३२२-१ ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मपू., (उद्देशिक आहार लेवें), ८१३५९-१(+) ५६ दिक्कुमारिका स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (--), ८१४८२-१(६) ५६ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो भगवानजी सरीर), ८५३८० ६२ बोल-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार दिशामांहे केही), ८३५०७-२(+s) ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, मा.गु., गद्य, मप., (जीवगइइंदिकाए जोए वेए), ८४२४० ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., मपू., (अथ नरक गत उदय यंत्रक),८१६५२ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), ८३९६१-२(+), ८४००५(+$), ८४४८७(+), ८४३१२-१ ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ८४८५०(+),८५०३९(+), ८५०७०(+), ८५१२२(+#), ८५१२५-२(+#), ८५४४९(+), ८४६६८, ८४७९२, ८५४६२,८४६९५-१(६) ६२ मार्गणा सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूप., (देवगति मनुष्यगति), ८३१३८-४(+) ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ८४०४३-२(+) ६३ शलाकापुरुष नाम-वर्तमान चौवीसी, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री भरत चक्रवर्ति), ८४०४३-१(+) ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (चमरेंद्र धरणेद्र),८१३३८-३,८२०८५-२ ६४ कला नाम-स्त्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (नृत्य १ उचित्य), ८५४७९-४(+) ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.ग., गा. ४१, पद्य, स्था., (नाम पणे ज्ञानी कथीय), ८४४२८(+) ६७ कर्मप्रकृतिबंध-नामकर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति १ मनुष्यगति), ८२६३१(2) ७० बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., को., श्वे., (१सर्वसु थोडा सत्री), ८४७३२ ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ८२६२२-१(+$), ८५४७९-३(+) ७२ मिथ्यात्वभेद विवरण स्तवन, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, वि. १९वी, पद्य, मूप., (आदि प्रमुख ले), ८५५६७ ७४ बोल-मिथ्यात्व के, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ८४४४२-१(+#$) ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर प्रणमइ), ८२५९०(+) ८४ आशातनावर्जन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (--), ८३९२०(+$) ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा नाखवो १ राम), ८४१७१(+$) ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (जय जय जिण पास जगडा),८४८७१-२ For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, ओ., (सं. ९६४ चौरासी गच्छ), ८५३१२ " ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (बावन लाख साधारण एकिं), ८२८८४-६(७) ९० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (मल्लिसणं अरहोउ), ८५३९४-१ ९६ तीर्थ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वाणारसी १ राजगृह २), ८३१७१-२ (+) " ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, श्वे., (पेले बोले सरवसुं), ८२६२२-३(+) ९८ बोल यंत्र- अल्पबहुत्व, मा.गु. को., ., (सरवधी घोडा गर्भज), ८४३७०(+), ८४४९६- १(+#), ८५४१५(+), ८५४९०(+), ८४७६२-१ १०० बोल औपदेशिक, रा., अंक. १००, गद्य, जे. वै., बी., (अथ बूढा वडेरारी सीखा), ८३०९५ (+) "" ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८४७९१($) ९९ बोल, मा.गु., गद्य थे. (समदीसरी मीध्यात). ८२६२२-४(*) " १०० बोल-पदार्थादि के, मा.गु., गद्य, मूपू., (समचै जीवमै जीवना), ८५३२८(+#) १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु. को.. मृपू., (कोका पार्श्वनाथ), ८५०६८ (#) " ११४ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ नरकगति नीकलीया एक), ८१३५८(+) १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ८४३७६-२(#) १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु. गा. १६, पद्य, म्पू., (शासननायक जग जयो), ८२७०९(+), ८४५६३ १७० जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, मु. माणेक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोल जिनेश्वर श्यामळा), ८४९९८-१ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र ), ८२४३९, ८२९५५, ८४६०७ (#) १७० जिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. १५, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (सब दिपाकै मध्य विराज), ८५३६८(+) २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु, गद्य, थे. (पांच ज्ञानना भेद), ८१५४७-२ (+३), ८४७६० (+३) " २४० बोल-संसारी जीवों के, मा.गु., गद्य, मूपू., (जनम मरण १ संजोग विजोग), ८१९४७-१६(#) ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ८४५८८ (+), ८१५५०, ८१६०३, ८५३१४(#), ८४६२५ (३) ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को. मूपू., ( भरति महाबिदेह), ८४९२५, ८४६९५-२(४) " ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, म्पू, (उंचा लोक में ५६३), ८२०७६ (+३), ८२१२५-२(*) " . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मिच्छामि दुकडं इन पर), ८४७६६-२ (+#) १०२४ स्थंडिल भांगा, मा.गु. को.. मूपू., (अनापातर अनुपघात २ सम३), ८४५४५ (+छा १७०० जिन स्तवन, मु. कपूरचंदजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक ), ८३००९-१ १९०५ आठमपाखीनी टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८५५२१-२ ५११ अंकपल्लव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. इतर, (१ एकं १० दोय १०० सय), ८२७०१-२ अंगपुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., गा. २३, वि. १६३९, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीहर्ष प्रभु गुरू), ८२५६७ अंजनासती चौपाई, मा.गु., पद्य, भूपू (--) ८१६८४(३) अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३ डाल ४३, गा. २५३, प्र. ७०७, वि. १७०६, पद्य, म्पू., ( करतां सगली साधना), ८३९९० (+३), ८४०६४+६) अमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (वीर जिणेसर वांदी), ८५४५१शक अईमुत्तामुनि सज्झाय, मु. रत्नाकर, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू (वीरजिणेसर वांदीने), ८९४२२-२ अंतसमाधि विचार, पुहिं, गद्य, मूपु., (हे भव्य तुं सुण समाध), ८१७६०(३) अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिद्ध कीधी), ८४०१८३, ८५६०४-१, ८३११५-१($) अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु. गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ८४१३६-२, ८४६५८, ८४९४०-१, ८४९५७-३, ८१८१७-१(३) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अकर्मी उपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (एक सीखामण कहुं छु), ८१६९३ अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (श्रावण वदि ४ ना दिवस), ८४१५८(#$) अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, श्वे., (कका कछु कारज करो), ८५०८९(+) अक्षौहिणीसैन्य मान, मा.गु., को., मप., (६५६१०० रथ ६५६१००), ८५३२५-२(+) अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (अजितनाथ अवतार सार), ८५००३-१४(#$) अजितजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (हो सुंदर अजित जिनेसर), ८३९३०-३ अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुरे बीजा), ८१४३४-१ अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विषयने विसारी), ८४७९३-३ अजितजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (वालो अजित जिणेशर), ८४२२२-१(+) अजितजिन स्तवन, मु. कपुरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (प्रभुजी अजितजिणंदने), ८५४६४-४ अजितजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजित ही तीरथ साचवो), ८१३७०-२(2) अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (अजित जिणेसर मुजने), ८४०५३-१ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ८२१४१-२(#) अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित अरिहंत भगवंत), ८४३०५-२(#) अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मप., (ज्ञानादिक गुण संपदा),८२९९०-२, ८४३५५-२ अजितजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जिनजी प्यारो हो सीधु), ८१३८९-८(+#) अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (आदि अजित श्रीशांतिनो), ८५५२६-२(+) अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजित जिणेसर चरणनी), ८१५८१-१(+$) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतलडी बंधाणी रे), ८५४८०(+) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ८२८६४-१ अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.ग., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ८५४२३-१ अजितजिन स्तवन, पं. सुंदरविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (अजित जिणंद जिनराजनो), ८२९३०-१ अजितजिन स्तवन-तारंगामंडन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (दरसन कीयो आज तारणगढ), ८१४७३ अजितजिन स्तुति, मु. दर्शनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु अजित), ८३००१-३ अज्ञात उर्दू कृति, उ., गद्य, इतर, मु., (--), ८२६०४-२(2) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, मा.गु., पद्य, मप., (सोवार दीन चाडी प्रणी), ८२१६६(+#s), ८३०२१ अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पुहि.,मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वाणी वीर की याय वसी), ८२९७३-१(#s), ८२९७३-२(2), ८२९७३-३(#), ८२९७९-१(2), ८२९७९-२(2), ८३००३८), ८३०६८(-2), ८३१७०-२(-) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-रास, मा.गु., पद्य, पू., (--), ८३९०७-७($) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (--), ८१२६७-१(-#$) अतिचार अनाचारादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा जैनमार्गीनै आगम), ८४२२६ अतिचार आलोयणा, मा.गु., प+ग., श्वे., (महापरमकल्याणकारी),८३००८(+) अतीत अनादि वर्तमान चौवीसी नामादि-१०क्षेत्रे, मा.गु., को., मपू., (जंबूद्वीप भरते अतीत), ८४९१५(+#) अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ८४६८५(+$), ८५२२२-३(2) अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (चितानंद मन कहारे), ८१५०६-३,८४४१० अध्यात्म पद, मु. देवमाणिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (आज वधावौ म्हारै सहग), ८४४२६-१(2) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ८३०४६, ८४०२४-१(६) अध्यात्म सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज आधार छै सूत्रनो), ८३२१२-१(+-) अध्यात्म सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सुण गल मेरी माता भोल), ८३२९०-१(-१), ८४४०४-१(2) अनंतजिन पद, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १९०२, पद्य, मपू., (जग उद्धारण देव कृपा), ८४८५८-३(+), ८५५२६-३(+$) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५१३ अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ८५१६०-२($) अनंतजिन स्तवन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीअनंतनाथ जिन चौदम), ८३०५२(#) अनंतवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिम मधुकर मन मालती), ८४१६१-२(+) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ८४८६४-२(+$) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ८३१५९-१(+), ८३९८७-२, ८१७१७-१(#$) अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मपू., (वडा छो तरवर छाय हो), ८४१४९-१(+) अनाथीमुनि सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (--), ८४२९७(+-#$) अनुभवज्ञान विचार, पुहि.,मा.गु., प+ग., मूपू., (जे संसारी प्राणी नव), ८१९७५-१(+) अनेकांतवाद का संक्षिप्त परिचय, पुहिं., गद्य, श्वे., (ओर तुमनै लिखा जिन), ८२६९०(#) अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (उपदेश न लागे अभव्यने), ८४८३४-२(5) अभिनंदनजिन पद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जिनपति चोथा आगलि नाच), ८२१५५-४, ८३०९४-४(#$) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (अभिनंदन जिन दरिसण), ८१६१४-३(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अभिनंदनजी अरज हमारी), ८४७०५-४ अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवु रे), ८२१४६ अमकासती सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूप., (अमका ते वादल उगीयो), ८५०१४ अमरकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूप., (राजगृही नयरी भली), ८४६५४(+$) अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (पुरव कृत करमा तणो), ८१६०४(2) अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ५०, पद्य, म्पू., (राजग्रही नगरी भली), ८३२०० अमृतध्वनि, उदयसिंह झाला, मा.गु., गद्य, इतर, (मात्रा च्याररो करस), ८४५२०-२(#$) अमृतध्वनि, क. राज, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (गिरधर अधर गोवर्धन कर), ८५१४२-२(+) अमृतध्वनि उपगीत, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (गडगड गड गाजे गयण), ८३८३४-५ अमृतध्वनि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (दागडगदि वधै दोलति), ८३८३४-३ अमृतफल सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दया अमृतफल खावो रे),८४७८०-४(-) अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ८५०६२(+), ८५६२५ अमृतवेल सज्झाय- लघु, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुआलजे), ८२१५८(#$) अरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अरनाथ कुं सदा मेरी), ८१३८९-१२(2) अरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अर जिनवर सुणो साहिबा), ८३१७५-१(+) अरजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरजिन दर्शन निज), ८२९६३ अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), ८४३६९-१(5) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., गा.१२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया), ८४२९३-१५(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया), ८५०११-१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८४४८५-१(+), ८४५४८-७(+), ८१५४४, ८२०९०-३() | अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनि अरणिक चाल्या), ८३१५४ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८४८७८-१(+) अरनाथजिन स्तवन, मु. पान, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अरनाथ अढारमा उपगारी), ८५२८७-२ अरिहंतगुण स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंतने रे), ८१४६४ अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), ८४९६३-२ For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अरिहंतपद स्तुति , उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सहु यंत्र शिरोमणि), ८३०८१-१ अरिहंत स्तुति, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (उठे प्रभात्य समरीय), ८१५००-२(+) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आवो आवोने राज श्रीअर), ८३२०६-१ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, वा. महिमसुंदर, मा.गु., गा. २७, वि. १७७०, पद्य, मपू., (आबु शिखर सोहामणो), ८४४६३-२(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ८२८२७ अर्बुदाचलकल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरबुदाचंल ऊपर अंबर), ८४५४९(+) अल्पबहुत्व यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८१९३२(+) अवंतिसुकुमाल चौढालिया, मु. हीरालाल, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १९३५, पद्य, मूपू., (एवंति सुखमालको केवु), ८२९३७(+), ८२८३० अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, म्पू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ८१५०३(+),८१५६० १(+), ८४५५०-१(+), ८४५४०, ८२८९५ (#s), ८३२९६(६) अवधिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (पूजो पूजो अवधिज्ञान), ८५६०२ अविनाशी लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहि., गा.४, पद्य, श्वे., (चमक चमक चम विजुरी), ८२८८२-४(#) अविनीत शिष्य सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (काल दूकाले आवियास रे), ८५१५९-१ अष्टद्रव्य पूजा-रागबंध, मु. हरचंद ऋषि, मा.गु., वि. १८३२, प+ग., मपू., (अरिहंत पद पंकज नमी), ८२३४८-१(2) अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., गा. ९, गद्य, मूपू., (तुम्ह तरणतारण), ८४२३३ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ८४७२६-२, ८५११६, ८५२७७-१ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीचंद्रप्रभु नित्य), ८३१३७-१ अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (श्रीसरसतिने चरणे), ८१३३२-१(+), ८१४४०-१(२), ८४६८६ १(#$), ८४७९४-३(s) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ८४६०९-४(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (वीर जिनवर इम उपदिशे), ८४०५८(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ८३९००(+), ८४१८९ १(+),८४६५३-१(+),८१३३०-१, ८२९२९,८३१७६-१(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (जय हंसासणी शारदा), ८५५९९ अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), ८५०१० अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मप., (पंच तिरथ प्रणमुं सदा), ८५३२१-१(+), ८४५८२-१, ८४५९५-२,८४७१८-१(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चोवीसे जिनवर प्रणम), ८५५६२-१६(+#),८५५४९-२, ८५३००-३(5) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ८३०००-२(+), ८१६३६, ८५३०१, ८५३४८, ८५४८३-१, ८५५७९, ८५४५८-२(८) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ८१७०२-४, ८५११७-३ अष्टसिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणिमा सिद्धि १ ह लह), ८३७६३-३(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा.५२, पद्य, मपू., (इक सरसति अतिसय गुण), ८५२२२-१(2) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (तिरथ अष्टापद नित), ८४२२४-४(+-), ८४०७६-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ८१६६८, ८१६७५, ८५४४२-५(2) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद रंगे नमी), ८४१९४(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ८१३८८-५(2), ८४२५७(#) For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० अष्टोत्तरीस्नात्र सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीफल सोपारी मजीठ),८५१७९-१ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असज्झाईना बि भेद एक), ८५१३९-१ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), ८१७९१-४(#), ८५५५०-२($) असज्झाय विचार कोष्ठक, मा.गु., को., पू., (--), ८५५५०-३ असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइं), ८४७२५, ८५१८६, ८५१९७, ८५२३२, ८५५४१ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (पवयण समरी सासणमाता), ८४९७१ असनादि ४ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असण ४ भेद कहे छे), ८२६३८-२(#) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ८२११७, ८४२१३(#) आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. ४९, गद्य, श्वे., (श्रीउत्ताधेन सुत्त), ८१६९६-२($) आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (आगमनी आशातना नवि), ८३१२३-२ आगमवाणी सज्झाय, मु. चंद्रनाथ, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (जिनजी साध वडे बलवंता), ८५६१२-३ आगमसारोद्धारग्रंथ सज्झाय, मा.ग., गा. १९, पद्य, मप., (अष्टकर्म वन दाहकें), ८३९७२(#) आगमिक विविध विषय विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), ८३४५१(६) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (शुद्ध समकित पाया), ८४०३६ आत्मध्यान पद, आ. कीर्तिसरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (मुझकुं डर हे रे एक), ८४३८७-२(+) आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ८४९०९(+), ८१७९५, ८४२९१, ८४६८०-१, ८२५०९(#$), ८२६३९() आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. भावप्रभ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सासरीइं इम जइइं रे), ८४८८१(+) आत्मबोध पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (तेरे फुलसी दीदी पालक), ८४१८१-३(#) आत्मभावना, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अरे आतमा अरे चेतन), ८५०४२(+#) आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु पाय लागी करूं), ८५३६२ आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंख्यातप्रदेशी अनंत), ८२९७२ आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (देव मो दीदार दीजै), ८३२८३, ८४१९९-२ आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), ८३८८४-३ आदिजिन आरती, पुहि., का. १, पद्य, मपू., (भभकंति वाजि भेर घणण), ८३३३४-२(2) आदिजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम जीणंदस्यु), ८५०७६-१(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (कल्पवृक्षनी छांहडी), ८५३१५-३, ८५००३-८(2) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (आदिदेव अरिहंत नमु), ८३९०९-२(#), ८४२७४-२ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. जिन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), ८५००३-१(#) आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), ८१२७४-२ आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ८१३७८($) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ८५३९६-१(#) आदिजिन पद, य. अगरचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (ऋषभकु देख मेरे मन भइ), ८४४५१-२(+) आदिजिन पद, मु. अमर, मा.गु., पद. २, पद्य, श्वे., (आदिवंस इख्याग), ८५०२८-२ आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ८४७९३-२ आदिजिन पद, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बाग में), ८१६४४-२(+) आदिजिन पद, मु. कुसालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर साहेब क), ८४०७६-५ आदिजिन पद, मु. खुशालचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो आदिस्वर स्वामि), ८४१६४-३(+) For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा. गा. ३, पद्य, म्पू., (विसरे मत नाम प्रभूजी), ८२१७८-२ आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (नित घ्यावो रे रिषभ), ८३२०९-३ " आदिजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( रिषभजिनेसर अतिअलवेसर), ८१३१५-१० आदिजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुर्हि गा. ३, पद्य, मूपू (ऋषभदेव स्वामी हो काल), ८३९३०-४ , "" आदिजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा नेहरा), ८२५३६-२ आदिजिन पद, भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नाभ नंदनसूं लगी लव), ८३२७१-२(#) आदिजिन पद, मु, मेघसुंदर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू (पुजण जास्या मे तो), ८५५२३-३(*) आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सफल घडी रे मोरी सफल), ८१५०१-३(#) आदिजिन पद, सकनचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (वचरत वचरत आविउ रे गज), ८१४५७-२(+#) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू. (आज ऋषभ घर आवे देखो), ८१७३८-५, ८५६१३-१ आदिजिन पद, मु. सुबुधविजय, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (ऋषभजिन अरज इसी अवधार), ८४०१३-३(०) आदिजिन पद, मु, हीरालाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (आज अजोध्या नगरी के), ८३०३१-२ आदिजिन पद, पुहिं. गा. १, पद्य, भूपू (परम परम गुन सदन मदन), ८१८२२-२ (२) आदिजिन पद-बालावबोध, पुहि गद्य, मूपू . "" " . (परम कहीये सर्वोत्कृष), ८१८२२-२ (३) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारो जिनमुख मटको), ८२१७८-१६ आदिजिन पद-केसरियाजी, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जोओ लजा राखसो तो रेस), ८४६४७-३(+) आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ५, पद्य, म्पू, (सांझ समें जिन बंदु), ८५५२३-१७(**) आदिजिन पारणा, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू., (गडा एक सौ आठ सबी मन), ८३४९७-१ आदिजिन पूजा, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (श्रीक्षीर हीरसु निर) ८४१३८-२ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन पूर्वभव आयुमानादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (चंपानगरीधी शेठ धनोजी), ८३८७०- १(क) आदिजिन फाग, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब कर ले भजन जिनेस्व), ८२१७८-६($) आदिजिन लावणी, मु. नान्हू पुडिं, गा. ४, पद्य, म्पू, (आदि जिनेसर कियो पारण), ८४५७८५ आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. १३, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (सरसति माता सुमति), ८४२७२-२ आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सुनीओ बात सदासीवजी), ८५१८०-१ आदिजिन लावणी-धुलेवातीर्थमंडन, मु. ज्ञानरत्न, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (चलो चेतन० धुलेवगढ), ८४६४२-१(+#) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेत्रुंजा), ८५४६०-१ आदिजिनविनती स्तवन, मु. विबुधविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. सारद केरा प्रणमी पाय), ८३८७५-१(+) आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (सकल आदि जिणंद जुहारि ), ८३०९२ आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु. .वि. १९९५, पद्य, भूपू (-), ८४४५७(+६) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर ), ८१७०४, ८२५९४/०६) आदिजिन विनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३, पद्य, म्पू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ८३८८८ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयमंडन, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. २५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (सुरसति भगवति पाए), ८५०२८-१ आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधर्यो), ८५२५५, ८३१०५($) आदिजिनशांतिजिन स्तुति, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे., (मे अरज करूं सिरनामी), ८३५०४-२ आदिजिन सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (क्यांथी रे प्रभु, ८३१३४ आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, म्पू., (सरसति माता देवी चरण), ८४४९०१) . आदिजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु. गा. ११. वि. १७९८, पद्य, मूपू (आवो आवो ने लाल), ८४२३६-१ आदिजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (भवि तुमे वंदो रे), ८१६३४-२ For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५१७ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ८४०२६-६(+$), ८४८५८-१(+), ८२९५३, ८१६१४-१(२) आदिजिन स्तवन, मु. उत्तमचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (प्रथम तीर्थंकर रिषभ), ८३२८५(#) आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मुरति मोहन वेलडीजी), ८५०९३-३(+$), ८२१५५-५ आदिजिन स्तवन, पं. ऋषभविजय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभली प्रेमे प्रणमी), ८४२२२-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अईयो अइयो नाटक नाचें), ८२६८४-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (आज नाभ वार मची हे), ८४०१८-४ आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (उंचा रीषभजीना देहरा), ८४५७२-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ८३९६६-२ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, स्था., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ८१७४८(+) आदिजिन स्तवन, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीत प्रभुजीसु लग), ८१४९१-२ आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथ आदिकरण), ८४५९९-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (प्रात उठि समरियै), ८४०८०-१ आदिजिन स्तवन, गोमद, मा.गु., गा. १२, वि. १६४७, पद्य, श्वे., (श्रीसारद हो देवी नमण), ८३२४२ आदिजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ९, वि. १७८१, पद्य, श्वे., (हो प्रथम जिणेसर प्रथ),८४४९५-२ आदिजिन स्तवन, मु. जसकर्ण, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (नाभिनंद तुम जीणंद), ८३८७९-२ आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज आनंदघन जोगसर आयो), ८२१२३-२, ८३०३१-१ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.ग., गा.५, पद्य, मप., (आदिसर सुखकारी हो), ८३८५४-३ आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (आदिदेव अरिहंतजी रे), ८४२७३-६ आदिजिन स्तवन, मु. जीतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनेसर स्वामि रे), ८५१९४-२ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (श्रीनाभिकुलगुर), ८३८५५-१ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जणेशर पेखता रे), ८४६४२-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज),८१२९०-१ आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणंदशं प्रीतडी), ८२९९०-१ आदिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जग जाग भवीआ), ८२३१२-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. न्यायविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोरठ देशनो साहिबो), ८३०२९-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., गा. १२, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (जगत परमेश्वर तुंहि), ८४५२०-१(4) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ८३२६६ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ८३२०५-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (रिषभ जिनेसर त्रिभुवन), ८१३९९-१(#) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जगजीवन जगवाल हो), ८४१२८-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. रत्नचंद्र, पुहि., गा.८, वि. १९११, पद्य, स्था., (देखो जी आदिसर सामी), ८३०८९-२(#) आदिजिन स्तवन, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ६, वि. १८६६, पद्य, मपू., (भेट्या रे नाभीकुमार), ८५०५१-१(२), ८५५५४-२(#) आदिजिन स्तवन, ऋ. राम, मा.गु., गा. १२, वि. १८२८, पद्य, श्वे., (गुण संपूरणधारी हो),८१४३८(+) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ८१६४४-१(+$), ८४९८६-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. रूपसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (साहिब ससनेहा प्रथम), ८५१४७-३(+-) आदिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धाचलमंडणो), ८४७२९-४(+#) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ८२८३५-२(+#), ८५२९७ आदिजिन स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु., गा. १०, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (आदेसर अरीहंतजी जगमा), ८२९३२-२ आदिजिन स्तवन, मु. विजयचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८००, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर साहिबा), ८१५५२-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मु. विनोदीलाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जय जय आदिजिणंद वाजत), ८२३४८-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. सदासागर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (श्रीरिषभजिणंद मन),८४२७६-१ आदिजिन स्तवन, मु. सुगुण, पुहि., गा. ८, पद्य, मपू., (जुगकी आदै थे हुवा), ८१३४५-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदपुरुष श्रीआदीश्वर), ८२८२४-३ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ८२८६०-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे आज सफळ दिन), ८४८७४-२ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (आदि जिनेसर ध्याइ), ८३०५७-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (आदि न ध्यावै शिवपद), ८१६४७(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (जिन रिषभ भजीयो सदा), ८३९३०-२ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू., (जोग न मांड्यो मै घर),८१८१५-१ आदिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तजि के अजोध्या को तज), ८१३०८-१(#) आदिजिन स्तवन, रा.,गा. १२, पद्य, मप., (थाको देस भलो छे जी),८५१८२-५ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (नाभ का नंदन जगत बंधन), ८२५७३-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (रख्या कवन समे उपनेजी), ८३०२८ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ८३८८१(+), ८४५९६-१(+),८३९१५(२) । आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ८४६२१-१(+#), ८५०४९, ८५१९४-१, ८५३५३, ८५३६०, ८५४९३ आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), ८३२६८($) आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केसरीयाने जिहाज को ल), ८२१५२ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ८४४४८-२ आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८८०, पद्य, मप., (भरतजी कहे सुणो ___मावडी), ८५२८३, ८५२५३-१(६) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, पंन्या. अमीविजय , मा.गु., गा. ८, वि. १८९३, पद्य, मूप., (केवलज्ञान दीवा करू), ८३९०५(+) आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ८२६१४-१ आदिजिन स्तवन-बृहत्शजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ८४५४८-१(+9) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ८३१७९-३, ८३५९६-२(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडण, मु. रूपसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उत्तंग तीरथ धरणीई सो), ८५१४७-२(+-) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धुनी ध्रहकती ध्रहकती), ८३०२२-२(#$) आदिजिन स्तवन-श@जयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो नमो श्रीआदि), ८५३३१ आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.ग., गा. २५, पद्य, मप., (श्रीविमलाचल तीरथ), ८१३२९(+) आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (समकित द्वार गभारे), ८५२२३-१ आदिजिन स्तुति, मु. उदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकलश्रेय श्रीमंदिर), ८४३४४-१(६) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ८३९५७-१(+), ८४५३३-१(+) आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विसलपुर वांद), ८४४४९-३(#) आदिजिन स्तुति-सधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा.४, वि. १८वी, पद्य, मप., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ८४६५२(+),८५३६४-१ आदिजिन होरी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (काला दरसण बाल्हा), ८२१७८-१२ आदिजिन होरी पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मरुदेवीनो नंदन बालो), ८२१७८-११ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० आदितवार वेल, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू., (सकल जिनेश्वर मनधरी), ८३८८९-१ आदिनजिन स्तवन-आबुतीर्थमंडन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (आबुगढ रलीयामणो जिन), ८४९८६-१(2) आधुनिक नारी गीत, हिं., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (में अंग्रेजी पढ गई), ८२८८९-३(-) आध्यात्मिक आभूषण सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (स्नान करो मन समरण), ८२७३०-२(+) आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सेवक आगळ साहेब नाचे), ८३८४७-३, ८५०१२ (२) आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हिवइं भव्यजीवनै), ८३८४७-३, ८५०१२ आध्यात्मिक गीत, श्राव. भीम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मन सुधि विण सिद्धि),८४३७९-३ आध्यात्मिक गीत-योगी, मा.गु., गा.१८, पद्य, इतर, (आव्यो आव्यो रे नणदल),८३२५०-३(2) आध्यात्मिक दूहासंग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अणजोवंतां लाख जोवो), ८४३५४-५(+$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (कंत चतुर दिल जानी), ८५४७३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (बेर बेर नहीं आवे), ८४९०६-१ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (मंदरीये काइ डोलती), ८४७८०-२(-) आध्यात्मिक पद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., पद. ३, पद्य, वै., (सरज्यु गंगा के तीर), ८२८८२-२(4) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तन वस्त्र कुं रंग), ८४७९९-४ आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन मानो रे साढबतीय), ८३४९८-३ आध्यात्मिक पद, मु. नाथु, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (आगे जाणो चेतनिया साथ), ८३१७३-३(-) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मप., (किसके बे चेले किसके), ८५३२३-५ आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (पिया बिन लागत बुंद), ८४८२५-४(२) आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहि., गा. ५, पद्य, जै., वै.?, (बुदे भीज मोरी सारी), ८४८२५-५(-) आध्यात्मिक पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनकी भक्ति मुक्ति), ८२९५०-८(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (आतम सुन लीजै तने), ८३५६८-२ आध्यात्मिक पद, पहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन जोर जवानी को), ८३१७३-६(-) आध्यात्मिक पद, मा.ग.,गा. ४, पद्य, श्वे., (मारो हिरो घमायो विरा),८३१७३-१(-) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (हाथ मे हिरो आयो रे), ८३१७३-२(-) आध्यात्मिक पद संग्रह, पुहि., पद्य, दि.?, (हे अनंत व्यापक सकल), ८५०२०-२(#$) आध्यात्मिक प्रश्न, पुहिं., गद्य, श्वे., (तुम्हीं ने वनाई), ८१३८१-४(#) आध्यात्मिक फाग, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (कांआं नगरी निरूपम), ८५५७६-४(+) आध्यात्मिक बारहमासा राखडी, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (पहलीजी लीजे अरिहंत), ८४७९५ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., गा.५, पद्य, मप., (चेतना राणी रे रायजी), ८५१२६-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन जो तुंग्यान), ८५३२३-४ आध्यात्मिक सज्झाय-चेतन, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (चेतन तु छे अनंतगुणनो), ८१३४६-१, ८४३२३ आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तू मेरा पीवु साजना), ८३९६९-१() आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूप., (वरसे कांबल भींजे), ८३८४७-१, ८१९७३(#) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (कांबली कहतां इंद्री),८३८४७-१,८१९७३(#) आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (फागुन में फाग रमो), ८२७०५-३ आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानउद्योत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनुभव रीत ठराय निज), ८५६१७-१ आध्यात्मिक होरी, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (घर आये चिदानंद कंत), ८२६६६ आध्यात्मिक होरी, मु. महानंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (होरी खेली समता केरे), ८५५७६-३(+) आध्यात्मिक होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंद खेले होरी), ८२९५०-९(+) आध्यात्मिक होरी पद, आदिल खान, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (--), ८२१७८-७ For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक होरी पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (कुनु खेलै तोसू होरी), ८२६६३-२(2) आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. १०८, पद्य, मूपू., (क्या सोवे उठ जाग), ८४२१२(+$) आनंदश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, मु. चोथमल, मा.ग., गा.१३, वि. १८२४, पद्य, श्वे., (हाथ जोडी आनंद कहें), ८४२९३-१७(+) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ८१५७७-१(+S), ८१९४१(#$), ८१३२७(5) आनंदश्रावक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हाथ जोडी आणंद कहे), ८५०१३-१(+-) आभूसंघवी द्वारा निर्मित ७०० जैनमंदिर, मा.गु., गद्य, मूपू., (थिराद नगरने विषे), ८४५५२-३ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मप., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ८४३०३, ८४३३२-१(2) आलोयणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रतिमा भागे उप. १०), ८५३०८(#$) आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ८५५६९-१(2) आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ८१५६९(६), ८४३८५(s), ८४६०३(2) आलोयणाविचार, पुहि., पद्य, मपू., (देववंदन नही कीये हो), ८३०२३($) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ८५५६२-१७(+#) आशापुरादेवी छंद, किसना, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (प्रग व्यथा आसापुरा), ८४२४९-४(#) आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., इतर, (आसिक मोह्यो तुझ रूप), ८२८४१-१(+#), ८३२५०-४(#) आषाढ़चातुर्मास स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अषाढचोमासुं आव्यु), ८४३४४-३ आषाढाभूतिमनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.ग., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मप., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ८३१९३-१, ८४०८७-२() आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूप., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ८१५८३() आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं), ८५३७९-१(+) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ८१३९६(+), ८१६५१(+$), ८५२२७-२(+), ८४१७८(#$), ८४९५२(#$) आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (श्रीसंति जिणेसर भुवण), ८२४६४-१(+) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ८१२९५-२($) इरियावही विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मप., (जैनागमवचः स्मृत्वा), ८२८९७(+) इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम गुणधर गुणनीलो), ८५४९१ इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ८४३५६($) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ८१६२६-२(+#), ८३०१६-१(+), ८४४८१-१(-2), ८५५२७(+), ८२०९०-२, ८४४२०, ८२५८८(#), ८४१८१-१(#), ८४४४६-२(#), ८४४५८(#), ८१७२८-२(६), ८५१८४-२(6) इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीये), ८२८६२-२ इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रथम गणधर गुणनीलो), ८५२२७-३(+) उदयचंदगुरु स्तुति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वामीजी उदयचंदेजी), ८४९८१-१(#) उदयपुरनगर गजल, य. खेताक, रा., गा. ७९, वि. १७५७, पद्य, मूपू., इतर, (जपूं आदि इकलिंगजी), ८२०५३($) उदाईराजा चौढालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.ग., ढा. ४, पद्य, स्था., (चंपानगरी पधारीया),८४८४०(-5) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ८५६२१ उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ८३८९३, ८१५४५(६) उपदेशपच्चीसी, मु. चंद्रभाण, रा., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (चौरासी मे चाक रे), ८५४२४(+) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५२१ उपदेशपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, पुहि., गा. २६, पद्य, स्था., (मनुष जनम दुलहो लहो), ८२११४-२(5) उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ८४७८९ उपदेशपच्चीसी, मु. रामदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (लख चौरासी जन्म मे), ८५४१९ उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., गा. ३०, पद्य, मप., (आतमराम सयाने तें), ८२६४१-२($) उपधानतप मालापरिधान गीत, पुहिं., पद्य, मपू., (भाई अब माल पहेरावो), ८४८४३(+) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ८३९८१(+), ८१३५६, ८४३५८-३($) उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक उपवासे १ उपवास), ८१७९६(+), ८५५४७-२(+) । उपाध्याय रुघनाथजी गुरुगुण गीत, श्राव. जगराम भोजक, मा.गु., पद्य, श्वे., (ग्यांन जिसौ गोतम), ८२८५५-३(#) ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, मूप., (सलौधर्म देवलोके जिन), ८१३३८-१ ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिणकाले ने तिण समे), ८३११५-२ ऋषभाननजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मप., (श्रीऋषभानन गुणनिलौ), ८४१६१-१(+S) ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, पू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ८३८८२-१ एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम),८१३३२-४(+),८३५८५,८४५९४-१ एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुरुषलिंगे १०८ मोक्ष), ८३२११ एकसागर श्वासोश्वास मान, मा.गु., गद्य, मप., (एक सागरना सासोसास), ८४५९९-४(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), ८४७२६-३ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ८१४३३-२(+#), ८१५१२-३, ८२०३५,८२०९०-१,८४०६६-२,८४९९८-२,८१४४०-२(#$),८४६८६-४(#) एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, पू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ८२८८६-१(+#S), ८५११०(+#), ८४०२०, ८४९०४ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीश्रेयांसजिन), ८१७०२-३ एकादशी स्तवन, मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एकादशी तिथि सेवीये), ८४७३३-१(+$) ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण),८५४५५-२ औपदेशिक एकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२०, पद्य, स्था., (श्रीजिनवर दीजीई सिरी), ८५३२७-१(+) औपदेशिक कवित, मु. कल्याण, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (पकड मौन रहीये कहीये), ८३६३१-३(#) औपदेशिक कवित, श्राव. रुघनाथ भंडारी, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (जेण काले मस्करा घण), ८३६३१-२(2) औपदेशिक कवित्त, मु. गिरधर, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (ए कवत गीरधर रा), ८५५६४-४(#) औपदेशिक कवित्त, मु. गोपाल पंडित, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पल पल जाता वली हां), ८१९३९-१ औपदेशिक कवित्त, मु. धरमसी, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (खंड के अखंड लाडु), ८५४४७-२ औपदेशिक कवित्त, मु. सुखराज, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (आरंभ कीयो अपार पापको), ८४०७३-१(#) औपदेशिक कवित्त, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (रावण राज करे त्रिहुँ), ८५४६१-२ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (लीह प्रथम पीतमात), ८४०२६-१(+) औपदेशिक कवित्त-प्रहेलीका, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जगमे प्यारो कौन कौन), ८५२०१-२(+) औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), ८१८३१-२, ८२९७१-२, ८३४६६-१ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., इतर, (ग्यान घटै नरमूढ की), ८५५६४-५(#) औपदेशिक कंडलीयो, मा.ग., पद. १, पद्य, श्वे., (करमइ रिष काया कसी), ८३८३९-१(+) औपदेशिक गाथा संग्रह, मु. गजराज ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (काणा कोचा परणीइं जेह), ८२१७९-१(2) औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (समज ग्यान अंकुर है), ८४२६८-३(+#) औपदेशिक गीत, गोविंद, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (दसमास उदर मे करता), ८२८१६-३ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (देस मुलकने रे परगण), ८२८११(६), ८५३०६-१(६) औपदेशिक गीत, वाजींद, मा.गु., कडी. ६, पद्य, वै.?, (बाजींद कहे गोरी), ८२८१६-२ औपदेशिक गीत, रा., गा.७, पद्य, श्वे.?, (आव्यो आव्यो हे नणंदल), ८५५८१-२ औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), ८४६४०-२(+-#) औपदेशिक गीत-तमाकू, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समकित लक्ष्मी पामी), ८१५९४-३ औपदेशिक गीत-दुर्जय कामदेव, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंथा धायबो खगेस जोडा), ८५१८०-२ औपदेशिक गीत-फहड नारी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (एक त्रिया मैं ऐसी), ८४१२०-१ औपदेशिकचर्चा विवरण दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (प्रणम् विघन विघातने), ८५३५८-१(+) औपदेशिक छंद-स्वार्थगर्भित, क. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., इतर, (कोई नहीं किसका प्रार), ८१३५४-७ औपदेशिक जकडी, मु. माल, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (मेरा मन सूआ बे सिंवल), ८४४६६-४(+#) औपदेशिक जकडी, मु. माल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुण सुण मेरे प्राणी), ८४४६६-३(+#) औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., गा.५, पद्य, भूपू., (काया कामनी वेलाल), ८४४६६-१(+#) औपदेशिक दहा, मलुकदास वैष्णव, पुहिं., गा. ६, पद्य, जै., वै., (देखत सकल माव हुवा है), ८४३५२-२ औपदेशिक दहा, सांइ दीन, पुहि., गा. १, पद्य, वै., इतर, (दीन तो देख विचार), ८४१३६-३ औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., गा. १३, पद्य, इतर?, (एक समे जब सींह कू), ८५४६१-१ औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (प्यावै था जब पीया), ८४१४५-२(2) औपदेशिक दहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगे भुख ज्वर के गये), ८४६६६-२(+) औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, जै., वै.?, (लाख तज्यो ठामै लिख्य), ८१४१४-१(+), ८३२५६-२(-) औपदेशिक दहो-धनहीन, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (जा दिन वित्त न आपणे), ८३६३१-४(#) औपदेशिक दोहा, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रभवमाही पुंणबध्य), ८४०७२-२(+) औपदेशिक दोहा, पुहिं., गा.८, पद्य, मपू., (पर आश्रय सो कष्ट हे), ८५१९५-१(+), ८१२९०-२,८४५३१-२(#), ८३८५४-२($) औपदेशिक दोहा, मा.गु., दोहा. २, पद्य, वै., इतर, (मातपिता जाणि नही), ८५०२८-३ औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (सिद्ध कसिवै कुं काल), ८३८७९-३(s), ८५१०१-६(2) औपदेशिक दोहा-गुरुमहिमागर्भित, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (वुढाला तेरी अकल कीदर), ८५५२८-२(+) औपदेशिक दोहा-जीभ विशे, मा.गु., गा.१, पद्य, श्वे., (च्यारे इंद्री सोहीली),८५२१६-२ औपदेशिक दोहा-धर्ममहिमा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, श्वे., (चोसठि दीवा जिहां बले), ८४८५३-२(+) औपदेशिक दोहावली, पुहि., गा. २५, पद्य, श्वे.?, (चदरुप प्रभु चरणजी ता), ८३१४९-२(+#) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, श्वे., (गइ संपत फर आवे), ८५४४२-२(-2) औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., इतर, (चोपड खेले चतुर नर), ८१८१८-२(+), ८२६५५-२(+), ८५४४४-२ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., दोहा. २, पद्य, मप., (रोग जोग अरु राजसुत), ८२६२५-२(#$) औपदेशिक दोहा संग्रह-दानोपरि, पुहिं., दोहा. २, पद्य, श्वे., (नटीसौं नटणी भई), ८३८५५-२ औपदेशिक दोहे, पुहि., दोहा. २, पद्य, मपू., (खेती पाती वीणती), ८३७०९-२(+), ८४०६२(७) औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २६, वि. १८२१, पद्य, स्था., (सासणनायक श्रीवर्धमान), ८१६७०, ८२९६२ औपदेशिक पद, मु. अबीरेंदु ऋषि, मा.गु., गा. ५, वि. १९४०, पद्य, श्वे., (मनुवा मेरा ग्यान तोह), ८५२१३-२(+) औपदेशिक पद, मु. अमरचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (उस मारग मति जायरे मन), ८४८२५-१(-) औपदेशिक पद, मु. अमोलक ऋषि, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (अमोलक मनुख जनम प्यार), ८३०७८-१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कीनो तो जिनजीसु नेहड), ८५५२३-१०(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (छिन छिन जावैरे समझ), ८५५२३-११(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जाग रे वटाउव बहिया), ८५५२३-७(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (पंथीडा रे जाय कहो), ८५५२३-१२(+#) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (हे जिन के पाय लाग रे), ८५५२३-१५(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (छोटी सी जान जरा सा), ८५५५४-३(2) औपदेशिक पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अनुभवियाना भविया रे), ८४९०१-२, ८५५०१-२ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (अब मोय खबर पड़ी रे), ८४७९९-३ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (जबलग जीये जब करले), ८५५२३-९(+#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., दोहा. ४, पद्य, इतर, (जीवत भार{ आमति), ८५४५०-३ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (जोबन धन पाहनो दिन), ८३०८९-३(#$) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (तेरा बाबल मरीयो रे), ८४४६४-३ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (क्या देख दिवाना हुआ), ८२७०५-४ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (क्या मांगू कछू थिर न), ८२८७२-३ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., इतर, (क्या मांगूरे राम), ८४५३०-५ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., पद. ७, पद्य, वै., (तुमारो बावो रे बावो), ८४९९४-१ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, जै., वै., इतर, (पापी पैदा होंगे), ८२८७२-१ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (सुनियो संत सुजान), ८२८७२-४ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (माटी की गणगोर बनाइ), ८४२९३-१४(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, इतर, (मोती वरणारेणां भाई), ८५४१३-४ औपदेशिक पद, मु. केसव, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., वै.?, (लछनध्याम चले गज ज्य), ८४२६०-३ औपदेशिक पद, क. गद, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., इतर, (हरहराट नहिं हंसत), ८१५३२-३ औपदेशिक पद, मु. चंदुलाल, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (सिमर श्रीसतगुरु के), ८३२९३-१(-) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (निरपक्ष विरला कोई), ८५१८९-२,८५१९२-२ औपदेशिक पद, जगदीस, पुहिं., गद्य, इतर, (--), ८५५६२-२(+#) औपदेशिक पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (ते मूरख जिन वाउरे), ८१३१५-६ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ८४५७८-३ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (नर भूलइउ करे रे तेरा), ८१३१६-५(#) औपदेशिक पद, मु. जिनसमुद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखो मूरख प्रांणीयो), ८१३१५-५ औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (करा करो कर्म से दंगा), ८४९४१-१०(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (करो गानादिक को अजवाल), ८४९४१-१५(2) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (काटो काटो रे काल की), ८४९४१-७(2) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (चेतो चेतो रे चतुर जग), ८४९४१-६(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (धर्मरूपी वनाय लो), ८४९४१-१४(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (पालो पालो रे संजम कि), ८५१६०-१, ८४९४१-१(2) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (भोर भइ रे वटाउ जागो), ८४९४१-५(2) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (मानो मानो रे सिखामण), ८४९४१-८(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (मानो मानो रे सुगुरु), ८४९४१-४(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मेटो मेटो रे भवीक जन), ८४९४१-२(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सतगुरुजी कहे जग), ८४९४१-९(2) औपदेशिक पद, क. दिन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आ देही अमरनांही जोजो), ८५४१३-२ औपदेशिक पद, मु. देवीचंद, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (करम सतु मारो काइ), ८४६९१-५(-) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (श्रीजिननाम आधार सार), ८२९५०-६(+) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लागो आतमराम सुनेहरा), ८३३८१-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (जैनधर्म पायो दोहिलो), ८१६४४-४(+) औपदेशिक पद, नामदे, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (रे मन मंखीया म पडिस), ८४०८०-४ औपदेशिक पद, न्यामत, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (फेलाइआहै सारी दनीया), ८३०८४-२(-) औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), ८५१८२-१ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (इस नगरी में किस विध), ८५५२३-१९(+#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन उलटी चाल चाले), ८४९४६-२ औपदेशिक पद, बाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (जीयरा मेरा जान काहै), ८५२१३-१(+) औपदेशिक पद, मु. ब्रह्म, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (सित कुल बतातेकु चंदन), ८४३७३-५ औपदेशिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (खलक एक रेन का सुपना), ८३१६३-३(+-) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मारे गुर दीनी मांने), ८१३०८-४(#) औपदेशिक पद, रा. मानसिंह महाराजा, रा., गा. ५, पद्य, वै., (काउ की न आस राखै काउ),८४७८०-१(-) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (कंत विण कहो कुण गति), ८४९९९-२, ८५३२३-२ औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो), ८५२२३-२, ८५३२३-३ औपदेशिक पद, मु. रत्नसागर, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (असुभ करम मल झाड के), ८३४९८-२ औपदेशिक पद, रामदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (टालतर बीतरत वकत मंजा), ८२९८६-३(-) औपदेशिक पद, रामपुरण, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुंदर तन रुप अधक छाय), ८३२९३-२(-) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (कबु मुक्त जाना होइतो), ८४८२५-३(८) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (तही तुही आदि आवै), ८१७१३-६ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (पंथीडा रे पंथ चलेगा), ८५५२३-१(#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी के कोट पवन के), ८३२४४-२(+#) औपदेशिक पद, मु. रूप, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनके पइया लागरे), ८१३०८-२(#) औपदेशिक पद, मु. लाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरी दोढवी दान की), ८५५५४-७(#) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, पू., (कहां करू मंदिर कहां), ८५३२३-६ औपदेशिक पद, सोहनलाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जगत मे पार्श्वनाम), ८३२५६-१(-) औपदेशिक पद, मु. सोहनलाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पीकर नर हो मस्ताना), ८३२८४-४(2) औपदेशिक पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (क्युं जनम जुवा ज्यु), ८२९५०-५(+) औपदेशिक पद , मु. हर्षचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (साधो भाई अब हम कोठी), ८२९५०-७(+) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (कीसीकी परवा० दोलनवंत), ८३१४२-८ औपदेशिक पद, मु. हेमराज, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तालब विन तलब तलब), ८२१७९-३(#) औपदेशिक पद, पुहि., पद. ३, पद्य, श्वे., (अरथ न आवे रथ अरथ गरथ), ८४६४७-२(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक एक थी सबला एक एक),८३२४५-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. १, पद्य, जै.?, (कंता पाणी आपणे हथेली), ८२९५९-७ औपदेशिक पद, अ.भा., पद्य, इतर, (करिमा बलख्या यबरे), ८३३०३-१(5) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (कामी नरकी अकने कामणी), ८१५००-६(+) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (कीसो बोल पुरष को बोल), ८३९११-२($) औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, श्वे., (केदन केमी जवण क्य पर), ८५२४०-४(+-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जग जीव दियो मेले), ८३२९३-३(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीय रे चल्यो जात जहा), ८१३०८-३(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. १९२, पद्य, श्वे., (जीवन की चाह हुवें), ८४८८८-२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (जोगारंभ को मारग वाको), ८१७१६-२(+) For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (दुनिया में देखा), ८३०७८-२($) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (भजन करो भगवंत को), ८४४३७-२ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (भविक जीव पूछि निजगुर), ८५५६२-३(+#) औपदेशिक पद, रा., गा. ५, पद्य, जै.?, (मायाजुग अंधारसै रे), ८५४२३-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वडपणनि विचारी जोयो), ८४८५२-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वैरण जीवडा मारग नवी), ८४७८०-३(-) औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीवीतरागीजुरे), ८१७६७-३(#$) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (सजन ऐसा कीजीये जेसा), ८१३१३-१(+#) औपदेशिक पद , पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ८३४९८-४($) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (हम ऐसे के चाकर हैं), ८४२०४-४(+#) औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, मप., (मत करो चतुर अभिमाना), ८४९४१-१८(#$) औपदेशिक पद-कर्कशानारी परिहार, श्राव. भगो साह, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (करगसानारी विनतिजी), ८४२२०-१(+) औपदेशिक पद-कलयुग, न्यामत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतो चेतो चेतनदा), ८३२८४-३(4) औपदेशिक पद-कलयुग, न्यामत, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (हाथ से कलजुग के दामन), ८३२८४-२(#) औपदेशिक पद-कलियुग, पुहिं., पद्य, श्वे., (कलीजुग केरा कुडकपटि), ८४६४७-४(+$) औपदेशिक पद-कलियुगप्रभाव, मु. कवियण, पुहि., गा. १, पद्य, जै., (गई लाज मरजाद गई सहु), ८४४६४-४ औपदेशिक पद-काया, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (काया क्युं रोई रे), ८२८७२-२ औपदेशिक पद-गुरुविषे, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (कबीर ब्राह्मण गुरु ज), ८४४१८-४ औपदेशिक पद-जीवदया, मु. सोहनलाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव सुनो भविकजन वात), ८३२८४-१() औपदेशिक पद-जीवदया, मु. सोहनलाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, ते., (सूत्रभेद नहीं जाना र), ८३१६०-२ औपदेशिक पद-जीवदया, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (जीवदया दिल पालो रे), ८३०७३-४(-) । औपदेशिक पद-जैनागम, मु. हीरालाल ऋषि, मा.ग., गा. ४, पद्य, श्वे., (साचा गुरु मीलावीना), ८३१४२-१० औपदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चेतन ज्ञान की दृष्टि), ८५३२३-१ औपदेशिक पद-ज्ञानामत, मु. हीरालाल ऋषि, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (किसी को दिल का दरद), ८३१४२-९ औपदेशिक पद-दुर्मतिविषये, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हो दुरमतडी वेरण थइ), ८५२४७-१ औपदेशिक पद-धर्मपूंजी, मु. अमर, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (धर्म की पुंजी कमाले), ८३१७३-८(८) औपदेशिक पद-नश्वर काया, कबीरदास संत, पुहि., गा. ११, पद्य, वै., (कायनगर के दस दरवाजा), ८१७५६-२ औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ८५३७१-३(#) औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आछी फूल खंड के अखंड), ८२९५९-१ औपदेशिक पद-मानवस्वभाव, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., इतर, (सोवत न गत नचावत अंग),८४९९४-४ औपदेशिक पद-मायापरिहार, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (माया वाद लीहे तो ते), ८३८२३-२(+#) औपदेशिक पद-युवावस्था, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जोबनधन थीर नहीं रेणा), ८५४५९-१(+) औपदेशिक पद-रात्रिभोजन त्याग, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (मत करो रे भोजन निसि), ८४९४१-११(2) औपदेशिक पद-रोटला, भवानीनाथ, मा.गु., पद. १, पद्य, जै., वै.?, (रोटलानु ग्यान ध्यान), ८३९५७-६(+) औपदेशिक पद-लोभ परिहार, म. तिलोक ऋषि, पहिं., गा. ५, पद्य, मप., (छोड़ो छोड़ो रे कपवट), ८४९४१-३(4) औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुनीया मतलब कि गरजि), ८५५२३-१८(+#) औपदेशिक पद-शीलगुण, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे मन थारे हे काई), ८२७५१-४ औपदेशिक पद-श्रावकशिक्षा, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (बेहेनी नरभव पामी), ८१५६८-२(+) औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (सतगुर तुम तो भूल गया), ८२६६३-३(#$) औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., पद्य, श्वे., (--), ८२६९८(5) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (डाले बेठी सुडलि तस), ८२६७१-२(१), ८४७१८-२(#) औपदेशिक पद-सासुवहु, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (मंदर जाती देरे जाती), ८५१५९-७ औपदेशिक पद-सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो सुमतीजी ए वडो मुझ), ८५२४७-२ औपदेशिक बारमासा, मु. रामकृष्ण ऋषि, पुहि., गा. १३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (ओ संसार असार चतुरनर), ८५१५०-२(+) औपदेशिक बारमासा, मा.गु., गा. १३, वि. १९२०, पद्य, श्वे., (चेत कहे तुं चेतन), ८२९३८-१, ८३४७४-१ औपदेशिक रेखता, मु. कुसल, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (समज ले जीव वे प्यारे), ८१३१७-३(-) औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (खलक इक रेणका सुपना), ८५२४०-१(+-) औपदेशिक लावणी, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ८३१३२-२, ८१५४०-१(६) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (आप समझका घर नही जाणै), ८४९६२-३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुमत कलेसण नार लगी), ८४२९३-६(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (चल चेतन अब उठकर अपने), ८२८५७-१ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मन सुण रे थारी सफल), ८४९६२-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (लाभ नहि लियो जिणंद), ८३०९०(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा.५, पद्य, मपू., (सुकृत की बात तेरे), ८४९६२-६ औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुंरे समज), ८४६१७(+#) औपदेशिक लावणी, मु. बुधमल, पुहि., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (अरे चितानंद मेरी कह), ८४२९३-५(+) औपदेशिक लावणी, मु. मनीराम, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (एक रेण अंदेरी वीजली), ८३०५९ औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, पुहि., गा. १९, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (चेत चतुर नर कहे तेरे), ८४३७१-१(६) औपदेशिक लावणी-परनारी परिहार, मु. सेवाराम, पुहिं., गा. १०, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (चतुर नर प्रनारी मति), ८४२९३-३(+) औपदेशिक विचार-मायापरिहार, मा.गु., गद्य, मपू., (मान अहंकार कायानो), ८४२५०-३ औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (आपरी सकत सारं दान), ८५२६४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (यो भव रतन चिंतामण), ८१६७८(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रणमु सदगुर), ८५४५९-२(+), ८२८०६ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भूल्यो मन भमरा), ८५०४८(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), ८१६९०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहि., गा.७, पद्य, मपू., (यामें वास में बें),८४७०५-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. उनादास, पुहि., गा. २३, पद्य, श्वे., (--), ८२७२९-१(-$) औपदेशिक सज्झाय, मु. कनककमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (चोरासिलख जुनमे रे), ८५०९४(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. कनकप्रिय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (परदेसै एक पंथी चालीय), ८२६४१-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. कनकप्रिय शिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (जोवन जल ज्युं वहि), ८२६४१-१ औपदेशिक सज्झाय, ऋ. कनीराम, मा.गु., गा. २५, वि. १९७४, पद्य, स्था., (का न पडाय भवुत रमाइ), ८३९६३(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजाणी फोजो पावसे), ८५५०४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (गोयम गणहर पाए लागू), ८४०६८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (चंचल जीवडा रे में), ८१६८०-२(+) औपदेशिक सज्झाय, आ. कीर्तिसरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (काया कामणि विनवई), ८१२७०-७(#) औपदेशिक सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रे जीव समझै कुंन), ८१२७०-६(2) औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ८३१५२-२($) औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २४, वि. १९१६, पद्य, स्था., (घडी एक तणो विश्वास), ८१४८६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २३, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (परम देवनो देव तुं), ८२९७६ औपदेशिक सज्झाय, मु. गुणचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित धारो वांतां), ८४८५४-१ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५२७ औपदेशिक सज्झाय, मु. चंद्रनाथ, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (जिनजी साधक साध कहावे), ८५६१२-२ औपदेशिक सज्झाय, चंपा, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (क्या मन आधे होये रेह), ८३१६९-२८) औपदेशिक सज्झाय, मु. चंपालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (हा काम घणाय नाक किम), ८२७२९-२(-) औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (श्रीजिनवरनां प्रणमी), ८३२४५-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (साध कहे सुण जीवडा रे), ८१५००-७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (तु ले जिनवरजी रो), ८५४७०-१(#) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन अब कछु चेतीए), ८२१५५-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (नाहलो न माने रे), ८५००९ (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (बार भावना मांहइं), ८५००९ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (वएठे वजरदंत वपाल), ८३२७५-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (तेन क्या करतुत करी), ८५२४२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. नंदलाल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदि अरिहंत को नाम), ८४०७९ औपदेशिक सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मनमाली घणी अप करइ), ८२१६१-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. परसोत्तम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (तेरे जाना जरुर जोबन), ८४४८२-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचे अंगुल वेढ बनाया), ८४४२३-१(#) औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जोय जतन करी जीवडा,), ८५४२५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मारग वहे रे उतावळो), ८५३२६ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनचंद, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ८५५०७-१(#) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ८३३३०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. मनोहर, मा.ग., गा. ११, पद्य, मप., (लाख चोरासीजी नमे रे), ८१९२५-४(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (भले भावे भगवंत आराधो), ८३१७५-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. माणकचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जोवन धन पावनडा दिन), ८३२७४-२(-) औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (मानव भव पामीयो पाम्य), ८१७२२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जगत सुपनो जाण्ण रे), ८४७७८, ८१४३९(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (वाडी फूली अति भली), ८४३३०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मूलचंद, पुहि., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (मना तूं छोड मनमथ कुं), ८५५५४-८(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, पद्य, मपू., (चिदानंद अविनाशि हो), ८४८३०-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जाय लेजो रे लंकाना), ८४४५४-१(२) औपदेशिक सज्झाय , मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), ८५०११-२, ८४६०५-४(#$) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), ८२११९-२, ८५२५४-२(#$), ८४१८२-१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (हां रे कर गुजरान), ८४४८१-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम मुनि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (हां नी हां सवन राख), ८३१६३-२(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे मन समज तु जगत), ८३१६५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १९, वि. १८४३, पद्य, स्था., (पुन्य जोगे नरभव), ८२५७४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (केसि विधे समजावू),८५१३३-१ औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (जिणवर इम उपदिसै आगै), ८२२७१-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणे कमल नमी), ८५११२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (ओ जीवे काल अनादि भटक), ८५२०६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइने जीवडा), ८४४८५-३(+), ८३६०६-२(६) For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ८१६८०-१(+),८१५३२-१, ८४२७६-२, ८१७१७-४(#), ८१७४४-२(#$), ८३०९४-५(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. वखता, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (समझ मन आयु जावै जिम), ८१६२०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ८५०६३-१(+), ८४८४५-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दुध पुत्रने धन जोबन), ८२०८३-२ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभु, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (जेह हुवा उतसपरांणी), ८४९१३(+#) औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (समवसरण सिहासनेजी वीर), ८३१७६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (साचे मन जिन धर्म), ८५३८९($) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ८४७७६-२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बूढा ते वली कहीये), ८३३३४-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ८३८७७-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (माया ममता मुकीइं जी), ८४७८५ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (अजब रंग लागोजी लागो), ८१७४५-१७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (उपटमात जावो रे प्राण), ८३१४२-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (कठन घन मुगत मारग की), ८१७४५-९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (कार्या जरा लाज तो), ८१७४५-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (जबसे जनम्यो घटत आउको), ८१७४५-११(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (मद्रापानके पिने वाले), ८१७४५-१६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (मुसाफर चलनेकि होसि), ८१७४५-१५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, मप., (सवल्या मारवाड को), ८१७४५-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अगडम बोले कोई), ८५५९७ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (अपने पद कू छांड रे), ८४६४१-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (आ जीवधो रे प्रभु गुण),८३०८६-२(2) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (क्या तन माजना बे), ८२६६०-२(2) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, मूपू., (चकरी से राजी करत), ८३१६७-१(-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, मपू., (चतुर तेरी डुबी), ८२८६५-४(-$) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (जासु गुसाहें जमराय), ८१५००-५(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जीया चित्त चेतो चीतव), ८३०७९ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (तुने ना कहे शचि वने), ८४४०९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (दम का नहीं भरोसा रे), ८२९३६(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (दिवस-दिवस तु धंधे), ८४७९९-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दो साधु आयरी माता), ८३०८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (पाप तणा फल कडवा रे),८२७३०-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे., (प्रथवी पाणी अग्निमे), ८१७६७-१(-2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (भला भाई वेणी तु गल), ८४४०४-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (भवि जीवो आदिजिणेसर), ८३०७० औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.१२, पद्य, मप., (भाव भगत का भोया हे), ८३०८७(-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (मत खोवो राता मनुष्य), ८३९५४-२(#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (मन रे तुं छाडि माया), ८१७५८-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (मयमत पीती सुत वंद), ८२९५२-१(2) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मीठा थे तो धुतर), ८४२३९-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लोकालोक नवतत्त्वतणा), ८३८८९-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (विषयारस के कारणेजी),८३०८४-१(-) औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, मप., (शासननायक श्रीवृद्ध), ८२५१७-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सांझ पडी दीन आथम्यो), ८५४७०-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, म्पू., (सारिंगी सरसी सदा), ८१७१७-६(#$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (हमारी दिल कटे सनम), ८१६२०-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मप., (--), ८४४५६-१(#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (--), ८३०७३-२(-) औपदेशिक सज्झाय-७ बोलगर्भित, मा.ग., गा. १९, पद्य, श्वे., (--), ८३९६८($) औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (क्यों नाहक कष्ट), ८३००२-२ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आ संसार असार छे रे), ८४७४७(+), ८४८४८ औपदेशिक सज्झाय-आचार, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (सरसती माता चरण नमीने), ८३८६२-१ औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, ग. कहानजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्यारे शिष्य सुणीजे), ८२६२५-३(#) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मायाने वश खोटुं बोले), ८५०५०-१(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीव म करीस खोटी माया), ८३१४० औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (पूजा देव गुरू सेवा), ८४९१०(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मा कर्म संवाद, मु. खुबचंद, पुहि., गा. १७, वि. १९३२, पद्य, स्था., (--), ८४२३०(-2) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपरि, मु. रामविजय, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (क्या करूं मंदिर क्या), ८५२४७-३(६) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ८३२४१(+), ८४५५०-२(+) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (अणी आउखो तुटाने सादो), ८४२५१ औपदेशिक सज्झाय-आलस परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (हा हा आ लीला सपना), ८३१२२-२(5) औपदेशिक सज्झाय-उद्यम, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८२२५०(६) औपदेशिक सज्झाय-कपटपंथ परिहार, मु. सोहनलाल, मा.गु., गा. ७, वि. १९५१, पद्य, ते., (तजो तजो भाई कपटपंथ), ८३१६०-१ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.ग., गा.११, पद्य, मप., (वनमाली धणी इम कहे),८४४८५-४(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. हरसुख, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (कायासु मायासु सगली), ८५२०६-३।। औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८९९, पद्य, मूपू., (काया वादली कारमी रे), ८१५५९-४ औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामनी कहे निज कंतने), ८४५४८-११(+) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (काया पुर पाटण मोकलौ), ८१६२६-३(+#), ८४५४८ ४(+), ८३९२३-२(2), ८३९६९-४(#) औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (विन मुल धर्म जिण), ८४१४३-२() औपदेशिक सज्झाय-कुटुंब, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (संसार सासरूं माजी), ८४४५४-३(2) औपदेशिक सज्झाय-कुमति, मु. सुमति, मा.गु., गा. १३, वि. २०वी, पद्य, भूपू., (सुणजो साच कहुं छु), ८४५६९, ८४५९३ औपदेशिक सज्झाय-कलटा स्त्री, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (धन हो पुरष थारो भाग), ८४२९३-९(+) औपदेशिक सज्झाय-कुव्यसनपरिहार, मा.गु., ढा. २, गा. १९, पद्य, मपू., (बाण इंद्री संधि बाधउ), ८३८१३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ८४०४४-१, ८४१६८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-खटमल, मु. माणेक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ८३९१४-३ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ८१६०८-१(+#), ८५२९९(+), ८१७०१, ८२११४-१, ८५२०६-१, ८४३०२(६) । औपदेशिक सज्झाय- गुरुगण, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (तजद मीतीत केसा तीरथ), ८३०६६($) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय- गुरुगुण, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., वि. १९८३, गद्य, श्वे., (सामल हो गौतम बीस बोल), ८१९५९-२(+) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकर गुरुने चरणे ला), ८२९०१-६(+) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (--), ८३०८९-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (पुन्य जोगे ग्यानी), ८१६७२-१(२) औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (सतगुरु ज्ञानी दीपता), ८१५९२, ८१६७२-२(4) औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मा.गु., गा. २१, वि. १९१९, पद्य, स्पू., (श्रीजुगगुरु पद वंदना), ८१५४९-१(+#) औपदेशिक सज्झाय- गुरुमहिमा, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (आवण जावण बहु दिन), ८१५०६-२ औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, पुहि., गा. १६, पद्य, मूपू., (गुरु देखयो रे चेला), ८५३४९-६(+) औपदेशिक सज्झाय-घेबर जमाई प्रसंग, मु. सिवलाल, मा.गु., ढा. २, गा. ३२, पद्य, श्वे., (ऋषभजिणेस्वर आददे तिर), ८४०४९(+) औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुं कबाडी आयौ), ८१३२३-४(-5) औपदेशिक सज्झाय-जगत, पुहिं., पद्य, श्वे., (ऐसा ग्यान न पाया साध), ८४५१३(+#$) औपदेशिक सज्झाय-जिनपूजा विधि, मा.गु., पद्य, मप., (गोयम गणहर पाय नमी), ८३३३३-३(#$) औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, मु. माधव मुनि, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (भज मन भक्तियुक्त), ८४९८२ औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हूँ थने वरजु छु तु), ८५१५९-८ औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (सजी घरबार सारु मिथ्य), ८४८१६-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (जीव कहे तारी ओतम काय), ८५४४२-६(2) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (उण मीत परदेशी विना), ८४३०६-५ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (मन लोभी थारौ कांई पत), ८४५५०-३(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (लोसी लोहसीलव तारे), ८३१६५-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जोने तु पाटण जेवां), ८४८१६-१ औपदेशिक सज्झाय- जीवोपदेश, मु. जिनदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (घन समज मन मेरा मतवाल), ८१५३९-१ औपदेशिक सज्झाय-जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (जोबनीयानी मोजो फोजो), ८२८६५-३(-) औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (ज्ञान खजानो निरखता), ८१६२९-२ औपदेशिक सज्झाय-ढंढकमतखंडन, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (कोइ निंदा मत करो), ८४५७३-१ औपदेशिक सज्झाय-ढुंढकमतखंडन, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सदा मुज सूत्र लगे), ८४५७३-२ औपदेशिक सज्झाय-तपविषे, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम तपस्या करो भव), ८४९४१-१७(#) औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (तुं तो लख चोरासी), ८३०५८-२ औपदेशिक सज्झाय-दया पालन, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (दाया पालानी मन चित), ८५५०७-३(4) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ८५१४५(+#), ८२७२४ औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मपू., (दस धारो दिवो बले ए), ८४८०९ औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, मूपू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ८४९०१-१, ८५१९०, ८५३८८, ८५५०१-१ औपदेशिक सज्झाय-दर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ८५२५९(+#) औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.ग., गा. ३२, पद्य, मप., (दलाली इस जीवन कीधी), ८३४९६-२, ८३२८९(-$) औपदेशिक सज्झाय-नयनवशीकरण, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हारे मारे सुंदर काया), ८२९०१-२(+) औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (पुरब सुकरत पुन करीने), ८३२१२-२(+-), ८३४९७-२ औपदेशिक सज्झाय-नरभवरत्नचिंतामणि, मु. अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), ८४८९३ औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. नरसिंग, मा.गु., गा. ९, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (नवघाटी माहे भटकत), ८५१३४-१(2) औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, मु. अमीचंद, मा.ग., गा. १०, पद्य, श्वे., (जिस गाड़ी में जाण), ८१६२०-२ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, ऋ. त्रिलोकर्षि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भजन प्रारंभ मत राचे), ८३१६४ औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (काया कामिणी रे अरज), ८३१४२-१४ औपदेशिक सज्झाय-नाथविरह, मु. माणेक, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नाह सुणो धणि विनती), ८१६०५-२ औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुम सुण जुहा की आरी), ८५५०७-२(4) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (अरीहंत सिद्धजी को रो), ८४२९३-१३(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (निंदा म करजो कोईनी), ८२२२६-३(+-#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ८१८१७-२(#), ८५५९१-२(2) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ८५०५०-२(+), ८४२७३-४ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ८१६७७-४, ८१९८७-१, ८२९९८-२(5) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, कबीर, रा., दोहा. ११, पद्य, इतर, (सुण मारी चतुर सुजाण), ८५१३४-२(-2) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), ८४१११(+#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (नारी रूपे दिवडीजी का), ८१९२५-५(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (सुण चतुर सुजाण परनार), ८४९६५-२ औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अचरिज एक अपूरव दिठो), ८३८४७-२ (२) औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अचरिज एह भव्य जीवनी), ८३८४७-२ औपदेशिक सज्झाय-पाखंड परिहार, मु. राम, पुहिं., गा.१०, पद्य, श्वे., (सारी लोका गंधी देही), ८१५५९-८ औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मु. कृपासागर, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (पुण्य करि पुण्य करि), ८४३७५-१ औपदेशिक सज्झाय-पुद्गल, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आतम चेतन आपणो लिखीये), ८५६१२-५ औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (साधु कहे सुणजी वडाजी), ८३१२२-१ औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ८१३१७-१८) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवसागर में भटकत भटकत), ८३२१२-३(+-) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (मिथ्यामति भस्यो बहु), ८४६५१ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभ, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चिहुं गतमांहि भ्रमता), ८२९३८-२, ८३४७४-२ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मती हारो रे जीवा मती), ८३१४२-५ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दर्लभता, मा.गु., पद्य, श्वे., (अरे नर भव पाईवो नवेर), ८३१७८-४(#S) औपदेशिक सज्झाय-मातापुत्र संवाद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुमर मेरा बोलो मुख), ८२८६५-१(-) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (रे जीव मान न कीजीए), ८४०४४-२, ८४१६८-३(#) औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (मान म करस्यो रे मानव), ८४२५०-२ औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (मान न कीजे रे मानवी), ८५४४० औपदेशिक सज्झाय-मानवभव, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (देवादीकने दुर्लभ जाण), ८३१४२-१५ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ८४०४४-३, ८५२४८-३, ८१३९९-२(#), ८४१६८-४(#s) । औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. गंगविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ८२८२० औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.ग., गा. ११, पद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (भूलो ज्ञान भमरा कांई),८२५५६, ८४२५८(#), ८४०९७-३(-$) औपदेशिक सज्झाय-मिथ्यात्वी, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाम शुद्ध को धरावे), ८४७८०-९(-) औपदेशिक सज्झाय-मोहपरिहार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (जगमां जीवने मोटी), ८२५९२ For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ८१९२३, ८२६५२(4) औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मप., (सरसति मति सुमति द्यो), ८५४०४(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ८४०४४-४ औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मु. जीवणदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (प्राणी वीणजारा वीणज), ८४३१७-३ औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मा.गु., गा. ६६, पद्य, श्वे., (विणजारा रे पहिलु गण), ८१४५७-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (काया रे वाडी कारमी), ८१५५२-४(+#), ८४२७६-३ औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वाडी राव करे कर जोडी), ८२८६८(#) औपदेशिक सज्झाय-विकथा परिहार, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पुने पाखिने दिवसे), ८१८३१-१ औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (मन आणी जिनवाणी जिनवा), ८१८२६-२(5) औपदेशिक सज्झाय-वैराग, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (पुछ पीया कुण प्राणी), ८३००२-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., गा. १२, वि. १९३०, पद्य, मपू., (तुंने संसारसुख केम), ८५४०७ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ८२६३४(+), ८३१९१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, महमद शाह, मा.गु., गा.७, पद्य, जै., मु., (गाफल बंदा नीदडली), ८४५५०-४(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (धर्म करो रे प्राणीया), ८१२६६-१, ८४०८८-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरी खूब बनी छै जी), ८३१६१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा.७, पद्य, मपू., (आज की काल चलेसी रे), ८४४९१-२, ८५२८९-२, ८१७१७-५(4) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. हीरालाल, रा., गा.७, पद्य, मप., (लिखतं मारा लीखीया), ८१७४५-२(+) औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (एक कनक अरु कामणी), ८१५५९-५ औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (न हुं परणी न हु), ८१५५९-९ औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सील सरपन आवरे सीले), ८४१६३(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खेम, मा.ग., सज्झा. १, पद्य, श्वे., (देखो काम माहाबली जोध), ८४३७३-१ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (शील सोहामणु पालीए), ८३०७५ (4) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. भेरूदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (म करि रसरंग पीया), ८४८४४-२ औपदेशिक सज्झाय- श्रमणाचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (चेला सहु चित्त धरीइं), ८१७१२-१($) औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (हुक चिलम चुंगि बीडी), ८२७२९-३८) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकदोषनिवारण, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐंडा मारैनै धडीयां), ८१७१६-४(+) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, पुहि., गा. ७, पद्य, मूप., (भावधरी जिन पूजीय मेर), ८४९९४-२ औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (बैठे साधु साध्वी), ८१७१६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-संयम, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (संजम सुरतरु सरीखो), ८२८८२-१(#) औपदेशिक सज्झाय-संयम महिमा, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (कुमरा साधतणो आचार), ८५१५९-३ औपदेशिक सज्झाय-संसार विषयक, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापनो तो नांख्यो), ८४७२०-२(+) औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण स्वार्थ, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (माता पिता बंधव भाइ), ८४०१८-१ औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मप., (श्रीवीनइ वीनवइ गौतम), ८१६०५-१ औपदेशिक सज्झाय-सत्कर्म, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सोवन सिंघासण बेठा), ८२९०१-५(+) औपदेशिक सज्झाय-साधु, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जागो रे साधु निंदसुं), ८५६१२-४ औपदेशिक सज्झाय-साधु, मु. चंद्रनाथ, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (--), ८५६१२-१(६) औपदेशिक सज्झाय-साधु क्रिया, मु. मेवाडी मुनि, रा., वि. २०वी, पद्य, श्वे., (आवसग करो कह्यो जिनवर), ८५१४४ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (सुगण सनेही सांभलो), ८१६२३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-साधु दोषनिवारण, पुहिं., गा. १३, पद्य, स्था., (इचरज आवे रे विना), ८५४८९-१ औपदेशिक सज्झाय-साधुदोषनिवारण, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (साधरौ मारग रे कठण), ८१७१६-३(+) औपदेशिक सज्झाय-साधुधर्म, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (मुगत जावणारो रे मारग), ८५२०३-२(-) औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, मु. रुपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभल भोला प्राणी), ८४४५६-२(2) औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, मु. राम शिष्य, पुहि., गा. ६, पद्य, मूप., (हैं जैनी वो ही जो), ८४९१७-१ औपदेशिक सज्झाय- सासबहु कलह, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (--), ८४१८३-१() औपदेशिक सज्झाय-सिंह और बंदर कपटगर्भित, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (एक दिवस हरी संग कुं), ८१४१०-२ औपदेशिक सज्झाय-सुगुरु, मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८६९, पद्य, श्वे., (दिन उगासुं धंधो मांड), ८४२९३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-सुपात्रदानमहिमा, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (दयो दयो जीवा दान), ८१२७५-१(-2) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, ऋ. हीरमुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (ममता मारी मनतणीजी), ८१५५९-१ औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (माया को मजूर बंदो), ८३१४२-१६ औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण संपूर्ण एक अरिह), ८५१८२-२, ८३९२३-१(2) औपदेशिक सज्झाय-हिम्मत, मु. राम शिष्य, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (वुधी धोवन कहेरी जकसे), ८४९१७-२ औपदेशिक सवैया, क. गंगधर, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (रावण सरखे रट गहे), ८१७६८-३ औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहिं., पद्य, वै., इतर, (नृप मार चली अपना पीउ), ८४१२९-२(5) औपदेशिक सवैया, श्राव. गुमानचंद सुत, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (काउके न आस राखे), ८३१२४-२ औपदेशिक सवैया, मु. जिनहर्ष, पुहि., सवै. ४, पद्य, मूपू., (सुख को करणहार दुख को), ८२९५९-३ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आ छे नाणे केर चूणे), ८२९५९-४ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ८१७७५ औपदेशिक सवैया, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., गा. १, पद्य, दि., (ज्युं मत हीण विवेक), ८४१३७-३ औपदेशिक सवैया, बलवीर, पुहि., गा.२, पद्य, वै., इतर?, (अंमनमंजन संग निरंजन), ८४१२८-४(#) औपदेशिक सवैया, मु. मान, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (केश दिये शिर शोहन), ८४१२९-१ औपदेशिक सवैया, शंकरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै., वै.?, (नर क्या मुखडा धोता), ८३०८६-३(-2) औपदेशिक सवैया, क. सुभ, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (प्रथम कोड ३८स लघमण), ८१३८१-२(2) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मांडलगढे आयकर मालपरै), ८२३२९-४(#) औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. ४, पद्य, श्वे., (स्वारथ के साचे), ८२९५९-६ औपदेशिक सवैया इकतीसा, मु. अबीरचंद ऋषि, पुहिं., दोहा. ९, पद्य, श्वे., (सिंह पट्टा काव्य का), ८५३५८-२(+) औपदेशिक सवैया-काया, पुहि., सवै. ४, पद्य, श्वे., (काया सी नगरी में), ८२९५९-५ औपदेशिक सवैया-दयाधर्म, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (नहि जोग तप जाप नहीं), ८१३८१-३(#) औपदेशिक सवैया-माया परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (माया जोरवेकुं जीव), ८२९५९-२ औपदेशिक सवैया-मृत्य, क. ईश्वरदास, पुहिं., गा. १, पद्य, जै., इतर, (घर मे के बार मे), ८१३८१-१(#) औपदेशिक सवैया संग्रह, क. चंद, पहिं., पद्य, श्वे., (तपकेनतापकेन जगिकेन), ८३९२१(+#$) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. धर्मसी, पुहिं., सवै. १६, पद्य, श्वे., (कहै रिख वाण भली), ८३८०९-२(#) औपदेशिक सवैया संग्रह , पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (हां रे राजा वीर भार), ८१५९१(+#) औपदेशिक सवैया संग्रह-परनारी परिहार, पुहिं., सवै.५, पद्य, इतर, (टुटो सो छपर घर), ८४२२०-२(+) औपदेशिक सवैया-स्वाभिमान, मु. खोडीदास ऋषि, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (तज रे गाम गेमारन को), ८१७६८-२ औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मप., (जीव सवे ते आतमा धरम), ८४८७८-२(+) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ८५३७४ (२) औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (संसारि जीव छइ प्रकार), ८५३७४ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणे रे), ८२७१२(2) औपदेशिक हरियाली, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वण परणावी बालकुयारी), ८१९६९-२ औपदेशिक हरियाली, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणो मोरी सजनी एक), ८१९६९-१ औपदेशिक हरियाली, मा.ग., गा. २२, पद्य, जै.?, (गिरधी कंत ज आभरण तस), ८२७१३ औपदेशिक होली, मा.ग., पद्य, श्वे., (सीयल संजमनी केसर), ८१३५०-२($) औपदेशिक होली पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (होरी खेलो रे भविक), ८२७३४-५(+) औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (घोडाने चर्म पड्या), ८३१९६-५(+), ८२७०१-३ औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लूगटा १ जाई फलटा २), ८१५९४-१, ८३१७९-२, ८१४८१-२(#) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ८३२२८(+), ८२९८९-१ कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ८५१०६(+), ८३२८८-२(#S), ८३७६५-१(६) कक्काबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका क्रोध निवारीय), ८२७२३(#), ८२६२९($) कचरा साधु चौढालियो-तपसी, मा.गु., पद्य, श्वे., (नाभिनंदन नमी करी हो), ८३९३२(+$) कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ८३०३४(+$) कपिलमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीवरधमानजिणवर नमू), ८१५३७(#$) कपूरकरण की विधि, मा.गु., गद्य, इतर, (उत्तम चोखा लइने धोवा), ८३७६२-३(+) कमठतापस पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (तुम ही जायकै अश्व), ८४९५९-२ कमलश्रेष्टी कथा, मा.गु., गद्य, मूप., (धम्मोय तारणं सरणं), ८१४४१(2) कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (महिला में बैठी राणी), ८५२१९(2) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (कहे राणी कमलावती), ८४४३१(#) कम्मपयडी स्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २७, वि. १९४१, पद्य, मप., (सेना माता जितारि), ८५४१८ कयवन्ना चौढालियो-दानाधिकारे, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, स्था., (पार्श्वनाथ प्रणमी), ८२८४९(5) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हुँ), ८५१४९-२(-) कर्मग्रंथ-२ कर्मबंध-उदय-उदीरणा-सत्तायंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ८१९५३ कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कहो स्वामी काण्णो), ८५४३७(+#$) कर्मपच्चीशी, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. २५, वि. १९३८, पद्य, श्वे., (करमकुं मन बांधे भाइ), ८१३५०-१ कर्मपच्चीसी सज्झाय, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., गा. २५, वि. १७१३, पद्य, मपू., (पेख करमगति प्राणिया), ८३१४८-४ कर्मप्रकृति बोल यंत्र, मा.गु., को., मपू., (--), ८३५०७-१(+$) कर्मफल सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, श्वे., (हो सामी गलाने वीषे), ८४८३७-२(+) कर्मबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (करम तणी गति अलख), ८२१२६(5) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (देवदाणव तीर्थंकर), ८५२११-३(+), ८२१४९, ८२९९५, ८१२९७(#s), ८४२८७() कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), ८५०९१(+#$) कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (नगरी कोसंबीना राजा), ८५१२९, ८५१३२ कलावतीसती सज्झाय, मु. सारंगधर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आगतनाम नगर पातष्टा ज), ८५४०० कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नयरी कोसंबीनो राजा), ८४८८४, ८५२६७ कलावतीसती सज्झाय-शीलगर्भित, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (--), ८४१५७-१(६) कलियुगबत्तीसी, मा.गु., पद्य, श्वे., (देखो भा कलजूग आयो), ८५२४०-५(+-$) कलियुग सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुण मुज प्राणी सीख), ८३९६७ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै., (माय कहे मुज नानडी), ८४४८५-२(+) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मप., (हलाहल कलजुग चल आयो), ८५३९७(+), ८१५५९-६, ८४७९९-५ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० कलियुग सज्झाय-मेघवर्षा, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (इंद्रइ मेघ तेडावीआ), ८४८४२(+#) कवित संग्रह, पुहि.,मा.ग.,रा., पद्य, श्वे., इतर, (आसराज पोरवार तणै कर), ८४१५७-२, ८२६६२-२(5) काक शकुन, मा.गु., गद्य, इतर, (जो गामंतरइ जातां काग), ८४३४६-४(+) कागवचनफल कवित्त, गोष, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., इतर, (कागवचन सुण कलह छाया),८२०७५-१ कागवचन विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (आदित्यवारनइ दिनइ), ८२०७५-२ कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७४, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्ध समर), ८५५५२-२(+$), ८४२४१(२) कान्हडदृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर रे गोयम गण), ८५५६०-२($) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (एक दिन इंद्रे), ८४९६६-१(+), ८४३०१-१, ८४३१७-१, ८१३५२-१(#$) कामोत्तेजक स्थान वर्णन, मा.ग., गद्य, इतर, (निवासमागत छई), ८३८९६-३ कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), ८१५५७(+) कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (कायावाडी कारमि सिचंत), ८४२७१ कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रथवी भुषण नगर तिहा), ८४९३४ कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), ८१४०५($) कालिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (दिवि कांगुरै विराजे), ८३५०२-२(+#) कालीसती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (काली हो राणी सफल किय), ८२७५१-२ कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७४, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (श्रीआदि जिनेश्वरू), ८४६७९ कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (राय दसरथ पेली हुवो), ८५००२-१(#$) कंथजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुंथु प्रणमु कुंथु), ८१६२९-१ कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ८४८२९, ८४०९७-१(-) कुंथुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तुमे रहो रे प्रीतम), ८१३८९-११(#) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (रात दिवस नित सांभरो), ८५५५१(+), ८२६१४-२ कंथजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (भगवंत आगल विनवू), ८२९५१ कुंथुजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, वि. १७८०, पद्य, श्वे., (सकल सिद्ध प्रणमी), ८४१९२-२ कुंवरऋषिगुरु स्तुति, मु. रविदास ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मनह मनोरथ पुरा परम), ८४३७८-२(2) कुगुरुपच्चीसी, मु. जिन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरजी प्रणम्), ८४७२३-६(+) कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., गा. ३१, पद्य, श्वे., (भांति भांति की टोपी), ८४३२१(+$) । कुमतिनिराकरणहंडिका स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मप., (प्रणमी पास जिणंद पय), ८४२९५ कुमतिनिवारण सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (सत्तरिसो जिन करुं), ८३०११(#) कुमारपाल द्वारा निर्मित १८७४ जैनमंदिर, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीकुमारपालने सोना), ८४५५२-२ कुरगडुमुनि सज्झाय, मु. धनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (उपसम आणोजी उपसम आणो), ८३६०६-१ कुरुदत्तमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (व्यापारी इक पुरहथणा), ८४४६७-७(+$) कुशलसागरमुनि पट्टावली, मा.गु., वि. १९वी, गद्य, मूप., (पं श्रीकुशलसागरजी तत), ८५१४२-१(+) कृष्णगोपी गीत, ब्र., गा. ९, पद्य, वै., (हीरे कनवा बरसोने के), ८२९८६-२(-) कृष्ण ढाल, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (नेमनाथ समसाँ), ८५५४५-१ कृष्ण पद, सूरदास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (अने हरिजि मोरी बहिया), ८१४६५-३ कृष्ण पद, हीरालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, वै., (मान मान रे लाल नंदका), ८१७४५-१२(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (कोई दिन याद करो रे), ८२८२२-१(#) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (वीडी बनाई नागर पान), ८१३२३-३(-) कृष्ण भजन, पुहिं., दोहा.७, पद्य, वै., (कए न कछु सुणे य सब),८४०७२-३(+) For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कृष्णमहाराज के परिवार से दीक्षाग्रहण संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्णजीनी बेट्या३०००), ८२१७४-४ कृष्णमहाराजा परिवार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बेटा ६० हजारबेटा), ८२१७४-३ कृष्णराजा बारमासा, मु. कुसलसमय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (गुडलाबाद गरजीया काली), ८५५६४-३(2) कृष्णराधा बारमासा, चंदसखी, पुहिं., गा. १२, पद्य, वै., (पहिलो महीनो आसाढ), ८२३४६-१ कृष्ण लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८७०, पद्य, स्था., (श्रीनेम जिनेसर कृष्ण), ८१५००-१(+) कृष्ण वासुदेव सज्झाय, मु. दलीचंद, पुहि., गा. ४४, पद्य, श्वे., (--), ८३०४२($) कृष्ण सज्झाय, पुहिं., गा. ३३, पद्य, मूपू., (बंधव बेहुं निसर्या), ८२०८७(+) कृष्ण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (मुनिवर नगरी द्वारकाज), ८३०७६($) केवलीसमुद्धात स्थिरता बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (केवलीनो केवलसमुद्धात), ८३२३२-३ केशवजी ऋषि श्रमणसंघ नियमावली, आ. केशव ऋषि, मा.गु., वि. १७०४, गद्य, श्वे., (संवत १७०४ वर्षे), ८४३७६-१(#) केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, मपू., (परदेसी राजा कहै छै), ८५३१६-१(+) केशीगौतमगणधर गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सावथी उद्यानमा रे), ८२०७१-१ केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसरपासना केशी), ८५२५१-२, ८२८७४-१(२) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (--), ८१४८६-१(६) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ८२७१०(६) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, वि. १८३५, पद्य, मूप., (पेलुं सरस्वतीनु), ८२४२३-१(६) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (भजीय छे श्रीजिन चरण), ८३०९६-३(+) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ८४१८९-२(+), ८४७७७(+$), ८३८८५, ८५२५७, ८१६१०() क्षमाविजयगुरुगुण भास, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुरु गुणवंता वांदीये), ८१३७४ क्षमा सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (क्षमा करो क्रोध दूरे), ८४९२२-२ क्षुल्लककुमार सज्झाय, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (--), ८३१८२(#$) क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गा. ५, गद्य, वै., (धूवै मादलां मृदंग), ८२११२-४(+) क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं., गा. १३, पद्य, मपू., (जैन को उद्योत भैरु), ८५००४-२(#) खंडगिरि गुफा ऐतिहासिक विवरण, पुहिं., गद्य, मूपू., (कटक से जगन्नाथ जाते), ८३२३३-२ खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर को नित नमी), ८२६९२ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), ८४५५३, ८४७५२ खंधकमनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (अवंति नगर सोहामणी रे), ८५२८५-२ खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूप., (पंचमअंगे वखाणीया बीज), ८५६०९-३($) खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमने चरणे नमीज), ८४१२१-२ खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), ८४५५७, ८४९७४-१(#$) खेमऋषि सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने लागु), ८१७५९(#) गंगातेली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोई एक ब्राह्मण), ८३९४९ गंगासिंधू २ मोटी नदी, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (जमुना १ सरजु २ आइ ३), ८२१७४-८ गच्छपति शांतिसागरसूरिगुरु गहुंली, मु. खांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (सुण साहेली गछपति), ८४६४४(+#) गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., ढा. ४६, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (अरिहंत अतिसैवंत घणु), ८३९९१(+-$) गजसुकमालमुनि सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुवीर बताओ मेरा), ८२७५१-३ गजसुकमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ८३३३०-१(६) गजसुकुमाल-अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सासणनायक सुद्धकीनी), ८१९५०-१ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५३७ गजसुकुमालमुनि रास, मु. कानजी, मा.गु., ढा. १४, वि. १७०३, पद्य, श्वे., (भदलपुर पधारीया बावीस), ८४४५०(#$) गजसुकुमालमुनि लावणी, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. १८, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (गजशुकमाल देवकी नंदन), ८२९११ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ८४९६६-२(+), ८३३१५(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ८३९६०(#$) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (द्वारिकानगरी अति भली), ८४२७०-२(+#$) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कहे माता कुमार ने), ८३१४५(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ८३९८८-५(+), ८४०७२-१(+),८४७६१ १(#), ८३२७४-१(-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सोरठ देस द्वारकानगरी), ८४२३९-१(5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (पुत्र तुमारा रे देवक), ८४१००(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ८४४९२(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ७५, पद्य, श्वे., (अरिष्टनेमि नामै हुआ), ८५५९८(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ८४०७५ (#$), ८२०७२() गणधरपद गहुँली, ग. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर दिनमणी), ८४७८३-२ गणधरस्थापना गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (अनिहारे नयरी अपापा), ८५४६९-२ गणपति छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (समरी माता सारदा वंद), ८४२४९-५(#) गणेशजी द्रपद, तानसेन, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (जै गणेश जै गणेश), ८३९१४-२ गणेश स्तोत्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (नर सुरनायक आदि), ८५३९६-२(#) गतागत बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेली नर्के आगत२५), ८२६७० गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (किणही पछ्यो दोय), ८१६६१ गिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (गिरनार गिरीश्वर), ८१४६९-५(+#) गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८४, पद्य, मूपू., (सयल वासव सयल वासव), ८४३४६-१(+) गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, स्पू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ८५३२२-२ गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस), ८४१७६(#$) गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ८३११३(#$) गुणठाणा चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ७६, वि. १६३१, पद्य, मूपू., (पंचपरमिट्टिमिट्ठ नमि), ८२२४३(#) गुणरत्नसंवत्सर तप, मा.गु., को., पू., (--), ८५६०६-१ गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मप., (समरवि वीरजिणेसर देव), ८४१२७-२(+$) गुणावलीचंद्रराजा पत्र, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्री विमलापु), ८५१०९-१(+#$) गुरुगुण गहुंली, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हो सुण सजनी सुगुरु), ८४६३६(+) गुरुगुण गहुँली, पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुण साहेली सद्गुरु), ८४११३(२) गुरुगुण गहुंली, मु. जीतविमल, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नयरी राजग्रही जांणीय), ८४४५५-१(+) गुरुगुण गहुंली, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनवयणे ने अनुरंगी), ८५२०१-१(+) गुरुगुण गहुंली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आगम वयण सुधारस पीजे), ८५०३८-९ गुरुगण गहंली, जै.क. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि.?, (ते गुरु मेरे उर वसे), ८१९५९-४(+), ८४२४५-३(+), ८५२८९-३ गुरुगुण गहुंली, मु. राम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहीयर भांभर भोली एह), ८५६०९-२ गुरुगुण गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगम रसना रे दरिया), ८२०८६-३ For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गुरुगुण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण कमल सुसोभता व्रत), ८२६७५-२ गुरुगुण गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनवयणे अनुरंगी मुनि), ८५०३८-१७ गुरुगुण गहुंली, मु. हीरसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोहमसामी आव्याजी), ८४९३७-२ गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंकुम चंदन छडो रे), ८२८५१-१ गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर मुख्य), ८५०३८-५ गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरणकरण करि सोभता), ८५२५८-१(+) गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो साहेली वांदवा), ८२८५१-२ गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथ करता दुरित हरता), ८२८२२-५(-2) गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजग्रही उद्यानमां), ८४२२९-२ गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहियर सवि सवि सरखी), ८२८९०-२(२) गुरुगण गीत, मु. राम मुनि, पुहि., गा. १०, पद्य, जै.?, (साढा नवि सजन घर आए), ८३१६३-१(+-), ८२९५२-३(#$) गुरुगुण गीत, सेरुरामशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सद्गुरु नजरक्रन नित), ८३०८६-१(-2) गुरुगुण जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहि., गा. १५, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (सतगुर हे सोदागर भारी), ८५५४४-१ गुरुगुण पद, मु. भेरूलाल, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (भूल मत जाजो जी गरु), ८१७१३-१ गुरुगुण पद, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ग्यानी गरु आया तारण), ८३१४२-२ गुरुगुण पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (इण जगमांहि धन्य एक), ८३९०९-१(+#) गुरुगुण पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (सदा प्रसन्न सुभाव), ८३९३१-२ गुरुगुण बारमासा, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साधु गुरु मुनिजन), ८४९९४-३ गुरुगुण भास, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जंगमतीर्थ चालता), ८४८४१-१ गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सदगुरु हे सदगुरु), ८२०७१-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. नयनसुख, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (में दरस बिना रह्या), ८४७५१-१ गुरुगुण सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १८४७, पद्य, श्वे., (जंबूद्वीप भरतमै), ८५५१९(+) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (बहुत निहाल कीया हो), ८१६७१-२(#) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, पुहि., गा. २१, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत ज्यु लागे), ८२९४२-१(#) गुरुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गरुजी माने प्यारा हा), ८३१४२-६ गुरुगुण स्तुति, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (नम गुरु जपो रे आप), ८४९४१-१३(#) गुरुगुण स्तुति, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (गरुजी माने मगती को), ८३१४२-३ गुरुवंदन गहुंली, मु. जीतविमल, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (बेंनी आवो जइये गुरु), ८४४५५-२(+) गुरुविहार गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, पू., (आज रहो मन मोहना तुम), ८४८५३-१(+), ८१३७५, ८५५१७-४ गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (श्रीसंखेश्वर पाये), ८४७७३ गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पाये नम), ८५१७५-२ गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (इण संसार समुद्र को), ८४३८८-१ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मप., (उद्गम दोष श्रावकथी), ८४०८९-१(+), ८४६५०-१(+), ८४००७(#$) गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ३६, वि. १८०८, पद्य, श्वे., (शासनपति चौवीसमो), ८५४७५ गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (१ अहाकमे १ उपवा० वरा), ८५०६६(#) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), ८४३८३(६) गोशाला के १२ श्रावकनाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (तोलो१ तालप्रलंब२), ८४०६७-१ गौतमगणधर गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चउनाणी गुणखाणी गोयम), ८२०८६-७ गौतमगणधर गहंली, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (--), ८४७८३-१(5) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५३९ गौतमगणधर पद, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (गोयम गणहर करुं),८१८२६-१ गौतमगणधर रास, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीवर्द्धमान), ८२७३९-१(+) गौतमगणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (गौतम गुणधर गुण गाय), ८४१४९-२(+) गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (भगवंत वाणी वागरी जिण), ८१४५२-६ गौतमगणधर स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (विचरत पावापुरी में), ८१६७६-२(#) गौतमगणधर स्तवन, मु. हीराचंद, मा.गु., गा. ४२, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमसामी पृच्छा), ८३०८२(5) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणंदतणा पय वंदि), ८३१९३-२($) गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ८१३८३ गौतमविलाप स्तवन, मा.ग., गा. १७, पद्य, मप., (वेगेसं जइ वंदीसं), ८५१६१(2) गौतमस्वामि स्तुति, मु. गुणविनय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गौतम लबधि निधान), ८४२५२-२(+) गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिलो गणधर वीरनो रे), ८५२१०-१ गौतमस्वामी गहुंली, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चरणकरण व्रत धारता), ८५०३८-६ गौतमस्वामी गहुंली, मु. दान, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (--), ८४७२८(+) गौतमस्वामी गहंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (जी रे कामनी कहे सुण), ८५३०६-३($) गौतमस्वामी गहंली, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (गुणनिधि है गुणनिधि), ८५०३८-१०, ८५६०९-१(६) गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वर अतिशय कंचनवाने), ८२९५४-१, ८५०३८-१, ८२८९०-१(4) गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ८२६४२-२(+), ८५५२४ २(+#), ८२७६६, ८४०५३-२ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ८१४२९-१(+), ८३२४४-३(+#), ८४३४७-२(+), ८५११४-२, ८५३९८,८१६६६(2), ८१७६६(2) गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (कामीत दाता जगविख्यात), ८२६४२-३(+) गौतमस्वामी दुहा, मा.गु., पद्य, मूपू., (अंगूठे अमृत वसै), ८३२४४-४(+#$), ८५४४८-३($) गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (जगगुरु जिनपति हो), ८५०३८-१४ गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा गुरु गछपति), ८५०३८-१५ गौतमस्वामी भास, मु. कुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पाय),८४२२९-१ गौतमस्वामी रास, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. १८, वि. १८२४, पद्य, स्था., (गुण गाय गोतम तणा),८४१४७(+) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ८५५५९-१(+), ८४६७४(#), ८५५३९(#) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ८५२४३(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ८३२४७(+#), ८४५२५ १(६), ८४९२८(+), ८५०६१(+#$), ८२५५३-२(#$), ८२४७६($) गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मूप., (सरस वचन दायक सरसती), ८४६९६(+) गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ८२०६८($) गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (श्रीगौतमस्वामी पूछा), ८४०२३-१(६), ८३८७८९८) गौतमस्वामी सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (माहनै वाणी तनक सुणाय), ८२५७३-२ गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ८४६७३-३(+) ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, मपू., (१ रायपसेणी प १०६), ८२६७६ घंघाणीतीर्थ स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १६६२, पद्य, मपू., (पाय प्रणमुरे श्री), ८४३१४ घंटाकर्णमहावीरदेव साधनाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिवालीरात्रि तथा), ८१२९३(+#) घडियाली गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (चतुर सुणउ चित लाइ कइ), ८१३१५-७, ८१७३८-६ For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ घनमूल कवित्त, मा.गु., का. १, पद्य, जै., इतर?, (धुर ही ते घन दोई अघन), ८२३७४(+) (२) घनमूल कवित्त-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (प्रथम आंक मांडिइ), ८२३७४(+) चंदनबाला रास, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (चंपानयरी निरमली), ८२०१०(#) चंदनबाला सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (कौशंबीपति शतानिक), ८३८९२-१(+), ८४४११-२(+$) चंदनबाला सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (अंगदेश चंपानगरी रिध), ८३२८७(-$) चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (कांसांबिते नगरी पधार), ८४७०१ चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १४, गा. ९२, वि. १८५२, पद्य, मपू., (फणीमणीमंडित निलतन), ८५२२७-१(+), ८५०१५ चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (प्रणमि मंडत नीलतन), ८१५०६-१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ८१८११(+), ८४५७७-२, ८५३३४, ८४८९०(2) चंदनबालासती सज्झाय, पं. देवविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६२०, पद्य, मूप., (वीरजिणेसर पाय पणमी), ८५५३५(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (आज अमारे आंगनडे), ८१७८६-२,८२९३०-२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (चित चोखी चंदणबाला), ८२५७४-३($) चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंदनबाला वारणैरे), ८४१९९-३ चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (कसुंबी नगरी पधारीया), ८४५७४(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ८४३१०(+), ८४६६३(+), ८४८३३(+#), ८५०४५(+), ८४९९७, ८१७३२(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (चंद्रगुपत राजा १६), ८५३४९-४(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मप., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ८४३५५-४, ८४७९०-१, ८१७८९-२(2) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परमेश्वरसुं प्रीतडी), ८२८७८-२(2) चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (श्रीचंद्रप्रभु राजिआ), ८३८७५-२(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ८५५५४-६(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (चांदलीया संदेशो कहे), ८५२३०-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (जिनजी चंद्रप्रभु), ८२५९५-३(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (चंदपुरी नगरी जाणी), ८५२७९-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (सीवपुरना पनरै दरवाजा), ८२५७४-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), ८१२९९-२(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कर जोडी विधि वीनवु), ८२६६७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. साधुजी ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (चंद्रपुरी नगरी भलीजी), ८१२९४-१(-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (चंदपुरी जाणी महासीण), ८१२९९-१(2) चंद्रप्रभजिन होरी पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहुं ऐसो अवसर पाऊ), ८२१७८-१४ चंद्रबाहुजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रबाहुजिन सेवना), ८४१३०-३ चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, पू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवी), ८३०९१ चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मप., (--), ८१५३५($) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ८५१८१(+), ८३८१४(#s), ८१३०३($) (२) चंद्रराजा रास-चयन, मा.गु., उल्ला . ४, दोहा. ५२, पद्य, मूपू., (प्रथम धरा धवति प्रथम), ८५३९०(+#) (३) चंद्रराजा रास-चयन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिला धराधिप राजा), ८५३९०(+#$) चंद्राननजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चंद्रानन जिन सांभलिय), ८४१३०-२ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अलबेली रे चक्केसरी), ८१७७०, ८५०५३ चक्रेश्वरीदेवी गीत, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सूरगिर हूंती उतरै), ८३२२९-१(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मां चकेसरी सानिधनी), ८२४२१ चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही), ८५४४४-१ चतुर्दशीतिथि स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय श्रीवीर शमामृत), ८४३४४-२($) चरणसत्तरीकरणसत्तरी सज्झाय, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ते मुनिने करु वंदना), ८४३५३-२(+) चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत दशविधि), ८४०२९, ८४५८१, ८५०४१, ८५५८४-१ चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., इतर, (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), ८४४९८(#) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ८५०७९(+) चूडलो रास, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (गणपति गुणनिधि लागुणी), ८२७७३(+), ८५५३३(-) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ८४९४४(+) चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (धन चेलणा वीर वखाणी), ८३११०-१(+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ८१५६०-३(+), ८१३७३, ८५०३५, ८५२४८-१($) चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चैत्यप्रवाडै चौवीसटै), ८१४९१-१ चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ८१५८२-२, ८२१९९-२($) चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मूप., (प्रथम जिन युगादिदेव), ८५४२१-१(+) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ८४४४५(+) चैत्रीपर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल सुंदर), ८५४८३-३ चोरलक्षण पद, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (अजब जनावर एक पोकारे), ८२७०६-३(#) चौमासी आराधना रास, मु. उदय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकलसिद्धि दायक०नेमी), ८४५८६(#$) चौमासीदेववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि ४), ८१८१६ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ८४६२४(+$), ८२९९१-१() छट्ठा आरानी सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (छठो आरो एवो आवसे), ८५१३३-३ छप्पयबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., इतर, (गुरु गुरु दिन मणि ह), ८४३७७($) छिनालपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (पाछो जोवे पेडे चलती), ८३८७७-३ जंबूकुमार चोढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (आद अनाद रो जीवरो रे), ८१७६५(+#) जंबूकुमार रास, मु. राम, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८३२९२(#$) जंबकुमार सज्झाय, मु. हीरा ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (जंबुसम वैरागीयो जी), ८१५५९-२ जंबुकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (रतचिन वाही काची सेली), ८४१०१ जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), ८१६८८ जंबूद्वीप परिधि विवरण, मा.गु., गद्य, पू., (विखंभवकहीयइ पिहुलपणौ), ८१५७९(+$) जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ८४५५२-५ जंबूद्वीप सर्वनदी संख्या , मा.गु., गद्य, मपू., (१ गंगानदीनु परिवार), ८४३३२-२(#) जंबूपृच्छा , मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), ८४८३६(+$) जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ८४४२१(+) जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ८५०२१(#) जंबूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्वामी सुधर्मा सेवीइ), ८५०३८-१३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरीनो बासी), ८२८१७, ८४०५५(5) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मपू., (मगध देश राजगृही नगरी), ८१६८२ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मप., (सरसत सामीने विनवू), ८५३५२ जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (राजगृह नगरी वसै ऋषभ), ८१२९६(2) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ),८१३६६, ८४९५७-२ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामीने वीन), ८४१३६-१ जंबूस्वामी स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ४९, पद्य, मपू., (जंबुस्वामी यौवन), ८४०५९(#$) जंबूस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूप., (मयणा सीरमोडी कामनी), ८१७८५-३(#) जयंतीश्राविका गहंली, मु. शुभवीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (चित्तहर चोवीशमां), ८१५९८(2) जयंतीश्राविका चौढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मूपू., (परमपुरुष गुरु परम), ८२०८४ जांबवती चौपाई, मु. सुरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (पहली ढाल वधावणी), ८१५८७(६) जिनकुशलसूरि गीत, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (कुशल गुरु तूं साहिब), ८४२०४-३(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जलधार विना न अधार कछ), ८४४८८-५(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरीसरू), ८४४८८-१(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुसलसूरीसर से), ८४४८८-४(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीराडिद्रहपुरवरइ), ८४४८८-२(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सांगानयरि सोहामणउ), ८४४८८-६(+#) जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुरके चरणपाया सुरत), ८४४८८-३(+#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कुसल गुरु कुसल करो), ८२५८९-१(2) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीजिनकुशल), ८३१८५-२(+), ८१२७६-१ जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जपउ कुशलगुरु नाम), ८४४२९-२(2) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (कीजै बे करजोडने दादा), ८३५५०-१(+#) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (आयो आयो री समरंतो), ८४२०४-१(+#), ८२५८९-३(#) जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), ८४३४७-१(+) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ८३८९४-१ जिनकुशलसूरि गुरुगुण गीत, वा. अमरसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण गिरवो नित गाजै), ८१७४३-१(+#) जिनकुशलसूरि गुरुगुण गीत, वा. अमरसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सद्गुरु श्रीजिनकुशलस), ८१७४३-२(+#) जिनकुशलसूरि पद, मु. आनंदचंद्र, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुशलसूरिंद सहाई हमा), ८२५८९-६(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समरण होत सहाई कुशल), ८२५८९-४(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु अब मोहि), ८२५८९-२(#) जिनकुशलसूरि पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (हुं तो मोही रह्यो जी), ८१४०७(#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हांजी काइ अरज करूं), ८१६४६-१(#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसुरीसर), ८२५८९-७(4) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १६, वि. १७८१, पद्य, मपू., (गाजै जिणकुशल गडालै), ८३२९९-२(+#) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. गुणविनय, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (सगुण गुण गावतहइ), ८४२५२-६(+) जिनकुशलसरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मपू., (रिसहजिणेसर सो जयो), ८५५५५(+#) जिनगुण स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (करण दोय इकवालधी रे), ८१५१५(+$) जिनचंद्रसूरि अमृतध्वनि, मु. रंग कवि, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचंदसूरिंद जपि), ८३८३४-४ जिनचंद्रसूरि अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (ए जूं संतन के मुख), ८४४१८-१ जिनचंद्रसूरि गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादो सम देव न दूजो), ८१२७६-३ जिनचंद्रसूरि सवैया, पुहिं., सवै. २, पद्य, मूपू., (घटत नहीं जाके वचन), ८२४३१-४(+) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५४३ जिनतीर्थादि नमस्कार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशजय गिरनार), ८५०४३-२ जिनदत्तसूरिकालक्रम पद, मु. आलमचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (समरूं श्रीजिनदत्तसूर), ८२५८९-८(#$) जिनदत्तसूरि गुरुगुण पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण की चरण की चरण), ८१५२४-१(+) जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुघपति, रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (वरदायक हंसवाहनी सारद), ८१४९४-१(+#$) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा चिरंजीवो सेवक), ८३२९९-१(+#) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद्र, रा., गा. ९, वि. १८५०, पद्य, मपू., (परतिख परचा पूरवै दाद), ८२५८९-५(2) जिनदत्तसूरि पद, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सदगुरु के चरण चित), ८४२४५-४(+$) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनदत्तसुरिंद पर), ८१५२४-२(+) जिनदत्तसूरि पद, पा. रत्ननिधान, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (घनघोर घटा विजुरी झबक), ८४४१८-३ जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनदत्त), ८४२०४-२(+#) जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित गोत्रसूची, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (राय भमसाली गोत्रबद्ध), ८१७८७(#) जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे), ८३८६४, ८३८९४-२ जिनदत्तसूरि स्तुति, मु. गुणविनय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपद पंकज अनोप), ८४२५२-५(+) जिनदत्तसूरि स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनदत्तसूरीसरुरे), ८१५२४-३(+) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ८४७६६-१(+#), ८३१७२५-) जिनपूजनमहिमा पद, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन पूजो रे जिव), ८१२७०-१(2) जिनपूजाफल चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (निजरूपे निजनाथ के), ८२९९१-४ जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुष्पादि किसी रीतिइ), ८५२०४($) । जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ८३०१५-१(६), ८४८४९(+) जिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सांमिणि मनिधरी), ८४८४१-२(5) जिनप्रतिमा स्तवन-सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (सिद्धाचल हो तीरथराइ), ८१७६३-२ जिनप्रभाती पद-भैरव राग, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर प्रभु त्रिभुवन), ८५०१७-२ जिनबल विचार छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), ८४६२२-३ जिनबल विचार पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूप., (बार पुरुष बलवान वृषभ), ८४२९२-२(+) जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ८१७६३-३($) जिनभक्तिसूरि गीत, उपा. रामविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, मपू., (मंगलकामिनी सुगुरु), ८३५००-३ जिनभक्तिसूरि गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री खरतर रैखैल कहाण), ८३५००-१ जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, मपू., (गणपद सारद पाय नमी), ८४४९९(5) जिनलब्धिसूरि वधावो, मु. लालचंद, पुहि., गा.८, पद्य, मप., (सारा श्रीसंघनी हो), ८४९००-२(+) जिनलाभसूरि गहंली, मु. देवमाणिक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आवौ सहिया धरीयउ माहह), ८४४२६-२(#) जिनलाभसूरि गीत, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (आज सुहावो जी दीह), ८४४२६-३(#$) जिनलाभसूरि गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आणे उमर अभंग पुछेसुं), ८२७०४-२ जिनलाभसूरि गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (गायो गेहणी सोहले), ८२७०४-१, ८३५००-२(5) जिनलाभसूरि गीत, मा.गु., पद्य, स्पू., (वडी वधारी धरा मै सोभ), ८३५००-४($) जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (सुधरमां देवलोकमां), ८१३५५-३ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), ८२५५५-३(2) जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीवरदाईना चरण नमी), ८१४५८-१ जिनवाणिमहिमा पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जिनराज इसा रे० निशदि), ८५१५९-५ जिनवाणी पद, मु. जिनदास, रा., गा. ६, पद्य, मप., (प्रभु थारी वानी छै), ८१५३९-२ जिनेंद्रसूरि कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (गंगा का प्रवाह गौतम), ८४१२८-३(#) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनेंद्रसूरि गहुंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो सहेली सहु मिलि), ८४९३७-१ जिनेंद्रसूरि भास, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सोझितनगर सोहामणो), ८५४६४-७ जीव आयुष्यमान, रा., गद्य, मूप., (काक पक्षीनी १०००), ८४२०७-३(#) जीवकाया सज्झाय, आ. तिलकसागरसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (काया कामण कंतसु विनव), ८३२९७ जीवयशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (जीवजसा देवर भणी रे), ८१७१६-५(+$) जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूप., (श्रीसरसती रे वरसती), ८५३४०, ८४६४३() जीवाजीवभेद यंत्र, मा.गु., को., मपू., (--), ८४९१६ जुगार पच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (छेल छबीला रे सुणजो), ८३१९२-२ जैनधर्म प्रभावकपुरुष विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य श्रीऋषभदेवजी), ८३९५०(+) जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., मप., (१ जीव समुंचइ ५ नियमा), ८४३६६(+), ८४७७५(+), ८१८३४,८२७१५,८४७६२-२, ८५०४४-७,८५१८५,८१२८८(१) ज्ञानगुणतीसी, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (गोतमगणधर पायज लागुं), ८५१५०-१(+) ज्ञानचंदजी गरुगण गहंली, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (समदारी लहरडीया),८३२२९-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (युगला धर्म निवारिओ), ८४७२६-१ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ८३१३७-२ ज्ञानपंचमीपर्व ढाल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सद्गुरु वचन सुधरसे), ८१५६३-१(#$) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. ९, पद्य, मप., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ८४६७७-१, ८५२७१(६) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, पू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ८१३८८-१(+#5), ८५२६५(+), ८५३०४-१, ८५३९३, ८३८७४(2), ८४०९५-१(#$), ८२८५४-१(६) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (सद्गुरुना प्रणमुं), ८१५१२-२ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसरि, मा.ग., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मप., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ८४६०९-३(+),८३११८, ८४६७७-२,८४७९४-१, ८४९९२-२,८१५१२-१(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ८४६०६-१(+), ८४६१०(+), ८५५३४-२($), ८४१९८, ८५०१९, ८५११५, ८५०१६(2), ८१४७७(5), ८४२२७-३(), ८५२८८($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ८५१४६(+#), ८१४४६(#s), ८४४६५(#5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (प्रणमी श्रीगुरुपदकज), ८१६६३(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिलि समरूं गोयम), ८२७३१-१(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (सरसति सामणि सारदा), ८२७३१-२(#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ८५३०४-२, ८१७२४-१(#) ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ८२९६६(+), ८१४८५, ८१५७८, ८२९५७-१(), ८३१२६-१(६) ज्ञान पद, पा. शिवचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ज्ञान निरंतर वंदीये), ८१३६७-१(क) ज्ञानार्जन विशे हितशिक्षा, मा.गु., गद्य, मपू., (जो पणि दिवस प्रते एक), ८४०६७-८ ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (चदरमाना पदरा माडला), ८५२८७-१(६) ज्योतिष पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचम प्रवीण वार), ८२६७४-२ ज्योतिष संग्रह-, मा.गु., गद्य, इतर, (--), ८४७१५-४(+) ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.ग., को., वै., इतर, (--), ८५०७१-२ For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५४५ ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ८२९९९(+#), ८२०३९(१), ८२६९५-१(#S) ज्वरादि रोगलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (घणु पीवाथी१ रात्रे), ८२३८५-२(+) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, पू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ८१५५८-१(+), ८५०००(+),८५०५८(+), ८४८९४-१,८३०६३(5) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५७, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर समरता), ८१२९५-१(६) टाकरियापच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (लांबा जुहार करे), ८३८७७-२ डुंगरशी गुरुगण गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (डुंगरसीह अबीह सदगुरु), ८२८५५-१(2) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ८३११०-२(+), ८४२२१-१, ८५२५४-४(#) ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (क्रसन नरसर पुछीयो जी), ८४६८६-५(#$) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), ८१५४७-१(+) ढुंढकउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., ढा. ४, गा. ९६, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरि करि), ८४११८(+$) ढुंढकमत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (लुका इम कहे छे जे), ८१७२५($) तपकाउसग्ग विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (अणसण मणोअरीआ), ८१५८५ तपगच्छ नायक स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुरमणि जेम सकल सुख), ८३४६६-२($) तपपद सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), ८२७५१-१ तपपद सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (सुरायो तप में जूंजीय), ८३१४२-११,८५१५९-२ तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, स्था., (चोरी चित्तना धरो नर),८३१९२-१ तामलीतापस चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (चोविसमा जिनवर नमु), ८१७५७(#$) तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८, पद्य, मपू., (वचन सुण्या ब्राह्मण), ८२८४४-२(६) तारामतीराणी सज्झाय-शीलगुण, मु. हीरालाल, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहो मारि तारा रानी), ८१७४५-१(+) तारामतीसती सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (वीपतामे कोण आधारा), ८१७४५-१३(+) तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ८१७६९(#), ८४०८१-१(+), ८१७९७ तीर्थंकर जन्माभिषेक, मा.गु., अधि. २, गद्य, मूपू., (अधोलोक ८ दिसाकुमारि), ८२९०२ तीर्थंकरबल वर्णन, पुहि., गद्य, मपू., (बारां पुरुष का बल), ८३३७२(+) तीर्थंकरादि आशातना आलोयणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाविदेह खेत्तरे), ८१७६२-२(+#) तीर्थमाला स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मपू., (सरस्वती मात नमी कह), ८१६९८-१(#S) तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रावग तुंगीया तणो), ८२९३५-१ तेजसिंह गुरुगुण गीत, सा. पद्माबाई, मा.गु., गा.१०, पद्य, स्था., (शांतिकरण जिन शांति), ८५४२८-१(2) तेजसिंह गुरुगुण निसाणी, मु. कुशला, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (श्रीजिनचोवीसे विसवा), ८२८२३(#) त्रिपदी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपन्ने वा१ विगमइ वा२), ८५५१०-१ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), ८१३०९(5) थावच्चापुत्र नवढालियो, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (आरिसाना भवनै बैठा), ८२६२८(5) थावच्चामुनि सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र मझार रे), ८३२१०-२(+), ८१४८९-२ दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, मूप., (शरीर ओगाहणा संघयण), ८५२७४(+) दंतधावन कौतुक पद, मा.गु., गद्य, जै., वै.?, (गब गब घाल्ले टपटप), ८३०८०-३ दयामाता सज्झाय, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मपू., (दया भगवती छे सुखदाई), ८५५७८(+) दयासूरि गुरुगुण गहुंली, पं. प्रितीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सयल सोभागी जाणीये), ८५४६४-५ दयासूरि तपागच्छाधिपती अमृतध्वनि, मा.गु., पद्य, मूपू., (तपगच्छ प्रगतिनायक), ८३९१२-१ दशविधयतिधर्म सज्झाय, मु. क्षेमराज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वीरजिणंदइ विधिस्यउ), ८३९२४(#) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, मु. सिवचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (हाथि सहसअढार लाख), ८३४२८-३(2) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट -२ ८२०९९(#$) दशार्णभद्र चौढालिया, मु. महिमासागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (वंदिय वीर जिणेस जगीस), दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ८३०९३-१(#) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (में तो वेम छराला हो), ८३१६८-१ " " दशार्णभद्र सज्झाय, मु. रायसिंघ ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १७१८, पद्य, श्वे., (देश दसारणपुर तिहा), ८१६७९ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु. गा. ११. वि. १९३३, पद्य, श्वे. (पधार्या वीरजिनंद भार ), ८३१४२-१ दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (जीव समुचय सर्व थोडा), ८४६५५, ८५५९० दादाजी स्तवन- नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देव सकल सेहरो हो), ८५२२०-१ दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दौलत दो दादा सदगुरु), ८५२२०-२ दादासाहेब गीत, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (अधिक आनंद घरी आसता), ८१४९४-२(+) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६. वि. १७वी, पद्य, मूपू (रे जीव जिन धरम कीजीय), ८५२८६-१(+), ८३०१४, ८४५०९, ८५०२४- २(क) "" दानशीलतपभावना रास, मा.गु., डा. ४५, पद्य, म्पू., (-), ८४५२८) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ८९४४२ (००), ८५२०५ (+३), ८३५९४-१(३), ८३८५२-१(३) ८४२७२-१(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, पद्य, मूपू., ( चुत्रीस अतीशयवंत), ८४१६८-१(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयेतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे. (दान एक मन देह जीवडे), ८९४५२-२ दानशीलतपभावना सज्झाव, मु. दुर्गवास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (सांभली जीवा रे वान ज), ८१४५२-५ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (लोह की नाव नंदी अती), ८३०७१-२ (-०६) दानशीलतपभावना सज्झाब, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समकितधारिने उपगारि), ८१७१७-२(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समुद्रवीजय सेबादेवी), ८१३२३-२ (-) दानशीलतपभावना सज्झाय, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (--), ८३२७५-१($) " , " दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रसीया राचै दान तणे), ८१४६६-३ दानाधिकार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (केसरीया बंधव तणो हुँ), ८४७६१-३(४) , दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू. (सरसति सामिणि समरी मा), ८२११८-१ " दीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम संध्या चारित्र), ८१३११ दीक्षा विधि लुकागच्छीय, मा.गु., गद्य, वे., णमो अरिहंताणं णमो ८१४३७-२ (३) दीपावली कल्प, मा.गु., गद्य, मृपू., (मांगल्य पीत कार्ती) ८१४२२-१(३) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु गा. ३, पद्य, म्पू, (त्रीस वरस घर वास), ८५०६४-१ " दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (मगधदेस पावापुरी प्रभ), ८४६२१-२+०) " दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर बीरजिनवर ), ८४४४१-१, 7 ८५२३३ "" दीपावली पर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, गा. ४३, पद्य, थे. (भजन करो श्रीभगवंतरो), ८१६०८-२ (०) दीपावलीपर्व रास, मु. मनोवर, मा.गु., गा. ३९, पद्य, वे., (भजन करो भगवंतरो गणधर ), ८५१४३(+#) दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदी वीर जिनेश्वर), ८१३७२(+#) "" दीपावली पर्व सज्झाय, मु, रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३७, वि. १८५८, पद्य, स्था. (भविया प्रथम जिणेसर ), ८३१५० दीपावली पर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन धन मंगळ सकल तरेस), ८३४७६-२ दीपावलीपर्व स्तवन, श्राव. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारे दिवाळी रे थइ), ८३३४६-२ दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ९ वि. १८वी, पद्य, म्पू, (श्रीमहावीर मनोहरु), ८४६७३-२(*) " " दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. १२, वि. १९७५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ नंदन), ८१४२५-३(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सासननायक श्रीमहावीर, ८२६८९-२ (+) ८५४५४, ८१७४९-२(क) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५४७ दर्गादास आचार्य गीत, मु. गोपाल पंडित, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (कुल निरमल रुषीराजउ),८१९३९-२ दहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., इतर?, (गांमंतरं घर गोरडी), ८४०२६-३(+) देवकी सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (देवकी की चिंता इम), ८१८३०-१ देवकी सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८४७, पद्य, स्था., (श्रीवसुदेवनीपट्टराणी), ८३२७१-१(2) देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०, गा. १०१, पद्य, मपू., (रथनेमि नामे हवा), ८२९८७(#$) देवकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८३०८८(-5) देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (सति देव नमुं मनरंग), ८१६६९-१ देवलोक के ८ आंगणा की विगत, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेला दुजा देवलोकरी), ८२६२७-२(-$) देवलोक देहमान-आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सौधर्मदेवलोक सात), ८३७६०-४ देवलोक विचार-देवदेवी संबंधी, मा.गु., गद्य, श्वे., (१देवलोकरासीकंदर), ८१९४७-१३(#) देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ८२८४३(#$) देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (सौधर्म ३२ लाख ईशान), ८४४३०(+) देवलोक विमान विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्म इशान देवलोके), ८४४०८-१(+) देवलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सुधर्मा देवलोकमां), ८५५०० देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूप., (सरस वचन दे सरस्वति), ८४५५८ देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिकम), ८३१४३(+), ८३१९६-३(+$) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मपू., (जिनवर रूप देखी मन), ८५३४४-२,८५५६०-१, ८५२४८-५() दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ शरीर वेदना छे), ८२१७७ दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, इतर, (ओस ओस सबको कहें मरम),८४६८०-२ दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ८१८३२(६) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ८१३३४(#$) द्रौपदीसती भास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८३९७४-१(#$) द्रौपदीसती रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८४२९४+) द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबई), ८१९४६ द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. १, गा. २४, पद्य, मूपू., (दोनुं बंधवा रडे दुःख), ८३९८६(२) द्वारिका व कृष्णमहाराजा वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (१ श्रीद्वारका नगरी), ८२१७४-१ धणराज पडतलराज थोकड़ा, मा.गु., गद्य, श्वे., (धणराज पडतलराज),८२५९६(+) धनद कथा, मा.गु., पद्य, मप., (सर्वसंग्रह कर्तव्यो), ८२८६२-३ धन्नाअणगार चौढालिया, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२५, पद्य, स्था., (--), ८५५०४-१(६) धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (काकंदीवासी सकज भद्रा), ८४९९१-२(+), ८१७३९-१(2) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ८१४०८(4), ८४११९-१(4) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीर बत्तिसी कामनि रे), ८२७३६-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (चरणकमल नमी वीरना), ८१६९७(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), ८१६६२-१, ८३४९६-१, ८४३१७-२, ८३०९८-३(#$) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्पू., (जिनवचने वयरागी हो), ८५३७०-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीन), ८२५३८(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (शियाळामां शित घणी), ८१३५७(#) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ७२, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), ८४६७१(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ८२१३७-१(2) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. दुर्गदास ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नगर काकंदी रो वासियो), ८१७५६-१ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (धन धन्नो ऋषि वंदीयै), ८१४६७-२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी रे धना), ८५२८६-२(+-$) धन्नाकाकंदी सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (मुनिवर धनाजी महाराज), ८२५८६-२(2) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सतगुरु वचन विचार कर), ८३०९८-२(2) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जेणे दीधु तेणे लाधु), ८४४२३-२(#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ८५५३६(+), ८४०१२ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (धन्नाजी चौकी प्रथया), ८३०९८-१(#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (राजग्रहिपुर नगरी), ८२८३३(4), ८१५४०-२(६) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदु सतगुरु देव), ८३३६८(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८४१३३(+#) धन्नाश्री सवैया, पुहि., दोहा. ४५, पद्य, श्वे., (चौथे आरे केरा जसतीन), ८५३६१-१(+) धर्मजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (धर्मनाथ नु धरो० भवि), ८१६८७-४(#) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ८३२२३-१(६) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ८४०२५-१(+) धर्मजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (धर्मजिणंद तेरे धर्मक), ८१३८९-९(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरमजिणेशर ध्यावो), ८१५५२-६(+#) धर्मजिन स्तवन, गच्छा. महेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १९०८, पद्य, मूपू., (धर्मनाथ जिन देख्या), ८२६६८-१(+) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ८५२४५-६(+), ८२०२९, ८४५३०-२ धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (आज सफल दिन माहरो), ८४००९-१ धर्मजिन स्तवन, मु. लालजी ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (श्रीधर्मनाथ जिन वंदी), ८३१२० धर्मजिन स्तवन-नागपुरमंडन, मु. रतन, मा.गु., गा. ५, वि. १९१६, पद्य, श्वे., (शिवनाजीनो सायखो), ८५५११ धर्मदलाली छंद, पुहि., गा.१७, पद्य, श्वे., (खरी दलाली लालन की रे),८१८३०-२ धर्मदासजी गुरुगण गीत, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा. ३७, पद्य, स्था., (पूज्य धर्मदासजी धर्म), ८३०१०-१ धर्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), ८५४७६, ८५५५६ धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ८४३९५-३(+$), ८५२५४-१(#s) धर्म संबंध बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (धर्मनो बाप जाणपणो), ८१९४७-४(#) नंदिषेणमुनि चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ७४, पद्य, श्वे., (नंदिषेणक कवररी वारता), ८५१५६ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (साधुजी न जइए रे परघर), ८१५२५, ८४१२५-१(#) नंदिषेणमनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मप., (राजगृही नयरीनो वासी), ८१४०३-१,८४६१३, ८४९२१, ८१५२९-१(६), ८४९८३-२(६) । नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १५, पद्य, मपू., (राजेगेरी नगरीना वासी), ८४८६३ नंदिषेणमनि सज्झाय, मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मनीवर महिअल विचरई), ८२७२७-१(+$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (मुनिवर महियल विचरे), ८५४५०-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (श्रेणिकश्रुत सुविचार), ८३८७७-१ नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ८४९४८ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (नंदीश्वर वरद्वीप संभ), ८४८१८-३ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० नंदीषेणसाधु सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो रहो वाला), ८५२२४-२ नक्षत्र सज्झाय, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (प्रणमी गणहर गोयम), ८२८८५(#) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, पू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ८३९५३(+), ८४२९०(+), ८३११७, ८४९१८, ८५४४३-२, ८५५२१-१, ८१५९३-२(#S), ८२६९५-२(#), ८२७२८($) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ८१७५८-४(+#), ८३८७६-१(+-2), ८५२११-२(+), ८४१०२, ८४१५६, ८५१५८,८५३०९-१, ८४२८६(-5) नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (भोर भयो ऊठो भवि), ८४९९५(2) नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पेला लीजे श्रीअरिहंत), ८१६१३ नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुखकारण भवियण समरो), ८५३१७-१ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ८४०८१-२(+S), ८२८३४, ८३७४१, ८४०४७(#) नमस्कार महामंत्र पद, पं. मनरूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पंच परमेष्टि युग), ८४१५४ नमस्कार महामंत्र पद, मु. लाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भजो सउ सार मंत्र),८३०३१-३ नमस्कार महामंत्र पद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूप., (सास्वत नोकार मंत्र ह), ८५३४१($) नमस्कार महामंत्र महिमा, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, स्था., (श्रीनवकार जपीजे रे), ८१५००-४(+) नमस्कार महामंत्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १४, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो सूधइ), ८४२४६(+) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (पहिलो लीजि), ८५३२९ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु.,गा. २५, पद्य, मपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ८४१८६ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., गा. १४, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (अरिहंत पहले पद जानी), ८४७२३-२(+), ८४२०८ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ८३८७६-२(+#), ८४२३४-२(#), ८३०३८-२(5) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ८५५७०(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समर रे जीव नवकार नित), ८४६१६-४ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), ८५६२०-२(+), ८३९७१-३(2) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (बार जपुं अरिहंतना), ८४५४८-३(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८१४५३-१(-) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (अष्ट लब्धि नवनिधि), ८१५९३-१(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय-बृहद्, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (--), ८३६९६($) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्ट लबध नव नीध भंडा), ८२९०७-१ नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ८३८७६-३(+#),८५४३०-१(+), ८५४२९ नमस्कार महामंत्र स्तवन-महिमा, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (चौद पूरवनो सार मंत्र), ८४७५०-१(२) नमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नेह करो नमिनाथस्यू), ८१३८९-४(+#) नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ८३८१६-१($) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.ग.,गा. ९, पद्य, मप., (देवतणी ऋधि भोगवी),८३८६९-३(+#) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ८४१२६-१, ८४१९९-४ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ८५१११-२(#) नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.गु., को., श्वे., (रतनप्रभा योजन १०), ८३३३३-१(-2) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ८४८९२(+), ८५२९६-२(+), ८४०२२ For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नलदमयंती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (है है दोषि देव तें), ८३९३१-१ नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (जल भरी संपुट पत्रमा), ८५२९२-२(+), ८३१४६-२, ८४२५३-१, ८४५६०-३() नवकार महामंत्र आनुपूर्वी, मा.गु., को., मूपू., (--), ८२२४० नवग्रह अंतरमान विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ८३७६०-५ नवग्रह दशदिग्पालपूजन सामग्री सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ कनेरना फुल २), ८५१७९-२ नवतत्त्व २५६ भेद विचार, मा.ग., गद्य, मप., (जीवतत्त्वना भेद १४), ८२६३७(#) नवतत्त्वगुण बोल-रूपीअरूपी विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (नवतत्वमांही रूपी), ८१८७७-१ नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर प्रणमी), ८१४१८(5) नवतत्त्व थोकड़ो, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे विवेकी सम्यक्त्व),८५३७७ नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवना चउदें भेद), ८१७६२-१(+#) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मप., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ८४४२४-२ नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ८२६४३-१ नवपद गहली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सहियर चतुर चकोरडी), ८२९५४-२() नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेले पदे नमो अरिहंता), ८१५११-१($) नवपद पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरे सदा), ८४२११ नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरु नमतां गुण उपजे), ८३२२०(#) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ८४१८०-४ नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ८४६३९ नवपद स्तवन, मु. मुक्तिविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (देश मनोहर माळवो निरू), ८५००७ नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीया चतुर सुजाण नवपद), ८५४५०-२ नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (नवपद महिमा ध्यावो), ८३०२६-१(#) नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, मूप., (अरीहंत सिद्ध मारे एक), ८४७५०-३(#$) नववाड रास, मु. सरूपचंद, मा.गु., गा. १४८, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पंच परमेष्ठी), ८१५०९(+) नववाड सज्झाय, उपा. आनंदनिधान गणि, मा.गु., गा. २७, वि. १७५७, पद्य, मपू., (श्रीभगवंत इम उपदिसे), ८४०४१ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ८५५५८(+5), ८१८५४ नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नंदनवन), ८१५०८(+), ८४४६७-१(+$) नववाड सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (सोलमो अधेनउत्ताधेनको),८४३८२-३(2) नवाणप्रकारीपूजा विधि, मु. वीरविजय, मा.ग., पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८५०२९(%) नागदत्तशेठ सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (नगरी उज्जयनी रे नागद), ८५००८ नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मघोष आचार्यना), ८४४९१-१ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ८५१२८, ८५३५५ नाणता स्थान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उच्चतमेव१ लेस्या२), ८५०६९-३ नाणावटी सज्झाय, श्राव. साहजी रुपाणी, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हो नाणावटी नाणु), ८४२९३-७(+) नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (रतनप्रभा जघन्य १००००), ८४४०८-२(+), ८२८७९-२(2) निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), ८३७०२-२ निर्वाणकांड, मा.गु., गा. २५, पद्य, दि., (परम अपा नमु सदा भाव), ८३१४९-१(+#) निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरनइ केवलज्ञ), ८१७८४(+) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.ग., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मप., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ८४८४७(+$), ८१५०१-१(#), ८४५६७-३(), ८४७३६($) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० नेमराजिमती गीत, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जादव श्रृंगारा नेमि), ८२६२०-२(+) नेमराजिमती गीत, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (राजुल सहियानै कहै रे), ८२६२०-१(+) नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (होजी रथ फेरी चाल्या), ८४३६९-२ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ८४२९३-१९(+), ८१९२५-३(#), ८४६८८-१(६) नेमराजिमती गीत, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (राणीराजल बोली काहे), ८१८२०-१(#) नेमराजिमती गीत, मु. दीप ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १७१७, पद्य, श्वे., (समुद्रवजय शिवादेवी), ८१४६५-५ नेमराजिमती गीत, मु. नैनसुख, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरे सनम में युं जाय), ८३०२५-३, ८३०८५-३ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (नेम मले तो बातां), ८४२२४-५ (+-$) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (मोहल चढि माहरा नाथनी), ८३१७५-४(+) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (मोहनवेली प्रेम गहेली), ८४४६७-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. विनय, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (मेरी गति मेरी मति), ८४९०६-५ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (उबी उबी राजुल अरज कर), ८२८४०-२(2) नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, मपू., (ह रे मोही छं मोरा), ८३२९८-३($) नेमराजिमती गीत, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो रसीया था- किण), ८३८८२-२ नेमराजिमती चौपाई, क. रूपचंद, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (--), ८५०६०-१(+#$) नेमराजिमती टपो, मु. आनंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कें खेलुं बाहोरी डोर), ८३९०७-३ नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मप., (प्रणमं विजया रे), ८५५१५(#$) नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ८४०६५(#S) नेमराजिमती पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनो रे मुज बालवा), ८५५२३-८(+#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ८२१७८-३, ८२८०५-३ नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गोडी विन अवगुन क्यू), ८४५२१(+) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल पोकारे नेम), ८२१६९-२(#) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, पुहिं., पद. १, पद्य, मपू., (जदुराय चढे वर राजुल), ८४०२६-४(+) नेमराजिमती पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (फुल सौ बागण लाव्य रे), ८२४३५-१(+) नेमराजिमती पद, मु. टेलाराम, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (तेहीजै काहिक सर्ण), ८४१६४-४(+) नेमराजिमती पद, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (राजुल भाखै कान न), ८४७९९-१ नेमराजिमती पद, मु. भूदर, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (भगवंत भजन कुं भूला), ८२९५०-३(+) नेमराजिमती पद, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (उमट आई साहिबाजी वादल), ८४०५७ नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देखत ही चित्त चोर लि), ८४९०६-२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नहि ज्याने दुगी मे), ८२७१४-२(#$) नेमराजिमती पद, मु. राजरत्न, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (सावरो नेम प्यारो री), ८४६९१-३(-) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सहीयां नेम नगीनौ माह),८४१८०-१ नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (बावीस सुभटने जीपवा), ८५१३४-४(#) नेमराजिमती पद, मु. हरिबल, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नवभव केरी प्रीत सहि),८५३५१-१ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (आछी लग दिलोदिल भर), ८२७१४-१(#) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो सखी वनडो ए नेम), ८४६९१-६(-) नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (नात तेरा दरसण की), ८३१३२-३($) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राणी राजुल थाने अरज), ८५४६४-८ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सखी री चल गढ गिरनारी), ८२८२२-४(2) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ राजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सांवलिया मारा तुम कर), ८३२२२-२ नेमराजिमती फाग, विद्या, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे., (राजुल नारि नउभवथी), ८४४८२-१ १ नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ८१७७४, ८३९०१, ८२९६४(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. कान कवि, मा.गु.. गा. १३, पद्य, मूपू (राणी राजुलनो भरतार ), ८१४८० नेमराजिमती बारमासा, आ. कीर्तिसूरि, रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावण मास सुहामणाजी), ८५०६०-२(+#) नेमराजिमती बारमासा, उपा. कुशलधीर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मृपू., (राजुल वदति वार वार ), ८४३०६ १ नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु.. गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि, ८४७२३-१(+), ८५५९४-३ नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), ८२८५४-२ " " नेमराजिमती बारमासा, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फिर गए राज), ८३१७८-२(#) नेमराजिमती बारमासा, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वर हुं), ८१४८९-१ नेमराजिमती बारमासा, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे. (दिल शुद्ध प्रणमं), ८४०९१-१(०) नेमराजिमती बारमासा, उपा. नवविजय, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू (प्रणमीय पासजिन प्रेम ), ८४४३९ (+) नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १९११, पद्य, श्वे., (राजुल उभी विनवे रे), ८४९१२ नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सावण मासे स्वामि), ८४१७४($) नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं. गा. २६, पद्य, भूपू (विनवे उग्रसेन की), ८३६९३ (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ८४३३१ नेमराजिमती बारमासा, मु. श्यामगुलाब, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (फुली चैतवसंत सोहंत), ८५५८७(+#) नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (हो सामी क्युं आये), ८४९६८ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, चे., (ध्याउं श्रीजिननाम कौ), ८३३२९(३) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, श्वे., (समदबीजेजीरा नंद), ८२८४०-१(#) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, श्वे. (सारदमात वरबुधी सदगुर ). ८५२०८ (+) " नेमराजिमती रास, मु, पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू. (सारद पय पणमी करी), ८४५४२, ८४२९८ (६) नेमराजिमती रास, मा.गु., पद्य, भूपू., (सरसत सामण वीनवुं गुण), ८१३४६-२(३) नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (राजुल पुकारे नेम), ८१६७७५ " नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अर्ज), ८१५५४-२, ८१७६८-१, ८४५७८-२ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास पुहिं. गा. ४, पद्य, मृपू.. (कहोरी माई कैसे लगे), ८३२२२-१ " मराजिमती लावणी, पुहि., पद. ५, पद्य, मूपू (हेरी हे री माई मेरो), ८४९६२-१, ८४९७३(# ) नेमराजिमती लेख, मु. जससोम, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री जदुपति), ८४५०८-१(S) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर) ८३१३५ नेमराजिमती विवाहलो, पंडित. सरुपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सारद मातनै विनवुंली), ८१६९०-३ नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. गा. ३२, पद्य, मूपु. ( हठ करी हरीय मनावीर्य), ८४४२२ (०) " नेमराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू, (तोरण आए नेमजी पसुअन), ८२७३७-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजुल करजोडी), ८५०६७(+), ८५२१४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर नित नमु), ८४९८८ (प्रथम मनाउ श्रीनवकार), ८३०५६-२(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे. (राजुल इण परि वीनवै), ८१३४३(+) नेमराजिमती सज्झाय, क. जयसोम, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (--), ८१५५२-१० (+#$) " नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पिया रथ ले पाछा फिर), ८१९२६-४(#) नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु गा. ६, पद्य, मूपू (सुंदर सारी बालकुंआरी ), ८४८५६-२(*) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धोनवडि अवधारो), ८१५५९-७ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ८५५६४-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (वीनवै राजलराणी हो), ८१५५२-३(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. दीपविजय, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (नव भव की में नारी), ८५३८४-४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. धरमसी, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (जांन लेईने आयाजी नेम), ८१४०२-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), ८४६४१-३(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मंदिर नाव्या रे माही), ८३०५५ ।। नेमराजिमती सज्झाय, मु. माधव, मा.गु., गा. १२, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (शामलियो रे तोरण आवि), ८१५८४-१(2) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १, गा. १८, पद्य, मप., (सुमद सेवादेजी राणी), ८५०५७-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ८४१२२-१, ८३९५४-१(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीन), ८४०६०-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. वेलजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (समुद्रविजय सुत नेम), ८५५९१-१(2) नेमराजिमती सज्झाय, पं. हेमहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नव भव केरी प्रीतधरी), ८४३३६-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कीसन बलभद्र ली आय), ८२९८६-१(-) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (चोकती चतराई पामी), ८४९८१-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जान बणाय कै हो राजि), ८४१७५ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नगरी धारकी कडि किसन), ८५५४४-२ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, वि. १८७४, पद्य, मपू., (नेमनाथजी रथ पाछो), ८४३३६-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. २२, पद्य, श्वे., (पीरथम मनाउ पद सीरी), ८१५३४ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सुंदर स्याम संदेसो), ८१९२६-१(#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (--), ८३०७१-१(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (--), ८३०८५-१ नेमराजिमती सवैया बारेमासा, विनोद, पहिं., गा. २६, पद्य, मप., (विनवे ऊग्रसेन की), ८३१९४(+) नेमराजिमती साज, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सहियोजी नेमि क्या), ८३२७५-२(-) नेमराजिमती स्तवन, मु. अनुपकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सिवादेवी जाया मुज), ८३२३५(#S) नेमराजिमती स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सांभल सजनी रे मारी ह), ८१६५० नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (चंपक वरणि चूनडी आजो), ८१३४१-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २०, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (नेमजी हो पेखी पशु), ८४५०७, ८४८९५-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. जीवण, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जंबू भरतैह सइया मारी), ८५५८१-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (राजुल बेठी उंची गोखड), ८२७५३-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (राजुल कहे रथ वालो), ८३०२४-१(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), ८५०९३-२(+),८४८३०-९ नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (तोरणथी रथ फेरी गया), ८१४६९-४(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मनमोहनन छेह ते दीधो), ८४५६०-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ८४०९५-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मात सिवादेवी जाया), ८४१९२-१, ८३१७८-१(#) नेमराजिमती स्तवन, आ. हंसरत्नसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नेमजी तोरणथी रथ वाली), ८२६७२-१(२) नेमराजिमती स्तवन, मु. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (गढगिरनारे भेटीइं भेट), ८४५६८-२ नेमराजिमती स्तवन, पं. हेमहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नवभव केरी प्रीत धरी), ८३१५७(#) नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सांमण समरीए), ८४५०८-२ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८१६२१-२(#) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (पडवे प्रीतम रे प्रेम), ८४८९८(+) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ८२६६९, ८४३६०(4) नेमराजिमती होरी, मु. उत्तम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रंगभर खेलै होरी रे), ८२१७८-९ नेमराजिमती होरी, मु. धनिदास, पुहि., गा. १०, वि. १९१३, पद्य, श्वे., (सब रुत को सिणगार), ८१९२६-३(#) नेमराजिमती होरी, मु. रामचंद्र, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (अबतो रह्यो न जाइ रे), ८४४८२-२ नेमराजिमती होरी, सा. विद्याश्री, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम के संग खेलूंगी), ८२१७८-१० नेमराजिमती होरी, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (मे तो होरी खेलूँगी), ८२१७८-१५ नेमसागरगुरु गहुंली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरुजी आव्या रे), ८४६०४-१(+) नेमसागरगुरु गहुंली, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सजनी मोरी पेथापुर), ८४६०४-२(+), ८४६०१, ८५६१६-२ नेमिजिन कक्काबत्रीसी, मु. दीपचंद, पुहि., पद्य, श्वे., (मुझे छोड चल गया), ८१२६७-२(-2) नेमिजिन गीत, मु. आणंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (बलीहारी हुं नेमरायरी), ८२०७५-४, ८४८३०-३ नेमिजिन गीत, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा. ९, पद्य, पू., (वैठो हियडइ आविनै हे), ८४३०६-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमि नमुं निशदिश जन्), ८३९०९-४(+#) नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणम नेम), ८१४७९-३(+), ८४८१२-४, ८५२७३-५, ८१४२३-४(2) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (नेम बाल ब्रह्मचारी), ८५००३-३(#) नेमिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (राजकुमार श्रीनेमिनाथ), ८५४५६-२ नेमिजिन चोमासं स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मोरा सम मा जावो रे), ८१५०१-२(2) नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), ८४०८६($) नेमिजिनदीक्षा वर्णन-१००० पुरुषों के साथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (१०८ श्रीकृष्णजीरा), ८२१७४-२ नेमिजिन धमाल, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शुभरथ फेरी पाछा वलीय), ८१७९३-२(#) नेमिजिन पद, मु. आनंद शिष्य, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (बाग नैम मिल गए मुन), ८२८७२-६ नेमिजिन पद, मु. उत्तम, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (हरीयाले डुंगर जाइजो), ८५४९४-२(+) नेमिजिन पद, आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरज सुणो मेरी नेम), ८१२७०-३(#) नेमिजिन पद, मु. खेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, ., (सोवन्न पलाण के काण), ८१५७७-३(+) नेमिजिन पद, मु. धर्मपाल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गरज गरज घन वरसै देखो), ८४५३६-४ नेमिजिन पद, मु. रामचंद वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम देख मुझ पेम जगतप), ८१३८४-२ नेमिजिन पद, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (नेम निरंजन ध्यावो), ८२७३४-१(+) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तुं बालब्रह्मचारी भल), ८२७०६-२(#) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (तम सुणो सुजाण नेम), ८५५२३-४(+#) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमिजिनंदा हो सुरत), ८१३१६-७(#) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परणावे ना केम पाछा), ८३०३०-२ नेमिजिन पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (पुरव पुन बीना कहत), ८५४४७-३ नेमिजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (बरव्याहन आयै जादपति), ८५५२३-१६(+#) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (हा एक तेज लडीया ए मो), ८१५३३-१(+) नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मप., (भोगी रै मन भावीयो रे), ८३९१०(#) नेमिजिन फाग, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (आई सब खेलन होली), ८३९०७-१, ८३९०७-५ नेमिजिन फाग, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम जिणंदसुं ताली), ८५५७६-५(+) नेमिजिन बलगीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ८४५२९-२ नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रेम बिलूधी पदमणी), ८४६६६-१(+) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० नेमिजिन बारमासा, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., गा. २८, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (समरं सरसति मातने), ८४०३४ नेमिजिन बारमासा, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (शारद पदपंकज नमी आणी), ८१४१६(+) नेमिजिन बारमासा, मु. डुंगर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ८४४६३-१(+#$) नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखी री सांभलि हे तूं), ८५०१८(+), ८३३८९-१ नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयरा पुत), ८२२१८(#) नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (--), ८१६९४-१(+$) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (एक अजब अली जी नेम), ८२८७२-७ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ८४८९६, ८४९६२-४ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नेमनाथ जिनवरको बदन म), ८२५८६-३(2) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ८४९०८ नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (देस विदेह सोहामणु), ८२७२७-२(+) नेमिजिन सज्झाय-८ भव वर्णन, मा.गु., पद्य, मपू., (एक भील हतो विकराल), ८१७५२(+$) नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पद्य, पू., (सिद्धि बुद्धि दाता), ८१३९८-२, ८५०४६ नेमिजिन सिलोको, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मपू., (समरूं सारद सुण माता), ८१८६३($) नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पशु पुकार सुण्या), ८३७७६-२(+), ८३१७९-१ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ८४५३६-३ नेमिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सारद वर दीजै जी), ८४५४८-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (जगपति नेम जिणंद प्रभ), ८२९९२ नेमिजिन स्तवन, मु. खीमाविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्पू., (हार श्रावण मासे), ८४४१९ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (समुद्रविजे सुत लाडलो), ८१६०८-५(+#$) नेमिजिन स्तवन, आ. जयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहेलि तोरण आयो हे), ८४१३७-४ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनदास, रा., ढा. ९, गा. २०, पद्य, मूप., (मुगत पंथ की पावडी), ८१२७९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सांभल रे सांवलीया), ८२९५०-४(+), ८३०३५-२(#) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (तोरण आवी कंत पाछा), ८४०१९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.ग., गा. ५, पद्य, मपू., (जिनवर हे जिनवर तुं), ८१४११-२(+#), ८३२२३-२ नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ८१२७६-२, ८१५२१-१ नेमिजिन स्तवन, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहेली हे तोरण आयो फर), ८१४०२-३(+) नेमिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नेमिजिननी सेवा करतां), ८५१९५-४(+$) नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (संजम लेऊगी साथ पिया), ८४०४६-१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (दुरो थयोजी साहेब), ८१३५२-३(-2) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (सांवरियो साहेब है), ८४१८२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम जिणंदसू प्रीतडी), ८४१६७-१ नेमिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीसागर, म., गा. १०, पद्य, मप., (आईका आईका उघली अमची), ८१४११-४(+#) नेमिजिन स्तवन, क. लाभहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (सामलिया सुंदर देहि), ८४५४८-९(+), ८४१२२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सारद माता वीनकुंजी), ८५३४४-१ नेमिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सखी श्रावणनी छठ उछली), ८४८७४-१ नेमिजिन स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दरशन दीठे दिलडां), ८१८१८-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सवाइ नेमजी थाने), ८४१३७-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अपराजित वेमाणथी), ८१७१३-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आँखडीया अणीयालीया हो), ८४१२०-४($) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छप्पनकुवरी आवती कर), ८१९५०-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (नेम वियावण आवीया), ८३०५६-१(#) नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, म्पू., (प्यारो लागैजी गिरनार), ८२९६८(६) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रंग लागो दिल गालो), ८२१५५-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (समुद्रविजय सुत नेम), ८२९०८-१(२) नेमिजिन स्तवन, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (सहीया ए मोरी नेमीसर), ८५४६८ नेमिजिन स्तवन-औपदेशिक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (रे जीव समदभीज घर नार), ८५०५७-१(+) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ८४४४०(#) नेमिजिन स्तवन-जंबूसरमंडन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ६, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम), ८५५७६-२(+), ८४५२३(#) नेमिजिन स्तवन-नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूप., (श्रीसहगुरुना पायइ), ८४०३३(+) नेमिजिन स्तवन-सांमेला, मु. ज्ञानकुशल, पुहि., गा. २९, पद्य, मपू., (नेमजी राजीमती रमणी), ८१६२६-१(+#) नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नमीए नेमजीणंद गढ), ८१४८४ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ८१५२७-३, ८४२७३-१, ८५६०१-१(#) नेमिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल वरनारी रुपथी), ८५६२३-१ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ८१४६९-२(+#), ८५४६३-३(+), ८२७५३-२, ८३१०७-२, ८३६३१-१(#), ८१८३६-१(६), ८४२७७-१(-) । नेमिजिन होरी, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (खेलइ नेमि कन्हइया), ८१४८८(#) नेमिजिन होरीपद, मु. नवल, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (किन मारी पीचकारी रे), ८५५१२-३ नेराजिमती रागमाला स्तोत्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (ए मियलोयणी पियाकु), ८१८२०-२(#) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ८४८२२ पंचकल्याणक स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (पणमवि पढमारंभ परम), ८१५१७-२(#$) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरनार गिरि), ८१६२९-३ पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (विहरमान जिणंद वंद), ८५४३५-२(+) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (अरिहंत देवा चरणोनी), ८५००३-६(#) पंचतीर्थ स्तुति, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रेमे), ८४८१८-२ पंचपद गुणवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पले पद नमो अरिहंताणं), ८४९२४ पंचपद वंदना, मा.गु., पद. ५, पद्य, स्था., (पहेले पद श्रीसीमंदिर), ८१५४२-१ पंचपरमेष्ठि विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ८१४९८ पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहि., गा. ६४, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेव के चरणार), ८४०४५, ८४९७६ पंचमआरा सज्झाय, मु. सकलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १९३९, पद्य, श्वे., (आरा पांचमा कलजुग), ८४९४३-१(+-) पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पंच आराना भाव रे), ८४९६४-१(#) पंचमहाव्रत सज्झाय, उपा. सकलचंदजी , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत तणो रे), ८४५४८-५(+) पंचमहिमा पद, क. गद्द, पुहि., पद. १, पद्य, जै.?, (पंच वडे संसार पंच), ८४१२०-२ पंचमीतिथि पद, आ. विजयलक्ष्मीसरि, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (च्यारे वहनी जाति), ८१८१०-१(+) पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ८४७९४-२, ८५१८२-३, ८१६९८-३(#) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (पुनयी पांचम एम वदे), ८१३३२-३(+) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमि करी रे), ८४६०९-२(+) पंचमीतिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (शुभवाणी देजो वर सारद), ८३६६८-२(#$) पंचमीतिथि स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (चोवीस दंडक वारवा हुं), ८१५६३-२(#S) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५५७ पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १४८४, पद्य, मप., (सारद प्रणमी पाये सकल), ८५४८४(६) पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच पदनै ध्यावो), ८५२६० पंचमीतिथि स्तति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ८५४६४-१(६) पंचवधावा, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंचवधावा सखी मो मन), ८४०६०-१(#), ८४१९२-३($) पंचसंवत्सर आम्नाय, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचसंवछर अनुकर्मे), ८२१८५ । पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मप., इतर, (गवरीनंद आनंद करि), ८२०४९-१(+), ८४१४६, ८२२६३() पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्पू., (भगवति भारति पाए नमि), ८४४०२(+), ८५३०५ पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रह उठीने दस पचखाण), ८१९८६-२ पच्चक्खाण्ण सज्झाय, मा.गु., गा. ५३, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (भे। धार्यां रात्या), ८४१४३-१(5) पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (महावीर देव चोवीसमो), ८३००५(5) पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामी चोथा), ८३०९९(६) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), ८२६९९ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमान), ८४९५४, ८५५०९-३, ८४३२२(2) पद संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., वै., इतर?, (पदराग भरु बोत दिनांक), ८४४०३-१(+) पद्मनाभजिन स्तवन, मु. नेमकुशल, मा.गु., गा.११, पद्य, मपू., (भविजिन भावसुं नित), ८३८६०-१ पद्मनाभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८४६, पद्य, श्वे., (जंबुदीपना भरतक्षेत्र), ८१६०८-३(+#) पद्मप्रभजिन पद, मु. पान मुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु परसोत्तम),८३२४३ पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (घडी घडी पल मुझ सांभर), ८२८१६-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागलीयु करतार भणी), ८४९९१-१(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पदमप्रभुसु प्रीति), ८१५५२-५(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (परम रस भीनो म्हारो), ८३२९८-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रह उठी प्रभाते), ८१९८८(2) पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभु निति), ८१७८२-२ पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), ८४११९-२(#$), ८४०९७-२(-) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ८३०३५-१(#) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ८१३२४(+), ८३३८१-१(+#), ८३४२५-१(+s), ८४३५३-१(+), ८१५२०-२, ८१७७६, ८१७९८-१, ८२८७०, ८३१००, ८४३२५, ८५२३५, ८५२४६-१, ८१७११(#), ८२१४८-१(#), ८४४२९-१(#), ८५५१८(2) पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ८१६५३(+), ८३०९७ पद्मावती गीत, मु. सुंदरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पद्मावती परतो पूरवे), ८१६९४-२(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं जय जय), ८३५४५-४ पद्मिणी बारमासा, मु. दलपत, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (तात चरण प्रणमी करी), ८२०९५ परजनकुवर चौक, मु. हीरालाल, पुहिं.,रा., चोक. ४, पद्य, श्वे., (लखीया लेख नइ मट करम), ८५२३१-२ परनारी परिहार सज्झाय, पुहि.,रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहावै), ८५४३०-२(+), ८१२७५-२(2) परनिंदात्याग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुंदर पापस्थानक तजो), ८२८८६-२(+#) परमब्रह्मज्ञानचतुर्दशी, आ. जिनसमुद्रसूरि, पुहिं., गा. १४, पद्य, मप., (--), ८४२३२-१(+$) परमब्रह्म धमाल, आ. जिनसमुद्रसूरि, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (नमो ब्रह्म नमो), ८४२३२-२(+) परमब्रह्म स्तुति, आ. जिनसमुद्रसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भजो रे भजो भाई देव), ८४२३२-३(+) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ परिग्रह परिमाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिरि पास जिणेसर), ८४१०७(+#$) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति समरी), ८५५१७-३ पर्युषणपर्व गहंली, मु. सुमतिविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (हूं तो थाल भरुं रे), ८५५१७-२ पर्युषणपर्व गहुंली, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्यनें), ८५०३८-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), ८५०६४-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वडाकल्प पूर्व दिने), ८५४५७-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकलपर्व शृंगारहार), ८३९८२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ८४७८१-५(+), ८५३१५-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ८४७८१-१(+$) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (जिननी बहिन सुदर्शना), ८४७८१-३(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ८४७८१-४(+), ८५३१५-१(s) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ८२७७४(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीसेजो सीणगार), ८४६२८-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), ८४७८१-२(+) पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, मप., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ८४६४५-२(+$) पर्यषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (श्रीशजयमंडणो), ८५१२३(+), ८५१३०(+#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ८४९१९ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. भिखू, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (मनावो आज छमछरी हिलमल), ८३१७३-४(-) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ८४३५९-५(+), ८१७७८, ८३२३१-२, ८४४९५-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. २, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (श्रीगोतम गुणधामी), ८३१२३-१(६), ८३१२३-३($) पर्युषणपर्व सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (पिता मित्र तापस मल्य), ८५३९२ पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-१, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया आनं), ८५४५३-१ पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-१, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (पहेले दिन बहु आदर), ८१३७६ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो परब पजुसण आया), ८५१५७-२ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ८१६३९ पर्युषणपर्व स्तवन, आ. हेमचंदसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज अजब छवि जिनवर की), ८५१५७-३ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (परव पजुसण पुण्ये), ८३९५७-२(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मणि रचित सिंहासन बेठ), ८४८१८-१ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुंध्यावं), ८५५६२-१५(+#), ८१७०२-७ पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, पू., (पुण्यनु पोषण पापर्नु), ८५४०९-१ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ८५४३९(+), ८३१६२, ८४५५१, ८४६०० पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ८४२५४ पर्यषणपर्व स्तति, आ. भावलब्धिसरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पुण्यवंत पोशाळे आवे), ८५४५२-२, ८१३००(-) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ८४२७३-५ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण पुण्ये), ८४२७३-३ पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ८१३३३-२ पर्वतिथिए वर्जितवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पान नागरमग्घी नींबू), ८४५५६-४(+) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ८१४६०(+#5) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५५९ पांडव लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ११, पद्य, मपू., (पांडव पांचों संयम), ८५४९७ पांसठियायंत्र छंद, मु. घर्मसिंह, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्री नेमीश्वर संभव), ८३१८८ पाखंडमतनिरास चौपाई, मा.ग., पद्य, श्वे., (संगत कीजे साधनी), ८२३६८(६) पाटण ऋद्धिवर्णन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (चोसठ हजार नार नवनिधि), ८४७८०-८(-) पानसुपारचुनाकत्थाकलह पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (पान कहै मैं नाजुक), ८१३५४-५ पानी उपयोग की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमइ पढइ), ८५५६२-२०(+#) पारिया विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (इशान भवनपति१ जोतषी२),८३५०३-१ पार्वती स्तोत्र, मा.गु., पद्य, वै., (सुरसांमणि सुरसांमणि), ८४०१३-१(#) पार्श्वजिन अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चित्त धरि गुन ॐकार), ८३८३४-१ पार्श्वजिन अमृतध्वनि-गोडीजी, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (झिगमग झिगमग जेहनी), ८४२८९-२(2) पार्श्वजिन-आदिजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (धूम मचि जिनद्वार चाल), ८३९०७-२ पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ७, पद्य, मप., (आरती करुं श्रीपार्श), ८२८६०-२(2) पार्श्वजिन आरती, श्राव. दुर्गादास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जे पारसनाथा जे पारसन), ८३०५४, ८१३१६-१(2) पार्श्वजिन आरती, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (भव भव आरत टालें हमार), ८४७२९-३(+#) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ८४५९९-३(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु पासजिणंद कमठ), ८३९०९-५(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी श्रीपासजी), ८५००३-४(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (पुरसादाणीय पासनाह), ८१४७९-७(+), ८५१३६-६(+), ८४८१२-५, ८५२७३-६, ८१४२३-५(#) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मप., (सरसत मात मना करी), ८२८४५(+$), ८५५७४(+), ८४५४६, ८२५८३(#S), ८३९८३-३(#$), ८३८८३-३($) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मप., (सरस वचन दियो सरसति), ८१३९२-१(+#), ८५०९७-२(+$),८५०२६-१(#$),८३८५८(5) पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ८३०२०(६) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ८४९२६, ८४९४७-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गवरीपुत्र गणेशवर), ८३५१३-३(2) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सुवचन दे मुझ शारद), ८२३५४(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ८५४९२-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू., (--), ८१६९२-१(+#$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ८४६७६(+#) पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ८१३८८-६(+#), ८४१२०-३, ८३६३५-१(#), ८४५४४-३(4) पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (वारु विश्वमा देस), ८४६४७-१(+s) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास शंखेश्वरा सार), ८५३८१(+), ८५०५४-१(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सेवो पास शंखेश्वरो), ८१५६८-१(+), ८३९१६-२(+), ८१२७४-३, ८५२४६-२, ८५४४८-४ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वदन सुखकारसार), ८२९०५ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (सारदा माता सरस्वति,), ८५४५५-१ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ८४२००-२ पार्श्वजिन ढाल, नानूलाल द्विज, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (दरस सशि निर्मलश्री), ८५५४५-२ For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (माता वामादे बोलावे), ८५४८२ पार्श्वजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (प्रे उठीनइ प्रणमीइं), ८१६८७-२(2) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूप., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ८१८४५(+), ८२६३२(+), ८२६३५-१, ८३०३८-१, ८४९०२, ८५३७२, ८१७७१(#), ८१९७०(#), ८२८३१(२), ८३६३४(#S) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जडसै कटारे डारु नीबु), ८५५२३-१३(+#) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (रे तुं लगजा मनवा), ८५५२३-६(+#) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (तूं मेरै मन में तं), ८१७५८-२(#) पार्श्वजिन पद, आ. कीर्तिसरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मन भजि श्रीजिनपास), ८१२७०-५ (#) पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (होरी के खिलईया हारे), ८१६२५-२(#) पार्श्वजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीनतडी अवधारो हो), ८१६२५-३(#) पार्श्वजिन पद, मु. जैतसी, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (वामाको नंदन नयन आनंद), ८४४१८-२ पार्श्वजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीपासजिन पास वडे), ८२२५९-६(+#) पार्श्वजिन पद, श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहिं., गा.७, पद्य, दि., (काशीदेश बनारस नगरी),८५४७८-२ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरे मन मानी साहिब), ८२९५०-१(+$) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पासजी मे तेरे दरसण), ८४३५४-१(+) पार्श्वजिन पद, मु. विद्याविलास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरी प्रीति लगी वामा), ८२४३५-३(+) पार्श्वजिन पद, श्राव. विनोदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आसरा तुमारा जैसे डुब), ८४०७६-४ पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मप., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ८५२४०-३(+-) पार्श्वजिन पद, मु. सुखसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (तु मेरा मनमै प्रभु), ८४६४६ पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपास दयाल लगा), ८४७५६-४, ८५५५४-१(#) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अद्भुत ध्वनि जिनराज), ८४१८०-३ पार्श्वजिन पद, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (आवौ म्हारा रसीया), ८४४५९-२(5) पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मप., (जय बोलो पासजिनेसर की),८२७०५-१ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (पास जिणंदा मेरी निजर), ८४६९१-१(-) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (प्यारो पार्श्वनाथ), ८२१७८-५ पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (वारी रे मे पास जिणंद), ८३०३०-३ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ८१७०८(६) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मुजरे मानी न लीजै रे), ८४५३६-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. लाधो, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (भिजननाम सोहामनु), ८२३१२-३(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (अंगीया तो सोहे हो),८४५३६-१ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (वारी जाउं रे चिंतामण), ८१३१६-४(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ८५०५१-२(2) पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सहीयां मारे प्रभुजी), ८५५२३-२(+#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (श्रीचिंतामण पासजी), ८१३१५-४ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (सांयां तु भलावे), ८२१५५-२ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (अजब जोत मेरे प्रभु), ८२२५९-२(+#) पार्श्वजिन पारj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (माता वामा देवी झुलाव), ८१७१४(2) पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेस्वरा सरण हुँ), ८५०५४-२(#) पार्श्वजिन बारमासो-गोडीजी, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (सरसत सावण विनउ गुणपत), ८३४७६-१ पार्श्वजिन लावणी, मु. अबीरचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम सुण मन मेरा भज), ८५१७७(+) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५६१ पार्श्वजिन लावणी, पं. गौतमविजय गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर सांभलो), ८४६३७(+) पार्श्वजिन लावणी-कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुहि., गा. १७, पद्य, मपू., (अगडदं अगडदं बाजे), ८४५७८-१ पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ८३८५९(#), ८१३३०-२(5) पार्श्वजिन लावणी-शंखेश्वर, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नमत अमर नरनि कर चरन), ८२६५५-१(+) पार्श्वजिन विज्ञप्तिका, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (० जगत्रय गुरु सर्वा), ८३२२१-१(२) पार्श्वजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहिं., सवै. १, पद्य, मप., (ताल कंसाल मृदंग), ८१५७७-४(+) पार्श्वजिन सवैया-शंखेश्वरमंडन, मु. उदय, मा.गु., सवै. १, पद्य, मप., (आज जिनराज भेट्यो सब), ८४४५४-५(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जीवन माहरा तेवीसम ज), ८४५३६-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमरविमल, मा.गु., गा. ७, वि. १८२०, पद्य, म्पू., (पास जिणेसर सांभलो), ८२६३५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ध्रुवपद रामी हो), ८४८३०-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ईश्वर शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मनमोहनगारा थारा जिन), ८३९५९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (वादल दहदीस उनह्या), ८१३६९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ८२१३६-१(+$), ८३१४७-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. केशरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (जिनजी सरसति सांमनि), ८३०३०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भजले प्रभु), ८१३८५-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), ८२८५३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंगाराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (वामा सुतजीसुं मन), ८४३५४-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, पं. गुणविनय गणि, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (वामानंदन वंदीयइ मन), ८४२५२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुमान, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (आज मांरा पासजीउ चालो), ८२७०२(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अक्षयसद्गुणगण शुभसरण), ८३५०६-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ८३५५०-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ८३१८५-१(+), ८२७३६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोतीडे मेह वुठारे), ८१३८५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (तेविसमो त्रिभुवनपति), ८३०६१(२) पार्श्वजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज मारा पास प्रभुजी), ८५२३०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (वाल्हेसर मुझ क सुणीज), ८४३६९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहीयर टोली भांभर), ८४०५६-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सुरत मुरत मोहनगारि), ८४०८०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुणीयो अरज हमारी मै), ८१३१६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, मूप., (सुगण सोभागी साहब), ८५३७३-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ८४५९९-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८४८२०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुरत ताहरी हो राज), ८३२०५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (नमो नमो नमो श्रीजिन), ८२९०१-९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोटा ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पारस तु तो परतक्षदेव), ८५२२४-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी सांवलवरणो), ८४७०५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजिणंद), ८३०२४-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जीनजि जगवल्लभ जिनराज), ८५४२० पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नविजय शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सकल सकल सुख दाता हो), ८४३८०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबा रे), ८१३८४-३, ८४४०५ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुं जयो तुं जयो तुं), ८३१८०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (वामा राणीये एक जायो), ८२९४२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (खतरा दुर करणा दूर कर), ८४३५४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (पासजी मन मान्यौ), ८४४६७-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हं तो रंज्यौ रंज्यौ), ८४४६७-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सखी संखेसरो मे), ८३०९४-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. वखत शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वामानंदन वालहा हांजी), ८५४६४-११ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा.११, पद्य, मपू., (सकल मुरती श्रीपास), ८३९१६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अश्वसेन सुत सुंदरुं), ८४७०३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (अश्वसेन कुल चंद्रमा), ८५२२९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), ८१४३३-३(+#), ८४६०५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, पू., (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ८१६१९(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. सरूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पासजिन पूजो रे लाल),८२९३४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुबुधविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अलवेसर प्रभु पासजिणे), ८४०१३-४(2) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आज भलइ दिन उगियो), ८५५९४-४($) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (पारस प्रभु ध्यान), ८४१२१-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (पार्श्वजिणंदा हो के), ८२६५४ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (पार्श्वजिनंद प्रभु), ८३०७३-३(-) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं.,मा.गु., पद्य, स्पू., (भवियण श्रीचिंतामण), ८२९३४-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (भवीक जीन भजलो भगवान), ८४२९३-२०(+) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ८१२७३-२(१), ८१२७८(4) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ८१८००, ८४७०९, ८५५२५-१, ८३१८३($) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. ५, गा. ३२, वि. १७१०, पद्य, पू., (अदभुत मूरति इल अचल अ), ८१४३३-१(+#$),८३१४८-३ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, पू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ८५३७५, ८२०७०-१(#$), ८३२६९-२($) पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (अंग सुरंगी अंगीयां), ८४६९१-४(-) पार्श्वजिन स्तवन-किशनगढमंडन, आ. जिनमुक्तिसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १९२२, पद्य, मपू., (करजोडी नित प्रणमु), ८२९८८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनंतविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (दरसण दीज्यो पासजी), ८४१३७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२५, पद्य, मपू., (जिन वदन निवासनी), ८५३५०-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (दरसण दीजै पासजी), ८३२२९-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जस नामे नवनिध ऋद्धि), ८४१४५-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ८१३४२(#), ८५४९५-२(+), ८५५२४-१(+), ८५४९२-२($) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ८१५१३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ८५१२०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (श्रीगवडीपुरमंडण), ८१३०६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्राव. खुसालचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीसरसती सामीने), ८३८८४-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ८४२२१-३($) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ८१४२४-२, ८४२००-३, ८४१४२-२() पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पीया सुंदर मूरति गुण), ८४०५६-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ८५०५६(+), ८४२४९-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ८३०१६-२(+$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मनोहरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जगनायक प्रभु दीपतो), ८४१८७-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ८५२२९-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), ८४७५६-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी पासजी थे), ८३९६१-३(+), ८४११५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सारद नाम सुहामणुं), ८३२६९-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. ९, वि. १८६६, पद्य, मप., (गोडीपासजी सेवीइ रे), ८२८६३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पुहिं., पद्य, मप., (ऊंचे गढ पुर प्रभुजी), ८३१६७-३-६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन सासन जिन अग्रहय), ८३१५८(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (सपखरो बाप जोरा वरखान), ८२७०८(#) पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडननवखंडा, वा. दान, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीनवखंडापास), ८२८५२-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (निलकमलदल सामला रे ला), ८४९७९-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. घासीलालजी, हिं., गा. १०, वि. १९८२, पद्य, स्था., (सब सुख वर्तेजी जिन), ८२८८९-२(८) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. चारित्रकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (ओलगडी अवधार रे तेवीस), ८४०५६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जिनपति अवनासी कासी), ८४५८९ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिंतामण चितमां वस्यो), ८२३१२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ८४४७५(+2), ८२६८८-१, ८३१०४, ८३९१२-२, ८३६३५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (आवंत चिंतामण पारस), ८४९८१-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, म्पू., (श्रीचिंतामणिपासजी), ८१४६९-९(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि जामनगरमंडन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीचिंतामणी पार्श्व), ८४२१०-१ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ८५२६६-२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. मेरु, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वामातणओ नंद पार्श्वन), ८३५५०-४(2) . पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मप., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ८४८४५-२(#$), ८२६६५($) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (महानंदकल्याणवल्ली), ८४२००-१, ८२१४१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-धुलेवा-केसरिया, म. मोहन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (केसरीयो विराजे धुलेव),८५१५२(#) पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९४५, पद्य, मपू., (घनघटा भुवन रंग छाया), ८५२४५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वर), ८१६६४-१(+), ८२९९८-१, ८३९६६-१, ८२१६९-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भविजन भजीये रे), ८१६६४-३(+$) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (परम पुरुष परमेसरु), ८२८७७, ८२९१९-१ पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (सुखकारी हो साहिब), ८४५३५-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पोखणा, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (वेवाण उठ तुं वहेली), ८४९७७-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उठो रे मारा आतमराम), ८३९१४-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ८२८६९(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (फलवर्द्धिमंडण पास), ८४५४१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन- भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वच्छ श्रीकच्छमां), ८५३९५-२ पार्श्वजिन स्तवन- भाभा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (-), ८२६८१-१ " पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु. गा. १२, पद्य, मूपू (जाय छे जाय छे जाय छे), ८२८६४-२(३) पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, मु. प्रेमउदय, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू., (शा माटे साहेब साहमु), ८४७३३-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. ८, वि. १८००, पद्य, मूपू., (पास जिणंदजी री जाउं), ८४३०५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू (सरसति भगवति नमीय पाय), ८४४४९-२(*) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. मुक्तिहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमगसी प्रभू पासजी), ८४२००-४ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., ( चिदानंदघन परमनिरंजन), ८४५७१(+) पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडण, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीलोडण प्रभु पासजी), ८१४३६-१ (+*) पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), ८४१३८-१ पार्श्वजिन स्तवन- वाडी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू (झिरमर वरसेलो मेह), ८३८९४-३ (३) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (वाणारसीमंडण जिणपास), ८३९९५-२ पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन गोडीजी, श्राव. केसरीचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (मनहर पूरव चिहुदिसी), ८३२३३-१ पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध गोडीजी, ग. कनकप्रिय, मा.गु., गा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो जिन तातजी), ८४३१५(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( आप अरुपी होय नय प्रभ), ८१३८९-२(+) पद्य, मूपू., (प्यारा लागो प्रभु), ८५४६४-९ (प्यारी लागे २ प्यारी), ८४०७६-७ " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. गंगाराम, पु,ि गा. ५, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. जयमाणिक्य गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८४४, पद्य, मूपू. (शंखेश्वर प्रभु पासजी), ८२६८२-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ८३२४४-१ (+#), ८४००४-२(+#), ८१३४९, ८४०१४-१५) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (सेवो प्रभु शिव सुखका), ८२६८२-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ८१४३१-३(+#), ८४०९४-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ध्यान धरी प्रभु), ८२६६२-१ " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (भवि तुमे वंदो रे), ८१६६४-२ (१), ८९७५०-२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (भाव भगति आणी निज), ८४४३५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिनें रहिनें रहिनें), ८१५२१-२, ८२९३२-१, ८४२३७-१, ८४९९६, ८५४१३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संखेश्वर वीनती), ८४६१६-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुण सुण श्रीशंखेश्वर ), ८४६१६-२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु, गा. ६, पद्य, म्पू, (जी प्रभु पासजी पासजी) ८२९१९-२, ८५४६४-१० For Private and Personal Use Only " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, मृपू, (संकेसर मंडण पासजि), ८५२१५-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), ८५२१७ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (सहजानंदी शीतल सुख), ८३९२२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, मु. रंगविजय, मा.गु. डा. १९ नं. ३७५ वि. १८४९, पद्य, मूपू.. " (स्वस्ति श्रीदायक ), ८५३८७($) पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूजाविधि मांहे), ८३८५१ पार्श्वजिन स्तवन- समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २ गा. २७, पद्य, म्पू, (श्रीजिनशासन सेो जग), ८५५८०-२(#) पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थं, मु. पद्मविजय, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू समेतशिखर जिन बंदीये), ८३२०६-२(६) י Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५६५ पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८७५, पद्य, म्पू., (जइ पूजो लाल समेतशिखर), ८३०४४-४(2) पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (लल जलती मीली ते घj), ८१४७०-१($) पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (सहसफणा प्रभु पासजी), ८१३२१-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुंरे पास), ८५३४७(+), ८४१४२-१ पार्श्वजिन स्तुति, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दशपुरमंडन सोहे नवफण), ८१७०२-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (--), ८२६८९-१(+$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ८२८५६-२(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ८१७२१-१(-६) पार्श्वजिन स्तुति, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मन मोह्यं माहरु), ८३१७५-२(+) पार्श्वजिन स्तुति, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मदमदन गंजन भीडिभंजनप), ८१३७१-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. सुमतिसौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (पासजिनेसर प्रभु परमे), ८२७१८(#) पार्श्वजिन स्तुति-आगरामंडण, मु. तेजह शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (प्रभु आगरामंडण पास), ८३८३५-३(+#) पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (पास जीरावलो पुजी), ८४७७१ पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करूं), ८३१३९ पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुर, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भीलडी मुख मंडण सोहे), ८१७२१-२(-) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), ८३५१४-२(2) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ८१९८४-१, ८२९०४-१, ८३७८५-१(#) पालामान विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप लाख जोजन), ८४८५५-२(+$) पासक्षमणदिन स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (भाद्रवइमासी बहुल), ८४३४४-६(5) पीठमहापीठ कथा-मत्सर परिहारे, मा.गु., प+ग., मूपू., (हवें मत्सर धरी अंते), ८५५९३-२(2) पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक दिन पुंडरीक गणधरु), ८५४६०-२ पुंडरीककंडरीक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १००, पद्य, श्वे., (कंडरिक ऋद्धि तजी), ८१७७३(+) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ८२९००(+$), ८४३५०(+), ८२१६८(#$), ८४०९९(#S), ८५६११(#s), ८१५८०(s), ८१६१५-१(६), ८२६७८(६), ८४२०१(६), ८५०३४(६) पुण्य महिमा, नंदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (पुरुषोत्त प्रगट्या), ८२८८७-२ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), ८१२८२-२(+#) पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार, पुहिं., गद्य, मपू., (यह जीव आठ प्रकार से), ८३८९९(+) पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मपू., (अविनासी अविकार जिन), ८२७००(+) पुस्तकारूढ ग्रंथ समय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिसर मोख पोता पछै), ८३८७०-३(#) पूष्प दूहा, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., वै., इतर, (मधुर शीतलबास गुलाबकी), ८३६३५-३(2) पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा), ८२६३३(६) पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीयइ), ८१४१३(+), ८५०३३ प्रतिक्रमण योगादि क्रिया मध्ये बिलाडी छींक निवारण विधि आदि विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (--), ८३२३३-३($) प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकित तो सरदहण रूप), ८२६४५(१), ८१४४५(६) प्रतिमा विक्रय गुप्त पत्र, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ८३१९६-६(+$) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (धुरि समरुं सामिणी), ८४१४०(+) प्रदेशीराजा केशीगणधरसंबंध चौपाई, मु. रतन, मा.गु., गा. ९३, पद्य, श्वे., (प्रदेसीराजाने चीत), ८३०५३-१(5) प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (हाथ जोडी करै वीनती), ८४४४८-१ प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८७७, पद्य, स्था., (तिण कालनै तिण समै), ८१७२६(#S) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ४४, वि. १७४३, पद्य, स्था., (--), ८४८९५-१($) प्रदेशीराजा सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, श्वे., (जैसे लोहने पारस मीलै), ८३९८७-१ प्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (त्रेवीसमो तित्थेसर), ८१८८३(+) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू (गिरि वैतायने उपरे), ८५५५३(३) प्रभाती पद-भैरव राग, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., ( वीतराग नाम समर अष्ट), ८४१६४-२(+) प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरूराज), ८४८१०-१ प्रभु पोंखणा स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीरे इंद्राणी पूछे व), ८४९७७-१(#) प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यकग्यान किसे कहते), ८१३८१-६ (#) प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु. प्रश्न. ६५, गद्य, म्पू. (हवै प्रश्नोत्तर रत्न), ८४८३७-१(+) प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, से., (अध्यवसाय भला पाडु वा), ८५०६९-४ प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू., (नवकार मांहि पहिला पद), ८३८७२(+), ८४१४४(+), ८४७६९(+#) प्रसनचंद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपु. ( पोतनपूर नगर तिहां), ८१५११-३(३) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (प्रणमुं तुमारा पाय), ८५२४८-२ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारगमां मुनिवर मल्यो), ८१६९०-१ प्रहेलिका दुहा नारी वर्णन, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर (बार सरोवर हंस नव), ८१६९२-२(+०) प्रहेलिका दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (अहिफण कमल चक्र टणकार), ८३२२२-३ प्रहेलिका संग्रह, क. गद्द, मा.गु., गा. ४, पद्य, इतर (नवगुण लकड़ीयां भार वह), ८५१२७-२ प्रहेलिका संग्रह, पुहिं. दोहा. ४, पद्य, वे (पवन को करें तोल गगन), ८४१८७-३(००) ८९४४९-२, ८२८०५-२, ८४४६४-१ प्रहेलिका हरियाली, पुहि. मा.गु., गा. २, पद्य, इतर (पांना भोजन जे करे फल), ८१४११-३(+#) "" प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं. मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. वै. (अरहरे कृपण पंचमांहि), ८२७०६-५(४ प्रास्ताविक कवित्त, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (आई जरा अध्याह सेठ), ८२३२९-३(#) प्रास्ताविक कवित्त, हमीर, पुहिं. गा. १, पद्य, वै., इतर ? (किसी वांजने बडब किसी), ८३८५२-३ " " प्रास्ताविक कवित्त, पुहिं., पद्य, इतर, (खरी वात भोजन की ), ८३८५२-२ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं. गा. २५, पद्य, इतर (प्रीतिकाज छंडिजै), ८४३४६-२(*), ८५५२३-२२(+), ८४३८८-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रास्ताविक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, इतर, (सावन की घनघोर घटा उह), ८४४८५-५ (+$), ८५४४७-४, ८३५०६-३(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (एक गोरी दुजी सांमलि), ८३५१३-२(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं. मा. गु., दोहा. ७१, पद्य, वे, इतर (पंडिवन्नइ माछा भला), ८३३२८ (४) ८४३३३-२, ८२८७८-३(क) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर ?, (प्रीतो करि पाछा खस्य), ८५२४२-२, ८३२५०-५(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह * पुहिं, मा.गु. रा. गा. २५, पद्य, वै., इतर (बुरी प्रीत भमर की), ८१८२६-३, ८२९९३-२(क), ८५४४२-३(#) 3 प्रास्ताविक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., इतर, (धोला तो सव कुछ भला), ८४४६६-५(+#) प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., इतर, (सखी आज वदन कमलाय कहो), ८२१७९-४(#) प्रास्ताविक सवैया, पृथ्वीराज कवि, पुहिं., पद. २, पद्य, वै. (एक समे अलबेली चली), ८३२३२-२ " प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ८४००० (+$), ८२६९६ ($), ८३९१७ ($) प्रियविरह छंद, पुहिं. गा. २, पद्य, वै., इतर (मान मान दिलजान होवा), ८१३५४-६ प्रिय विरह पद, मु. मानसिंह कवि, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., इतर, (वेर के वेर मिलाप), ८२९०८-२(#) प्रियविरह पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, वै., इतर (सुंदर पटका गैह रही), ८४४६६-२(क) " प्रियसंदेशा तेरमासा, मा.गु., अ. १३, पद्य, वे (--), ८२७११-१(३) "" प्रेमभक्तिलेख दोहा-चकवाचकवीउपमागर्भित, पुहिं., दोहा. १६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजगदीस), ८५२०७(#) फकीरचंदमुनि चरित्र, श्राव सदाकुंवर, पुहिं. गा. १२, वि. १९३३, पद्य, मूपू (जंबूदीपरा वरतखेत्र), ८५५२८-३(*) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५६७ फुलअंगुछो पद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (कोइ लाधो होवे तो), ८४२९३-१(+) बंदी थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ८१८२५(-$) बरासपूजा दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीतल गुण जेहमां रह्य), ८४२५३-२ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ८५११४-१(६) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बलदेव महामुनि तप तपइ), ८५५७६-६(+) बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसर्या), ८२५५५-२(#5) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (राम रीषीसवर वंदीय जी), ८१५५९-३ बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (मन मान्यो तंगियापुर), ८५४४७-१ बलेवदिन स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भरतचक्री मास श्रावण), ८४३४४-५ बार राशिफल, मा.गु., गद्य, इतर, (--), ८२८६६-२($) बावनवीर छंद, मु. जसराज, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (गुघरा घमकपाय बावन), ८१३५४-३ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ८३०१५-२(+) बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), ८३०३६-१, ८४२६१(-) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ८१८१०-३(+), ८३०४४-५(#) बाहुबली सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ६०, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा भणी), ८५४२५-१ बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुविध धर्म आराधवा), ८२८७४-२(#) बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (बीज रीझ करी सींचीए), ८५५४९-३ बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बीज तणे दिन दाखवू), ८१४६६-२, ८१५२३, ८५६०१-२(#) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ८१३३२-२(+), ८४६०९-१(+), ८४७३८(+), ८४६८६-२(#), ८४८६७-१(#), ८५४५८-१(-) बीजतिथि स्तवन, उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८७१, पद्य, मपू., (सरसति माता नमी करी), ८१२६६-२(5) बीजतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (जिनपति त्रीसनानंदन), ८५१४१, ८५१९८ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (बीज जिनधर्मनुं बीज), ८४५९४-२ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (दिन सकल मनोहर बीज), ८१५२७-२, ८२९२१-२, ८३३००-१, ८४०६६-१, ८१४५३-३(-) बीमारी लक्षण पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., इतर, (कर अंगुष्टसु मुल), ८५२११-१(+) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ८४२४२, ८४९५३-१, ८४७२४(#) बुढापा रास, मु. चंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीनवु), ८३२६४(+$) बुढ़ापा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (बूढापण कांइ आवीउ),८३१५२-१ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ८३९९३(+), ८१३३३-१, ८१८६५-१, ८५२५२, ८४२००-५(६) बुध रास, पुहिं., गा. २२, पद्य, श्वे., (करता कि गत अगम है), ८५१४९-१(-) बोल यंत्र-कुलकोडी, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८१५६२(#$) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीय ३०), ८१६०७(+),८१६३५(+),८१७२३(+), ८१४९३, ८१५६६, ८१७०५, ८१५६५-५(#), ८१५९७-२(#) बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएसु पंचसु बार), ८३२३६(+) बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेले बोले समुद्रमा), ८१६४५-१(#) बौद्ध व जैनधर्म विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (--), ८३१८६(#$) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ब्रह्मचर्यबावनी, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (सरसति अमृत वसति मुखि), ८३८६१(६) ब्राह्मीसंदरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (रिखभ राजा रे राणी),८५६०४-२ भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (माखण सहत पीव ग्रसत), ८२८१४(+) भगवतीसूत्र वाचनाप्रसंग पत्र, मा.गु., दोहा. २३, वि. १९१९, पद्य, मूप., (स्वस्तिश्रीगुणयुत), ८४४६१(+#) भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), ८५४७८-८ भरतचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे धरम अपरलोकने), ८१५११-२ भरतबाहुबलि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (संपत करण सदा सरस्वती), ८१४५९(#5) भरतबाहुबली छंद, मु. वादीचंद, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (छंदं भरथेस्वर बाहुबल), ८४८५६-१(#) भरतबाहबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ८३९४४-१ भरतबाहबली सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७२५, पद्य, मप., (भरतेसर एम वीनवे रे भ), ८४६२० भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ८१४६७-१, ८१९२५-२(१), ८२६५३(#) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ८५४०५(+), ८१७२८-१, ८४०१८-२, ८४०७०, ८४१२६-२, ८४४६४-२, ८४१८१-२(#), ८४२८९-१(#) भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (परम पुरुष धरा जुगल), ८४३४५ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ८५३८५ भले विवरण-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. जगराम, मा.गु., वि. १८३९, गद्य, पू., (प्रभु नेशाले बैठा), ८३४३०-१(+$), ८४४३७-१ ।। भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (भवदेव भाई घरे आवीयो),८४७०७(+), ८५५४९-१ भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (सकति सदा सानिधि करो), ८५१५१(#$) भारमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (षट सरसवे एक जव थाय), ८४४०८-५(+) भावपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (भावपचीसी जोरु भारी), ८२११९-१ भाषाभेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (केवली असावद्य अपरो), ८१६४५-२(२) भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (सत्य विवहार भाषा),८४५२२ भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सरस्वती स्वामीने), ८५०७७(+#), ८५१९१ भीलडी सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (सरसति सामण विनवू), ८२६७५-४($) भुजंगजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (पुष्कलावइ विजये हो), ८४१३०-४(६) भुजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भुजंगदेव भावे भजो), ८१७८९-३(#) भुजंगजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आय भुजंग प्रभु सेवीय), ८३२२३-३(s) भूयस्कारखंध अल्पत्तरबंध अवस्थितबंध लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपशांत मोहादिक तीन), ८४८३५(+) भैरवदेव छंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (गाजे गागदा गिगन गोम), ८१४०३-२ भैरवदेव छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (चरण आय चितवन करे), ८३८८३-१ भैरवदेव पद-रतनपुरीमंडन, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै.?, (रतनपुरी मंडण भैरूजी), ८५३४३(+) भैरवदेव विलास, मा.गु., पद्य, श्वे., (मुरड दयंता मारणो उरड), ८३८८३-२(5) भैरवदेव स्तुति, मु. सदाराम, रा., पद्य, मूपू., (--), ८१३५४-१(६) भैरवदेव स्तुति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (सिंदर की खोल कीये), ८१३५४-२ भैरवीमाता छंद, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. २४, पद्य, पू., वै., (सांभलि माता संकरी), ८२०१४(+#) भैरुजी गीत, मु. मूलचंद, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो अनाद सिध भैरवौ), ८५५५४-९(#) भोजराज डोकरी कथा, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (गोहुं का खेत की एकरी), ८२७०३-२(2) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० मंगल स्तवन-द्वितीय मंगल, ऋ. जयमल्ल, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (दुजो मंगल शुद्धमन), ८१९५९-१(+) मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लीली बलकी तुंबडी),८३४१६-२ मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३६०, वि. १५३७, पद्य, मूपू., (श्रीजिणचउवीसइ नमी), ८३३८३(#$) मदनरेखासती रास, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ५८, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (जुहा मांस दारु तणा क), ८२६४४-१ मदनरेखासती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (नयर सुदर्शन मणिरथ), ८३८९२-३(+) मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ८१२९२(+), ८२०१७(+), ८२८५९ १(+#$), ८१२७७, ८१२८४-१, ८१६९८-२(#), ८३१३१ (२) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (नमो रे नमो मनक), ८४२५६-२(#) मनगुणतीसीजकडी सज्झाय, मु. मल्लिदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (नित नही जगमई जीवना), ८४४८४-२(#) मनगुणतीसी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवडा म मेले रे ए), ८४०७८(+), ८४४८४-१() मनभमरा भ्रांति पद, श्राव. सांकलचंद, मा.गु., गा. ४, वि. २०वी, पद्य, श्वे., (अरे जीव भमरा भूल्यो), ८४९३०-३ मनुष्य कुलक्षणसुलक्षण पद, मु. केसवदास, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (कृपण मरंतो कोय लछेसू), ८४३७३-२ मनोरमासती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (मोहनगारी मनोरमा शेठ),८३८९२-२(+) मयणासुंदरीसती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (सरस्वती माता मया करो), ८२०६७, ८५४८७ मरण प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अध्यवसाय मरण१ आहार), ८५०५०-३(+$) मरुदेवीमाता चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४६, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (माताजी मरुदेवा रे), ८४५९० मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तुझ साथे नहीं बोलु), ८५४११-२ मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (एक दिन मरुदेवी आइ), ८४८७५(+), ८५१४०(2) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (दीख्यारा दिनथी न), ८१५१६ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), ८१५५१-२(+), ८३१६६(+), ८३००१-२ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक दिन मरुदेवी माता), ८१३४१-२ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता रे एम), ८४५९५-३(5) मरुदेवीमाता सज्झाय, उपा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तुज साथे नहि बोलुं ऋ),८४६०६-२(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (मरुदेवी माता कहे), ८५२३८ मल्लिजिन चरित्र, पुहिं., पद्य, मूपू., (--), ८२८७३, ८२८८७-१ मल्लिजिन पद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (करले श्रीमल्लिजी का), ८१६२१-१(-2) मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मल्लीजिणंद प्रभुस्यु), ८२९०८-४(#) मल्लिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (मल्लि जिनेसर वंदीये), ८१३८९-३(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), ८१३८९-१३(+#$), ८५३२१-२(+) मल्लिजिन स्तवन, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (मल्लिजिन लाग्यु), ८४४२५(#) मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुज मुज रीझनी रिंझ), ८५१९५-५(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंचम सूरलोकना वासी), ८३८५४-१ मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मिथिला नयरी मझारी), ८१५७५-१ मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (मेरु तणी परिंधीर वीर), ८१५७५-२(६) मल्लिजिन स्तवन-भोयणीतीर्थमंडन, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (जिनराजा ताजा मल्लि), ८४७२०-१(+) मल्लिजिन स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मल्लि जिनवरस्यु), ८२९१२-२ मल्लिजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंभ नरेश्वर घर जिन), ८२९१२-३() महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नानपूर्वक नवो वेष), ८५२३४ महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (ढाल कोयल प्रवत), ८५२८०-१(-) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन कलश, मु. देवचंद्र, मा.ग., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मप., (चोवीशे जिन गुण गाइये), ८३१०९-२($) महावीरजिन गहुँली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर समोसर्या), ८५०३८-१२ महावीरजिन गहंली, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (नव कनक कमल पगला धरता), ८४७८३-३ महावीरजिन गहुँली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो सखि वंदनने जइये), ८४३०४-२ महावीरजिन गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सैयर जगगुरु वंदन), ८५५१७-१ महावीरजिन गहुंली, ग. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नव कनक कमल पगला धरता), ८२०८६-५ महावीरजिन गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखी वीरजिणंद आमल कलप), ८२०८६-४ महावीरजिन गहुंली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहिनी अपापानयरी), ८१२८१(+), ८२६७५-३($) महावीरजिन गहुंली, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अरिहंत आ आ रे चंपा), ८३३४६-१ महावीरजिन गहुंली-प्रथमदेशनागर्भित, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (गुणशिलवनमा देशना),८५६१७-२ महावीरजिन गुणवर्णन, रा., गद्य, मूपू., (हवे इहां कुणजे जाणवा), ८२९३९ महावीरजिनचातुर्मास विवरण, मा.ग., गद्य, श्वे., (पहेलो चौमासो मारवाड), ८१३६८-४ महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (वंदु जगदाधार सार सिव), ८१४७९-२(+), ८५२७३-७, ८१४२३-६(#), ८४८१२-६($) महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, पू., (सासननायक समरीइं), ८५००३-५(#) महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (परमानंद विलास भास), ८५१८९-१, ८५१९२-१ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (चरम चोमासु वीरजी पा), ८५०६४-६ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (त्रीश वरस केवलि पणे), ८५०६४-३ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुणी निर्वाण गौतमगुर), ८४३५९-४(+), ८५०६४-४ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. यशविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), ८५४५७-३ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ८४७४४-१(+), ८४०८२, ८५४७८-१२() महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (--), ८१३९५(#$) महावीरजिन चौढालीया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., ढा. ४, ग्रं. ८२, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (सासणनायक सुरतरु), ८३८७३-१(+#), ८५१८७ महावीरजिन छंद, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (चोविसमा महावीर शुरवी), ८१३३३-३ महावीरजिन छंद-खंभातमंडन, मु. वीर मुनि, मा.गु., गा. ११, वि. १८१०, पद्य, मपू., (महा मंगलीक भजो आप), ८२७१७ महावीरजिन जन्ममहोत्सव चौढालिया, श्राव. चमनकुमार, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जनम हुवा महावीरनो), ८१३५२-२(2) महावीरजिन जन्मोत्सव, मु. लींबो, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (ढोल ददामां दडदडी वाज), ८५६१३-२ महावीरजिन टपो-आध्यात्मिक, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (भयो बसंत मेरे० जिन), ८३९०७-४ महावीरजिन तपप्रमाण विचार, रा., गद्य, मपू., (६मासी १ ति केरा मास६), ८१३६८-५ महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (वंद वीरजिणंद महियल), ८३९०९-६(+#) महावीरजिन निर्वाण विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीगौतम महासौभाग्य), ८५३५६ महावीरजिन नीसाणी, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति मन ध्यांउ मोजा), ८४९८४(#) महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १२, गा. ७९, वि. १७वी, पद्य, मपू., (सरसती भगवती दीउ मति), ८३१९७(+), ८४६७३-१(+) महावीरजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर पछै एकसो), ८१३३९ महावीरजिन पद, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सरसती पाय प्रणमी), ८२६०४-१(2) महावीरजिन पद, केशवलाल शिवराम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जरी सामे जोवोनी), ८४९३०-२ For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० महावीरजिन पद, मु. गुलाब, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (नित नाम नाम नमो नमो), ८२९५०-२(+) महावीरजिन पद, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (म्हारो मन लाग रयो), ८१३१६-६(2) महावीरजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (मारे भलो रे उगो), ८२६८२-३ महावीरजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पावापुरजी के घाट बजर), ८३०३६-२ महावीरजिन पद, श्राव. सांकलचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जरी सामु जुओने महाव), ८४९३०-१ महावीरजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (सब दुख टालोगे महावीर), ८४६९१-२(-) महावीरजिन पद, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (त्रिभुवनराया चोवीसमा), ८४७१९(+) महावीरजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पावापुर महावीररी सखि), ८२१७८-१३ महावीरजिन पद-गंधारमंडन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधार बदीर सकल सुंदर), ८५१७५-१ महावीरजिन पद-पावापुरी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पावापुर नगरी भली), ८४५०५(#) महावीरजिन पद-होरी, मु.रूप, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (होरी मची जिनद्वार), ८२७३४-४(+) महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (माता त्रिशलाए पुत्र), ८४७०६(+$), ८३५३१(२) महावीरजिन भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सहीयर म्हारी अरिहंत), ८२०८६-२ महावीरजिन सज्झाय, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अब मोह तारलो महावीर), ८३२७१-३(2) महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनवर नमुं), ८३९२९(#$) महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., गा. ९०, पद्य, श्वे., (--), ८३५१६($) महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ कुल उपना), ८१६२३-१(+) महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधार ज हुँतो रे एक), ८३८६३, ८५५३७ महावीरजिन सज्झाय-भाविभाव, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (वीधाता नाथ एसी क्यो), ८१७४५-७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. अबीरचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (राणी त्रिशलाने देखा), ८५१५७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं मन मान्यो वीरजी), ८२८७८-१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (वीर सुणो मारि वीनति), ८३७२७-३(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७९०, पद्य, मप., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ८४२२१-२, ८४८१०-२ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, भूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ८४६०५-३(#$) महावीरजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मप., (--), ८१७४४-१(#S) महावीरजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अमे वेवारीआ वीर नाम), ८२४३५-२(+) महावीरजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सुखाकर वयण), ८४५३०-१(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, पुहि., गा.५, पद्य, मप., (सो प्रभु मेरे वीर), ८५०१७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. गुणचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (हु तो सरसतीने), ८३३२७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. जयराम, मा.गु., गा. १३, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (सरसति माता हो अविरल), ८३१०१ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (संदेसो देजो रे कहेजो), ८५२१२-३(+) महावीरजिन स्तवन, आ. जिनसुखसूरि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (कीजै कीजै कीजै सुनिज), ८४०८०-३ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनमंदिर जयकार), ८१४२१-२ महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मपू., (हवे इंद्र आदेसे धनदत), ८१४२८(#) महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सासणनायक वीरजिणंद), ८४००४-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. दास, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वरधमानजिन सांभलो मुझ), ८५३२४-३ महावीरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तार हो तार प्रभु मुज), ८५०४७-१(+$), ८३१०९-१ महावीरजिन स्तवन, मु. नंदलाल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बेदर्बदेस महिमंडल), ८२०३८(+) महावीरजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ज्ञान उज्ज्वल दिवा), ८५०६४-५ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा.१५, पद्य, मप., (नणदल हे के नणदल),८२५५५-१(2) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " महावीरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, ओ., (महावीर वेगे आवणा रे), ८३२२५-३ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पंचविशमे आवी उपजे), ८१७८५-२(१) महावीरजिन स्तवन, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (नवलवतां तेरी आ छब), ८४५३५-१(१०) महावीरजिन स्तवन, मु. मनोहरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी म्हारा आज), ८२७०५-५ महावीर जिन स्तवन, मु.मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, ध्यानधरो परभूनो), ८२९०१-३(१) महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (मारा प्रभुजी मुजने), ८५३९५-१ महावीरजिन स्तवन, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु.. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( गिरुआ रे गुण तुम), ८४०२६-५१) ८२५६१-१, ८४८५४-३ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ८३२९८-२, ८४३०४-१, ८४५७२-१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सासननायक वीरजिणंद), ८१९८७-२, ८३२९४-१($) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, ओ., (सिद्धारथ कुलदीपक चंद), ८५४७८-४, ८३०६५(४), ८४६८१(०) ८१५४२-२(४) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मने ते दिननो विसवास), ८२३८५-३ (+) , महावीरजिन स्तवन, मु. लखमण, मा.गु. गा. ९७, वि. १५२१, पद्य, वे (पहिलो धुरि समरु), ८२७११-१ (+) महावीरजिन स्तवन, लछमन, रा. गा. ७, पद्य, छे., (महावीर प्रभु था वाणी), ८३२९४-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमसनेही माहरो गुणनो), ८५४६४-६ महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद सासण धणी), ८३२८१-१(+), ८४१६९-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (सिद्धारथ रायकुल तिलो), ८४७४०-१(२) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माताजी तुमे धन धन रे), ८४९२९ महावीर जिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपु (प्रभू शिवपद मेल पधार), ८५२१२-२(+) ו महावीरजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (--), ८१४२५-१(+$) महावीरजिन स्तवन, सोहनलाल ब्राह्मण, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., वै., (सिमर नर महाबीर भगवान), ८३२९३-४($) महावीरजिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु., (मोहन त्रिशलानंद चडा), ८४४८२-४ महावीर जिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सासणभुषण सामी सधीर). ८२७२२(७) " महावीर जिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे., (चलो दरसन चलीये), ८५४७८-५ (३) महावीरजिन स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., ( चाल आवेधपुरी गुन), ८३१६७-२८-१ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (जिनवरजीनी बलिहारी), ८३२८२ (क) , महावीरजिन स्तवन रा. गा. ६, पद्य, ओ., (महावीर धारी वानी), ८१३१७-२० " महावीरजिन स्तवन, रा., गा. १०, पद्य, श्वे. (श्रीमाहावीर प्रभु), ८३२९४-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मृपू, (सिद्धारधकुल उपना), ८२६५९ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ८४१९५(5) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ८४५९७($) महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित रा. गा. १७, पद्य, वे. (तीसलादेजीने सुपना), ८२६२७-१८) महावीर जिन स्तवन- २४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., डा. ६, गा. ८९, पद्य, मूपू (प्रणमी सरसति भगवती), ८४५६८-१(३) , महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ८४५८४ महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू (श्रीशुभविजय सुगुरू), ८४६७८(+) महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., डा. १०. गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ८२६८०(३), ८५४७४(5) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५७३ महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ८१५८६($) महावीरजिन स्तवन-आमलकी क्रीडा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला नंद), ८४९०३ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ८५३९१(+), ८४४४१-४,८३९७३($) महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवीने चरण), ८१३७७(2) महावीरजिन स्तवन-चूडा, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तारा मुखडां उपर जाउं), ८४६७०(-) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ८५२७६, ८४२४८() महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मा.गु., पद्य, मूपू., (हां रे सुधर्मा पति), ८३४३०-२(+$) महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (वीर सुणो मुज विनती), ८१७९९(+), ८४१८७-१(+#), ८४३८७-१(+), ८३९९५-१, ८४३५८-२, ८१७८९-१(#) महावीरजिन स्तवन-तप, सेवक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनराय भावटभ), ८२५९८ महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ८२८५९-२(+#) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे), ८५६०८-२(+), ८५१५९-४, ८५३५१-२, ८१४२३-७(#) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व गर्भित, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. १५, ई. १९वी, पद्य, म्पू., (सरस्वतिस्वामिने विनव), ८५५७२-१(+),८५१९३ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), ८५२६२८) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ८३९४६(+#$), ८४६४५-१(+), ८४६७२(+#s), ८४९५१(+#), ८४५६२ ।। महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ८१२७२(+#), ८४४४७(+), ८५०९७-१(+), ८३४७३, ८३९३४, ८४०८३, ८५४७८-९ महावीरजिन स्तवन-पावापरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पावापुरी मुकरा), ८१६७७-३, ८५५५४-४(#) महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८४८, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर सांभल), ८४१३१ महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., गा.८, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (श्रीवीरचरणकज भेट्या), ८३०४५ महावीरजिन स्तवन-पूजाविधि दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (प्रणमी वीर जिणेसर), ८४०३७(+) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ८१३४४, ८४४४९-१(#$), ८४३६९-४($) महावीरजिन स्तवन-विनती, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (सरसति रे प्रणमी करी),८५६२०-१(+) महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), ८४०१०, ८३०९४-६(2) महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (आरजदेसमां आरजदेस मगध), ८३९०६($) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ८४४४१-३ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ८४४४१-२ महावीरजिन स्तुति, फकीरा, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सब मिलकर मुख से बोलो), ८३५०४-३ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (बालपणे डाबो पाय), ८५५६२-५(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (वीर की दुहाई भाई जो), ८४५३०-४ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनवर), ८४६५९ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारे श्रीवीरजिणंद), ८५५९६-१ महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं, डा. ३, गा. ६८, पद्य, म्पू, (नंदनकुं त्रिशला), ८१७७२(३) महावीरजिन हालरडुं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ८४९२२-१ महावीरजिन होरी, मु. विबुधविमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुद्ध रूची के साथ), ८२७३४-३(+) महासती सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे. (गीसती के घर साधने), ८५३६१-२(+$) " मांकण सज्झाब, मु. भवसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (मांकणनो चटको दोहि), ८३८७७-४ माणिभद्रवीर आरती, मु. दीपविजय, मा.गु. गा. ७. वि. १८६५, पद्य, मूपू (जय जय जय जय जगनिधि), ८४९३५-२, ८२८६०-१(क) " माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ८५२२६ (+#), ८२३४९-२ माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा. गु, गा. ४३, पद्य, मूपू (सरसति सामनि पाय), ८३९९७-१ (*) माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, म्पू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ८२५५३-१ (AS) माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( श्रीमाणिभद्र सदा), ८३९९७-३०) ८१४२६, ८१४८७, ८२७२१(७), ८१४५३-२८) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ८२११२-३(+), ८४५५५-१ माणिभद्रवीर पद, मु. नेमकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (भवि तुमे भेटो माणिभद), ८३८६०-२ , मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ८१७३४($), ८५५२९($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), ८४३०७(+) मान परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ८३६०३-१($) मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु., प+ग, मूपु., इत्तर (अजुआले पखी पूर्णा), ८३८०१(+) माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (इण जुगमें माया), ८४८५४-२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवण जावण पेला गुणठाण), ८४६४९ (+$) मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यंत्र, मा.गु., पं., म्पू., (--), ८१७३३ मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (न्यायथी धन कमाववुं १), ८५२९४ (+) मासक्षमणदिन स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय श्रावण पंचमी), ८४३४४-४ मासदशादि ज्योतिषकाव्य संग्रह, मा.गु.. गा. २५, पद्य, वै., इतर (सूर्यदशा दिन बीस चंद), ८२०५६-२(४) मिथ्यात्व २५ भेद विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (अधमेधम सभा सिद्धांते), ८४४४२-२(+#) मिथ्यादृष्टि वृतांत, पुहिं. पद्य थे. (वेसी मिथ्यासुत वाणी), ८४०२४-२ (३) 2 मुक्तछत्तीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मनुष जनम उत्तम पायो), ८१६२२(#) मुक्तागिरि निसाणी, क. लाल, मा.गु., पद्य, ओ., (सारव सुखकरणी अविनिजघ), ८४४४३ मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं. गा. २० वि. १९२८, पद्य, वे तीर्थंकर महावीर ), ८२१३७-२००७) 1 "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिगुण गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( मुनिसर समतारस संगी), ८२०८६-६ मुनिगुण सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. ( तप करता मुनि राजीया), ८१२८४-२ मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य), ८४९९९-१, ८४६८४-२(#) मुनिगुण सवैया, रा. गा. ३६, पद्य, खे, (पाप पंथ परहर मोख पंथ), ८३६७०(३) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ८१२८६(#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (मुनिसुव्रतजिन वांदता), ८५१९५-३(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतशुं मोहनी), ८५५९४-१(३) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु, गा. १०, पद्य, म्पू, (एने आसाढ उओजी त्रिभो), ८४८८२ मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, मूपु., (सूत्र अर्ध तत्त्व). ८३९१९-३ मुहपत्ति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू (सूत्र अर्थ साचो सद), ८३१३८-२(*), ८२७१९-२ सद्द), For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५७५ मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ८१७६३-१(६) मुहपत्ति सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मांडवमंडण युगदीनंद), ८५११४-३($) मुहुर्तमान विचार, रा., गद्य, श्वे., (आंखमे सली फेरवीजे), ८१६२७-२ मूरख सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (मुरखो गाडी देखी मलका), ८४६३० मूर्ख के १०० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (छते सामर्थ्य उद्यम), ८५२८६-३(+-$) मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), ८२६३६(#$) मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंतकू), ८४३६४-१(६) मृगापुत्र चौढालिया, मा.गु., पद्य, श्वे., (वीर वंदु वीतरागने), ८१४६१(६) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कानजी ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (पुर सुग्रीव सुहामणो), ८४२५९-१(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूप., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ८१३३१(#), ८३१११, ८४५१७ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ८४९५७-१, ८१४८१-१(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सूगरीव नयरी सोहामणी), ८४७३३-५(+) मृगापुत्र सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुग्रीनयरी सोहामणीजी), ८४८०१ मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (कहे जेवती भोजाइ), ८३३४५-२(2) मृगावतीसती कथा-छठा अछेरा, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, श्वे., (कोशंबी नामे नगरि), ८४५०० मृत्यु सबंधी सूतक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जेने घरे जन्म तथा), ८३७६३-१(+) मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), ८५२७५ (#) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ८४०८७-१ मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्पू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८४४२३-३(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ५२, पद्य, मूप., (समरी सारद स्वामिनी), ८१५५३ मेघकुमार सज्झाय, मु. नयसिंह शिष्य, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मपू., (--), ८१५१७-१(5) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्पू., (वीरजिणंद समोसर्या), ८१५४३(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ८१७८६-१, ८२५८५-१, ८४०८८-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघकु), ८४९९०-२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८१८२१-१, ८३०९४-१(4) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (चारित्र लइ चित्त),८५१२७-१ मेघकुमार सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (मातासु अरजी करे उभा), ८१७४५-१४(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सेणकरायनो दिकरो रे),८३१४२-१२ मेघरथराजा सज्झाय, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (दशमे भवे श्रीशांतिना),८४५८७(#) मेघरथराजा सज्झाय-दया विषये, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीमेघरथराजा राख्यो),८५४८९-२ मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, मपू., (दशमे भवे श्रीशांतिजी), ८५००५-१(+),८४७३५ मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मप., (दया बरोबर धर्म नहीं), ८४८६४-१(+) मेतारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक राजा तणौ रे), ८४२८३ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (धन धन मेतारज मुनि), ८४९४६-३($) मेतार्यमुनि सज्झाय, ऋ. मनरुपजी, मा.गु., गा. ९, वि. १९१२, पद्य, श्वे., (मेतारज वंदु पाप), ८१५४९-२(+#) मेतार्यमुनि सज्झाय, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुमती गुपतीना आगरु), ८४८९४-२ मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (समदम गुणना आगरु जी), ८३२१९, ८४५६४, ८४७८७, ८२९७७(5) मेरुत्रयोदशी स्तवन-लघु, मु. भूपविजय शिष्य, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १८९३, पद्य, मपू., (श्रीसरस्वति प्रणमी), ८४८७२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मेह अमृतध्वनि, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जल थल महियल करि जलद), ८३८३४-२ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर; मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ८४५३८-१(+) मोटा पखवासानो गुणनो-१ से १६ तिथि तप, मा.गु., गद्य, श्वे., (कुंथुनाथ पारंगताउ), ८५२९८ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा.१०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ८१३०७(#$) मोतीराम गुरुगुणवर्णन सज्झाय, मु. मोतीराम शिष्य, मा.गु., गा. ७०, पद्य, श्वे., (शासनपति वर्धमानजी), ८२६९७(+#$) मौनएकादशीतप विधि, पुहि.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही तस्सु), ८४९८९-१ मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपने विषे), ८२५५४-१(#) मौनएकादशीपर्व गुणनफल दहा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (मृगसर सुद एकादशी वरस), ८५३०२-२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ८३३८१-३(+#S), ८३७६२-२(+5), ८४८८५(+), ८५३०३(+), ८४७१०, ८१७७९(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ८५४८८ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (भविकजन छंडीये विषय), ८४६८६-३(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, पू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ८५३४२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ८१३८८-२(+#), ८१५६०-२(+), ८५००५-२(+$), ८५५२८-१(+), ८२६४१-३, ८४९८९-२, ८२६७१-१(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूप., (धुरि प्रणमुं जिन), ८४९११(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (एकादशी अति रुअडी), ८२७२०-१(+$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (गौतम बोले ग्रंथ), ८४००८(+#), ८४६२७-१(+-),८४७५५(+#), ८४२७३-२,८५१७३-१ यादवराय राठौड गीत-ईडरगढ, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., इतर, (ईडर आंबा आंबली रे), ८३९७४-२(#) युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (इहां पंचमारक माहि),८५१६४-२ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ८१८१०-४(+), ८४५३८-२(+), ८४९३५-१, ८५५३८-१(#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., वि. १८४३, पद्य, स्था., (हा रे कांइ जुगमंधरजी), ८१६७१-१(2) योगसंग्रह सज्झाय, ग. उदयसिंह, मा.गु., गा. १४, वि. १७७५, पद्य, मपू., (श्रीजिणवर प्रणमु), ८४४१४ रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहि., गा. ७३, पद्य, मूपू., (लोचन प्यारे पलक को), ८२८०३(#$) रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, स्पू., (रतनगुरु आगलीजी आगली), ८३८९०(+) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), ८४४३८(+#$) रत्नमुनि पद, मु. चंद्रभाण, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (रतनमुनि पंडताइ थारी), ८४७५१-३ रत्नविजयजी का गुरु के नाम पत्र, मु. रत्नविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (स्वस्त श्रीपार्श्व), ८२६६४ रत्नविजय रास, मा.गु., ढा. ५, वि. १९३३, पद्य, मपू., (सरसत गणपत दीजियौ), ८५३१८-१(+) रत्नविजय विहार गहंली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (एक चउमासो हिवे करोजी), ८४५७५ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ८५३३७(+), ८३२२७, ८५२३१-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., गा. १९, पद्य, मपू., (देखी मन देवर का), ८३१९०-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु रथ वालीयो), ८५२२८ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गुलाबकीर्ति, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (गिरनारी की पहारी पर), ८४८६५-१(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ८४३५५-५ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मपू., (रहनेमि अंबर विण), ८५४१४ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५७७ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (नाइ धोइ कि पटिर वेठा), ८३१९०-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.ग., गा.११, पद्य, मप., (संजम लेई ध्यांने), ८१४२५-२(+) राखी स्तवन, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (राखी तहेवार करो धर्म), ८४९४९ राजारीसालूरी वार्ता, मा.गु., गा. ६९, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीपुर नगर को राजा), ८३२६७-३(#$) राजिमती प्रेमपत्रिका, मु. ऋद्धिसार, पुहि., गा. ५१, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीगिरनारगढ), ८४०९२ राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ८१७८१(+) राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (दे गया दगा दिलदार), ८४५७८-४, ८४९६२-५ राजिमतीसती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पातलडी राजुल विनवे), ८४७५६-६ राजिमतीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूप., (सांभल रे तुं सजनी), ८२६७९-२(६) राजेंद्रसूरि स्तुति, मु. गुलाबचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (इसे मेरी जहाज भव), ८३५०४-१ रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सकल धरममां सारज कहिइ), ८२८६७ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ८४५५९(+), ८४८७०(+), ८३०१७, ८४३११-१ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (छठोवरतर नीतनोय भोजन), ८४४८१-२(+-) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (सुंदर माहरी वात सांभ), ८२९०१-७(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. विवेकसोम, मा.ग., गा.१३, पद्य, मप., (पुन संजोगे नरभव लाधो), ८२९१७ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, सेवक, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (--), ८४११०-१(६) राधाकृष्ण बारमासा, मा.गु., पद्य, वै., (सरसत किवरु ए सारदा), ८१९४५-१(-) राधाकृष्ण सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, जै., इतर?, (कारोही काजर कारीही), ८४२६०-२ राधाकृष्ण होरी, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (व्रजमे एसी होरी मचाई), ८५२१०-२ रामकवरजी साध्वी गीत, सा. नंदकवरजी, मा.गु., गा. ११, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (नगर वीकानेर दपतो जी), ८१२६७-३(#) रामभक्ति ख्याल, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (सनमुख राजा राम खडे), ८२८८२-३(#) रामभक्ति गीत, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., कडी. ४, पद्य, वै., (आपस की फट म गई०लंका), ८२८२२-३(2) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, पू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ८३८५६(#$) राम रावण युद्ध सवैया, पुहिं., सवै. ४, पद्य, वै., (नीचं नीहारे रे), ८२७०६-४(#) रामरावण संवाद, मु. नयनसुख, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (रावण से रघुवीर कहे), ८४७५१-२ रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., इतर, (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), ८२१२२(+$) रामासाध्वी संथारा सज्झाय, मा.ग., गा. ९, पद्य, श्वे., (तप तेग ग्रही शिवसाधन), ८२९७०-२(+) रामा साध्वी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (आतम काज सुधारे सूरा), ८२९७०-१(+) रावण ढाल, रा., पद्य, श्वे.?, (--), ८२१३४(६) रावणमंदोदरी गीत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मंदोदरी मन चिंतवे), ८३२४०-१(#) रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै भमीछण सुन हो), ८५४७१(+) रावण सज्झाय, मु. राघव, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (दलोकित गय नरपति), ८३९८८-४(+) राहुग्रह विमानमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (राहु वीमान लांब), ८३७६०-६ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ८४२५९-२(+), ८१८२७, ८२८६२-१, ८४०८८-१, ८४५२९-१, ८४७८६, ८५१७४, ८५४५२-१ रुघनाथजी गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, स्था., (उपाध्याय रुघनाथ रै), ८२८५५-४(2) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रूपसिंह गच्छनायक भास, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (सरसति सुभमती वीनवुजी), ८४८५१ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ विजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सोवन सिहासन रेवति), ८२७३७-३(#) रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणंद), ८४८८०-२, ८५३७०-२($) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ८१४६२(+#), ८१४७५(+#$), ८२६१९(+), ८५२८१-१, ८३३६६(#S), ८१७९२(६) । रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ८४१२७-१(+$), ८४६२६(+), ८५२७३-१(६) रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ८३०००-३(+) रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नक्षत्र रोहिणी जे), ८४०२७ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ८१७०२-१, ८४५८५-२ रोहिणीतप स्तुति, मु. लाभरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जयकारी जिनवर वासुपूज), ८३८३५-२(+#) लक्ष्मण पद, तुलसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (भुजाबल मोरी कैस जीव), ८४६४८-४ लक्ष्मणराम पद, तुलसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (लछमण बोल रे मेरा वीर), ८४६४८-३ लक्ष्मीचंद्र आचार्य गुरुगुण गीत, मु. कीर्तिचंद, रा., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (सरसति सामण बीनवू हे), ८५२३६(+#) लक्ष्मीरतनसूरि गुरुगुण गीत, आ. हंसरत्नसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (गुरु श्री लखिमीरतन स), ८४३७९-२ लग्न दोषावली विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (मेषे लग्ने क्षेत्र), ८२११८-२ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सकाम निर्जरा करतां), ८४४३६(+#) ललितांगकुमार सज्झाय-जंबूचरित्रे, मु. कुअरविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (मानवभव पामी दुलहो दश), ८३०१८(#) लींबडी मध्ये आणंदविजय-कमलविजय पदवी तथा रंगविजय-गुणविजय बडीदीक्षा महोत्सव गहुँली, मु. कमलसागर, मा.गु., गा. १५, वि. १९४७, पद्य, मूपू., (बेनी मोरी सुगुरु), ८४७४१ लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), ८२१५१(६) लुकमानहकीम नसीयत, हिं., प+ग., जै.?, (जहा गणधर आसमान थिर), ८२८९२ लूण उतारण गाथा, मा.गु., गा.७, वि. १८५५, पद्य, मप., (लुण उतारो जीनवर अंगे),८४७५०-२(#) लूण उतारण गाथा, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (लण उतारो जिनवर अंगे), ८४८३१-२(+$) लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाइं पण रस गंध फरस), ८५४७२-१(+) वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ६१, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (वंकचूल भाखी कथा जथा), ८३८८०(2) वख जोग, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (पडेवे छठ इग्यारस जाण), ८३९०७-६ वचनगुप्ति सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (वचन विचारी रे सजन), ८४१०४ वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक सबल मननो धोखो), ८५४९४-३(+) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (विहरमान भगवान सुणो), ८५०४३-१, ८४१३०-१($) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ८१४८३($) वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. २१, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमुं), ८४५३२(+#$) वरसिंह गच्छपति चौढालिया, मु. संकर, मा.गु., ढा. ४, वि. १६१४, पद्य, श्वे., (गोअम गणहर पाये नमी), ८४८५२-१ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल), ८१३१३-३(+#) वर्धमानतप ओली विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंबल१ उपवास२ आंबल१), ८१६९६-१ वर्षाज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जियै वरस दिनरा जितरा), ८२०४९-२(+) वसीरामस्वामीगुरुगुण लावणी, मु. पूजा, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रीवितरागदेव नमु), ८५५१६(+) वस्तुपाल उपाध्याय गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, श्वे., (महाजाण महिराण वयण जस), ८२८५५-२(#) वांदणा उपकरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे वांदणा देतां ओघो), ८१३५५-१ For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० वासुदेव बलदेव च्यवन आयुमान देहमानादि विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठ वासुदेव), ८१९८६-१ वासुपूज्यजिन गहुंली, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंपानयरी अति हे), ८५०३८-११ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नायक मोह नचावीयो), ८४२१९-३(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरण जय जयो), ८२९०८-३(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ८३१७९-५, ८४२६३-१(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (वासुपूज्य जिन), ८१३८९-६(+#), ८२७०५-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपुज्यजिणराया), ८२४६४-२(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वासव पूजित वासुपूज्य), ८४५८२-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, आ. भाग्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनराजजी), ८१२६९-१(+#) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे कांइ), ८४०७६-३ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (साहिब वासुपूज्य ते), ८३०७४-२ विंशोपचारपूजा विधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम शुचिर्जल वडे), ८५३२०(+) विक्रमराजा कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (उजीणीनगरी राजावीक्रम), ८४०७३-२(#$) विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८१७२९() विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ८१५६७-३(+), ८३९७९(+$), ८३२५३(७), ८१५५५(-) विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), ८४१६६-२, ८२८४७-३(#) विजयक्षमासूरि तपागच्छाधिपति विनती पत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रसिध श्रीअमुकनगर), ८१९७५-३(+) विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीविजयरत्नसूरिंदना), ८२६७४-१ विजयजिनेंद्रसूरि विजयबंध यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ८२७२०-३(+) विजयदयासूरिगुरु भास, आ. धर्मसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सानिधकारी ने सरसति), ८४२०९-२ विजयप्रभसूरि गहुंली, मु. लील, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आवो सुहासणि गुंहली), ८१६३०-१ विजयप्रभसूरि गहुंली, मु. लील, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीविजयप्रभसूरि), ८१६३०-२ विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आणंदी हे सखी भेट), ८४५४८-६(+) विजयराज गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीगौतमना पाय नमीनइ), ८१६८७-१(#) विजयलक्ष्मीसूरि बारमासो, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (हु तो सरसतिने पाये), ८५०२६-२(2) विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (धनधन विजय कुंवरजी), ८३०५७-२ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८१७१५(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मपू., (भरतक्षेत्रे रे), ८४४४६-१(#$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), ८४७७९, ८२८४०-३(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ८१५१९(+$), ८२६९३(+), ८५६०३(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मपू., (प्रह उठी रे पंच), ८२८३५-१(+#$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कुसलदेसे कसुवीनगरी), ८३८६७(-) विजयादशमी लावणी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १९३८, पद्य, मप., (विजय दशमी दिन विजय), ८३०२७ विधाता अष्टक, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (महामूरख नै मीदरै), ८४१८७-२(+#) विमलजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.२, पद्य, मप., (विमलजिणेसर वंदीइ मनआ), ८१६८७-५(2) विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमल विमल गुण मन), ८४४५१-३(+) विमलजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारे विमलगुंसाइ), ८१३८९-७(+#) विमलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मप., (बे कर जोडी विनव थाव), ८१४०२-२(+$) विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मपू., (सरसति समरूं बे करजोड), ८१७०३(#$) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- २ " विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., इतर (सदगुरु वाणी समरि), ८४३३५ (०३), ८२०५६-११) विवाह पद, कबीर, मा.गु, गा. ४, पद्य, वै., (धन धन पीआजी धारो, ८४९८३-१ विविधक्षेत्रस्थ वस्तु विशेषता विवरण, मा.गु., गद्य, जै., इतर देव तो वीर १ गुरु तो ), ८२८४१-२(+#5) विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ८३३३६-१(+), ८१३६८-२, ८५०४४-२ विवेकचिंतामणि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, ओ., ( आप निरंजन हे अविनासी), ८३५९४-२(३) विशालजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (घातकीखंडे हो के पछिम), ८४१६१-४(+$) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ८३१४७-३ (+), ८५५९२, ८२३१५(४०), ८२१२३-१(३) विहरमानजिन नाम - उत्कृष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीजयदेवनाथ १) ८५४७७ (+) वीतराग प्रार्थना, मा.गु., गद्य, मूपु., (हे वीतरागस्वामी माहर), ८२९९४(+) " वीतराग वाणी विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (ॐकार बिंदु [संयुक्त), ८१८७३ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृश्चिक विष उत्तारण मंत्र संग्रह, मा.गु., मंत्र. २, गद्य, वै., इतर, (इश्वर पुछे पारव तिने ), ८४०२६-२(+) वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास पुडिं, गा. ५१, वि. १७वी, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), ८३९४८(M) वैकुंठपंथ सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., गा. ५९, वि. १६९९, पद्य, वे, वैकुंठ पंथ बीहामणो ), ८१४९६ वैदर्भी चौपाई. मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., गा. २०९, पद्य, खे, (जिणधरमसुं जागता हुवो), ८१५८९(३) " वैराग्य पद, कबीर, मा.गु. गा. ५, पद्य, वै., (माण लै माण लै तु), ८१७२२-२ " वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (समज समज रे भोला), ८१६५६(#) वैराग्य सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (जीवडला आजे जर्बु के क), ८५२८५-१ वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सज्झाय भली संतोषनी), ८१६१५-२ वैराग्य सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., ( खबर नहीं आ जगमें पलक), ८२८५७-२ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (मवगल मातुरे वनमाहिं), ८४२५६-१(क) व्यवहारोपयोगी गाथा संग्रह, मा.गु., गा. २०, पद्य, वे. इतर (तरुआरिनी ताकी छिनाली), ८२१७९-७(१) व्याख्यान पीठिका, मा.गु. गद्य, म्पू. (अशरणशरण भवभयहरण), ८३९९८-२ (+), ८३२८८-१(७) " व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, म्पू., (भगवान वीतराग देव), ८४८०३-१ शकुनबोल चौपाई, मु. हर्षकुल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रणमुं सुख), ८२०७७-१ . शकुनसोलही चौपाई, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., इतर, (वाग वाणि प्रणमुं मन), ८२०७७-२ ($) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमांहे तिरथ), ८२७२०-२(१) शत्रुंजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि- शिष्य, मा.गु. गा. १०८ पद्य म्पू (सिद्धाचल समरो सदा), ८५२८२ (३) शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ८१६५८, ८४५४७(१) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू (जय जय नाभिनरिंदनंद) ८१४७९-५ (१), ८५१३६-५(१), ८४८१२-२, ८५२७३-३ ८१४२३-२००१ ८२८८४-८(१) " शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ८४८९९ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (सिद्धाचल सिद्ध), ८४७२९-२(+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ८५५३१-१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपु., (शत्रुंजय सिद्ध), ८१३९३-५, ८४२७४-१, ८५००३-७(१) शत्रुंजयतीर्थ छरिपालित संघसंपदा वर्णन-विक्रमादित्यराजा द्वारा, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीसिद्धसेन दिवाकर ), ८४५५२-१ शत्रुंजयतीर्थ पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू, (मेरो मन मुगतागीरीस), ८४८२५-२१ " शत्रुंजयतीर्थ पद, मु. केशरीचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे. (नाभ नरेसर नंदजी रे) ८२६६८-२०१ "" शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., डा. १०, वि. १८४०, पद्य, भूपू (जगजीवन जालम जादवा), ८४८६१ (+३) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., डा. १०. गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, म्पू., ( विमलाचल वाहला वारु), ८२०४३ (+४७), ८१५१० (३), ८१६१७ (३), ८५३४५ाडा For Private and Personal Use Only ५८१ शत्रुंजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मूपु., (श्रीऋषभदेव पुंडरिक), ८४६३१(+) शत्रुंजयतीर्थ रायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू (नीलुडी रावणतरु तले). ८५२३९-१(३) शत्रुजवतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, म्पू. (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ८३२०२ (७) शत्रुंजयतीर्थ संघयात्रावर्णन चौपाई, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८१२८७ (#$) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. आत्मवल्लभ, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (तीर्थ श्री सिद्धांचल), ८४७४८-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( आंखडीये रे में आज ), ८३२२९-५ (+), ८१३१६-८(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा, उदयरत्न, मा.गु.. गा. ८, पद्य, भूपू (डुंगर ठंडो रे डुंगर). ८१४३६-२(+), ८४२२४-३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेत्रुंजागढना वासी), ८४२३६-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू.. (सवालाख टकानो चाडो), ८२२७१-३(७) 1 , शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. उद्योतविमल, मा.गु., ढा. २ गा. २०, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीआणंदभरे), ८५४४६ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( आवो गीरी सिद्धाचल), ८५१८३(+) " शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (श्री रे सिद्धाचल), ८२२५९-४) ८१५४१-१, ८१७३८-१, ८१८५८-२, ८२९६७(#) शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५. वि. १८८३, पद्य, मूपू. (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ८४८८६-१(+), ८५२५०-३, ८५५१२-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ८१४७०-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपु., (करजोडी कहे कामनी) ८४६१८(०) ८१८७२, ८५५१४ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ८, पद्य, म्पू (आपो आपोने लाल मोंघा), ८५२६८ (आवो भवि भविक), ८५२३९-२ ( इण डुंगरीयानी झिणी), ८३९६१-४(+) (कोइ सिद्धगिरि राज भे), ८५२५१-१ " शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चलो तो शत्रुंजय), ८५४१३-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (माहरु मन मोह्यं रे), ८४२२४-२(+), ८५०९७-३(+), ८३२१३-१(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ८४९३७-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ८४५९१ , शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( जात्रा नवाणु करीए वि) ८१४२४-३, ८५५२० शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वीरजी आव्या रे), ८२८८०-१, ८५२८१-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( सफल संसार अवतार माह), ८३२१३-२ (०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पुण्यविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पुरवा प्रण), ८१३९३-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. ११, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (सोरठ देशमा जोजो तीहा), ८३०१२-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (विमलाचल सिर तिलो), ८३५७१-३(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०. वि. १८७८, पद्य, मूपू. (चालो सखी सिद्धाचल), ८४७२९-१ (+) शत्रुजवतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू., (अमृत वचने रे प्यारी), ८४६३८ (०३), ८४८०२, ८१७८८(क) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू. (श्रीनवकार जपो मनरंगे ) ८४१२४-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (जाना जी सुख पाना जी), ८४२१२०-२ (उमैया मुजने घणीजी हो), ८५५३४-१ (९) ८५२६४-२ (जी रे मारे श्रीसिद्ध), ८४७२९-५ (+#$) , Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, पू., (सिद्धाचल सिद्ध सुहाव), ८४९५९-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ८४८८८-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ८४८१५, ८५४०६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ११, वि. २०वी, पद्य, मूप., (चालो चालोने जइये), ८४७३० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरनारी नरनारी), ८१५४१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विनीता वने वीनवैरे), ८३१८५-३(+) श@जयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (विमलाचलगिरि वंद्या), ८५५१२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूप., (सौराष्ट्रे सुखदे), ८३४६६-३($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ८१२९१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ८४३५८-१, ८४७०४ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशजय तीरथसार), ८२८८३, ८४८०७, ८४९२० शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ८५५६२-४(+#), ८३०६४-३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सीमंधरने पुछे इंदा), ८३९७१-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ८५४६३-४(+), ८४१०८-२, ८५०३७-१(2) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (सकल मंगल लीला मुनि), ८४५९६-२(+), ८५४०९-२ शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (अहि नर असुर सुरपति), ८२००४-१(+#), ८४३९४-१, ८१७६४(#) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ८१५७३-१, ८१७९३-१(#) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ८३८८४-२, ८५३३५-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (समरुं शांति जिणंद), ८३९०९-३(+#) शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ८५१३६-२(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सोलमा जिनवर शांतिनाथ), ८१४७९-६(+), ८५१३६-१(+), ८४८१२-३, ८५२७३-४, ८१४२३-३(4) शांतिजिन चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.ग., गा. २, पद्य, मप., (संति जिणेसर सोलमा), ८५००३-२(2) शांतिजिन चौपाई, मु. विक्रम, मा.गु., गा. ५८, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (प्रथम चउवीसे नमी), ८४३५७(+#) शांतिजिन छंद, मु. दीपसागर, मा.गु., गा.१६, वि. १८९४, पद्य, म्पू., (शांतिनाथ को कीजे), ८१६३८,८४८५९ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ८२१३६-२(+), ८४०३५(+), ८४४६०(+#), ८४६३५(+), ८२३४९-१, ८४८९१, ८५००१(६) शांतिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर सोलमा), ८१६८७-३(#) शांतिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.६, पद्य, मप., (संतजिणेसर बंदियै सुख), ८५५२३-५(+#) शांतिजिन पद, आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (अब मइ स्वामि निकी), ८१२७०-४(2) शांतिजिन पद, आ. कीर्तिसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति तेरी सूरत की), ८१२७०-२(#) शांतिजिन पद, मु. रायसिंघ, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (उठ प्रभात प्रात भयो), ८४९०६-३ शांतिजिन पालणं, मु. खूबचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (रतन जड़त पालणीयो), ८१७१३-४ शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ६६, गा. १४२८, ग्रं. २२०५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सकलसुखसंपतिकरण गउडि), ८१४१९ शांतिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहि., सवै. १, पद्य, मपू., (छोरि षड खंड भारिचौसठ), ८१५७७-२(+) शांतिजिन स्तवन, श्राव. कवियण, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (आज थकी में पामीयो रे), ८५२२९-३, ८१३७०-१(२), ८३९०४-२(2) शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंदा तुं साहि), ८४९३२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (संती जीणेसर सत करो), ८४१८३-२ शांतिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (सांतिनाथ प्रभु सोलमा), ८१६०८-४(+#), ८२७३९-२(+) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५८३ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ८२३८५-४(+), ८४५७२-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ दयानिधि), ८३२१६-१ शांतिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब कब मिलई ससनेही), ८१३८९-१०(+#) शांतिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (नारी ते नरने वीनवे), ८४८६६ शांतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (जिनेंद्र शांतिसुर), ८५३२४-१(६) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, पुहि., गा.१५, पद्य, मपू., (सेवा शांतिजिणेसर की), ८४५९२ शांतिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ८१५५२-९(+#$) शांतिजिन स्तवन, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (शांतिप्रभु वीनती एक),८४८५८-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब),८५०९३-१(+$), ८३१३०-२, ८४२६३-२(2) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ८३२१०-१(+), ८३८६९-१(+#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ८४८३०-२ शांतिजिन स्तवन, मु. रामकिसन, मा.गु., गा. १३, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (संतनाथ जण संत का), ८२७५७ शांतिजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (सन प्रभुजी संत व्रते), ८३९८८-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर शांतिजिणंदनी), ८३९८३-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. रिषभ-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पंचम चक्री जिन सोलमा), ८४४०९-२(2) शांतिजिन स्तवन, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सांति जिनेसर सोलमा), ८५४०१ शांतिजिन स्तवन, पं. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (श्रीशांति जिनेसर),८१६८१-१(#) शांतिजिन स्तवन, श्राव. लाधाशाह, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (श्रीशांतिजिनेसर सोल), ८२९४९-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (पल पल गुण गाना गाना), ८४७४८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. विजयचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सरसति० लागुराव गुरुप), ८१५५२-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (शांतिनाथ जिनेसर चरण), ८४७०३-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सेवा शांति जिणंदनी), ८५०२२(+), ८५२५०-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ८४९०६-४ शांतिजिन स्तवन, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण सुरतरू), ८१२८०(5) शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (सोलमा जीनजी शांतिनाथ), ८१३१८(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. सुज्ञानविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १८३३, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर मुरति), ८४२०९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. सूर्यमल, मा.गु., गा. ९, वि. १९०४, पद्य, श्वे., (हा रे कांई गजपुर), ८२९८२-१ शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (चित चाहत सेवा चरण की), ८३९८८-३(+), ८४६०५-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीशांतिनाथ महाराज), ८३७६७-१(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जगंनाथ श्रीशांतिदेवा), ८२९४९-१(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सांतिजिणेसर सेवीइ), ८१५५२-७(+#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, वि. १९००, पद्य, मूपू., (सांभल सजनी रे प्यारी), ८५५७२-२(+) शांतिजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. ९, वि. १७९२, पद्य, भूपू., (साहिब शांति जिनेसरु), ८१३२०(+) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ८५००६ शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मप., (वंछित पूरण मनोहरु), ८२४४२ शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारदमात नमु सिरनामि), ८३१५३-१, ८४१९३ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ८५०३७-२(#$) शांतिजिन स्तुति, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सांति जिनेसरदेव), ८१७०२-६($) शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (शांति सुहंकर साहिबो), ८४५०६-१(+) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शांतिकर शांतिकर), ८४२७७-२(-) शारदामाता स्तुति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसत सामीन् वीनवु), ८४९९०-१(+) शालिभद्रमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (आगलि रही लेई परिजन), ८१६८५(5) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालतणे भवे), ८४९६१(+$), ८१७१९ शालिभद्रमुनि सलोको, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरसति सामणी पाये), ८४४८९ शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ८४५९८($) शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिले त्रि छेलो किं), ८२९२४(#) शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ६०, पद्य, मूपू., (सरसति माता मनधरि), ८३२४६(+$) शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभाननजिन), ८२३१३(+$), ८२९४८ शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सीमंधर प्रमुख नमु), ८५४०८-१ शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कोडी सातने लाख बहोतर), ८४७४२ शाश्वताशाश्वताजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल तीर्थाधिराज), ८४१२३-२(+#), ८३२६५ शासनदेवी गीत, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (अवर नंदनवन घूघरीया), ८३२२९-३(+) शासनदेवी स्तुति, मु. माणकचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (काली गौरी गंधारी नइ), ८३२२९-४(+) शिव आरती, मा.गु., गा. १९, पद्य, वै., (सकलदेवनो रे देवता), ८४२९३-८(+) शिवजी आचार्य भास, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जगतमै श्रीशिवजी मुनि), ८४४५४-२(#) शिवपार्वती सवैया, पंडित. कल्याण भट्ट, मा.गु., सवै. ७, पद्य, वै., (उमियाजी एक प्रपंच), ८२८२४-१ शिवपुरनगर वर्णन पद, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (समी भोंमथी उंची अलगी), ८४२९३-१८(+) शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (सुणो श्रीसीवपुर नगर), ८५०९०(+#), ८५४२६(+#) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ८५३१७-२ शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (चेला रहे गुरुने पास), ८५२४५-१(+) शीतलजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (पलो मे तो साह्यो रे), ८५३८४-२ शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., ढा. २, गा.१८, वि. १८२७, पद्य, मप., (भविकां सिद्धचक्रपद), ८१४२३-१(#$) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ८१३८९-१(+#), ८४२२४-१(+-), ८५४९४-१(+) शीतलजिन स्तवन, आ. रायचंद्रसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूप., (सेवकने द्यै परमाणंद), ८४४३५-३(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ८५१११-१(#) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (शीतलजिननी मरति मुजन), ८१४६८-२(+$) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मप., (मोरा साहेब हो), ८१३८८-३(+#), ८४११७(+#), ८३६३३ शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मपू., (प्रणम पंचपरमेष्ठि), ८५५१३ शीयलनववाड सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (एकणै ठामै रहे नहीजी), ८२९६१(#) शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ८१७१०(+$) शीयलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली सुद्धैमन सील), ८५३४९-५(+) शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली उपमा ग्रह), ८४२८१, ८५४९६ शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मपू., (चोविसे जिन आगमे रे), ८४२५०-१, ८३१२७($) शीयलव्रत सज्झाय, मु. अचल, मा.गु., गा. १०, वि. १६८२, पद्य, श्वे., (चंदवदन मृगलोचनी), ८३९६५ शीयलव्रत सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जीव जोने मानव भव लाध), ८३९६९-३(#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणो समजो सकल नरनारी), ८४०१५(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. जसकीर्ति, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (सकल जिनेसर पाय प्रणम), ८३९०३-१(+) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० शीयलव्रत सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५०, पद्य, स्था., (गेरो रंग लागो हो), ८४७१६ शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तिन गुपत ताणो भण्यो), ८१७१७-३(#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीरा, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (शीयल सोरंगि चुंदडी), ८१७४१ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १०, वि. १८०६, पद्य, मप., (गौतमस्वामी समरु), ८१३९८-१ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (ममता को नार विराणी), ८५२५४-३(#$) शीयलव्रत सज्झाय-चुंदडी, मा.गु., पद्य, मपू., (उपशम उदयथी उपनी रोपी), ८१३५५-२($) शीलपचवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेसर पासना रे), ८१९६७(#) शुकनावली, मा.गु., गद्य, इतर, (ॐ श्रीं कीरतभवानी), ८२१९९-१ शुकनावलीपृच्छा, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (१ ए माणसथी केहवो),८२६८८-२ शृंगार गीत, रा., गा. ८, पद्य, इतर, (थे मत जाओ परदेस पूना), ८३२५०-२(#) शंगार गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, इतर, (--), ८३२५०-१(#$) शृंगारिक सवैया, दीप, मा.गु., गा. १, पद्य, इतर, (पांच सात नव तेरमें), ८१२६९-२(+#) श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ८१९९५-२(+),८४४२४-६ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ८१५३८-१(+), ८४०२३-३ श्रावक २१ बोल, मा.गु., अंक. २१, गद्य, श्वे., (पल बोल श्रावकजी केवा), ८४५६५(-) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, मपू., (पहलो मनोर्थ समणोपासक), ८४०९३(#) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ८४८२१(+), ८५४२२-१(+), ८१९१६-१(#$), ८५६२४(#) श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, म्पू., (अणगल जल वावर्यै लाख), ८४९६०-१(2) श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अष्टविधियिज्ञान आशात), ८१४१२(६) श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.ग., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रावक नाम धरायनें), ८३२३८(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ८१७५८-१(+#$), ८४०३१-१(+), ८१४५२-३, ८१५५४-१, ८२६६१, ८३१८४(#$), ८५५६४-१(#$), ८४३८२-१(#$) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ८४२३१(+), ८४४६९-१(#) श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावकनी करणी सांभलो), ८४४३५-१(+#), ८४६८८-३ श्रावकगुण सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वचन चित धर), ८४६८८-२ श्रावकधर्म सज्झाय, मु. कुशलचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८८२, पद्य, श्वे., (सका इह प्रससा करजी), ८२९३५-२ श्रावक नित्यक्रिया विधि-दैनिक पूजा, मा.गु., प+ग., श्वे., (भूमिशुद्धि १ अंग), ८४०४२(+) श्रावकयोग्य नियम, मा.ग., गद्य, मप., (स्वाध्यायन करवू), ८५१७५-३ श्रावकविधि सज्झाय, मा.ग., पद्य, मप्., (मनरंगै प्रणमी सरसती), ८३६८६(#$) श्रावकोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्पू., (श्रावकधर्म करो सुख), ८५४७८-१($) श्रीपाल चरित्र, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., गा. १२२५, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंतगुण), ८४४६२(+$), ८१५७०(5) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, पू., (कल्पवेल कवियण तणी), ८१२७१(#$), ८१५७१(5), ८५०९६(s) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ८५०९६($) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मप्., (करकमल जोडि करि सिद्ध), ८१४९५(६) श्रेणिकराजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु नरग पडतो राखीइ), ८४५३०-६($) श्रेणिकराजा सज्झाय-समकित परिक्षा, रा., ढा. २, गा. २२, पद्य, श्वे., (राय श्रेणक तणी पारख), ८४२९३-११(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. केशराज, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (श्रीश्रेयांस जिनवर), ८४०५२(#) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (हारे साहिब श्रेयांस), ८१३८९-५(+#$) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (श्रेयांसजिन सुणो), ८२८५०-२(#) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.ग.,रा., गद्य, मप., (राजगरी नगरी सीणकराजा),८३९८९ षड्द्रव्य ११ द्वार कोष्ठक, मा.गु., को., श्वे., (परिणाम१ जीव२ मुत्ता३),८५४७२-३(+) षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिणाम जीवमुत्तं सपए), ८५२३७-२ संग्रहछत्तीसी-ढाईद्वीप वस्तु विचार, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (संग्रह छतीसी सांभल), ८५०८८(+) संजतीराजा सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरतरु सरीखो संयम), ८४८३४-१ संजतीराजा सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (बाणी सतगुर की सुणसणि), ८४७९७(+-) संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतक २५ उद्देश ६, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूप., (पन्नवणा १ वेयरागे), ८४९७८-१(+) संतोषछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८४, पद्य, मप., (सांहामी स्यउं संतोष), ८४९८७(#) संभवजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वांके गढ फोज चढी), ८४८३०-१(5) संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभवजिनरी सेवा), ८४७५६-५ संभवजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (आज उमाहो अति घणो हो), ८१३७०-३(#) संभवजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (संभव जिनवर स्वामि), ८३८०३-२ संभवजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (संभवजिन सुखकारी प्रभ), ८३९५९-१ संभवजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (संभव जिनराजजी रे ताह), ८४३५५-३ संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वंके गढ फोज चली है), ८४३०५-३(#) संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७७०, पद्य, म्पू., (समकित दाता समकित आपो), ८४७४०-३(#$) संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १७३०, पद्य, मपू., (संभव जिनवर विनती), ८३०९४-२(2) संभवजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (संभव साहिब एक अरज), ८५०७६-२(#) । संभवजिन स्तुति- जेसलमेर मंडन, मु. गुणविनय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (सिरि संभव संभव सामि), ८४२५२-१(+) संयमअनुमति सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (माता अनुमत दे अणीवार), ८३१४२-१३ संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, मपू., (संवत् २१३ वर्षे राजा),८५११८(क) संवत् १८४४ वर्षीय विजयउद्योतसूरि आदि चातुर्मास पट्टक, मा.गु., गद्य, मूप., (भ० श्रीविजयहीरसूरि), ८२७०१-१ संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.ग., पद्य, मप., (सकला० स्नातस्या०), ८१६००(+) संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जेम समंद्रनी बाहेरन), ८१४९० संसार से उद्धरण परमात्मा विनती, मा.गु., गा. ३०, पद्य, श्वे., (अरज सुणो जिणराजजी), ८३०६७-१ सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थ वंदु कर), ८२९९१-३ सदयवत्स सावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., मूपू., (न्यायसूतारा नरवहण), ८१६२४(5) सदारंग आचार्य गीत, मु. धनो ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसत प्रणम् हो सदगुर), ८३६३२(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.ग., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तिणकालने तिण समें), ८३५६८-१,८३३४५-१(2) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ८५६०८-१(+), ८५३६४-२ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जी हो सोहम इंद्र), ८४१२५-२(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), ८४१६०-२(2) समवसरणद्वार-भगवतीसूत्रे-शतक ३०, मा.गु., गद्य, स्था., (जीवाय १ लेस २ पखी ३), ८५४७२-२(+) समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाए लेसपखाए दिट्ठी), ८१४६३($) समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर चरण कमल),८४९४७-१ समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), ८४०३८-१(+) समाधिमरण भाषा, श्राव. सूरचंदजी, पुहिं., गा. ५५, वि. १९१९, पद्य, श्वे., (वंदौं श्रीअरहंत परमग), ८५१३७(+) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जय जय श्रीजगदीश वीश), ८५२७३-२ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मधुवन में जाय मची रे), ८२७३४-६(+5), ८२८०५-४ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ८२१७८-१ For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५८७ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समेतसिखर पर वंदिये), ८१७३८-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (समेतशिखर जिन वंदिये), ८३०४४-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आज सफल दिन उग्यो), ८५४१७ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (सिखर समेत जुहारो भवि), ८५३२४-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (समेतशिखर गिरिराज), ८१३८४-१ सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मप., (जीवादिक पदार्थ जाणवा), ८४४७६ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, पू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ८५४३१(+), ८१४४८(६), ८५०९२(5), ८५४६५(६) सम्यक्त्व गीत, पुहिं., गा. ७, पद्य, पू., (दरसण षट दरसण निज), ८३१५९-२(+), ८३५३४-३(+) सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या), ८४३९८(६) सम्यक्त्व छप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, पू., (इम समकित मन थिर करो), ८५३९९(+#) सम्यक्त्वधारी व्यवहार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रावकनै सम्यक्त्वनै), ८३१२९-२ सम्यक्त्वप्राप्ति पद, मु. चोथमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जरासी आइ जाए० समकित), ८३१७३-५(-) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुध सम्यक्त वरत रस), ८४९४१-१६(#) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गुण गुणवंत सुण प्राण), ८२९०१-८(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (स्मक्त समकित वीना), ८३४९८-१ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ८५१३३-२ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (बुद्धि विमल करणी), ८४२४९-३(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरस वचन समता मन), ८३१४६-१, ८४०४६-२(#$) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), ८२६४२-१(+), ८३२५७(+-$), ८४१०५(#S), ८३९११-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ८३५९२ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), ८५४९५-१(+), ८४८०४ सरस्वतीसाध्वी सज्झाय, मु. श्रीपाल, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (सरसत करुं पसाव एक), ८२१५७(+#) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ८१५१४ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुण निलो त्), ८२१६९-१(२) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरवारथ सिद्ध चंद्रुइ), ८५१००(#), ८३९४४-३(5) सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., (पूरव तयासीलाख सुख), ८३२२६ सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सहसकूट जिन प्रतिमा), ८२९९६ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ८१२८९(+$) सांबप्रद्युम्न रास*, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८४३१८(#$) सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सागररायनी वारता कह), ८४६४१-१(+) सागरश्रेष्ठी चौपाई-दानाधिकारे, मु. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., ढा. १३, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (प्रणमु लवधि पास), ८४३१६(#$) सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार गाउनो कुओ), ८५६०६-२ साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ८१३६८-३ साधारणजिन आरती, मा.गु., गा. १, पद्य, स्पू., (श्रीसुरतस्वामी बिनमे), ८३०७३-१(-) साधारणजिन गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (जी रे ललित वचननी), ८४६३४(#) साधारणजिन गहंली, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (बाइजी मारा प्रभुजी), ८१७४५-६(+) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रखे नाचतां प्रभुजी), ८५६०५-२ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधु सुपात्र बडे), ८४७४४-२(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (परमेश्वर परमात्मा), ८२९९१-५ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), ८५३८२-२(+), ८५४५६-१ साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख सवे), ८१५८२-१ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसागर , पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो पीया पर संग रमत), ८२१७८-८ साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (तुम प्रभु कहियै दीन), ८२२५९-३(+#) साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु सिमेटो व्यथा), ८४१८०-२ साधारणजिन पद, मु. पद्मविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (मेरो दिल वस कीयो), ८५५५४-५(2) साधारणजिन पद, क. बनारसीदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, दि., (भेद विग्यांन जग्यौ), ८३४६२-२ साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो री सखी प्रभु), ८४७५६-२ साधारणजिन पद, मु. भेमो, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (हं सरणागत तोरे), ८२२५९-५(+#) साधारणजिन पद, मु. राम, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (हम तुम से कथन मांग), ८१७१३-३ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (देव निरंजन भव भय), ८१६४४-५(+$),८१३१५-३ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, म्पू., (नहिं कोअ मेरा प्रभु), ८४३५४-३(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (नावडीया पार उतार थार), ८३१२४-१ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ८४०७६-२ साधारणजिन पद, मु. वखता, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तारण तरण जिहाज प्रभु),८५४७३-१ साधारणजिन पद, मु. विनयचंद, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (रेखता कर भावपुजा), ८४६६९ साधारणजिन पद, मु. सेवक, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (ए दुख केसै मीटै जिने), ८२८७२-५ साधारणजिन पद, मु. हर्षकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम देखो विराजत है), ८१६४६-२(2) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (अटके हो नेणां जिन), ८५५२३-१४(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (अमरासे कोल केएणी जिन), ८५३८४-५ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (ट्रक सुनीयो नाथ),८२१७८-४ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर वांदौ जणदेव), ८२७२६ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पीहरीइं जी अमे), ८५३८४-३ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्यारे हो लाल प्रभु), ८१४६५-६ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो मन मोहिलीयो है), ८१४६५-२ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वुबरी वाणी जिनवरतणी), ८२६७२-२(2) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (साहिब सचा तुं धनी तु), ८३७४७-१ साधारणजिन स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (अरिहा प्रभुजी त्रिगड), ८१६३२ साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (होइ आनंद वहार रे), ८५२१२-१(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ८४१७७-१ साधारणजिन स्तवन, पं. कनकप्रिय गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (म्हारा साहिबीया), ८२६२०-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कल्याण, मा.ग., गा.८, पद्य, श्वे., (भगति एवी रे भइ एवी), ८३०६२ साधारणजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदा ताहरी वाणीइं), ८१३१३-२(+#), ८३८६९-२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (अंस जिनराया सुंदर), ८१६७६-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८९३, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन सांमी अंतर), ८१६७६-३(2) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुंहि तुहि तु), ८३०३२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आज माहरा प्रभुजी), ८४४५९-१ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (जिनराज हमारे दिल), ८४८३०-७ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० साधारणजिन स्तवन, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमो नमो रे देव), ८४९४१-१२(2) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (आबोलो स्याना ल्यो छो), ८४९३६, ८५३०६-२ साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (में मतवाला जिनका), ८४२३७-२ साधारणजिन स्तवन, मुसीराम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीअरिहंता), ८३१७०-१(-) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूर का), ८१३१५-२ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (यातन काची माटीका), ८४७०५-३ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (हरे निरंजन साहिबा), ८२७६३ साधारणजिन स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (साचो साहिब सेवीयै रे), ८४५४८-१२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रभुजी थारा दरसण), ८१५००-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. श्रावंत, मा.गु., गा. १०, वि. १६२६, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर पाय नमुजी), ८४३७८-१(#) साधारणजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (भाव भगति मन आणि घणी), ८३१७१-३(+), ८४५४१-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. सिवचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (आज सफल दिन मांहरो), ८१४७४-२(2) साधारणजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चितराजा सुणवू पसुं), ८१६४४-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. सेवक, बं., पद.७, पद्य, मप., (तोमी देखो जिनराज), ८१६७७-२ साधारणजिन स्तवन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (अब मेरी नइया लगा दो), ८१७४५-१०(+) साधारणजिन स्तवन, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (किसी की परवा नही), ८३१४२-७ साधारणजिन स्तवन, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (देखो रे जिणंदा), ८४७५६-१ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुंदर सोभागी रे जिनव), ८१५५२-११(#$) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरप्रभु अवधारो), ८४३०८ साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (मेरा साहिब सुगुण), ८४१६४-१(+) साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ८५५२६-१(+) साधारणजिन स्तवन-त्रिगडाअधिकारमय, ग. पद्मसागर, मा.गु., गा. १९, वि. १७०९, पद्य, मपू., (सिद्धारथ कुल चंदलो), ८४८३९ साधारणजिन स्तवन-पूनामंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विस्वना वाला रे), ८५२९० साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ८१३७१-२(+), ८५५६२-९(+#), ८२८५६-१(#) साधारणजिन स्तुति, मु. गुणविनय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (आ जिन मुख छवि अजब), ८४२५२-३(+) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुखहरण जिणेंद्र कर्म), ८१६४३(4), ८३०६०(#) साधारणजिन स्तुति-विभिन्न तीर्थमंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्टापद जिम आदि जिन), ८१७५१ साधारणजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुण खेले तोसें होरी), ८५५२३-२१(+#), ८५५१२-४ साधारणजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रंग मच्यौ जिनमंदरमें), ८५५२३-२०(+#) साधारणजिन होरी, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (फाग रमे रस रंग प्रभू), ८२७३४-२(+) साधु ३० उपमा सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., गा. १२, वि. १८३३, पद्य, स्था., (तिस ओपमा साधरी रे), ८५००२-२(#) साधु आचार सज्झाय, पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (पंचमहाव्रत शुधा पालै), ८२७३७-१(#$) साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., गा. ५३, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (चेलुजी स्वामी घर छोड), ८५०२३(+), ८५०३६(+), ८१३४८(#) साधु आहारग्रहण के ६ कारण, पुहिं., गद्य, मूपू., (पेलो दशभेदे), ८४६५०-३(+$) साधु कालधर्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोटिकगणवइरी शाखा), ८४८७६-२ साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहि., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ८५४७८-३ साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (साधु धन ते जीता), ८४३२९(-) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुगुण सज्झाय, ऋ. नवलमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रद्धावंत साधु धरम), ८२६६०-१(#) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., गा. ९, पद्य, मपू., (पांचेइंद्रीरे अहनिस), ८४४६७-६(+) साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे मुनी के नमियो), ८१७४५-५(+) साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (दियावंत गुणा का साघर), ८१७४५-८(+) साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीम भमरो फल), ८२९१०-२ साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तारण तिरण जिहाज तुम), ८२९७१-१, ८४९५३-२ साधुगुण सज्झाय, पुहिं., पद. २, पद्य, श्वे., (पुरण गुण संपन्न महा), ८४७८०-५(-) साध गोचरीअर्पण सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (झिरमर झिरमर मेह वरिस), ८४६८२ साधुदिनचर्या सज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मपू., (गोयम पूछे वीर पास), ८५२२२-२(#) साधु पंचभावना, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ६, गा. ९५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (स्वस्ति सीमंधर परम), ८४९५८(+) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, म्पू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ८४९६०-२(2) साधु भगवंत को पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ८४६९८ साधुवंदनसेवन सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (श्रावक समुजी एम विचा), ८५२८४(2) साधुवंदना, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३९, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं गिरवर), ८३६६८-१(२) साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमुं), ८२८५०-१(4) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ८१७३७($) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), ८२१२०(+$), ८१५७६(६) साधुवंदना, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८४४९४(+5) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ८१७९४(+9), ८१८०९(+६), ८३८९७(+६), ८४३६२(+), ८४८५७(+), ८१५०२(5), ८४७७२(६) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), ८१४५६(+), ८२८९६, ८१३५२-४(-#$) साधुवंदना सज्झाय-लघु, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नित), ८५२८०-२(-) साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ मास तांइ साधु मन), ८२०८५-१, ८४६५७(#) साधुसाध्वी २५ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पात्रओ१ पात्राबंधन२), ८५१६४-५ साधुसाध्वी योग्य वस्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (कादव थोडो१ प्राणी), ८१९४७-१५(#) साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे साधु आधाकरमी उपास), ८१७५५(+$) साधु सामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिथि २ थाइ तिवारइ), ८१७४६-२(+#) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा.८, वि. १७५८, पद्य, श्वे., (श्रावक व्रतधारी गुण), ८३६६६ सामायिक सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., गा.१८, वि. १८३१, पद्य, स्था., (दोषण टालेने करो रे), ८३९०८ सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सामायिक मन सुधे करो), ८२७२५-२(+) सामायिक सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (मन वचन काया सावज), ८४३९५-१(+) सारस्वत घृतनिर्माण विधि, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (पाठ१ वच२ मीरच३ पीपली), ८२०५५-२ सिंधुचतुर्दशी, पुहिं., गा. १४, पद्य, जै.?, (जैसे काहु पुरुष कौ), ८४००६-२ सिंहगफावासी साधु कथा, मा.गु., गद्य, मप., (--), ८५५९३-१(#$) सिचियायदेवी स्तुति, मु. जयरतन, रा., गा. ३३, वि. १७६४, पद्य, मपू., (मन सुध ज्यां महिर कर), ८१६३३(+#) सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (उरधलोकमाही एक सम ४), ८५५४७-१(+), ८५०४४-१ सिद्धगिरि स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ८५१३१-२ सिद्धचक्र गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नो०), ८१६८९ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० सिद्धचक्र गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे महारे जिनआणा), ८५४६९-१($) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय सिद्धचक्र सुर), ८४३५९-३(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद उज्जल नमुं), ८४३५९-१(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), ८४३५९-२(*) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू (सिद्धचक्र आराधता), ८४६२२-२ " सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (भजो भवियण भजो भवियण), ८५००३ -११(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (सिद्धचक्र आराधता), ८५४०८-२, ८५५६६ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नगरी तो चंपापुरी), ८५००३ -१०(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ८४८१२-१, ८५२७३-८ सिद्धचक्र नमस्कार, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शिवसाधन असंख्य जे), ८४८१४-१ सिद्धचक्र नमस्कार पद, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (समरु नवपद ध्यानथी पर ), ८२०२२ सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु.. गा. १५, पद्य, मूपू. (नवपदनो ध्यान धरीजे), ८४९६३-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ८३१३०-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आराघो आदर करी रे), ८१६३४-१(३) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ८१४२४-१($) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (सुरमणि सम सहू मंत्र ), ८५०३१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ८५३३० सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ८९७५०-१ सिद्धचक्र स्तवन, बा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १६५१, पद्य, मृपू. (भारती भगवति पाय नमी), ८४०३१-२(*) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ८५४४३-१($) सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, पू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ८५४८३-२ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समरु सुखदायक मन), ८३००९-२, ८५५२२-१ सिद्धचक्र स्तुति, आ. निलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. (निरुपम सुखदायक), ८५५६२-१४(११) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु.. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर भुवन दिने), ८५४६४-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), ८४८१४-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (जिनशासन वंछित पूरण), ८४७०८-१ सिद्धचक्र स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पांखीडा तुरी पांखडी), ८३९५७-३(+) सिद्धत्व प्रभाती, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( नमो सिद्ध निरंजन), ८१५००-८(+) सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ८४६९९, ८४९७४-२(क), ८५४६४-१४(४) सिद्धद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( ३ लोक माहि ए सीझ), ८४९८५-२(#$) सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ८४८१७ सिद्धपद स्तुति, उपा. चारित्रनंदि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निज भाव विलासी पर), ८३०८१-२(s) सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (बीजो मंगल मन सुध धाव), ८४६४०-१(+#), ८३११४($) सिद्ध वंदना, प्रेमदास, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., ( नमो नमो निरंजनं भर्म), ८४१७० (+) सिद्ध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउदमा गुणठाणाना अंत), ८५३६७-२ सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., डा. ३, गा. १५, पद्य, मूपु. ( श्रीजगनाधि समुखि), ८५५९५-३ सिद्धांत हुंडी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (परम कृपालु कृपानीलो), ८२६९४ सिद्धार्थराजा कृत महोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू.. (-), ८१७५३-१(३) सीतासती पद, पुहिं., पद्य, मूपू. ( जसरथनंदन कुलबहु जगत), ८२८६५-२ (-) . For Private and Personal Use Only ५९१ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ८५४२१-२(+), ८५२४८-४ सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (दशरथ नरवर राजीयो), ८३९४४-२ सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इम झुरवरा घोराणी), ८४६४८-१ सीतासती सज्झाय, पुहिं., ढा. २, गा. ५१, पद्य, श्वे., (सरसत सामण बीनम सतगुर), ८२५९७(+#) सीतासती सज्झाय-रावण, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आइ जब रावणकी राणी), ८४६४८-२ सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडो हेजालुओ), ८१३१५-८ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदं जिणवर विहरमाण), ८१४७९-४(+), ८५२७३-९ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं), ८५००३-९(2) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मप., (सीमंधर परमातमा शिव), ८२९९१-२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ८१३९३-४ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (शत्रुमित्र समचित्त), ८५५३८-३(#) सीमंधरजिन चोढालियो, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन जग जयो), ८४२९९($) सीमंधरजिन पद, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सखी दीठा श्रीमंधर आज), ८२९०१-४(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ८५४२७ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्था., (पूर्व पुकलावती विजैम), ८२८४४-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (सीमंधर विनती सुणि), ८२१५५-३ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (प्रभु नाथ तुं तियलोक), ८५२२२-४(2) सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, पू., (सफल संसार अवतार हुँ), ८१३०६-१(+$), ८१३८८-४(+#), ८१३९७-१(+), ८२९८४(+), ८४१९६(+#), ८४५४१-१(+), ८१४९९(5) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (पुंडरीगिणी नगरी भली), ८५२७९-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सीमंधरजिण साहिबा), ८२९८५-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मप., (मारी वीनतडी अवधारो), ८२०२०, ८४५४४-२(१) सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर वीनवु रे), ८४७०५-१, ८५६००(#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.ग., गा. २७, पद्य, मप., (सकल संपति सदा सरस), ८४१३२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ८१४८२-२, ८३६७८-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. किसनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिनराज तुमसुं दिल), ८४४५४-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजिन साहिबा), ८१४५२-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुस्यालचंदजी, मा.गु., गा. ९, वि. १८६८, पद्य, मप., (श्रीश्रीमीद्र सायबाह), ८२९८५-१(+#) सीमंधरजिन स्तवन, म्. चिमनविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीमंधरजी प्यारा),८१३१५-९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५३, पद्य, स्था., (सीमंधर सहव दीपता), ८१६४० सीमंधरजिन स्तवन, मु. जगरूप, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदाजी हो मे), ८३२६७-१(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), ८१४३४-२ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (मुज हीयडुं हेजालवू), ८३१७९-४ सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (चांदलिया संदेशो), ८४७९६(+),८५२६९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सिमंधरजीने वंदणा), ८४७५३(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (श्रीसीमंधर जिन), ८२७५४-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर साहिबा),८२९१८ सीमंधरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (पुरव देसा हो प्रभुजी), ८५२७८(+), ८५५०८ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ८१८१०-२(+), ८४४५१-१(+), ८५४९४-४(+), ८३०४४-१(#), ८४५४४-१(२), ८१८२३-२(६) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणज्यो), ८१८१०-५(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ११, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिणवरु), ८४३७९-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर साहिबा), ८५५३८-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. भद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था., (श्रीमिद्रजिणेजी), ८४३९५-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (साहिब श्रीसीमंधर), ८१५५२-८(+#) सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (ओलुडि महाविदेह), ८५२५०-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. यशकीर्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुज मन), ८४८२०-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ८४७४०-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धन धन क्षेत्रविदेह), ८१६६२-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पांचमें आरे रे दुषम), ८५२१५-१ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ८३७६२-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ८३००१-१, ८५३७३-२, ८१२९४-२(८) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ८४६२२-१, ८४८३२(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिंहहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर कहिज्यो), ८३११६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), ८४६२९(+$) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वालो मारो सीमंधर), ८४७०८-२($) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्पू., (श्रीमींदर जिन स्याम), ८३१५६-२ सीमंधरजिन स्तवन, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीश्रीमंधरस्वामीना), ८४६१२(+) सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, मूपू., (सिरि सिरिमिंदर सायबा), ८३५६८-३($) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, पू., (सीमंधर सामी अरज सुणी), ८१४७१-२($) सीमंधरजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (सीमंधर सामी सुनो राज),८२९७८(#$) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (संप्रति कालै वीस), ८२६५६ सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (पूरव दिशि इशान कुण), ८१३९३-३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जय जय सीमंधर जगदीश्व), ८५५८०-३(#) सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., ढा. ६, गा. ५७, पद्य, श्वे., (सुगुरू वयणे सांभलीजी), ८२०९८ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ८४७२३-५(+) सुदर्शनशेठ रास, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८४३४१(६) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शीलरतन जतने धरो रे), ८१८०१(+) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., ढा. ४, गा. २१, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद विराजता), ८३२२५-१ सुदर्शनशेठ सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सारद समरु मनरली सुगु), ८४३६४-२ सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (रीस चढी बोलै छै राणी), ८४९४०-२(5) सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोहमस्वामी समोसर्या), ८१४९७-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (चंपानयरी उद्यानमां), ८५०३८-४ सुधर्मास्वामी गहंली, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सासन नायक विरनो गणधर), ८५०३८-८ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. धीरज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु सूत्रसिद्धांतनो), ८१४९७-१(६) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चउनाणी चोखें चित्तें), ८१४९७-३($) सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनिवर हे के मुनिवर), ८५०३८-३ सुधर्मास्वामी गीत-प्रभाति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामी सुधर्मा वंदीय), ८१४५८-२ सुधर्मास्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (राजग्रही उद्यान), ८५०३८-१६ For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ८२९५६-२ सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), ८५०३८-७ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसुपार्श्व जिन), ८१६१४-२(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीरखी नीरखी तुंज), ८१५८१-२(+) । सुपार्श्वजिन स्तवन-जयपुर मंडन, मु. रत्नविजय, पुहिं., गा. १०, वि. १९००, पद्य, मूप., (हो जिनवरजी मरजी करनै), ८५२२५(+) सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढमंडन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९६१, पद्य, मूपू., (मांडवगढ मे बिराजता), ८४१५३(+) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., गा. २१, वि. १७२८, पद्य, श्वे., (धर्म जिणेसर चित्त), ८३२२५-२ सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ८५५४२(+#), ८४६२३, ८५३११ सुबाहुजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (सुबाहु जिनवर वांदीय), ८१७६१-३ सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मपू., (सिवसुख दायक लायक), ८१४५४($) सुभद्रासती ढाल, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (सुभद्राजी दीठा आवता), ८२५८६-१(#) सुभद्रासती सज्झाय, मु. चौथमल, पुहिं., पद्य, श्वे., (सुगुरु कुगुरु को), ८३१७३-७(-) सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (चंपानगरीमे सति सुभद), ८३०५८-१ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मुनिवर अरिया सोझतो), ८४४३४-१ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरावकनी छे उत्तम जात), ८४७७०(2) सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. जितसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (मुनिवर सेजि आरज्या), ८४८६८(2) सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (मुनीवर सोधे इरया जीव), ८४१६०-१(#) सुमतिकुमति सज्झाय, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुमति सोहागण वीनवै), ८५४६४-३ सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज हुँ गइती रे समवसर), ८४०७६-६, ८५०१७-३ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरखत बदन सुख पायो), ८२८६०-४(#), ८५०२६-३(#) समतिजिन विनती स्तवन, ग. रंगकलस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (पंचमी गति दायक भण्यउ), ८३८१७-१ सुमतिजिन स्तवन, अमरजी कुमर, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (सुमत एक वात सुणै), ८४७६१-२(2) सुमतिजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनसुमति जिणेसर साहि), ८४५३०-३ सुमतिजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३०, पद्य, पू., (सुमति जिणेसरजी हो), ८४११४ सुमतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभुसुं ईश्यु), ८४३४० सुमतिजिन स्तवन, मु. शुभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुमतिनाथ सुखकारी), ८४५४८-१०(+) सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ८५३६५(२), ८१४७१-१(६) समतिजिन स्तवन-उदयापरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (प्रभुस्यं तो बांधी), ८४८३०-८, ८३९०४-१(2) सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७०, पद्य, श्वे., (सरसति देवसदा मनि धरू), ८१५०४ सुरसुंदरी रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८२००२($) सुरीआभदेव वर्णन, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुरीआभ बोले बे करजोड), ८१४१०-१ सुलसामहासती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (शील सुरंगी रे सुलसा), ८४४११-१(+) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (नरत करत ताथेइ निरंजण), ८१३१६-३(2) सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (गुण अनंत अपार प्रभु), ८५२४०-२(+-) सुविधिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), ८१६७७-१ सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सुवधी जीणेसर), ८२६७७ सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.ग., ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मप., (श्रीसुविधि जिणंद), ८५५८६(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुविधि सलुणा नाथजी), ८२९७४-२ (S) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० ५९५ सुविधिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (सुविधि जिणेसर देव), ८२६७९-१ सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अरज सुणो एक सुविधि), ८४८३०-५, ८५२८१-२ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), ८४५६०-१(#) सुविधिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (तुम चरणा चित दीनो), ८२९८२-२($) सुव्रतजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लयलागी रे मुने जिनवर), ८२९०१-१(+) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पुत्र जन्म्यां १०),८४९०७(+), ८५१३९-२ सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मप., वै., (प्रणमुं सारदा गणपतरा), ८२१४५(#) सरप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सरप्रभ जिनवर धातकी), ८४१६१-३(+) सूर्यचंद्रमंडल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबुद्विपमां बे चंद), ८३९९२ सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि करोने), ८४२७८, ८२९४५(#) सोनलसती सज्झाय, पुहि., पद्य, श्वे.?, (--), ८२८८९-१(-६) सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (चउनाणी चंपावने संयम), ८२०८६-१($) सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सौधर्म देवलोक पहिलो), ८४७०० सौभाग्यविमल गुरुगुण गहंली, पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ते मुनिवर नित वंदिये), ८३०४०-३(+) सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली, पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुजो पुजो रे ते मुनि), ८३०४०-२(+) सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली, पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सखी ते मुनिवर ने), ८३०४०-४(+) सौभाग्यविमल गुरुगुण गहुंली, पंन्या. मुक्तिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (हां रे सखी तेह गुरुन), ८३०४०-१(+) सौभाग्यसूरि छंद, मु. रुघपति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (गच्छ नायक जग मे गुरू), ८३००४ स्तवनचौबीसी, मु. विनयलाभ, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (चरण कमल श्रीऋषभ), ८४४८३(+#$) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ८१३८७(+$), ८५६१०(+$), ८१७५४(६) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ८४८७७(+), ८१७०७(६) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ८४४८६(+#), ८३९७५ (#$) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ८४३५५-१ स्तवनचौवीसी, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., अ. २४ स्तवन, पद्य, मपू., (--), ८४४०६(+$) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ८१९४९($), ८२१२१(६), ८५१५५(5) स्तवनचौवीसी , उपा. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीजिन जगआधार), ८२३११(+$) स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), ८२६८६(#$) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ८१३६०(+$), ८४४७९(+$), ८४७८४(+$), ८४०३२($), ८५१५४(६) । स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ८१५५१-१(+) स्तुतिचौवीसी, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., स्तु. २४, पद्य, मूपू., (--), ८५४८१(६) स्त्री कामदेव जागृत विचार, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (अंगुठा हेठे जमे वासो), ८१५७३-२ स्त्री लक्षण, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., इतर, (पुप्फवास पदमनी सहज), ८४०९१-२(+$) स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), ८२२३३-२(+#) स्थूलिभद्रकोशा रसवेल, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति हु रचु रसवेल), ८४२५५ स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मपू., (सुखसंपति दायक सदा), ८२६९१, ८३१५५(#$), ८४२४४() स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ८४८२३, ८१५२६-२(2) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. गुणानंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सीमंति समजावी चालता), ८२७११-२(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (भल ऊगो दिवस प्रमाण), ८४९९३(+), ८२६८७ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवैर लालछोजी दया), ८४२७५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आवि वधाई श्वइ इक आली), ८४३०६-४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (कोस्या कामिनि कहे), ८२८०९ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (योग ध्यानमें जोडी), ८२९८० स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (लाछल दे मात मल्हार), ८३९८०, ८५००४-१(२) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ८४३०६-३, ८५३३२-१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (--), ८३७५५($) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रीतडली न किजीये), ८४९९०-३(+), ८४९६५-१, ८३९६९-२(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (चंदलीया तुं वेहलो), ८५५७६-७(+), ८४९९२-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ८४५२४, ८२८१५() स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चालो चालो पूरबदेस), ८५१३४-३(#) स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि.?, (एक समें चारो शिष्य), ८४७१३(+), ८१६४२, ८४३५२-१ स्नात्र पूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मप्., (पवित्र धोती पेरी रे). ८४९१४($) स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (पूर्वे बाजोट उपरि), ८५३७६(5) स्नात्र पूजा, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मपू., (मुक्तालंकारविकारसार), ८४८३८($) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ८३६८०(+$), ८४८३१-१(+), ८२४६२(#), ८४२४३($) स्याही विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (भोडल री स्याही भोडल), ८३८०९-४(#) हनुमत्पूजन विधि, मा.गु., गद्य, वै., (राती धोती, लाल अंगोछ), ८३५४५-२ हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मूपू., (सुखदाई समरूं सदा), ८१३१४(+$) हरिबल सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (हवि सुणयो भवियण तुमे),८५५९४-२ हस्तप्रत लेन देन व्यवहार पत्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, श्वे., (संघाडा श्री पूज्यजी), ८४६८३ हीरचंदराजा रास, मा.गु., पद्य, जै., (राजा हीरचंद मोटको), ८२८१२(#s) हीरविजयसूरि सज्झाय, ग. सोमकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (सरसति सामिणि हुं), ८४५४८-८(+) हीराणंदसूरि यशवेलि, ग. शुभंकर, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वरदाइनी), ८४९४२ होडाचक्रविलास-भाषा, मु. सुंदर ऋषि, मा.गु., प+ग., जै., इतर?, (माता सरस्वति प्रणमीए), ८१९६१-१(+) होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ५९, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), ८५५५९-२(+), ८१७२७, ८२५९३ होलिकापर्व सज्झाय, मु. जिनदास, रा., गा. ४, पद्य, भूपू., (नेमीसर वनखंडरो वसीयो), ८१९२६-२(#) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kaucasadne KETER OM HEMEntraTONTATREATRE NECONGRENThaneaase SETusanari animated htantramarety 2202Tube ReदादाhिamelDAYIC ELफविषadmin BARomdasti मोनयन Dehautam रिशिक्षिARAAT शिवविद्यमीनरामीगत मनcipe Deram न आराधना समय-यंपारिमविपरि Matronoger हावीर जैन केन्द्र कोन श्री कोबा. Radasleblen 卐 卐 अमृतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-93-5 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only