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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२०
२. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, मा.गु., पद्य, आदि: रीस चढी बोलै छै राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक
८४९४१ (4) औपदेशिक पद, स्तुति व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२५४१२, १९४३८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पहिं., पद्य, आदि: पालो पालो रे संजम कि; अंति: मिलि एह विरिया रे, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो मेटो रे भवीक जन; अंति: तिलोक० सुविसाली रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-लोभ परिहार, म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: छोड़ो छोड़ो रे कपवट; अंति: थने शिववधु वरणी
रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मानो मानो रे सुगुरु; अंति: तिलोकप्रभु सरण हेणी, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भइ रे वटाउ जागो; अंति: उवट पंथ सिव जागो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण..
म. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: चेतो चेतो रे चतुर जग; अंति: तिलोक० गामे चोटा रे, गाथा-५. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: काटो काटो रे काल की; अंति: तिलोक० नही खासी रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मानो मानो रे सिखामण; अंति: अमृत शिव तेरी रे, गाथा-६. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: सतगुरुजी कहे जग; अंति: करु प्रभुजी जपना रे, गाथा-४. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: करा करो कर्म से दंगा; अंति: तिलोक० रंग अथंगा रेक, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-रात्रिभोजन त्याग, म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मत करो रे भोजन निसि; अंति: फल अति
सुखदाई रे, गाथा-६. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नमो नमो रे देव; अंति: दीजो मदाई भगवंता रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नम गुरु जपो रे आप; अंति: विचल वीस वसैया रे, गाथा-६. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: धर्मरूपी वनाय लो; अंति: कहे धर्म गह्या रे, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: करो गानादिक को अजवाल; अंति: मुकति को मालो रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सुध सम्यक्त वरत रस; अंति: म तिलतर जड टींचो रे, गाथा-६. १७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. २आ, संपूर्ण.
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