Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंति: असेस साहारणा भणिया. ५६४०." सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. गा.२९८, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन
विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४११, ८-९४३२-३६).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ५६४१. चार प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१०(१ से १०)=३४, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, ढाल-४४, ग्रं. १२१९;
प्र.पु.-मूल-गा.८७०, पू.वि. प्रथम खण्ड नहीं है., (२६.५४११, ११-१२४३७-४२)...
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि:-; अंतिः आणंद लीलविलास. ५६४४." विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १५
१६x४१-५४). जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:५६४५. नागिलसुमति रास, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले.- मु. वर्द्धमान, प्र.वि. गा.१०७,
(२६४११, ११४४०-४५).
नागिलसुमति रास, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर पाय नमी; अंतिः तेह लहि सुख अपारूए. ५६४६. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., अन्य- आ. सोमसुन्दरसूरि, प्र.वि. आचार्य
सोमसुंदरसूरि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४११, १५४३७-४१).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:५६४७. धन्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. कनकचारित्र, प्र.वि. गा.३३०, (२६.५४११, १२४३९-५३).
धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., पद्य, वि. १५१४, आदिः पहिलउं पणमी पयकमल; अंतिः कीयो कवित अतिचङ्गो. ५६४८. निर्यावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. ५, जैदेना., (२५४११, ११४३९-४३). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र की टीका, पृ. १आ-१४अ
कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पार्श्वनाथं नमस्कृत्; अंतिः शेषं सर्वं सुगमम्. पे..२. पे. नाम. कल्पावतंसिका की टीका, पृ. १४अ-१५अ
कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रेणिकनप्तृणां; अंतिः द्वितीयवर्गश्च. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र की टीका, पृ. १५अ-२४अ पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ तृतीयवर्गोपि दशा; अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता., पे.वि. १०
अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र की टीका, पृ. २४अ-२४अ
पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः चतुर्थवर्गोपि; अंतिः चतुर्थवर्गसमाप्तिः. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र की टीका, पृ. २४अ-२४आ
वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा; अंतिः दुखानामन्तं करिष्यति. ५६४९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, ले.- ऋ. बालाराम, प्र.वि. मूल
गा.१०५., (२५४११.५, ६-७४४७-५२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चतुर्गति रूप संसारने; अंति: मांहि अवतरिवो नही. ५६५०.” ज्योतिषसारोद्धार सङ्ग्रह व चतुर्थव्रतपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १६७१, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अजैदुर्ग,
ले.- मु. कर्मसागर (गुरु मु. हीरसागर, मलधारगच्छ), दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
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