Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ अपूर्ण से ७६ तक है., वि. सचित्र व सारिणीयुक्त) ७७५६०. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी खंडित है., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., __ अध्ययन-३६, गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) । ७७५६२. (+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यानद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१२, २३४५७). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (१)अरस्यप्रवृज्यानमिजिन, (२)क्षितौ पृथिव्यां अवः; अंति: तान्प्रव्राजितवानिति. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, प. २अ-२आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: राजगृहिपुर्यां समव; अंति: (-), (पू.वि. सुव्रत श्रेष्ठि की आराधना से चौर के स्तंभित व राजा के प्रभावित होने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७७५६३. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. बाट बहता जीव के २५ बोल, पृ. ५अ, संपूर्ण. २५ बोल-त्रस जीव, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै सरीर; अंति: वहती जीव मैं पावै. २. पे. नाम. २१ औपदेशिक बोल, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोल धनवंतसुं; अंति: बाद न कीजै २१. ७७५६५. १०८ स्नात्र विधि व आगतिकाष्टोत्तर विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १७४३७). १. पे. नाम. १०८ स्नात्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सोपारी ४३२ खारिक ४३२; अंति: च कर्त्तव्यमिति. २. पे. नाम. आगतिकाष्टोत्तर विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि-आगतिक, सं., गद्य, आदि: इहापि सर्वोपि स्नात; अंति: कीजइ यथाशक्ति कीजइ. ७७५६६. पट्टावली सज्झाय व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरोदितवाचश्च; अंति: ददतां शिवसंपदः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षसागर, सं., पद्य, आदि: जयविभोवृषभोवृषभांकित; अंति: लाभसुसागरहर्ष कृत्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रविसागर, सं., पद्य, आदि: प्रणमामिमुदात्रिशला; अंति: यद्गुरुशिष्यसुखम, श्लोक-४. ७७५६७. (4) पगामसज्झायसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७७५६८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५४, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १२३-१२२(१ से १२२)=१, ले.स्थल. पोटला, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., उपसंहार अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेहनउ आठमु अध्यैनइ, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 612