Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.११ www.kobatirth.org १. पे. नाम, वज्रपंजर कवच, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कारं अंति: राधिश्चापि शरीरजा, लोक ८. , २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो माहाविर अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४८०१८. सासरउ सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११, ११x२२). आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे इम जइ जइ रे; अंति: सीवपुर लहीये रे बाई, गाथा - ९. ४८०२०. जखडबंदरस्थित जिनमंदिर अंजनशलाका वर्णन स्तवन, संपूर्ण वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, बे., (२३.५x१२.५, १०X३१-३३). ४८०२१. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १०, जैदे., ( २४४१२, १३-१५X३५-३८). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. " जखडबंदरस्थित जिनमंदिर अंजनशलाका वर्णन स्तवन, आव, वीरचंद अंवाराम, मा.गु. पच. वि. १९२७, आदि: जखडबंदर जुहारी हो; अंति: गुण गाए वीरचंद दाशसु, गाथा- १२. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि नीसदिन जोड थांरी वाट अति आवसे सेजडि रंग रोला, गाथा-५. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण मु. जगराम, पु,ि पद्म, आदिः खलक इक रेण का सुपना अंतिः कहै जगराम वटैरी, गाथा-५, ३. पे. नाम. आदिजिन रेखता, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मुझे है चाव दरसन का अंति: कुमत के० क्या होयगा, गाथा-४. " ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिन नाम कुं समरलैरे, अंतिः झुठा है सब जतन, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पोकारे नेम, अंति: चैनवि० मुक्तिकुं वरी, गाथा- ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम मराजिमती पद, पृ. २अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब माइरी गीरनार जान, अंति: कहता सदा सुख धाम है, गाथा-७. ७. पे. नाम. मुक्तिरमणी पद, पृ. २अ संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं, पद्य, आदि जिहां अनंत सिध सदाई, अंतिः रमण चित धारो जी, गाथा- ३. " ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ४५९ मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: एही सुभाव पड्या येसै; अंति: पातक सकल झडाक झड्या, गाथा-२. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन पद- केसरीया, श्राव. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: केसरीया सै लागो मारो; अंतिः ऋषभ० सेवक अपन जाण, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहडा तु अंतिः वंदन बामाजु के लाल, गाथा-४. ४८०२२. (*) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे... For Private and Personal Use Only (२३.५X१०.५, १६X३२-३६). १. पे. नाम. सातव्यसननिवारण सज्झाय ५. १ अ. संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आवि: मनुष जमारो पायक करणी, अंति: (-), गाथा-१६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रथम दाल की गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण हिं., पद्य, आदि: मैण माणेक मोती घणा, अंति: हम यह वीचारी, गाथा-१८.

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