Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 11
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
४७२
www.kobatirth.org
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समझि समझिरे भोला, अंति: परभव सुख अपार जी,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गाथा-५३.
२. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, अन्य. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
औपदेशिक दोहा, आ. कृष्णसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हेमरकी तो हुं सजाण; अंतिः विण बूडो सब जाणवो, दोहा-२. ४८१२७. (+) धनराज गुरुगुण रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३५-४०). धनराजगुरु गुण रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी, अंति: संघ सहुनै जय जयकार, गाथा-४६. ४८१२८. बाद व छप्पय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५x१०.५, १२४५१).
१. पे. नाम, कलकाटक, प्र. ९अ-१ आ. संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं अंतिः पादेन विस्फालितः, श्लोक १३.
२. पे. नाम. महावीरजिन छप्पय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. नाथ, पुहिं., पद्य, आदि: हेलि दुठ सुदरसण हेलि; अंति: नाथ कहै दुहजल तरण, पद- १. ४८१२९. श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१x११.५, ११x२१). श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः (-),
"
(पू.वि. 'ज्ञानाचार' अपूर्ण तक है.)
४८१३१. दस दृष्टांत, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४ वे. (२३.५x१०.५, १२x४२).
"
मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रथम चूलक भोजन खीर, (२) प्रथम मनुष्यपणुं जे;
अंतिः सुकृतीभूयस्तमाप्नोति.
४८१३२. दंडकविचार षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८८५, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल. वणारस, प्रले. मु. कुसलसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५X११, १०X३८).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा ४०.
४८१३३. स्तंभनक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. दो-दो गाथाओं को एक गाथा बनाकर गाथा सं. लिखी गई है., जैदे., ( २४.५x९.५, १२X३९).
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथह चउसालो, गाथा- ८. ४८१३४. श्रावक अतीचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२३.५x१०.५, ११४३६).
श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: जो कोवि हु पाणगणो; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ४८१३५. (#) जीवविचारसूत्र प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. साडैरानगर,
प्र. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५, १२X३०).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवण पश्वं वीरं नमिउण अंतिः रुदाओ
"
"
सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614