Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 09
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तारक धरम जीनेसर केरो; अंति: जुग में धरमध्यान कीज, गाथा १०. २. पे. नाम. चार शरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोमल ऋषि, मा.गु पद्य वि. १८५२, आदि सदा पो उठीने सीवरी अंति हो सुणजी बालगोपाल, गाथा - ११. ३४५०४. (+) संतोकचंद गीत व सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. दांसफानगर, प्रले. हीमतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे. (२०x११, १९४१८-२१)१. पे. नाम. संतोकचंदमहाराज गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. + संतोकचंदमुनि गीत, मोतिलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९६४, आदि: (१) मुरधरदेश दक्षण दिशे, (२) संवत उगीच वरस, अंति: मोति० अरजमोरी अवधारो, गाथा- १२. २. पे. नाम. अज्ञात जैनेत्तर कृति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३४५०५. उत्तराध्ययन सूत्र विणय अध्ययन-१, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५x१०, १०x३२-३५). - उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४५०७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५X११, १४X३२). औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., पद्य, आदिः ख्वाम्यां धरम पली कय अंतिः थकी सुख सांपजे, गाथा २०. ३४५०८. (#) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २०x१०.५, 3 १७४२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: हुंउ वारी धन्ना तं; अंति: होवे जय जयकार हो, गाथा- १२. ३४५०९ गंभिरापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२०.५x१०.५, १०x२३). पार्श्वजिन स्तवन- गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगंभिरापार्श्वजी, अंति: धर्मविजय गुण गाव जी. गाथा ७. ३४५१०. गोचरी के ४२ दोष, श्लोक संग्रह व द्विजवदन चपेटा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे., (२०.५x११-११.५, २३४५१). १. पे नाम, गोधरी के ४२ दोष, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गोवरी के ४२ दोष * मा.गु., गद्य, आदि आधाकर्मि क० षट्काय, अंतिः ते छर्दित दू: कहीये. 1 २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक लोकसंग्रह, पुहिं. सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाथा-४, ३. पे. नाम. द्विजवदनचपेटागत लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, आदि: अरण्ये निर्जलदेशे अंतिः मन्यते बुधैर्जनैः श्लोक ५. ३४५१२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २३४११, १४४३८). गौतमस्वामी रास, रा., पद्य, आदि: सुरसत सामण विनय, अंतिः भणन वालारा पुरवीस आस, गाथा- १४. ३४५१३. नेमिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जै.. (२३१०.५, १४४४१). १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजे सुत लाडलो, अंति: गुण चोथमलजी गाया रे, गाथा- १७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीश्वर साहिबा, अंतिः चोथमम० एकीधी अरदास, गाथा-८. ३४५१५. (+) पार्श्वजिन स्तवन सह टीका व पंच समवाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३x१०, २१ - २३X५७). १. पे. नाम. यमकबंध पार्श्व स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक- ७. For Private and Personal Use Only

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