Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 01 Gujarati
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shanti Jin Aradhak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 693
________________ कटुता कदी ना कोईथी सहु जीव पर मैत्री धरे, बालक तणा पण गुण निहाळी हर्षथी हैयुं भरे; दुःखी अने पापी विषे जस हृदयथी करुणा झरे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जे योग्य जीवो जोईने हित शीखडी प्रेरक कहे, सुधरे न एवा जीव पर माध्यस्थभाव हैये रहे। सत्कार के अपमानमां समभावनी सरिता वहे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जे श्वास अने उच्छासमां अरिहंत अंतरमां धरे, वाणी सुधाथी भविकमां अरिहंत रस हृदये भरे; मन-मंदिरे अरिहंत ध्याने आतमा निर्मळ करे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना प्रभु मूर्तिमां प्रभुने निहाळी जगतने जे भूलता, निज मधुर कंठे स्तवन गाता बाळ जिम जे डोलता; 'प्रभु' भक्तिनी मस्ती वडे निज हृदयने जे खोलता, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना - रचयिता : भूकंपमा अवसान पामेल प्रभुलाल वाघजी छेडा, मनफरा (कच्छ) sh * * * * * * * * * * * * * 931

Loading...

Page Navigation
1 ... 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708