Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ क्या ईश्वर है? ५ होता है। हमारा श्वास न साधु है, न संन्यासी है, न तपस्वी है, न अर्हत है, न सिद्ध है । फिर उसके दर्शन से कर्म-निर्जरा कैसे होगी? यह भौतिक तत्त्वों का मिश्रण मात्र है, फिर भी यह कर्म-निर्जरा का हेतु कैसे बन सकता है। प्रश्न श्वास को देखने का नहीं है उसके साथ कुछ और जुड़ा हुआ है । हमें उस शक्ति को विकसित करना है जो शक्ति हमें ईश्वर बना सकती है, आदर्श तक ले जा सकती है । वह शक्ति है चित्त की पवित्रता। कोई भी व्यक्ति चित्त की पवित्रता के बिना आज तक न आदर्श तक पहुंचा और न कोई पहंच पाएगा । वे ही व्यक्ति अपने आदर्श तक पहुंचे हैं जिन्होंने अपने चित्त की निर्मलता की साधना की है, एक भोले बालक की तरह अपने चित्त को बिलकुल निर्मल बनाया है। ___महाप्रभु यीशु से पूछा किसी ने कि स्वर्ग में कौन जा सकता है ? तत्काल उन्होंने बच्चे को उठाया हाथ में और कहा कि जिसका चित्त इस बच्चे की भांति निर्मल होगा वह स्वर्ग में जा सकेगा। भगवान महावीर से पूछा, धर्म क्या है ? धर्म का आवास कहां है ? भगवान् महावीर ने उत्तर दिया धर्म पवित्र आत्मा में है। फिर पूछा, पवित्र कौन है ? उत्तर मिला---पवित्र वह जो सरल है । प्रवंचना करता है, छलना करता है और ठगाई करता है, छुपाना जानता है वह अपवित्र है। उस आत्मा में धर्म नहीं टिकता । जिसमें कोई वंचना नहीं, ऋजुता और सरलता है,उसका चित्त निर्मल है उसमें धर्म टिकता है । जहां कपट है वहां धर्म कहां से टिक पाएगा? जो सरल और पवित्र होता है वह विकास कर सकता है । चित्त की पवित्रता के लिए चंचलता को मिटाना जरूरी है । चंचलता को मिटाने के लिए श्वास का आलंबन लेना है । यह एक आलम्बन है । जैसे नौका को उस पार ले जाने के लिए डांड जरूरी है। खेये बिना वह नौका पार नहीं जा सकती है। डांड पर बैठा नहीं जा सकता, पर डांड का इतना ही मूल्य है कि उससे नौका को खेया जा सकता है । श्वास का इतना ही मूल्य है कि इसके माध्यम से चित्त की चंचलता को दूर किया जा सकता है, चित्त को स्थिर किया जा सकता है । जब चित्त स्थिर बनता है तब चित्त की निर्मलता अपने आप शुरू हो जाती है। जिस व्यक्ति ने अपने चित्त को स्थिर और शांत बना लिया उसके लिए दरवाजा अपने आप खुल जाता है। जिसका चित्त चंचल है, उसके लिए दरवाजा बन्द है । आगे बढ़ने का दरवाजा बिलकुल बन्द है । प्रेक्षाध्यान इन पांच आचारों को शिक्षित करने के लिए पांच केन्द्रों का अभ्यास प्रस्तुत करता है। ज्ञान कि शक्ति को विकसित करना है तो ज्ञान केन्द्र का अभ्यास करना होगा, ज्ञानकेन्द्र को विकसित करना होगा। चोटी का स्थान ज्ञान केन्द्र का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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