Book Title: Jivan ki Pothi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ क्या ईश्वर है ? अनेक औषधियां खोजी गईं और अनेक उपाय खोजे गए जिससे कि बुढ़ापा न आए । आज भी खोज चालू है। कुछ नियंत्रण भी पाया है। अमरत्व की खोज भी चालू है। हमारा आदर्श है-अजर और अमर । न जरा और न मौत । सुख भी ऐसा कि जिसमें कोई बाधा न हो। वह सुख नहीं कि जिसमें एक क्षण तो सुख होता है और दूसरे क्षण में दुःख होता है । वैसा सुख नहीं, निर्विघ्न सुख-जिसमें कोई बाधा नहीं, कोई रूकावट नहीं । निरन्तर सुख का प्रवाह चालू रहता है यानी अनन्त सुख और अवाध सुख । अनन्त ज्ञान । ज्ञान भी सीमातीत हो । अनन्त शक्ति । शक्ति भी असीम । इन सबको मिलाएं तो हमारे आदर्श की प्रतिमा बन जाएगी, और उस आदर्श की प्रतिमा का नाम है ईश्वर । वह अनन्त ज्ञानमय, अनन्त शक्ति-सम्पन्न, अबाधित सुख-सम्पन्न अजर और अमर होगा । अगर आपने उस आदर्श की प्रतिमा को बना लिया है तो बहुत अच्छी बात है। अगर नहीं बनाया हो तो बना लें। है तो बहुत अच्छी बात, अगर नहीं है तो इस प्रकार के ईश्वर का हमें निर्माण करना है। हमें उस अवस्था में पहुंचना है जहां ये सारी बातें मिलती हैं । हमारी दुनिया में ये सारी बातें नहीं हैं। शिव है पर साथसाथ में अशिव भी है। बहुत सारे उपद्रव होते हैं। उपद्रव होते हैं तो शिव की प्रतिमा खंडित हो जाती है। आदमी अचल भी है पर चंचलता इतनी ज्यादा है कि अचलता समाप्त हो जाती है। आरोग्य भी है किन्तु जाने अनजाने में रोग शरीर पर उतर आता है। आदमी बीमार बन जाता है। हमारी दुनिया में बुढ़ापा भी है । ज्ञान भी है पर असीम नहीं है । शक्ति भी है पर असीम नहीं है । हैं सारी बातें, पर --जिस दिशा में हमें प्रस्थान करना है, जहां हमारा लक्ष्य है, हमारा आदर्श है, हमारा ईश्वर है, उस अवस्था में ले जाने के लिए हमें कुछ प्रयोग करना है। प्रयोग पंच-आचारात्मक है----- पहला आंचार है-ज्ञान । दूसरा आचार है- दर्शन । तीसरा आचार है- चरित्र । चौथा आचार है-तप । पांचवां आचार है-वीर्य-शक्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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