Book Title: Jivan Paribodh Ka Marg Dharm Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 5
________________ सत्य के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती, उसके लिए साधना करनी पड़ती है। मन को समता और अनाग्रह से जोड़ना होता है। सामाजिक सम्बन्धों में वीतरागता का अर्थ होता है. आप अपने सुख के पीछे पागल 70 पूर्ण हो, दूसरे के लिए अपने सुख का त्याग करने को प्रस्तुत हों, तो सामाजिक क्षेत्र में भी निश्चय धर्म की साधना हो सकती है। राजनैतिक जीवन भी आज आसक्तियों के गन्दे जल में कुलबुला रहा है। विचारों की आसक्ति, पद और प्रतिष्ठा की आसक्ति, कुर्सी की आसक्ति ! दल और दल से मिलने वाले फल की प्रासक्ति ! जीवन का हर कोना आसक्तियों से जकड़ा हुआ है--फलतः जीवन संघर्षमय है। धर्म का वास्तविक रूप यदि जीवन में आ जाए, तो यह सब विवाद सुलझ सकते हैं, सव प्रश्न हल हो सकते हैं और धर्म फिर एक विवादास्पद प्रश्न के रूप में नहीं, बल्कि एक सुनिश्चित एवं सुनिर्णीत जीवन-दर्शन के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत होगा। धर्मनिष्ठ व्यक्ति वह है, जिसे कर्तव्य-पालन का दृढ़ अभ्यास है। जो व्यक्ति संकट के विकट क्षणों में भी अपने कर्तव्य का परित्याग नहीं करता, उससे बढ़कर इस जगती-तल तर्कातीत है, वहाँ तर्क की भी पहुँच नहीं है। कर्तव्य-कर्मों के दृढ़ अभ्यास से, सतत अनुष्ठान से धार्मिक प्रवत्तियों का उद्भव होता है। अभ्यास के द्वारा धीरे-धीरे प्रत्येक कर्तव्य, धर्म में परिणत हो जाता है। कर्तव्य, उस विशेष कर्म की ओर संकेत करता है, जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए। कर्तव्य करने के अभ्यास से, धर्म की विशुद्धि बढ़ती है, अतः यह कहा जा सकता है कि धर्म और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे के विघटक नहीं। क्योंकि धर्म का कर्तव्य में प्रकाशन होता है और कर्तव्य में धर्म की अभिव्यक्ति होती है। धर्म क्या है, इस सम्बन्ध में पौर्वात्य एवं पाश्चात्य सभी प्रात्म-लक्षी विद्वानों का एक मत है कि धर्म मनुष्य के मन की दृष्प्रवृत्तियों और वासनात्रों को नियंत्रित करने एवं आत्मा के समग्र शुभ का लाभ प्राप्त करने का एक अभ्यास है। धर्म चरित्र की उत्कृष्टता है। अधर्म चरित्र का कलंक है। कर्तव्य-पालन में धर्म का प्रकाशन होता है, इसके विपरीत पापकर्मों में अधर्म उद्भूत होता है। धर्म आत्मा की एक स्वाभाविक वृत्ति का नाम है। जीवन परिबोध का मार्ग : धर्म 111 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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