Book Title: Jivan Me Swa Ka Vikas Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 2
________________ दाव परल नाचक सकते हैं, किन्तु मनुष्य के मन का सूक्ष्म विश्लेषण करने वाला मनोविश्लेषक और अध्यात्म की गुत्थियाँ सुलझाने वाला संत, उसे मनुष्य के मन की ग्रन्थियाँ एवं राग-द्वेष की सूक्ष्म वृत्तियाँ ही बतलाएगा। वस्तुतः वही इसका एकमात्र मूल है। जिन्हें आप धर्मपुत्र कहते हैं, नीति और धर्म का प्रहरी समझते हैं, वे युधिष्ठिर अपनी धर्म-पत्नी द्रौपदी को, जो पवित्र तेजस्वी नारी है, तक नहीं। संस्कृति की यह कितनी बड़ी विडम्बना है ! इसका मूल कारण वही है—द्यूत का अनुराग ! और, उसके पीछे खड़ा है सत्ता और विजय का व्यामोह ! मध्यकाल के भारतीय इतिहास के विक्रमादित्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने, जिस शौर्यशाली वाकाटक वंश की परम सुन्दरी कन्या ध्रुवदेवी के साथ पुनर्विवाह किया, वह कौन थी? चन्द्र के बड़े भाई रामगुप्त की पत्नी ! जब रामगुप्त शकों द्वारा बन्दी बना लिया गया, तो शकराज ने प्राणदण्ड से बचने का एक मार्ग बताया कि तुम अपनी पत्नी को हमारे चरणों में सौंप दो, उसके अद्वितीय सौंदर्य का उपभोग करने दो। इस पर रामगुप्त ध्रुवदेवी को पत्र लिखता है. कि "मैं शकराज द्वारा बंदी बना लिया गया है. मेरे लिए जीवन रखने का एक ही मार्ग है कि तुम शकराज की सेवा में तन-मन से समर्पित हो जाओ!" यह घटना क्या बताती है ? एक सम्राट्, मगध और अवन्तिका के विशाल साम्राज्य का होनहार स्वामी, जिसका कर्तव्य था अपने धर्म की रक्षा करना, प्रजा के तन-धन और जीवन की रक्षा करना, पर वह अपनी पत्नी की भी रक्षा नहीं कर पा रहा है ! अपने जीते जी, अपने हाथों से अपनी पत्नी को, शत्रु के चरणों में समर्पित करना चाहता है। यह बात दूसरी है, चन्द्रगुप्त के पराक्रम और सूझ-बूझ से यह दुर्घटना होते-होते बच गई ! किन्तु मैं देखता हूँ, एक क्षत्रिय राजकुमार ! सम्राट् समुद्रगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र ! इतने स्तर पर क्यों पा गया? अपने प्राणों के तच्छ मोह और राग में अन्धा होकर ही तो। मगध का प्रतापी सम्राट अजातशत्रु कुणिक अपने पिता महाराज श्रेणिक को बन्दी बनाकर पिंजड़े में बन्द कर देता है। जैन आगम बताते हैं कि कुणिक के जन्म लेते ही उसकी माता महारानी चेलना भावी अनिष्ट की किसी आशंका से उसे बाहर घूरे पर फिकवा देती है, किन्तु महाराज श्रेणिक पुत्रमोह के कारण उसे उठा लेते हैं, पक्षी के द्वारा काटी गई पुत्र की उंगली का मवाद--पश अपने मुंह से चूसकर ठीक करते हैं और अपने हाथों से उसकी सेवा-परिचर्या करते हैं। पिता के वृद्ध होने पर वही पुत्र शासन सत्ता के व्यामोह में फंस जाता है, और अपने भाइयों व मंत्रीगण को गाँठकर सम्राट को पिंजड़े में ठूस देता है। सत्ता का राग मनुष्य को कितना अंधा, पागल और क्रूर बना देता है-यह इस घटना से स्पष्ट हो जाता है। आगरा का यह विश्वविद्युत ताजमहल, जिस मुगल सम्राट का प्रणय-स्वप्न है, उस शाहजहाँ को जिन्दगी के अन्तिम दिन जेल में बिताने पड़े थे। वह अपने ही पुत्र औरंगजेब द्वारा बन्दी बनाया गया। ऐसा क्यों? इस्लाम के इस कट्टर अनुयायी शासक ने अपने यशस्वी और कलाप्रेमी पिता को कारागृह की चारदिवारी के अन्दर क्यों ठूस दिया, और क्यों अपने सगे भाइयों को कत्ल करके खुश हुआ ? मैं समझता हूँ, इन प्रश्नों का उत्तर वही एक है। सत्ता, धन और प्रतिष्ठा का उग्र राग! जिस प्रकार द्वेष की वृत्तियाँ मनुष्य को पिशाच और राक्षस बना देती हैं-वैसे ही राग की निम्न एवं क्षुद्र वृत्तियाँ भी मनुष्य को क्रूर और मूढ़ बनाने वाली हैं। राग वृत्ति का यह अधोमुखी प्रवाह है, जिसे हम स्व-केन्द्रित राग, मोह, व्यामोह और विमूढ़ता कहते हैं। ___ मैं समझताहुँ, द्वेष की अपेक्षा राग की विमूढ़ित परिणतियों ने मनुष्य जाति का अधिक संहार एवं विनाश किया है। वैसे प्रत्येक पक्ष में राग के साथ द्वेष का पहलू जुड़ा ही रहता है। रामायण और महाभारत के युद्ध क्या हैं ? एक मनुष्य के काम-राग की उदन फलश्रुति है, तो दूसरी मनुष्य के राज्यलोभ की रोमांचक कहानी है। वैसे राम-रावण के युद्ध में भी मनुष्य के अहंकार और द्वेष के प्रबल रूप मिलते हैं, किन्तु महाभारत के युद्ध का मुख्य स्रोत तो दुर्योधन १४८ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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