Book Title: Jivan Drushti me Maulik Parivartan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ धर्म और समाज असुविधा होती, तो वह शायद और अधिक पुरुषार्थ करता / पर आज तो यह पुरुषार्थकी कमी ही जानताकी मृत्यु है। पहले जो लोग परलोक-ज्ञानकी साधनामें विशेष समय और शक्ति लगाते थे, उनके पास समय और जीवनकी सुविधाओंकी कमी नहीं थी / जितने लोग यहाँ थे, उनके लिए काफी फल और अन्न प्राप्त थे / दुधारू पशुओंकी भी कमी न थी, क्योंकि पशुपालन बहुत सस्ता था। चालीस हजार गौओंका एक गोकुल कहलाता था। उन दिनों ऐसे गोकुल रखनेवालोंकी संख्या कम न थी / मालवा, मेवाड़, मारवाड़ आदिकी गायोंके जो वर्णन मिलते हैं, उनमें गायोंके उदसकी तुलना सारनाथमें रखे 'घटोनि' से की गई है। इसीसे अनुमान किया जा सकता है कि तब गौएँ कितना दूध देती थीं | कामधेनु कोई दैवी गाय न थी, बल्कि यह संज्ञा उस गायकी थी, जो चाहे जब दुहनेपर दूध देती थी और ऐसी गौओंकी कमी न थी। ज्ञान-मार्गके जो प्रचारक ( ऋषि) जंगलों में रहते थे, उनके लिए कन्द-मूल, फल और दूधकी कमी न थी। त्यागका आदर्श उनके लिए था / उपवासकी उनमें शक्ति होती थी, क्योंकि आगे-पीछे उनको पर्याप्त पोषण मिलता था। पर आज लोग शहरोंमें रहते हैं, पशु-धनका ह्रास हो रहा है और आदमी अशक्त एवं अकर्मण्य हो रहा है / बंगालके 1943 के अकालमें भिखारियों मेंसे अधिकांश त्रियाँ और बच्चे ही थे, जिन्हें उनके सशक्त पुरुष छोड़ कर चले गये थे। केवल अशक्त बच रहे थे; जो भीख माँग कर पेट भरते थे / मेरे कहनेका तात्पर्य यह है कि हमें अपनी जीवन-दृष्टिमें मौलिक परिवर्तन करना चाहिए / जीवनमें सद्गुणों का विकास इहलोकको सुधारने के लिए करना चाहिए। आज एक ओर हम आलसी अकर्मण्य और पुरुषार्थहीन होते जा रहे हैं और दूसरी ओर पोषणकी कमी तथा दुर्बल सन्तानकी वृद्धि हो रही है। गाय रख कर घर-भरको अच्छा पोषण देनेके बजाय लोग मोटर रखना अधिक शानकी बात समझते हैं। यह खामखयाली छोड़नी चाहिए और पुरुषार्थवृत्ति पैदा करनी चाहिए / सद्गुणोंकी कसौटी वर्तमान जीवन हो है। उसमें सद्गुणोंको अपनाने, और उनका विकास करनेसे, इहलोक और परलोक दोनों सुधर सकते हैं। [नया समाज, सितम्बर 1948 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4