Book Title: Jiv aur Panch Parmeshthi ka Swarup
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 6
________________ जीव का अस्तित्व ५२७ भौतिक वस्तुएँ उन वृत्तियों के होने में साधनमात्र अर्थात् निमित्तकारण' हैं, उपादानकारण नहीं। उनका उपादानकारण आत्मा तत्त्व अलग ही है। इसलिए भौतिक वस्तुओं को उक्त वृत्तियों का उपादानकारण मानना भ्रान्ति है। (१८ प्र... ऐसा क्यों माना जाय ? उ०-- ऐसा न मानने में अनेक दोष आते हैं। जैसे सुख, दुःख, राज-रंक भाव, छोटी-बड़ी आयु, सत्कार-तिरस्कार, ज्ञान-अज्ञान आदि अनेक विरुद्ध भाव एक ही माता-पिता की दो सन्तानों में पाए जाते हैं, सो जीव को स्वतन्त्र तत्त्व बिना माने किसी तरह असन्दिग्ध रीति से घट नहीं सकता। (१६) प्र.-इस समय विज्ञान प्रबल प्रमाण समझा जाता है, इसलिए यह बतलावें कि क्या कोई ऐसे भी वैज्ञानिक हैं। जो विज्ञान के आधार पर जीव को स्वतन्त्र तत्त्व मानते हो? उ.- हाँ उदाहरणार्थ सर 'अोलीवरलाज' जो यूरोप के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और कलकत्ते के 'जगदीशन्द्र वसु, जो कि संसार भर में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। उनके प्रयोग व कथनों से स्वतन्त्र चेतन तत्त्व तथा पुनर्जन्म आदि की सिद्धि में सन्देह नहीं रहता । अमेरिका आदि में और भी ऐसे अनेक विद्वान् हैं, जिन्होंने परलोकगत आत्माओं के संम्बन्ध में बहुत कुछ जानने लायक खोज की है। (२०) प्र.-जीव के अस्तित्व के विषय में अपने को किस सबूत. पर. भरोसा करना चाहिए? ___ उ० – अत्यन्त एकाग्रतापूर्वक चिरकाल तक श्रात्मा का ही मनन करने वाले निःस्वार्थ ऋषियों के वचन पर, तथा स्वानुभव पर । (२१) प्र०-ऐसा अनुभव किस तरह प्राप्त हो सकता है ? उ.-चित्त को शुद्ध करके एकाग्रतापूर्वक विचार व मनन करने से । १ जो कार्य से भिन्न होकर उसका कारण बनता है वह निमित्तकारण कहलाता है । जैसे कपड़े का निमित्तकारण पुतलीघर । २ जो स्वयं ही कार्यरूप में परिणत होता है वह उस कार्य का उपादानकारण कहलाता है । जैसे कपड़े का उपादानकारण सूत । ३ देखो-यात्मानन्द-जैन-पुस्तक-प्रचारक-मण्डल आगरा द्वारा प्रकाशित हिन्दी प्रथम 'कर्मग्रन्थ' की प्रस्तावना पृ० ३८ ।। ४ देखो--हिन्दीग्रंथरत्नाकर कार्यालय, बंबई द्वारा प्रकाशित 'छायादर्शन'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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