Book Title: Jinratnasuriji
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 3
________________ . . . नेणबाई को बड़े समारोह और विविध धर्मकार्यों में सद् श्रीजी की शिष्या प्रसिद्ध की गई। वहीं से रायण में सं० द्रव्यव्यय करने के अनन्तर दीक्षा देकर राजश्रीजी की १६६४ चातुर्मास कर सिद्धाचलजी पधारे । इस समय आप शिष्या रत्नश्री नाम से प्रसिद्ध किया। का १० साधु थे। प्रेममुनिजी के भगवती सूत्र का योगोद्वहन सं० १९९१ का चातुर्मास अपने प्रेममुनिजी और मुक्ति और नन्दनमनिजी की बड़ी दीक्षा हुई। कल्याणभुवन मुनिजी के साथ भुज में किया। महेन्द्रमुनिजी की में कल्पसूत्र के योग कराये, पन्नवणा सूत्र बाचा, प्रचुर बीमारी के कारण लब्धिमुनिजी मांडवी रहे। उमरसी तपश्चर्याएं हुई। पूजा प्रभावना स्वधमीवात्सल्यादि खूब भाई की धर्मपत्नी इन्द्राबाई ने उपधान. अठाई महोत्सव हुए। मर्शिदाबाद निवासी राजा विजयसिंहजी की माता पूजा, प्रभावनादि किये । तदनन्तर भुज से अंजार, मुद्रा, सुगण कुमारी को तरफ से उपधानतप हुआ। मार्गशीर्ष होते हुए मांडवो पधारे । यहां महेन्द्रमुनि बीमार तो थे ही सूदि ५ को गणिवर्य रत्नम निजी के हाथ से मालरोपण चै० सु० २ को कालधर्म प्राप्त हुए। गणिचर्य लायजा हुआ। दूसरे दिन श्री बुद्धिगु निजी और प्रेममुनिजी को पधारे, खेराज भाई ने उत्सव, उद्यापन, स्वधर्मीवात्सल्यादि 'गणि' पद से भूषित किया गया । जावरा के सेठ जड़ावकिये। चन्दजी की ओर से उद्यापनोत्सव हुआ। कच्छ के डमरा निवासी नागजी-नेणबाई के पुत्र ___ सं० १६६६ का चातुर्मास अहमदाबाद हुआ। फिर मलजी भाई-जो अन्तर्वैराग्य से रंगेहए थे-माता पिता बड़ौदा पधारकर गणिवर्य ने नेमिनाथ जिनालय के पास की आज्ञा प्राप्त कर गणिवर्य श्री रत्नमुनिजी के पास आये । दीक्षा का मुहुर्त निकला। नित्य नई पूजा-प्रभा गरुमन्दिर में दादा गरुदेव श्रीजिनदत्तसूरि की मूर्ति पादुका वना और उत्सवों की धूम मच गई। दीक्षा का वाघोडा बहुत आदि की प्रतिष्ठा बड़े ही ठाठ-बाठ से की। वहाँ से बंबईकी ही शानदार निकला। मूलजी भाई का वैराग्य और दीक्षा और विहार कर दहाणु पधारे। श्रीजिनऋद्धिसूरिजी वहाँ लेने का उल्लास अपूर्व था। रथ में बैठे वरसीदान देते हुए विराजमान थे, आनन्द पूर्वक मिलन हुआ। संघ की विनति जय-जयकारपूर्वक आकर वै० शु०६ के दिन गणीश्वरजी से बम्बई पधारे। संघ को अपार हर्ष हुआ। श्रीरत्नमुनिजी के पास विधिवत् दीक्षा ली। आपका नाम भद्रमनिजी के चरित्र गुण की सौरभ सर्वत्र व्याप्त थी। आचार्य श्री रखा गया। सं० १९६२ का चातर्मास रत्नमनिजी ने जिनऋद्धिसूरिजी महाराज ने संघ की विनति से आपको लायजा, लब्धिमुनिजी, भावमुनिजी का अंजार व प्रेम आचार्य पद देना निश्चय किया । बम्बई में विविध प्रकार मुनिजी, भद्रमुनिजी, का मांडवी हआ। चातुर्मास के के महोत्सव होने लगे। मिती अषाढ़ सूदि ७ को सूरिजी ने बाद मांडवो आकर गुरु महाराज ने भद्रम निजो को बडी आपको आचार्य पद से विभूषित किया। सं० १९९७ का दीक्षा दी। चातुर्मास बम्बई पायधुनी में किया। श्री जिनऋद्धिसूरि तुंबड़ी के पटेल शामजी भाई के संघ सहित पंचतीर्थी दादर, लब्धिमुनिजी घाटकोपर और प्रेममुनिजी ने लालयात्रा की। सुथरी में घुतकलोल पार्श्वनाथजी के समक्ष बाड़ी में चौमासा किया। चरितनायक के उपदेश से श्री संघपति माला शामजी को पहनायी गई। सं० १९६३ जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार स्थापित हुआ । लालबाड़ी में मांडवी चातुर्मास कर मुंद्रा में पधारे और रामश्रीजो को में विविध प्रकार के उत्सव हुए। आचार्य श्री ने अपने दीक्षित किया। वहीं इनकी बड़ी दीक्षा हुई और कल्याण- भाई गणशी भाई की प्रार्थना से सं० १८६८ का चातुर्मास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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