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आचार्यरत्न श्रीजिनरत्नसूरि
[भंवरलाल नाहटा] जगत्पूज्य मोहनलालजी महाराज के संघाड़े में आचार्य चाणोद गये । उनके पास आपका शास्त्राम्यास अच्छी तरह श्रीजिनरत्नसूरिजी वस्तुतः रत्न ही थे। आपका जन्म कच्छ चलता था, इधर श्रोमोहनलालजी महाराज की अस्वस्थता देश के लायजा में सं० १९३८ में हुआ । आपका जन्म के कारण पन्यासजी के साथ बम्बई को और विहार किया, नाम देवजी था । आठ वर्ष की आयु में पाठशाला में पर भक्तों के आग्रहवश मोहनलालजो महाराज ने सूरत की प्रवेश किया। धार्मिक और व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त कर ओर विहार किया था, अतः मार्ग में ही दहाणुं में गुरुदेव बम्बई में अपने पिताजी की दुकान का काम संभाल कर के दर्शन हो गए। श्रीमोहनलालजी महाराज १८ शिष्यअर्थोपार्जन द्वारा माता-पिता को सन्तोष दिया। देश में प्रशिष्यों के साथ सूरत पधारे। श्रीरत्नमुनिजी उनकी सेवा आपके सगाई-विवाह की बात चल रही थी और वे उत्सु. में दत्तचित्त थे। उनका हार्दिक आशीर्वाद प्राप्त कर उनकी कता से देवजी भाई की राह देखते थे । पर इधर बम्बई में आज्ञा से पन्यासजी के साथ आप पालीताणा पधारे । फिर श्रीमोहनलालजी महाराज का चातुर्मास होने से संस्कार- रतलाम आदि में विचर कर उनकी आज्ञासे भावमुनिजी संपन्न देवजी भाई प्रतिदिन अपने मित्र लधाभाई केसाथ के साथ केशरियाजी पधारे । शरीर अस्वस्थ होते हुए भी व्याख्यान सुनने जाते और उनकी अमृत वाणी से दोनों आपने २१ मास पर्यन्त आंबिल तप किया। पन्यासजी ने की आत्मा में वैरग्य बीज अंकुरित हो गए। दोनों मित्रों सं० १९६६ में ग्वालियर में उत्तराध्ययन व भगवती सूत्र ने यथावसर पूज्यश्री से दीक्षा प्रदान करने को प्रार्थना का योगोद्वहन श्रीकेशरमुनिजी, भावमुनिजी और चिमन की। पूज्यश्री ने उन्हें योग्य ज्ञातकर अपने शिष्य श्रीराज- मुनिजी के साथ आपको भी कराया। तदनन्तर आप मुनिजी के पास रेवदर भेजा। सं० १९५८ चैत्रबदि ३ को गणि पद से विभूषित हुए । सं० १९६७ का चातुर्मास गुरु दीक्षा देकर देवजी का रत्नमुनि और लधाभाई का लब्धि महाराज श्रीराजमुनिजी के साथ करके १९६८ महीदपुर मुनि नाम दिया । सं० १६५६ का चातुर्मास मंढार में पधारे । तदनन्तर सं० १९६६ का चातुर्मास बम्बई किया। करने के बाद सं० १९६० वै०-शु०-१० को शिवगंज में यहां फा० सु० २ को गुरु महाराज की आज्ञा से वोछडोद पन्यास श्रीयशोमुनिजी के करकमलों से बड़ी दीक्षा हुई। के श्रीपन्नालाल को दीक्षा देकर प्रेममुनि नाम से प्रसिद्ध सं० १९६० शिवगंज, १६६१ नवाशहर सं० १९६२ का किया। सं० १९७० का चातुर्मास भी बम्बई किया । चातुर्मास पीपाड़ में गुरुवर्य श्रीराजमुनिजी के साथ हुआ। यहाँ श्रीजिनयश:सूरिजी महाराज के पावापुरी में स्वर्गव्याकरण, अलंकार. काव्यादिका अध्ययन सुचारुतया करके वासी होने के दुःखद समाचार सुने। कूचेरा पधारे । यहां राजमुनिजी के उपदेश से २५ घर गणिवर्य श्रीरत्नमुनिजी को जन्मभूमि छोड़े बहुत वर्ष स्थानकवासी मन्दिर आम्नाय के बने ।
हो गए थे अतः श्रावकसंघ की प्रार्थना स्वीकार कर शत्रुजय श्रीरत्नमुनिजी योगोद्वहनके लिए पन्यासजी के पास यात्रा करते हुए अपने शिष्यों के साथ कच्छ में प्रविष्ट हो
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अंजार होते हुए भद्रेश्वर तीर्थ की यात्राकर लायजा पधारे। और पड़ाणा में गुरुपादुकाएं प्रतिष्ठित की। डग पधारने यहाँ पूजा प्रभावना, उद्यापनादि अनेक हुए। सं० १९७१ पर श्रीलक्ष्मीचन्दजी बैद के तरफसे उद्यापनादि हुए और का चातुर्मास बीदड़ा, १६७२ का मांडवी किया। यहां दादा जिनकुशलसूरिजी व रत्नप्रभसूरिजी की पादुका प्रतिष्ठा से नांगलपुर पधारने पर गुरुवर्य राजमुनिजी के स्वर्गवास की। मांडवगढ यात्रा करके इन्दौर मक्सीजी, उज्जैन, होते होने के समाचार मिले । सं० १९७३ भुज, १६७४ लायजा हुए महीदपुर पधारे । लब्धिमुनिजी और प्रेममुनिजी को चातुर्मास किया। फिर मांडवी में राजश्रीजी को दीक्षा वीछडोद चातुर्मासार्थ भेजा। स्वयं भावमुनिजी के साथ दी। कच्छ देश में धर्म प्रचार करते हुए १९७५ सं० रुणीजा पधारकर सं० १९८३ का चातुर्मास किया। में दुर्गापुर (नवावास) चौमासा किया और संघ में पड़े हुए १६.८४ महीदपुर, सं० १९८५ का चातुर्मास भाणपुरा दो तड़ोंको एक कर शान्ति की । इन्फ्ल्युएजा फैलने से शहर किया। उद्यापन और बड़ी दीक्षादि हुए । मालवा में खाली हुआ और रायण जाकर चातुर्मास पूर्ण किया। गणिजी महाराज को विचरते सुनकर बम्बई से रवजी सोजसं० १९७३ में डोसाभाई लालचन्द का संघ निकला ही था, पाल ने आग्रह पूर्वक बम्बई पधारने को विनती की । आपश्री फिर भुज से शा० वसनजी वाघजी ने भद्रेश्वर का संघ नामानुग्राम विचरते हुए घाटकोपर पहुँचे। मेघजी सोजपाल, निकाला । गणिवर्य यात्रा करके अंजार पधारे । इधर गणसी भीमसी आदि की विनतिसे बम्बई लालवाड़ी पधारे । सिद्धाचलजी यात्रा करते हुए श्रीलब्धिमुनिजी आ मिले। दादासाहब की जयन्ती श्रीगौड़ीजी के उपाश्रय में श्री विजउनके साथ फिर भद्रेश्वर पधारे । सं० १६७६ का चातु- यवल्लभसूरिजी की अध्यक्षता में बड़े ठाट-माठ से मनायी।
सि भूज और सं० १६७७ का मांडवी किया। फिर जाम- सं० १९८६ का चौमासा लालवाड़ी में किया । नगर, सूरत, कतार गांव, अहमदाबाद, सेरिसा, भोयणीजी, गणिवर्य श्रीरतनमुनिजी के उपदेश और मूलचन्द हीरापानसर, तारंगा, कुंभारियाजी, आबू यात्रा करते हुए चन्द भगत के प्रयास से महावीर स्वामी के पीछे के खरतरअणादरा पधारे । लब्धिमुनिजी, भावमुनिजी को शिवगंज गच्छीय उपाश्रय का जीर्णोद्धार हुआ। सं० १९८७ का भेजा और स्वयं प्रेममुनिजी के साथ मंढार चातुर्मास चातुर्मास वहीं कर लब्धिमुनिजी के भाई लालजी भाई को किया । पाली में पन्यास श्रीके शरमुनिजी से मिले। सं० १९८८ पो० सु० १० को दीक्षितकर महेन्द्र मुनि नाम दयाश्रीजी को दीक्षा दो। सं० १९८० का चातुर्मास से लब्धिमुनि जी के शिष्य बनाये । प्रेममुनिजी को योगोजेसलमेर किया। किले पर दादा साहब की नवीन देहरी द्वहन के लिए श्री केशरमुनिजी के पास पालीताना भेजा। में दोनों दादासाहब की प्रतिष्ठा कराई । सं० १९८१ में वहां कच्छ के मेधजी को सं० १९८६ पोष सुदि १२ के फलोदी चातुर्मास किया । ज्ञानश्रीजीव वल्लभश्रीजी के आग्रह दिन केशरमुनिजी के हाथ से दीक्षित कर प्रेममुनिजी का से हेमश्रीजी को दीक्षा दी। लोहावट में गौतमस्वामी और शिष्य बनाया। चक्रेश्वरीजो की प्रतिष्ठा कर अजमेर पधारे । तदनन्तर श्री रत्नमुनिजी महाराज सूरत, खंभात होते हुए रतलाम, सेमलिया, पधारे । सं० १९८२ नलखेड़ा चातु- पालीताना पधारे । श्री केशरमुनिजी को वन्दन कर फिर
र्मास किया, चौदह प्रतिमाओं की अंजनशलाका की। गिरनारजी को यात्रा की और मुक्तिमुनिजी को बड़ी दीक्षा मंडोदा में रिखबचन्दजी चोरडिया के बनवाये हुए गुरुमदिर दी। सं० १९८६ का चातुर्मास जामनगर करके अंजार में दादा जिनदत्तसूरि आदि की प्रतिष्ठा करवायी । खुजनेर पधारे । भद्रेश्वर, मुंद्रा, मांडवी होकर मेरावा पधारे ।
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नेणबाई को बड़े समारोह और विविध धर्मकार्यों में सद् श्रीजी की शिष्या प्रसिद्ध की गई। वहीं से रायण में सं० द्रव्यव्यय करने के अनन्तर दीक्षा देकर राजश्रीजी की १६६४ चातुर्मास कर सिद्धाचलजी पधारे । इस समय आप शिष्या रत्नश्री नाम से प्रसिद्ध किया।
का १० साधु थे। प्रेममुनिजी के भगवती सूत्र का योगोद्वहन सं० १९९१ का चातुर्मास अपने प्रेममुनिजी और मुक्ति और नन्दनमनिजी की बड़ी दीक्षा हुई। कल्याणभुवन मुनिजी के साथ भुज में किया। महेन्द्रमुनिजी की में कल्पसूत्र के योग कराये, पन्नवणा सूत्र बाचा, प्रचुर बीमारी के कारण लब्धिमुनिजी मांडवी रहे। उमरसी तपश्चर्याएं हुई। पूजा प्रभावना स्वधमीवात्सल्यादि खूब भाई की धर्मपत्नी इन्द्राबाई ने उपधान. अठाई महोत्सव हुए। मर्शिदाबाद निवासी राजा विजयसिंहजी की माता पूजा, प्रभावनादि किये । तदनन्तर भुज से अंजार, मुद्रा, सुगण कुमारी को तरफ से उपधानतप हुआ। मार्गशीर्ष होते हुए मांडवो पधारे । यहां महेन्द्रमुनि बीमार तो थे ही सूदि ५ को गणिवर्य रत्नम निजी के हाथ से मालरोपण चै० सु० २ को कालधर्म प्राप्त हुए। गणिचर्य लायजा हुआ। दूसरे दिन श्री बुद्धिगु निजी और प्रेममुनिजी को पधारे, खेराज भाई ने उत्सव, उद्यापन, स्वधर्मीवात्सल्यादि 'गणि' पद से भूषित किया गया । जावरा के सेठ जड़ावकिये।
चन्दजी की ओर से उद्यापनोत्सव हुआ। कच्छ के डमरा निवासी नागजी-नेणबाई के पुत्र
___ सं० १६६६ का चातुर्मास अहमदाबाद हुआ। फिर मलजी भाई-जो अन्तर्वैराग्य से रंगेहए थे-माता पिता
बड़ौदा पधारकर गणिवर्य ने नेमिनाथ जिनालय के पास की आज्ञा प्राप्त कर गणिवर्य श्री रत्नमुनिजी के पास आये । दीक्षा का मुहुर्त निकला। नित्य नई पूजा-प्रभा
गरुमन्दिर में दादा गरुदेव श्रीजिनदत्तसूरि की मूर्ति पादुका वना और उत्सवों की धूम मच गई। दीक्षा का वाघोडा बहुत आदि की प्रतिष्ठा बड़े ही ठाठ-बाठ से की। वहाँ से बंबईकी ही शानदार निकला। मूलजी भाई का वैराग्य और दीक्षा और विहार कर दहाणु पधारे। श्रीजिनऋद्धिसूरिजी वहाँ लेने का उल्लास अपूर्व था। रथ में बैठे वरसीदान देते हुए विराजमान थे, आनन्द पूर्वक मिलन हुआ। संघ की विनति जय-जयकारपूर्वक आकर वै० शु०६ के दिन गणीश्वरजी से बम्बई पधारे। संघ को अपार हर्ष हुआ। श्रीरत्नमुनिजी के पास विधिवत् दीक्षा ली। आपका नाम भद्रमनिजी के चरित्र गुण की सौरभ सर्वत्र व्याप्त थी। आचार्य श्री रखा गया। सं० १९६२ का चातर्मास रत्नमनिजी ने जिनऋद्धिसूरिजी महाराज ने संघ की विनति से आपको लायजा, लब्धिमुनिजी, भावमुनिजी का अंजार व प्रेम आचार्य पद देना निश्चय किया । बम्बई में विविध प्रकार मुनिजी, भद्रमुनिजी, का मांडवी हआ। चातुर्मास के के महोत्सव होने लगे। मिती अषाढ़ सूदि ७ को सूरिजी ने बाद मांडवो आकर गुरु महाराज ने भद्रम निजो को बडी आपको आचार्य पद से विभूषित किया। सं० १९९७ का दीक्षा दी।
चातुर्मास बम्बई पायधुनी में किया। श्री जिनऋद्धिसूरि तुंबड़ी के पटेल शामजी भाई के संघ सहित पंचतीर्थी दादर, लब्धिमुनिजी घाटकोपर और प्रेममुनिजी ने लालयात्रा की। सुथरी में घुतकलोल पार्श्वनाथजी के समक्ष बाड़ी में चौमासा किया। चरितनायक के उपदेश से श्री संघपति माला शामजी को पहनायी गई। सं० १९६३ जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार स्थापित हुआ । लालबाड़ी में मांडवी चातुर्मास कर मुंद्रा में पधारे और रामश्रीजो को में विविध प्रकार के उत्सव हुए। आचार्य श्री ने अपने दीक्षित किया। वहीं इनकी बड़ी दीक्षा हुई और कल्याण- भाई गणशी भाई की प्रार्थना से सं० १८६८ का चातुर्मास
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लालबाड़ी किया । वेलजी भाई को दीक्षा देकर मेघमुनि नाम से प्रसिद्ध किया, बहुत से उत्सव हुए।
सं० १६६६ में दश साधुओं के साथ चरित्रनायक ने सूरत चौमासा किया | फिर बड़ौदा पधारकर लब्धिमुनिजी के शिष्य मेघमुनिजी व गुलाबमुनिजी के शिष्य रत्नाकर मुनि को बड़ी दीक्षा दी । सं० २००० का चातुमस रतलाम किया, उपधान तप अ दि अनेक धर्म कार्य हुए । सेमलिया जी की यात्रा कर महीदपुर पधारे। महीदपुर में राजमुनि जी के भाई चुनीलालजी बाफणा ने मन्दिर निर्माण कराया था, प्रतिष्ठा कार्य बाकी था, अतः खरतरगच्छ संघ को इसका भार सौंपा गया पर वह लेख पत्र उनके बहिन के पास रखा, वह तपागच्छ की थी उसने उनलोगों को दे दिया। कोर्ट चढ़ने पर दोनों को मिलकर प्रतिष्ठा करने का आदेश हुआ, पर उन्होंने कब्जा नहीं छोड़ा तो क्लेश बढ़ता देख खरतरगच्छ वालों ने नई जमीन लेकर मन्दिर बनाया और उसमें राजमुनिजी व नयमुनिजी के ग्रन्थों का ज्ञान भंडार स्थापित किया। प्रतिमा की अप्राप्ति से संघ चिन्तित था क्योंकि उत्सव प्रारंभ हो गया था फिर उपा ध्यायजी, रत्नश्रीजी और श्रावक और श्राविका गोमी बाई की एक सा प्रतिमा प्राप्त होने व पुष्पादि से पूजा करने का स्वप्न आया । आचार्य श्री ने बीकानेर जाकर प्रतिमा प्राप्त करने की प्रेरणा दी। सं० ११५५ की प्रतिमा तत्काल प्राप्त हो गई और आनन्दपूर्वक प्रतिष्ठासम्पन्न हुई । दादा साहब की मूर्ति पादुकाएँ, राजमुनिजी व सुखसागर जी की पादुकाएं तथा चक्रेश्वरी देवी की भी प्रतिष्ठा हुई । सं० २००१ का चातुर्मास महोदपुर हुआ । बड़ोदिया में पधारने पर उद्यापन व दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा हुई शुजालपुर के मंदिर में दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा की । स० २००२ का चातुर्मास कर आसामपुरा, इन्दीर होते हुए मांडवगढ़ यात्रा कर रतलाम पधारे। गरवट्ट गाँव में दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा की । तद
नन्तर भानपुरा कुकुटेश्वर, प्रतापगढ़ व चरणोद पधारे । चरणोद में प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न कराके सं० २००३ को प्रतापगढ़ में चातुर्मास किया । मंदसौर में चक्रेश्वरीजी की प्रतिष्ठा कराई । जावरा से सेमलियाजी का संघ निकला, संघपति चांदमलजी चोपड़ा को तीर्थमाला पह नायी । रतलाम से खाचरोद पधारे । जावरा के प्यारचं द जी पगारिया ने वइ पार्श्वनाथजीका संघ निकाला । तदनंतर जयपुर की ओर बिहार कर कोटा पधारे। गणि श्री भावमुनिजी को पक्षाघात हो गया और जेठ वदि १५ की रात्रि में उनका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हो गया ।
स० २००४ का चातुर्मास कोटा में हुआ । भगवती सूत्रवाचना, अठाई महोत्सव एवं स्वधर्मी वात्सल्या दि अनेक धर्मकार्य सेठ केशरीसिंहजी बाफणा ने करवाये । तदनंतर सूरिजो जयपुर पधारे । अशातावेदनीय के उदय से शरीर में उत्पन्न व्याधि को समता से सहन किया । श्रीमालों के मंदिर में देशगाजीखान से आई हुई प्रतिमाए स्थापित की । कच्छ भुज की दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा के लिये संघ की ओर से विनती करने रवजी शिवजी बोरा आये । सं० २००५ का चातुर्मास जयपुर कर स० २००६ का अजमेर में किया । सं० २००७ ज्येष्ठ सुदि ५ को विजयनगर में प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ, चन्द्रप्रभस्वामी आदि के सह दादासाहब के चरणों की प्रतिष्ठा की । फिर रतनचन्दजी संचेती की विनती से अजमेर पधारे । उनके बीस स्थानक का उद्यापन हुआ । भगतियाजी की कोठी के देहरासर में दादा साहब जिनदत्तसूरि मूर्ति की प्रतिष्ठा करवायी । अजमेर से व्यावर पधार कर मुलतान निवासी हीरालालजी भुगड़ी को स० २००७ आषाढ़ सुदि १ को दीक्षित कर हीरमुनि बनाये | उपधान तप हुआ। सूरिजी चातुर्मास पूर्ण कर पाली, राता महावीर जी, शिवगंज, कोरटा होते हुए गढ़सिवाणा पधारे। फिर वांकली, तखतगढ़ होकर श्रीकेशरमुनिजी की जन्मभूमि
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________________ / 153 / चूडा पधारे। सं० 2008 जेठ बदि 7 को दादा जिन- चरणों की प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से हुई। दत्तसूरि मूर्ति, मणिधारी जिन'द्रसूरि व जिनकुशलसूरि एवं सं० 2010 का चातुर्मास सूरिजी ने मांडवी किया। पं, केशरमुनिजी की पादुकाएं प्रतिष्ठित की। वहां से मि० व० 2 को धर्मनाथ जिनालय पर ध्वजदड चढ़ाया आहोर, जालोर होते हुए गढ़सिवाणा आकर चातुर्मास गया, उत्सव हुए। मोटा आसंबिया में मंदिर का शताकिया। फिर नाकोडाजी पधार कर मार्गशिर सुदि 1 ब्दी महोत्सव हुआ। भुज को दादाबाड़ी में हेमचंद को दादासाहब जिनदत्तसूरि मूर्ति व श्रीकीतिरत्नसूरिजी भाई की ओर से नवीन जिनालय निर्माण हेतु सं० 2011 की जीर्णोद्धारित देहरी में प्रतिष्ठा करवाई। नाकोड़ाजी वै० श० 12 को सूरिजी के कर-कमलों से खात महत से विहार कर सूरिजी डीसा कैंप भील डियाजी होते हुए हुआ। तदनंतर सूरिजी ने अंजार चातुर्मास किया। राधनपुर, कटारिया, अंजार होते हुए भद्रेश्वर तीर्थ पहुँचे / * भद्रेश्वरजी की यात्रा कर मांडवी होते हुए भुज चातुर्मास के पश्चात् भद्रेश्वर यात्रा कर मांडवी पधारे, संघ का चिरमनोरथ पूर्ण हआ। यहाँ दादाबाडी पधारे। वहां की विशाल रमणीय दादावाड़ी में दादा निर्माण का लम्बा इतिहास है पर इसकी चेष्टा करने वाले जिनदत्तसूरि प्रतिमा विराजमान करने का उपदेश दिया. हेमचन्द भाई जिस दिन स्वर्गवासी हुए उसी दिन आपने स्वप्न पटेल वीकमसी राघवजी ने इस कार्य को सम्पन्न करने की में पुरानी और नई दादावाड़ी आदि सहित उत्सव को व अपनी भावना व्यक्त की / सूरिजी का शरीर स्वस्थ था, आंख हेमचंद भाई आदि को देखा वही दृश्य मजकी दादावाडी का मोतियबिद उतरता था जिसका इलाज कराना था पर प्रतिष्ठा के समय साक्षात् हो गया / सं० 2006 माघ सुदि माघ वदी 8 को अर्धाङ्ग व्याधि हो गयी ओर माघ सुदि 1 11 को बड़े समारोह पूर्वक प्रतिष्ठा हई / सूरत से सेठ के दिन समाधिपूर्वक स्वर्गवासी हुए / आपने अपने जीवन बालूभाई विधि-विधान के लिये आये। जिनदत्तसूरि की में शुद्ध चरित्र पालन करते हुए, शासन और गच्छ की खूब प्रतिमा व मणिधारी जिनचन्द्रसरि व श्रीजिनकशलसरि के प्रभावना की थी। विद्वदर्थ उपाध्याय श्रीलब्धिमुनिजी [भंवरलाल नाहटा ] बीसवीं शताब्दी के महापुरुषों में खरतरगच्छ विभूषण वाला है। उ० श्रीलब्धिमुनिजी महाराज ने आपके वचनाश्री मोहनलालजी महाराज का स्थान सर्वोपरि है। वे मृत से संसार से विरक्त होकर संयम स्वीकार किया था। बड़े प्रतापी, क्रियापात्र, त्यागी-तपस्वी और वचनसिद्ध श्रीलब्धिमुनिजी का जन्म कच्छ के मोटी खाखर गाँव योगी पुरुष थे। उनमें गच्छ कदाग्रह न होकर संयम साधन में हुआ था। आपके पिता दनाभाई देढिया वीसा ओसऔर समभावी श्रमणत्व सुविशेष था। उनका शिष्य समु- वाल थे। सं० 1935 में जन्म लेकर धार्मिक संस्कार युक्त द्वाय भी खरतर और तपा दोनों गच्छों की शोभा बढ़ाने माता-पिता की छत्र-छाया में बड़े हुए। आपका नाम