Book Title: Jinkavidrasagarsuri Author(s): Sajjanshreeji Sadhvi Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 3
________________ क्षमण, अछाइयाँ, पंचौले, आदि किये। तेलों को तो महोत्सव पूर्वक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। गिनती ही नहीं की जा सकती। __ आपश्री स्वभाव से ही सरल मिलनसार और गम्भीर साहित्य सेवा थे। दयालुता और हृदय की विशालता आदि सद्गुणों से आपने सैकड़ों छोटे मोटे चैत्यवन्दन, स्तुतियाँ स्तवन, सुशोभित थे / आपश्री के अन्तःकरण में शाशन, व गच्छ सज्झाय आदि बनाये, रत्नत्रय पूजा, पार्श्वनाथ पंचकल्याणक व समदाय के उत्कर्ष की भावनाएँ सतत् जागृत रहती थी। पूजा, महावीर पंचकल्याणक पूजा, चौसठप्रकारी पूजा, पालीताना में "श्री जिन हरि विहार" आपश्री को सत्प्रेरणा तथा चारों दादा गुरुओं की पृथक 2 पूजाएँ एवं चैत्रोपूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा विधि, उपधान, विंशतिस्थानक, वर्षीतप छम्मासी तप आदि के देव-वन्दन आदि विशिष्ट ____ आपश्री के कई शिष्य हुए, पर वर्तमान में केवल श्री रचनाएं की हैं। आप संस्कृत प्राकृत हिन्दी में समान रूप कल्याणसागरजी तथा मुनिश्री कैलाशसागर जी विद्यमान है / में रचनाएँ करते थे। बहुत सी रचनाओं में आपने अपना समुदाय के दुर्भाग्य से आपश्री पूरे एक वर्ष भी नाम न देकर अपने पूज्य गुरुदेव का, गुरुभ्राताओं का एवं आचार्य पद द्वारा सेवा नहीं कर पाये कि करालकाल ने अन्यों का नाम दिया है। इस सारे साहित्य का पूर्ण निर्दयता पूर्वक इस रत्न को समुदाय से छीन लिया। उग्न परिचय विस्तार भय से यहाँ नहीं दिया जा रहा है। विहार करते हुए स्वस्थ्य सबल ___ आपकी प्रवचन शैली ओजस्वी व दार्शनिक ज्ञानयुक्त अहमदाबाद से केवल 20 दिन में मन्दसौर के पास बूढ़ा थी। भाषा सरल, सुबोध और प्रसाद गुणयुक्त थी। ग्राम में फा * शु० एकम को संध्या समय पधारे। वहाँ रचनाओं में अलंकार स्वभावतः ही आ गये हैं। अत: प्रतिष्ठा कार्य व योगोद्वहन कराने पधारे थे किन्तु फा० शु० आपको एक प्रतिभाशाली कवि भी कहा जा सकता है। 5 शनिवार 2018 को रात्रि को 12 // बजे अक्समात आचार्य पद हार्टफेल हो जाने से नवकार का जाप करते एवं प्रतिष्ठा विक्रम सं० 2017 को पौष शुक्ला 10 को प्रखरवक्ता कार्य के लिगे ध्यान में अवस्थित ये महानुभाव संघ व समुव्याख्यान-वाचस्पति वीरपुत्र श्री जिन आनन्दसागर दाय को निराधार निराश्रित बनाकर देवलोक में जा विराजे सूरीश्वर जी म. सा. के आकस्मिक स्वर्ग गमनानन्तर सारी दादा गुरुदेव व शासनदेव उस महापुरुष को आत्मा को शांति समुदाय ने आपही को समुदायाधीश बनाया। अहमदाबाद एवं समुदाय को उनके पदानुसरण को शक्ति प्रदान करें, में चैत्र कृष्ण 7 को श्री खरतरगच्छ संघ द्वारा आपको यही हमारी हार्दिक अभिलाषा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |Page Navigation
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