Book Title: Jinayashsuriji
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 5
________________ से अर्ज की कि आप खरतर गच्छ के हैं और इधर धर्म का ऋद्धिमनिजी और केशरम निजी को उत्सव पूर्वक पन्यास पद उद्योत करते हैं तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बंगाल को से विभषित किया। पूर्व देश के तीर्थों की यात्रा की भी धर्म में टिकाये रखिये ! गुरुमहाराज ने पं० हरखमुनिजी भावना होने से ग्वालियर से विहार कर दतिया, झांसी, को कहा कि तुम खरतरगच्छ के हो, पारख गोत्रीय हो कानपुर, लखनऊ, अयोध्या, काशी, पटना होते हुए पावाअत: खरतर गच्छ को क्रिया करो। पंन्यास जी ने गुर्वाज्ञा- पुरी पधारे। वीरप्रभु को निर्वाणभूमि की यात्रा कर कुंडशिरोधार्य मानते हुए भी चालू क्रिया करते हुए उधर के क्षेत्रों लपुर, राजगृहो, क्षत्रियकंड आदि होते हुए सम्मेतशिखरजी को संभालने की इच्छा प्रकट की। गुरुमहाराज ने अजमेर पधारे / कलकत्ता संघ ने उपस्थित होकर कलकत्ता पधारने स्थित हमारे चरित्र नायक यशोमुनि जी को आज्ञापत्र लिखा को वीनति की। आपश्री साधुमण्डल सहित कलकत्ता जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। गुरु महाराज को पधारे और एक मास रहकर सं० 1966 का चातुर्मास इससे बड़ा सन्तोष हुआ। चातुर्मास बाद पन्यास जी किया। सं० 1967 अजीमगंज और सं० 1968 का बम्बई की और पधारे और दहाणु में गुरुमहाराज के चरणों में चातुर्मास बालचर में किया। आपके सत्संग में श्रीअमरउपस्थित हुए। आपने गुरु-महाराज की बड़ी सेवाभक्ति चन्दजी बोथरा ने धर्म का रहस्य समझकर सपरिवार तेरापंथ की, वेयावच्च में सतत् रहने लगे। को श्रद्धात्यागकर जिनप्रतिमा की दृढ़ मान्यता स्वीकार एकदिन गुरुमहाराज ने यशोमुनिजी को बुलाकर शत्रु- की। संघ की वीनति से श्रीगमानमुनिजी, वेशरमुनिजी ञ्जय यात्रार्य जाने की आज्ञा दी। वे 8 शिष्यों के साथ और बद्धिम निजी को कलकत्ता चातुर्मास के लिए आपश्री वल्लभीपुर तक पहुँचे तो उन्हें गुरुमहाराज के स्वर्गवास के ने भेजा। समाचार मिले। ... आपश्री शान्तदान्त, विद्वान और तपस्वी थे। सारा सं० 1964 का चातुर्मास पालीताना करके सेठाणी संघ आपको आचार्य पद प्रदान करने के पक्ष में था / सूरत में आणंदकुंवर बाई की प्रार्थना से रतलाम पधारे / सेठानीजी किये हुए 30 मुनि-सम्मेलन का निर्णय, कृगचन्द्रजी महा राज व अनेक स्थान के संघ के पत्र आजाने से जगत् सेठ ने उद्यापनादिमें प्रचुर द्रव्य व्यय किया / सूरत के नवलचन्द फतेचन्द, रा. ब. केशरीमलजी, रा० ब० बद्रीदासजी, भाई को दीक्षा देकर नीतिमुनि नाम से ऋद्धिमुनिजी के नथमलजी गोलछा आदि के आग्रह से आपको सं० 1966 शिष्य किये / इसी समय सूरत के पास कठोर गांव में ज्येष्ठ शुद 6 के दिन आपको आचार्य पद से विभूषित किया प्रतिष्ठा के अवसर पर एकत्र मोहनलालजी महाराज के गया। आपश्री का लक्ष आत्मशुद्धि की ओर था मौन संघाड़े के कान्तिमुनि, देवमुनि, ऋद्धिमुनि, नयमुनि, कल्या- अभिग्रह पूर्वक तपश्चर्या करने लगे। पं० केशरमुनि भावणमुनि क्षमामुनि आदि 30 साधुओं ने श्रीयशोमुनिजी को मुनिजी साधुओं के साथ भागलपुर, चम्पापुरी, शिखरजी की आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने का लिखित निर्णय किया। यात्रा कर पावापुरी पधारे / आश्विन सुदी में आपने ध्यान श्रीयशोमुनिजी महाराज सेमलिया, उज्जैन, मक्सीजो और जापपूर्वक दीर्घतपस्या प्रारम्भ की। इच्छा न होते होते हुए इन्दौर पधारे और केशरमुनि, रतनमुनि, भावमुनि हुए भी संघ के आग्रह से मिगसरवदि 12 को 53 उपवास को योगोद्वहन कराया। ऋद्धिमुनिजी भी सूरत से विहार का पारणा किया। दुपहर में उल्टो होने के बाद अशाता कर मांडवगढ में आ मिले / जयपुर से गुमानमुनिजी भी बढ़ती गई और मि० सु०३ सं० 1970 में समाधि पूर्वक गुणा को छावनी आ पहुँचे। आपने दोनों को योगोद्वहन रात्रि में 2 बजे नश्वर देह को त्यागकर स्वर्गवासी हुए। क्रिया में प्रवेश कराया। सं० 1965 का चातुर्मास ग्वा- पावापुरी में तालाब के सामने देहरी में आपकी प्रतिमा लियर में किया। योगोद्वहन पूर्ण होने पर गुमानमुनिजी, विराजमान की गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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