Book Title: Jinabhashita 2007 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ Jain Education International मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ निर्लिप्त चिड़िया जानती है तिनके जोड़ना नीड़ बनाना और बच्चों की परवरिश करना बड़े होकर बच्चे बना लेते हैं अपना अलग नीड़ वह सहज स्वीकार लेती है अकेले रहना उसे नहीं होती शिकायत अपने-पराये किसी से भी वह भूल जाती है तमाम विपदाएँ उसे याद रहता है सदा गीत गाना / चहचहाना असीम आकाश में उड़ना और अपना चिड़िया होना प्रतिदान चिड़िया ने अपनी चोंच में जितना समाया उतना पिया उतना ही लिया, सागर में जल खेतों में दाना बहुत था । चिड़िया ने घोंसला बनाया इतना जिसमें समा जाए जीवन अपना संसार बहुत बड़ा था । चिड़िया ने रोज एक गीत गाया ऐसा जो धरती और आकाश सब में समाया चिड़िया ने सदा सिखाया एक लेना देना सवाया । For Private & Personal Use Only 'अपना घर' से साभार www.jainelibrary.org

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