Book Title: Jina aur Jinashasan Mahatmya
Author(s): Sukanmal Pravartak
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 2
________________ तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्व देहिनाम्। प्रमादालस्य निद्राभिस्तनिवभाति भारत॥१४॥८॥ रजो गुण रागात्मक है और उसकी तृष्णा के कारण उत्पत्ति होती है वह जीवों को कर्म बन्ध कराता है। तमो गुण अज्ञान जन्य है, सब जीवों को मोहित (स्वरूप ज्ञान के विचलित) करने वाला है,आलस्य-निद्रा-प्रमाद आदि इसके प्रत्यक्ष बाह्य चिह्न हैं और कर्म बन्ध का कारण है। इसलिए जो आत्मा इन राग-द्वेष-मोह आदि कर्म बन्ध के कारण रूप सुभटों को जिनसे चातुर्गतिक रूप संसार में गति से भटकना पड़ता है -जीतकर काल चक्र अर्थात संसार भ्रमण से सर्वथा मक्त हो गया है. वर्तमान भव के बाद दूसरा भव धारण नहीं करता है उसको जिन कहते हैं आत्माएं अनन्त हैं और प्रत्येक आत्मा जिन हो सकती है अतएव जिन अनन्त हैं। जिन के विविध नाम - इन जिन आत्माओं के अनन्त असाधारण गुणों का आस्पद-निधान होने से अनन्त नामों से सम्बोधित किया जा सकता है। उनमें से विभिन्न विशेषताओं का समन्वय करके शास्त्रों में एक हजार आठ नामों का उल्लेख किया गया है। परन्तु उन नामों की यहाँ विशद व्याख्या किया जाना सम्भव नहीं होने से सर्वजनगम्य कुछ एक नामों का उल्लेख करते हैं। जैसे - स्वयंभू, ईश्वर, शिव, अरिहन्त, महादेव, परमेश्वर, त्रिलोचन शंकर, रुद्र विष्णु पुरुषोत्तम, ब्रह्मा बुद्ध सुगत आदि। ये सभी उनमें पाये जाने वाले गुणों के कारण सार्थक नाम हैं और जिनात्मा के गुणों का बोध कराते हैं। इन नामों से किसी व्यक्ति विशेष का नहीं किन्तु उन महान आत्माओं का बोध होता है जो कर्म शत्रुओं के विजेता बनकर शुद्ध आत्म स्वरूप में लीन हैं। इनको किसी व्यक्ति विशेष का नाम मानना योग्य नहीं। विविध नामों की सार्थकता - ऊपर जिनात्माओं के जो कुछ सम्बोधन परक नामों का उल्लेख किया है यहाँ संक्षेप में उनमें गर्भित आशय को स्पष्ट करते हैं - स्वयंभू - जिनको स्वयं समस्त विश्व को युग पद देखने जानने वाला अविनश्वर केवल ज्ञान, केवल दर्शन उत्पन्न हुआ है। उनको स्वयंभू कहते हैं। . ईश्वर - जिन्होंने केवल ज्ञान रूप परम ऐश्वर्य एवं परम आनंद रूप सुख के स्थान अर्थात मोक्ष पद को प्राप्त कर लिया है उन कृत-कृत्य आत्माओं को ईश्वर कहते हैं। शिव - जिन्होंने आकुलता रहित परम शान्त और परम कल्याण रूप अक्षय शिव पद को प्राप्त कर लिया है वे शिव हैं। अरिहंत . जो शारीरिक विकारों से रहित हैं और आत्म स्वरूप दर्शन के घातक चार घातिक कर्म- ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनीय व अन्तराय का क्षय कर चुके हैं, अनन्त ज्ञान-दर्शन-सुख और वीर्य से परिपूर्ण हैं और परम वीतरागता को प्राप्त हैं वे अरिहंत हैं। महादेव - जिन महापुरुषों ने महा मोह आदि दोषों का सर्वथा उन्मूलन कर दिया है और जो संसार रूप महा सागर को पार कर चुके हैं वे देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं। परमेश्वर - जो अपने परम विकास के कारण पूजातिशय, ज्ञानातिशय आदि अतिशयों से सम्पन्न होने से ऐश्वर्य की परम कोटि में स्थित हैं, वे परमेश्वर कहलाते हैं। त्रिलोचन - ज्ञानावरण कर्म का निःशेष रूप से क्षय हो जाने से जिनके ज्ञान रूप अलौकिक तीसरे नेत्र में समग्र त्रिलोक प्रतिबिम्बित होता है उन्हें त्रिलोचन कहते हैं। (२३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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