Book Title: Jina Shasana me Shramaniyo ki Bhumika
Author(s): Kusumlata Jain
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 3
________________ वृद्ध, व्याधिग्रस्त ऋणपीड़ित, गर्भवती तथा छोटे शिशुओं की माता आदि। इस तरह दीक्षा व्रत प्रगति के पथ पर अग्रसर करने की प्रक्रिया है। नारियों में त्याग तप, सहनशीलता, गाम्भीर्य पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है इसी कारण हर तीर्थंकर के काल में श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों की संख्या अधिक रही है और आज भी श्रमणियों की युवाओं और वृद्धों में धर्म प्रचार समता एवं सद्भावना का प्रसार कर रही हैं अतः समाज निर्माण में श्रमणियों का विशिष्ट स्थान है। इसी श्रमणी परम्परा को अग्रेषित करने हेतु साध्वी रला श्री कानकुंवरंजीम एवं श्री चम्पाकुवंरजी का अभ्युदय हुआ है। आप दोनों परम विदुषी, ओजस्वी व्याख्यात्री, मधुर भाषिणी, त्यागी समाजोद्धारक, ___ आप दोनों संस्कृत प्राकृत हिन्दी एवं गुजराती की ज्ञाता थी। आपने उत्तर भारत से दक्षिण भारत-कर्नाटक तामिलनाडु तक पदयात्रा करते हुए धर्म प्रचार किया है। अहंकार यदि अहंकार-पोषण के लिये सत्कर्म करते भी हैं तो वह फल शून्य हो जाता है। * जिस व्यक्ति में अहंकार की अधिकता होती है वह न तो किसी को सहयोग दे पात है और न अन्य व्यक्तियों से सहयोग ले पाता है। आचरण आम जनता इतिहास नहीं देखती, वर्तमान को देखकर आचरण करती है। यदि आपका आचरण व व्यवहार अभद्र है, निन्दनीय है और आप चाहें कि लोग आपकी प्रशंसा करें - तो यह तो अमावस की रात में चन्द्रमा देखने की लालसा जैसी बात हो गई। आत्मा * संसार में कहीं ऐसा स्थान नहीं, जहाँ आत्मा अपने को न देखता हो। मनुष्य सबको धोखा दे आत्म-दर्शन भी एक प्रकार का शीशा है, इससे अपने जीवन की खामियाँ, दुर्बलताएँ और बुराइयाँ मनुष्य के सामने खुलकर आ जाती हैं। . ... स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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