Book Title: Jeevant Prerna Pradeep Acharya Hastimalji Author(s): Shanta Bhanavat Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 3
________________ * 246 * व्यक्तित्व एवं कृतित्व को एक विशेष शक्ति प्राप्त होती है। जो साधक प्रार्थना के रहस्य को समझ कर आत्मिक शांति के लिए प्रार्थना करता है, उसकी आधि-व्याधियाँ दूर हो जाती हैं, चित्त की आकुलता-व्याकुलता नष्ट हो जाती है, और वह परम पद का अधिकारी बन जाता है।" 1 पर यह प्रार्थना बाह्य दिखाबा मात्र नहीं होनी चाहिए / प्रार्थना करते समय तो "कषाय की जहरीली मनोवृत्ति का परित्याग करके समभाव के सुधा सरोवर में अवगाहन करना चाहिये / "2 ऐसी प्रार्थना से मन को अपार शांति मिलती है। वह शांति क्या है ? शांति आत्मा से सम्बन्धित एक वृत्ति है / ज्यों-ज्यों राग-द्वेष की प्राकुलता कम होती जाती है और ज्ञान का आलोक फैलता जाता है त्यों-त्यों अन्तःकरण में शांति का विकास होता है / प्रार्थना के स्वरूप के सम्बन्ध में प्राचार्य श्री का कहना है कि प्रार्थना केवल चन्द मिनट के लिए भगवान का नाम गुनगुनाना नहीं है वरन् “चित्तवृत्ति की तूली को परमात्मा के साथ रगड़ने का विधि पूर्वक किया जाने वाला प्रयास ही प्रार्थना है / " "अगर हमारे चित्त में किसी प्रकार का दम्भ नहीं है, वासनाओं की गंदगी नहीं है, तुच्छ स्वार्थ-लिप्सा का कालुष्य नहीं है तो हम वीतराग के साथ अपना सान्निध्य स्थापित कर सकते हैं।"५ "प्रात्मा अमर अजर-अविनाशी द्रव्य है / न इसका आदि है, न अंत, न जन्म है न मृत्यु / इसलिए आत्मा से उत्पन्न विकारों के शमन के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है / जब मनुष्य का ज्ञान, दर्शन, चारित्र उन्नत हो जाता है तब वह सांसारिक दुखों में भी सुख का अनुभव करने लगता है / जल तभी तक ढलकता, ठोकरें खाता, ऊँचे-नीचे स्थान में पद दलित होता और चट्टानों से टकराता है जब तक कि वह महासागर में नहीं मिल जाता।" सचमुच सत्पुरुषों का जीवन प्रदीप के समान होता है जो स्वयं भी प्रकाशित होता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता है / प्राचार्य श्री का जीवन ऐसे ही महापुरुषों जैसा था / आज वे हमारे बीच पार्थिव रूप से नहीं हैं पर उनके जीवनादर्शों और वचनामृतों से प्रेरणा लेकर हमें अपने जीवन को उन्नत बनाना चाहिए / यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। -प्रिंसिपल, श्री वीर बालिका कॉलेज, जयपुर-३०२ 003 1. प्रार्थना-प्रवचन, पृ० 41 / 2. वही, पृ० 235 / 3. वही, पृ० 104 / 4. वही, पृ० 213 / 5. वही, पृ०७ / 6. आध्यात्मिक पालोक, पृ० 123 / Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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