Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ श्री जयन्ती साकेतपुरे स्थितास्थविरायाः पुत्ररक्षणा प्रकरणवृतिः / थे विल पनम् / RRC-%%*RRC खाए / अम्मो हविज धम्मो, रम्मो ता किं न पञ्जत् // 67 // अह चिंतइ सा थेरी, सिरिअयले साहसंमि एयस्स / जस्वस्स वसीकरणी ववसायमहोसही अस्थि // 68 // सत्ताहियमि पुरिसे, खीरोयसरिच्छयम्मि गंभीरे / महियमिवि अमियरसो, संपञ्जइ ? किन्तु चुञ्जमिणं / / 69 // परउवयारसरोरुह !, अणम्भत्थियसूरनिम्मलपयाव!। तं पुत्ताओवि सुहओ, बच्चन्तो देसि संतावं // 70 // इय तीए एस भणिओ, जंपइ संपइ तहा जइस्समहं / जह तुम्हं अम्हाण य कयरक्खो होइ जक्खोवि // 71 // ता सो दिवमुहुत्ते, कयच्छडो न्हाय अहयसियवत्थो। अद्वगुणपोत्तियाए सम्म ठइऊण मुहकमलं // 72 // न्हविउं पउमपिहाणयगंधोदयभरियकणयकलसेहिं / नवभायणअसिलेसयनववनयकुच्चियाहत्थो / 73 // चित्तउं जत्तेण महारिहं कारवेइ अह पूयं / विनवइ जक्खरायं सुरप्पियं परमभनीए // 74 // स्वमियत्वं अवरद्धं जमिह मए नाह ! मूढहियएण / पणयजणवच्छलाउ, हुंति जओ देवया देव! / / 75 // एसो हि पुरिसरयणं, गारवगारेण वजिओ सच्छो / तेयस्सी महमाणसमोहणकरणेक्कमाहप्पो // 76 // विणयंगएणं एएण, मज्झ दढपक्खमुबहतेण / बहुवनसंथवेणं कोवो सप्पो व विद्दविओ // 77 // एयस्स विवेएणं ससिमंडलनिम्मलेण मह सहसा / सह सायरेण मणसा उल्लसियं कुवलयं सत्वं // 78 // इय चिन्तिऊण जक्खो, पञ्चक्खो चलिरकुंडलाहरणो / सहरिसमुहारविंदो, साणंदो, भणिउमाढत्तो // 79 // चित्तगरो चित्तगरो, चित्तहरोतं सि महासत्तो / तं मग्गसु वरमिन्दि, सहलो ज होइ महतोसो // 8 // तो सो चित्तयरवरो, भणइ अलोहो अक्खोहपरिणामो। किं ? तुम्ह दसणाओ, अवरोवि वरो मज्झ / / 81 / / जक्खेण पसनेणं, सो वोत्तो तहवि दसणं अम्ह / होइ अमोहं किंचिवि, 1 आश्चर्यकरः। // 8 //

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