Book Title: Jawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika Author(s): Kiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali Publisher: Swarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय भगवान महावीर को परिनिर्वाण प्राप्त किये आज २५०० वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत हो गया है। तब से आज तक उनकी सर्वकल्याणी वाणी जन-जन का मार्गदर्शन कर रही है । इस दीर्घावधि में उनकी विचार - परम्परा को अनेक प्रभावी आचार्यों ने अपने तप, तेज, स्वाध्याय और साधना से सतत प्रवाहमान रखा है। 'हां', समय के प्रभाव से यह प्रवाह कहीं गंद-गंधर हुआ है तो कहीं किंचित् छिन्न-भिन्न भी; किन्तु यह सौभाग्य की बात है कि इस परम्परा में समय-समय पर ऐसे क्रान्ति-दर्शी आचार्य होते रहे हैं जिन्होंने अपनी विमल प्रज्ञा से इस विचार प्रवाह को शिथिल करने वाली वातों को पहचाना और दृढ़ इच्छा शक्ति से उनका परिहार किया। उन्हीं आचार्यों के सद्प्रयासों से यह पावन प्रवाह पुनः पुनः अपने शुद्ध रूप में प्रतिष्ठित होता रहा है। ऐसे ही यशस्वी आचार्यों की परम्परा में एक प्रमुख आचार्य हुए श्रीमद् जवाहराचार्य। वे प्रज्ञा सम्पन्न एवं निर्मल विवेक वाले आचार्य थे । सकारात्मक चिन्तन और रचनात्मक दृष्टि के कारण वे अपने युग के अन्यान्य जैनाचार्यों से भिन्न दृष्टिगत होते हैं । अपनी क्रान्तिकारी स्थापनाओं के कारण उन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। उनकी पावन स्मृति को चिरस्थायी बनाने की दृष्टि से ही उनके स्वर्गारोहण के बाद जवाहर विद्यापीठ, भीनासर की स्थापना की गयी। यह संस्थान अपनी स्थापना के ५० वर्ष पूर्ण कर स्वर्ण जयन्ती गना रहा है। इस स्मारिका का प्रकाशन इसी उपलक्ष्य में किया जा रहा है। हैं प्रस्तुत स्मारिका में उस महामनीषी के प्रेरक जीवन और स्पृहणीय व्यक्तित्व की एक झलक भर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। स्मारिका तीन खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्ड में जवाहराचार्य के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर प्रकाश डाला गया है। इस हेतु इस खण्ड को कई अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रथम अध्याय 'जीवन-गाथा' में आचार्य प्रवर के यशस्वी जीवन का संक्षिप्त इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है। 'सृजन' शीर्षक द्वितीय अध्याय में आचार्यश्री के उद्बोधक उपदेशों में से बानगी रूप में केवल तीन व्याख्यान लिये गये हैं। ये व्याख्यान उस युगचेता आचार्य के मौलिक चिन्तन, उदार सामाजिक सोच और प्रखर राष्ट्रभक्ति को रेखांकित करते हैं। साथ ही आचार्य श्री के विपुल साहित्य से चयनित विषय सूक्तियां भी प्रस्तुत की गई हैं। इसी अध्याय में आचार्य श्री की काव्य प्रतिमा का परिचय देने वाली कृति 'राती मयण रेहा' को भी सम्मिलित किया गया है। तृतीय अध्याय 'पति' में श्री जवाहराचार्य के जल करूण व्यक्तित्व के प्रति काव्यप्रति निवेदित अध्याय 'गवाक्ष' में बहुआयामी प्रतिभा के धनी आचार्य श्री जीPage Navigation
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