Book Title: Jatil Muni
Author(s): 
Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf

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________________ 392 : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ अर्थात-दया आदि व्रतोंके धारण करनेसे, रक्षा-कार्य करने से, कृषि करने से और शिल्प आदि से ही ब्राह्मण आदि चारों वर्णों की व्यवस्था है। यह क्रियाश्रित है और व्यवहारमात्र है। दूसरे प्रकार से वर्ण व्यवस्था नहीं है। जटिलमुनिके इन शम और समपूर्ण वचनोंको सुनकर चण्डशर्मा पानी-पानी हो गया / वह गद्गद हो चरणोंमें पड़कर बोला-श्रमणवर, आज आपने मुझे सच्चे ब्राह्मणत्वका मार्ग बताया। मेरी तो जैसे आँखेंही खोल दी हों / आज तो मुझे दुनिया कुछ दूसरी ही दिख रही है। मेरा तो नकशा ही बदल गया है। मुनिवर, मुझे उपासक मानें / आपने चालुक्येश्वर की कोपाग्निसे मेरी रक्षा की, मुझे अभय दिया / धन्य / A.000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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